Sunday, July 12, 2020

विश्व-मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य में """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान """"पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी समुचित रूप से सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा र्मैं ही धारण किये हुए हूँ| वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) से मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पाँचों आयाम ( शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है और यही पूर्णातिपूर्ण अवस्था है==✓मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था से त्रिदेव (शिव (/त्रिदेवों में आदिदेव/परमाचार्य)); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(देवी आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी जिनके 9 स्वरूप में एक देवकाली/महाकाली हैं) का आविर्भाव होता है तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिनसे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|>29 (15-29) मई 2006//25 मई 2018 (31 जुलाई 2018)/11 सितम्बर 2001//7 फरवरी 2003/11 सितम्बर 2008-->वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) ही सर्वोच्च शक्ति हैं और इस संसार में इनसे उच्च शक्ति कोई देवी/देवता, नर-किन्नर, नाग-गन्धर्व और असुर नहीं है|

विश्व-मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य में """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान """"पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी समुचित रूप से सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा र्मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र/ऋषि:विष्णु गोत्र/ऋषि है):----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी|============अभी तो केवल एक ही बना है और अन्य दोनों भी बन रहे हैं थोड़ी प़तीक्षा/इन्तजार कर लीजिए: ✓वैश्विक शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), और राम तथा और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+शिव) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँचों वैश्विक स्वरूप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का| मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अर्थात 18 अप्रैल, 2008 तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहने तक (उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ)| = विश्रांत: 11 सितम्बर 2001 से ही इस प़यागराज (/काशी) में प़त्यक्ष (वाह्य) रूप से वैश्विक संस्थागत और परोक्ष (आन्तरिक) रूप से विश्व मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य हेतु मुझ तीन पीढ़ियों की एकल संतति को ही एक मात्र पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था जिसे 29(/15-29) मई 2006//25 मई 2018/31 जुलाई 2018 को पूर्णातिपूर्ण किया>>मै केवल सतह पर ही कार्यरत नहीं रहा और न आज भी मैं केवल सतह पर कार्यरत हूँ, तो जो भी मेरे संपर्क में आया मै सबके साथ चला जहाँ तक वे मेरे साथ चलने की सामर्थ्य रखे पर मेरे साथ निरन्तर कौन चल सकता था मेरे पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता निमित्त अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति तक (25 मई 1998/12 मई 1997 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018)? तो वे रहे एक मात्र तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (केन्द्रीय विष्णु:श्रीधर); कारण कि एकान्त और मौन तथा समाज, संस्था और परिवार में रहकर भी प्रत्यक्ष (वाह्य) रूप से वैश्विक संस्थागत और परोक्ष (आन्तरिक) विश्व-मानवतागत अभीष्ट हित हेतु समाज, संस्था और परिवार से अलग जीवन रहा है मेरा:====>इसी ज्ञान, विज्ञान, मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ तथा वेश-भूषा तथा भाषा व् आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार के साथ इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) स्थित केदारेश्वर(/आदिशिव) नामित केन्द्र में मेरी उपस्थिति 11 सितम्बर 2001 से अनिवार्य थी और अभी भी अनिवार्य है, इसीलिए यही केंद्रित रहा 11 सितम्बर 2001 से और आगे भी कम से कम 11 नवम्बर 2057/01 अगस्त 2058 (11 नवम्बर 1975/01 अगस्त 1976 से 11 नवम्बर 2057/01 अगस्त 2058) तक केन्द्रित रहूँगा:------>>बैक ग्रॉउण्ड का प्रदूषण/दोष दूर करके ही किसी से उसके गरिमामयी कार्य की वास्तविक रिपोर्ट माँग सकते है और ऐसे प्रदूषित/दूषित बैकग्राउण्ड में ही मैंने अपने संस्थागत संकल्प/समर्पण/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता निमित्त अभीष्ट लक्ष्य के कार्य को अंजाम दे दिया था (11 सितम्बर 2011 से 29(/15-29) मई 2006) अर्थात 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत केदारेश्वर (/आदिशिव) की स्थापना हो चुकी थी)|--------फिर इस प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित अपनी उपस्थिति से 30 मई 2006 से सचित्र (परमब्रह्म विष्णु (/कृष्ण), तुलसी के कृष्ण (राम रूप में); राम और रामजानकी) अपनी लेखनी (ऑरकुट, फेसबुक, ब्लॉग:"VIVEKANAND AND MODERN TRADITION") द्वारा विश्व-मानवता के हित हेतु मानवतागत बैकग्रॉउण्ड प्रदूषण/दोष दूर करने हेतु निर्भीक रूप से विश्व-मानवता हित लेखन जारी रखा| शायद मेरी लेखनी के माध्यम से मेरी ऊर्जा के प्रवाह के परिणाम स्वरूप प्रबुद्ध जनों में ह्रदय परिवर्तन और ह्रदय परिवर्तन के प्रभाव स्वरुप उसके अच्छे परिणाम आएंगे यही आशा रही है और वे शायद आ रहे हैं:-------| = वैश्विक कृष्ण (वासुदेव)>वैश्विक कृष्ण ((राशिनाम:-वासुदेव)/ब्रह्मा/कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, रात्रिकालीन/28 अगस्त 2013(29(/15-29) मई 2006))/श्रीकृष्ण जन्माष्टमी):>कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, वृष्णि-वंशीय यदु-वंशीय, चन्द्रवंशीय, कश्यप गोत्रीय का तत्कालीन उच्चस्थ माननीय द्वारा शुभांरम्भित वैश्विक मन्दिर जब बनेगा तो फिर "चंद्रोदय कृष्ण मन्दिर" (16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29(/15-29)मई2006) ही बनेगा न? बाकी दोनों तो आप जानते ही हैं वैश्विक राम (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई2018/13 अप्रैल2018) मंदिर और वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001)|वैश्विक राम (राशिनाम:-वेदाँग:विष्णु:विष्णुकान्त: उषाकालीन/शुक्लपक्ष/गुरुवारीय/30 सितम्बर 2010) और वैश्विक कृष्ण ((राशिनाम:-वासुदेव)/ब्रह्मा/कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, रात्रिकालीन/28 अगस्त 2013/श्रीकृष्णजन्माष्टमी) मेरे अर्थात आप के पास अर्थात वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा मेरे अर्थात आप के पास इस प्रयागराज में और वैश्विक शिव स्वयं जगत जननी जानकी जी के पास हैं| = = वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) से मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पाँचों आयाम ( शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है और यही पूर्णातिपूर्ण अवस्था है==✓मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था से त्रिदेव (शिव (/त्रिदेवों में आदिदेव/परमाचार्य)); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(देवी आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी जिनके 9 स्वरूप में एक देवकाली/महाकाली हैं) का आविर्भाव होता है तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिनसे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|>29 (15-29) मई 2006//25 मई 2018 (31 जुलाई 2018)/11 सितम्बर 2001//7 फरवरी 2003/11 सितम्बर 2008-->वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) ही सर्वोच्च शक्ति हैं और इस संसार में इनसे उच्च शक्ति कोई देवी/देवता, नर-किन्नर, नाग-गन्धर्व और असुर नहीं है| = 1-मूल सारंगधर की मूल अवस्था>जगत जननी जगदम्बा >जगत जननी जानकी>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ-आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती के मानस पुत्र हैं मतलब सरस्वती/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5-और इस प्रकार जगत में सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है| = अगर सभी 107 गोत्र(/ऋषि) वाले इस एक गोत्र वालों को नियंत्रण में रखेंगे तो पुनः पुनः 109वें गोत्र वालों को (विष्णु गोत्र : सभी गोत्रों के केन्द्र बिन्दु और ऊर्जा स्रोत) को कष्ट नहीं करना पडेगा>>>इस संसार के 108 (/109: विष्णु गोत्र) मानक गोत्र में आसुरी गोत्र आता है जिसके अंतर्गत ही पुलत्स्य ऋषि और उसके वंशज रावण (रावण/मेघनाद/कुम्भकर्ण) का कुल भी आता है:===>> 11(/10) सितंबर 2008 को वैश्विक धर्मचक्र की स्थापना के साथ से ही सब कुछ के बावजूद प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष( आंतरिक) दोनों प़कार का विश्वमानवता का केन्द्र ऐसे नहीं हो गया तो हर कार्य आम समाज से विधिवत जुड़े व्यक्तियों से नहीं हो सकता तो अधिकार की माग नहीं बल्कि त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न युक्त जीवन के साथ अपने कर्तव्यों और दायित्वों के सम्यक निर्वहन के साथ समाज में रहकर समाज के अस्तित्व को बनाए रखने की सांस्कारिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक राजनीति भी किसी को करनी पड़ती है तो समाज में रहकर भी समाज से परे रहकर 11 सितंबर 2001 से वहीं कर रहा हूं; और फिर इस प्रकार विश्व मानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित रहते हुए अपनी उपस्थिति और लेखन से विश्व मानवता के पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-सम्वर्धन तथा चालन-संचालन में सहयोग कर रहा हूं| = जिस भगवा के बिना अस्तित्व नहीं संभव है किसी का अर्थात जिससे स्वयं ऊर्जा लेते रहते हैं लोग तो 2012 से 2018 तक में स्वयं उस भगवा से भी प्रतियोगिता/प्रतिस्पर्धा करने लगे| तो भगवा को अपना स्थान ग्रहण का लेना ही उचित था| >सच्चे अर्थों में हर कश्यप गोत्रीय स्वयं में सूर्य वंशीय स्वाभाविक रूप से ही होता है जैसा की कश्यप ऋषि प्रथम सप्तर्षि मारीच(सूर्य) ऋषि के एकल पुत्र थे| ऐसी सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (त्रिफला-कश्यप) [मारीच(सूर्य) के एकल पुत्र कश्यप], स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 109(25)वां ऋषि, विष्णु ऋषि (/गोत्र) अर्थात "मूल सारंगधर(केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था स्वयं ही हूँ| इस प्रकार मैं वैश्विक रूप से तिरंगा (त्रिफला-कश्यप) और वैश्विक रूप से भगवा (अर्थात विष्णु ऋषि/गोत्र: मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/परमब्रह्म विष्णु /सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वाभाविक रूप से हूँ| Note: मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/परमब्रह्म विष्णु /सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) जिनसे सांगत शक्तियों समेत वैश्विक राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है जिससे जगत जननी जानकी (/जगत जननी जगदम्बा) की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव होता है और परिणामतः समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है = सप्तर्षि और उनके प़मुख गुण <<==>>कश्यप/कण्व (प्रशासनिक नियन्तण गुण में सर्वोच्च) , गौतम/वत्स(सर्वोच्च न्यायवादी व् मानवतावादी), वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु (सर्वोच्च ज्ञानी व् सर्वोच्च गुरु), आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग(सर्वोच्च दार्शनिक व् वैज्ञानिक), भृगु/जमदग्नि(ब्राह्मणत्व गुण त्याग में सर्वोच्च), अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय( सर्वोच्च तेजस्वी), कौशिक/विश्वामित्र/विश्वरथ(क्षत्रिय गुण युद्ध कौसल में सर्वोच्च)|| = सप्तर्षि में से कोई भी ऋषि अष्टक मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| फिर ऋषि या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि मण्डल एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र में 24 तीलियों से निरूपित होने वाले 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| 108 मानक गोत्र 1. मरीच (कश्यप गोत्र), 2.गौतम 3.वशिष्ठ 4.अत्रि 5.भृगु 6.आंगिरस 7.कौशिक 8.शांडिल्य 9.व्यास 10.च्यवन 11.पुलह 12.आष्टिषेण 13.उत्पत्ति शाखा 14.वात्स्यायन 15.बुधायन 16.माध्यन्दिनी 17.अज 18.वामदेव 19.शांकृत्य 20.आप्लवान 21.सौकालीन 22.सोपायन 23.गर्ग 24.सोपर्णि 25.कण्व 26.मैत्रेय 27.पराशर 28.उतथ्य 29.क्रतु 30.अधमर्षण 31.शाखा 32.आष्टायन कौशिक 33.अग्निवेष भारद्वाज 34.कौण्डिन्य 35.मित्रवरुण 36.कपिल 37.शक्ति 38.पौलस्त्य 39.दक्ष 40.सांख्यायन कौशिक 41.जमदग्नि 42.कृष्णात्रेय 43.भार्गव 44.हारीत 45.धनञ्जय 46.जैमिनी 47.आश्वलायन 48.पुलस्त्य, 49.भारद्वाज 50.कुत्स 51.उद्दालक 52.पातंजलि 52.कौत्स 54.कर्दम 55.पाणिनि 56.वत्स 57.विश्वामित्र 58.अगस्त्य 59.कुश 60.जमदग्नि कौशिक 61.कुशिक 62.देवराज 63.धृत कौशिक 64.किंडव 65.कर्ण 66.जातुकर्ण 67.उपमन्यु 68.गोभिल 69. मुद्गल 70.सुनक 71.शाखाएं 72.कल्पिष 73.मनु 74.माण्डब्य 75.अम्बरीष 76.उपलभ्य 77.व्याघ्रपाद 78.जावाल 79.धौम्य 80.यागवल्क्य 81.और्व 82.दृढ़ 83.उद्वाह 84.रोहित 85.सुपर्ण 86.गाल्व 87.अनूप 88.मार्कण्डेय 89.अनावृक 90.आपस्तम्ब 91.उत्पत्ति शाखा 92.यास्क 93.वीतहब्य 94.वासुकि 95.दालभ्य 96.आयास्य 97.लौंगाक्षि 88.चित्र , 99.आसुरि 100.शौनक 101.पंचशाखा 102.सावर्णि 103.कात्यायन 104.कंचन 105.अलम्पायन 106.अव्यय 107.विल्च 108.शांकल्य = 109. विष्णु गोत्र = 25 मई 1998/12 मई 1997 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 तक में जो भी परीक्षण और विश्लेषण होना था वह हो चुका और जो परिणाम आने थे वे आ चुके थे बाकी अब तो उसका प्रभाव ही आपको दृष्टिगोचर हो रहा है:===>>>25 मई 1998(/120मई 1997) से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 व अद्यतन इस विगत अद्वतीय दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में सहस़ाब्दि महापरिवर्तन/विश्व महापरिवर्तन/विश्व महासमुद़मन्थन और उसके सन्क़मण व उत्तर संक्रमण काल के दौरान लगातार केन्द्रित रह (/11 सितम्बर 2001//7फरवरी 2003//(29(/15-29) मई, 2006)//25 मई 2018/31 जुलाई 2018/) समुचित समय पर विश्व मानवता की ऊर्जा का समुचित संवाहक न‌ होने की वजह से विश्व मानवता के पांचों वैश्विक मूल पात्र ( वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब़ह्मा, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम) के दायित्व का उचित समय और परिस्थिति आ जाने पर क़मिक रूप से निर्वहन करता रहा|====✓जिस व्यक्ति को अमेरिका (यू एस) वासियों ने मान लिया कि वही वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), ब़़िटेन (यू के) वासियों नेे भी जिसे मान लिया कि वही वैश्विक कृष्ण (16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29(/15-29) मई 2006) है और अरब देश (यू ए ई) वासियों ने मान लिया वही वैश्विक राम (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) है तो चीन, रूस और फ़्रांस समेत सम्पूर्ण विश्व और इस प्रकार समस्त हिन्दू समाज यह मान लें कि वही वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) भी और वही वैश्विक ब़ह्मा (29(/15-29) मई, 2006) भी है अर्थात वहीं पूर्णातिपूर्णता अवस्था में है अर्थात वहीं सशरीर परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम (/कृष्ण) है अर्थात ""वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण)"" है, जिससे सांगत शक्तियों समेत वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब़ह्मा, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम का आविर्भाव होता है जिससे जगत जननी जानकी (/जगत जननी जगदम्बा) की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त विश्व मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 25 मई 1998/12 मई 1997 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 तक में जो भी परीक्षण और विश्लेषण होना था वह हो चुका और जो परिणाम आने थे वे आ चुके थे बाकी अब तो उसका प्रभाव ही आपको दृष्टिगोचर हो रहा है:===>>>मैं अनादि काल तक अवश्य मिलूंगा काशी में वैश्विक शिव के स्वरूप में, अयोध्या में वैश्विक राम के स्वरूप में, मथुरा-व़ृन्दावन में वैश्विक कृष्ण के स्वरूप में और प़यागराज में वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब़ह्मा स्वरूप में और इस प्रकार सम्पूर्ण संसार में वैश्विक मूल सारंगधर (केन्द्रिय विष्णु) की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) स्वरूप में|=======मांत्र 7 वर्ष में शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्ति का विस्तार कर क़मश: वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब़ह्मा स्वरूप में लाते हुए काशी को वैश्विक शिव से तथा प़यागराज को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब़ह्मा से प़तिष्ठित किया गया===✓ 11 सितम्बर 2001 से लेकर 29 (/15-29) मई 2006 तक वैश्विक संस्थागत लक्ष्य की प्राप्ति वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब़ह्मा अर्थात वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जागृत अवस्था वैश्विक कृष्ण द्वारा हो जाने पर अर्थात 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार के साथ केदारेश्वर (/आदिशिव) की प़यागराज विश्वविद्यालय में स्थापना हो जाने के बाद 11 सितम्बर 2008 को इसी वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण द्वारा शिव की पुनर्प़ाणप़तिष्ठा वैश्विक शिव के रूप में की काशी में कर दिए और 10 सितम्बर 2008 को विष्णु को वैश्विक विष्णु और ब़ह्मा को वैश्विक ब़ह्मा के रूप में इस प़यागराज में प़तिस्थापित कर दिए और इस प्रकार 11(/10) सितम्बर 2008 को प़यागराज (/काशी) में वैश्विक धर्म चक़(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र की स्थापना करते हुए सदा के लिए प़यागराज (/काशी) को प़त्यक्ष(वाह्य) और परोक्ष (आन्तरिक) दोनों रूप से इस विश्व मानवता का मूल/जड़त्व केन्द्र बना दिए| और आगे चलकर 12 वर्ष तक ऐसे स्थापना को सामाजिक रूप से मान्य न किये जाने पर वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब़ह्मा अर्थात वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जागृत अवस्था वैश्विक राम स्वरुप में आते हुए 12 वर्ष बाद 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 को इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से केदारेश्वर (/आदिशिव) की स्थापना और अस्तित्व को प्रमाणित करते हुए इस प्रकार स्वयं परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम(/कृष्ण) के अस्तित्व को सामाजिक रूप से प्रमाणित करवा लिया| = मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/परमब्रह्म विष्णु /सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुसनातन राम(/कृष्ण) जिनसे सांगत शक्तियों समेत वैश्विक राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है जिनसे जगत जननी जानकी (/जगत जननी जगदम्बा) की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव होता है और परिणामतः समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|===>तो मै कैसे कह दूँ की मैं एक ब्राह्मण नहीं हूँ->मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण(पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/ जगत तारण/पतितपावन (कृष्ण समानान्तर ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्णसत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते ((राम समानान्तर इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है)| प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक(ईसाइयत-इस्लामियत व अन्य) है| तो फिर जितनी सहनसीलता आप सबकी है उसके अनुसार ही यह दुनिया रोचक और चमत्कारिक रूप से चलाई जाए| = सामान्य व्यवहारिक और वैज्ञानिक ज्ञान है जिसे समाप्त करने का प्रयास न कीजिये क्योंकि यह अपने में वैज्ञानिक तथ्य है जो समाप्त होने वाला नहीं है:-->सभी देवियों की वन्दना और पूजा का दिन वही होता है जो उनके पतियों का दिन होता है; रवि (/सूर्य) ऊर्जा स्रोत है सोम(/चन्द्र) का और रवि के दो पुत्र हैं शुक्र और शनि; शुक्र और शनि की अपने पिता रवि से नहीं बनती है और और शुक्र और शनि की आपस में नहीं बनती है, रवि का शिष्य है मङ्गल जो शुक्र और शनि को सन्तुलित करता है; बुद्ध सबके तटस्थ रहता है और सबसे प्रमुख तथ्य है की रवि के भी गुरु हैं बृहस्पति| = इस सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्वमहासमुद्रमंथन और उसके संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल (25 मई 1998/12 मई 1997 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018) के दौरान इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केन्द्रीय शक्ति तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) ही रहे हैं:------->>स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर क्रियाशील रहने हेतु रिलैक्सेशन (रियायत) मांगने वालों, 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 को मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था में आते हुए मुझ विवेक (राशिनाम:गिरिधर) द्वारा 1 अगस्त 2018 से अपने पिता प्रदीप (सूर्य की भी आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत)/रविकांत/सूर्यकान्त/विक्रमादित्य/आदित्यनाथ/रामजानकी/रामा का भी दायित्व निभाने से इस विश्व-मानवता में स्थिरता और सन्तुलन स्थापित हुआ की नहीं <<<------>>स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर क्रियाशील रहने हेतु रिलैक्सेशन (रियायत) मांगने वालों ये दोनों ही इस संसार के व्यावहारिक जीवन के सभी सूर्यों की ऊर्जा के स्रोत रहे हैं/हैं, तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) और प्रदीप (सूर्य की भी आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत)/रविकांत/सूर्यकान्त/विक्रमादित्य/आदित्यनाथ/रामजानकी/रामा भी तो 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 को मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था में आते हुए मुझ विवेक (राशिनाम:गिरिधर) द्वारा 1 अगस्त 2018 से अपने पिता प्रदीप (सूर्य की भी आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत)/रविकांत/सूर्यकान्त/विक्रमादित्य/आदित्यनाथ/रामजानकी/रामा का भी दायित्व निभाने से इस विश्व-मानवता में स्थिरता और सन्तुलन स्थापित हुआ की नहीं? = कश्यप-गौतम युग्म ( विश्व-मानवता अभीष्ट हित हेतु पूर्णातिपूर्ण त्याग, बलिदान, पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम हेतु न की पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठा हेतु संघर्षरत रहने हेतु ):=>इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात "मूल सारंगधर ( केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम (/कृष्ण)" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (केन्द्रिय विष्णु:श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:--सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज भी बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर(श्रीधर:विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं अर्थात इस संसार में आज भी मेरे समतुल्य एक मात्र तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर(श्रीधर:विष्णु) ही है|| = इस सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्वमहासमुद्रमंथन और उसके संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल (25 मई 1998/12 मई 1997 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018) के दौरान इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए यदि मेरे अन्दर वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा की पात्रता और दायित्व धारण में कमी रह गयी होती तो फिर मैं स्वयं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण कृष्ण (एकल रुप में वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का सम्मिलित स्वरूप) और वैश्विक सशरीर परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम (एकल रुप में वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का सम्मिलित स्वरूप) न बनता और इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम (/कृष्ण) न बनता अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) न बनता जिनसे सांगत शक्तियों समेत पॉँच के पांचों वैश्विक स्वरुप (वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु,वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम) का आविर्भाव होता है फिर जिनसे जगत जननी जानकी (/जगत जननी जगदम्बा) की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिनसे ही समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है और इस प्रकार 10 सितम्बर 2008 को ब्रह्मा और विष्णु को वैश्विक ब्रह्मा और वैश्विक विष्णु के रुप में प्रयागराज और 11 सितम्बर 2008 को शिव को वैश्विक शिव के रूप में काशी में प्रतिस्थापित/पुनर्स्थापित न करता और इस प्रकार प्रयागराज(/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में 11 सितम्बर 2008 को वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र की स्थापना न हुई होती और न यह प़यागराज (/काशी) सम्पूर्ण रूप से विश्व मानवता का प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष (आंतरिक) केन्द्र बना होता |<<----->> वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) के पॉँच के पांचों वैश्विक स्वरुप (वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम) सांगत शक्तियों के साथ अपने अपने मूल (उचित) स्थान पर केंद्रित हो विश्वमानवता को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं तो अब आप लोगों को सहस़ाब्दयों तक कष्ट करने की जरूरत नहीं रही तो केवल अपना अपना दायित्व उचित रूप से निभाइये:----->>>प़त्यक्ष (वाह्य) रूप से वैश्विक संस्थागत और अप्रत्यक्ष (आन्तरिक) रूप से विश्व मानवतागत अभीष्ठ हित निमित्त पूर्वाभ्यास बिना ही पर्दे पर अभिनय हुआ है अर्थात पहले तत्कालीन/वरिष्ठ सारंगधर (केन्द्रीय विष्णु) द्वारा विष्णु लोक से नवोदित वैश्विक शिव को प़यागराज भेजा गया (11 सितम्बर 2001), फिर वैश्विक शिव में वैश्विक विष्णु की शक्ति स्वयम समाहित हुई अर्थात वैश्विक विष्णु स्वयं सामिल हुए वैश्विक शिव में (7 फरवरी 2003) और इसके बाद वैश्विक ब़ह्मा की शक्ति को भी समाहित होना पड़ा (29(/15-29) मई 2006) को और इस प़कार वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब़ह्मा अर्थात वैश्विक विष्णु की परमब्रह्म अवस्था की जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण कृष्ण ((28 अगस्त 2013)/29(/15-29) मई 2006) का आविर्भाव हुआ परिणामत: परोक्ष (आन्तरिक) रूप से विश्व मानवता के साथ प्रत्यक्ष (वाह्य) रूप से वैश्विक संस्थागत लक्ष्य प्राप्ति के तहत 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) क्षेत्र स्थित प्रयागराज विश्वविद्यालय में केदारेश्वर (/आदिशिव) नामतः केन्द्र की स्थापना और इनसे ही आगे चलकर इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से परोक्ष (आन्तरिक) रूप से विश्व मानवता के साथ वैश्विक संस्थागत लक्ष्य प्राप्ति के तहत 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) क्षेत्र स्थित प्रयागराज विश्वविद्यालय में केदारेश्वर (/आदिशिव) नामतः केन्द्र की स्थापना के साथ वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम का आविर्भाव हुआ (30 सितम्बर 2010//25 मई 2018/31 जुलाई 2018)| और इस प्रकार केदारेश्वर (/आदिशिव) और परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम (/कृष्ण) का अस्तित्व प्रमाणित हुआ| = मई, 2006 में तत्कालीन रूप से सम्बंधित विभाग के उच्चस्थ मनीषी ने कहा था की हर नाम/जाति/धर्म के वैज्ञानिक और शिक्षाविद का सम्मान है पर प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में रावणकुल (रावण/मेघनाद/कुम्भकर्ण) नामित कोई संस्था/संस्थान (/केंद्र(/विभाग)) स्थापित नहीं किया जाएगा और स्थापित भी कर दिया गया तो फिर उस संस्था/केंद्र(/विभाग) को कोई स्थाई पद आवंटित नहीं किया जाएगा तो उसी समय से मैं रावणकुल (मेघनाद) नामित केन्द्र का किसी भी प्रकार से कभी हिस्सा नहीं बना| | = === किसी के बारे में जानकारी कर लेना और उसे समझने में बहुत अन्तर होता है, तो मेरे सगे-सम्बन्धियों, परिवार जनों, सहपाठियों और सहकर्मियों से आप लोगों ने 24/25 वर्ष में केवल जानकारी ली है पर जिन्होंने मुझे वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था ""( वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण)"""") मान लिया अर्थात उन्होंने मुझे समझ लिया और इसलिए फरवरी 2017 में ही कह दिया था की इस संसार में आपके योग्य कोई पद अब शेष नहीं बचा सिवाय उसके जिस पर आप आसीन हैं|= == == इस विगत अद्वितीय दो दसक से अधिक समय में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित रहते हुए मेरी तत्कालीन क्रमिक अवस्था से तीनो अजेय वैश्विक शक्तियों अर्थात वैश्विक शिव, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम के सम्बन्ध में जो न्याय और निर्णय हो चुका है वह स्वीकार कीजिये और उसके बाद के सन्दर्भ में मेरे साथ इस संसार का कौन दूसरा व्यक्ति वास्तविक न्याय कर सकता है जब मै स्वयं इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र प्रयागराज (/काशी) के साथ दो दसक से अधिक समय से न्याय करना जारी रखा हूँ जबकि ऐसे प्रारंभिक दिनों में ही उन्होंने ही आँख मूँद लिया था जहाँ मुझे जोशी, अटल और आडवाणी इसलिए कहा जाता था, क्योंकि राम-कृष्ण छात्रावास (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) में राजनैतिक चर्चा में अंतिम आवाज मेरी रहती थी, जब बीजेपी की सत्ता रहते हुए भी उत्तर प्रदेश और बिहार में बसपा, सपा और जद(राष्ट्रीय) और कांग्रेस के विचारधारा वाले लोग हावी रहते थे; और तब जबकि 24 दिसम्बर 1999 को कांधार विमान अपहरण का लगातार खुलकर समर्थन करने वाले मुसल्लम ईमान (इस्लाम अनुयायी) की आवाज को 25 दिसंबर 1999 को समझाकर अय्यर छात्रावास में चुप कराने वाला एक मात्र मैं ही था| और फिर तो तब मैं सभी का हो गया जब प्रत्यक्ष रूप से वैश्विक संस्थातगत और इस प्रकार परोक्ष रूप से वैश्विक मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण सिद्धि/प्राप्ति हेतु मुझपर ही विश्वास व्यक्त करते हुए गोवा स्थित नवनिर्माणित वैश्विक संस्था से हटाकर प्रयागराज में 11 सितम्बर 2001 को ही वैश्विक शिव के रूप में ड्यूटी मेरी ही लगा दी गयी और उसके बाद भी काम न चला तो स्थानीय व् वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक विष्णु के रूप में 7 फरवरी 2003 को पुनः ड्यूटी लगा दी गयी और आगे राजनैतिक परिवर्तन के प्रभाव से अनजान सतह पर कार्य करने वाले लोग जब सो रहे थे और दक्षिण के कलाम की आड़ में कार्यरत लोगों के प्रयास से सब कुछ डूबने वाला था तो स्वयं निहित चेतना पर स्वयं दाँव पर लग वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु वैश्विक ब्रह्मा अर्थात वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण होते हुए 29 (15-29) मई 2006 को वैश्विक संस्थागत लक्ष्य हांसिल किया अर्थात 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र की इस प्रयागराज विश्वविद्यालय में स्थापना करवा दिया और इस बीच 11(/10) सितम्बर 2008 को वैश्विक धर्मचक्र (सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र की इस प्रयागराज (/काशी) में स्थापना कर सदा के लिए प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष (आतंरिक) दोनों प्रकार का विश्व-मानवता का मूल/जडत्व केन्द्र प्रयागराज (/काशी) को बना दिया तथा मेरे संस्थागत लक्ष्य की पूर्णता को सामाजिक रूप से स्वीकार न किये जाने पर 12 वर्ष तक संघर्ष कर 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 को वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम के स्वरूप में केदारेश्वर (/आदिशिव) की बिना किसी हिंसा के इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से स्थापना कर वैश्विक केदारेश्वर (/आदिशिव) के अस्तित्व को पूर्णातिपूर्ण प्रमाणित करने के साथ वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण कृष्ण और वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम के अस्तित्व को भी प्रमाणित कर दिया और इस प्रकार वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण का अस्तित्व प्रमाणित हो गया| = इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई 1998(/12 मई 1997) से 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018) के दौरान अर्थात सहस्राब्दी-महापरिवर्तन/विश्व-महासमुद्रमन्थन/विश्वमहापरिवर्तन काल व् उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल के दौरान केन्द्रित रह जो प़त्यक्ष (वाह्य) रूप से वैश्विक संस्थागत और परोक्ष (आंतरिक) रूप से विश्व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सन्कल्पित/समर्पित/समाविष्ट/ब़ह्मलीन हो अपना अभीष्ट लक्ष्य बिना किसी हिंसा के इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से प्राप्त के प्रयोजन में वैश्विक स्तर तक के हेतु समुचित ऊर्जा धारक न होने की वजह से मैंने पूर्णातिपूर्ण वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001 ) से प्रारम्भकर पूर्णातिपूर्ण वैश्विक विष्णु (/7 फरवरी 2003) फिर पूर्णातिपूर्ण वैश्विक शिव और पूर्णातिपूर्ण वैश्विक विष्णु युक्त पूर्णातिपूर्ण वैश्विक ब्रह्मा अर्थात वैश्विक विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण (29(/15-29) मई 2006 और फिर इसके साथ ही साथ 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत वैश्विक रूप से चर्चित केदारेश्वर (आदिशिव) की स्थापना तदुपरान्त 11 (/10) सितम्बर 2008 को इस प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक धर्मचक्र (सभी मौलिक धर्म))/कालचक्र/समयचक्र की स्थापना उसके 10 वर्ष उपरांत 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018) को इस संसार के सभी-यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत वैश्विक रूप से चर्चित केदारेश्वर (आदिशिव) की स्थापना को प्रमाणित कर केदारेश्वर (/आदिशिव) के अस्तित्व को प्रमाणित किया गया जिसके साथ वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम(/कृष्ण) के अस्तित्व भी प्रमाणित हो गया और इस प्रकार मैं वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/विष्णु परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को प्राप्त हुआ जिससे सांगत शक्तियों समेत पाँचों मूल पात्रों (शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) का आविर्भाव होता है जिनसे जगत जननी जानकी (सामाजिक छाया जगत जननी जगदम्बा) की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिनसे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|==ऐसी अवस्था में मैंने===व्यक्तिगत जीवन में एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की पूर्ण सीमा के अन्दर रहते हुए एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य(तप/योग/उद्यम/यत्न), एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/दीनानाथ/करूणानिधि/जगत तारण/पतित पावन (कृष्ण सामानांतर ईसाइयत) और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (राम समानान्तर इस्लामियत/मुसल्लम ईमान) के दायित्व का निर्वाह किया है तो मुझे किसी से कोई क्षतिपूर्ती नहीं चाहिए|====>जिस भी आहार विहार आचार विचार भाषा व्यवहार ज्ञान विज्ञान मेधा प़तिभा पुरुषार्थ संस्कृति संस्कार तथा व्यवसाय के साथ सशरीर मेरी उपस्थिति जहां सबसे अधिक अनिवार्य थी और आज भी सबसे अधिक अनिवार्य है मैं उसी विश्व मानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में उपस्थित हूं==✓वैश्विक शिव और वैश्विक ब़ह्मा हो सकता है कि किसी की तपस्या से प्रसन्न हो अभयदान उसको दे सकते हैं पर वैश्विक विष्णु और स्वयं वैश्विक परमब्रह्म परमेश्वर स्वरूप राम(/ कृष्ण) अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब़ह्मा अर्थात वैश्विक परमब्रह् विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जागृत स्वरूप परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम (/कृष्ण) ऐसा नहीं कर सकते (तो कम से कम परमब्रह्म परमेश्वर से परे सुर, असुर, नाग, गन्धर्व व नर व वानर समेत इस सृष्टि में कोई ऐसी शक्ति नहीं रही है आज तक कि जिसका अस्तित्व उनसे परे हो और वे चाह कर भी उसका अस्तित्व समाप्त न कर सके पर हां सृष्टि का संतुलन उससे प्रभावित न हो इसकी पूर्व व्यवस्था उनको सुनिश्चित करनी होती है और फिर वे अपने कार्य का उचित समय पर कियान्वयन कर देते हैं)==✓ वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण) से ही यह समस्त संसार निर्गत होता है और इसी में समा जाता है और पुनः पुनः यह प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है:---इस विश्व-मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में सहस्राब्दी-महापरिवर्तन/विश्व-महासमुद्रमन्थन/विश्वमहापरिवर्तन काल व् उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल के विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय के उपरान्त जब मैं तिरंगा (त्रिफला-कश्यप) अर्थात बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म अर्थात रामानंद-सारंगधर एकल युग्म विवेक (गिरिधर) ही भगवा अर्थात "वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु)/विष्णु परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)" के रूप में प्रमाणित हुआ तो किस देवी-देवता, नर-नाग-किन्नर-गन्धर्व या इनके समूह व संगठन/संस्था को आप वास्तविक रूप से मुझसे अलग कर सकते हैं?==इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष (वाह्य) रूप से संस्थागत और परोक्ष(आतंरिक) रूप से विश्व-मानवतागत अभीष लक्ष्य के प्रयोजन में मुझे वैश्विक स्तर के अपने पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता निमित्त लक्ष्य प्राप्ति के विरोध में वैश्विक चक्रव्यूह का आभास मई(/जून) 2001 से ही हो गया था और ऐसे में अभीष्ट लक्ष्य पूर्ती को असंभव मानते हुए भी स्वैक्षिक रूप से बिना आधिकारिक पद पर रहते हुए वैश्विक संस्थागत और वैश्विक मानवतागत अपने दोनों अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति के दौरान अपने पूर्ण मनोयोग के साथ अपने दायित्व का निर्वाह किया है तो जिसको जो समुचित लगे वह करे मैं किसी को रोक नहीं रहा हूँ पर यह कि मुझे किसी से कोई क्षतिपूर्ती नहीं चाहिए क्योंकि इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केन्द्रित रहते हुए मैं 11 नवम्बर 2057(/1 अगस्त 2058) तक संस्थागत और विश्व मानवता को अपनी सेवा समर्पित करते रहने में स्वयं समर्थ हूँ| = 1 अगस्त 2018 से लगातार स्थानीय स्तर तक से लेकर वैश्विक स्तर तक मेरा विरोध जारी रखने से इस संसार में कोई मेरा एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ नहीं मिलने वाला है और मिलेगा भी तो सहस्राब्दियों बाद ही कभी मिल सकता है तो धीरज धारण किये रहिये|<=>>स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक की स्वीकारोक्ति से हेतु जो होने वाला था उसका निर्धारण हो चुका तो अब कूट रचना और षड्यंत्र रचने से कुछ नहीं होने वाला है=>16 मार्च 2014 और 9 नवंबर 2019(/5 अगस्त 2020) का निर्धारण मेरी 29 (/15-29) मई 2006//25 मई 2018/31 जुलाई 2018 तक हुई परीक्षा के बाद ही हुआ था कि मैं ही 28 अगस्त 2013 और 30 सितंबर 2010 हूं और 11 सितंबर 2001/2008 और 7 फरवरी 2003 तो मैं हूं ही इसमें कोई संदेह तो है ही नहीं| = गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मुझ बिशुनपुर-(223103)-रामापुर-(223225) एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म का प्रतिद्वन्दी(11 सितम्बर, 2001)" या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001(या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| = वैश्विक कृष्ण (वासुदेव)>वैश्विक कृष्ण ((राशिनाम:-वासुदेव)/ब्रह्मा/कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, रात्रिकालीन/28 अगस्त 2013(29(/15-29) मई 2006))/श्रीकृष्ण जन्माष्टमी):>कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, वृष्णि-वंशीय यदु-वंशीय, चन्द्रवंशीय, कश्यप गोत्रीय का तत्कालीन उच्चस्थ माननीय द्वारा शुभांरम्भित वैश्विक मन्दिर जब बनेगा तो फिर "चंद्रोदय कृष्ण मन्दिर" (16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29(/15-29)मई2006) ही बनेगा न? बाकी दोनों तो आप जानते ही हैं वैश्विक राम (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई2018/13 अप्रैल2018) मंदिर और वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001)|वैश्विक राम(राशिनाम:-वेदाँग:विष्णु:विष्णुकान्त:उषाकालीन/शुक्लपक्ष/गुरुवारीय/30 सितम्बर 2010) और वैश्विक कृष्ण ((राशिनाम:-वासुदेव)/ब्रह्मा/कृष्णपक्ष, बुधवारीय, रोहिणी नक्षत्र, रात्रिकालीन/28 अगस्त 2013/श्रीकृष्णजन्माष्टमी) मेरे अर्थात आप के पास अर्थात वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा मेरे अर्थात आप के पास इस प्रयागराज में और वैश्विक शिव स्वयं जगत जननी जानकी जी के पास हैं| = प्रयागराज (/काशी) वासियों अगर इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में मैं भी अन्य लोगों की तरह केवल वाह्य रूप से ही सतह पर सक़िय रहा होता और प़त्यक्ष (वाह्य) रूप से संस्थागत और परोक्ष (आन्तरिक) रूप से विश्व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सन्कल्पित/समर्पित/ब़ह्मलीन/समाधिष्ठ न किया गया होता तो मैं भी स्वाभाविक रूप से सामान्य जन की तरह कठिन परिस्थितियों में संस्थागत और विश्व मानवता अभीष्ट लक्ष्य के विरोध में कार्यरत शक्तियों से समझौता कर लिया होता जैसा कि अन्य लोगों ने किया था और वास्तविक स्थिति का आभास मुझे भी न होता और प्रयागराज (/काशी) वासियों सब कुछ हाथ से चला जाता और आज वैश्विक परिदृश्य कुछ और ही होता| 29(/15-29) मई 2006: जब सब विद्वतजन(ऋषिजन/गुरुजन) हाँथ खड़ा कर लिए थे तब व्यासी-गौतम गोत्रीय रामानन्द कुलीन मूल भूमि वासी व बुधवारीय (प्रमाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) के वक्तव्य थे अर्थात मेरे लिए उच्चतम न्यायालय के वक्तव्य थे कि तुम्हें जो सबसे उचित लगा तुमने वह कर दिया तो अब चिन्ता मत करो कुछ भी अशुभ नहीं होगा जब सशरीर परमब्रह्म कृष्ण ने अर्जुन की सहायता से प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से प्रयागराज(/काशी) के सारभौमिक गरिमा को सहस्राब्दियों हेतु बनाये रखने हेतु दक्षिण के कलाम गुरु देव की आड़ में मेरे अभीष्ट लक्ष्य के विरोध में कार्यरत तमिल/तेलगु शक्तियों को परास्त करते हुए सच्चे सन्दर्भ में 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत केदारेश्वर(/आदिशिव) की स्थापना को प्रमाणित करवा लिया था| और यही इस प्रयागराज (/काशी) में 11 सितंबर 2008 को वैश्विक धर्मचक्र (सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र को स्थापित करने का आधार बना और आगे चलकर इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से स्वयं वैश्विक केदारेश्वर(/आदिशिव) के अस्तित्व को प्रमाणित किया और इस प़कार वैश्विक पूर्णातिपूर्ण/परमब्रह्म राम(/कृष्ण) के अस्तित्व को भी प्रमाणित किया| = हमेशा की तरह सामान्य स्थिति नहीं थी इस प्रयागराज (काशी) में मेरे केन्द्रित रहने की बल्कि सहस्राब्दि महापरिवर्तन/विश्व महापरिवर्तन और उसके संक़मण व उत्तर सन्क़मण काल के दौर जैसे अद्वितीय दो दसक से अधिक समय तक के मेरे पूर्णातिपूर्ण सफल दायित्व का काल रहा है यह 25 मई 1998(/12 मई 1997) से 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018) का दौर-✓बार बार इन्गित किया कि ऐसा भी हो सकता है की इस विगत अद्वितीय दो दसक में प्रयागराज (/काशी) में कोई वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था रहा हो और इस प्रकार विश्व-मानवतागत/वैश्विक संस्थागत अभीष्ट हित हेतु आवश्यतानुसार वह वैश्विक पूर्णातिपूर्ण शिव(11 सितंबर 2001), वैश्विक पूर्णातिपूर्ण विष्णु(7 फरवरी 2003), वैश्विक पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मा (29(/15-29) मई 2006), और इस प्रकार वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब़ह्मा अर्थात वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जागृत अवस्था वैश्विक पूर्णातिपूर्ण/परमब्रह्म कृष्ण (29(/15-29) मई 2006), और वैश्विक पूर्णातिपूर्ण/परमब्रह्म राम (25 मई 2018/31 जुलाई 2018) क्रमिक रूप से रहा भी और इस प्रकार वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) हो जिनके पांच के पाँचों वैश्विक आयाम/स्वरुप (शिव, विष्णु, ब्रह्म, कृष्ण और राम) तथा उनकी पाँचों सांगत शक्तियों (गौरी/सती, लक्ष्मी, सरस्वती/महादेवी, राधा/रुक्मिणी और सीता/जगत जननी जानकी) से ही समस्त सृष्टि और विश्वमानवता आविर्भावित होती है, ऐसे तथ्य को यहाँ प्रमाणित किया हो:----->आज की तिथि में पाँचों बाल रूप वैष्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पांच के पाँचों वैश्विक आयाम वर्तमान में या तो प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र के समाज में हैं या देवालयों में उनकी शक्ति समाहित हो चुकी है| पर विगत दो अद्वितीय दो दसक से अधिक समय के दौरान स्थिति ऐसी आयी थी की समुचित धारक न मिलने पर किसी एक को ही इस विश्व-मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में क्रमिक रूप से वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम हो जाना पड़ा अर्थात किसी एक को ही वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पांच के पाँचों स्वरुप के दायित्व को सशरीर परमब्रह्म के रूप में निभाना पड़ा| यह आपकी असुर सत्ता/शक्ति पर मानवतावादी सत्ता/शक्ति को विजय इसलिए मिल सकी क्योंकि दो दसक से अधिक समय तक आधिकारिक रूप से बुधवारीय (प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवारीय) तत्कालीन/वरिष्ठ वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) की प्रेरणा से आधिकारिक रूप से रविवारीय (प्रामाणिक रूप से मंगलवारीय) वैश्विक विवेक (राशिनाम:गिरिधर) अर्थात वर्तमान वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु /सनातन आद्या/सदाशिव /महाशिव /सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं इस विश्व मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहा (जिससे सांगत शक्तियों (गौरी:सती, लक्ष्मी, सरस्वती/महादेवी, राधा/रुक्मिणी और जानकी का आविर्भाव होता है) समेत मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों वैश्विक आयाम (शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है)| = सोम(/अर्थात चंद्र) से ज्यादा सक्षम और प्रभावी रवि भी है और मंगल भी और इन दोनों से ज्यादा प्रभावी केवल गुरु(बृहस्पति) है|रवि के दोनों पुत्रों शुक्र और शनि को मंगल नियंत्रित करता है जिनके गुरु रवि स्वयं हैं और रवि के लिए भी गुरु और ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है गुरु(बृहस्पति):--तो सशरीर परमब्रह्म कृष्ण के निवेदन पर 29 मई 2006 को 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार के साथ एक पक्ष को आबाद करते समय तत्कालीन सर्वोच्च सक्षम माननीय का भी यही आंकल था और तभी दूसरे पक्ष को आबाद नहीं किया होगा इसमें रवि (प्रामाणिक रूप से मंगल) का अपना कोई दोष नहीं है| मैं भौतिक (फिजिकली) 5 सितम्बर 2000 से ही काशी छोड़कर प्रयागराज आया था और मैं आधिकारिक रूप से रवि (प्रामाणिक रूप से मंगल), तो फिर मेरे लिए तो किसी रवि दिवस को ही स्थापित का ही आधार होने में क्या कमी है (1. रविवार शुक्ल पक्ष द्वादशी 2000 (सितम्बर) और 2. रविवार शुक्लपक्ष एकादशी 2001 (फरवरी):-- फिर भी एक पक्ष तो 29 अक्टूबर 2009 से ही आबाद है और दूसरा पक्ष आज तक सूना पड़ा है तो उसके पीछे आसुरी शक्तियों के जमघट का भौतिक प्रभाव है, उसमें मेरा दोष नहीं हैं (रवि अपना प्रकाश और उष्मा समान रूप से बिखेरता है लेकिन उसे किस प्रकार अवशोषित किया जा रहा उसपर ही किसी निकाय की उष्मा और ऊर्जा तथा उसका प्रकाशमान होना निर्धारित होता है)| तो सशरीर परमब्रह्म कृष्ण के निवेदन पर 29 मई 2006 को 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार के साथ एक पक्ष को आबाद करते समय तत्कालीन सर्वोच्च सक्षम माननीय का भी यही आंकल था और तभी दूसरे पक्ष को आबाद नहीं किया होगा इसमें रवि (प्रामाणिक रूप से मंगल) का अपना कोई दोष नहीं है| = 11(/10) सितम्बर 2008 को इस प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक धर्मचक्र (सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र को स्थापित होने के साथ ही सभी बारहों (12 हों) ज्योतिर्लिंगों समेत इस संसार के सम्पूर्ण शिव मंदिरों को ऊर्जा शिव की मूल स्थली काशी से ही मिल रही है| और इस प्रकार इस विश्व के सम्पूर्ण मंदिरों/देवालयों/उपासना स्थलों/देवस्थानों को ऊर्जा प्रयागराज (/काशी) स्थित मंदिरों से मिल रही है अर्थात शिव तथा विष्णु और ब्रह्मा की नगरी प्रयागराज (/काशी) से मिल रही है और अब जल्द ही इस संसार के समस्त मंदिरों/देवालयों/उपासना स्थलों/देवस्थानों को ऊर्जा काशी और प्रयागराज के साथ साथ विष्णु के दो परमब्रह्म स्वरुप अवतार स्थल अयोध्या और मथुरा स्थित मंदिरों से भी मिलेगी| = बिना गुण-अवगुण देखे मैंने 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 तक (11 सितम्बर 2001 से 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 ) इस संसार के हर नर नारी को दोषमुक्त और पापमुक्त कर दिया था तो अब आपको मंजूर नहीं था तो आपने यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान के विरुद्ध जाकर 3 दिसम्बर 2018 को छद्म आदेश पारित करवा दिए तो फिर विविधता पूर्ण वैश्विक परिदृश्य को स्वीकार कीजिये और इस दुनिया को व्यवस्थित रूप से चमत्कारिक और आकर्षक बनाये रखने में अपनी अधिकतम सहनशीलता तक सहयोग कीजिये = उससे अपने पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान पर कोई खतरा न समझिये जिससे इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में फरवरी 2017(सामाजिक क्षेत्र में प़वेश: दिसम्बर 2012 से फरवरी 2017) में ही कहा गया था की इस संसार में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा सिवा उसके जिसपर आप आसीन हैं और वह धीरे धीरे विनम्रता पूर्वक आम समाज से दिसंबर 2018 के अंत तक अपने को दूर कर लिया और अपने मूल स्वरुप में आ गया| = अर्थ व्यवस्था, मुद्रा नीति और प्रबंधन पर लिखकर 25-30 वर्ष के अथक प्रयास पर पानी फेरना है क्या अर्थात इस सम्पूर्ण विश्व-मानव जगत (/समूह) को उसके मूल उद्गम स्थल विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही केन्द्रित कर अव्यवस्था फैलाना है क्या?--मैंने बोला था मैंने इस दो अद्वितीय दो दसक से अधिक के समय में इस संसार के सभी ज्ञान-विज्ञान और मेधा-प्रतिभा-पुरुषार्थ का अधिकतम उपयोग वैश्विक संस्थागत और वैश्विक मानवतागत अभीष्ट हित हेतु किया हूँ और आज भी जब सहस्राब्दी-महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्वमहासमुद्रमंथन काल और उसका संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल गुजर चुका है तब भी उनका समुचित प्रयोग कर रहा हूँ:->चमत्कारिक और रोचक दिखने वाले दुनिया को अपनी सहनशीलता के अनुरूप चला सकिये तो चलाइये और अर्थ व्यवस्था, मुद्रा नीति और प्रबंधन पर लिखकर 25-30 वर्ष के अथक प्रयास पर पानी फेरना है क्या अर्थात इस सम्पूर्ण विश्व-मानव जगत को उसके मूल उद्गम स्थल प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही केन्द्रित कर अव्यवस्था फैलाना है क्या? तो मैं अपना व्यवसाय और कार्य स्थल स्वयं चुना हूँ जबकि टाटा इंस्टिट्यूट (भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर) में 2008 के प्रारंभिक दिनों में ही जबकि मैं अविवाहित था तो ऐसे में मुझे संसार के किसी भी देश में व्यवस्थित किये जाने की शर्त केवल पासस्पोर्ट होना ही था और वह उस समय था मेरे पास (जिसकी अवधि 2014 में समाप्त होने पर भी रिन्यू नहीं करवाया हूँ) और मैंने बाहर जाने से साफ मना किया; आगे 18 अप्रैल 2008 को विवाह उपरान्त बैंगलोर रहते ही 11(/10) सितम्बर 2008 को इस प्रयागराज (/काशी) में सभी मंदिरों/देवालयों/देवस्थान/उपासना स्थलों (जो सम्पूर्ण संसार के मंदिरों/देवालयों/देवस्थान/उपासना स्थलों को ऊर्जा देते हैं) की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते वैश्विक धर्म चक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्स्थापना किया था| और उसके 10 वर्ष के अंदर 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अपना संस्थागत और विश्व-मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य भी हांसिल कर केदारेश्वर(/आदिशिव) के अस्तित्व को प्रमाणित करते हुए वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण राम(/कृष्ण) के अस्तित्व को भी प्रमाणित कर लिया| = 11 सितंबर 2001 से 11 सितंबर 2008 के बीच इस संसार का कोई मंदिर/उपासना स्थल/देवालय फलदाई था अर्थात कार्यरत था क्या?--मेरे द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र किष्किंधा क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलोर (25 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर 2009) के प्रवास के बीच में प्रथम भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र प्रयागराज (प्रयागराज(/काशी)) आने पर अपने वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप की ऊर्जा से 10 सितंबर 2008 को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा को प्रयागराज में प्रतिस्थापित किया और 11 सितंबर 2008 को वैश्विक शिव को काशी में प्रतिस्थापित कियाऔर इस प़कार 11(/10) सितंबर 2008 को वैश्विक धर्म चक्र की इस प्रयागराज(/काशी) में स्थापना हुई और तभी से प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष (आंतरिक) दोनों प़कार का विश्व मानवता का केन्द्र प्रयागराज(काशी) हो गया जो पहले केवल परोक्ष (आंतरिक) केन्द्र ही रहा करता था और प्रत्यक्ष (वाह्य) केन्द्र दक्षिण भारत बना रहता था(अर्थात इस दौरान एकल वैश्विक परमब्रह्म/पूर्णातिपूर्ण कृष्ण निकाय में सम्पूर्ण विश्व मानवता की ऊर्जा संचित थी)| = >इस सम्पूर्ण विश्व-मानवता के सहस्राब्दियों तक के सतत हित हेतु इसी अवस्था का वरन किया हूँ तो फिर समझ लीजियेगा की आपके किसी भी अनुचित प्रयास का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आना है अतएव मुझे षडयंत्र के तहत न तो प्रभावित करने का प्रयास कीजिये और न दुष्चक्र रचिये|-->11 सितम्बर 2008(/11 सितम्बर 2008) से इस प्रयागराज (/काशी) में स्थापित वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/समय चक्र आपके कर्मों का समुचित परिणाम अवश्य देगा तो कोई जादू नहीं हो रहा है की कोई व्यक्ति या उसका समूह अगर गलती कर रहा है तो वह उसे दण्ड सहित स्वीकार कर रहा है (और यह भी की गलती आपने नहीं किया है तो दबाव बस स्वीकार करने की आवश्यता नहीं है और यह भी की यदि आपने मानवता के प्रति जघन्य अपराध नहीं किया है व्यावहारिक पहलू के तहत मानवीय भूल से गलती कर दिया है तो ऐसे में भी आपको बलि दे जाएगी , ऐसा भी नहीं है, तो भूल सुधार का मौक़ा भी आपको मिल रहा है)| वैसे तो 29 (15-29) मई 2006 को ही प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अपने पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता निमित्त अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य 67 पारिवारिक सदस्य 11 परिवार समेत आदिशिव (केदारेश्वर) की स्थापना के साथ पूर्णातिपूर्ण अवस्था को प्राप्त कर चुका था (पूर्णातिपूर्ण/परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में) फिर भी सामाजिक पक्ष आवश्यक समझा गया तो मैंने 11 सितम्बर 2001 से प्रारम्भ करते हुए 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 (पूर्णातिपूर्ण/ परमब्रह्म राम स्वरुप में) आते-आते ही सामाजिक पक्षगत पूर्णातिपूर्ण अवस्था प्राप्त कर लिया है अर्थात वह भी इसी दिन पूर्ण हो गया| मैं त्रिफला-कश्यप (व्यासी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) इस सम्पूर्ण विश्व-मानवता के सहस्राब्दियों तक के सतत हित हेतु इसी अवस्था का वरन किया हूँ और इसी अवस्था (""वैश्विक मूल सारंगधर केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम (/कृष्ण)"" में मैं अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर, तत्कालीन/वरिष्ठ मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) के समकक्ष अपने को सन्तुलित स्थापित पा रहा हूँ| जो की एक पूर्णातिपूर्णता की अवस्था है और यह वही अवस्था है जिससे सांगत शक्तियों समेत इस विश्व-मानवता के पाँचों वैश्विक मूल आयाम (शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) का आविर्भाव होता है = असीमित सहनशक्ति और धैर्य व् पुरुषार्थ चाहिए विगत अद्वतीय दो दसक से अधिक समय तक भगवा और तिरंगा बने रहने हेतु:-भगवा (वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था) और तिरंगा (त्रिफला कश्यप):->यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है| ऋषि सभ्यता से मानवीय सभ्यता का सृजन इन्हीं से प्रारम्भ होता है:-कश्यप/कण्व ऋषि (/मारीच (सूर्य) के एकल पुत्र):->विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, रक्षण-संरक्षण और चालान-सञ्चालन की बात भी कर लिया कीजिये और सम्पूर्ण मानवता के बारे में भी कुछ सोच लिया कीजिए न कि अपने कुनबे की ही तो उसी तरह जमीन की बात उस ऋषि से करेंगे आप जिस ऋषि के पुत्र स्वयं भूदेव और धरणीधर/शेषनाग हों? तो इस मानव संस्कृति का आधार ऋषि संस्कृति है यह शास्वत नियम है तो ऋषि क्रम का शास्वत नियम कैसे बदलेगा? जब वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) की मूल अवस्था के पांच के पांचो आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तो जब ये स्वयं धर्मचक्र के चौबीस ऋषियों का ऊर्जा स्रोत, ऊर्जा केन्द्र बन 25वां ऋषि और सम्प्पूर्ण 108 मानक ऋषि का ऊर्जा स्रोत, ऊर्जा केन्द्र बन 109वां ऋषि कहलाने में कोई अपमान नहीं महसूस करते हैं तो अन्य ऋषि को कश्यप (/मारीच(सूर्य) के एकल पुत्र) ऋषि को पहला ऋषि मानने में क्या दिक्कत है जिस ऋषि के यहाँ अधिकतम बार विष्णु का अवतार हुआ है? भारद्वाज/गर्ग(/आंगिरस) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था) के पिता कश्यप) तथा सप्तर्षियों में विष्णु के अनन्य भक्त कहे जाने वाले भृगु के पौत्र ("भृगु के पुत्र जमदग्नि और विश्वामित्र/विश्वरथ की बहन रेणुका" के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे)|--इस संसार को रोचक और चमत्कारिक बनाये जाने की जब जब बात आएगी कश्यप ऋषि के वंशजों का त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम हमेशा हमेशा याद किया जाएगा और यही उनको प्रथम ऋषि बनाता है तथा केंद्रीय विष्णु (जिनकी मूल स्वरुप अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) जिनसे स्वयं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है) का सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत और उन सभी का समावेशी होने के नाते धर्म चक्र/कालचक्र के 24 मानक ऋषि का केंद्र हो 25वें ऋषि या सुदर्शन चक्र के 108 मानक ऋषि का केंद्र हो 109 वें ऋषि होने पर भी उनका महत्व सभी ऋषियों से ज्यादा हो जाता है| स्वयं इन्द्र समेत पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता होने का गौरव प्राप्त करने वाले कश्यप (/मारीच (सूर्य) के एकल पुत्र/कण्व) ऋषि आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सूर्य उपासक सावर्ण ऋषि (दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और स्वयं इन्द्र समेत पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता होने का गौरव प्राप्त करने वाले और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंशके जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की|=चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे)| =सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ==========11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|==================29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 को ही हासिल कर लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया|============इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है| ============सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=========== =========जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय -----व ----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी ------(काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) -----वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में==== "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति==== के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|=======सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|============---असुर समाज का कोई पुतला भी मानवता का अंश मात्र धारक/तारक रहा होता तो उसको कुछ साधुवाद दिया जाता किन्तु उनका सम्पूर्ण का सम्पूर्ण समाज(/कुल के लोग) अपनी प्रवृत्ति अनुसार अवैध रूप से देवियों पर भौतिक कब्जे करने के प्रति आतुरता में व्यस्त रहे (वास्तविक रूप से मतलब अन्तरमन/आत्मीय/मानसिक रूप से तो पाने से रहे)| इतना ही नहीं 2001 से प्रारंभ कर 2004/2006 तक देवियों पर भौतिक कब्जे के बाद इस प्रयागराज (काशी) में सम्पूर्ण मानवता हित (प्रत्यक्ष रूप से संस्थाहित) हेतु पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित मेरे स्वरुप को भी न पहचानते हुए दुस्साहस के तहत मेरे अस्तित्व और अभीष्ट लक्ष्य पर भी प्रहार की योजना से बाज नहीं आये तो फिर इनको मई, 2006 में ही मुझे अपना वास्तविक स्वरुप दिखाना पड़ा|==========हमारी संस्कृति तो एक है पर स्थानीय रूप से सनातन पारिवारिक पृष्ठभूमि और पारिवारिक संस्कार अलग हो सकते हैं किन्तु दक्षिण के दो स्वयंभू विशेस राज्य (तेलुगू/तमिल) वासी यह समझ लें की उनकी नश्ल अफ्रीकी मूल वालों की नहीं वरन हमारी ही है वस् स्थानीय आवश्यकताओं और स्थानीय जलवायु प्रभाव के असर के कारण हमारे बीच जो अन्तर केवल वाह्य रूप से दृष्टिगत है उसके कारन से वे वैश्विक राजनीती के शिकार हो दिग्भ्रमित न हो (/ अफ्रीकी मूल के तथाकथित मुसल्लम ईमान /इस्लामानुयाई और तथाकथित दीनदयाल/ईसाइयतानुयाई के प्रति आज तक की आशक्ति व् दृष्टिकोण और जिसमें विशेष रूप से 2007 से लेकर 2018 तक के उनके प्रति आशक्ति व् दृष्टिकोण के प्रति आज के सन्दर्भ में आपका क्या स्पस्ट वर्तमान दृष्टिकोण है?)| ===>>>एक लम्बे अंतराल के लिए लेखन पर विराम किन्तु अगर सारांश के रूप में देखा जाए तो वर्तमान ब्लॉग " Vivekanand and Modern Tradition" में कुछ भी ऐसा नया सन्देश नहीं है जिसे भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलोर/बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद भारत के दूसरे सबसे मजबूत सांस्कृतिक केंद्र) में उसके शताब्दी वर्ष (2007-2009) के दौरान इसी "Vivekanand and Modern Tradition" नाम के ही ब्लॉग में न लिखा गया हो जो की वहाँ पूरे दो वर्ष सबसे आधुनिकतम तकनीकी और विज्ञान से युक्त लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा है|---==जिसने मुझको अंतरमन से चाहा और इसके साथ मुझसे मेरे जैसा चाहा उसको वैसा ही मिला और इसमें कुछ भी अनुचित और प्रत्यक्ष नहीं है तो इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार आप को कैसे मिल गया?======Note: प्रयागराज (काशी) से जाकर भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलोर/बेंगलुरु ( जो कि प्रयागराज (/काशी) के बाद भारत का दूसरा सबसे मजबूत सांस्कृतिक केंद्र है ) में उसके शताब्दी वर्ष (2007-2009) के दौरान वहाँ पर तत्कालीन रूप से मानवता का असीमित ऊर्जा का स्वयं निहित एकल अंतर्राष्ट्रीय स्रोत मैं स्वयं रहा| अतः जब मै वहाँ मानवतावादी शक्तियों हेतु असीमित ऊर्जा का एकल अंतर्राष्ट्रीय स्रोत स्वयं बना रहा तो फिर ऐसे में ऐसे निरपेक्ष स्वरुप का दायित्व निभाने की परिणति अन्तर्गत किसी स्वयंसेवक से प्रत्यक्ष व् परोक्ष संपर्क संभव ही नहीं था तो किसी स्वयंसेवक से स्वयंसेवा लेने का प्रश्न ही नहीं उठता है|==========आप लोग तो क्षणिक रूप से देवियों का साथ पाकर उनकी शक्ति पर आश्रित होकर इतराते हैं जबकि यहाँ देवी और देवता दोनों और इस प्रकार स्वयं आप समेत सम्पूर्ण संसार मुझपर ही आश्रित रहा हैं|==============प्रामाणिक रूप से वास्तविक सन्दर्भ में सोमवार को ही आविर्भवित होने वाले सोमेश्वर/सोमनाथ/चन्द्रमा जिनको प्रिय हो ऐसे प्रेमचन्द/शिव) के निर्देशानुसार जब अभीष्ट त्याग के साथ 11 सितम्बर, 2001 को इस प्रयागराज (काशी) में संस्थागत हित हेतु प्रत्यक्ष (मानवतागत हित हेतु अप्रत्यक्ष) जब संकल्पित/समर्पित हुआ था तब भी और उसी अभीष्ट कार्य निमित्त जब प्रामाणिक रूप से वास्तविक सन्दर्भ में गुरूवार/वृहस्पतिवार को ही आविर्भावित होने वाले श्रीधर (विष्णु) के निर्देशानुसार 7 फरवरी, 2003 को अभीष्ट बलिदान से साथ इस प्रयागराज (काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन जब हुआ था तब भी संसार के सभी सम्बन्धी और मेरी भी स्थाई संपत्ति थी/है फिर अगर मैं ऐसे अभीष्ट प्रयोजन हेतु इस प्रयागराज (/काशी) में डूब गया होता (/जबकि अप्रत्याशित रूप से असीमित शक्ति से सम्पन्न होने के कारण अभीष्ट लक्ष्य को 29 मई, 2006/25 मई, 2018 को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण रूप से सिद्ध किया) तो फिर उन सबका मेरे निमित्त क्या प्रयोजन रहता और है? तो फिर उसके लिए कौन सा विक्षोभ रहेगा तो जो भी स्थाई संपत्ति थी/है उसका ही धारक बना रहूँगा यही मेरा कर्तव्य है बाकि वास्तविक रूप में मानवता के सुचारु रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत चालान-संचालन में सहयोग कर रहा हूँ और सबके कर्तव्य का अवलोकन किये जा रहा हूँ क्योंकि इस दौरान सचेष्ट और अनुभवी लोगों के बहुतायत की वजह से अब बहुत कुछ परिवर्तन किसी के कुचक्र से होना नहीं होनेवाला है|==============भातृसम दो पुत्रों कृष्णकान्त/कृष्ण के स्वामी मतलब स्वयं परमब्रह्म (एकल स्वरुप ब्रह्मा+विष्णु+महेश) मतलब स्वयं कृष्ण और विष्णुकान्त/विष्णु के स्वामी मतलब स्वयं परमब्रह्म(एकल स्वरुप ब्रह्मा+विष्णु+महेश) मतलब स्वयं राम का पालन कर रहा हूँ मतलब राम और कृष्ण दोनों का पालन कर रहा हूँ तो आप के अनुसार इसका निहितार्थ हो क्या सकता है? टिप्पणी: वैसे शिव को जो चन्द्रमाँ सबसे ज्यादा प्रिय है वह है द्वितीया का तीक्ष्ण शुभ्र आभा वाला चन्द्रमाँ और उसे ही वे अपने सिर पर धारण करते हैं मतलब उससे ही वे अपने सिर का श्रृंगार करते हैं|
======================================================================================================================================================== वैश्विक स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान """"पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र/ऋषि:विष्णु गोत्र/ऋषि है):----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी|============सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ===========11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (वैश्विक स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर वैश्विक स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है|================सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=========== =========जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय -----व ----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी ------(काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) -----वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में==== "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति==== के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| ===================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ==========मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम जी ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ====================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है| आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह कार्य से विरत करवाकर|========= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| अतएव पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते अनुसार आभासीय रूप से ही सही उनको वंश विहीन किया जाना ही उनकी सजा है| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों| =========================================== सशरीर परमब्रह्म से सांगत शक्तियों समेत एकल स्वरूप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है तो फिर वह सशरीर परमब्रह्म व्यक्तिगत रूप में किसी देव या देवी पर निर्भर नहीं रहा अपितु इस विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज में स्वयं विश्वव्यापक शिव और विश्वव्यापक ब्रह्मा के अभीष्ट कार्य के प्रयोजन (11 सितम्बर, 2001/10 सितम्बर, 2000) को पूर्णातिपूर्ण करने हेतु विश्वव्यापक विष्णु के द्वारा निर्देशित होते ही पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होते ही (7 फरवरी, 2003 से 29 मई, 2006 तक के ही सीमित समय मात्र में ही प्रयोजन हेतु निर्धारित प्रामाणिक लक्ष्य को सैद्धांतिक रूप में पूर्णातिपूर्ण करने के साथ ) स्वयं सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा का धारक होते हुए सशरीर परमब्रह्म स्वरुप अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त हुआ| अर्थात जो "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""के दौरान स्वयं समस्त देवी और देवता की ऊर्जा का स्रोत रहा हो|===विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है| =========================================================================================================================================================== मेरा पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते), पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम् सुंदरम) और व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का सन्दर्भ किसी संस्था या सन्गठन या राज व्यवस्थागत किसी उद्घोष के प्रसंग से नहीं अपितु क्रमसः विष्णु, शिव और ब्रह्मा द्वारा जगत के पोषण/सम्पोषण, रक्षण/संरक्षण व् चालन/सञ्चालन हेतु निर्धारित की गयी सत्य पालन व्यवस्था के प्रति प्रथमतः अपने-अपने दायित्व निर्वहन व् इन तीनों के अनुरूप स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर के सांस्कारिक/सांस्कृतिक/सामाजिक/राज व्यवस्थागत/संस्थागत/संगठनगत/कुटुंबगत/स्वपरिवारगत-व्यक्तिगत अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपने उत्तर दायिता से संदर्भित है|Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र/ऋषि:विष्णु गोत्र/ऋषि है):---आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| अतएव पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते अनुसार आभासीय रूप से ही सही उनको वंश विहीन किया जाना ही उनकी सजा है| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी| ===================================================================================================================================================== मेरा पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते), पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम् सुंदरम) और व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का सन्दर्भ किसी संस्था या सन्गठन या राज व्यवस्थागत किसी उद्घोष के प्रसंग से नहीं अपितु क्रमसः विष्णु, शिव और ब्रह्मा द्वारा जगत के पोषण/सम्पोषण, रक्षण/संरक्षण व् चालन/सञ्चालन हेतु निर्धारित की गयी सत्य पालन व्यवस्था के प्रति प्रथमतः अपने-अपने दायित्व निर्वहन व् इन तीनों के अनुरूप स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर के सांस्कारिक/सांस्कृतिक/सामाजिक/राज व्यवस्थागत/संस्थागत/संगठनगत/कुटुंबगत/स्वपरिवारगत-व्यक्तिगत अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपने उत्तर दायिता से संदर्भित है| ============================================================================================================ गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है या वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में लगभग एक सहस्राब्दी बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ============================================================================================================= राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं|<<<>>>>>रामजन्मभूमि आन्दोलन में आप द्वारा सक्रीय भागीदारी और उस मन्दिर हेतु अमूल्य योगदान से क्या लाभ जब आप और आपके अभिकर्ता जो आपका ही नाम आज तक भी भुना रहे हैं उनके द्वारा जाने-अनजाने आज तक जनमानस की अभीष्ठतम आशा व् विश्वास के विपरीत जाकर रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद जारी है|<<<<<>>>>>>>>तो फिर>>>>रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में एकमात्र मै ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु के प्रयोजन हेतु अंतरास्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय शक्ति के रूप में दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा|<<<<>>>>>>राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं========<<<<<<मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|<<<< <<=======भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/त्रिदेवों में आद्या/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा? ================================================================================================================ कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| 《《《《《 《《《《《《《विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सनातन राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| ================================================================================================================== भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा?>>>>>>>>>>>मैं स्पष्ट कह दिया की मैं 2 वर्ष किष्किंधा क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर में उसके शताब्दी वर्ष के दौरान (2007 -2009 ) बिताया है तो फिर देखा है उत्तर की देवियों के प्रति वहाँ अति आशक्ति और इसके उलट उत्तर के देवताओं के प्रति दक्षिण के दो राज्यों के लोगों में आतंरिक द्वेष मौजूद था और यह आज भी कटु सत्य हैं और ये दो राज्य ऐसे हैं जो अपने विदेशी आकाओं के इसारे पर ही चलते हैं और वे राज्य उनके लिए एक प्लेटफार्म मात्र तभी से थे और आज की बात ही अलग है जब उत्तर भारत भी तेजी से प्लेट फार्म बन चुका है| तो मित्र फिर यह मेल जोल की संस्कृति के बहाने यह नश्ल सुधार की चाहत या नश्ल चोरी की प्रवृत्ति वह भी उत्तर के देवताओं से द्वेष रखकर तो यह आभासीय समरसता एक तरफा लाभ वाला फार्मूला हमेशा हमेशा के लिए नहीं चलता है और जिस उत्तर भारतीय को आप अपनी नश्ल का समझते हैं उसको अपना एजेंट बना अपनी राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय ठीकेदारी कायम रखना न न्याय पूर्ण है और न ही मानवता के लिए कल्याणकारी है क्योंकि कहा गया है की "हारा तो चला जाता है पर हरा हुआ नहीं जाता है मतलब उसे आप नियंत्रित नहीं कर सकते हैं " | फिर भी मैंने समूह में खड़े लोगों से वहाँ दो तीन बार सार्वजनिक रूप से कहा था की आप की नश्ल और हमारी नश्ल एक ही है और आप की नश्ल अफ्रीकी मूल की नहीं है और आप में और हमारे में जो वाह्य अन्तर है वह केवल और केवल स्थानीय आहार-विहार और भौगोलिक अंतर के कारन है तो वैश्विक साजिस से बचे रहिये द्वेष मत पालिये क्योंकि आप जैसे लोग हमारे यहां आप दोनों राज्यों की आबादी से ज्यादा मिल जाएंगे| =================================================================================================================== पूर्ण विवरण की जरूरत नहीं पर गलती तेलगु (हैदराबाद) और तमिल (कन्याकुमारी) के क्रमसः अनुसूचित जनजाति ((/धर्मपरिवर्तित: जैसा की खिचड़ी रहती हैं तेलगु और तमिल में हिन्दू और ईसाइयत की नामकरण तक में जबकि इस्लाम के साथ ऐसा नहीं होता और इस प्रदेश के लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से ) और अनुसूचित जाति (जो लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से) ने किये और उत्तर भारत स्थित उनके अभिकर्ताओं के षडयंत्र का शिकार हो उनके अभिकर्ता बन उनको उत्कृष्टता का प्रमाणपत्र देने के चक्कर में आप ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा इस्लाम व् ईसाइयत सब लोग गलती कर गए पर मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया| =================================================================================================================== मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ====================================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:| >>>> रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा (/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| During these two decades there is a continuous effort from my side that the wave of world humanity should remain alive at any cost that is why in first stage I accepted the challenge to remain unconnected with the common world and after the successful innings on 29th May, 2006; I expressed my own view and experience in the scenario of local to world level change on the social media like Orkut, Blog: "Vivekanand and Modern Tradition" and Facebook.| ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी">>>>> विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) या इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल सनातन राम की कला से हुआ| ===================================================================================================================== तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ============================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======================================================================================================================================= ======================================================================================================================= प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार (गुरूवार) दिन को ही अवतरित होने वाले तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने उस दौर में कहा था की विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे, मुझे तुम्हारा संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है| तो फिर इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को 25 मई, 2018 को स्थापित कर संतुलित हो गया न और और प्रकार मैंने उनके वाक्य "विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे" को पूर्णातिपूर्ण किया की इस संसार में मेरा ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कोई है, न कोई हुआ है और न कोई होगा और कोई होगा तो वह मेरा ही स्वरुप होगा| इसके पहले ही संकेत के तौर पर पर मुझे इस संसार के सबसे विशालकाय संगठन के लिए जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध संत ने सक्रीय रूप से संगठन से अलग होने के लिए संकेत फरवरी, 2017 से दे दिए थे यह कहते हुए की जो वैश्विक स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुका हो उसको कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए लेकिन मुझे तो इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी|=============================मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था| तो फिर मेरे तत्कालीन परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं | ========================================================================================================================= राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं|<<<>>>>>रामजन्मभूमि आन्दोलन में आप द्वारा सक्रीय भागीदारी और उस मन्दिर हेतु अमूल्य योगदान से क्या लाभ जब आप और आपके अभिकर्ता जो आपका ही नाम आज तक भी भुना रहे हैं उनके द्वारा जाने-अनजाने आज तक जनमानस की अभीष्ठतम आशा व् विश्वास के विपरीत जाकर रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद जारी है|<<<<<>>>>>>>>तो फिर>>>>रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में एकमात्र मै ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु के प्रयोजन हेतु अंतरास्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय शक्ति के रूप में दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा|<<<<>>>>>>राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं========<<<<<<मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|<<<< <<=======भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा? ========================================================================================================================= जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?>>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? ======================================================================================================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| ======================================================================================================================== प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार (गुरूवार) दिन को ही अवतरित होने वाले तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने उस दौर में कहा था की विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे, मुझे तुम्हारा संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है| तो फिर इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को 25 मई, 2018 को स्थापित कर संतुलित हो गया न और और प्रकार मैंने उनके वाक्य "विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे" को पूर्णातिपूर्ण किया की इस संसार में मेरा ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कोई है, न कोई हुआ है और न कोई होगा और कोई होगा तो वह मेरा ही स्वरुप होगा| इसके पहले ही संकेत के तौर पर पर मुझे इस संसार के सबसे विशालकाय संगठन के लिए जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध संत ने सक्रीय रूप से संगठन से अलग होने के लिए संकेत फरवरी, 2017 से दे दिए थे यह कहते हुए की जो वैश्विक स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुका हो उसको कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए लेकिन मुझे तो इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ========================================================================================================================= मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ========================================================================================================================== दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ >>>=====जब आपके द्वारा कोई दायित्व स्वीकार कर ठीक तरह से निभाने पर भी जो लोग अनावश्यक रूप से राजनीति करने का गैप खोजें ऐसी स्थिति में अगर उन्हें आप द्वारा असीमित गैप दे दिया जाय तो फिर मानवता हित में ऐसा कार्य उचित ही रहता है तो ऐसे में उसके मनोबल को कमजोर करने के भागीदार भी आप नहीं माने जाएंगे| >>>>========प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (/दिसम्बर, 2018) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>>>दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ तो कोई अनावश्यक सन्देह अपने अन्दर न पाले फिर भी यह सत्य है की प्रत्यक्ष तौर पर मैं ही भगवा/बिशुनपुर-223103 और मैं ही तिरन्गा/रामापुर-223225 अर्थात मै ही मानक रूप से समस्त 108 ऋषि या मानक रूप से समस्त 24 ऋषि या मानक रूप से समस्त 8 ऋषि या मानक रूप से समस्त 7 ऋषि की केंद्रीय शक्ति रूप में 109वां ऋषि अर्थात विष्णु गोत्र व् उन सबमे स्वयं पहला ऋषि/गोत्र कश्यप (/मारीच:सूर्य/कण्व) दोनों हूँ| तो फिर यह आप समझ लीजियेगा की मै अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य नैसर्गिक/प्राकृतिक रूप से हूँ जैसा की मुझे <<<<>>>>भारतीय विज्ञान सस्थान (अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के बीच) में सुझाव दिया गया था की यहां स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/संगठन के सदस्य बन लीजिये और स्वयंसेवक हो जाइये तो मैंने वहां कहा था की मैं स्वयं ही अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ तो आप का सन्गठन मेरा साथ नहीं दे पायेगा और तभी कहता हूँ की यहाँ से लेकर वहाँ तक और फिर वहां से लेकर यहां तक की यात्रा में किसी स्वयंसेवक से किसी भी प्रकार का कोई सहयोग नहीं लिया हूँ| <<<<>>>>>>प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (दिसम्बर, 2018/जुलाई, 2018 ) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|>>>><<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ========================================================================================================================== राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं|<<<>>>>>रामजन्मभूमि आन्दोलन में आप द्वारा सक्रीय भागीदारी और उस मन्दिर हेतु अमूल्य योगदान से क्या लाभ जब आप और आपके अभिकर्ता जो आपका ही नाम आज तक भी भुना रहे हैं उनके द्वारा जाने-अनजाने आज तक जनमानस की अभीष्ठतम आशा व् विश्वास के विपरीत जाकर रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद जारी है|<<<<<>>>>>>>>तो फिर>>>>रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में एकमात्र मै ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु के प्रयोजन हेतु अंतरास्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय शक्ति के रूप में दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा|<<<<>>>>>>राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं========<<<<<<मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|<<<< <<=======भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा? -- ========================================================================================================================== पिता जी (वशिष्ठ से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और माता जी (कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) तथा मैं (गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और आगे की पीढ़ी (गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) तो फिर गोत्र स्तर पर ही ऊपर से तीन गोत्रों के रक्त का सीधा असर था/है मुझपर बाकी रिश्तों से सभी सातों गोत्र आ जाते हैं ---------5 सितम्बर, 2000 को काशी से आकर 11 सितम्बर, 2001 को केंद्रीय रूप में एकमात्र मै ही इस प्रयागराज में दॉँव पर लगा जरूर था पर आगे मैं दाँव पर लगकर रहना आवश्यक नहीं समझ रहा था परन्तु मैं मामा जी (श्रीधर/विष्णु)-(गोत्र: कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) जो गोत्र सिस्टम में मेरे (गोत्र:गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) रिवर्स आर्डर में सम गोत्रीय हैं ने ही फरवरी, 2003 में कहा था की जोशी गुरुदेव (मुरलीमनोहर/ब्रह्मा)-(गोत्रःआंगिरास/भारद्वाज) और पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/शिव:सोमेश्वर:तात्कालिक रूप से कार्य सफलता हेतु 2000 से 2005 के बीच 4 बार बिशुनपुर जाना हुआ था आपका)-(गोत्र:कश्यप/त्रिफला कश्यप) के सम्मान की बात है तुमको इस संस्थागत/मानवतागत कार्य को बनाये रखने के लिए यहां से कही नहीं जाना है तो 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति कर लिया पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया किंतु जोशी गुरुदेव को भी पता होना चाहिए की वे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक केंद्रीय शक्ति के रूप में एकमात्र मै ही अंतरास्ट्रीय स्तर पर दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा| ======== === ==== === ==>>>>>>>मई, 2006 में ही राष्ट्रीय स्तर पर सम्बंधित उच्चस्थ पदासीन धार्मिक आस्था व् विश्वास वाले व्यक्तित्व ने जब स्वयं कह दिया था की हर शिक्षक व् ऋषि-महर्षि-मुनि का जीवन जीने वाले वैज्ञानिक का सम्मान है उनका अनादर हमें नहीं करना है पर सनातन संस्कृति को चिढ़ाने वाले रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी केंद्र/संस्था/संस्थान को कोई अनुमोदित पद नहीं दिया जाएगा तो फिर ऐसे थे उस तात्कालिक उच्च मनीषी के विचार| तो इसमें मुझ जैसे व्यक्ति के स्तर पर किसी विद्वान व् ऋषि-महर्षि-मुनि का कोई अपमान का प्रश्न कहाँ और मैं किसी का विरोधी कैसे हुआ? फिर मेरी भी ऐसी विचारधारा है की मै रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार का सदस्य नहीं होना चाहता तो ऐसे में मैंने भी अपना विरोध जता दिया आगे उच्च सक्षम पदस्त सनातन धर्म के प्रति धार्मिक और आस्थावान कहे जाने वाले लोगों की जैसी मन्सा और उनके किसी जिद्दी निर्णय का ऐसी किसी संस्था/संस्थान/केंद्र/परिवार को और सम्पूर्ण विश्व समाज को मिलाने वाला प्रतिफल| ==================================================================================================================================================== 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====>>>> अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>> मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था: >>>>>>>>>>>>>> तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|>>>>>>>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|<<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ==================================================================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|=================तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है|========================================== सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और यही है सदाशिव/महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिसे आप परमब्रह्म (एकल आधार रूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म कहते है वही पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहलाते हैं >>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|===========================================1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|========================================== God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year.त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :-मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:-या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें|शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव):कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।========================================== जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| ======================================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा (अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||| तो फिर "समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| ============================================================================================================================= तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====>>>> अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>> मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था: >>>>>>>>>>>>>> तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|>>>>>>>>>>>>>>>> मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|<<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ===================================================================================================================================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: >>>>>>अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ| >>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा (/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||| तो फिर "समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)|===========================================रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))|========================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ============================================================================================================================================================ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)>>>>>सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) मात्र को ही स्वीकार करने हेतुु और सत्यम शिवम सुंदरम (पूर्ण सत्य) को स्वीकार न करने हेतु या कुछ न बोलने से समाज व् संस्थागत हित बताने के तहत वैदकी समाज के हवाले किया गया तो इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी बनने की झूंठी क्षमता का प्रदर्शन न करे क्योंकि ऐसा मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर/विष्णु(/श्रीधर) के कहने पर उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु न चाहते हुए भी ऐसा किया था (वैदकी समाज के हवाले हुआ था) =====>>>>>जब रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का उद्धार कर राम ने उनको अपने ह्रदय में समाहित कर लिया मतलब विष्णु कुल में अपने भक्त रहे और आसुरी गोत्र में जन्म लिए अपने भक्तों को अपने ह्रदय में समाहित कर लिया तो अब किसी व्यक्ति द्वारा कम से कम प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में जाने/अनजाने किसी व्यक्ति द्वारा उनका नाम धारण करना या किसी संस्था या संगठन का ऐसे नाम से नामकरण करना न तो उस व्यक्ति के लिए ठीक है और संस्था/संस्थान/संगठन या मानव समाज के लिए ठीक है| तो मैंने स्वयं को ऐसे संस्था/संस्थान/संगठन/परिवार का सदस्य होने पर आपत्ति दर्ज करा दिया है तो बाकी सब लोग इसे स्वीकार न करने का परिणाम भुगतें और समाज को भुगतवायें| ================================================================================================================ जो भी हो जाय या होने वाला है अगर वह जनमानस हेतु अशुभ भी हो तो उसे भी स्वीकार कर लिया जाय ऐसा ठीक नही है अतएव जिस वैश्विक समाज व् संथागत हित हेतु मै 11 सितम्बर, 2001 को प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में दॉँव पर लगाया गया मतलब पूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ किया गया (/और सत्यमेव जयते मात्र को ही स्वीकार करने हेतुु और सत्यम शिवम सुंदरम को स्वीकार न करने हेतु या कुछ न बोलने से समाज व् संस्थागत हित बताने के तहत वैदकी समाज के हवाले किया गया) तो इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी बनने की झूंठी क्षमता का प्रदर्शन न करे क्योंकि ऐसा मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर/विष्णु(/श्रीधर) के कहने पर उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु न चाहते हुए भी ऐसा किया था (वैदकी समाज के हवाले हुआ था) जिसके हेतु मुझे मेरे परमाचार्य परमपिता परमेश्वर/शिव:सोमेश्वर ने 3/4 सितम्बर, 2001 को भेजा था मतलब परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर/ब्रह्मा के यज्ञ को पूर्णातिपूर्ण रूप से सफलता पूर्वक सम्पन्न कराने हेतु भेजा था ) और फिर स्थानीय/राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक परिवर्तन के को दृष्टिगत करते हुए ऐसा भी है की 7 फरवरी, 2003 उसी हेतु पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ कर दिया गया| लेकिन क्या 2004 के बाद की स्थिति के बाद 2005/2006 में मेरे ऐसे पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ होने के बाद भी मतलब 5/6 वर्ष बाद ऐसे सम्पूर्ण उपक्रम को भारत के दक्षिण के दो राज्य (जो दो राज्य केवल अपने विदेशी नागरिको के इसारे पर चलते थे/हैं और उनका वह एक प्लेट फार्म मात्र उसी दौरान से था) के इशारे पर बन्द कर दिया जाता और मै उसे स्वीकार कर लेता तो उस विरोध का परिणाम था 29 मई, 2006 ((67/11 मतलब पूर्णातिपूर्ण सफलता; जिसके सदस्य हर जाति से हैं उसके जानकारी हेतु जो उपक्रम का लाभ जाति विशेष को मिलेगा बता रहे थे) और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| मेरा किसी राज्य विशेष से जातिगत दुश्मनी नहीं वरन उस समय उनका समर्थन करने वाले आज किसी केंद्र को नियमों को ताक पर रखकर क्यों बनाना चाह रहे है और मै उसका अंग स्वयं क्यों नहीं रहना चाह रहा हूँ तो उसे अब जान लीजिये जिसे शायद पहले बता चुका हूँ: जब रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का उद्धार कर राम ने उनको अपने ह्रदय में समाहित कर लिया मतलब विष्णु कुल में अपने भक्त रहे और आसुरी गोत्र में जन्म लिए अपने भक्तों को अपने ह्रदय में समाहित कर लिया तो अब किसी व्यक्ति द्वारा कम से कम प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में जाने/अनजाने किसी व्यक्ति द्वारा उनका नाम धारण करना या किसी संस्था या संगठन का ऐसे नाम से नामकरण करना न तो उस व्यक्ति के लिए ठीक है और संस्था/संस्थान/संगठन या मानव समाज के लिए ठीक है| तो मैंने स्वयं को ऐसे संस्था/संस्थान/संगठन/परिवार का सदस्य होने पर आपत्ति दर्ज करा दिया है तो बाकी सब लोग इसे स्वीकार न करने का परिणाम भुगतें और समाज को भुगतवायें|| ================================================================================================================================================ सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| =========================================== =============================================================================================== प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है....... 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत् 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =============================================================================================================================== 109. विष्णु गोत्र ================================================================================================================================= सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| ==========================================सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| ==========================================तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ========================================================================================================================== सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| ====================================================================================================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|| ===========================================मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ==================मेरा पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते), पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम् सुंदरम) और व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का सन्दर्भ किसी संस्था या सन्गठन या राज व्यवस्थगत किसी उद्घोष के प्रसंग से नहीं अपितु क्रमसः विष्णु, शिव और ब्रह्मा द्वारा जगत के पोषण/सम्पोषण, रक्षण/संरक्षण व् चालन/सञ्चालन हेतु निर्धारित की गयी सत्य पालन व्यवस्था के प्रति प्रथमतः अपने-अपने दायित्व निर्वहन व् इन तीनों के अनुरूप स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर के सांस्कारिक/सांस्कृतिक/सामाजिक/राज व्यवस्थागत/संस्थागत/संगठनगत/कुटुंबगत/स्वपरिवारगत-व्यक्तिगत अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपने उत्तर दायिता से संदर्भित है|विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| ==================================================================================================================================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाति/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ===================================================================================================== पूर्ण विवरण की जरूरत नहीं पर गलती तेलगु (हैदराबाद) और तमिल (कन्याकुमारी) के क्रमसः अनुसूचित जनजाति (/धर्मपरिवर्तित: जैसा की खिचड़ी रहती हैं तेलगु और तमिल में हिन्दू और ईसाइयत की नामकरण तक में जबकि इस्लाम के साथ ऐसा नहीं होता और इस प्रदेश के लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से ) और अनुसूचित जाति (जो लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से) ने किये और उत्तर भारत स्थित उनके अभिकर्ताओं के षडयंत्र का शिकार हो उनके अभिकर्ता बन उनको उत्कृष्टता का प्रमाणपत्र देने के चक्कर में आप ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा इस्लाम व् ईसाइयत सब लोग गलती कर गए पर मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण(पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया| ========================================================================================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| ============================================================================================================================================================

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गुरुदेव!  11 सितम्बर, 2001 (दिन मंगलवार) से 6 फरवरी, 2003 तक विषपानकर्ता नीलकण्ठ महादेव के अवस्था में रहने के बाद देवकाली का सिग्नल फरवरी, 2003 में हो चुका था की मै प्रयागराज में जिस उद्देश्य से संकल्पित हूँ उसमे मेरा व्यक्तिगत हित निहित नहीं है अपितु इस प्रयोजन में सम्पूर्ण मानवता हित के साथ ही साथ उन लोगों का विशेष हित है जो सतह पर लोगों को कार्यरत दिखाई दे रहे है तो फिर ऐसे में श्रीधर(विष्णु) मामा के निर्देश से 7 फरवरी, 2003 (दिन शुक्रवार) से 11/18 सितम्बर, 2007 (दिन मंगलवार/मंगलवार) तक ब्रह्मलीन/संकल्पित/समाधिष्ठ/कूर्मावतारी विष्णु अवश्था में रहा जिसके अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु बीच में ही जागरण करना पड़ा मई, 2006 में ही तो फिर कूर्मावतारी अवस्था में ही रहते हुए 16-29 मई, 2006 में परमब्रह्म कृष्ण अवश्था में आया था न, तो अब आप समझ लीजिये की स्वाभाविक रूप से कूर्मावतारी विष्णु अवस्था से ऊपर की शक्ति हूँ अन्यथा 7 फरवरी, 2003 से 11/18 सितम्बर, 2007 तक सुषुप्त ही बना रहता| और भी आगे चलकर 16-29 मई, 2006 के दौरान  सैद्धांतिक रूप से संस्थागत मुझे प्राप्त हुई सफलता को ही मेरी पूर्णातिपूर्ण सफलता स्वीकार न किये जाने से आगे के क्रम में प्रयास के तहत सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आ जाने पर ही 25 मई, 2018 को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से मुझे अभीष्ठ लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति हुई (तो फिर ऐसे में इसमें किसी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है) तो फिर मानवता के इतिहास में मेरे अभीष्टतम त्याग, अभिष्ठतम बलिदान, अभिष्ठतम तप/योग/उद्यम तथा उच्चतम मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ पर कोई प्रश्नचिन्ह किसी भी प्रकार रहा ही नहीं|  और भी की इस संसार में मुझे इसके लिए अब किसी से प्रमाणपत्र की जरूरत भी नहीं रह गयी है क्योंकि अब मै स्वयं अपने में पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका हूँ जिसका प्रमाण 29 मई, 2006 और 25 मई, 2018 को मेरे संकल्प में मेरे लिए निर्धारित अभीष्ठ लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति स्वयं अपने में प्रामाणिक रूप में साकार रूप से मौजूद है|
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"समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम|》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ==================================== अपनी तीन तीन पीढ़ी की उर्जा लिये हुए एक 25 वर्षीय आजीवन ब्रह्मचारी एकल संतति ब्राह्मण कुमार (त्रिफला(/त्रिदेव/त्रिदेवी/त्रिपत्र/विल्वपत्र/बेलपत्र)- कश्यप गोत्रीय पान्डेय) व उसके बाद 33 वर्ष पर विवाह उपरान्त जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी व आहार विहार आचार विचार व जगत व्यव्हार से सदाचारी व शाकाहारी व किशी भी आम व खास नसे से आजीवन दूर रहने वाला और जिसका कथन हो की =====>>>>>>"सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है" <<<<<<=======तो फिर किशी देवी या देवता या अन्य किशी का उसके संस्थागत व मानवतागत अभीष्ट कार्य सिद्धि मे ऋण उसपर क्या होगा? =========आप लोग तो क्षणिक रूप से देवियों का साथ पाकर उनकी शक्ति पर आश्रित होकर इतराते हैं जबकि यहाँ देवी और देवता दोनों और इस प्रकार स्वयं आप समेत सम्पूर्ण संसार मुझपर ही आश्रित रहा हैं|   =================================== तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी, यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिस्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ================================== सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा (/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|======>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ==================================== During these two decades there is a continuous effort from my side that the wave of world humanity should remain alive at any cost that is why in first stage I accepted the challenge to remain unconnected with the common world and after the successful innings on 29th May, 2006; I expressed my own view and experience in the scenario of local to world level change on the social media like Orkut, Blog: "Vivekanand and Modern Tradition" and Facebook. ============================================================================ जिस धर्म चक्र/अशोक चक्र/काल चक्र/समय चक्र (24 ऋषि संस्कृति को निरुपित करने वाला चक्र) के धारणकर्ता विष्णु (स्वयं 25वें ऋषि/सभी 24 ऋषियों का उर्जा स्रोत/केंद्र बिन्दु) या विशेष/असामान्य परिस्थितियों मेँ उसके धारणकर्ता राम(कृष्ण) हों और रक्षण करता शिव हों तो वह तभी टूटेगा और विष्णु /राम(/कृष्ण) द्वारा स्वयं उसको जोडने की जरूरत तभी होगी जब या तो स्वयं शिव के अस्तिव पर संकट रहा हो या वे अस्तित्व में ही न रहे हों या उनके उत्तराधिकारी आसुरी शक्तियोँ का सामना करने मेँ सक्षम नहीं रहे होंगें| ================================== सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है| ===================================== मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय:>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|| फिर उलटी तलवार चला-चला कर व्यर्थ ऊर्जा व्यय मत कीजिये सही स्थान पर अपनी ऊर्जा का प्रयोग कीजिये कुतर्क और अनीति न कीजिये और न अनीति बोलिये जिसका आप पर नकारात्मक प्रभाव होता है| ===================================================== तो अनुमान हुआ की नहीं की यह विष्णु के परम ब्रह्म स्वरूप की ही उर्जा से ऐसा हौ सका था 10/11 सितम्बर, 2008 को | ==================================== इस प्रयागराज (/काशी) में ईसाइयत के सामानान्तर चलते हुए 29 मई, 2006 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को जो प्राप्त हुआ वही ईस्लामियत के सामानांतर चलते हुए तथा 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था को प्राप्त हुआ तो इस प्रकार वह आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण त्याग, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण बलिदान, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण तप/योग/उद्यम और इस प्रकार आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण दीन दयाल और आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान जैसे सभी पान्चों मूल अवस्थाओं को प्राप्त हुआ| ==================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| ================================== सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==================================== 1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ================================= God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year. त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :- मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें। आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:- या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥ अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्। वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥ अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ । त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव): कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। ==================================== जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| ==================================== सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================================================================================================================================= रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| टिप्पणी: 1998 (25 मई, 1998/12 मई, 1997)-2006/2007/2008: 2008-2018 (25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018): सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम और विधि-विधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव (राम: सदाशिव) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती: पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/सदाशिव (महाशिव: सशरीर विष्णु का परमब्रह्म स्वरूप)/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/)/राम(/कृष्ण)]]| ==================================== NOTE:--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| ==================================== अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष स्वयं मैं ही था| ===>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|) =================================== 31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 के बाद शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि इस संसार में मेरा कोई विकल्प न कभी था, न है और न होगा और वैसे भी जिसमें गुणों की धारणशीलता में केवल हाँ या ना में उत्तर देना हो तो उसमें केवल हाँ या ना में से एक का चयन ही किया जा सकता है तो फिर हाँ स्वीकारता यदि नहीं है तो ना उसका विकल्प नहीं बल्कि उत्तर है जिसका आशय है की अमुक का कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है| फिर भी 31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 बाद के परिप्रेक्ष्य में पुनः मै कहता हूँ की इस वैश्विक आपदा को सृष्टि का संहार न समझा जाए बल्कि सांसारिक अभिव्यक्ति न होते हुए भी आतंरिक आत्मीय अभिव्यक्ति अनुसार इसे दैवीय आपदा मतलब देवियों का प्रकोप मात्र ही समझा जाए|====================================================================================================================================================================== At Institution Level Only: विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)::--जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य से पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम की स्थापना (16/29-5-2006) और फिर पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते की स्थापना (25-05-2018) और वह भी जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य का निर्वहन करते हुए>>>>>>>>16/29-5-2006 (was only a JRF in KBCAOS, having no any involvement on University level except own duty but now faculty member in one of the 67 (/11) permanent faculty positions and even today no any involvement on University level activity except own duty): 67 (/11) permanent faculty positions sanctioned on 29/05/2006: Kedareshwar (K.) Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS:10/09/2000 to 25-05-2018 onward) Centre of Food Technology Centre of Biotechnology Centre of Bioinformatics Centre of Behavioural and Cognitive Sciences Centre of Environmental Science Centre of Material Science Department of Physical Education(Re-structure) Centre of Globalization and Development Studies School of Modern Languages Department of Sociology There was no need to fight for seniority in any of these 67(/11) positions if I contributed for the same but to achieve my goal perfectly in all respect it was needed and I succeeded in it on 25-05-2018. मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)| [क्या इन्ही 67 स्थाई पदों में से ही किसी एक पद पर आसीन होते हुए कभी भी अपनी वरिष्ठता की लड़ाई लड़नी पड़ती? तो फिर मै तो केदारेश्वर की सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण स्थापना के प्रति दृढ़ संकल्प था तो फिर उस हेतु प्रयासरत रहा और 25-5-2018 को वह पूर्णातिपूर्ण सिद्ध/सफल हो गया यदि 29-5-2006 की सैद्धान्तिक सफलता को 29-10-2009 के बाद से भी किन्ही भी दृश्य व् अदृश्य कारणों से नजर अंदाज किया जा रहा था| लेकिन इन 12 वर्ष का भी कोई मूल्य होता है यह भी उन लोगों से पूछा जाय जो लोग ही धर्मराज के एक मात्र अवतार व समय को सर्वोच्च महत्ता प्रदान करने वाले है| जबकि वे अच्छे से इस हेतु मेरे विश्वव्यापक रूप से संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित होने से परिचित भी थे जिस हेतु मैंने अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, और अभीष्ट तप/योग/उद्यम सब किया था]| ====================================================================================================================================================================== पूर्ण विवरण की जरूरत नहीं पर गलती तेलगु (हैदराबाद) और तमिल (कन्याकुमारी) के क्रमसः अनुसूचित जनजाति ((/धर्मपरिवर्तित: जैसा की खिचड़ी रहती हैं तेलगु और तमिल में हिन्दू और ईसाइयत की नामकरण तक में जबकि इस्लाम के साथ ऐसा नहीं होता और इस प्रदेश के लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से ) और अनुसूचित जाति (जो लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से) ने किये और उत्तर भारत स्थित उनके अभिकर्ताओं के षडयंत्र का शिकार हो उनके अभिकर्ता बन उनको उत्कृष्टता का प्रमाणपत्र देने के चक्कर में आप ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा इस्लाम व् ईसाइयत सब लोग गलती कर गए पर मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया| =================================================================================================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ===========================================||
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मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या /सनातन राम (/कृष्ण) (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|























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Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र (ऋषि):विष्णु गोत्र (/ऋषि) है):----मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण) ===11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित रूप से धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 ही पा लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया| ===========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है| ============मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण)"" के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा (जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति, महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार मूल सारन्गधर के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय----व----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|================== ===============मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है|=====----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|

किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवर...