Sunday, January 31, 2021

जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे|

जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| =========================================== =========================================== जिस समय पूरी पृथ्वी ही जल मग्न थीं उस समय विश्व व्यापक जलप्रवाह रोक कर केदारेश्वर (आदि आदि-त्रिदेव/आदि शिव: जिनको महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र कहते है मतलब पाँचों मूल तत्वों के देव के नेतृत्वकर्ता इन्द्र ही नही उनके स्वामी महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र) ने मानवीय समय प्रारम्भ होने के पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले काशी में कीचड़ तैयार कर दिया और उसके बीच से ही उनकी उत्पत्ति हुई। तो स्पष्ट सी बात है कि पृथ्वी पर काशी ही एक मात्र वह स्थान है जहाँ पर इस विश्व के प्रथम नागरिक शिव ने अपनी शक्ति(सती:पारवती) के साथ रहने योग्य इसे पृथ्वी का प्रथम स्थल बनाया | प्रयागराज में ऋषिकाल या मानवीय समय की प्रथम नीव कहें तो ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु तथा शिव द्वारा पूरित प्रकृष्टा या प्राकट्य यज्ञ से ब्रह्मा के सातों मानस पुत्र (सप्तर्षि) कश्यप/कण्व (मारीच:आदित्य), गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) प्रकट हुए (और सातों सप्तर्षि के साथ सातों सप्तर्षि के ही अंश से काशी में आविर्भवित/प्रकट होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि के साथ अष्टक (7+1=8) ऋषि प्रकट हुए)|============= और============== केदारेश्वर शिव ने इस ऋषिकाल प्रारम्भ होने से पहले तक शक्ति (सती: पार्वती) के साथ इसी काशी मे रहे और जैसे ही प्रयागराज मे ऋषि संस्कृति ने जन्म लेकर मानव समय का प्रारम्भ किया वे हिमालय पर्वत को निवास स्थल बना लिए और जिसमे कश्यप ऋषि जो शिव के शाढ़ू भाइ भी हुये (पिता, मारीच:आदित्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि:ब्रह्मर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया और कुछ समय वहां बिताने के बाद शिव हिमालय के पूर्वोत्तर सिरे को अपना आशियाना बनाया| ======= कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की| जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है। =========================================== सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल है और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डल एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| ==================================== ==================================== प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है....... 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =========================== 109. विष्णु गोत्र ====================================== सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== 1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year. त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :- मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें। आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:- या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥ अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्। वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥ अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ । त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव): कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। ========================================== जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| ========================================== =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-223225 व् बिशुनपुर-223103 युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|===""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| =========================================== मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: =========================================== मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| =========================================== =========================================== तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी, यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिस्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| =========================================== ============================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======================================================================================================================================= =========================================== मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था| तो फिर मेरे तत्कालीन परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति =========""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| =========================================== सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/ एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है| =========================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))|--- =========================================== ==============================================================-||
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मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|























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Wednesday, January 27, 2021

लेकिन जब शत्रु सामने खड़ा हो ललकारे तो गौतम बुद्ध बन उसकी पूजा की जाय? तो रावण और कंश के साथ वह ही किया गया जो उचित था। जो स्वयं परमब्रह=ब्रह्म है वह ब्रह्मा से भी बड़ा ब्राह्मण है की नहीं? अतः विश्व का सबसे बड़े ब्राह्मण ब्रह्मा नहीं हैं परमब्रह्म(ब्रह्मा+विष्णु+महेश) हैं जिसे आप ब्रह्म कहते है तथा जिससे ही सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी सृजन होता है और उस अवस्था को सशरीर प्राप्त कर सकने वाले आज तक केवल भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण ही हुए है और दोनों अस्त्रधारी हैं तो शंख, चक्र, पद्म(कमल), गदाधारी हमारे भगवान विष्णु स्वयं धनुर्धारी तथा सुदर्शन चक्रधारी होते हुए भी नि:अस्त्र-शस्त्र रूप वाले सशरीर परमब्रह्म=ब्रह्म की अवस्था को प्राप्त हुए। मतलब श्रेष्ठतम कार्य (त्याग) और उपदेश के समय अस्त्र-शस्त्र धारी होते हुए उसका उपयोग नहीं किया; तथा राजधर्म की मर्यादा हेतु भी प्रेम और सत्य की परिक्षा में उत्तीर्ण सीता का भी त्याग; अन्नय और श्रेष्ठतम प्रिय राधा का त्यागकर कंश वध हेतु जाना और महाभारत में समय को शून्य कर अर्जुन को उपदेश, इन सबमें क्या सस्त्र का उपयोग हुआ था? लेकिन जब शत्रु सामने खड़ा हो ललकारे तो गौतम बुद्ध बन उसकी पूजा की जाय? तो रावण और कंश के साथ वह ही किया गया जो उचित था। ==========================================राम नाम सनातन संस्कृति का नाम है जिसमे से रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय राम सर्व व्यापक सशरीर परमब्रह्म (ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म हैं। और राम वह है जो शिव की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) को जाला दे या विष्णु की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) का नाश कर हमें निर्मल और सज्जन बना दे। तो राम शब्द में ही शिव और विष्णु दोनों के गुण अपने आप में निहित है तो रह जाती है बात ब्रह्मा की तो इसके पीछे तथ्य है की इस श्रिष्टि में केवल राम ही अपने में पूर्णतः विवेक मतलब आदि त्रिदेवी मतलब त्रिदेवियों में आद्या मतलब सरस्वती के ज्येष्ठ मानस पुत्र कहे जाने से सभी त्रिदेवों के गुण इनमे अपने आप में समाहित हो जाता है। तो हम कह सकते हैं की राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम ऐसे ही रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय दसरथ के कुलगुरु वशिष्ठ ने ऐसे ही नहीं दिए थे वरन ये नाम अपने में ही सनातन नाम हैं और उन नामों में ही उनके गुण छुपे हैं। अगर सीता श्रिष्टि तो राम उस श्रिष्टि के प्राण है और इस प्रकार अगर सीता और राम दोनों इस संसार में अस्तित्व में हैं तो दोनों एक दूसरे के पूरक है इससे ज्यादा मैं कह ही क्या सकता हूँ। ==========================================सनातन गौतम(न्याय-दर्शन के प्रणेता) गोत्रीय ब्राह्मण परिवार का नाती हूँ मै अतः मुझे पता है की: गौतम गोत्रीय शाक्य(शाकाहारी व् अहिंसक) वंशीय क्षत्रिय सिद्धार्थ गौतम ही गौतम बुद्ध है जो की हिन्दू समाज में एक पंथ का निर्माण किये जो बौद्ध मत है और जिसकी सभी पाण्डु लिपिया हिन्दू ग्रन्थ को ही निरूपित करती हैं पर बौद्ध मत के अनुसार कही-कही उनको परिवर्तित किया गया है। अतः उन सबका स्रोत सनातन हिन्दू धर्म के ग्रन्थ ही हैं। उसी तरह काशी और काबा का सम्बन्ध है जिसमे काशी पुरातन संस्कृति है काबा की संस्कृति से। और जब मुस्लिम संस्कृति (/इस्लामानुयाई) स्वयं ईसाइयत(इस्लामानुयाई/मुसल्लम ईमान/पूर्ण ईमान; ईसायतानुयाई/पूर्ण दीनदयाल) से पुरानी संस्कृति है तो काशी की संस्कृति ईसाइयत (यरूसलेम) की संस्कृति से भी पुरानी अपने में है ही इसमे दो राय कहाँ। मेरा मत यही की किशी को अपना धर्म परिवर्तन किये बिना ही सनातन हिन्दू संस्कृति से यदि जोड़ा जाता है तो वह उससे ज्यादा अच्छा कदम होगा जिसमे किशी को अपना धर्म त्याग करवा सनातन हिन्दू धर्म से जोड़ा जाता है। क्योंकि सनातन हिन्दू संस्कृति प्राचीनतम संस्कृति है अतः उसे यथा संभव अपनाते हुए कोई अपने नए धर्म में बना रहता है देश, काल, जलवायु और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तो इसमे कोई गलत नहीं है। एक और भी अच्छाई है भारत में सभी धर्मो के पाये जाने से की कि जब कोई भारतीय विदेश में कहीं जाता है तो उसे बताना नहीं पड़ता की वहा के विभिन्न धर्म अनुयायियों के साथ कौन सा व्यवहार स्वयं उस भारतीय के लिए सम्बन्ध बिगाड़ने वाला साबित हो सकता है और कौन सा व्यवहार उनको उस भारतीय के करीब ला सकता है। लेकिन इसके साथ की भारत की आत्मा सनातन हिन्दू संस्कृति है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।*******जय हिन्द(जंम्बूद्वीप = यूरेशिया=यूरोप +एशिया या न्यूनतम ईरान से सिंगापुर और कश्मीर से कन्याकुमारी, जय भारत(भारतवर्ष=अखंड-भारत=भरतखण्ड), जय श्रीराम/कृष्ण<<<<<<<>>>>>>>सामाजिक, धार्मिक, संवैधानिक वैध नियमों को स्वयं तोड़ने वालों के साथ भी विनम्रता से व्यवहार क्या व्यक्तित्व की विशालता में नहीं आता? अगर परहित जीवन छोड़ तुछ्य मानशिकता वाले ऐसे व्यक्तियों के कार्यों का जबाब गंभीर प्रतिशोधात्मक कार्यों से देते तो इस प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज, भारतवर्ष और विश्व एक गाँव तथा विश्व मानवता का भविष्य कैसा होता?

लेकिन जब शत्रु सामने खड़ा हो ललकारे तो गौतम बुद्ध बन उसकी पूजा की जाय? तो रावण और कंश के साथ वह ही किया गया जो उचित था। जो स्वयं परमब्रह=ब्रह्म है वह ब्रह्मा से भी बड़ा ब्राह्मण है की नहीं? अतः विश्व का सबसे बड़े ब्राह्मण ब्रह्मा नहीं हैं परमब्रह्म(ब्रह्मा+विष्णु+महेश) हैं जिसे आप ब्रह्म कहते है तथा जिससे ही सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी सृजन होता है और उस अवस्था को सशरीर प्राप्त कर सकने वाले आज तक केवल भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण ही हुए है और दोनों अस्त्रधारी हैं तो शंख, चक्र, पद्म(कमल), गदाधारी हमारे भगवान विष्णु स्वयं धनुर्धारी तथा सुदर्शन चक्रधारी होते हुए भी नि:अस्त्र-शस्त्र रूप वाले सशरीर परमब्रह्म=ब्रह्म की अवस्था को प्राप्त हुए। मतलब श्रेष्ठतम कार्य (त्याग) और उपदेश के समय अस्त्र-शस्त्र धारी होते हुए उसका उपयोग नहीं किया; तथा राजधर्म की मर्यादा हेतु भी प्रेम और सत्य की परिक्षा में उत्तीर्ण सीता का भी त्याग; अन्नय और श्रेष्ठतम प्रिय राधा का त्यागकर कंश वध हेतु जाना और महाभारत में समय को शून्य कर अर्जुन को उपदेश, इन सबमें क्या सस्त्र का उपयोग हुआ था? लेकिन जब शत्रु सामने खड़ा हो ललकारे तो गौतम बुद्ध बन उसकी पूजा की जाय? तो रावण और कंश के साथ वह ही किया गया जो उचित था। ==========================================राम नाम सनातन संस्कृति का नाम है जिसमे से रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय राम सर्व व्यापक सशरीर परमब्रह्म (ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म हैं। और राम वह है जो शिव की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) को जाला दे या विष्णु की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) का नाश कर हमें निर्मल और सज्जन बना दे। तो राम शब्द में ही शिव और विष्णु दोनों के गुण अपने आप में निहित है तो रह जाती है बात ब्रह्मा की तो इसके पीछे तथ्य है की इस श्रिष्टि में केवल राम ही अपने में पूर्णतः विवेक मतलब आदि त्रिदेवी मतलब त्रिदेवियों में आद्या मतलब सरस्वती के ज्येष्ठ मानस पुत्र कहे जाने से सभी त्रिदेवों के गुण इनमे अपने आप में समाहित हो जाता है। तो हम कह सकते हैं की राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम ऐसे ही रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय दसरथ के कुलगुरु वशिष्ठ ने ऐसे ही नहीं दिए थे वरन ये नाम अपने में ही सनातन नाम हैं और उन नामों में ही उनके गुण छुपे हैं। अगर सीता श्रिष्टि तो राम उस श्रिष्टि के प्राण है और इस प्रकार अगर सीता और राम दोनों इस संसार में अस्तित्व में हैं तो दोनों एक दूसरे के पूरक है इससे ज्यादा मैं कह ही क्या सकता हूँ। ==========================================सनातन गौतम(न्याय-दर्शन के प्रणेता) गोत्रीय ब्राह्मण परिवार का नाती हूँ मै अतः मुझे पता है की: गौतम गोत्रीय शाक्य(शाकाहारी व् अहिंसक) वंशीय क्षत्रिय सिद्धार्थ गौतम ही गौतम बुद्ध है जो की हिन्दू समाज में एक पंथ का निर्माण किये जो बौद्ध मत है और जिसकी सभी पाण्डु लिपिया हिन्दू ग्रन्थ को ही निरूपित करती हैं पर बौद्ध मत के अनुसार कही-कही उनको परिवर्तित किया गया है। अतः उन सबका स्रोत सनातन हिन्दू धर्म के ग्रन्थ ही हैं। उसी तरह काशी और काबा का सम्बन्ध है जिसमे काशी पुरातन संस्कृति है काबा की संस्कृति से। और जब मुस्लिम संस्कृति (/इस्लामानुयाई) स्वयं ईसाइयत(इस्लामानुयाई/मुसल्लम ईमान/पूर्ण ईमान; ईसायतानुयाई/पूर्ण दीनदयाल) से पुरानी संस्कृति है तो काशी की संस्कृति ईसाइयत (यरूसलेम) की संस्कृति से भी पुरानी अपने में है ही इसमे दो राय कहाँ। मेरा मत यही की किशी को अपना धर्म परिवर्तन किये बिना ही सनातन हिन्दू संस्कृति से यदि जोड़ा जाता है तो वह उससे ज्यादा अच्छा कदम होगा जिसमे किशी को अपना धर्म त्याग करवा सनातन हिन्दू धर्म से जोड़ा जाता है। क्योंकि सनातन हिन्दू संस्कृति प्राचीनतम संस्कृति है अतः उसे यथा संभव अपनाते हुए कोई अपने नए धर्म में बना रहता है देश, काल, जलवायु और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तो इसमे कोई गलत नहीं है। एक और भी अच्छाई है भारत में सभी धर्मो के पाये जाने से की कि जब कोई भारतीय विदेश में कहीं जाता है तो उसे बताना नहीं पड़ता की वहा के विभिन्न धर्म अनुयायियों के साथ कौन सा व्यवहार स्वयं उस भारतीय के लिए सम्बन्ध बिगाड़ने वाला साबित हो सकता है और कौन सा व्यवहार उनको उस भारतीय के करीब ला सकता है। लेकिन इसके साथ की भारत की आत्मा सनातन हिन्दू संस्कृति है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।*******जय हिन्द(जंम्बूद्वीप = यूरेशिया=यूरोप +एशिया या न्यूनतम ईरान से सिंगापुर और कश्मीर से कन्याकुमारी, जय भारत(भारतवर्ष=अखंड-भारत=भरतखण्ड), जय श्रीराम/कृष्ण<<<<<<<>>>>>>>सामाजिक, धार्मिक, संवैधानिक वैध नियमों को स्वयं तोड़ने वालों के साथ भी विनम्रता से व्यवहार क्या व्यक्तित्व की विशालता में नहीं आता? अगर परहित जीवन छोड़ तुछ्य मानशिकता वाले ऐसे व्यक्तियों के कार्यों का जबाब गंभीर प्रतिशोधात्मक कार्यों से देते तो इस प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज, भारतवर्ष और विश्व एक गाँव तथा विश्व मानवता का भविष्य कैसा होता? ================================================================================ रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| =========================================== मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: =========================== ============================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======================================================================================================================================= मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ========================================================================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ==========================================================-||
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मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|























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राम नाम सनातन संस्कृति का नाम है जिसमे से रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय राम सर्व व्यापक सशरीर परमब्रह्म (ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म हैं। और राम वह है जो शिव की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) को जाला दे या विष्णु की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) का नाश कर हमें निर्मल और सज्जन बना दे। तो राम शब्द में ही शिव और विष्णु दोनों के गुण अपने आप में निहित है तो रह जाती है ब्रह्मा की बात तो इसके पीछे तथ्य है की इस श्रिष्टि में केवल राम ही अपने में पूर्णतः विवेक मतलब आदि त्रिदेवी मतलब त्रिदेवियों में आद्या मतलब सरस्वती के ज्येष्ठ मानस पुत्र कहे जाने से सभी त्रिदेवों के गुण इनमे अपने आप में समाहित हो जाता है। तो हम कह सकते हैं की राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम ऐसे ही रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय दसरथ के कुलगुरु वशिष्ठ ने ऐसे ही नहीं दिए थे वरन ये नाम अपने में ही सनातन नाम हैं और उन नामों में ही उनके गुण छुपे हैं। अगर सीता श्रिष्टि तो राम उस श्रिष्टि के प्राण है और इस प्रकार अगर सीता और राम दोनों इस संसार में अस्तित्व में हैं तो दोनों एक दूसरे के पूरक है इससे ज्यादा मैं कह ही क्या सकता हूँ।

राम नाम सनातन संस्कृति का नाम है जिसमे से रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय राम सर्व व्यापक सशरीर परमब्रह्म (ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म हैं। और राम वह है जो शिव की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) को जाला दे या विष्णु की तरह भव सागर के पापों(कुकृत्यों) का नाश कर हमें निर्मल और सज्जन बना दे। तो राम शब्द में ही शिव और विष्णु दोनों के गुण अपने आप में निहित है तो रह जाती है ब्रह्मा की बात तो इसके पीछे तथ्य है की इस श्रिष्टि में केवल राम ही अपने में पूर्णतः विवेक मतलब आदि त्रिदेवी मतलब त्रिदेवियों में आद्या मतलब सरस्वती के ज्येष्ठ मानस पुत्र कहे जाने से सभी त्रिदेवों के गुण इनमे अपने आप में समाहित हो जाता है। तो हम कह सकते हैं की राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम ऐसे ही रघुवंशीय/इक्षाकुवंशीय/सूर्यवंशीय/कश्यप गोत्रीय दसरथ के कुलगुरु वशिष्ठ ने ऐसे ही नहीं दिए थे वरन ये नाम अपने में ही सनातन नाम हैं और उन नामों में ही उनके गुण छुपे हैं। अगर सीता श्रिष्टि तो राम उस श्रिष्टि के प्राण है और इस प्रकार अगर सीता और राम दोनों इस संसार में अस्तित्व में हैं तो दोनों एक दूसरे के पूरक है इससे ज्यादा मैं कह ही क्या सकता हूँ। ==================================== ============================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======================================================================================================================================= प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है....... 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =========================== 109. विष्णु गोत्र ======================================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| =========================================== मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: =============================== मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ================================================================================ जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| =========================================================-||
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मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|























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Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र (ऋषि):विष्णु गोत्र (/ऋषि) है):----मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण) ===11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित रूप से धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 ही पा लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया| ===========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है| ============मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण)"" के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा (जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति, महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार मूल सारन्गधर के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय----व----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|================== ===============मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है|=====----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|

किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवर...