Sunday, July 12, 2020

सशरीर परमब्रम्ह: एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त| अनादि काल से आधी आबादी का शिकार ही जिनकी प्रवृत्ति रही है===-----असुर समाज यह समझता है की साइकिल वाले की साईकिल का एक चक्का पन्चर कर दिया जाय या उसका टायर/ट्यूब निकाल ली जाय जिससे की साइकिल वाला शक्ति विहीन हो जाएगा और इस प्रकार साईकिल वाले की लक्ष्य सिद्धि न हो पाएगी, लेकिन वे यह भूल जाते हैं की यदि साईकिल वाला कुशल है और उस चक्के की आत्मा अतिसय मजबूत है मतलब उस चक्के की रिम (चक्के की ढाल/किनारा) मजबूत है तो उस कुशल साईकिल वाले को लक्ष्य प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता है उसे सिद्धि मिलकर रहती है साईकिल का टायर और ट्यूब तो उस रिम (चक्के की ढाल/किनारा) से निकाल लिए जाने के बाद केवल उसकी लाश समान ही रह जाती है ऐसे मे उस लाश को असुर समाज ढ़ोता रहे या बेचता रहे किन्तु सजीव रूप में उसे पाने से रहा तो असुर समाज अपने अनैतिक, अमर्यादित और व्यर्थ में किये गए तप/योग/उद्यम मतलब मूर्खतापूर्ण कार्य/प्रयत्न के परिणाम के साथ अपने अस्तित्व और भविष्य की सोचे| ==================================== मेरे तत्कालीन परमगुरु परमपिता परमेश्वर श्रीधर (विष्णु) ने कहाँ की अंगारिषा गोत्रीय जोशी जी, कश्यप गौत्रीय पाण्डेय जी और वत्स/गौतम (विश्वस्त:कोई संदेह नहीं) गोत्रीय शुक्ला जी के सम्मान की बात है तुमको वहां से हटकर कहीं नहीं जाना हैं:===---इस प्राक्यज्ञ स्थल/प्रयागराज में विशेष अभीष्ट प्रयोजन अंतर्गत 11 सितम्बर, 2001 (5 सितम्बर, 2000) से जनवरी, 2003 तक प्रयागराज विश्वविद्यालय या किसी अन्य विश्वविद्यालय में किसी विषय के कोर्स में रेगुलर छात्र के रूप में नियम विरुद्ध प्रवेश न लेकर मतलब अपने लिए कोई अन्य विकल्प न रखते हुए अभिष्ठतम त्याग के साथ ही साथ पूर्णतः-समर्पित/पूर्णतः संकल्पित रहते हुए और दो वर्ष तक सब कुछः दृष्टिगत करने के बाद जब तत्कालीन स्थिति को भाँपते हुए स्थानीय व् राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय परिश्थिति के आंकलन अनुसार कार्य सिद्धि के दूसरे आयामानुसार शीर्षस्थ लोगों के प्रयास के तहत मेरे अपने ही पूर्ण समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो जाने जिसमे की मेरे तीनो ऋण मतलब ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृऋण की पूर्ती अपने जीवन में सम्भव न हो सकने के स्पष्ट अनुभूति ने शीर्षस्थ लोगों की सीमा से परे जाकर ऐसे प्रयोजन में समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन न होने का निर्णय कर चुका था| मतलब साफ है की मेरी दृष्टि में प्रयोजन सफलता को पाता वह मेरे समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने पर ही निर्भर था| लेकिन मेरे तत्कालीन परमगुरु परमपिता परमेश्वर श्रीधर (विष्णु) ने कहाँ की अंगारिषा गोत्रीय जोशी जी, कश्यप गौत्रीय पाण्डेय जी और वत्स/गौतम (विश्वस्त:कोई संदेह नहीं) गोत्रीय शुक्ला जी के सम्मान की बात है तुमको वहां से हटकर कहीं नहीं जाना हैं उसी अभीष्ठ प्रयोजन को सफल बनाना है मतलब उसे ही सिद्ध करना है तो मित्रों मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में विवेक(गिरिधर/कृष्ण::एकल स्वरूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा + विष्णु + महेश) ही परमब्रह्म अवस्था को जिया है और ऐसी ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ अवस्था के सामान्य जीवन को प्राप्त किया है| लेकिन 2004 के बाद की परिश्थिति में सब कुछ प्रयास और त्याग, बलिदान और तप व्यर्थ जाते हुए देखकर ब्रह्मलीन अवस्था से बाहर आकर 16-29 मई, 2006 के अभीष्ठ प्रयास के तहत ईसाइयत से परे जाकर अपने को कृष्ण साबित करते हुए सब कुछ हांसिल किया जा था लेकिन मेरा न ब्रह्मा होना किसी को स्वीकार था, न विष्णु होना स्वीकार था, न शिव होना स्वीकार था और न कृष्ण होना स्वीकार था तो फिर अपनी सफलता को प्रामाणिक करने के प्रयास के तहत 25 मई, 2018 को इस्लामियत से परे जाकर अपने को राम सिद्ध कर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान के तहत अपनी सफलता को पूर्णातिपूर्ण स्थापित कर दिया मतलब अपने को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कृष्ण और राम सब सिद्ध कर दिया| ==================================== सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:====---रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|=======------------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ==================================== मुझे प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ (प्राक्यज्ञ) स्थल प्रयागराज (/काशी) में आविर्भवित सातों सप्तर्षियों पर गर्व है और साथ ही साथ सभी सप्तर्षि या सात के सातों सप्तर्षियों के समान अंश से काशी में आविर्भवित और विंध्य क्षेत्र पार करते हुए तमिल-तेलगू क्षेत्र को आवास क्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य ऋषि समेत आठ के आठों अष्टक ऋषि पर भी गर्व है; और इसके साथ इनके त्रिगुणन से जनित चौबीस/24 ऋषि (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की तीलियों के संख्या के बराबर) और फिर इनसे जनित सम्पूर्ण संसार को चलाने वाले सभी 108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के संख्या के बराबर) ऋषि पर गर्व और उनके प्रति समान रूप से सम्मान है| ==================================== प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ| ================================== हैदराबाद और इलाहबाद/इला-आबाद/इलाहाबाद/अल्लाह-आबाद/अल्लाहबाद कनेक्शन के तीस (30) वर्ष अब अच्छे से बीत चुके हैं:---प्रयागराज (/काशी) समेत संपूर्ण भारत को भारत से संबंधित देवी महाकाली/देवकाली समेत हर देवी-देवता और महापुरुष की मूर्ती को भी तमिल/तेलगु के मूर्तियों के वर्ण की तर्ज पर मतलब अहमद बंधू व् लाल बन्धु के वर्ण की मूर्ति से पाटने से प्रयागराज (/काशी) की संस्कृति पर दक्षिण का आधिपत्य नहीं होने वाला है तो फिर इस धोखे में मत रहिये और इसमें सुधार लाइए क्योंकि अहमद बंधू व् लाल बन्धु के वे हैदराबाद और इलाहबाद/इला-आबाद/इलाहाबाद/अल्लाह-आबाद/अल्लाहबाद कनेक्शन के तीस (30) वर्ष अब अच्छे से बीत चुके हैं| ==================================== हकीकत स्वीकार कर लेने में कोई अपमान नहीं है की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती देना संभव नहीं है चाहे वह किसी व्यक्ति/व्यक्तित्व या किसी सन्गठन के माध्यम से या उसकी आड़/छाया में रहकर क्यों न किया जाय| =====---- 18 करोड़ आबादी वाले क्षेत्रों का अधिपत्य 138 (120+18) करोड़ की आबादी वाले क्षेत्रों पर तो संभव नहीं है न तो फिर संभव हो न सका? तो फिर स्वाभाविक रूप से स्पष्ट है कि प्रयागराज(/काशी) में स्वाभाविक रूप से आविर्भवित सप्तर्षि (7 मूल ऋषि) पर ही उन्हीं सप्तर्षि (7 मूल ऋषि) के अंश से प्रयागराज (/काशी) में अविर्भावित अगस्त्य (/कुम्भज) ऋषि और उनके वंशजों द्वारा अधिपत्य किसी भी प्रकार से संभव तो नहीं हैं न? अतः हकीकत स्वीकार कर लेने में कोई अपमान नहीं है की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती देना संभव नहीं है चाहे वह किसी व्यक्ति/व्यक्तित्व या किसी सन्गठन के माध्यम से या उसकी आड़/छाया में रहकर क्यों न किया जाय|

My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018 and onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward:::सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/ विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति):-->>>>>>>>>छोटे व् बड़े भाइयों व् बहनों और इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है| <<< <<< >>> >>विवेक (गिरिधर)/ महाशिव (राम:सदाशिव) <<<>>> विवेक/त्रयम्बक /त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]============================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =======================================================================================================================================
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केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवम महासागर अध्ययन केन्द्र:----जब मैंने कह दिया कि 27 अगस्त, 2017 को त्रिवेंद्रम/तिरुअनंतपुरम की जमीन पर पहली बार पैर रखते ही अगर न सही पर 31 जुलाई, 2018 के बाद मेरे ऊपर इस संसार के किसी भी देवी व देवता का कोई ऋण शेष नहीं रहा है तो फिर इसका मतलब साफ़ है कि फिर उसके बाद मेरे ऊपर देव ऋण, ऋषि(/गुरु ऋण व मातृ- पितृ ऋण समेत कोई ऋण शेष नहीं रह गया है; तब भी शायद कुछ तेलगु सम्प्रति अमेरिका और तमिल सम्प्रति चीन के अभिकर्ताओं को अब भी समझ में न आया हो तो वे फिर से सुन व समझ लें कि ब्राह्मण/सवर्ण द्वारा जन्म दी और पाली हुई संतति का यदि अनाचार-कदाचार-कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड भेद द्वारा या अन्य किसी भी संभावित विधि द्वारा ट्रांजिशन यदि तथाकथित दलित-इसाई या तथाकथित दलित में हो सकता है तो फिर किसी विश्वविद्यालय में महासागर विकास विभाग द्वारा परियोजना गत होकर आर्थिक सहायता प्राप्त कोई सहयोगी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र ऐसी ही एक विधा (यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान ) द्वारा उस विश्वविद्यालय का केंद्र हो सकता है तो फिर वह वैज्ञानिक केंद्र ऐसे ही ट्रांजिशन के आलोक में वह वैज्ञानिक केंद्र ऐसे ही ट्रांजिशन के आलोक में 16/29 मई, 2006 को ही विश्वविद्यालय का एक ऐसा ही केंद्र हो गया था और अपने लिए 7 स्थाई फैकलटी पद समेत प्रस्तावित सभी एक दर्जन केन्द्र के लिये 67 स्थाई फैकलटी पद भी लाया| आप लोगों को प्रमाण चाहिए था तो फिर 24/30 नवम्बर, 2016 को प्रयागराज उच्च न्यायालय के अंदर और इस प्रकार 25 मई, 2018 को विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुपालन में जारी आदेश के माध्यम से वह वैज्ञानिक केंद्र इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान द्वारा उस विश्वविद्यालय का केंद्र हो गया तो फिर याद रखियेगा कि स्थानीय, राष्ट्रीय व् विश्व स्तर पर मानवता हित हेतु ही नहीं संस्थागत स्तर पर भी मेरा संकल्प व्यर्थ नहीं जाता है| तो फिर यह ऐसे नही हुआ बल्कि इधर ऐसा ट्रान्जिसन तो बहुत दूर विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी का ब्रत चल रहा है |
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ऐसा मैंने किसी देवी को अपमानित या उस देवी को उसके देवता से अलग करने हेतु नहीं कहा है अपितु इस संसार में भष्मासुर, रावण (और उसके अंध भगत पुत्र मेघनाद), कंश, दुशासन और कीचक को अपने निजी हित में देवी समाज के विरुद्ध और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से देव समाज के विरुद्ध प्रयोग में लाने वालों तथा उनको पोषित और महिमामण्डित करने वालों तथा इसके साथ ही साथ एक सीमा से अति परे जाकर कामसूत्र/कामशास्त्र/ स्त्री विद्या का स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक आम समाज के विरूद्ध प्रयोग में लाने वालों को प्रतिबंधित और अंकुश में रखने हेतु कहा है|
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आज भी इस बात पर कायम हूँ जिसने अपने अंतरमन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला इसमें मेरा और उसका कोई दोष नहीं किन्तु यह स्पष्ट है मेरे दो भौतिक संतान (दो पुत्र:विष्णुकान्त/राम और कृष्णकान्त /कृष्ण) के सिवा कोई अन्य भौतिक सन्तान नहीं और इस प्रकार किसी देवी या देवता का अपने संज्ञान में कोई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सेवा नहीं लिया हूँ किन्तु जिसको समकक्ष रूप से सामानांतर सेवा हेतु अप्रत्यक्ष तौर पर तैयार किया गया और मैंने उसकी सेवा लिया भी नहीं है तो क्या परन्तु उसका समुचित सम्मान करना मेरा परमधर्म वैसे ही है जैसे की मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन के प्रति लगभग बीस वर्ष से अभीष्ट त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम किया हूँ और इसके प्रति संकल्पित और समर्पित भी रहा हूँ (और भी यह
अब स्पष्ट हैं की मै और मेरी बहन के आलावा मेरे माता पिता की कोई अन्य भौतिक संतान भी नहीं चाहे मेरे और मेरी बहन के रंग, रूप और समरूप हमने स्वयं ससम्मान देखा, मिला और संपर्क में रहा हूँ तो क्या): >>>>>>>>>>>>>>>>>>इस संसार के लगभग सभी देवी देवता स्वयं समझ गए यह लेकिन जो नहीं समझे हैं वे स्वयं समझ जाएंगे क्योंकि इस बार जिस परमब्रह्म कृष्ण ने उपदेश दिया था वही संकलित किया है न की अपनी दूरदृष्टि का प्रयोग कर व्यास ने संकलित किया है: >>>>> >>>>>> सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|-1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(सनातन राम:कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में ससदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है ये और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है->>>>>>>>>-------टिप्पणी: 1998-2006/2007/2008: 2008- 2018: सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम और विधि-विधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>महाशिव(राम:सदाशिव) /विवेक(गिरिधर) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम:सदाशिव(महाशिव)]]|<<<<<<>> 01-08-1976 (एक अगस्त, 1976, दिन रविवार: एक तथाकथित दलित गुरु द्वारा दी गयी जन्मतिथि)/// वास्तविक जन्मतिथि 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी; धनिष्ठा नक्षत्र)|
===============================================केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवम महासागर अध्ययन केन्द्र:----जब मैंने कह दिया कि 27 अगस्त, 2017 को त्रिवेंद्रम/तिरुअनंतपुरम की जमीन पर पहली बार पैर रखते ही अगर न सही पर 31 जुलाई, 2018 के बाद मेरे ऊपर इस संसार के किसी भी देवी व देवता का कोई ऋण शेष नहीं रहा है तो फिर इसका मतलब साफ़ है कि फिर उसके बाद मेरे ऊपर देव/ऋषि ऋण, गुरु ऋण व मातृ- पितृ ऋण समेत कोई ऋण शेष नहीं रह गया है; तब भी शायद कुछ तेलगु सम्प्रति अमेरिका और तमिल सम्प्रति चीन के अभिकर्ताओं को अब भी समझ में न आया हो तो वे फिर से सुन व समझ लें कि ब्राह्मण/सवर्ण द्वारा जन्म दी और पाली हुई संतति का यदि अनाचार-कदाचार-कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड भेद द्वारा या अन्य किसी भी संभावित विधि द्वारा ट्रांजिशन यदि तथाकथित दलित-इसाई या तथाकथित दलित में हो सकता है तो फिर किसी विश्वविद्यालय में महासागर विकास विभाग द्वारा परियोजना गत होकर आर्थिक सहायता प्राप्त कोई सहयोगी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र ऐसी ही एक विधा (यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान ) द्वारा उस विश्वविद्यालय का केंद्र हो सकता है तो फिर वह वैज्ञानिक केंद्र ऐसे ही ट्रांजिशन के आलोक में 16/29 मई, 2006 को ही विश्वविद्यालय का एक ऐसा ही केंद्र हो गया था और अपने लिए 7 स्थाई फैकलटी पद समेत प्रस्तावित सभी एक दर्जन केन्द्र के लिये 67 स्थाई फैकलटी पद भी लाया| आप लोगों को प्रमाण चाहिए था तो फिर 24/30 नवम्बर, 2016 को प्रयागराज उच्च न्यायालय के अंदर और इस प्रकार 25 मई, 2018 को विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुपालन में जारी आदेश के माध्यम से वह वैज्ञानिक केंद्र इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान द्वारा उस विश्वविद्यालय का केंद्र हो गया तो फिर याद रखियेगा कि स्थानीय, राष्ट्रीय व् विश्व स्तर पर मानवता हित हेतु ही नहीं संस्थागत स्तर पर भी मेरा संकल्प व्यर्थ नहीं जाता है| तो फिर यह ऐसे नही हुआ बल्कि इधर ऐसा ट्रान्जिसन तो बहुत दूर विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी का ब्रत चल रहा है |
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मै गोरखपुर मूल के व्याशी-गौतम गोत्रीय सनातन ब्राह्मण रामानन्द कुल/बिशुनपुर-223103 (जौनपुर/जमदग्निपुर) का नाती और कश्मीर(/बस्ती) मूल के त्रिफला-कश्यप गोत्रीय सनातन ब्राह्मण सारंगधर कुल/रामापुर-223225 (आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) का पौत्र था/हूँ | (था/हूँ में से जैसा भी आप समझ लें, तो गोरखपुर मूल के व्याशी-गौतम गोत्रीय सनातन ब्राह्मण रामानन्द कुल/बिशुनपुर-223103 (जौनपुर/जमदग्निपुर) और कश्मीर(/बस्ती) मूल के त्रिफला-कश्यप गोत्रीय सनातन ब्राह्मण सारंगधर कुल/रामापुर-223225 (आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) दोनों पर मुझे समान रूप से गर्व है तो कभी यह न समझना की किसी के प्रति सम्मान में कभी कमी आएगी वैसे मुझे प्रयागराज (काशी) में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ (प्राक्यज्ञ) से आविर्भवित सातों सप्तर्षियों पर गर्व है और साथ ही साथ सभी सप्तर्षि या सात के सातों सप्तर्षियों के समान अंश से काशी में आविर्भवित और विंध्य क्षेत्र पार करते हुए तमिल-तेलगू क्षेत्र को आवास क्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य ऋषि समेत आठ के आठों अष्टक ऋषि पर भी गर्व है; और इसके साथ इनके त्रिगुणन से जनित चौबीस/24 ऋषि (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की तीलियों के संख्या के बराबर) और फिर इनसे जनित सम्पूर्ण संसार को चलाने वाले सभी 108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के संख्या के बराबर) ऋषि पर गर्व और उनके प्रति समान रूप से सम्मान है|
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किस देवी का अधिकार किस देवी ने लिया यह मुझे नहीं मालूम पर सम्बंधित मानवता अभीष्ट हित उपक्रम में इस प्रयागराज (काशी) में विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक अखण्ड बाल ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी रहते हुए (इतना ही नहीं आहार-विहार-व्यवहार-आचार-विचार से आजीवन शाकाहारी व् आम तथा ख़ास सभी नसे से आजीवन दूर भी हूँ) अपनी आजीविका रत रहते हुए सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/ सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/मानवता का सर्वोच्च ऊर्जा धारक होने के साथ ही साथ समकालीन परिवर्तन को देखते हुए तत्कालीन रूप से किसी का मूल रूप या विकल्प रूप कुछ भी मौजूद न होने से राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी पाँच के पाँचों सर्वोच्च मूल पात्रों की ऊर्जा को धारण कर चुका हूँ क्योंकी इन पांचों के मूल स्वरुप में विवाह पूर्व तक अखण्ड बाल ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी एक आधारभूत और मूल भूत गुण की मौजूदगी आवश्यक है| तो फिर कर्तव्य निर्वहन ही कर रहा हूँ विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक अखण्ड बाल ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी रहते हुए अपनी आजीविका रत रहते हुए और आगे भी वैश्विक व् भारतीय समाज द्वारा स्वयं ही समुचित आचरण करते रहने पर जैसी भी समुचित ऊर्जा धारण करने की आवश्यकता होगी उसको धारण किया जाता रहेगा और 2057 तक कार्यरत रहूँगा|
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सहनशीलता की सीमा के अन्दर स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैष्विक चमत्कारिक जगत का पक्षधर हूँ और यह भी प्रामाणिक रूप से कहता हूँ की हर "सत्यम शिवम् सुंदरम" के पीछे "सत्यमेव जयते" की स्वीकारिता हो और तभी यह "सांसारिक/व्यवहारिक" जीवन सत्य इस संसार को टिका सकता है:---मुझसे कौन सा ज्ञान, विज्ञान, मेधा, प्रतिभा, पुरुषार्थ और समृद्धि यह संसार प्रदर्शित करेगा जबकि इसी प्रयागराज (काशी) में 11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003 से 11/18 सितम्बर, 2007 तक समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित अवश्था में रहने (और उसी दौरान सैद्धांतिक सफलता हेतु प्राप्ति हेतु 16-29 मई, 2006 में ही परमब्रह्म स्वरुप में आने ) के बाद 2008 में प्रथम-अर्ध्य में धर्मचक्र/ कालचक्र /समयचक्र/अशोकचक्र टूट जाने पर इस संसार के सम्पूर्ण मंदिरों/देवालयों को ऊर्जा प्रदान करने वाले प्रयागराज (काशी) के समस्त देवालयों की घूम-घूम कर पुनर्प्राण प्रतिष्ठा किये जाने के तहत धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोकचक्र की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा कर दिए जाने के साथ 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज का स्वामी होकर और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का स्वामी होकर मैं सम्पूर्ण जगत का स्वामी/जगतपति हो चुका था और इस प्रकार 11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003 से 11/18 सितम्बर, 2007 तक समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित अवश्था में रहने और उसी दौरान सैद्धांतिक सफलता हेतु प्राप्ति हेतु 16-29 मई, 2006 में ही परमब्रह्म स्वरुप में आने की तरह ही साकार रूप में सनातन राम/कृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सशरीर परमब्रम्ह/सनातन आद्या/आदिदेव/पुरातन/पुराण पुरुष तक हो चुका था तो आप लोग क्या समझे थे की केवल मेरे राम(/कृष्ण) बनने मात्र से काम चल जाता या चला? तो फिर व्यावहारिक जगत में स्वतः प्रमाणित है कि लेखन किस चरित्र को धारण करने वाले ने किया है इसका भी मान लेख को पढ़ने, समझने और ह्रदयांगम करने वाले के दिल दिमाग पर पड़ता है तो फिर मैं निशाने पर लगातार दो दशकों तक बने रहने के बावजूद भी 30 मई, 2006 को प्रयागराज (काशी) से प्रारंभित अपनी लेखनी का प्रभाव अक्टूबर, 2007 से ऑक्टूबर, 2009 के बीच भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू/बैंगलोर जैसे स्थान पर बौधिकजन के ही बीच आमजन जैसा ही रहकर ऐसे ही सबसे प्रबुद्ध समाज के माध्यम से ऐसे विचारों को वैश्विक रूप में अपने चरमोत्कर्ष परिणामों की प्राप्ति तक पंहुचाया जो समकालीन सामाजिक परिवर्तन की परिश्थितियों के आलोक में कई बार लिखने मिटाने के दौर से गुजरने के साथ अनवरत 29 अप्रैल, 2019 तक ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" के माध्यम से आधे देश और आधे विदेश सहित पांच लाख से अधिक पाठको तक पहुंचने के साथ ही साथ 31 अक्टूबर, 2019 तक अन्य सार्वजनिक संचार माध्यमों के माध्यम से अबाध गति से चलती रही|
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Elder mind born child of Goddess Saraswati is Vivek (Male) / Pragya (Female) and younger mind born Child of Goddess Saraswati is Gyan (Male)/ Vidya(Female) ::::विवेक(गिरिधर)/ महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>> >>》》अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष स्वयं मैं ही था| ===>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)
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My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 and onward:1998- 2006 /2007/2008: 2008- 2018 and onward:::::
(विश्व मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| मैंने तो 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018:1998- 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के ----बीच----- प्रामाणिक रूप से 29 मई, 2006 को ईसाइयत को पीछे छोड़ दिया और 25 मई, 2018 को इस्लामियत को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार राम/कृष्ण (और शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) प्रामाणिक रूप से हो लिया)|----------- इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल राम की कला से हुआ=====रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)
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NOW THERE WILL BE ANY POST AFTER A LONG TIME INTERVAL: elder mind born child of Goddess Saraswati is Vivek (Male) / Pragya (Female) and younger mind born Child of Goddess Saraswati is Gyan (Male)/ Vidya(Female) ::::विवेक(गिरिधर)/महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>>》》》》》》》>>>>> फिर क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर स्वयं सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष मैं ही था|
=============================================================== ===================मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय:>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|===========================फिर उलटी तलवार चला-चला कर व्यर्थ ऊर्जा व्यय मत कीजिये सही स्थान पर अपनी ऊर्जा का प्रयोग कीजिये कुतर्क और अनीति न कीजिये और न अनीति बोलिये जिसका आप पर नकारात्मक प्रभाव होता है|============ प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है....... 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत् 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =========================== 109. विष्णु गोत्र ======================= सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==========================

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My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 and onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward): >>> >>> आज के 20 वर्ष पूर्व अभीष्ट त्याग के साथ अभीष्ठ संस्थागत हित हेतु प्रयागराज (काशी) में मैं ही वैश्विक अभीष्ठ प्रयोजन हेतु संकल्पित हुआ था पर स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तन और उथलपुथल के बीच लक्ष्य में आती हुई बाधा को संज्ञान में लेते हुए 17 वर्ष पूर्व उस समय के मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर(विष्णु) ने कहाँ था परमाचार्य परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द (शिव/सोमनाथ/सोमेश्वर) और परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, जोशी (ब्रह्मा) के सम्मान की रक्षा हेतु उनके संस्थागत अभीष्ठ लक्ष्य के उद्देश्य हेतु रुक जाओं और उस रुकने में वैश्विक मानवता का अभीष्ठ हित भी निहित था अब इससे कोई इनकार नहीं सकता है और इस प्रकार 7 फरवरी, 2003 को ऐसे अभीष्ठ प्रयोजन हेतु इस मानवता के मूलकेंद्र प्रयागराज (काशी) में मै ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित हुआ था| तो यह अपने में स्पष्ट है की स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रूप से ऐसा मामला प्रेमचन्द (शिव/सोमनाथ/सोमेश्वर) और परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, जोशी (ब्रह्मा) की शक्ति से ऊपर का था इस प्रयागराज (काशी) में और तभी मैंने संकल्पित होने के बावजूद ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित होने से मना किया था तो फिर क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष मैं ही था|
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""""सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|""""
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My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward): आनन्द उनको नहीं मिलता जो निजी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीते हैं अपितु आनन्द उनको मिलता है जो दूसरों को आनन्दित करने के लिए अपनी स्वयं के निजी जिंदगी की शर्तों को बदल देते हैं:>>>>>>>>ऐसा ही हुआ था जब वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में 11 सितम्बर, 2001 (दिन मंगलवार) से ही अभीष्ठ त्याग के साथ प्रस्तावित हो प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर भी अभीष्ठ लक्ष्य सिद्धि में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय स्थिति के तहत बाधा को देखते हुए 7 फरवरी, 2003 (दिन शुक्रवार ) को मै इस प्रयागराज में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित हुआ था जिसका प्रयोजन था प्रत्यक्ष तौर पर संस्थागत अभीष्ठ हित तथा परोक्ष तौर पर सम्पूर्ण विश्वमानवता का अभीष्ट हित | और इस प्रकार ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित अवस्था के ऐसे अभीष्ट प्रयोजन के अन्तर्गत दूसरी बार पुनः स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिश्थितिओं में अप्रत्याशित बदलाव के तहत जब दिन शुक्रवार, दिनांक 7 फरवरी, 2003 से मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में अपने पूर्ण रूपेण समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/संकल्पित/समर्पित अवस्था में रहने के दौरान ही अपने संकल्प/प्रयोजन के अभीष्ठ लक्ष्य को हर सम्भव स्थिति में निश्चित रूप में प्राप्त करने/स्थापित करने हेतु मुझे सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में बीच में ही मुझे आना पड़ा और मैं बीच में ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में आकर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ठ लक्ष्य को सैद्धांतिक रूप से प्राप्त करते हुए और सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आ जाने पर ही 25 मई, 2018 को सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के तहत संस्थागत अभीष्ठ लक्ष्य को प्रत्यक्ष रूपेण पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त करते हुए आम जन जीवन जीते हुए जो अपने को प्रमाणित किया हो ऐसे में उसकी पूर्णातिपूर्णता पर कोई प्रश्नचिन्ह रह ही कहाँ गया और फिर इसके लिए अब उसके बाद भी आगे जाकर अपने अभीष्ठ त्याग, अभीष्ठ बलिदान, अभीष्ठ तप/योग/उद्यम तथा उच्चतम मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ को प्रमाणित किये जाने हेतु इस विश्व में किसी से भी किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं रही| परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आते ही 29 मई, 2006 को ही संस्थागत अभीष्ठ लक्ष्य को सैद्धांतिक रूप से प्राप्त होने पर भी मेरी ऐसी पूर्णातिपूर्ण सफलता को भी सहर्ष स्वीकार न किये जाने के आगे के क्रम के प्रयास के तहत सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आ जाने पर ही 25 मई, 2018 को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से मेरे अभीष्ठ लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति हो सकी (तो फिर ऐसे में इसमें किसी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है) तो अब ऐसी और इस प्रकार से प्राप्त हुई पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद फिर मानवता के इतिहास में मेरे अभीष्टतम त्याग, अभिष्ठतम बलिदान, अभिष्ठतम तप/योग/उद्यम तथा उच्चतम मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ पर कोई प्रश्नचिन्ह रहा ही नहीं और भी की इस संसार में अब किसी से प्रमाणपत्र की जरूरत भी नहीं रह गयी है जबकि मै स्वयं अपने में पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका हूँ जिसका प्रमाण 29 मई, 2006 और 25 मई, 2018 को अभीष्ठ लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति स्वयं अपने में प्रामाणिक है| <<<<<<<<>>>>>>>>>दूसरी बार पुनः स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिश्थितिओं में अप्रत्याशित बदलाव के तहत जब दिन शुक्रवार, दिनांक 7 फरवरी, 2003 से मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में अपने पूर्ण रूपेण समधिष्ठ/ब्रह्मलीन/संकल्पित/समर्पित अवस्था में रहने के दौरान ही अपने संकल्प/प्रयोजन के अभीष्ठ लक्ष्य को हर सम्भव स्थिति में निश्चित रूप में प्राप्त करने/स्थापित करने हेतु मुझे सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में बीच में ही मुझे आना पड़ा और मैं बीच में ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में आकर सैद्धांतिक सफलता 29 मई, 2006 को प्राप्त भी किया और साथ ही साथ 11/18 सितम्बर, 2007 (दिन मंगलवार/मंगलवार:: 7 फरवरी, 2003 (दिन शुक्रवार)>>ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित) को अपनी शोध उपाधि धारित/प्राप्त किया| तो यह अपने में स्पष्ट है की मैं कूर्मावतारी अवस्था से ऊपर की शक्ति हूँ और फिर इसके लिए और क्या प्रमाण चाहिए था? <<<<<<< >>>>>>>> वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| >>>>>>वैश्विक मानवता रूपी दीपक किसी दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| >>>>>>>>
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25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018:1998- 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति:-----स्वभावगत एकात्मकता से समष्टि की ओर; और पुनः समष्टि के अस्तित्व को प्रमाणिक करने हेतु समष्टि से एकात्मकता की ओर; पुनः एकात्मकता को प्रमाणित करने हेतु एकात्मकता से समष्टि की ओर; फिर समष्टि का अस्तित्व प्रामाणिक होने पर पुनः समष्टि से एकात्मकता की ओर; और इस प्रकार यह चक्रीय क्रम पूर्णातिपूर्ण हुआ|
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हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
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""""सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|""""
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(विश्व मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| मैंने तो 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018:1998- 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के ----बीच----- प्रामाणिक रूप से 29 मई, 2006 को ईसाइयत को पीछे छोड़ दिया और 25 मई, 2018 को इस्लामियत को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार राम/कृष्ण (और शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) प्रामाणिक रूप से हो लिया)|----------- इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल राम की कला से हुआ=====रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)
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सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम(/कृष्ण) स्वरूप की इस प्रयागराज(काशी) में आवश्यकता अगर थी 20 वर्षों तक तो सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम(/कृष्ण) स्वरूप की आवश्यकता इस प्रयागराज(काशी) आज भी है अन्यथा 25 मई, 2018 को अपना मानावताहित के साथ संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य संसार के हर यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से प्राप्त होने के बाद कोई क्षेत्र और लक्ष्य कठिन नहीं अगर मानवता के इस अभीष्ट प्रयोजन को नकारते हुए किसी भी क्षेत्र में अन्य लोगों से समझौता कर लिया जाय या सैद्धांतिक रूप से 2006/2007 में मिली सफलता के बाद 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी न हुआ होता| ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/संकल्पित अवस्था में इसी प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था|
NOTE:----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018:1998- 2006/2007/2008: 2008- 2018: सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति में -----------इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल राम की कला से हुआ=====रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|
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एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (अभीष्ट त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (अभीष्ट बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण (अभीष्ट तप/योग/उद्यम) व् इसके साथ ही साथ इनके ही समान सम्भावी अंग से आविर्भावित एक पूर्णातिपूर्ण ईस्लाम(पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमानदार) व् एक पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पतित पावन/करुणानिधि) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/पूर्णातिपूर्ण सनातन हिन्दू/सनातन धर्मी जिसने कभी भी ब्राह्मणत्व/सनातन हिन्दू/सनातन धर्म की सीमा का और इस प्रकार मानव धर्म की सीमा का कहीं भी उल्लंघन नहीं किया है|

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उल्टी तलवार चलाने की कोशिस व्यर्थ ही जानी होती है तो फिर सुनिए की मै ही समस्त विश्व मानवता की ऊर्जा धारणकर्ता >>>"""सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) जिनसे/में त्रिदेव व् त्रिदेवी और इस प्रकार इन तीनो से अदृश्यगत जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (जिनके 9 रूपों में एक रूप देवकाली) तथा उनकी जगत प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता व् जगत जननी जानकी की छाया रूपी सृष्टि का आविर्भाव मतलब समस्त सृष्टि का आविर्भाव/समापन होता है मतलब समस्त मानव समष्टि का अस्तित्व जिसमे स्वयं निहित होता है""">>>> था/हूँ जिसमे अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवालय/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/संकल्पित अवस्था में इसी प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था| फिर उलटी तलवार चला-चला कर व्यर्थ ऊर्जा व्यय मत कीजिये सही स्थान पर अपनी ऊर्जा का प्रयोग कीजिये कुतर्क और अनीति न कीजिये और न अनीति बोलिये जिसका आप पर नकारात्मक प्रभाव होता है|
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लोग समझते ही रह गए और विश्व विजय प्रयागराज (काशी) में ही 16-29 मई, 2006 और पुनः 25 मई, 2018/21 सितम्बर, 2017(24/30 नवम्बर, 2016) को विश्व के सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से हो गयी|
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11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी; धनिष्ठा नक्षत्र):-----------सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम(/कृष्ण)::--जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य से पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम की स्थापना (6-29/5/2006) और फिर पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते की स्थापना (25/05/2018) और वह भी जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य का निर्वहन करते हुए>>>>>>>>16-29/5/2006 (was only a JRF in KBCAOS, having no any involvement on University level except own duty but now faculty member in one of the 67 permanent faculty positions and even today no any involvement on University level activity except own duty): 67 permanent faculty positions sanctioned on 29/05/2006
Kedareshwar (K.) Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS:10/09/2000 to 25/05/2018 onward)
Centre of Food Technology
Centre of Bio-Technology
Centre of Bioinformatics
Centre of Behavioural and Cognitive Sciences
Centre of Environmental Science
Centre of Material Science
Department of Physical Education(Re-structure)
Centre of Globalization and Development Studies
School of Modern Languages
Department of Sociology

क्या इन्ही 67 स्थाई पदों में से ही किसी एक पद पर आसीन होते हुए कभी भी अपनी वरिष्ठता की लड़ाई लड़नी पड़ती? तो फिर मै तो केदारेश्वर की सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण स्थापना के प्रति दृढ़ संकल्प था तो फिर उस हेतु प्रयासरत रहा और 25-5-2018 को वह पूर्णातिपूर्ण सिद्ध/सफल हो गया यदि 29-5-2006 की सैद्धान्तिक सफलता को 29-10-2009 के बाद से भी किन्ही भी दृश्य व् अदृश्य कारणों से नजर अंदाज किया जा रहा था| लेकिन इन 12 वर्ष का भी कोई मूल्य होता है यह भी उन लोगों से पूछा जाय जो लोग ही धर्मराज के एक मात्र अवतार व समय को सर्वोच्च महत्ता प्रदान करने वाले है| जबकि वे अच्छे से इस हेतु मेरे विश्वव्यापक रूप से संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित होने से परिचित भी थे जिस हेतु मैंने अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, और अभीष्ट तप/योग/उद्यम सब किया था|

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जब इस दुनिया को चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाये रखने की हमारी उस आपसी लड़ाई जिससे इस सृष्टि का विनाश होने तक की स्थिति आ जाए और फिर जब राम को ही शिव, कृष्ण, विष्णु और ब्रह्मा सब कुछ स्वयं हो जाना पड़ जाय और जिससे छोभ, विद्द्वेष और अशांति का जन्म हो तो उससे हमें क्या लाभ? और फिर इस लड़ाई के परिणाम स्वरुप कौन सी देवी किस देवी का अधिकार ले रही है इसका भी पता तक भी हमें न चले| (अपनी आजीविका रत रहते हुए सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)/सर्वोच्च ऊर्जा धारण करने के साथ के साथ समकालीन परिवर्तन को देखते हुए तत्कालीन रूप से मूल रूप या विकल्प रूप कुछ भी मौजूद न होने से राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी पाँच के पाँचों सर्वोच्च मूल पात्रों की ऊर्जा को धारण कर चुका हूँ क्योंकी इनके मूल स्वरुप में विवाह पूर्व तक अखण्ड बाल ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी एक आधारभूत और मूल भूत गुण की मौजूदगी आवश्यक है|)

विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक अखण्ड बाल ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी रहते हुए (इतना ही नहीं आहार-विहार-व्यवहार-आचार-विचार से आजीवन शाकाहारी व् आम तथा ख़ास सभी नसे से आजीवन दूर भी हूँ)
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My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 and onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward): वैश्विक मानवता रूपी दीपक किसी दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा बारम्बार मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो|
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"इस विश्व मानवता के इतिहास में मेरा एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और अगर था, है और होगा तो वह भी स्वयं मै ही रहूँगा मतलब उसमें और मुझमें कोई अंतर नहीं होगा|->>>>>>>>>-------टिप्पणी: 1998-2006/2007/2008: 2008- 2018: सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम और विधि-विधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>महाशिव(राम:सदाशिव) /विवेक(गिरिधर) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम:सदाशिव(महाशिव)]]|<<<<<<>> 01-08-1976 (एक अगस्त, 1976, दिन रविवार: एक तथाकथित दलित गुरु द्वारा दी गयी जन्मतिथि)/// वास्तविक जन्मतिथि 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी; धनिष्ठा नक्षत्र)|
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तो फिर मूल स्वभाव व कर्तव्य से मैं सप्तर्षियों और अष्टक ऋषियों में पहला ऋषि कश्यप हूँ; धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र के 24 ऋषियों अनुसार सभी का केंद्र बिंदु/ऊर्जा स्रोत व् धारक तदनुसार 25वां ऋषि विष्णु हूँ और सुदर्शन चक्र के 108 ऋषियों अनुसार सभी ऋषियों का केंद्र बिंदु/ऊर्जा स्रोत व् धारक तदनुसार 109वां ऋषि, विष्णु (/राम/कृष्ण) हूँ|
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God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year.
त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :-

मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।

आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।

त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव):

कर्पूर गौरम करुणावतारम संसार सारम भुजगेन्द्र हराम|सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार केसार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

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जम्बूद्वीप(यूरेशिया=यूरोप+ एशिया) के अंतर्गत आर्यावत (ईरान से लेकर सिंगापुर और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी) के अंतर्गत भारतवर्ष/भरतखण्डे (कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी और अटक से लेकर कटक)|
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God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year.त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :-मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:-या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य)कर्पूर गौरम करुणावतारम संसार सारम भुजगेन्द्र हराम|सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार केसार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।===========================================
जम्बूद्वीप(यूरेशिया=यूरोप+ एशिया) के अंतर्गत आर्यावत (ईरान से लेकर सिंगापूर और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी) के अंतर्गत भारतवर्ष/भरतखण्डे (कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी और अटक से लेकर कटक)|===========================================
व्यक्ति का व्यक्ति से और व्यक्ति का स्थान से सम्बन्ध जब लोग जाने तब न सत्य से साक्षात्कार हो? तो जब ज्यादा उत्साह ठीक नहीं तो ज्यादा उन्माद कैसे ठीक हो सकता हैं? अक्टूबर, 2019 में भाई लोगों ने कहा की आप प्रयागराज छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं? तो मैंने कहा था की मै तो इस प्रयागराज में ही कब का फिक्स्ड (केंद्रित) हो चुका हूँ| तो भाई लोगों ने कहा की आपको इस प्रयागराज में फिक्स्ड (केंद्रित) होने की अब कोई जरूरत ही नहीं रही/है आप प्रयागराज छोड़कर जा सकते हैं| तो अब उनको बताना चाहिए की क्या उनका वह कथन और उसके ऐसे कथन के कथनाकार होने का अधिकार क्रमसः सत्य और उचित था और हैं क्या?===========================================
सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|

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मैंने तो 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के ----बीच----- प्रामाणिक रूप से 29 मई, 2006 को ईसाइयत को पीछे छोड़ दिया और 25 मई, 2018 को इस्लामियत को पीछे छोड़ दिया और इस प्रकार राम/कृष्ण (और शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) प्रामाणिक रूप से हो लिया)|----------- इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल राम की कला से हुआ=====रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)|
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My Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 and onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward): वैश्विक मानवता रूपी दीपक किसी दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा बारम्बार मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ===========================================
मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवालय/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित अवस्था में इसी प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था| फिर उलटी तलवार चला-चला कर व्यर्थ ऊर्जा व्यय मत कीजिये सही स्थान पर अपनी ऊर्जा का प्रयोग कीजिये कुतर्क और अनीति न कीजिये और न अनीति बोलिये जिसका आप पर नकारात्मक प्रभाव होता है|
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हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||

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यह स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक स्तर तक सत्य है की ईस्लाम और ईसाइयत क्रमसः राम और कृष्ण के समान्तर चलते हैं और इस प्रकार स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक स्तर तक दोनो समानान्तर रेखाओं का अस्तित्व में बने रहना एक दूसरे को असंतुलन से बचने के लिए अति आवश्यक है : 16/29 मई, 2006 को ईसाइयत से परे हो गया और 25 मई, 2018 को इस्लामियत से परे हो गया मतलब इनपर विश्व विजय प्राप्त कर लिया तो फिर आप ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित सवर्ण या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित पिछड़ा या फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित दलित या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित अल्पसंख्यक में बारम्बार क्यों उलझाते हैं जब स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक सभी स्तरों पर आप आज भी इन दोनो (ईस्लाम और ईसाइयत) से परे कभी जा न सके हों और वैश्विक स्तर पर आज भी कहीं न कहीं आप का झुकाव बना हुआ है| तो केवल और केवल तो फिर यह समझिये की इस मानवता के आज तक के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ नहीं रहा है और अगर था, है और होगा तो उसमे मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| जिस कारन से स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक सभी स्तरों पर आप का झुकाव आज भी इन दोनों के प्रति बना हुआ है वह केवल और केवल सृष्टि के सुचारु रूप से स्थानीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत संचालन हेतु ही है तो उसी प्रकार इन दोनों से परे जाकर भी और इस प्रकार इन दोनों के मकड़जाल को 16/29 मई, 2006 को और 25 मई, 2018 को मानवता के इसी मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में ही तोड़ते हुए विश्व विजय करके भी मै उन दोनों के समेत आपके (ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित सवर्ण या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित पिछड़ा या फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित दलित या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित अल्पसंख्यक) प्रति भी अपना झुकाव व् समर्पण जारी किये हुए हूँ और सहनसीलता की सीमा के अंदर रहते हुए जारी किये रहूँगा|==========================================
विवेक(गिरिधर)/ महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम:]]>>>>> >>》》अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर स्वयं सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष मैं ही था|==========================================
सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|

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मानवता का मकड़जाल कहिये या कश्यप और गौतम का मकड़जाल कहिये या सप्तर्षि और अष्टक ऋषि का मकड़जाल कहिय या धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र का मकड़जाल कहिये या सुदर्शनचक्र का मकड़जाल कहिये या की फिर मानवता का मकड़जाल कहिये यह मेरे ननिहाल (बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुर) और पैतृक गाँव (रामापुर-223225, आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) में मौजूद था जिसे बनाये रखा जाना चाहिए: गौतम गोत्रीय क्षत्रियों के वंसज इस्लामानुयाई जागीरदार नेे मेरे गाँव (रामापुर-223225, आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) समेत पाँच अन्य गाँव बस्ती जनपद से आये एक त्रिफला-कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण बाबा सारंगधर को दान में दिया गया और कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार ने मेरे ननिहाल के गाँव (बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुर) को गोरखपुर से आये एक व्यासी-गौतम गोत्रीय ब्राह्मण निवाजी बाबा को दान में दिया| ===========================================
मुझे प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ (प्राक्यज्ञ) स्थल प्रयागराज (/काशी) में आविर्भवित सातों सप्तर्षियों पर गर्व है और साथ ही साथ सभी सप्तर्षि या सात के सातों सप्तर्षियों के समान अंश से काशी में आविर्भवित और विंध्य क्षेत्र पार करते हुए तमिल-तेलगू क्षेत्र को आवास क्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य ऋषि समेत आठ के आठों अष्टक ऋषि पर भी गर्व है; और इसके साथ इनके त्रिगुणन से जनित चौबीस/24 ऋषि (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की तीलियों के संख्या के बराबर) और फिर इनसे जनित सम्पूर्ण संसार को चलाने वाले सभी 108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के संख्या के बराबर) ऋषि पर गर्व और उनके प्रति समान रूप से सम्मान है|






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मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)| =================================================================================================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| ==================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| ========================================== विवेक(गिरिधर)/ महाशिव(राम:सदाशिव)>>> विवेक(गिरिधर)/महाशिव (राम:सदाशिव) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव(महाशिव)/सनातन राम(/कृष्ण)]]>>>>> >>》》अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष स्वयं मैं ही था| ===>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|) NOTE:--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|>>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा| =========================================== जम्बूद्वीप(यूरेशिया=यूरोप+ एशिया) के अंतर्गत आर्यावत (ईरान से लेकर सिंगापूर और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी) के अंतर्गत भारतवर्ष/भरतखण्डे (कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी और अटक से लेकर कटक)| ================================================================================================ At Institution Level Only: विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)::--जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य से पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम की स्थापना (16/29-5-2006) और फिर पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते की स्थापना (25-05-2018) और वह भी जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य का निर्वहन करते हुए>>>>>>>>16/29-5-2006 (was only a JRF in KBCAOS, having no any involvement on University level except own duty but now faculty member in one of the 67 (/11) permanent faculty positions and even today no any involvement on University level activity except own duty): 67 (/11) permanent faculty positions sanctioned on 29/05/2006: Kedareshwar (K.) Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS:10/09/2000 to 25-05-2018 onward) Centre of Food Technology Centre of Biotechnology Centre of Bioinformatics Centre of Behavioural and Cognitive Sciences Centre of Environmental Science Centre of Material Science Department of Physical Education(Re-structure) Centre of Globalization and Development Studies School of Modern Languages Department of Sociology There was no need to fight for seniority in any of these 67(/11) positions if I contributed for the same but to achieve my goal perfectly in all respect it was needed and I succeeded in it on 25-05-2018. मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)| [क्या इन्ही 67 स्थाई पदों में से ही किसी एक पद पर आसीन होते हुए कभी भी अपनी वरिष्ठता की लड़ाई लड़नी पड़ती? तो फिर मै तो केदारेश्वर की सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण स्थापना के प्रति दृढ़ संकल्प था तो फिर उस हेतु प्रयासरत रहा और 25-5-2018 को वह पूर्णातिपूर्ण सिद्ध/सफल हो गया यदि 29-5-2006 की सैद्धान्तिक सफलता को 29-10-2009 के बाद से भी किन्ही भी दृश्य व् अदृश्य कारणों से नजर अंदाज किया जा रहा था| लेकिन इन 12 वर्ष का भी कोई मूल्य होता है यह भी उन लोगों से पूछा जाय जो लोग ही धर्मराज के एक मात्र अवतार व समय को सर्वोच्च महत्ता प्रदान करने वाले है| जबकि वे अच्छे से इस हेतु मेरे विश्वव्यापक रूप से संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित होने से परिचित भी थे जिस हेतु मैंने अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, और अभीष्ट तप/योग/उद्यम सब किया था]| ======================================================================================================================================================================जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| =======================================================


    

मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव/(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या /सनातन राम (/कृष्ण) (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?====तो फिर 25 मई, 2018 को प्रयागराज विश्विद्यालय, प्रयागराज में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र की स्थापना सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हो चुका है| तो फिर केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र समेत सभी नवोदित 11 केंद्र/विभाग (मेरे सशरीर परमब्रह्म, कृष्ण स्वरुप से 16-29 मई, 2006 को 67 जीवन ज्योति/जीवन का आधार/स्थाई शिक्षक पद प्राप्त किये हुए ) में तो कम से कम मेरे ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ और उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाले का निर्धारण जरूरी था क्या?---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|





















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Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र (ऋषि):विष्णु गोत्र (/ऋषि) है):----मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण) ===11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित रूप से धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 ही पा लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया| ===========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है| ============मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण)"" के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा (जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति, महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार मूल सारन्गधर के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय----व----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|================== ===============मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है|=====----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|

किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवर...