Sunday, July 12, 2020

इस संसार के आजतक के मानवता के इतिहास में शिक्षा ग्रहण करने के बाद ही गुरू दक्षिणा अदा की गयी है किन्तु मैने 11 सितम्बर 2001 को विश्वविद्यालय में आने से पूर्व अपने अभीष्ठ त्याग द्वारा गुरूकुल को वैश्विक शिव के स्वरुप में पहली गुरूदक्षिणा अदा की और उससे भी काम न चला तो फिर 07 फरवरी 2003 को अपने अभीष्ठ बलिदान द्वारा गुरूकुल को वैश्विक विष्णु के स्वरुप में दूसरी गुरूदक्षिणा अदा किया और जब इतने से भी काम न चलने वाला था तो फिर अपने अभीष्ठ तप/योग/उद्यम/यत्न द्वारा वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक शिव व् वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा अवस्था) में 29(/15-29) मई 2006 को अभीष्ठ लक्ष्र्य भेद कर गुरूकुल को तीसरी गुरूदक्षिणा (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) अदा कर दिया पर लोगों को समझ में न आया तो संयमित रूप से 12 वर्ष और तप/योग/उद्यम/यत्न और संघर्ष कर अंतिम गुरुदक्षिणा 25 मई 2018(31 जुलाई 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में उसे प्रमाणित करते हुए दिया और वैश्विक मानवता का अधिकतम सम्भव शिव/मंगल/शुभ सिद्ध हुआ| इसी बीच अपने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था) की ऊर्जा से इस प्रयागराज(/काशी) में 11/10 सितम्बर 2008 को वैश्विक विष्णु तथा वैश्विक ब्रह्मा की प्रयागराज और वैश्विक शिव की काशी में पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए वैश्विक धर्मचक्र(सभी धर्म) की स्थापना भी हुई| तो स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हर व्यक्ति और उसके कृत्य का सामना इस वैश्विक धर्मचक्र से होना निश्चित है| तब भी लोगों को समझ आये तब न या समझने का प्रयास करें तब न, तो फिर इससे ज्यादा मेरे स्तर पर विश्वविद्यालय के लिए क्या किया जा सकता है, तो व्यवहारिक सक्रियता जारी है और अन्य को उनके स्तर का अवसर दिया जा रहा है उनकी क्षमता को प्रयोग मे लाने हेतु|----------असुर कुल के लिए किसी भी सभा की आंतरिक कार्य योजना 100 प्रतिशत गोपनीय नहीं थी और न कभी 100 प्रतिशत गोपनीय हो सकती है|

इस संसार के आजतक के मानवता के इतिहास में शिक्षा ग्रहण करने के बाद ही गुरू दक्षिणा अदा की गयी है किन्तु मैने 11 सितम्बर 2001 को विश्वविद्यालय में आने से पूर्व अपने अभीष्ठ त्याग द्वारा गुरूकुल को वैश्विक शिव के स्वरुप में पहली गुरूदक्षिणा अदा की और उससे भी काम न चला तो फिर 07 फरवरी 2003 को अपने अभीष्ठ बलिदान द्वारा गुरूकुल को वैश्विक विष्णु के स्वरुप में दूसरी गुरूदक्षिणा अदा किया और जब इतने से भी काम न चलने वाला था तो फिर अपने अभीष्ठ तप/योग/उद्यम/यत्न द्वारा वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक शिव व् वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा अवस्था) में 29(/15-29) मई 2006 को अभीष्ठ लक्ष्र्य भेद कर गुरूकुल को तीसरी गुरूदक्षिणा (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) अदा कर दिया पर लोगों को समझ में न आया तो संयमित रूप से 12 वर्ष और तप/योग/उद्यम/यत्न और संघर्ष कर अंतिम गुरुदक्षिणा 25 मई 2018(31 जुलाई 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में उसे प्रमाणित करते हुए दिया और वैश्विक मानवता का अधिकतम सम्भव शिव/मंगल/शुभ सिद्ध हुआ| इसी बीच अपने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था) की ऊर्जा से इस प्रयागराज(/काशी) में 11/10 सितम्बर 2008 को वैश्विक विष्णु तथा वैश्विक ब्रह्मा की प्रयागराज और वैश्विक शिव की काशी में पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए वैश्विक धर्मचक्र(सभी धर्म) की स्थापना भी हुई| तो स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हर व्यक्ति और उसके कृत्य का सामना इस वैश्विक धर्मचक्र से होना निश्चित है| तब भी लोगों को समझ आये तब न या समझने का प्रयास करें तब न, तो फिर इससे ज्यादा मेरे स्तर पर विश्वविद्यालय के लिए क्या किया जा सकता है, तो व्यवहारिक सक्रियता जारी है और अन्य को उनके स्तर का अवसर दिया जा रहा है उनकी क्षमता को प्रयोग मे लाने हेतु|----------असुर कुल के लिए किसी भी सभा की आंतरिक कार्य योजना 100 प्रतिशत गोपनीय नहीं थी और न कभी 100 प्रतिशत गोपनीय हो सकती है| ==================================== ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते। ॐ शांति: शांति: शांतिः| वह परब्रह्म/परमब्रह्म जो दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी वह अनंत स्वयम अनंत रह गया। दूसरे शब्दों में वह परब्रह्म/परमब्रह्म सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उससे ही पूर्ण है, क्योंकि यह पूर्ण जगत उस पूर्ण से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म/परमब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म/परमब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही रहता है। NOTE:-संसार का सार=====>>>>>जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ(ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या लेकिन मिथ्या का भी अपना महत्त्व है कारन इस मिथ्या बिना ब्रह्म भी पूर्ण नहीं हो सकता) हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं >>>>>>तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिवलला के ही बन गया तो फिर राम(/कृष्ण) और शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है| == विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008) तक अखण्ड ब्रह्मचारी और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी व आहार विहार आचार विचार व जगत व्यवहार से आजीवन सदाचारी और आजीवन शाकाहारी तथा सभी प्रकार के आम व खास नशे से आजीवन दूर रहने वाला>>>> दो वर्ष (1998-2000) काशी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से नाभिकीय भौतिकी से परास्नातक की शिक्षा ग्रहणकर/उपाधि अर्जितकर चाॅदपुर सलोरी, प्रयागराज में 5 सितम्बर, 2000 से किराया के कक्ष से सुरू हुई मेरी यात्रा प्रयागराज के दारागंज (6 माह), पुनः चाॅदपुर सलोरी, कर्नलगंज, दरभंगा कालोनी और मिन्टोरोड़ प्रयागराज तक अगस्त, 2004 तक किराये के कक्ष मे रहने तक चली थी| >>>>>>और इसके बाद ही जाकर के सितम्बर, 2004 से ही 23 अक्टूबर , 2007 तक ओमगायत्री नगर सलोरी, प्रयागराज स्थित मामा जी के आवास पर रहा जहाँ रहनें के दौरान 11/18 सितम्बर, 2007 (10 मार्च, 2007) को केदारेश्वर बनर्जी वायुमण्डलीय एवम् महासागर अध्ययन केन्द्र से पहली पीएचडी की उपाधि अर्जित किया (11-09-2001/07-02-2003 से 11/18-09-2007 तक की अवधि का व्यक्तिगत परिणामी//29 मई, 2006 के संस्थागत सैद्धांतिक रूप में आयें परिणामी के साथ)|>>>>>>> और इसके बाद दो वर्ष (25 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के प्रवास पर भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर रहा और पुनः 29 अक्टूबर,2009 से आज तक विश्वविद्यालय के केदारेश्वर बनर्जी वायुमण्डलीय एवम् महासागर अध्ययन केन्द्र में शिक्षक पद पर सेवारत रहते हुए प्रयागराज मे हूँ | === रावण कुल समेत समस्त असुरकुल का मान मर्दन मैंने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (सशरीर परमब्रह्म विष्णु के जाग्रत अवस्था) में आते ही 29(/15-29) मई, 2006 को ही अपने निमित्त प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत (अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत) अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) पाकर ही कर दिया था तथा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11(/10) सितम्बर, 2008 को स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक कार्य करने वाले वैश्विक धर्मचक्र/कालचक्र की स्थापना कर दिया गया थातो फिर परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य और सत्यम शिवम सुंदरम/पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य को जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य के तौर पर प्रमाणित करवाने हेतु इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से इस अभीष्ट लक्ष्य को सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त किया| == इसमें पद, प्रतिष्ठा व् प्रतिष्ठान का कोई प्रसंग ही नहीं:------मै संकल्पित तो अप्रत्यक्ष रूप से 25 मई 1998 (/12 मई 1997) से ही केवल दूरस्थ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली भारतीय वैज्ञानिक संस्था की स्थापना हेतु ही था किन्तु कोई विकल्प न होने की स्थिति में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व-मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु 11 सितम्बर 2001 से ही वैश्विक रूप से मोर्चे पर लगा दिया गया जिसमे पहले सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) मिली और फिर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में पूर्णातिपूर्ण सफलता मिल चुकी है| ------मुझे जानने वालों, सगे-सम्बन्धियों, सहपाठियों और सहकर्मियों व संपर्क में रहने वालों के माध्यम से मेरी सम्पूर्ण कुंडली पढ़ ली गयी किन्तु केवल इतनी सी कुंडली मेरी नहीं पढ़ी गई या पढ़ी जा सकी कि मैं बिशुनपुर-रामापुर का अद्वितीय एकल युग्म अर्थात रामानन्द-सारंगधर का अद्वितीय एकल युग्म हूँ|-------सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँचों वैश्विक स्वरूप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का--मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड अर्थात 18 अप्रैल, 2008 तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहने तक-(उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता) -तथा उसके बाद भी (प्रयागराज:11 सितम्बर 2001/05 सितम्बर 2000 से 26 अक्टूबर 2007 तथा बंगलोर: 27 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर 2009 और फिर प्रयागराज: 29 अक्टूबर 2009 से आज तक) मेरे संपर्क में रहे धार्मिक आकाओं का अप्रत्यक्ष निर्देश था की शिव, राम और कृष्ण के सम्बन्ध में जितना कोई जानता जाएगा उसको अपनी जानकारी उतना ही कम लगेगी पर उनके सामर्थ्य, उनके गूढ़ रहस्य और उनकी मूल प्रवृति तथा पहचान का प्रमुख आयाम और प्राथमिक शर्त है की वे विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी रहे हैं|===यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन (ईश्वरीय) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् नाग/गन्धर्व का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था के लिए है? = 25 मई 1998/12 मई 1997 - 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 : सहस्राब्दी महापरिवर्तन काल व् उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमणकाल की इतिश्री (/अंत):--- शिव, राम और कृष्ण का वैश्विक मन्दिर ऐसे नहीं बना/बन रहा है:---->>यदि मैं इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सदाशिव/महाशिव अर्थात सनातन राम (//समानांतर इस्लाम)/कृष्ण(// सामानांतर ईसाइयत) के रूप में प्रतिस्थापित रहा हूँ और रहूँगा भी तो मुझे पता है कि मेरे विरोध में हिन्दू समाज से कोई भी चेहरा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, तथाकथित सवर्ण, तथाकथित पिछड़ा और तथाकथित दलित व जनजाति क्यों न रहा हो या रहेगा किन्तु ऐसी शक्तियों के पीछे स्थानीय से लेकर प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित रूप से स्वयं मेरे समानांतर चलने वाले इस्लाम और ईसाइयत रहे हैं और वे ही रहेंगे और वे ही हैं और यह प्राकृतिक नियम है तो फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, तथाकथित सवर्ण, तथाकथित पिछड़ा और तथाकथित दलित व जनजाति सब जान लें की वे इस दोनों के संसाधन मात्र ही रहे हैं और आगे भी संसाधन मात्र ही रहेंगे और यही सनातन संस्कृति की विडम्बना और परम प्राकृतिक रहस्य रहा है इसमें इस्लाम और ईसाइयत का कोई दोष नहीं है| = स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक शक्तियों से प्रेरित हो वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001) का 2 वर्ष तक विरोध कर वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001) से वैश्विक शिव को समाहित वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और फिर वैश्विक शिव को समाहित वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) से वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु को समाहित वैश्विक ब्रह्मा ( 29(/15-29) मई 2006) और इस प्रकार 5 वर्ष मे ही सशरीर वैश्विक परमब्रह्म विष्णु बना दिया और जब वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कॄष्ण अवस्था में आ 29 मई 2006 को अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) हासिल हो गया तो फिर 12 वर्ष तक विरोध जारी रखते हुए वैश्विक परमब्रह्म कॄष्ण को 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018) को वैश्विक परमब्रह्म राम अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) बना दिया प्रयागराज वालो ने तो इससे ज्यादा प्रयागराज का प्रभाव क्या होगा? जैसा कि सर्व विदित है कि यह अन्तिम पड़ाव होता है| अर्थात उनके विरोधी होने की क्षमता पर विराम लग गया और विरोध करना उन पर ही भारी पड़ने लगा| इस प्रकार वह सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था से वैश्विक केन्द्रीय विष्णु अवस्था में वापस आ अब स्वयम प्रयागराज(/काशी) पर ही अपना आधिपत्य कर लिया| = परमब्रह्म विष्णु अवस्था (मूल सारंगधर की मूल अवस्था)---त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव|त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देव देव॥ + त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।<<<परमब्रह्म कृष्ण अवस्था >>>सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर की मूल अवस्था)| सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ====== महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम (/कृष्ण) जिनसे मूल सारन्गधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| :=======मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार मूल सारन्गधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = वैश्विक शिव-राम-कृष्ण कहा मैंने न कि केवल शिव-राम-कृष्ण कहा मैंने:---- निर्विवादित रूप से वास्तविक संदर्भ में वैश्विक रूप से सभी जाति/पन्थ/मजहब/धर्म के लिए सर्वमान्य आदिशिव (काशी), कृष्ण (मथुरा-वृन्दाबन) और राम (अयोध्या) अर्थात वैश्विक केंद्रीय परमब्रह्म विष्णु के ये तीनों वैश्विक स्वरुप इस संसार में किसी जाति/पन्थ/मजहब/धर्म की किसी शक्ति से हार मान सकते थे क्या? तो फिर इस सहस्राब्दी-महापरिवर्तन के विगत अद्वितीय दो दसक दौर 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तनमहा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में अपने को प्रामाणिक साबित करने के बाद---आप सहस्राब्दियों तक काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन स्थित क्रमसः इन वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और वैश्विक कृष्ण मन्दिर(16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) से और प्रयागराज स्थित वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा से सकारात्मक ऊर्जा लेते रहिये और इस विश्व मानवता का चालन-संचालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण व् वर्धन-संवर्धन करते रहिये|=====मेरे केवल वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप को यह संसार व्यवहारिक रूप में सहन कर सकता हैं न? ====== तो जब मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक शिव स्वरुप को यह संसार सह नहीं पाया (11 सितम्बर 2001) तो फिर वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001) की पुनर्स्थापना/पुर्नप्राणप्रतिष्ठा अनिवार्य थी और इसी प्रकार मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप को यह संसार सहन न कर सका (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013) तो फिर वैश्विक कृष्ण मंदिर (16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) की स्थापना अनिवार्य थी/है और ठीक उसी प्रकार मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप को यह संसार सहन नहीं का सका (/30 सितम्बर 2010/25 मई 2018/31 जुलाई 2018) तो फिर वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018(9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) की स्थापना अति-अनिवार्य हो गयी थी/हैं|==इस प्रकार आप सहस्राब्दियों तक काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन स्थित क्रमसः इन वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018(9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और वैश्विक कृष्ण मन्दिर(16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) से और प्रयागराज स्थित वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा से सकारात्मक ऊर्जा लेते रहिये और इस विश्व मानवता का चालन-संचालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण व् वर्धन-संवर्धन करते रहिये| = वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा (यहाँ कृष्ण स्वरुप में ही ब्रह्मा स्थायित्व पा सकते हैं) इस प्रयागराज में आपके और हमारे बीच विद्यमान हैं तो उनका मन्दिर बनने और बनाने की जरूरत ही नहीं, तो फिर विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय में अन्याय किसके साथ हुआ? किसी के साथ नहीं, क्योंकि सहस्राब्दियों के लिए मानवीय ऊर्जा स्रोत स्वरुप वैश्विक मन्दिर तो तीनों बने/बन रहे/पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित किये गए हैं और ये तीनों तत्कालीन उच्चस्थ लोगों के कर कमलों द्वारा शुभांरम्भित किये गए हैं: काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन (जानकारी कर लिया कीजिये केवल आरोप न लगाइये वैसे भी मैं स्वयं कम से कम 1 अगस्त 2058(/ 11 नवम्बर 2057) तक आपके साथ रहूँगा) स्थित क्रमसः इन वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और वैश्विक कृष्ण मन्दिर(16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006)| = आपके योग्य इस संसार में कोई पद शेष नहीं बचा उसके सिवा जिसपर आप आसीन हैं (फरवरी, 2017)|""""मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/ करूणानिधि/ जगत तारण/पतितपावन (समानान्तर ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्णसत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (समानान्तर मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है==मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है|==हमने जाति/धर्म में कहाँ विभेद किया मैं तो केवल इतना चाहता हूँ की जितनी सहनसीलता आप सबकी है मात्र उसके अनुसार ही यह दुनिया रोचक और चमत्कारिक रूप से चलाई जाए और जाति/धर्म आधारित समाज सञ्चालन हमारी सांस्कृतिक/ सांस्कारिक रोचकता और चमत्कारिक जीवन को जीने की सभी विधा में से एक महत्वपूर्ण विधा है:---व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक (ईसाइयत-इस्लामियत व अन्य) है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|========आपके योग्य इस संसार में कोई पद शेष नहीं बचा उसके सिवा जिसपर आप आसीन हैं (फरवरी, 2017)|""""प्रयागराज (/काशी): 29 (15-29) मई, 2006/11 सितम्बर, 2008:----मैं अब भी नहीं भूला हूँ की उत्तर भारत प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष (आतंरिक) दोनों रूप से विश्वमानवता का केंद्र कैसे होता गया और अब सहस्राब्दियों तक प्रत्यक्ष (वाह्य) और परोक्ष (आतंरिक) दोनों रूप से रहेगा जबकि कभी प्रत्यक्ष (वाह्य) रूप से दक्षिण में स्थित दिखाई देता था| इसे जगत सत्य/ व्यवहारिक सत्य के तौर पर स्वीकार करवाने में सत्यम शिवम् सुंदरम/ वास्तविक सत्य/पूर्णसत्य और सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य की अहम् भूमिका रही है| ""एक आम/साधारण व्यवहारिक विश्व-नागरिक के तौर पर मैं भी सोचता हूँ की इस सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन के विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केन्द्रित कोई और ही प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत लक्ष्य प्राप्ति निमित्त 11 सितम्बर 2001 को वैश्विक शिव बन संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ होता और फिर भी स्थिति न संभालने पर 7 फरवर 2003 को कोई और ही वैश्विक विष्णु बन संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ होता और फिर लक्ष्य को न पाता देख सब कुछ समाप्त होता देख 29 (/15-29) मई 2006 को कोई और ही वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा बन और इस प्रकार सशरीर वैश्विक विष्णु की परमब्रह्म अवस्था की जाग्रत अवस्था अर्थात सशरीर परमब्रह्म कृष्ण बन कोई और ही संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो ऐसे प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को वह ही प्राप्त किया होता और इस प्रकार आगे भी कालिदास लोगों (वाह्य वैश्विक शक्ति से नियन्त्रिय हो अर्थात उससे अभयदान प्राप्त किये हुए अज्ञानता वस अपने ही आधार को समाप्त करने की वीणा उठाये तथाकथित विद्वान लोगों) से 12 वर्ष तक संघर्ष करते हुए अर्थात वास्तविक सन्दर्भ में सीधे उन वाह्य वैश्विक शक्तियों से संघर्षरत रहते हुए 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम बन बिना किसी हिंसा के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत लक्ष्य प्राप्त करता| और इतना ही नहीं प्रयागराज (/काशी) में इस संसार के सभी देवालयों/उपासना स्थलों/मंदिरों में घूम-घूम कर 11 (/10) सितम्बर 2008 को आदिशिव की पुनर्स्थापना के साथ कम से कम एक सहस्राब्दी तक वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया होता|==अन्य कोई द्वारा समुचित योग्यता धारक न होने की वजह से ही वैश्विक केंद्रीय विष्णु अर्थात अर्थात वैश्विक केंद्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल आयाम वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का दायित्व कोई एक ही निभाता चला गया और आज जब वैश्विक शिव स्वयं काशी में, वैश्विक राम स्वयं अयोध्या में और वैश्विक कृष्ण स्वयं मथुरा-वृन्दाबन में पुनर्स्थापित/ पुनर्प्रतिष्ठित कर दिए गए तो फिर वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक केंद्रीय ब्रह्मा इस प्रयागराज में हमारे साथ अर्थात इस प्रकार आप सबके मध्य विराजमान हैं| = त्रिफला-कश्यप प्रति व्यासी-गौतम:---जब सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़/आजमगढ़ जनपद अन्तर्गत रामापुर-223225(एक गौतम गोत्रीय ईस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार द्वारा बस्ती जनपद (/अवधक्षेत्र) के बाबा सारंगधर को दान में मिले 5(/6) गाँव में से 500 बीघे का एक गाँव) अंतर्गत त्रिफला-कश्यप सारंगधर कुलीन मूल भूमि वासी तत्कालीन वैश्विक शिव अर्थात अर्थात परमाचार्य परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द(/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) जब 1972 के बाद 2000 से 2005 के बीच लगभग पाँच बार जमदग्निपुर/जौनपुर जनपद अंतर्गत बिशुनपुर-223103 (एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा गोरक्षपुर/गोरखपुर जनपद के निवाजी बाबा को दान में मिला हुआ 300 बीघे का एक गाँव) अंतर्गत रामानन्द मूलभूमि वासी व्यासी-गौतम (कश्यप से व्याशी गौतम) तत्कालीन वैश्विक विष्णु अर्थात अर्थात परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) से आशीर्वाद लेने गए तो उसी समय मुझे आभास हो गया की इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में आदिशिव (/केदारेश्वर) की इस प्रयागराज विश्विद्यालय में स्थापना का सारभौमिक रूप से वास्तविक सन्दर्भ में दायित्व व्यासी-गौतम (कश्यप से व्याशी गौतम) तत्कालीन वैश्विक विष्णु अर्थात श्रीधर (/विष्णु) ने ही लिया है| ---------वह गुरु जिसने मेरे विषय सम्बन्धी/प्रोफेशनल गुरु से भी मेरा परिचय कराया था ऐसे गुरु द्वारा निर्धारित इस अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के माध्यम से सहस्राब्दी महापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहासमुद्रमंथन व उसका संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल भी गुजर गया तो क्या गलत हुआ? यह तो अच्छा ही हुआ| परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर जोशी गुरुदेव (/तत्कालीन ब्रह्मा), मैं त्रिफला-कश्यप ( व्यासी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) परमगुरु परमपिता परमेश्वर के द्वारा दिए गए अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने से अपने को कैसे रोक सकता था? == सावर्ण ॠषि, वत्स ॠषि, शाण्डिल्य(/उपमन्यु) ॠषि और गर्ग ॠषि के हार मान लेने और समझौता कर लेने से उनके उर्जा के मूल स्रोत (जिनसे इनका आविर्भाव होता है) क्रमसः कश्यप (मारीच/सूर्य) ॠषि, गौतम ॠषि, वशिष्ठ ॠषि और भारद्वाज(आन्गिरस) ॠषि; और इनके साथ साथ भृगु (जमदग्नि), अत्रि(कृष्णात्रेय(दुर्वाषा)/सोमात्रेय/दत्तात्रेय) तथा कौशिक (विश्वरथ/विश्वामित्र) ऋषि भी हार मान लेते यह कैसे हो सकता था? और फिर समस्त मानवता को नियन्त्रित करने वाले सभी 108(24(8X3)/8 (7+1)/7) मानक ऋषियों के ऊर्जा के मूल स्रोत स्वयम 109(/25) वें ॠषि, केंद्रीय विष्णु (श्रीधर) ॠषि(/गोत्र) हार मान लेते और समझौता कर लेते यह कैसे हो सकता था और इस प्रकार इस सृष्टि का अनवरत और सतत चालन-सन्चालन; रक्षण-संरक्षण; पोषण-संपोषण और वर्धन-सम्वर्धन कैसे सम्भव हो पाता? = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तनमहा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँचों आयाम में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = जिनसे मूल सारन्गधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है==मेरे सर्वकालिक सत्य कथन के पीछे सर्वकालिक प्रमाण है की समय-समय पर इन्द्र और महा-इन्द्र/महेंद्र(अर्थात शिव) पर भी जिनका एहसान रहा है ऐसे तात्कालिक मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) ने ही फरवरी 2003 में कहा था की --कुछ भी हो जाए बिना केदारेश्वर(/आदिशिव) की विधिवत स्थापना हुए तुम्हें यहाँ (प्रयागराज/काशी) से नहीं हटना है --तो मैं 7 फरवरी 2003 को यहाँ वैश्विक विष्णु के रूप में पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समर्पित हो सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात एकल स्वरुप में वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा की शक्ति से संपन्न अवस्था से गुजरते हुए उनके जाग्रत स्वरुप सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आते हुए प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (संस्थागत 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) की प्राप्ति 29 (/15-29) मई 2006 को हुई और आगे गुरु मर्यादा के पालन में 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से भी 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को अपना प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार के ऐसे संघर्ष से अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर लिया जिसके लिए 11 सितम्बर 2001 से तात्कालिक मूल सारंगधर(श्रीधर:विष्णु) ने ही आशीर्वाद सहित वैश्विक शिव के रूप में पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/संकल्पित/समर्पित किया था और वैश्विक मानवता का अधिकतम सम्भव शिव/मंगल/कल्याण/शुभ/हित सिद्ध हुआ| इसी बीच अपने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था) की ऊर्जा से इस प्रयागराज(/काशी) में 11/10 सितम्बर 2008 को वैश्विक विष्णु तथा वैश्विक ब्रह्मा की प्रयागराज और वैश्विक शिव की काशी में पुनस्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोकचक्र की स्थापना भी हुई| तो स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हर व्यक्ति और उसके कृत्य का सामना इस वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोकचक्र से होना निश्चित है| = विश्व-एक गाँव व्यवस्था अर्थात वैश्विक व्यवस्था 25 मई 1998/12 मई 1997 से लेकर 25 मई/31 जुलाई 2018 तक में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्थापित हो चुकी है चाहे स्थानीय व्यवस्था को विश्वास में लेने हेतु हम दिसम्बर, 2018 से आभासीय रूप से इसे राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था भले बना दिए हैं:------इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के दौरान :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा-परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान:---अपने से संदर्भित प्रत्येक दायित्व को स्थानीय से लेकर वैश्विक सन्दर्भ तक निभाया गया अर्थात मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँचों आयाम (मुख्य राम-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता/समर्पण मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/सदाशिव/महाशिव (विष्णु परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आद्या/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था:-----विवेक (राशिनाम गिरिधर):====गिरिधर(कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|=== ==विवेक (राशिनाम गिरिधर)-- विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| === विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:शशांकधर: राकेशधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती """"विवेक (राशिनाम गिरिधर)""""| =======इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के दौरान :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा-परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान:---अपने से संदर्भित प्रत्येक दायित्व को स्थानीय से लेकर वैश्विक सन्दर्भ तक निभाया गया अर्थात मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँचों आयाम (मुख्य राम-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव (विष्णु परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आद्या/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था:-<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के दौरान :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा-परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विगत अद्वितीय दो दसक के दौरान--यदि--कोई वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) था/है, कोई वैश्विक विष्णु (श्रीधर) था/है और कोई वैश्विक शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) था/है तो मैं वह वैश्विक राम था/हूँ जो इन तीनों शक्तियों को इस प्रयागराज (/काशी) में एक किया और स्वयं वैश्विक आदिशिव शिव, वैश्विक परमब्रह्म/सनातन कृष्ण (और साथ ही वैश्विक केंद्रीय ब्रह्मा) और वैश्विक परमब्रह्म/सनातन राम बना और अब विश्व-मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के बाद इनकी पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा क्रमसः काशी, मथुरा-वृन्दाबन और अयोध्या में होने के साथ इस संसार के समस्त 7/8/24/108 ऋषियों/गोत्रों का केंद्रीय बिंदु/ऊर्जा श्रोत, 108 वां (/25 वां/) ऋषि वैश्विक केंद्रीय विष्णु के रूप में अर्थात वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के रूप में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में विद्यमान हूँ और कम से कम 11 नवम्बर 2057/01 अगस्त 2058 तक केंद्रित रहूँगा| = जहाँ पहुँचने के बाद कोई दौड़ शेष नहीं रह जाती है(25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/9 नवम्बर, 2019/ 30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/13 अप्रैल 2018):---मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: ""धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार"""| वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा; जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं|| = इस प्रकार आप सहस्राब्दियों तक काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन स्थित क्रमसः इन वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और वैश्विक कृष्ण मन्दिर(16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) से और प्रयागराज स्थित वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा से सकारात्मक ऊर्जा लेते रहिये और इस विश्व मानवता का चालन-संचालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण व् वर्धन-संवर्धन करते रहिये|=====मेरे केवल वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप को यह संसार व्यवहारिक रूप में सहन कर सकता हैं न? ====== तो जब मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक शिव स्वरुप को यह संसार सह नहीं पाया (11 सितम्बर 2001) तो फिर वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001) की पुनर्स्थापना/पुर्नप्राणप्रतिष्ठा अनिवार्य थी और इसी प्रकार मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप को यह संसार सहन न कर सका (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013) तो फिर वैश्विक कृष्ण मंदिर (16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) की स्थापना अनिवार्य थी/है और ठीक उसी प्रकार मेरे पूर्णातिपूर्ण वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप को यह संसार सहन नहीं का सका (/30 सितम्बर 201025 मई 2018/31 जुलाई 2018) तो फिर वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018(9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) की स्थापना अति-अनिवार्य हो गयी थी/हैं|===इस प्रकार आप सहस्राब्दियों तक काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन स्थित क्रमसः इन वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), वैश्विक राम मन्दिर (9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018(9 नवम्बर 2019/30 सितम्बर 2010/5 अगस्त 2020/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और वैश्विक कृष्ण मन्दिर(16 मार्च 2014/28 अगस्त 2013/29 (/15-29) मई 2006) से और प्रयागराज स्थित वैश्विक केंद्रीय विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा से सकारात्मक ऊर्जा लेते रहिये और इस विश्व मानवता का चालन-संचालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण व् वर्धन-संवर्धन करते रहिये| = जिनसे मूल सारन्गधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है====मेरे सर्वकालिक सत्य कथन के पीछे सर्वकालिक प्रमाण है की समय-समय पर इन्द्र और महा-इन्द्र/महेंद्र(अर्थात शिव) पर भी जिनका एहसान रहा है ऐसे तात्कालिक मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) ने ही फरवरी 2003 में कहा था की ---कुछ भी हो जाए बिना केदारेश्वर(/आदिशिव) की विधिवत स्थापना हुए तुम्हें यहाँ (प्रयागराज/काशी) से नहीं हटना है ----तो मैं 7 फरवरी 2003 को यहाँ वैश्विक विष्णु के रूप में पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/संकल्पित/समर्पित हो सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात एकल स्वरुप में वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा की शक्ति से संपन्न अवस्था से गुजरते हुए उनके जाग्रत स्वरुप सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आते हुए प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (संस्थागत 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) की प्राप्ति 29 (/15-29) मई 2006 को हुई और आगे गुरु मर्यादा के पालन में 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से भी 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को अपना प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार के ऐसे संघर्ष से अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर लिया जिसके लिए 11 सितम्बर 2001 से तात्कालिक मूल सारंगधर(श्रीधर:विष्णु) ने ही आशीर्वाद सहित वैश्विक शिव के रूप में पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/संकल्पित/समर्पित किया था और वैश्विक मानवता का अधिकतम सम्भव शिव/मंगल/कल्याण/शुभ/हित सिद्ध हुआ| इसी बीच अपने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था) की ऊर्जा से इस प्रयागराज(/काशी) में 11/10 सितम्बर 2008 को वैश्विक विष्णु तथा वैश्विक ब्रह्मा की प्रयागराज और वैश्विक शिव की काशी में पुनस्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र की स्थापना भी हुई| तो स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हर व्यक्ति और उसके कृत्य का सामना इस वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र से होना निश्चित है| = जो सर्वसमर्थ हो सब विधि से आपका और इस प्रकार इस सम्पूर्ण विश्व-मानवता का हर संभव शिव/कल्याण/मंगल/शुभ किया हो और करता रहा हो उसके स्वयं के ऊपर किसी वाद का निर्णय सुनने और सुनाने का अधिकार उसी को होता है:--मुझे पता था की 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के समापन होने पर ""आप सब समझौता करेंगे मेरा ही गुनाह निकालने हेतु और इस प्रकार प्राप्त बहुमत से गुनाह मेरा ही निकाला जाएगा"" तो फिर तो काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), राम (30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त 2013(/16 मार्च 2014/29 मई 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न?==विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की ऊर्जा से धर्मचक्र की पुनर्स्थापना इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में 11 सितम्बर, 2008 को हो चुकी है और यह तब से ही वैश्विक स्तर पर अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया था/है:<=>इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 22/25 वर्ष केंद्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट लक्ष्य(67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को हाथ से जाता देख जब 29 (/15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? फिर भी जो सामाजिकता के पक्षधर रहे उनके हेतु आगे 12 वर्ष संयमित रूप से संघर्ष कर इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट सफलता प्राप्त कर इसे सामाजिक रूप से भी प्रमाणित करवाना ही था तो वह 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इसे प्रमाणित करवा अपने परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्रमाणित करवा लिया जो की सहस्राब्दियों की मिसाल बन गया तो उसके बाद भी मेरा प्रतिरोध किये जाना व्यर्थ की कवायद और शक्तियों का दुरुपयोग है|-- मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)==यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन (ईश्वरीय) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् नाग/गन्धर्व का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था के लिए है? = मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (जिनसे मूल सारन्गधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है)/सनातन आदिदेव/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती + महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी+महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = = सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| तो फिर ऋषि या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि मण्डल एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल/संतति का प्रदुभाव होता है| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि-जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या -इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| ऐसी सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | तो दोनों में से किसी एक का भी अनुशरण करते हैं आप तो धर्मचक्र/कालचक्र/कथित अशोकचक्र का सामना आप सकुशल कर लेंगे| | 108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ 4.अत्रि, 5.भृगु, 6.आंगिरस , 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास, 10.च्यवन, 11.पुलह , 12.आष्टिषेण , 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव, 19.शांकृत्य, 20.आप्लवान, 21.सौकालीन, 22.सोपायन, 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व, 26.मैत्रेय, 27.पराशर, 28.उतथ्य, 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक, 33.अग्निवेष भारद्वाज, 34.कौण्डिन्य , 35.मित्रवरुण, 36.कपिल , 37.शक्ति , 38.पौलस्त्य, 39.दक्ष , 40.सांख्यायन कौशिक, 41.जमदग्नि, 42.कृष्णात्रेय, 43.भार्गव, 44.हारीत 45.धनञ्जय, 46.जैमिनी , 47.आश्वलायन 48.पुलस्त्य, 49.भारद्वाज , 50.कुत्स , 51.उद्दालक , 52.पातंजलि , 52.कौत्स , 54.कर्दम , 55.पाणिनि , 56.वत्स , 57.विश्वामित्र , 58.अगस्त्य , 59.कुश , 60.जमदग्नि कौशिक , 61.कुशिक , 62.देवराज , 63.धृत कौशिक, 64.किंडव , 65.कर्ण, 66.जातुकर्ण , 67.उपमन्यु , 68.गोभिल , 69. मुद्गल , 70.सुनक , 71.शाखाएं , 72.कल्पिष , 73.मनु , 74.माण्डब्य, 75.अम्बरीष, 76.उपलभ्य 77.व्याघ्रपाद , 78.जावाल , 79.धौम्य , 80.यागवल्क्य , 81.और्व , 82.दृढ़ , 83.उद्वाह , 84.रोहित , 85.सुपर्ण , 86.गाल्व 87.अनूप , 88.मार्कण्डेय , 89.अनावृक , 90.आपस्तम्ब , 91.उत्पत्ति शाखा , 92.यास्क , 93.वीतहब्य , 94.वासुकि , 95.दालभ्य , 96.आयास्य , 97.लौंगाक्षि , 88.चित्र , 99.आसुरि , 100.शौनक , 101.पंचशाखा , 102.सावर्णि , 103.कात्यायन, 104.कंचन , 105.अलम्पायन , 106.अव्यय , 107.विल्च , 108.शांकल्य , === 109. विष्णु गोत्र = सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँचों वैश्विक स्वरूप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का--मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड अर्थात 18 अप्रैल, 2008 तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहने तक-(उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता) -तथा उसके बाद भी (प्रयागराज:11 सितम्बर 2001/05 सितम्बर 2000 से 26 अक्टूबर 2007 तथा बंगलोर: 27 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर 2009 और फिर प्रयागराज: 29 अक्टूबर 2009 से आज तक) मेरे संपर्क में रहे धार्मिक आकाओं का अप्रत्यक्ष निर्देश था की शिव, राम और कृष्ण के सम्बन्ध में जितना कोई जानता जाएगा उसको अपनी जानकारी उतना ही कम लगेगी पर उनके सामर्थ्य, उनके गूढ़ रहस्य और उनकी मूल प्रवृति तथा पहचान का प्रमुख आयाम और प्राथमिक शर्त है की वे विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी रहे हैं|==यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन (ईश्वरीय) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् नाग/गन्धर्व का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था के लिए है? = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: """"धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार""""""| वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा; जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं|| = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तनमहा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँचों आयाम में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = यह संसार तो त्याग; बलिदान व् तप/योग/उद्यम/यत्न से ही चलता है तो यह दायित्व किसी न किसी को निभाना ही रहता है पर आम समाज अर्थात बहु संख्यक समाज के लिए=>संख्याबल, बुद्धिबल, धनबल, बाहुबल और साथ ही साथ पशुबल/असुरबल के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रयोग से जातीय और धार्मिक समायोजन करने के बजाय सांस्कृतिक/सांस्कारिक नारकीय अवस्था से उन्नयन का ठोस प्रयास और इस हेतु समायोजन किया जाता तो शायद जातीय और धार्मिक भेद कब का मिट गया होता (29(/15-29) मई, 2006); जिसमें की कहीं भी संख्याबल, बुद्धिबल, धनबल, बाहुबल और साथ ही साथ पशुबल/असुरबल से किसी भी प्रकार सीधा सम्बन्ध नहीं है और किसी भी प्रकार उनकी आवश्यकता का प्रसंग नहीं आता है| सांस्कृतिक/सांस्कारिक नारकीय अवस्था से उन्नयन हेतु केवल हर विश्व-नागरिक को स्वयं या अपने परिवार या व्यक्तिगत समाज/जाति/धर्म के अंदर प्रेरणा स्वयं उत्पन्न करना पड़ता है या केवल अत्यंत कम मात्रा में उच्च संस्कार व् संस्कृति वाले उत्प्रेरक व्यक्ति या व्यक्ति समूह की आवश्यकता होती है| = यह सृष्टि (/संसार) तो त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न से ही चलता है तो इसे किस सहनशीलता तक रोचक और चमत्कारिक बनाना है उसके अनुरूप ही किसी न किसी को यह दायित्व उठाना ही पड़ता है तो इसके लिए मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव ( अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण) को दोष न दीजिये अगर अपने हिस्से में आये किसी दायित्व से आप अपनी जान छुड़ाना चाह रहे हैं| जैसा सन्दर्भ हो:--जगत सत्य/व्यवहारिक सत्य; पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य; और पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य का पालन आवश्यक है); जो की त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम पर आधारित होता है| = = किसी को कोई कष्ट न हो इस संसार में मेरी किसी से अनावश्यक तुलना करने में तो ज्ञात कि जब तक मानवीय संस्कृति स्वयं दैवीय संस्कृति में नहीं बदल जाती है तब तक मेरी तरफ से स्वयं के कश्यप गोत्र/ऋषि से कोई समझौता नहीं :: मेरा स्वयं मूल्यांकित सांसारिक रूप से सर्वोच्च और समर्थ जीवन दर्शन स्वयं के 11 नवम्बर 2057/01 अगस्त 2058 (11 नवम्बर 1975/01 अगस्त 1976 से कम से कम 11 नवम्बर 2057/01 अगस्त 2058 ) तक के सामान्य जीवन हेतु क्या है? विगत अद्वितीय दो दशकों से अधिक समय तक इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज भी मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था में विराजमान मुझ त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र)--का इस संसार में एक और केवल एक समकक्ष हैं और वे हैं --बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु)| = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:--सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी विगत अद्वितीय दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| 11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008 तक विश्व-मानवता की समस्त ऊर्जा केवल एकल निकाय में ही सीमित रही है फिर 10 /11 सितम्बर 2008 को विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज तथा शिव काशी में और आगे अन्य में| अर्थात वह एकल निकाय है ""सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/परमब्रह्म विष्णु (जिनसे सांगत शक्तियो समेत मूल सारंगधर के अर्थात इस संसार के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है)/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)'"|==वैश्विक व्यवस्था की विधिवत स्थापना 11 सितम्बर 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) को ही हो गयी और इस प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/ कथित अशोकचक्र 11 सितम्बर 2008 से वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहा है तो इससे सामना करने हेतु तैयार रहे हर कोई| = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018):सहस्राब्दी-महापरिवर्तन व उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल के दौर के का समापन होने के विगत दो अद्वितीय दसक के दौर में विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) हुई गतिविधियां प्रमाण हैं कि सहस्राब्दियों हेतु विश्व-मानवता सञ्चालन हेतु सभी अति-उपभक्तावादी मानसिकता पाले हुए स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की वैश्विक शक्तियां अब अवश्य ही विचार करें कि अब प्रयोग बहुत हो चुका है तो ठोस रूप में मानवता को भी मजबूत आधार चाहिए उनका पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन और सतत चालन-संचालन हेतु अन्यथा सहस्राब्दियों हेतु स्थापित वैश्विक विश्व-मानवता की व्यवस्था अपना मानवीय ऊर्जा स्रोत एक सहस्राब्दी पहले ही खो सकती है| = इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था के जिस स्वरुप की इस विश्वमानवता के अभीष्ट हित में जैसे ही आवश्यकता आती गयी उसी क्रम में वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक राम स्वरुप की अवस्था को मैं प्राप्त होता गया और अब तीनों शक्ति स्रोत अर्थात वैश्विक शिव के काशी, वैश्विक राम के अयोध्या और वैश्विक कृष्ण के मथुरा-वृन्दाबन में स्थापित हो जाने के बाद समयानुकूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) अवस्था में तथा प्रोफेशनल रूप में कश्यप ऋषि स्वरुप में सांसारिक विष्णु (विष्णुकान्त (राशिनाम: वेदांग): विष्णु/राम) और ब्रह्मा (कृष्णकान्त (राशिनाम: वासुदेव):कृष्ण) के साथ विद्यमान हूँ|==इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) अर्थात सहस्राब्दीमहापरिवर्तन /विश्वमहापरिवर्तन/विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन और उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल के दौरान ""सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/परमब्रह्म विष्णु (जिनसे सांगत शक्तियो समेत मूल सारंगधर के अर्थात इस संसार के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है)/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)'" के पांच के पांचो स्वरुप अर्थात सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था के जिस स्वरुप की इस विश्वमानवता के अभीष्ट हित में जैसे ही आवश्यकता आती गयी उसी क्रम में वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक राम स्वरुप की अवस्था को मैं प्राप्त होता गया और अब तीनों शक्ति स्रोत अर्थात वैश्विक शिव के काशी, वैश्विक राम के अयोध्या और वैश्विक कृष्ण के मथुरा-वृन्दाबन में स्थापित हो जाने के बाद समयानुकूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) में अवस्था तथा प्रोफेशनल रूप में कश्यप ऋषि स्वरुप में सांसारिक विष्णु(विष्णुकान्त(वेदांग)/राम) और ब्रह्मा (कृष्णकान्त (वासुदेव):कृष्ण) के साथ इसी विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में विद्यमान हूँ| = आम भारतीय व् वैश्विक जनमानस दसकों पीछे रहा तो फिर मुझे भी दसकों पीछे आना पड़ा:-आज से 16 वर्ष पूर्व ही केवल रावणकुल ही नहीं इस सम्पूर्ण संसार के समस्त असुर कुल को परास्त करते हुए इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) में आते हुए प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत तथा परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और आगे इसी सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप की ऊर्जा से प्रयागराज में वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा की तथा वैश्विक शिव की काशी में स्थापना (10/11 सितम्बर 2008) और इस प्रकार वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र के स्थापना (11 सितम्बर 2008):->विगत दी अद्वितीय दसक के दौर में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और आगे वैश्विक शिव व् वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा (29(/15-29) मई, 2006) अर्थात वैश्विक परमब्रह्म विष्णु और इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) में आते हुए प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत तथा परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और आगे इसी सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप की ऊर्जा से प्रयागराज में वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा की तथा वैश्विक शिव की काशी में स्थापना (10/11 सितम्बर 2008) और इस प्रकार वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र के स्थापना (11 सितम्बर 2008) इसके बाद इसी प्रयागराज (/काशी) में 12 वर्ष और संघर्षरत रह 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में प्राप्त संस्थागत और मानवतागत सफलता को सामाजिक रूप से स्थापित करवाना| ==29 (/15-29) मई, 2006 विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) के लिए सर्वोच्च सम्मान का दिन था जिस दिन के बाद से एक-एक दिन आगे बढ़ते हुए 10/11 सितम्बर 2008 को वैश्विक धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोकचक्र की स्थापना के साथ प्रत्यक्ष रूप से दक्षिण भारत दिखाई देने वाला विश्व-मानवता का केंद्र उत्तर भारत ही बन गया और अब सहस्राब्दियों तक यह ही विश्व-मानवता का केंद्र रहेगा वैसे तो अप्रत्यक्ष केंद्र उत्तर भारत सदैव ही रहा है| == सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था(जिनसे सांगत शक्तियो समेत मूल सारंगधर के अर्थात इस संसार के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है)/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण) के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा>जगत जननी जानकी >जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।। अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = दिसम्बर, 2018:=>सायद इनको नहीं पता था की बिना किसी प्रकार की हिंसा के मैं इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अपना प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को ही प्राप्त कर चुका हूँ | स्थानीय व् वैश्विक संस्थागत तथा मानवतागत व्यवस्था हेतु पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कौन?=यहाँ तो स्वयं हर प्रकार से असत्य होते हुए भी लोग व्यवस्था को ही पटरी से उतार देते हैं और नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान की छाया में पद, प्रतिष्ठा व् प्रतिष्ठान का लाभ लेने वाले अनियंत्रित हो इसे स्वयं तोड़ देते हैं (दिसम्बर, 2018) जबकि जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य; पूर्ण सत्य/सत्यम शिव सुंदरम/वास्तविक सत्य; पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परम् सत्य होते हुए भी 29(/15-29) मई 2006 से 25 मई 2018(/31जुलाई 2018) अर्थात 12 वर्ष स्थानीय व् वैश्विक संस्थागत तथा मानवतागत व्यवस्था हेतु पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो व्यावहारिक स्तर पर गुरु की व्यक्तिगत गरिमा को बनाये रखने हेतु 12 वर्ष संयमित रूप से संघर्ष किया न की किसी शक्ति के भय से (गुरु की गरिमा में 12 वर्ष ससंघर्ष समर्पित रहा) जिसने मुझे सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (29(/15-29) मई 2006) से सशरीर परमब्रह्म राम (25 मई 2018(/31 जुलाई 2018)) बना दिया| दिसम्बर, 2018:--सायद इनको नहीं पता था की बिना किसी प्रकार की हिंसा के मैं इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अपना प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को ही प्राप्त कर चुका हूँ | = मैंने ऐसे लोगों को कुबेर का स्वामी नहीं माना है और न किसी को मानने की सलाह दूंगा बल्कि ठग विद्या का ही स्वामी कहूंगा जो 14 रूपये की सम्पत्ति में 1 रुपया अपना मिलाकर सामूहिक संपत्ति पर अपने नाम की मुहर लगवा ले|============हर कोई अपना कृत्य करने के लिए स्वतंत्र है पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रया तो होगी ही तो उसी तरह से प्रतिक्रया होती रहेगी जब तक किसी विशेष नाम को लेकर सनातन सिद्धांत का अनाधिकारिक हनन किया जाएगा या जाता रहेगा====मुझ बिशुनपुर(223103)-रामापुर(223225) एकल युग्म इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म अर्थात """मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)"""" को ही कैसा संकोच जब कोई अपने संतान का नाम रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण रखने में कोई संकोच नहीं किया या करे? ---मैं ही एक मात्र ऐसा शिक्षक हूँ जिसने ऐसे रावणकुल को आदिशिवकुल के परजीवी होने पर तो कोई एतराज नहीं किया पर ऐसे छद्मकुल (रावणकुल) का अस्थायी शिक्षक होने में व्यक्तिगत रूप से आपत्ति जता दिया था और इस प्रकार ऐसे छद्मकुल (रावणकुल) का शिक्षक न तो बना और न ऐसे छद्मकुल अर्थात रावणकुल में शिक्षक बनाने हेतु कभी आवेदन किया और आदिशिवकुल का ही स्थाई शिक्षक बना हुआ हूँ जिसमे ही प्रथम शोध छात्र भी रहा हूँ| ======वैश्विक व्यवस्था की विधिवत स्थापना 11 सितम्बर 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) को ही हो गयी और इस प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/ कथित अशोकचक्र 11 सितम्बर 2008 से वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहा है तो आप सब अपने अन्दर छुपे रावण को मारिये या धर्मचक्र का स्थानीय स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक सामना कीजिये| किस रावण या रावणकुल की बात मैं करूँ वह रावणकुल जो स्वयं 11 सितम्बर 2001 से अभी तक केदारेश्वर/आदिशिव का परजीवी बना हुआ है, जबकि यहाँ केदारेश्वर/आदिशिव के आविर्भावकर्ता की भी अवस्था प्राप्ति रही है| मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण) के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|===>>जो सर्वसमर्थ हो सब विधि से हर संभव शिव/कल्याण/मंगल/शुभ आपका किया हो और करता रहा हो उसके स्वयं के ऊपर किसी वाद का निर्णय सुनाने का अधिकार उसी को होता है:---- मुझे पता था की 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के समापन होने पर """"आप सब समझौता करेंगे मेरा ही गुनाह निकालने हेतु और इस प्रकार प्राप्त बहुमत से गुनाह मेरा ही निकाला जाएगा"""" तो फिर तो काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), राम (30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त 2013(/16 मार्च 2014/29 मई 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न?==विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की ऊर्जा से धर्मचक्र की पुनर्स्थापना इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में 11 सितम्बर, 2008 को हो चुकी है और यह तब से ही वैश्विक स्तर पर अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया था/है:<<=>>इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 22/25 वर्ष केंद्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट लक्ष्य(67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को हाथ से जाता देख जब 29 (/15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? फिर भी जो सामाजिकता के पक्षधर रहे उनके हेतु आगे 12 वर्ष संयमित रूप से संघर्ष कर इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट सफलता प्राप्त कर इसे सामाजिक रूप से भी प्रमाणित करवाना ही था तो वह 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इसे प्रमाणित करवा अपने परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्रमाणित करवा लिया जो की सहस्राब्दियों की मिसाल बन गया तो उसके बाद भी मेरा प्रतिरोध किये जाना व्यर्थ की कवायद और शक्तियों का दुरुपयोग है|---- मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)==यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन (ईश्वरीय) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् नाग/गन्धर्व का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था के लिए है?<>जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|<>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पद पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)| = मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)==यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन (ईश्वरीय) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् नाग/गन्धर्व का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था के लिए है?<=>जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|==इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 22/25 वर्ष केंद्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट लक्ष्य(67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को हाथ से जाता देख जब 29 (/15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? फिर भी जो सामाजिकता के पक्षधर रहे उनके हेतु आगे 12 वर्ष संयमित रूप से संघर्ष कर इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट सफलता प्राप्त कर इसे सामाजिक रूप से भी प्रमाणित करवाना ही था तो वह 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इसे प्रमाणित करवा अपने परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्रमाणित करवा लिया जो की सहस्राब्दियों की मिसाल बन गया तो उसके बाद भी मेरा प्रतिरोध किये जाना व्यर्थ की कवायद और शक्तियों का दुरुपयोग है| = हमने जाति/धर्म में कहाँ विभेद किया मैं तो केवल इतना चाहता हूँ की जितनी सहनसीलता आप सबकी है मात्र उसके अनुसार ही यह दुनिया रोचक और चमत्कारिक रूप से चलाई जाए और जाति/धर्म आधारित समाज सञ्चालन हमारी सांस्कृतिक/सांस्कारिक रोचकता और चमत्कारिक जीवन को जीने की सभी विधा में से एक महत्वपूर्ण विधा है:---व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक (ईसाइयत-इस्लामियत व अन्य) है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| =मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/=/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (/=/मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| = हमने जाति/धर्म में कहाँ विभेद किया मैं तो केवल इतना चाहता हूँ की जितनी सहनसीलता आप सबकी है मात्र उसके अनुसार ही यह दुनिया रोचक और चमत्कारिक रूप से चलाई जाए और जाति/धर्म आधारित समाज सञ्चालन हमारी सांस्कृतिक/सांस्कारिक रोचकता और चमत्कारिक जीवन को जीने की सभी विधा में से एक महत्वपूर्ण विधा है ---मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम (/कृष्ण):--यह भी विचार करना चाहिए था न की जब 22/25 वर्षों में मैंने इस प्रयागराज (/काशी) ऐसा प्रामाणिक दायित्व निभाया है तो फिर इस संसार में मेरा एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ और उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला कौन हो सकता था या है जब सम्पूर्ण देवी-देवताओं समेत समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव मुझसे ही होता आया है:===सनातन राम (/कृष्ण)/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा>जगत जननी जानकी >जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।। अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| = बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225: विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोवर्धन अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:-विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के, 24 ऋषि मण्डल के या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा), कौशिक/विश्वामित्र आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है| और फिर इन्ही से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| = ऐसी ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप, स्वयं हूँ और साथ ही साथ 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु (ऊर्जा स्रोत) मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि स्वयं ही हूँ | 108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ 4.अत्रि, 5.भृगु, 6.आंगिरस , 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास, 10.च्यवन, 11.पुलह , 12.आष्टिषेण , 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव, 19.शांकृत्य, 20.आप्लवान, 21.सौकालीन, 22.सोपायन, 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व, 26.मैत्रेय, 27.पराशर, 28.उतथ्य, 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक, 33.अग्निवेष भारद्वाज, 34.कौण्डिन्य , 35.मित्रवरुण, 36.कपिल , 37.शक्ति , 38.पौलस्त्य, 39.दक्ष , 40.सांख्यायन कौशिक, 41.जमदग्नि, 42.कृष्णात्रेय, 43.भार्गव, 44.हारीत 45.धनञ्जय, 46.जैमिनी , 47.आश्वलायन 48.पुलस्त्य, 49.भारद्वाज , 50.कुत्स , 51.उद्दालक , 52.पातंजलि , 52.कौत्स , 54.कर्दम , 55.पाणिनि , 56.वत्स , 57.विश्वामित्र , 58.अगस्त्य , 59.कुश , 60.जमदग्नि कौशिक , 61.कुशिक , 62.देवराज , 63.धृत कौशिक, 64.किंडव , 65.कर्ण, 66.जातुकर्ण , 67.उपमन्यु , 68.गोभिल , 69. मुद्गल , 70.सुनक , 71.शाखाएं , 72.कल्पिष , 73.मनु , 74.माण्डब्य, 75.अम्बरीष, 76.उपलभ्य 77.व्याघ्रपाद , 78.जावाल , 79.धौम्य , 80.यागवल्क्य , 81.और्व , 82.दृढ़ , 83.उद्वाह , 84.रोहित , 85.सुपर्ण , 86.गाल्व 87.अनूप , 88.मार्कण्डेय , 89.अनावृक , 90.आपस्तम्ब , 91.उत्पत्ति शाखा , 92.यास्क , 93.वीतहब्य , 94.वासुकि , 95.दालभ्य , 96.आयास्य , 97.लौंगाक्षि , 88.चित्र , 99.आसुरि , 100.शौनक , 101.पंचशाखा , 102.सावर्णि , 103.कात्यायन, 104.कंचन , 105.अलम्पायन , 106.अव्यय , 107.विल्च , 108.शांकल्य , = 109. विष्णु गोत्र = अपने दिव्य प्रभाव और त्याग, बलिदान तथा तप/योग/उद्यम/यत्न से इस वैश्विक युग में प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित हो भी वैश्विक कोई नहीं हो सकता था क्या? ===वैश्विक शिव, राम और कृष्ण का वैश्विक मन्दिर सम्बन्ध में मैं पहले ही चुका हूँ की जहाँ तक नौतिकता और चरित्र की बात है उसमे मै अपने सिवा इस संसार में किसी की गारंटी नहीं लेता हूँ स्वयं अपने परिवार के किसी सदस्य का भी नहीं| ===>>शिव, राम और कृष्ण का वैश्विक मन्दिर ऐसे नहीं बना/बन रहा है:---->>स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक शक्तियों से प्रेरित हो वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001) का 2 वर्ष तक विरोध कर वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001) से वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और फिर वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) से वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा ( 29(/15-29) मई 2006) और इस प्रकार 5 वर्ष मे ही सशरीर वैश्विक परमब्रह्म विष्णु बना दिया और जब वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कॄष्ण अवस्था में आ 29 मई 2006 को अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) हासिल हो गया तो फिर 12 वर्ष तक विरोध जारी रखते हुए वैश्विक परमब्रह्म कॄष्ण को 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018) को वैश्विक परमब्रह्म राम अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) बना दिया प्रयागराज वालो ने तो इससे ज्यादा प्रयागराज का प्रभाव क्या होगा? जैसा कि सर्व विदित है कि यह अन्तिम पड़ाव होता है| अर्थात उनके विरोधी होने की क्षमता पर विराम लग गया और विरोध करना उन पर ही भारी पड़ने लगा| इस प्रकार वह सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था से वैश्विक केन्द्रीय विष्णु अवस्था में वापस आ अब स्वयम प्रयागराज(/काशी) पर ही अपना आधिपत्य कर लिया| == प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त तत्कालीन मूल सारंगधर (अर्थात वरिष्ठ केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) ने 07 फरवरी 2003 को इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में दूसरी बार अर्थात वैश्विक विष्णु के रूप में मुझे यहाँ ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित करते हुए """""(प्रथम बार तो 11 सितम्बर 2001 को ही वैश्विक शिव में रूप में यहाँ ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित कर चुके थे जिसका समुचित परिणाम यह रहा की विश्व-मानवता का शिवत्व/कल्याण/मंगल कायम रहा)""""" कहा था की बिना अभीष्ट सफलता प्राप्त हुए तुमको यहां से कहीं नहीं जाना है तो फिर स्वयं को वैश्विक ब्रह्मा के रूप में ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित करते हुए और इस प्रकार वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का संयुक्त अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण के स्वरुप धारण करते हुए संस्थागत अभीष्ट सफलता 29 (/15-29) मई 2006 (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को प्राप्त कर लिया और आगे 12 वर्ष तक संयमित रूप से संघर्ष करते हुए उसे बिना किसी प्रकार की हिंसा के 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण रूप से हांसिल कर प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता को सामाजिक रूप से प्रमाणित करवा लिया|<=>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)| == 11 सितम्बर, 2001 को ही मैं स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् वैश्विक स्तर के संघर्ष में वैश्विक स्तर पर दॉँव पर लग चुका था:---दूरस्थ स्थिति अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत वैज्ञानिक संस्थान निमित्त 25 मई 1998(/12 मई 1997) से ही संकल्पित था फिर भी प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवातागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु मुझ नाभिकीय भौतिकी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से परास्नातक बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225) एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का 25 वर्ष की अखण्ड ब्रह्मचर्य अवस्था में वैश्विक रूप से संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय सीत-युद्ध के बीच 11 सितम्बर, 2001 को दूरस्थ स्थित संस्थागत निमित्त संकल्प से विरत कर इस संसार के सबसे संवेदनशील स्थान विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु दाँव पर लगाया गया था अर्थात मुझे संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था और परिणामतः विश्व-मानवता का शिवत्व/कल्याण/मंगल कायम रहा| )<===>प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त तत्कालीन मूल सारंगधर (अर्थात वरिष्ठ केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) ने 07 फरवरी 2003 को इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में दूसरी बार अर्थात वैश्विक विष्णु के रूप में मुझे यहाँ ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित करते हुए """""(प्रथम बार तो 11 सितम्बर 2001 को ही वैश्विक शिव में रूप में यहाँ ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित कर चुके थे जिसका समुचित परिणाम यह रहा की विश्व-मानवता का शिवत्व/कल्याण/मंगल कायम रहा)""""" कहा था की बिना अभीष्ट सफलता प्राप्त हुए तुमको यहां से कहीं नहीं जाना है तो फिर स्वयं को वैश्विक ब्रह्मा के रूप में ब्रह्मलीन/समर्पित/समाधिष्ठ/संकल्पित करते हुए और इस प्रकार वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का संयुक्त अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण के स्वरुप धारण करते हुए संस्थागत अभीष्ट सफलता 29 (/15-29) मई 2006 (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को प्राप्त कर लिया और आगे 12 वर्ष तक संयमित रूप से संघर्ष करते हुए उसे बिना किसी प्रकार की हिंसा के 25 मई 2018 (/31 जुलाई 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण रूप से हांसिल कर पूर्णातिपूर्ण सफलता को सामाजिक रूप से प्रमाणित करवा लिया|| = मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था अर्थात केन्द्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे इस संसार के पांच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का सांगत देवियों समेत आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त सृष्टि अर्थात विश्व मानवता का आविर्भाव होता है: कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु मिले ऊर्जा स्रोत के तीनों प्रतीक (शिव, राम और कृष्ण का वैश्विक मन्दिर) की ऊर्जा का मुझसे अनावश्यक टकराव में अपव्यय न कीजिये (मूलभूत अनिवार्य योग्यता जिसमें थी वही राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा पाँचों दायित्व का निर्वहन किया और उसी का पांचो शक्तियों पर वास्तविक एकाधिकार रहा इसमें सतह पर कार्यरत और आमजन के बीच औसत जीवन जीते हुए पद, प्रतिष्ठा प्रतिष्ठान का लाभ लेने वालों को कोई कष्ट अगर है तो यह गलत है)===>> मुझ बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर युग्म का इस संसार में कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला नहीं है तो 22(/25) वर्ष के सर्वांगीण दायित्व और उसके अनुरूप कर्तव्य तथा किसी व्यक्ति या समूह का बिना कोई सीधा ऋण व योगदान लिए संस्थागत व् मानवतागत उपलब्धि पर नजर दौड़ाइए (अगस्त 2017 आते आते मानवीय जीवन के तीनों ऋण: देव, ऋषि/गुरु व् पितृ ऋण पूर्ण कर चुका हूँ): मुझ का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई 2006 या 10/11 सितम्बर 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा|>>>>मैं ही भगवा (केंद्रीय विष्णु:समस्त मानक 24(/7)/108 ऋषि/गोत्र का ऊर्जा स्रोत/केन्द्र बिंदु अर्थात 25/109 वां अर्थात अन्तिम ऋषि/गोत्र जिनसे इस समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव हुआ है) और मैं ही तिरंगा (त्रिफला-कश्यप:प्रथम ऋषि): ""मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था"" जिनसे इस संसार के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव हुआ है:--बदले हुए स्थानीय से लेकर वैश्विक परिस्थिति और परिदृश्य के अनुरूप भी इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में मेरा स्थाई रूप में बने रहना उतना ही महत्त्व रखता है जितना की 25 मई, 1998 (12 मई, 1997/11 सितम्बर 2001) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान अर्थात बीते हुए सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौरान की परिस्थिति और परिदृश्य में था तो फिर कम से कम 11 नवम्बर 2057 (/01 अगस्त 2058) तक मुझे आप सब के बीच इस प्रयागराज (/काशी) में भौतिक रूप से स्थाई तौर पर अवश्य ही रहना है|---आप पाँचों में से जो भी नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत पर चलते हुए कमजोर पड़ा मैं तो उसी के साथ हो लिया क्योंकि मुझे स्थानीय से लेकर वैश्विक सन्दर्भ तक नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत की रक्षा करनी ही करनी थी/है|---विगत दो अद्वितीय दशक से अधिक के समय में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज काशी में अगर पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य (//समानान्तर इस्लाम) को पता है कि मैं ही 11 सितम्बर 2001/11 सितम्बर 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021) अर्थात वैश्विक शिव रहा हूँ--और--मै ही 30 सितम्बर 2010/09 नवम्बर 2019/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018 अर्थात वैश्विक राम रहा हूँ--तथा--पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगततारन/करूणानिधि/पतितपावन (समानान्तर ईसाइयत) को यह पता की मैं ही 28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014/29 (/15-29) मई 2006 अर्थात मै ही वैश्विक कृष्ण रहा हूँ तो सनातन हिन्दू समेत सम्पूर्ण विश्व समाज को यह भी पता होना चाहिए की मैं ही 07 फरवरी 2003 और 29 (/15-29) मई 2006 अर्थात मैं ही वैश्विक वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी रहा हूँ अर्थात केंद्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ हूँ अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव और इस प्रकार सनातन आदि देव//सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ हूँ जिससे मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँच के पाँचो आयाम का सांगत देविओं समेत आविर्भाव हुआ है| = 29 अप्रैल, 2019 की ब्लॉग पोस्ट की तिथि पर गौर कीजियेगा: 9 नवम्बर, 2019 (तदनुसार 30 सितम्बर, 2010)/5 अगस्त, 2020 के पहले की है अर्थात इस संसार की सर्वकालिक सर्वोच्च शक्ति की ब्लॉग पोस्ट है अर्थात परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते की ब्लॉग पोस्ट है जो वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम के साथ ही साथ व्यावहारिक सत्य/जगतसत्य को भी प्रमाणित कर दिखा चुका था| तो अब कम से कम एक सहस्राब्दी तक के लिए अयोध्या (9 नवम्बर, 2019 (तदनुसार 30 सितम्बर, 2010)/5 अगस्त, 2020), काशी (11 सितम्बर, 2008) और मथुरा (16 नवम्बर, 2014 (/28 अगस्त, 2013) केंद्रित ऐसी शक्तियों से ऊर्जा लेते रहिये और बहुत ज्यादा उत्तेजना में न रहते हुए समझदारी से कार्य कीजिये|<=>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| =========== तिथि 11 सितम्बर 2008 ( /11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) दिवस बृहस्पतिवार/गुरूवार को काशी जाकर तत्कालीन रूप से अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की ऊर्जा से शिव को वैश्विक शिव के रूप में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित किया था और इस प्रकार वैश्विक धर्मचक्र/कालचक्र/कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया था| कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥ उस पर भी मैं आपके सम्मुख हूँ तो फिर आप सब (/आप सबके मुख्य माध्यम मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) ) की इक्षा शक्ति में कितना सम्बल रहा है:------आप लोगों ने ( मुख्य माध्यम:-मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु, आगे चलकर जिनके मूल स्वरुप अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु परमब्रह्म अवस्था को मैं प्राप्त हुआ), ने अपने स्वीकारोक्ति, सहमति और आशीर्वाद सहित इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत मुझे 11 सितम्बर 2001 और फिर पुनः 07 फरवरी, 2003 को समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया था और विशेष परिस्थिति आ जाने पर आवश्यकता पड़ने पर इसी सिद्धि/लक्ष्य हेतु मैंने स्वयं ही स्वयं को 29 (/15-29) मई, 2006 को समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया था उस पर भी मैं आपके सम्मुख हूँ तो फिर आप सब (/आप सबके मुख्य माध्यम मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) ) की इक्षा शक्ति में कितना सम्बल रहा है और इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल का इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान के साथ अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के साथ अंत हुआ: ---- कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥ अर्थात: चेतना (ब्रह्म प्राप्ति) के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, और कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए| = ========================================== किसी जाति या पंथ से आप हों पर सुसंस्कार और स्वच्छता पूर्वक रहने हेतु जिससे विश्व-मानवता व् आत्मा को शांति और मजबूत स्थायित्व प्राप्त होता है ऐसे संस्कार व् स्वच्छता को बनाये रखने हेतु भी कोई वाह्य धन-सम्पदा या; सामाजिक व सरकारी सहायता की आवश्यता होती है क्या? इसके सिवा की आप अपनी सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा में से कुछ ऊर्जा अपनी स्थितिज ऊर्जा में रूपांतरित करने हेतु व्यय करें अर्थात अपने संस्कृति-संस्कार के वर्धन-सम्वर्धन व् तन-मन की स्वच्छता पर व्यय करें? सतही ज्ञान पर आधारित होकर कृष्ण बनने का बहुत चलन हो गया है जिसका पर्याय चरित्रहीन या काला होने से आप लेना प्रारम्भ कर दिए हैं तो यह याद रखियेगा कि शायद यह परमब्रह्म अवस्था वाले कृष्ण (जो मानवता का कलुष हर के उसको निर्मल बना दे) ने ही अर्जुन से कहा था: श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 15 श्लोक 9:-- रूप(आकर्षक या डरावना), शब्द (सुरीला या कर्कश), गंध (सुगंध या दुर्गन्ध), स्पर्श (स्नेहिल या कटु) और रस (सुरस या कषैला) का हर एक प्राणी पर असर होता है और इससे कोई इनकार नहीं कर सकता पर जो इस सब के बावजूद संतुलित व्यव्हार करता है वही सज्जन है अर्थात वही पण्डित है| श्रोत्रम्, चक्षुः, स्पर्शनम्, च, रसनम्, घ्राणम्, एव, च, अधिष्ठाय, मनः, च, अयम्, विषयान्, उपसेवते।।9।। भावार्थ : श्रोत्र (कान), चक्षु (नेत्र) त्वचा, जिह्वा तथा नासा और मन के माध्यम से ही यह (जीवात्मा) विषयों का उपभोग करता है । Meaning : This soul, a part of God, enjoys the sense objects i.e. sound, touch, form, taste, smell etc by means of ears, eyes, and skin, and tongue, nose and mind only. Then the soul itself has to experience the results of those actions. अनुवाद: (अयम्) यह परमात्मा - अंश जीव आत्मा (श्रोत्राम्) कान (चक्षुः) आँख (च) और (स्पर्शनम्) त्वचा (च) और (रसनम्) रसना (घ्राणम्) नाक (च) और (मनः) मनके (अधिष्ठाय) माध्यम से (एव) ही (विषयान्) विषयों अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि का (उपसेवते) सेवन करता है। फिर उस का कर्म भोग जीवात्मा को ही भोगना पड़ता है। (9) =========================================== रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं| दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच में श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है.. “रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी। सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।” रस रूप गंध शब्द स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें.!!- = बिशुनपुर-223103 व रामापुर-23225 का एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>किसी एक ही का या दोनों ही का डमी या प्रॉक्सी नहीं अद्वितीय मूल प्रति हूँ रामानन्द और सारंगधर के अद्वितीय एकल युग्म का:--------जिसके रहते इस संसार से शिवत्व (कल्याण/उदारता) की भावना इस संसार से समाप्त नहीं हो सकती है तो ऐसे सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) के रहते हुए केदारेश्वर (आदि शिव) को समाप्त हुआ कैसे देखा जा सकता था? तो ऐसी स्थिति आयी थी की शिव और ब्रह्मा दोनों स्वयं विष्णु में ही समाहित रहे विगत दो दसक के प्रारंभिक दशक में परिणामतः राम और कृष्ण का आविर्भाव और इस प्रकार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव तो निश्चित ही था अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) के पांच के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव निश्चित था|==== शिव और शिवा:सती:गौरी की भी जो आतंरिक सुरक्षा शक्ति (कवच) हो वह ही त्रयम्बक है और वह त्रयम्बक कौन हो सकता है?-----विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात जो शिव और शिवा की भी रक्षा कर सके वह ही शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) को प्राप्त करने वाला ही होगा जिसके रहते इस संसार से शिवत्व (कल्याण/उदारता) की भावना इस संसार से समाप्त नहीं हो सकती है तो ऐसे सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) के रहते हुए केदारेश्वर (आदि शिव) को समाप्त हुआ कैसे देखा जा सकता था? तो ऐसी स्थिति आयी थी की शिव और ब्रह्मा दोनों स्वयं विष्णु में ही समाहित रहे विगत दो दसक के प्रारंभिक दशक में परिणामतः राम और कृष्ण का आविर्भाव और इस प्रकार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव तो निश्चित ही था अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) के पांच के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव निश्चित था| == हे जगदम्बा! जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जगदम्बा (देवकाली) को स्वयं उस जानकी और आपकी पहचान दोनों को कभी भी किसी भी प्रकार नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| == शिव और शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति (कवच): त्रयम्बक शिव---ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। शिवा:सती:गौरी---ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। NOTE: त्रयम्बक---विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) === कश्मीर स्वयं कश्मीर ही रहेगा और कन्याकुमारी स्वयं कन्याकुमारी ही रहेगा और यह रस्शाकसी युगों-युगों तक चलती रहेगी (यहाँ एफ्रो-अमेरिकन जैसा कुछ नहीं है):----मेरे निरपेक्ष होने के निहितार्थ में एक मूल आयाम यह भी है की मुझे अपने देश भारत और अपने पड़ोसी देश (श्रीलंका और बांग्लादेश) में मजबूत बेस (आधार) बनाकर हजारों वर्ष के लिए जिन देशों में अंग्रेज रहते हैं वहाँ जाकर अफ्रीका के लोगों के हित में अंग्रेजों से लड़ाई नहीं करना है और इस प्रकार अपने देश को भी नश्लवाद के आधार पर विभाजित कर उनका जीवन बर्बाद कर हर किसी को गैरवाह नहीं बनाना है (गैरवाहों की संख्या आज-कल अतीव तीव्र गति से बढ़ी जा रही है शायद कम से कम इस युग में गैरवाह का व्यापक अर्थ आप सभी अच्छी तरह से समझते हैं: प्रवृति यहाँ तक बढ़ गयी है की जो गैरवाह नहीं है उसे येन-केन प्रकारेण गैरवाह बनाया जा रहा है और गैरवाह बनना स्वीकार न होने पर उनका सामाजिक असहयोग किया जा रहा है); अर्थात मेरे देश में कम से कम गैरवाह रहें जिससे सुख शान्ति बनी रहे| = यह लेखन गोस्वामी तुलसीदास के "तुलसी स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा" की तरह ही है:===11 सितम्बर, 2001 से 29(/15-29) मई, 2006 तक में ही वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा के उचित दायित्व का निर्वहन करते हुए और इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण हो सच्चे सन्दर्भ में अपने कार्य को पूर्ण करने वाला जो व्यास के कृत्य (लेखन) को भी 30 मई, 2006 से विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) (जो की प्रथम भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र है) से अनवरत ऑरकुट, ब्लॉग और फेसबुक पर जारी रखा (पर 29(/15-29) मई, 2006 को ही पूर्ण कार्य को पूर्ण नहीं माना गया तो फिर 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आते हुए सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से इसे 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण किया गया)| यह लेखन गोस्वामी तुलसीदास के "तुलसी स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा" की तरह ही है जिसका प्रभाव प्रबुद्ध जन तक स्वतंत्र रूप से होकर आम जन तक सीधे पंहुचता रहा है जिसे पढ़ने वाले कहते हैं पढ़ता हूँ पर अपनी सुरक्षा कारणों से कमेन्ट या लाइक नहीं करता हूँ; तो यह 2019 से सार केंद्रित हो गया जो की उसी लेखन के संक्षिप्त स्वरुप में हैं जो 2007-2009 के बीच में द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र दक्षिण के किष्किंधा क्षेत्र स्थित मधुबन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलोर में बहुचर्चित हुआ करता था बस कुछ सम सामयिक परिवर्तन के साथ है| == व्यापक सन्दर्भ में लें संकुचित मानसिकता से प्रतिक्रया न दें और इस प्रकार गलत कार्य को बढ़ावा न दें: यह उच्च संस्कार व् संस्कृति का केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र है(विश्व मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र) है तो उच्च से उच्चतम उद्देश्य को लेकर समाज और देश के प्रति समर्पित सिपाही के घर के अन्दर घुसकर स्वयंसेवा नहीं करते हैं बल्कि केवल उनका आत्मिक सहयोग तथा मनोबल और उत्साह वर्धन करते हैं अन्यथा उच्च से उच्चतम उद्देश्य को लेकर समाज और देश के प्रति समर्पित सिपाहियों का अपना समाज परजीवी बनकर पंगु होता जाता है और और परिणाम स्वरुप समस्त समाज का अधः पतन होता है | अतः जहाँ जरूरत हो और जितनी जरूरत हो स्वयंसेवक वहॉं उसके अनुसार ही सेवा सुख वितरित करें या अपनी और अपने करीबियों के घर ही स्वयंसेवा स्वयं कर लें अन्यथा स्वयंसेवा शब्द से ही लोग घृणा करने लगेंगे| == उद्धव गोपिकाओं को ही ज्ञान शिखा ह्रदय परिवर्तन नहीं कर सके सके तो ऐसे में स्पष्ट है कि वे उलटे कृष्ण को ही ज्ञान सिखा नहीं सकते फिर सनातन राम (/कृष्ण) अर्थात परमब्रह्म राम (कृष्ण) को क्या ज्ञान शिखाएँगे? == उद्धव गोपिकाओं को ही ज्ञान शिखा ह्रदय परिवर्तन नहीं कर सके सके तो ऐसे में स्पष्ट है कि वे उलटे कृष्ण को ही ज्ञान सिखा नहीं सकते? फिर सनातन राम (/कृष्ण) अर्थात परमब्रह्म राम (कृष्ण) को क्या ज्ञान शिखाएँगे| NOTE:---तुम कितने निष्ठुर हो कृष्ण? तो फिर जो कृष्ण स्वयं परमब्रह्म राम (/कृष्ण) अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) हो चुका हो वह कितना अधिक निष्ठुर होगा? तभी तो सत्यम शिवम् सुंदरम/पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य और परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते का परिपालन होगा न? ================ 11 सितम्बर, 2008 को पुनर्स्थापित वैश्विक धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म) /कालचक /कथित रूप से अशोक चक्र से साक्षात्कार हर स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर तक के व्यक्ति व् व्यक्ति समूह से होना ही होना है:----सहस्राब्दी महापरिवर्तन व् उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल का भी समापन हो जाने पर वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण के वैश्विक मन्दिर आवश्यक इसलिए थे/हैं क्योंकि ईश्वरीय दिव्य शक्ति लिए किसी भी व्यक्तित्व का भौतिक जीवन एक बहुत छोटे काल का होता है तो सहस्राब्दियों हेतु जो शिव, राम और कृष्ण आपके ईश्वर और आदर्श हैं और जिनसे आपको ऊर्जा मिलती हो उनका प्रतीक(/आकर्षक छवि) भव्य स्वरुप में वैश्विक स्तर तक का रखें जिससे आप हमेशा प्रेरणा लेते रहें | तो फिर <===>25 मई 1998/12 मई 1997 - 25 मई 2018/31 जुलाई 2018 : सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन काल व् उसके संक्रमण व् उत्तर संक्रमणकाल की इतिश्री (/अंत)<===>के बाद सहस्राब्दियों हेतु ऐसे ऊर्जा स्रोत के प्रति आस्था-निष्ठा-प्रेम व् अनुराग प्रदर्शन ऐसे प्रतीक के माध्यम से बहुत ही जरूरी था|====मैंने स्थानीय से लेकर वैश्विक संघर्ष बीच सशरीर वैश्विक कृष्ण के स्वरुप में अपना लक्ष्य 29 (/15-29) मई 2006 को ही पूर्ण कर लिया था तो वैश्विक कृष्ण मंदिर अर्थात 28 अगस्त 2013 (वैश्विक कृष्ण मंदिर:16 मार्च 2014/29 (/15-29) मई 2006; स्वयं में उस ऊर्जा का प्रतीक है जो प्रमाणित करता रहेगा की वैश्विक स्तर तक कृष्ण का दायित्व निभाने वाला इस संसार की किसी भी सत्ता के आगे नहीं झुकता है;----11(/10) सितम्बर 2008 को अपने सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण की ऊर्जा से इस प्रयागराज(/काशी) शिव को वैश्विक शिव (विष्णु और ब्रह्मा को प्रयागराज और शिव को काशी) के रूप में प्रतिस्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित करते हुए वैश्विक धर्मचक्र(सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म)/कालचक/कथित रूप से अशोक चक्र की पुनर्स्थापना कर दी गयी और इस प्रकार वैश्विक शिव मंदिर अर्थात 11 सितम्बर 2008(/11 सितम्बर 2001/19 मार्च 2018/13 दिसम्बर 2021) को यह प्रमाणित किया गया की वैश्विक शिवत्व(/कल्याण) का भाव लिए ऊर्जा का यह प्रतीक अर्थात वैश्विक शिव मन्दिर वह प्रमाण है की मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में इस दुनिया की किसी भी सत्ता के समक्ष झुका नहीं हूँ; और उसी प्रकार वैश्विक कृष्ण के रूप में स्थापित अपनी सफलता अर्थात केदारेश्वर (/आदिशिव) की स्थापना को 12 वर्ष पूर्ण संयम के साथ संघर्षरत रहते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान के प्रयोग से सामाजिक रूप से भी प्रमाणित करवा लिया न, तो फिर ऐसे राम के अति संयमित दायित्व का निर्वहन हुआ तो इस प्रकार वैश्विक राम मंदिर अर्थात 30 सितम्बर 2010/09 नवम्बर 2019/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018, स्वयं में उस ऊर्जा का वह प्रतीक है जो प्रमाणित करता रहेगा की वैश्विक स्तर तक राम का दायित्व निभाने वाला इस संसार की किसी भी सत्ता के आगे नहीं झुकता है| = सांसारिक राम (विष्णुकान्त:(राशिगत: वेदाँग)/विष्णु) और कृष्ण (कृष्णकान्त:(राशिगत:वासुदेव)/ब्रह्मा) तो इस प्रयागराज में मेरे अर्थात आप के ही पास है पर सांसारिक शिव चाहिए तो वह भी जान लीजिये:------हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते हैं और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास हैं|<==>भाई-बंधु-भगिनी-माता-पिता-सखा-सहपाठी-कुल-गुरुकुल-सगे-सम्बन्धी-नात-रिस्तेदार-जाति-पन्थ-समाज की कमजोरी व निकृष्ट असुर समाज की गलती की सजा देविओं को क्यों? तो काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021//11 सितम्बर 2001), राम (30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त 2013(/16 मार्च 2014/29 मई 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न?==यह विश्व-मानवता अभी कम से कम एक सहस्राब्दी तक चलाये जाने की नीव विगत दो अद्वितीय दसक में रखी गयी है न तो फिर स्पष्ट है की इस विश्व-मानवता/सृस्टि को कम से कम एक सहस्राब्दी तक तो चलना ही चलना है ऐसे में मुझ त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) का आपसे भौतिक सम्बन्ध केवल और केवल 11 नवम्बर 1975 (/1 अगस्त 1976) से 11 नवम्बर 2057 (/1 अगस्त 2058) तक या इससे कुछ अधिक तक का ही है तो वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर आपको चाहिए ही था| इसके साथ ही आपको विदित हो कि वैश्विक विष्णु (विष्णुकान्त (वेदाँग)/राम) और वैश्विक ब्रह्मा (कृष्णकान्त/कृष्ण (वाशुदेव)) तो इस प्रयागराज में सर्व सुलभ हैं ही|<==>जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|<>यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार भौतिकता विहीन प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?===यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?<==>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)|==प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट सफलता को हाथ से जाता देख जब 29 (15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| = बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225: विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:-विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = कोई कहा पाण्डेय सामान्य विधि/प्रक्रिया से प्रयागराज विश्वविद्यालय स्टेट विश्वविद्यालय से अपने केंद्रीय स्वरुप को नहीं प्राप्त करता; और कोई कहा की ऐसे केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र/विभाग व् उनके समेत 11 नए केंद्र/विभाग की स्थापना (11 सितम्बर, 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) नहीं होती हैं पर ये सब तो हो गए लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहा और ऐसे विधि/प्रक्रिया/प्रोसेस के साथ ही साथ सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/महा-समुद्र-मंथन व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल का भी दौर गुजर गया| लेकिन आपको विदित हो कि कोई स्वयं भले ही जानता रहा हो पर वास्तविक सन्दर्भ में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य(67पारिवारिक सदस्य/11परिवार) 29 (/15-29)मई, 2006को हांसिल हो जाने के पहले मैंने कहीं भी अपना कुल व् गोत्र प्रकट नहीं किया था अर्थात कुल और गोत्र आधार पर मैंने कोई सफलता पायी हो ऐसा नहीं रहा तो फिर आपको अपनी पहचान हेतु समाज चाहिए न तो फिर 29 मई, 2006 के बाद से ही मैंने अपना दोनों तरफा प्राकृतिक रूप से पेटेन्ट कुल और गोत्र आपकी सुविधा के लिए प्रकट किया की आप मेरा पीछा कर सकें और मुझे भी समाज का सुचा रु रूप से चालन-सञ्चालन, रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण व् वर्धन-संवर्धन में सुविधा मिले और इस हेतु आपका मार्ग प्रशस्त करने हेतु अपने ब्लॉग और सोसल मीडिया के अन्य माध्यम के प्रयोग से अनुभव व् सच्चाई प्रकट करता रहा| और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य के निमित्त पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन-तीन बार संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो क्रमिक रूप से वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003)और फिर वैश्विक ब्रह्मा ( 29 (/15-29) मई, 2006) होते हुए इसी क्रम में मै वैश्विक सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) से वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त हो बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया|कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु मिले ऊर्जा स्रोत के तीनों प्रतीक (शिव, राम और कृष्ण का वैश्विक मन्दिर) की ऊर्जा का मुझसे अनावश्यक टकराव में अपव्यय न कीजिये (मूलभूत अनिवार्य योग्यता जिसमें थी वही राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा पाँचों दायित्व का निर्वहन किया और उसी का पांचो शक्तियों पर वास्तविक एकाधिकार रहा इसमें सतह पर कार्यरत और आमजन के बीच औसत जीवन जीते हुए पद, प्रतिष्ठा प्रतिष्ठान का लाभ लेने वालों को कोई कष्ट अगर है तो यह गलत है) ::==>> मुझ बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर युग्म का इस संसार में कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला नहीं है तो 22(/25) वर्ष के सर्वांगीण दायित्व और उसके अनुरूप कर्तव्य तथा किसी व्यक्ति या समूह का बिना कोई सीधा ऋण व योगदान लिए संस्थागत व् मानवतागत उपलब्धि पर नजर दौड़ाइए (अगस्त 2017 आते आते मानवीय जीवन के तीनों ऋण: देव, ऋषि/गुरु व् पितृ ऋण पूर्ण कर चुका हूँ): मुझ का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई 2006 या 10/11 सितम्बर 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा|>>>>मैं ही भगवा (केंद्रीय विष्णु:समस्त मानक 24(/7)/108 ऋषि का ऊर्जा स्रोत/केन्द्र बिंदु अर्थात 25/109 वां अर्थात अन्तिम ऋषि/गोत्र जिनसे इस समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव हुआ है) और मैं ही तिरंगा (त्रिफला-कश्यप:प्रथम ऋषि): ""मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था"" जिनसे इस संसार के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव हुआ है:--बदले हुए स्थानीय से लेकर वैश्विक परिस्थिति और परिदृश्य के अनुरूप भी इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में मेरा स्थाई रूप में बने रहना उतना ही महत्त्व रखता है जितना की 25 मई, 1998 (12 मई, 1997/11 सितम्बर 2001) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान अर्थात बीते हुए सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौरान की परिस्थिति और परिदृश्य में था तो फिर कम से कम 11 नवम्बर 2057 (/01 अगस्त 2058) तक मुझे आप सब के बीच इस प्रयागराज (/काशी) में भौतिक रूप से स्थाई तौर पर अवश्य ही रहना है|-आप पाँचों में से जो भी नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत पर चलते हुए कमजोर पड़ा मैं तो उसी के साथ हो लिया क्योंकि मुझे स्थानीय से लेकर वैश्विक सन्दर्भ तक नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत की रक्षा करनी ही करनी थी/है|-विगत दो अद्वितीय दशक से अधिक के समय में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज काशी में अगर पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य (//समानान्तर इस्लाम) को पता है कि मैं ही 11 सितम्बर 2001/11 सितम्बर 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021) अर्थात वैश्विक शिव रहा हूँ--और--मै ही 30 सितम्बर 2010/09 नवम्बर 2019/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018 अर्थात वैश्विक राम रहा हूँ-तथा--पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगततारन/करूणानिधि/पतितपावन (समानान्तर ईसाइयत) को यह पता की मैं ही 28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014/29 (/15-29) मई 2006 अर्थात मै ही वैश्विक कृष्ण रहा हूँ तो सनातन हिन्दू समेत सम्पूर्ण विश्व समाज को यह भी पता होना चाहिए की मैं ही 07 फरवरी 2003 और 29 (/15-29) मई 2006 अर्थात मैं ही वैश्विक वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी रहा हूँ अर्थात केंद्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ हूँ अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव और इस प्रकार सनातन आदि देव//सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ हूँ जिससे मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँच के पाँचो आयाम का सांगत देविओं समेत आविर्भाव हुआ है| = 11 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (काशी) में स्थापित वैश्विक धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोक चक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक आपका साक्षात्कार समुचित समय पर अवश्य ही लेगा:-----वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और वैश्विक ब्रह्मा (15 (/15-29) मई 2006) के स्वरुप से साक्षात्कार तो प्रयागराज (/काशी) वासियों से करा चुका था पर वैश्विक कृष्ण (प्रामाणिक कृष्ण:अभीष्ट लक्ष्य हाँसिल किये हुए कृष्ण) द्वारा वैश्विक ईसाई समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक कृष्ण मन्दिर (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014) कहाँ सम्भव था (कृष्ण समानान्तर ईसाइयत)? और वैश्विक राम (प्रामाणिक राम:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए राम) द्वारा वैश्विक इस्लामिक समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक राम मन्दिर(/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/13 अप्रैल 2018) कहाँ सम्भव था (राम समानान्तर इस्लामियत)? और सम्पूर्ण विश्व-मानवता से वैश्विक शिव (प्रामाणिक शिव:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए शिव) के साक्षात्कार हुए बिना वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 9 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) कहाँ सम्भव था (सम्यक शुभ/शिव/मंगल/कल्याण)?=====मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान(//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है| = व्यक्तिगत जीवन भी है मेरा:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018): दो दसक से अधिक समय तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत मेरे संकल्प/समधिष्ठता के सर्वोच्च प्रतिफल के साथ जब सहस्राब्दी-महापरिवर्तन काल; उसका संक्रमण तथा उत्तर संक्रमणकाल सब बीत चुका है इस प्रयागराज (/काशी) में मेरे केंद्रित रहते हुए तो अब भी जहाँ मेरी उपयोगिता सबसे अधिक है मैं वहीं पर हूँ अर्थात प्रयागराज (/काशी) में प्रयागराज विश्वविद्यालय में हूँ और मैं अपने अनुकूल पद और पदानुरूप उचित आर्थिक स्थिति में हूँ (पहले से ही यह मेरा वादा है की मैं संस्थागत और मानवतागत हित के अनुरूप ही कार्य करता रहूँगा और इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में केंद्रित रह साइंस और सोसाइटी को अपना अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) हांसिल कर अधिकतम लाभ पहुँचाया हूँ और आगे और अधिक लाभ पंहुचाउँगा):--भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में रहते हुए विदेश के एक महत्वपूर्ण इंस्टीटूशन(Stevens Institute of Technology, New York, USA)में कार्यरत जिस वैज्ञानिक से मैं पीएचडी में कार्य करते समय ओसियन मॉडल पर सहयोग पाता था उनके द्वारा भारत के अंदर एक वर्ष में शैक्षणिक या अनुसंधान संस्था में उचित स्थायी पोस्ट न मिलने पर मुझे व्यक्तिगत पीडीएफ का आश्वासन भी मिला था और एक यह भी प्रस्ताव भी मिला था की अगर आप तैयार हों और आपके पास वैलिड पासपोर्ट हो तो आप को आपके अपने अनुकूल किसी भी देश में पीडीएफ या आप के अनुरूप कोई भी प्रोफेशनल जॉब मिल जाएगा तो मेरे पास उस समय वैलिड पासपोर्ट था उस समय और मैंने ऐसा करने से मना कर दिया था देश के बाहर जाने से| और यह भी की मैं प्रयागराज विश्वविद्यालय में साक्षात्कार देने बंगलोर स्थिति सर्वोच्च कंप्यूटर मॉडलिंग संस्थान (C-MMACS)में वैज्ञानिक "सी" का साक्षात्कार छोड़कर आया था (यह साक्षात्कार हेतु पत्र आज भी है मेरे पास) | तो शेष यह था की प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त अपने संकल्प के अभीष्ट लक्ष्य को 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018)/29(/15-29) मई 2006 (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण प्राप्त कर उसे सामाजिक रूप से स्थापित करवाना | = मेरे 33 वर्ष विवाह पूर्व तक अर्थात 18 अप्रैल, 2008 तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहने तक तथा उसके बाद भी (प्रयागराज:11 सितम्बर 2001/05 सितम्बर 2000 से 26 अक्टूबर 2007 तथा बंगलोर: 27 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर 2009 और फिर प्रयागराज: 29 अक्टूबर 2009 से आज तक) मेरे संपर्क में रहे धार्मिक आकाओं का अप्रत्यक्ष निर्देश था की शिव, राम और कृष्ण के सम्बन्ध में जितना कोई जानता जाएगा उसको अपनी जानकारी उतना ही कम लगेगी पर उनके सामर्थ्य, उनके गूढ़ रहस्य और उनकी मूल प्रवृति तथा पहचान का प्रमुख आयाम और प्राथमिक शर्त है की वे विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी रहे हैं| = "शिव-राम-कृष्ण" का समाज से घिरे रहने पर भी आतंरिक स्वरुप=>चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग" विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पाँचों आयाम में से सीधे सामाजिक सरोकार रखने वाले तीन के तीनों सामाजिक स्वरुप: शिव-राम-कृष्ण =>तो आपको दिसम्बर 2009(/2008/2018/2021/) वाले वैश्विक शिव और सितम्बर 2010 वाले वैश्विक राम (/विष्णु: विष्णुकान्त (राशिनाम-वेदाँग)) को प्रमाणित किये जाने का इन्तजार था जबकि वैश्विक कृष्ण (/ब्रह्मा:कृष्णकान्त (राशिनाम-वाशुदेव) के अगस्त 2013 में आने के तुरंत बाद मार्च 2014 में वैश्विक कृष्ण मन्दिर की आधारशिला प्रथम माननीय के हांथों रख दी गयी थी|<<-> इस प्रयागराज (काशी) में केन्द्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था तो मेरी तरफ से किसी भी देवी व् देवता के साथ कोई अन्याय नहीं (समस्त मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही रहा और समयानुसार से आज भी विश्व-मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही हूँ) :-->>निर्विवादित रूप से वैश्विक राम (विष्णुकान्त: विष्णु (राशिनाम:वेदांग): अयोध्या:30 सितम्बर 2010:09 नवम्बर 2019(25 मई 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल 2018; और वैश्विक कृष्ण(कृष्णकान्त:कृष्ण(राशिनाम: वाशुदेव):ब्रह्मा):मथुरा-वृन्दाबन:28 अगस्त 2013:16 मार्च 2014:29 मई 2006 मेरे ही पास हैं और जगत जननी जगदम्बा (/दुर्गा) की पहचान कहे जाने वाले वैश्विक शिव: काशी (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) स्वयं जगत जननी जानकी के पास हैं| ==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में समुचित समय पर समुचित पात्र के अभाव में मैं वैश्विक शिव, वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक ब्रह्मा और वैश्विक विष्णु सब बन चुका हूँ और किसी भी दायित्व को पूर्णातिपूर्ण निभाया हूँ | <>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का| <>मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता| = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित हो सच्चे सन्दर्भ में 29(15-29) मई, 2006 आते आते अपना संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/ 11परिवार) पूर्ण कर लेने की उपरान्त 30 मई, 2006 से सतत चलायमान लेखनी से तत्कालीन रूप से सतह पर कार्यरत लोगों द्वारा 2001 में प्रारम्भ हुए फिल्मी सफर को मैंने आध्यात्म की दुनिया से जोड़ दिया| आप सबको विदित हो कि इस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र, प्रयागराज विश्वविद्यालय में लंच के समय मुझे देख अक्सर यह दो गीत कम्प्यूटर पर आन/प्ले कर दिए जाते थे 2001 से 2004 के बीच मुझे संकल्पित/समाधिष्ठ बने रहने के प्रति प्रेरित करने हेतु:==मैं प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 11 सितम्बर 2001 को फिर 7 फरवरी 2003 को स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर दाँव पर लग चुका था अर्थात ब्रह्मलीन कर दिया गया था और तब से रडार पर था और उसी बीच स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतराष्ट्रीय परिवर्तन के बीच लक्ष्य को हाँथ से दूर जाता देख 29 (15-29) मई 2006 को स्वयं दांव पर लग अर्थात स्वयं समाधिष्ठ हो प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया और 12 वर्ष रडार पर रहते हुए ही 25 मई 2018 (/31 जुलाई, 2018 को अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त किया| = विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक इस विश्व-मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (काशी) में केन्द्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था तो मेरी तरफ से किसी भी देवी व् देवता के साथ कोई अन्याय नहीं (समस्त मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही रहा हूँ और समयानुसार समुचित रूप से आज भी विश्व-मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही हूँ)::-----निर्विवादित रूप से वैश्विक राम (विष्णुकान्त: विष्णु (राशिनाम:वेदांग): अयोध्या:30 सितम्बर 2010:09 नवम्बर 2019(25 मई 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल 2018; और वैश्विक कृष्ण(कृष्णकान्त:कृष्ण(राशिनाम: वाशुदेव):ब्रह्मा):मथुरा-वृन्दाबन:28 अगस्त 2013:16 मार्च 2014:29 मई 2006 मेरे ही पास हैं और जगत जननी जगदम्बा (/दुर्गा) की पहचान कहे जाने वाले वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) स्वयं जगत जननी जानकी के पास हैं| == =25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में समुचित समय पर समुचित पात्र के अभाव में मैं वैश्विक शिव, वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक ब्रह्मा और वैश्विक विष्णु सब बन चुका हूँ और किसी भी दायित्व को पूर्णातिपूर्ण निभाया हूँ|==========मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार | वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा;जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं||============25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था मै ही प्राप्त हुआ था| इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित हो सच्चे सन्दर्भ में 29(15-29) मई, 2006 आते आते अपना संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/ 11परिवार) पूर्ण कर लेने की उपरान्त 30 मई, 2006 से सतत चलायमान लेखनी से तत्कालीन रूप से सतह पर कार्यरत लोगों द्वारा 2001 में प्रारम्भ हुए फिल्मी सफर को मैंने आध्यात्म की दुनिया से जोड़ दिया| आप सबको विदित हो कि इस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र, प्रयागराज विश्वविद्यालय में लंच के समय मुझे देख अक्सर यह दो गीत कम्प्यूटर पर आन/प्ले कर दिए जाते थे 2001 से 2004 के बीच मुझे संकल्पित/समाधिष्ठ बने रहने के प्रति प्रेरित करने हेतु:==मैं प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 11 सितम्बर 2001 को फिर 7 फरवरी 2003 को स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर दाँव पर लग चुका था अर्थात ब्रह्मलीन कर दिया गया था और तब से रडार पर था और उसी बीच स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतराष्ट्रीय परिवर्तन के बीच लक्ष्य को हाँथ से दूर जाता देख 29 (15-29) मई 2006 को स्वयं दांव पर लग अर्थात स्वयं समाधिष्ठ हो प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया और 12 वर्ष रडार पर रहते हुए ही 25 मई 2018 (/31 जुलाई, 2018 को अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त किया| == व्यक्तिगत जीवन भी है मेरा:--25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018): दो दसक से अधिक समय तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत मेरे संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण के सर्वोच्च प्रतिफल के साथ जब सहस्राब्दी-महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन/विश्वमहासमुद्रमंथन काल; उसका संक्रमणकाल तथा उत्तर संक्रमणकाल सब बीत चुका है इस प्रयागराज (/काशी) में मेरे केंद्रित रहते हुए तो अब भी जहाँ मेरी उपयोगिता सबसे अधिक है मैं वहीं पर हूँ अर्थात प्रयागराज (/काशी) में प्रयागराज विश्वविद्यालय में हूँ और मैं अपने अनुकूल पद और पदानुरूप उचित आर्थिक स्थिति में हूँ (पहले से ही यह मेरा वादा है की मैं संस्थागत और मानवतागत हित के अनुरूप ही कार्य करता रहूँगा और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व, केंद्र प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में केंद्रित रह साइंस और सोसाइटी को अपना अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) हांसिल कर अधिकतम लाभ पहुँचाया हूँ और आगे और अधिक लाभ पंहुचाउँगा):--भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में रहते हुए विदेश के एक महत्वपूर्ण इंस्टीटूशन (Stevens Institute of Technology, New York, USA) में कार्यरत जिस वैज्ञानिक से मैं पीएचडी में कार्य करते समय ओसियन मॉडल पर सहयोग पाता था उनके द्वारा भारत के अंदर एक वर्ष में शैक्षणिक या अनुसंधान संस्था में उचित स्थायी पोस्ट न मिलने पर मुझे व्यक्तिगत पीडीएफ का आश्वासन भी मिला था और एक यह भी प्रस्ताव भी मिला था की अगर आप तैयार हों और आपके पास वैलिड पासपोर्ट हो तो आप को आपके अपने अनुकूल किसी भी देश में पीडीएफ या आप के अनुरूप कोई भी प्रोफेशनल जॉब मिल जाएगा तो मेरे पास उस समय वैलिड पासपोर्ट था उस समय और मैंने ऐसा करने से मना कर दिया था देश के बाहर जाने से| और यह भी की मैं प्रयागराज विश्वविद्यालय में साक्षात्कार देने बंगलोर स्थिति सर्वोच्च कंप्यूटर मॉडलिंग संस्थान (C-MMACS) में वैज्ञानिक "सी" का साक्षात्कार छोड़कर आया था (यह साक्षात्कार हेतु पत्र आज भी है मेरे पास) | तो शेष यह था की प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त अपने संकल्प के अभीष्ट लक्ष्य को 25 मई 2018(/31 जुलाई 2018)/29 (/15-29) मई 2006 (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण प्राप्त कर उसे सामाजिक रूप से स्थापित करवाना और अपने आजीविका के साथ अपने अनुरूप उचित स्थान पर अपना कार्य क्षेत्र प्राप्त करना| तो इस स्थान व संस्था के प्रति यह आस्था व अनुराग है मेरा| == दो दशकों से अधिक समय तक विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण विश्व-मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते रहने के बावजूद आज भी बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं==>>त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) गोत्रीय और व्याशी- गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय युग्म > बिशुनपुर(223103)-रामापुर (223225) युग्म>रामानन्द-सारंगधर युग्म==>दो दशकों से अधिक समय तक विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण विश्व-मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते रहने के बावजूद आज भी बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं==>>इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात "(मूल सारंगधर की मूल अवस्था/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी को इन्होंने ही 07 फरवरी, 2003 में वैश्विक केंद्रीय विष्णु बने रहने हेतु दूसरी बार इसी मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया था और लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) पूर्णातिपूर्ण """""""(25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018/(29(/15-29) मई 2006:तृतीय बार स्वयं निहित वैश्विक ब्रह्मा के रूप में संकल्प/समर्पण/समाधि/ब्रह्मलीनता अवस्था में आ परमब्रह्म केंद्रीय विष्णु के जाग्रत अवस्था सशरीर वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आते हुए और आगे 12 वर्ष के निरंतर संघर्ष की परिणति)""""" होने तक किसी भी स्थिति में यहीं बने रहने हेतु कहा था जबकि इनकी सहमति और निर्देश पर प्रथम बार, 11 सितम्बर, 2001 को वैश्विक शिव के रूप में पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था समुचित रूप से अपने स्तर का दायित्व निभाया गया था| = शिव, राम और कृष्ण के सम्बन्ध में जितना कोई जानता जाएगा उसको अपनी जानकारी उतना ही कम लगेगी पर उनके सामर्थ्य, उनके गूढ़ रहस्य और उनकी मूल प्रवृति तथा पहचान का प्रमुख आयाम और प्राथमिक शर्त है की वे विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी रहे हैं---------मेरे 33 वर्ष विवाह पूर्व तक अर्थात 18 अप्रैल, 2008 तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहने तक तथा उसके बाद भी (प्रयागराज:11 सितम्बर 2001/05 सितम्बर 2000 से 26 अक्टूबर 2007 तथा बंगलोर: 27 अक्टूबर 2007 से 28 अक्टूबर 2009 और फिर प्रयागराज: 29 अक्टूबर 2009 से आज तक) मेरे संपर्क में रहे धार्मिक आकाओं का अप्रत्यक्ष निर्देश था की शिव, राम और कृष्ण के सम्बन्ध में जितना कोई जानता जाएगा उसको अपनी जानकारी उतना ही कम लगेगी पर उनके सामर्थ्य, उनके गूढ़ रहस्य और उनकी मूल प्रवृति तथा पहचान का प्रमुख आयाम और प्राथमिक शर्त है की वे विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी रहे हैं| == "शिव-राम-कृष्ण" का समाज से घिरे रहने पर भी आतंरिक स्वरुप:<==>>चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग" विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पांच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से सीधे सामाजिक सरोकार रखने वाले तीन के तीनों सामाजिक स्वरुप: शिव-राम-कृष्ण =>> तो आपको दिसम्बर 2009(/2008/2018/2021/) वाले वैश्विक शिव और सितम्बर 2010 वाले वैश्विक राम (/विष्णु: विष्णुकान्त (राशिनाम-वेदाँग)) को प्रमाणित किये जाने का इन्तजार था जबकि वैश्विक कृष्ण (/ब्रह्मा:कृष्णकान्त (राशिनाम-वाशुदेव) के अगस्त 2013 में आने के तुरंत बाद मार्च 2014 में वैश्विक कृष्ण मन्दिर की आधारशिला प्रथम माननीय के हांथों रख दी गयी थी|<<->>विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक इस विश्व-मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (काशी) में केन्द्रित रह प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था तो मेरी तरफ से किसी भी देवी व् देवता के साथ कोई अन्याय नहीं (समस्त मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही रहा हूँ और समयानुसार समुचित रूप से आज भी विश्व-मानवता की ऊर्जा का धारक मैं ही हूँ) :-->>निर्विवादित रूप से वैश्विक राम (विष्णुकान्त: विष्णु (राशिनाम:वेदांग): अयोध्या:30 सितम्बर 2010:09 नवम्बर 2019(25 मई 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल 2018; और वैश्विक कृष्ण(कृष्णकान्त:कृष्ण(राशिनाम: वाशुदेव):ब्रह्मा):मथुरा-वृन्दाबन:28 अगस्त 2013:16 मार्च 2014:29 मई 2006 मेरे ही पास हैं और जगत जननी जगदम्बा (/दुर्गा) की पहचान कहे जाने वाले वैश्विक शिव: काशी (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) स्वयं जगत जननी जानकी के पास हैं| == =25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई 2018 (31 जुलाई 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में समुचित समय पर समुचित पात्र के अभाव में मैं वैश्विक शिव, वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक ब्रह्मा और वैश्विक विष्णु सब बन चुका हूँ और किसी भी दायित्व को पूर्णातिपूर्ण निभाया हूँ | <=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का| <<=>मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता|<<-->>मुझ बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर युग्म का इस संसार में कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला नहीं है तो 22 वर्ष के सर्वांगीण दायित्व और उसके अनुरूप कर्तव्य तथा किसी व्यक्ति या समूह का बिना कोई सीधा ऋण व योगदान लिए संस्थागत व् मानवतागत उपलब्धि पर नजर दौड़ाइए (अगस्त 2017 आते आते मानवीय जीवन के तीनों ऋण: देव, ऋषि/गुरु व् पितृ ऋण पूर्ण कर चुका हूँ): मुझ का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = कश्यप-गौतम युग्म==>>बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म अर्थात रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म केवल कहने के लिए और कोई अधिकार जताने या किसी पर बल प्रयोग हेतु नहीं हूँ; अपितु इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए उसे विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय (22/25 वर्ष:12 मई, 1997 से 1 अगस्त, 2022// (25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) तक मानव जगत में सम्भव सर्वोच्च आदर्श के साथ ऐसे सर्वोच्च दायित्व को जिया भी हूँ|<----->सनातन (/परमब्रह्म) राम (/कृष्ण:सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव)/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/सनातन आद्या/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।। अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = कश्यप-गौतम युग्म:==प्रत्यक्ष रुप से संस्थागत और परोक्ष रूप से विश्व-मानवतागत अभीष्ट हित हेतु व्यक्तिगत के हिस्से का सर्वस्व लुटा कर भी सर्वस्व पा जाने पर भी विवादित क्यों बनूँ? मुझे कौन सी राजनीती पढ़ाई जाएगी? मेरा ननिहाल (बिशुनपुर-223103) एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा गोरखपुर/गोरक्षपुर वासी व्याशी-गौतम गोत्रीय मिश्रा ब्राह्मण निवाजी बाबा को दान में दी गयी 300 बीघे की जमीन पर बसा है (ग्राम वासियों ने बाद में बाहर भी जमीन क्रय किये हैं) और पैतृक गाँव (रामापुर-223225) एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार द्वारा बस्ती जनपद के त्रिफला-कश्यप गोत्रीय पाण्डेय बरहम बाबा सारंगधर को दान दिए गए 500 बीघे जमीन पर बसा है (इसी के साथ दान में ओरिल, बागबहार, लग्गूपुर, गुमकोठी, औराडार गाँव भी मिले थे)----मैं अपने गाँव के सबसे बड़े खानदान का एक छठवें का हिस्सेदार हूँ (यह कोई बड़कई नहीं बतला रहा हूँ की अमुक गाँव की आबादी सापेक्ष किसी की ज्यादा जमीन होने से कोई किसी से बड़ा या महामानव हो जाता है अपितु इतना बताने के लिए कि उसका कुछ हिस्सा घट जाए या बढ़ जाए कौन सी अनहोनी हो जाएगी)| मेरा आवास मेरे घराने की मूल आबादी पर बना सबसे पहला आवास है जो बिना सम्पूर्ण आबादी का बँटवारा हुए बना है जिसकी नींव सर्व सम्मति से 2008 में ही दी गयी थी और अप्रैल, 2008 तक बन कर तैयार था, वह तब जबकि पूरी आबादी घोर विवादित थी और मुकदमा भी चल रहा था आबादी पर; तो फिर समय परिवर्तन और यहाँ प्रयागराज (/काशी) में मेरे प्रभाव से प्रेरित हो स्थानीय और वाह्य शक्तियों द्वारा मुझे विचलित करने हेतु मौक़ा तलासने हेतु स्थानीय लोगों को प्रभावित किये जाने पर भी मैं अब अपने को विवादित क्यों बनाता या बनाऊंगा; वह उन लोगों के प्रति जिन लोगों की सहमति उस समय के अनुसार अत्यंत ही जरूरी थी जब घराने के मूल घर में मेरे हिस्से का भाग धरासायी हो चुका था| और विवादित क्यों बनु तब जबकि मै 11 सितम्बर, 2001 से निरन्तर सार्वजनिक मद की राशि से वेतनभोक्ता बना हुआ हूँ|------11 सितम्बर 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) को शिव की वैश्विक शिव के रूप में पुनर्स्थाना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा मेरे द्वारा काशी जा कर की गयी थी और इस प्रकार धर्मचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र वैश्विक स्तर पर कार्य करना प्रारम्भ किया था और अब यह स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक कम से कम एक सहस्राब्दी तक अवश्य कार्य करता रहेगा अर्थात स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक हर किसी स्तर के व्यक्ति का साक्षात्कार करेगा| = कश्यप-गौतम युग्म: परमब्रह्म परमेश्वर अवस्था के अवरोही क्रम में देव संस्कृति और देव संस्कृति के अवरोही क्रम में आते हुए जब जब मानव संस्कृति की बात करेंगे आप तो ऋषि संस्कृति की बात आएगी ही क्योंकि ऋषि संस्कृति से ही मानव संस्कृति का प्रादुर्भाव होता है:----- इस संसार को रोचक और चमत्कारिक बनाये जाने की जब जब बात आएगी कश्यप ऋषि के वंशजों का त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न हमेशा हमेशा याद किया जाएगा और यही उनको प्रथम ऋषि बनाता है तथा केंद्रीय विष्णु (जिनकी मूल स्वरुप अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) जिनसे स्वयं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है) का सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत और उन सभी का समावेशी होने के नाते धर्म चक्र/कालचक्र/समयचक्र के 24 मानक ऋषि का केंद्र हो 25वें ऋषि या सुदर्शन चक्र के 108 मानक ऋषि का केंद्र हो 109 वें ऋषि होने पर भी उनका महत्व सभी ऋषियों से ज्यादा हो जाता है===स्वयं इन्द्र समेत पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता होने का गौरव प्राप्त करने वाले कश्यप (/मारीच (सूर्य) के एकल पुत्र/कण्व) ऋषि आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सूर्य उपासक सावर्ण ऋषि (दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और स्वयं इन्द्र समेत पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता होने का गौरव प्राप्त करने वाले और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंशके जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की|=== चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सीधे प्रभाव के साथ ही साथ सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे)|===भरद्वाज (आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था उनमें दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर) के पिता कश्यप) तथा सप्तर्षियों में विष्णु के अनन्य भक्त कहे जाने वाले भृगु के पौत्र (भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि/पर्वत पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे)|==== कश्यप ऋषि (एकल पुत्र मारीच:सूर्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया| जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है।==-इस मानव संस्कृति का आधार ऋषि संस्कृति है यह शास्वत नियम है तो ऋषि क्रम का शास्वत नियम कैसे बदलेगा? जब केंद्रीय विष्णु की मूल अवस्था अर्थात स्वयं मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) स्वयं जिनसे मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पांचो आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तो जब ये स्वयं धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र के चौबीस ऋषियों का ऊर्जा स्रोत, केन्द्र बन 25वां ऋषि और सम्प्पूर्ण 108 मानक ऋषि का ऊर्जा स्रोत, केन्द्र बन 109 ऋषि कहलाने में कोई अपमान नहीं महसूस करते हैं तो अन्य ऋषि को कश्यप (/मारीच (सूर्य) के एकल पुत्र) ऋषि को पहला ऋषि मानने में क्या दिक्कत है जिस ऋषि के यहाँ अधिकतम बार विष्णु का अवतार हुआ है? == बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म अर्थात रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म केवल कहने के लिए और कोई अधिकार जताने या किसी पर बल प्रयोग हेतु नहीं हूँ; अपितु इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए उसे विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय (22/25 वर्ष:12 मई, 1997 से 1 अगस्त, 2022// (25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) तक मानव जगत में सम्भव सर्वोच्च आदर्श के साथ ऐसे सर्वोच्च दायित्व को जिया भी हूँ|<----->सनातन (/परमब्रह्म) राम (/कृष्ण:सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव)/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/सनातन आद्या/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = तो आपको दिसम्बर 2009(/2008) वाले वैश्विक शिव और सितम्बर 2010 वाले वैश्विक राम (/विष्णु: विष्णुकान्त (राशिनाम-वेदाँग)) को प्रमाणित किये जाने का इन्तजार था जबकि वैश्विक कृष्ण (/ब्रह्मा:कृष्णकान्त (राशिनाम-वाशुदेव) के अगस्त 2013 में आने के तुरंत बाद मार्च 2014 में वैश्विक कृष्ण मन्दिर की आधारशिला प्रथम माननीय के हांथों रख दी गयी थी|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): परिणाम था संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (11 सितम्बर 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न?-----हर वर्ष रावण का पुतला जलाते हो तो कोई राम है आप लोगों में से? तो उत्तर मिल गया था की इस संसार में कोई वैश्विक शिवरामकृष्ण है अर्थात कोई वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण तीनो है और इतना ही नहीं वह पांच के पांचों है अर्थात मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) ही कोई है अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के मूल अवस्था में कोई है जो अपने में अकेले वैश्विक शिव, वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा पाँचों है|--इस संसार में ईसाइयत (//समानान्तर वैश्विक कृष्ण) और इस्लामियत (//समानान्तर वैश्विक राम) ने आपका विरोध करने का अधिकार 2004/2006(/2005) आते आते खो दिया था अर्थात उनका वैश्विक कृष्ण और वैश्विक राम से साक्षात्कार हो चुका था तो इक्षा शक्ति चाहिए थी अन्यथा 11 (/10) सितम्बर 2008 को ही मेरे प्रयागराज (/काशी) हो जाने अर्थात प्रयागराज के वैश्विक विष्णुमय और वैश्विक ब्रह्मामय तथा काशी को वैश्विक शिवमय हो जाने के बाद आप कभी भी वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर बना सकते थे/हैं तो आपको दिसम्बर 2009(/2008) वाले वैश्विक शिव और सितम्बर 2010 वाले वैश्विक राम (/विष्णु: विष्णुकान्त (वेदाँग)) को प्रमाणित किये जाने का इन्तजार था जबकि वैश्विक कृष्ण (/ब्रह्मा:कृष्णकान्त/वाशुदेव) के अगस्त 2013 में आने के तुरंत बाद मार्च 2014 में वैश्विक कृष्ण मन्दिर की आधारशिला प्रथम माननीय के हांथों रख दी गयी थी|==पूर्ण मानव अर्जुन कोई था/है जिनको माध्यम बना कोई मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु:श्रीधर) की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था की जाग्रत अवस्था धारित सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और परमब्रह्म राम स्वरुप ने प्रत्यक्ष रूप से अपना संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य 2006 में और परोक्ष रूप से मानवतागत अपना अभीष्ट लक्ष्य 2018 में पूर्ण किया था|====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विष्णु की परमब्रह्म अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = तो फिर आधी आबादी की जिम्मेदारी लेकर सफल दायित्व न निभा पाने वाले और प्रायोजित रूप से आधी आबादी से धार्मिक/सामाजिक नियम तोड़वाने वाले दोनों दोषी है| और ऐसे में चोर-चोर मौसियेरे भाई की तर्ज पर 29 मई, 2006 से दोनों उसकी सफलता के निशान को मिटाने वाले रहे हैं और ऐसे लोग महामानव तो हैं नहीं तो ऐसे में दोनों मिलकर उसका विरोध करने वाले होंगे ही होंगे| और उनका यही विरोध उसकी शक्ति बन गयी तो ऐसे में उनको दिक्कत होनी ही थी और हो गयी|=--मैंने कहा की मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता|=तो मेरी केवल और केवल यही जिद थी की मुझ बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर युग्म का इस संसार में कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला नहीं है तो 22 वर्ष के सर्वांगीण दायित्व और उसके अनुरूप कर्तव्य तथा किसी व्यक्ति या समूह का बिना कोई सीधा ऋण व योगदान लिए संस्थागत व् मानवतागत उपलब्धि पर नजर दौड़ाइए (अगस्त 2017 आते आते मानवीय जीवन के तीनों ऋण: देव, ऋषि/गुरु व् पितृ ऋण पूर्ण कर चुका हूँ):-----विश्व-मंच पर अपना अभिनय करने वाले हर किसी राही को पकड़कर उसकी रफ़्तार दिखाने और अनर्गल प्रलाप की जरूरत नहीं तो फिर जिसका इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संकल्प(/समर्पण/समधिष्ठ/ब्रह्मलीन) किया हुआ था/है उसके सापेक्ष जो आधी आबादी रही है; उस आधी आबादी ने धार्मिक/सामाजिक नियम तोड़ा है या प्रायोजित रूप से तोड़वाया गया है तो ऐसे में संकल्पित व्यक्ति सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम-विहि-विधान-संविधान तथा धार्मिक और सामाजिक नियमों की पूर्णातिपूर्ण रक्षा करते हुए अपने अभीष्ट लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण प्राप्त किया हो तो फिर आधी आबादी की जिम्मेदारी लेकर सफल दायित्व न निभा पाने वाले और प्रायोजित रूप से आधी आबादी से धार्मिक/सामाजिक नियम तोड़वाने वाले दोनों दोषी है| और ऐसे में चोर-चोर मौसियेरे भाई की तर्ज पर 29 मई, 2006 से दोनों उसकी सफलता के निशान को मिटाने वाले रहे हैं और ऐसे लोग महामानव तो हैं नहीं तो ऐसे में दोनों मिलकर उसका विरोध करने वाले होंगे ही होंगे| और उनका यही विरोध उसकी शक्ति बन गयी तो ऐसे में उनको दिक्कत होनी ही थी और हो गयी| = जिस तरह से राजसत्ता पर स्थानीय से लेकर वैश्विक असुरों का साया रहता है उसी तरह से ऋषिसत्ता पर भी स्थानीय से लेकर वैश्विक असुरों का साया बना रहता है जिसको ऋषिसत्ता के अनुसांगिक विभाग गुरुसत्ता ही नियंत्रित करती है| = क्या बिना किसी वाद के; सामंजस्य के साथ यह वैश्विक समाज नहीं चलाया जा सकता है? जब-जहाँ और जिस युग में पुरुषवादी मानसिकता और व्यवस्था हावी होती है तो ऐसे में आतंकवाद (सरफेस सुनामी) बढ़ता है और जब-जहाँ और जिस युग में नारीवादी मानसिकता और व्यवस्था हावी होती है तो ऐसे में माफियावाद (अण्डर सुनामी) हावी होता; तो ऐसा क्यों? = सारांश: एक नाबदान के कीड़े जैसी जिंदगी जीने वाले की तुलना में एक अनपढ़-गंवार (निरा अशिक्षित और मूर्ख) और दीन-हीन ही अच्छा होता है|-------अगर एक छोर में आतंक का प्रसार आपको नजर आया तो दूसरे छोर पर स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय माफियावाद का जड़ों से लेकर शिखर तक फलता फूलता साम्राज्य भी नजर आना चाहिए तभी संतुलन स्थापित होगा| आतंकवाद पर तो बहुत हो चुका पर अब भी कुछ बताना शेष है की माफियाराज कब और किसके सहयोग से फलता फूलता है और यह की तमिल/तेलगु के इस उत्तर भारत स्थित अधिकतर अभिकर्ता (एजेंट) वही लोग क्यों होंगे जो वात्स्यायन की विद्या (/काम सूत्र) में पारंगत होंगे? माफियाराज होगा तो उसको संतुलित करने हेतु नैसर्गिक रूप से आतंकवाद जन्म लेगा ही लेगा| दोनों खतरनाक हैं इस विश्व-मानवता हेतु तो संतुलन लाइए दोनों में किसी एक को प्रश्रय और उसका महिमामण्डन न कीजिये और न करवाइये सोसल मीडिया पर| = मैं कुछ किसी के विपक्ष में लिखता हूँ तो किसी जाति/धर्म व नश्ल से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है पर जाहिर सी बात है किसी के अंधाधुंध एक ही प्रकार की क्रिया से या कर्तव्य से विश्व-मानवता को दूरगामी हानि होनी है तो उसके सुधार हेतु ही लिखता हूँ और मैं यह सबसे कहता हूँ की हर किसी को अपनी जाति/धर्म और नश्ल को सुरक्षित बनाये रखने का नैसर्गिक अधिकार है यह अर्थ/मुद्रा तो हमारी देन है जो की नैसर्गिक नहीं है तथा केवल व्यवस्था को चलाने मात्र के लिए है| = जिस तरह से राजसत्ता पर स्थानीय से लेकर वैश्विक असुरों का साया रहता है उसी तरह से ऋषिसत्ता पर भी स्थानीय से लेकर वैश्विक असुरों का साया बना रहता है जिसको ऋषिसत्ता के अनुसांगिक विभाग गुरुसत्ता ही नियंत्रित करती है| = क्या बिना किसी वाद के; सामंजस्य के साथ यह वैश्विक समाज नहीं चलाया जा सकता है? जब-जहाँ और जिस युग में पुरुषवादी मानसिकता और व्यवस्था हावी होती है तो ऐसे में आतंकवाद (सरफेस सुनामी) बढ़ता है और जब-जहाँ और जिस युग में नारीवादी मानसिकता और व्यवस्था हावी होती है तो ऐसे में माफियावाद (अण्डर सुनामी) हावी होता; तो ऐसा क्यों? = तो तत्कालीन रूप से सतह पर कार्यरत लोगों द्वारा 2001 में प्रारम्भ हुए फिल्मी सफर को मैंने आध्यात्म की दुनिया से जोड़ दिया| आप सबको विदित हो कि इस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र, अंतर्विषयक अध्ययन संस्थान, प्रयागराज विश्वविद्यालय में इंटरवल/लंच के समय मुझे देख अक्सर यह दो गीत कम्प्यूटर पर आन/प्ले कर दिए जाते थे 2001 से 2004 के बीच मुझे संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ बने रहने के प्रति प्रेरित करने हेतु| ===प्रथम हिन्दी गीत=== सवेरे का सूरज तुम्हारे लिये है के बुझते दिये को ना तुम याद करना हुये एक बीती हुई बात हम तो कोई आँसू हम पर ना बरबाद करना तुम्हारे लिये हम, तुम्हारे दिये हम लगन की अगन में अभी तक जले हैं हमारी कमी तुम को महसूस क्यों हो सुहानी सुबह हम तुम्हें दे चले हैं जो हर दम तुम्हारी खुशी चाहते हैं उदास होके उनको ना नाशाद करना सभी वक़्त के आगे झुकते रहे हैं किसी के लिये वक़्त झुकता नही है बड़ी तेज़ रफ़्तार है जिदगी की किसी के लिये कोई रुकता नहीं है चमन से जो एक फूल बिछड़ा तो क्या है नये गुल से गुलशन तो आबाद करना चराग अपनी धरती का बुझता है जब भी सितारे तो अंबर के रोते नही हैं कोई नाव तूफान में जब डूबती है किनारे तो सागर के रोते नही हैं हैं हम डोलती नाव डूबे तो क्या है किनारे हो तुम, तुम ना फरियाद करना ====द्वितीय हिन्दी गीत==== सजी नहीं बरत तोह क्या आयी ना मिलन की रात तोह क्या ब्याह किया तेरी यादो से गठ बंधन तेरे वादों से बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे हो बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे तूने अपना मान लिया है हम थे कहा इस काबिल वह एहसान किया जान देकर जिस चुकाना मुश्किल देह बनी ना दुल्हन तोह क्या पहने नहीं कंगन तोह क्या बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे हो बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे तन के रिश्ते टूट भी जाये टूटे ना मन के बंधन जिसने दिया हमको अपनापन उसी का है यह जीवन बन्ध लिए मन का बंधन जीवन है तुझ पर अर्पण बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे हो बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे आंच ना आये नाम पे तेरे ख़ाक भले ही जीवन हो अपने जहां में आग लगा दे, तेरा जहां जो रौशन हो तेरे लिए दिल तोड़ ले हम घर क्या जग भी छोड़ दे हम बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे हो बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे जिसका हमें अधिकार नहीं था उसका भी बलिदान दिया अच्छे बुरे को हम क्या जाने जो भी किया तेरे लिए किया लाख रहे हम शर्मिंदा रहे मगर ममता जिन्दा बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे हो बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे. ================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| =================== हे राम, हे राम, हे राम, हे राम जग में साचे तेरो नाम । हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है तू ही तू हे राधा का श्याम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू अर्न्तायामी, सबका स्वमी तेरो चरणों में चारो धाम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे इस जग के करे काम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही जग दाता, विश्व विधाता तू ही सुबह, तू ही शाम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम ============== सनातन (/परमब्रह्म) राम (/कृष्ण:सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव)/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/सनातन आद्या/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)" जिनके आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।। अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = अफ्रीका पंथी (तमिल/तेलगु और उत्तर में उनके अभिकर्ता) आप लोगों को सरल हिंदी भाषा में श्रीमद्भागवत गीता के माध्यम से नस्लवाद से मुक्ति की अचूक दवा देता हूँ:----------आँकलन कीजिये उस परमब्रह्म विष्णु के मूल अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु के मूल रूप-रँग और ऊर्जा के बारे जिससे सम्पूर्ण मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है और इस चरा-चर ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ दिखता है ऐसा विश्व/वशु के जन्मदाता, परमब्रह्म विष्णु के स्वरुप के बारे में:-- पूर्ण मानव कहलाने वाले अर्जुन को जब परमब्रह्म कृष्ण ने अपने परमब्रह्म विष्णु स्वरुप का अपना व्यापक विराट स्वरुप दिखाया था तो उनके इस विराट स्वरुप को प्रारम्भ में अर्जुन सहन कर पा रहे थे क्या? उनका रूप रंग कैसा अनुभव किया था अर्जुन ने की उनके तेजस्वी स्वरुप को सहन करने और समझने की शक्ति परमब्रह्म कृष्ण अर्थात परमब्रह्म विष्णु को स्वयं देनी पडी थी| ========= भारतीयों (10:प्रयागराज(वैश्विक विष्णुमय+ वैश्विक ब्रह्मामय) और 11 काशी (वैश्विक शिवमय) सितम्बर 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008): आप को विदित हो की केन्द्रीय विष्णु अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से मूल सारंगधर के पांचो स्वरुप अर्थात पाँचों आद्याप्रसाद (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का उनकी सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महागौरी+महालक्ष्मी+महासरस्वती की शक्ति सम्पन्न स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महागौरी+महालक्ष्मी+महासरस्वती की शक्ति सम्पन्न स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप में महागौरी+महालक्ष्मी+महासरस्वती की शक्ति सम्पन्न स्वरुप) का आविर्भाव होता है परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| तो आँकलन कीजिये उस परमब्रह्म विष्णु के मूल अवस्था अर्थात परमब्रह्म विष्णु के मूल रूप-स्वरुप-रँग और ऊर्जा के बारे जिससे सम्पूर्ण मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है और इस चराचर ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ दिखता है ऐसा विश्व/वशु के जन्मदाता के स्वरुप के बारे| पूर्ण मानव कहलाने वाले अर्जुन को जब परमब्रह्म कृष्ण ने अपने परमब्रह्म विष्णु स्वरुप का अपना व्यापक विराट स्वरुप दिखाया था तो उनके इस विराट स्वरुप को प्रारम्भ में अर्जुन सहन कर पा रहे थे क्या? उनका रूप-रँग कैसा अनुभव किया था अर्जुन ने की उनके तेजस्वी स्वरुप को सहन करने और समझने की शक्ति परमब्रह्म कृष्ण अर्थात परमब्रह्म विष्णु को स्वयं देनी पडी थी|=======भारत तथा अमेरिका स्थित अफ्रीकी अभिकर्ताओ मै कीचक, दुर्योधन, दुसाशन और रावण को कभी भी नारीवादी नहीं कह सकता तो फिर सत्य यह ही है कि इतना समर्थ हूँ कि जिस गलती को मै नहीँ किया हूँ उसके लिये मैं स्वयम को दोषी कभी भी स्वीकार नहीँ सकता पर यह समझिऐगा की आपको स्वयम आपके कर्मों की सजा मिली है और आगे भी मिलती रहेगी| = इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में भौतिक रूप में मुझे तो कम से कम 11 नवम्बर 2057/~ 01 अगस्त 2058 (11 नवम्बर 1975/~ 01 अगस्त 1976 से 11 नवम्बर 2057/~ 01 अगस्त 2058) तक आपका साथ देना पहले से तय है पर आप के लिए सुझाव है कि आपका संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होना आपको यश (कीर्ति) या अपयश (जगत कलंक) दोनों में से कोई भी एक दे सकता है वस अंतर यह की आप किसके लिए ऐसा किये हैं या करने जा रहे हैं या आँख पर पट्टी बांधकर अब भी ऐसा किये जा रहे हैं:-------आप किसी व्यक्ति के लिए संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने से पूर्व अवश्य सोचें की वह व्यक्ति या व्यक्ति समूह आप से नेक है जिसके लिए आप संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने जा रहे हैं अर्थात जिसके निमित्त आप अपने जीवन का त्याग और बलिदान करने जा रहे है या इस हेतु आप तप/योग/उद्यम/यत्न जारी रखने हेतु जा रहे हैं; ऐसे में आप अगर संतुष्ट नहीं हैं तो फिर आपकी ऐसे प्रयोजन हेतु संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने से मनाही भी मानवता के लिए हितकारी होती है|--------अपने से नेक व्यक्तित्व, नेक प्रयोजन और नेक कार्य हेतु अगर कोई संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होता है तो जो संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होता है और जो ऐसे व्यक्ति या व्यक्ति समूह को संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ करता है दोनों को गर्व महसूस होता है अन्यथा उसे स्वयं धिक्कार महसूस होता है अतएव आप किसी व्यक्ति के लिए संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने से पूर्व अवश्य सोचें की वह आप से नेक व्यक्ति या व्यक्ति समूह है जिसके लिए आप संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने जा रहे हैं अर्थात जिसके निमित्त आप अपने जीवन का त्याग और बलिदान करने जा रहे है या इस हेतु आप तप/योग/उद्यम/यत्न जारी रखने हेतु जा रहे हैं; ऐसे में आप अगर संतुष्ट नहीं हैं तो फिर आपकी ऐसे प्रयोजन हेतु संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होने से मनाही भी मानवता के लिए हितकारी होती है| = यह विरोध के स्वर तब थे जब गुरुदेव (जोशी) स्वयं में प्रोफेसर और हेड भौतिकी रह चुके थे और स्वयं माननीय गुरुदेव थे; गुरुदेव श्रीवास्तव भौतिकी के प्रोफेसर और विभाग के हेड रह चुके थे और डॉ. पाण्डेय स्वयं शान्ति स्वरुप भटनागर सम्मान और नासा (USA) से सम्मान प्राप्त थे तथा जहां से आर्थिक सहायता मिल रही थी उस वैज्ञानिक संस्था (राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्रीय अनुसंधान केन्द्र) के केवल निदेशक ही नहीं बल्कि संस्थापक निदेशक और स्पेस एप्लीकेशन केंद्र, इसरो में एक डिवीज़न के संस्थापक हेड रह चुके थे |==मैंने न कभी मना किया था न मना किया हूँ की अन्दर और बाहर से निर्देशित हो स्वयं प्रयागराज वाले मेरा विरोध न करें; मुझे जो करना था वह मैंने किया और आगे भी जो करना है करूंगा और प्रयागराज वालों को जो विरोध करना था किये पर मैं उनके विरोध से ही जो होना था वह हो चुका हूँ अर्थात स्वयं प्रयागराज (/काशी) हो चुका हूँ:----दिन था शनिवार दिनाँक था 15 सितम्बर 2001 और मुझे इस केन्द्र पर आये मात्र 4 दिन हुए थे (11 सितम्बर 2001 से 15 सितम्बर 2001) और प्रोग्राम था "अंटार्कटिक अवेयरनेस प्रोग्राम" जिसमें गुरुदेव (जोशी) व् कासिम साहब, मुख्य व विशेष अतिथि के रूप में आये थे और इस प्रोग्राम में लगभग 60-70 मूर्धन्य वैज्ञानिक(/ऋषि-महर्षि) भाग लिए थे दूसरे दिन उन लोगों की सम्पर्क बैठक जारी थी जिसमें अधिकांश का मत था की ""केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केन्द्र"" की स्थापना इस प्रयागराज में सफल नहीं होगा तो यह सुनकर मूल रूप में मुझ समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ (मूलतः) किये हुए को बहुत ही हार्दिक आघात महसूस होता था| ठीक है सब कुछ सफल हुआ 29 (/15-29) मई, 2006/25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को और केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केन्द्र"" अपने समेत 10 और केन्द्र/विभाग के लिए कुल 67 स्थाई पारिवारिक सदस्य लेकर आया; जिसके सम्बन्ध में बहुत कुछ बता चुका हूँ पर अगर वे बहुसंख्यक मूर्धन्य वैज्ञानिक(/ऋषि-महर्षि) लोग ऐसा कह रहे थे तो आप कल्पना कीजियेगा उस समय इस प्रयागराज शहर का बैकग्राउंड और उसका सम्मान तत्कालीन रूप से वैश्विक व भारतीय स्तर की दृष्टि में कैसा था? फिर भी अभी लोग कहते हैं कि कुछ नहीं बदला है तो यह सरासर गलत है; बल्कि आप समावेशी सापेक्ष दृष्टि से देखिये इस सहस्राब्दी-महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन और उसके संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल के समाप्त हो जाने को दृष्टि में रखते हुए; तो आप की जानकारी के किये इस प्रयागराज ने अपने को और स्वयं काशी को विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र के रूप से स्थापित किया है इस दौर में अर्थात 11 सितम्बर 2008 से इस विश्व-मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र अब प्रयागराज (/काशी) ही है और अब सहस्राब्दियों तक यह ही विश्व-मानवता का मूल केंद्र रहेगा --यह विरोध के स्वर तब थे जब गुरुदेव (जोशी) स्वयं में प्रोफेसर और हेड भौतिकी रह चुके थे और स्वयं माननीय गुरुदेव थे; गुरुदेव श्रीवास्तव भौतिकी के प्रोफेसर और विभाग के हेड रह चुके थे और डॉ. पाण्डेय स्वयं शान्ति स्वरुप भटनागर सम्मान और नासा (USA) से सम्मान प्राप्त थे तथा जहां से आर्थिक सहायता मिल रही थी उस वैज्ञानिक संस्था (राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्रीय अनुसंधान केन्द्र) के केवल निदेशक ही नहीं बल्कि संस्थापक निदेशक और स्पेस एप्लीकेशन केंद्र, इसरो में एक डिवीज़न के संस्थापक हेड रह चुके थे|==मैंने न कभी मना किया था न मना किया हूँ की अन्दर और बाहर से निर्देशित हो स्वयं प्रयागराज वाले मेरा विरोध न करें; मुझे जो करना था वह मैंने किया और आगे भी जो करना है करूंगा और प्रयागराज वालों को जो विरोध करना था किये पर मैं उनके विरोध से ही जो होना था वह हो चुका हूँ अर्थात स्वयं प्रयागराज (/काशी) हो चुका हूँ| = स्वयं जिनके सामने हर कोई शंकराचार्य नत मस्तक हो जाते हैं ऐसे परमब्रह्म परमेश्वर अर्थात सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अर्थात कृष्णाचार्य अवस्था को 29(/15-29) मई 2006 के दौरान मैं स्वयं धारण कर अपना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण करने वाला था तो मैंने जो देखा था और अनुभव किया था उसे स्वीकार कीजिये ""(11:काशी:शिवमय (/10: प्रयागराज: विष्णुमय और ब्रह्मामय) सितम्बर 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008): इस प्रयागराज में वैश्विक विष्णु (विष्णुकान्त:राम (अयोध्या:2010/2019)) और वैश्विक ब्रह्मा (कृष्णकान्त:कृष्ण (मथुरा-वृन्दावन:2013/2014)) की; तथा काशी में वैश्विक शिव की स्थापना विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अर्थात कृष्णाचार्य ने ही 10/11 सितम्बर, 2008 को किया था)""":=सरल हिंदी भाषा में आप सबको विदित हो कि अनाधिकार की चेष्टा पर कम से कम अब तो रोक लगा लीजिये क्योंकि किसी जाति/धर्म/पन्थ/नश्ल के बदले कोई अधिकार पाने का नैतिक अधिकार तो 2004/2005/2006 तक में ही समाप्त हो चुका है-सम्पूर्ण-भारत समेत सम्पूर्ण विश्व के हर नागरिक को जीवित रहने का अधिकार और अपने अनुसार कर्मों का अधिकार तथा समुचित रूप से उसके फल पाने के अधिकार के सिवा उसके किसी जाति/धर्म/पन्थ/नश्ल के बदले कोई अधिकार पाने का नैतिक अधिकार तो 2004/2005/2006 तक में ही समाप्त हो चुका है---सरल हिंदी भाषा में समझा रहा हूँ वात्स्यायन की विद्या (कामसूत्र) में सबसे अधिक प्रवीण तमिल/तेलगु क्षेत्र (और इस प्रकार तथाकथित सर्वोच्च आधुनिक नारीवादी) और इस प्रयागराज (/काशी) में उनके अभिकर्ता महोदयजन-मैं स्वयं परमब्रह्म परमेश्वर अर्थात सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अर्थात कृष्णाचार्य अवस्था (जिनके सामने हर कोई शंकराचार्य नत मस्तक हो जाते है) को 29 (/15-29) मई, 2006 के दौरान धारण कर अपना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण करने वाला जो देखा था और अनुभव किया था उसे स्वीकार कीजिये और अब केवल व्यक्तिगत व्यक्तित्व की ही बात कीजियेगा क्योंकि डॉ कलाम (/तमिल) के पैतृक क्षेत्र को जो हीरा अच्छा लगा उन्होंने 2004 तक उसका अपहरण कर लिया और डॉ हेडगेवार(/तेलगु) के क्षेत्र को जो हीरा प्यारा लगा 2005/2006 तक उसका अपहरण कर लिया तो उनका क्षेत्र त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न ज्यादा न शिखाये तो ज्यादा उचित होगा केवल---कम से कम सहस्राब्दियों तक के विश्व-मानवता के चालन-संचालन, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व सतत संचलन हेतु आप सभी के असीमित ऊर्जा स्रोत स्वरुप वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मंदिर क्रमसः काशी, अयोध्या और मथुरा-वृन्दाबन में ऐसे नहीं बना है और बन रहा है 11:काशी:शिवमय (/10: प्रयागराज: विष्णुमय और ब्रह्मामय) सितम्बर, 2008 (11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) अपने में एक प्रमाण है की मेरे पूर्वजों ने अगर कोई पाप किया था सम्पूर्ण विश्व के सभी जाति/धर्म/क्षेत्र पर तो उस पाप का निवारण मैंने कर दिया था अपने अस्तित्व को पुनर्प्रमाणित कर की इस विश्व मानवता का संचलन अगर होता है तो फिर उसके लिए हर जीवन स्तर पर किसी न किसी को त्याग, बलिदान, तप/योग/उद्यम करना ही पड़ता है तो फिर 11 (/10) सितम्बर, 2008 तक में ही मैंने अपने दोनों कुल के पूर्वजों को आम मानवीय जीवन के तहत अभिनय में बेदाग़ साबित किया है और मात्र 7 वर्ष में ही जो उत्तर भारत कभी केवल आतंरिक रूप से विश्व-मानवता का केंद्र हुआ करता था वह वाह्य/प्रत्यक्ष और आतंरिक/अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से सहस्राब्दियों के लिए विश्व-मानवता का केंद्र बन चुका है और अब सहस्रब्दियों के लिए विश्व-मानवता का केंद्र रहेगा तो नाम, रूप रंग और जाति/धर्म की बात न कीजिये केवल व्यक्तिगत व्यक्तित्व की ही बात कीजियेगा क्योंकि डॉ कलाम (/तमिल) के पैतृक क्षेत्र को जो हीरा अच्छा लगा उन्होंने 2004 तक उसका अपहरण कर लिया और डॉ हेडगेवार (/तेलगु) के क्षेत्र को जो हीरा प्यारा लगा 2005/2006 तक उसका अपहरण कर लिया तो उनका क्षेत्र त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न ज्यादा न शिखाये तो ज्यादा उचित होगा| == स्वाभाविक मुद्दा नहीं बल्कि प्रायोजित रूप से अपने लिए मुद्दा आयोजित करवाकर फिर बल पूर्वक अपने पक्षं में न्याय करवाकर उसका निदान करवाने या करने का छद्म आचरण कर कोई वैश्विक पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान नहीं हो सकता है:==="प्रायोजित या छद्म नहीं अपितु स्वाभाविक और मूल स्वरुप से जो वैश्विक पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान रहा हो उसकी पहचान तो अवश्य ही मुझे है यह अलग है की सृजन और विनाश तथा संचार तीनों पर बराबर विशेषाधिकार मेरा ही है==== तो तत सम्बंधित उद्घोषित ""अनादि(सनातन) बीज/सनातन आद्या/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)"" अवस्था अर्थात विशेष रूप से वैश्विक सदाशिव/महाशिव स्वरुप का मेरा परीक्षण आज दिनांक 13 सितम्बर, 2022 दिवस मंगलवार को हो गया हो तो इस तथ्य का परीक्षण करने की आवश्यकता नहीं रही कि=======गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में """"""मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001)"""""" या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|""""""इस विगत अद्वितीय दो दसक तक प्रयागराज (/काशी) केंद्रित नव सृजन (विशेष रूप से::यही विशेष अन्तर मुझमें और उनमें है क्योंकि उनकी जो प्रकृति है वह नवसृजन हेतु अपना सर्वसमर्पण की नहीं अपितु केवल और केवल किये और अनकिये की अधिकार की लड़ाई मात्र का है) के साथ विश्वमानवता का आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन समयानुकूल सुचारु रूप से चलता रहा तो फिर सतह पर कार्यरत लोगों को सम्पूर्ण सहस्राब्दी परिवर्तन का आभास कैसे होता और यही तो विश्वमानवता के कुशल रूप से आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन की खूबी रही है| == यह भ्रम छोड़ दीजियेगा की मैं संकुचित मानसिकता का हूँ या मेरी कोई सीमा रही है केवल और केवल मानक सामाजिक मर्यादा और मानक यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान की सीमा के अलावा:----->यदि आप ने 25 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहकर केवल अपनी दुनिया को जीने का केवल स्वप्न में ही अनुभव किया हो तो ऐसी ही आयु में आपको स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतरार्ष्ट्रीय स्तर के संघर्ष में सदा के लिए विश्व-मानवता का मूल/गुरुत्व/जड़त्व केन्द्र अर्थात प्रयागराज (/काशी) बना दिया जाए वह भी सहस्राब्दि-महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन/विश्व-महासमुद्रमंथन/विश्व-महाविभीषिका व् उसके संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल के दौरान कम से कम सहस्राब्दी हेतु विश्वमानवता की नींव तैयार करने हेतु तो आप से क्या आशा की जाएगी? (अर्थात आप ने 25 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहकर केवल अपनी दुनिया को जीने का केवल स्वप्न में ही अनुभव किया हो तो उसकी तुलना जीवन अनुभव प्राप्त व व्यवहारिक जीवन जीते हुए तथा सतह पर कार्यरत हो अपने कर्मों का यश, कीर्ति व् लाभ भोगने वाले लोगों से नहीं की जाती है)? = विवेक (राशिनाम गिरिधर:01 अगस्त, 1976 (/11 नवम्बर 1975):: ---- यह भ्रम छोड़ दीजियेगा की>>----01 अगस्त, 1976 (रविवारीय) का जीवन नहीं जिया हूँ (दायित्व नहीं निभाया हूँ) केवल 11 नवम्बर 1975 (प्रामाणिक रूप से मंगलवारीय) का ही जीवन जिया हूँ (दायित्व निभाया हूँ) तो इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सहस्राब्दी महापरिवर्तन की दृष्टि से प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य दो दसक से अधिक समय तक ""मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव ( अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)"" की अवस्था में कौन था जिसको यहाँ संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था और आज भी समानुकूल वैश्विक परिवर्तन (अर्थात सहस्राब्दी महापरिवर्तन व् उसका संक्रमण व् उत्तर संक्रमण काल गुजर जाने पर भी) को दृष्टिगत करते हुए आवश्यकतानुसार ऐसी ही अवस्था में आज भी कौन स्वयं संकल्पित/समर्पित है? तो यह भ्रम छोड़ दीजियेगा की मेरी कोई सीमा रही है मानक सामाजिक मर्यादा और मानक यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान की सीमा के अलावा और आप की जानकारी के लिए 11 सितम्बर, 2001 से लेकर 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) इस विश्व की पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सम्पूर्ण विश्व मानवता की ऊर्जा का एकल धारक मैं ही रहा हूँ और इस प्रकार वैश्विक व्यवस्था पूर्णतः लागू हो चुकी है पर आगे भौतिक रूप से आप सबसे मेरा यह स्वरुप सहन नहीं हो सकता था तो फिर यह दिखावटी रूप से वैश्विक श्रृंखला आप लोगों ने तोड़ कर आभासीय स्वरुप में राष्ट्रिय व्यवस्था लागू कर दी गयी है| विवेक/सनातन राम (/कृष्ण):--01 अगस्त, 1976 (रविवारीय): विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण गिरिधर:--11 नवम्बर, 1975 (प्रामाणिक रूप से मंगलवारीय): गिरिधर (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: बेलपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ :सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/--/रामप्रसाद/ रमानाथ(/विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर/विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| NOTE:--विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी तथा किसी भी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से आजीवन दूर रहने वाला| = मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) के पांच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से सीधे सामाजिक सरोकार रखने वाले तीन के तीनों सामाजिक रूप: शिवरामकृष्ण का समाज से घिरे रहने पर भी आतंरिक स्वरुप:<<==>>>> चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग ===: >>> विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का| =======मैं आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी हूँ और इसके साथ विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी हूँ तथा इस दुनिया में किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हूँ इसका मतलब स्पष्ट रूप से आप निकाल सकते हैं की मैं सुरा-सुंदरी का शौकीन नहीं हूँ पर जो कोई भी आम से ख़ास मानव मुझसे कभी प्रेम किया हो और करता हो मैं आज तक उससे उतना ही प्रेम करता हूँ पर प्रेम-पिपासा नहीं रखता|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<===>मुझ बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर युग्म का इस संसार में कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाला नहीं है तो 22 वर्ष के सर्वांगीण दायित्व और उसके अनुरूप कर्तव्य तथा किसी व्यक्ति या समूह का बिना कोई सीधा ऋण व योगदान लिए संस्थागत व् मानवतागत उपलब्धि पर नजर दौड़ाइए (अगस्त 2017 आते आते मानवीय जीवन के तीनों ऋण: देव, ऋषि/गुरु व् पितृ ऋण पूर्ण कर चुका हूँ): मुझ का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार | वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा; जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं|| = 11 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (काशी) में स्थापित धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोक चक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक आपका साक्षात्कार समुचित समय पर अवश्य ही लेगा:-----वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और वैश्विक ब्रह्मा (15 (/15-29) मई 2006) के स्वरुप से साक्षात्कार तो प्रयागराज (/काशी) वासियों से करा चुका था पर वैश्विक कृष्ण (प्रामाणिक कृष्ण:अभीष्ट लक्ष्य हाँसिल किये हुए कृष्ण) द्वारा वैश्विक ईसाई समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक कृष्ण मन्दिर (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014) कहाँ सम्भव था (कृष्ण समानान्तर ईसाइयत)? और वैश्विक राम (प्रामाणिक राम:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए राम) द्वारा वैश्विक इस्लामिक समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक राम मन्दिर(/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/13 अप्रैल 2018) कहाँ सम्भव था (राम समानान्तर इस्लामियत)? और सम्पूर्ण विश्व-मानवता से वैश्विक शिव (प्रामाणिक शिव:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए शिव) के साक्षात्कार हुए बिना वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) कहाँ सम्भव था?=====मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान(//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है| = भाई-बंधु-भगिनी-माता-पिता-सखा-सहपाठी-कुल-गुरुकुल-सगे-सम्बन्धी-नात-रिस्तेदार-जाति-पन्थ-समाज की कमजोरी व निकृष्ट असुर समाज की गलती की सजा देविओं को क्यों? तो काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न?====यह विश्व-मानवता अभी कम से कम एक सहस्राब्दी तक चलाये जाने की नीव विगत दो अद्वितीय दसक में रखी गयी है न तो फिर स्पष्ट है की इस विश्व-मानवता/सृस्टि को कम से कम एक सहस्राब्दी तक तो चलना ही चलना है ऐसे में मुझ त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) का आपसे भौतिक सम्बन्ध केवल और केवल 11 नवम्बर 1975 (/1 अगस्त 1976) से 11 नवम्बर 2057 (/1 अगस्त 2058) तक या इससे कुछ अधिक तक का ही है तो वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर आपको चाहिए ही था| इसके साथ ही आपको विदित हो कि वैश्विक विष्णु (विष्णुकान्त/राम) और वैश्विक ब्रह्मा (कृष्णकान्त/कृष्ण) तो इस प्रयागराज में सर्व सुलभ हैं ही|<====>जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|<=====>यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=====यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?<=====>हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते हैं और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास हैं|<=====>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)|=====मैं ही त्रिरंगा (त्रिफला-कश्यप) और मैं ही भगवा (केंद्रीय विष्णु/सारंगधर मूल अवस्था), ऐसा मेरा कथन क्यों:--==सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप/त्रिफला-कश्यप (त्रिरंगा) , स्वयं हूँ और साथ ही साथ 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल का केंद्र बिंदु तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र)/भगवा (केंद्रीय विष्णु/सारंगधर मूल अवस्था) स्वयं ही हूँ|====प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट सफलता को हाथ से जाता देख जब 29 (15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे?=====मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव तिथि 11 सितम्बर 2008 ( /11 सितम्बर 2001 से 11 सितम्बर 2008) दिवस बृहस्पतिवार/गुरूवारजयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है|====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<===>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = 11 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (काशी) में स्थापित धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म)/कालचक्र/कथित अशोक चक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक आपका साक्षात्कार समुचित समय पर अवश्य ही लेगा:-----वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और वैश्विक ब्रह्मा (15 (/15-29) मई 2006) के स्वरुप से साक्षात्कार तो प्रयागराज (/काशी) वासियों से करा चुका था पर वैश्विक कृष्ण (प्रामाणिक कृष्ण:अभीष्ट लक्ष्य हाँसिल किये हुए कृष्ण) द्वारा वैश्विक ईसाई समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक कृष्ण मन्दिर (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014) कहाँ सम्भव था (कृष्ण समानान्तर ईसाइयत)? और वैश्विक राम (प्रामाणिक राम:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए राम) द्वारा वैश्विक इस्लामिक समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक राम मन्दिर(/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/13 अप्रैल 2018) कहाँ सम्भव था (राम समानान्तर इस्लामियत)? और सम्पूर्ण विश्व-मानवता से वैश्विक शिव (प्रामाणिक शिव:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए शिव) के साक्षात्कार हुए बिना वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) कहाँ सम्भव था?=====मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान(//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है| = सितम्बर 11, 2001(25 मई 1998(/12 मई 1997) से 25 मई 218(/31 जुलाई 2018):--वह ""अनादि(सनातन) बीज/सनातन आद्या/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव (यह अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण)""--हूँ-- जिससे ""मूल सारंगधर मूल अवस्था"" के पॉंच के पाँचों मूल आयाम अर्थात पांच के पाँचों ""आद्याप्रसाद"" (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है और जिससे समस्त सृष्टि अर्थात मानव समष्टि का आविर्भाव होता है |===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|=====>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का ====मेरा प्रतिद्वंदी यह संसार जानना चाहा तो अटकलों पर अंतिम विराम लगाने हेतु बता दिया (11 सितम्बर, 2001) जो की वैश्विक और सीमा पार से (उसके सीमा के अन्दर से भी सम्बन्ध हो सकते हैं) तथा अभिलेखों अनुसार मेरी ही तरह रविवारीय (वास्तविक दिवस कुछ भी हो) रहा है और प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और मेरा प्रतिरूप भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 (/वास्तविक सन्दर्भ 25 मई, 1998/12 मई, 1997 से ही) से संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होकर मैने अपना ॠषि (/गुरु) ऋण (29(15-29)-05-2006//25-05-2018(/31--7-2018)) को; देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008//27-30 अगस्त, 2017) को (बंगलुरू प्रवास (25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ); और मात्रृ-पितृ ऋण (30-09-2010//28-08-2013) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 से 29 (15-29), मई, 2006 आते आते ही मैं पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका पर 12 वर्ष और संघर्षरत रह सांसारिक रूप से भी हर प्रकार से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो फिर आगे चलकर 30-09-2010/28-08-2013 का प्रमाण पत्र 09-11-2019 को चाहे भले ही जारी किया गया हो| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 09-11-2019/5-08-2020 ( (/30-09-2010) और 16-03-2014 (/28-08-2013) के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु) के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|====गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001) या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| इस विगत अद्वितीय दो दसक तक प्रयागराज (/काशी) केंद्रित नव सृजन (विशेष रूप से::यही विशेष अन्तर मुझमें और उनमें है क्योंकि उनकी जो प्रकृति है वह नवसृजन हेतु अपना सर्वसमर्पण की नहीं अपितु केवल और केवल किये और अनकिये की अधिकार की लड़ाई मात्र का है) के साथ विश्वमानवता का आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन समयानुकूल सुचारु रूप से चलता रहा तो फिर सतह पर कार्यरत लोगों को सम्पूर्ण सहस्राब्दी परिवर्तन का आभास कैसे होता और यही तो विश्वमानवता के कुशल रूप से आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन की खूबी रही है| = 11 सितम्बर 2001 को मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर ने मुझको वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन करने के बाद दुबारा 07 फरवरी 2003 को मुझपर विश्वास व्यक्त करते हुए वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया था और 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित आवाज पर स्वयं दाँव पर लग समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ तथा इसके बाद भी संस्थागत और मानवतागत अभीष्ठ हित निमित्त 25 मई, 2018 (/31 जुलाई 2018) तक अनवरत संघर्ष जारी रहा जिसका ही परिणाम था संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (11 सितम्बर 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न? = विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का<=>मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार | वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा; जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं|| = एक-एक गुरुकुल व् एक-एक व्यक्ति व् एक-एक व्यक्तित्व या एक-एक स्थान क्या गिनाया जा रहा है 20 (/25) वर्ष से; तो आप सबको ज्ञात हो कि इस संसार के सभी गुरुकुल और इस प्रकार समस्त मानवता और उसके सम्मान की रक्षा बिशुनपुर -223103, जौनपुर गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) ने किया था जिन्होंने मुझपर विश्वास करते हुए मुझे इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन काल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर के दो अद्वितीय दसक से ज्यादा के समय में पहले 11 सितम्बर, 2001 (वैश्विक शिव) और फिर 07 फरवरी, 2003 (वैश्विक विष्णु) को पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया था, जिसकी परिणति थी 29(/15-29) मई, 2006 (दोनों से युक्त वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण: परमब्रह्म विष्णु जाग्रत स्वरुप)) और 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (वैश्विक परमब्रह्म राम) और इस प्रकार ""30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019)//28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014)//11 (/10) सितम्बर, 2008 ""|>मैं प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए आगे भी कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975(/01 अगस्त, 1976) से 11 नवम्बर, 2057) तक आप सबका भौतिक रूप से हर प्रकार से साथ दूंगा- मेरी अब "(30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019)/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014)//11 (/10) सितम्बर, 2008 के बाद से: प्रमाणित मूल सारंगधर की मूल अवस्था/ परमब्रह्म विष्णु अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)) अवस्था के बाद से"" से किसी से कोई प्रतिस्पर्धा रही ही नहीं| = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात "(मूल सारंगधर की मूल अवस्था/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| = आप में से कोई अपमानित और प्रतिशोधग्रस्त न होइए केवल अपने व्यक्तित्व व कृतित्व पर मंथन कीजिये; मैं तो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केवल और केवल मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास किया है उनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु यहाँ संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किये जाने पर वैश्विक मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) की अवस्था में रहते हुए और ऐसी अवस्था के पाँचों आयाम (वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा आयाम/अवस्था) को प्राप्त करते हुए: ----11 सितम्बर 2001 को मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर ने मुझको वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन करने के बाद दुबारा 07 फरवरी 2003 को मुझपर विश्वास व्यक्त करते हुए वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया था और 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित आवाज पर स्वयं दाँव पर लग समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ तथा इसके बाद भी संस्थागत और मानवतागत अभीष्ठ हित निमित्त 25 मई, 2018 (/31 जुलाई 2018) तक अनवरत संघर्ष जारी रहा जिसका ही परिणाम था संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (11 सितम्बर 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न? === यह एक अर्थात मूल सारंगधर अर्थात केंद्रीय विष्णु रहेंगे तो फिर उनकी मूल अवस्था केंद्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से हम पाँच (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) बनते ही रहेंगे और इस सृष्टि का सृजन और सञ्चालन होता रहेगा: ----मैं बिशुनपुर-223103 और रामापुर-223225 एकल युग्म और इस प्रकार सारंगधर-रामानन्द एकल युग्म दूरस्थ स्थापित हो रहे अंतराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले संस्थान हेतु संकल्पित तो 25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से ही था पर काशी से इस प्रयागराज (/काशी) में मेरा पदार्पण 5 सितम्बर, 2000 को ही हुआ था| जहाँ पर मै 11 सितम्बर, 2001 को वैश्विक रूप से प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित कर दिया गया और इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट लक्ष्य (प्रत्यक्ष में 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति तक अर्थात 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित रहा और इस दौरान मैं यहाँ मूल वैश्विक सारंगधर (केंद्रीय वैश्विक विष्णु) की मूल अवस्था के पांच के पांचों आयाम (वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा) को प्राप्त हुआ| = सारंगधर:---सारंग अर्थात सारंग धनुष से भवार्थित हो विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष); सारंग अर्थात गंगा से भवार्थित हो कमण्डल में गंगा/सारँग को धारण करने वाले ब्रह्मा; व् सारँग अर्थात गंगा से भावार्थित हो गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु ; शिव (सारँग अर्थात चंद्र से भावार्थित हो तो चन्द्रमा को अपने शिखर पर रखने वाले चंद्रशेखर:शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: शिव); और सारँग अर्थात गंगा:अल्का को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:गंगेश्वर(शिव)| बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ :सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/--/रामप्रसाद/ रमानाथ(/विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर/विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार से शाकाहारी तथा किसी भी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से आजीवन दूर रहने वाला|<<<=====>>>>विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर (/केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है---25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है:--=====>विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वह व्यक्तित्व जिसके अन्दर वैश्विक शिव के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक शिव जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक विष्णु के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक विष्णु जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण जैसा आचरण रहा हो; और वैश्विक राम के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक राम जैसा आचरण रहा हो तो फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था को प्राप्त ऐसी विभूति जिससे राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ हो उसको किसकी नक़ल करने की जरूरत पड़ती? == एक-एक गुरुकुल व् एक-एक व्यक्ति व् एक-एक व्यक्तित्व या एक-एक स्थान क्या गिनाया जा रहा है 20 (/25) वर्ष से; तो आप सबको ज्ञात हो कि इस संसार के सभी गुरुकुल और इस प्रकार समस्त मानवता और उसके सम्मान की रक्षा बिशुनपुर -223103, जौनपुर गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) ने किया था जिन्होंने मुझपर विश्वास करते हुए मुझे इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन काल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर के दो अद्वितीय दसक से ज्यादा के समय में पहले 11 सितम्बर, 2001 (वैश्विक शिव) और फिर 07 फरवरी, 2003 (वैश्विक विष्णु) को पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया था, जिसकी परिणति थी 29(/15-29) मई, 2006 (दोनों से युक्त वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण: परमब्रह्म विष्णु जाग्रत स्वरुप)) और 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (वैश्विक परमब्रह्म राम) और इस प्रकार ""30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019)//28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014)//11 (/10) सितम्बर, 2008""|>मैं प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए आगे भी कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975(/01 अगस्त, 1976) से 11 नवम्बर, 2057) तक आप सबका भौतिक रूप से हर प्रकार से साथ दूंगा- मेरी अब "(30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019)/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014)//11 (/10) सितम्बर, 2008 के बाद से: प्रमाणित मूल सारंगधर की मूल अवस्था/ परमब्रह्म विष्णु अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)) अवस्था के बाद से"" से किसी से कोई प्रतिस्पर्धा रही ही नहीं| = सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण सत्य द्वारा सबसे अधिकतम समय तक इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) ही केंद्रित रहते हुए कौन निरपेक्ष रूप से वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा और उनका एकल धारक वैश्विक कृष्ण और इस प्रकार उनका एकल धारक वैश्विक राम दायित्व का धारक रहा है अर्थात निर्वहन किया अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पॉंच के पाँचो स्वरुप (वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण व वैश्विक राम) को कौन प्राप्त हुआ है इसका प्राकृतिक व स्वाभाविक निर्धारण किया जाना था और वह 10/11 सितम्बर, 2008 (10:प्रयागराज (वैश्विक विष्णु+ वैश्विक ब्रह्मा) व 11:काशी (वैश्विक शिव)); 28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006 (मथुरा-वृंदाबन(वैश्विक कृष्ण)) और 30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/05 अगस्त, 2020/25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) (अयोध्या(वैश्विक राम)) को हो चुका है| = कृष्ण: वृष्णि वंश (/यदुवंश) कश्यप गोत्रीय, रोहिणी नक्षत्र, भाद्रपद, कृष्णपक्ष अष्टमी < = > इक्षाकुवंश (/सूर्यवंश) कश्यप गोत्रीय, पुनर्वसु नक्षत्र, चैत्र शुक्लपक्ष नवमी को जन्मे भगवान राम की कुलदेवी देवकाली (महागौरी के नौ स्वरुप में से एक देवकाली/महाकाली) के घोर भयानक(/डरावने) पूर्णातिपूर्ण काले स्वरुप के अलावा सभी हिन्दू देवी देवताओं का रूप-रंग आभा व् कान्तियुक्त तथा आकर्षक रहा है वह चाहे स्वेत (गौर वर्ण), पीले (/गेहुअन), नीले (/घनश्याम) व् लाल किसी भी रूप-रंग का रहा हो:--राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018):---वाल्मीकि रामायण में बताया है कैसे दिखते थे राम, कैसा था उनका स्वभाव और अन्य खास बातें:->>वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के बाल लंबे और चमकदार थे। चेहरा चंद्रमा के समान सौम्य, ""कांतिवाला"" कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे बड़ी और कमल के समान थी। उन्नत नाक यानी चेहरे के अनुरुप सुडोल और बड़ी नाक थी। = मैं ही त्रिरंगा (त्रिफला-कश्यप) और मैं ही भगवा (केंद्रीय विष्णु/सारंगधर मूल अवस्था), ऐसा मेरा कथन क्यों:----यह विश्व-मानवता अभी कम से कम एक सहस्राब्दी तक चलाये जाने की नीव विगत दो अद्वितीय दसक में रखी गयी है न तो फिर स्पष्ट है की इस विश्व-मानवता/सृस्टि को कम से कम एक सहस्राब्दी तक तो चलना ही चलना है ऐसे में मुझ त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) का आपसे भौतिक सम्बन्ध केवल और केवल 11 नवम्बर 1975 (/1 अगस्त 1976) से 11 नवम्बर 2057 (/1 अगस्त 2058) तक या इससे कुछ अधिक तक का ही है तो वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर आपको चाहिए ही था| इसके साथ ही साथ आपको विदित हो कि वैश्विक विष्णु (विष्णुकान्त/राम) और वैश्विक ब्रह्मा (कृष्णकान्त/कृष्ण) तो इस प्रयागराज में सर्व सुलभ हैं ही|--ऐसी सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप/त्रिफला-कश्यप, स्वयं हूँ और साथ ही साथ 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल का केंद्र बिंदु तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ| = कोई तो अद्वितीय समावेशी विशेष गुण रहा है राम और कृष्ण में कि आज तक भगवान राम और भगवान कृष्ण के अलावा कोई भी विष्णु अवतार परमब्रह्म अवस्था/पूर्णातिपूर्ण ईश्वर अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है यहाँ तक की परशुराम भी नहीं, जिनके शस्त्र गुरु स्वयं शिव व् शास्त्र गुरु स्वयं ऋषियों में ज्येष्ठ कश्यप ऋषि रहे हैं जिनके निर्देश पर वे प्रतिशोध की अग्नि को शान्त करने हेतु महेंद्र पर्वत/गिरी पर शांति प्राप्ति हेतु अंतर्ध्यान हो गए फिर भी अनंतकाल तक के लिए चिरंजीवी होने के कारण वे समय समय पर प्रकट हो अपना गुरुकुल चलाते रहे हैं| केरल, कोंकण, गुर्जर, राजस्थान और फिर आगे हिमाचल और उत्तराँचल से प्रारम्भ कर हिमालयी श्रृंखला क्षेत्र होते हुए पूर्वोत्तर में आसाम तक का क्षेत्र जिनके गुरुकुल का क्षेत्र रहा है|======सांसारिकता की बात है तो यह सत्य है कि मैं पैतृक रूप से सनातन आर्यक्षेत्र (आर्यमगढ़/आजमगढ़) से हूँ पर मेरा जन्म और प्राथमिक के कक्षा पांच से लेकर स्नातक की शिक्षा सप्तर्षिओं (सात मूल मानक ऋषि) में विष्णु के अनन्य भक्त भृगु के पुत्र जमदग्नि (परशुराम के पिता) के कर्म क्षेत्र जमदग्निपुर (जौनपुर) में हुई है (कक्षा चार तक की शिक्षा पैतृक गाँव में हुई है) लेकिन जो अपने में निर्विवादित रूप से स्पष्ट है वह व्यक्त करता हूँ|======>>कृष्ण: वृष्णि वंश (/यदुवंश) कश्यप गोत्रीय, रोहिणी नक्षत्र, भाद्रपद, कृष्णपक्ष अष्टमी < = = > इक्षाकुवंश (/सूर्यवंश) कश्यप गोत्रीय, पुनर्वसु नक्षत्र, चैत्र शुक्लपक्ष नवमी को जन्मे भगवान राम की कुलदेवी देवकाली (महागौरी के नौ स्वरुप में से एक देवकाली/महाकाली) के घोर भयानक(/डरावने) पूर्णातिपूर्ण काले स्वरुप के अलावा सभी हिन्दू देवी देवताओं का रूप-रंग आभा व् कान्तियुक्त तथा आकर्षक रहा है वह चाहे स्वेत (गौर वर्ण), पीले (/गेहुअन), नीले (/घनश्याम) व् लाल किसी भी रूप-रंग का रहा हो:--राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018):---वाल्मीकि रामायण में बताया है कैसे दिखते थे राम, कैसा था उनका स्वभाव और अन्य खास बातें:->>वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के बाल लंबे और चमकदार थे। चेहरा चंद्रमा के समान सौम्य, ""कांतिवाला"" कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे बड़ी और कमल के समान थी। उन्नत नाक यानी चेहरे के अनुरुप सुडोल और बड़ी नाक थी। = 25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के दौरान:--इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित हो समुचित समय पर समुचित दायित्व निर्वहन के साथ वैश्विक स्तर तक के शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा और राम, कृष्ण के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार वैश्विक मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था (/जो अब हो चुका है), न की देवियों का परीक्षण अनिवार्य था(आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए)|------विगत दो अद्वितीय दो दसक तक वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर (/केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है----सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है:-->>> काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपका वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) मंदिर बन गया/बन रहा है न; तो कुछ चर्चा स्वयं इस प्रयागराज में ही संस्थागत निमित्त भी की जाए वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के सन्दर्भ में=>विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है <=>मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार | वैसे तो सभी धनुष युद्ध में प्रयुक्त होते हैं पर सभी धनुष बराबर नहीं होते हैं; शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष सारंग; जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर राम के विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु परशुराम द्वारा विष्णु धनुष सारंग उनको ही संधान करने हेतु दिया गया था और राम ने ऐसा कर दिखाया था तो फिर जो शिव धनुष पिनाक तोड़ सकता है और सारङ्ग धनुष संधान कर सकता है तो फिर इससे बड़ा त्रिशक्ति धारण करने की क्षमता का प्रमाण और क्या होगा; जान कारी के लिए की आगे यही विष्णु धनुष सारंग और विष्णु का चक्र सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को धारण करने हेतु दिया था जब वे अपने मथुरा में कंश को मारकर गुरु संदीपनि से शिक्षा ग्रहणकर उनको उनके पुत्र पुरदत्त को वापस ला अपनी गुरु दक्षिणा पूर्ण कर घर जा रहे थे, तो ये धनुष सबसे अलग हैं| = आप में से कोई अपमानित और प्रतिशोधग्रस्त न होइए केवल अपने व्यक्तित्व व कृतित्व पर मंथन कीजिये; मैं तो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केवल और केवल मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास किया है उनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु यहाँ संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किये जाने पर वैश्विक मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) की अवस्था में रहते हुए और ऐसी अवस्था के पाँचों आयाम (वैश्विक राम, वैश्विक कृष्ण, वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा आयाम/अवस्था) को प्राप्त करते हुए: ----11 सितम्बर 2001 को मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर ने मुझको वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन करने के बाद दुबारा 07 फरवरी 2003 को मुझपर विश्वास व्यक्त करते हुए वैश्विक रूप से दॉँव पर लगा समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया था और 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित आवाज पर स्वयं दाँव पर लग समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ तथा इसके बाद भी संस्थागत और मानवतागत अभीष्ठ हित निमित्त 25 मई, 2018 (/31 जुलाई 2018) तक अनवरत संघर्ष जारी रहा जिसका ही परिणाम था संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (11 सितम्बर 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपके वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) के मंदिर बन गए/बन रहे हैं न? == काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपका वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) मंदिर बन गया/बन रहा है न; तो कुछ चर्चा स्वयं इस प्रयागराज में ही संस्थागत निमित्त भी की जाए वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के सन्दर्भ में=>कोई कहा पाण्डेय सामान्य विधि/ प्रक्रिया/ प्रोसेस से प्रयागराज विश्वविद्यालय स्टेट विश्वविद्यालय से अपने केंद्रीय स्वरुप को नहीं प्राप्त करता; और कोई कहा की ऐसे केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र/विभाग व् उनके समेत 11 नए केंद्र/विभाग की स्थापना (11 सितम्बर, 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) नहीं होती हैं पर ये सब तो हो गए लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहा और ऐसे विधि/प्रक्रिया/प्रोसेस के साथ ही साथ सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्र-मंथन व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल का भी दौर गुजर गया| लेकिन आपको विदित हो कि कोई स्वयं भले ही जानता रहा हो पर वास्तविक सन्दर्भ में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य(67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) 29 (/15-29) मई, 2006 को हांसिल हो जाने के पहले मैंने कहीं भी अपना कुल व् गोत्र प्रकट नहीं किया था अर्थात कुल और गोत्र आधार पर मैंने कोई सफलता पायी हो ऐसा नहीं रहा तो फिर आपको अपनी पहचान हेतु समाज चाहिए न तो फिर 29 मई, 2006 के बाद से ही मैंने अपना दोनों तरफा प्राकृतिक रूप से पेटेन्ट कुल और गोत्र आपकी सुविधा के लिए प्रकट किया की आप मेरा पीछा कर सकें और मुझे भी समाज का सुचारु रूप से चालन-सञ्चालन, रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण व् वर्धन-संवर्धन में सुविधा मिले और इस हेतु आपका मार्ग प्रशस्त करने हेतु अपने ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" और सोसल मीडिया के अन्य माध्यम के प्रयोग से अनुभव व् सच्चाई प्रकट करता रहा| और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य के निमित्त पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन-तीन बार संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो क्रमिक रूप से वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003)और फिर वैश्विक ब्रह्मा ( 29 (/15-29) मई, 2006) होते हुए इसी क्रम में मै वैश्विक सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) से वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त हो बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया|===यह सृष्टि (/संसार) तो त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न से ही चलता है तो इसे किस सहनशीलता तक रोचक और चमत्कारिक बनाना है उसके अनुरूप ही किसी न किसी को यह दायित्व उठाना ही पड़ता है तो इसके लिए मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव (सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण) को दोष न दीजिये अगर अपने हिस्से में आये किसी दायित्व से आप अपनी जान छुड़ाना चाह रहे हैं|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा<<=>केदारेश्वर ही सबका मूल माध्यम इसलिए है क्योंकि अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) प्राप्ति हेतु 29 (/15-29) मई, 2006 के बीच मेरे द्वारा किये गए विस्तृत विवरण युक्त संवाद व माँगी गयी सूचना को प्रेषित करने हेतु किये गए इमेल पत्राचार में केदारेश्वर केन्द्र के ही शोधछात्र युक्त हस्ताक्षर/सिग्नेचर से था| = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात "(मूल सारंगधर की मूल अवस्था/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| = इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित हो मैंने अपनी लेखनी (सच्चे सन्दर्भ में 29 (15-29) मई, 2006 आते आते अपना संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/ 11परिवार) पूर्ण कर लेने की उपरान्त 30 मई, 2006 से सतत चलायमान लेखनी: ब्लॉग, ऑरकुट, फेसबुक) तथा अपनी उपस्थिति (11 सितम्बर, 2001 (/5 सितम्बर, 2000)// 25 मई, 1998 (12 मई, 1997-- से--25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)) और फिर वर्तमान तक), हाव, भाव, आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार और त्याग, बलिदान, तप/योग/उद्यम/यत्न से वही ""ज्ञान व शिवत्व (कल्याण/मंगल का अन्तर्निहित भाव)"" इस सम्पूर्ण विश्व को सिखाया जिसने विश्वमहाविभीषिका (11 सितम्बर, 2001) को भी शिवमय/कल्याणकारी/मंगलमय बना दिया अर्थात इस बीस वर्ष के दौरान यथोचित रूप से सम्पूर्ण सहस्राब्दी महापरिवर्तन/ विश्वमहा-परिवर्तन/विश्व महा-समुद्रमंथन करा दिया जिससे विश्व-मानवता को कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सतत रूप से चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-सम्बर्धन हेतु जीवन के प्रत्येक क्षेत्र हेतु अमूल्य रत्न निकले और सम्पूर्ण संसार ""विश्व एक गाँव स्वरुप को प्राप्त कर लिया""| = = सनातन (/परमब्रह्म) राम (/कृष्ण::सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव)/ मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनके सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) /सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | = = सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| तो फिर ऋषि या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है| और फिर इन्ही से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल/संतति का प्रदुभाव होता है| = ऐसी सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप, स्वयं हूँ और साथ ही साथ 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | | 108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ 4.अत्रि, 5.भृगु, 6.आंगिरस , 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास, 10.च्यवन, 11.पुलह , 12.आष्टिषेण , 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव, 19.शांकृत्य, 20.आप्लवान, 21.सौकालीन, 22.सोपायन, 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व, 26.मैत्रेय, 27.पराशर, 28.उतथ्य, 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक, 33.अग्निवेष भारद्वाज, 34.कौण्डिन्य , 35.मित्रवरुण, 36.कपिल , 37.शक्ति , 38.पौलस्त्य, 39.दक्ष , 40.सांख्यायन कौशिक, 41.जमदग्नि, 42.कृष्णात्रेय, 43.भार्गव, 44.हारीत 45.धनञ्जय, 46.जैमिनी , 47.आश्वलायन 48.पुलस्त्य, 49.भारद्वाज , 50.कुत्स , 51.उद्दालक , 52.पातंजलि , 52.कौत्स , 54.कर्दम , 55.पाणिनि , 56.वत्स , 57.विश्वामित्र , 58.अगस्त्य , 59.कुश , 60.जमदग्नि कौशिक , 61.कुशिक , 62.देवराज , 63.धृत कौशिक, 64.किंडव , 65.कर्ण, 66.जातुकर्ण , 67.उपमन्यु , 68.गोभिल , 69. मुद्गल , 70.सुनक , 71.शाखाएं , 72.कल्पिष , 73.मनु , 74.माण्डब्य, 75.अम्बरीष, 76.उपलभ्य 77.व्याघ्रपाद , 78.जावाल , 79.धौम्य , 80.यागवल्क्य , 81.और्व , 82.दृढ़ , 83.उद्वाह , 84.रोहित , 85.सुपर्ण , 86.गाल्व 87.अनूप , 88.मार्क ण्डेय , 89.अनावृक , 90.आपस्तम्ब , 91.उत्पत्ति शाखा , 92.यास्क , 93.वीतहब्य , 94.वासुकि , 95.दालभ्य , 96.आयास्य , 97.लौंगाक्षि , 88.चित्र , 99.आसुरि , 100.शौनक , 101.पंचशाखा , 102.सावर्णि , 103.कात्यायन, 104.कंचन , 105.अलम्पायन , 106.अव्यय , 107.विल्च , 108.शांकल्य , = 109. विष्णु गोत्र = सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है मूल मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है |---मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) अर्थात परमगुरु परमपिता परमेश्वर की सहमति व आशीर्वाद से और जिनकी प्रेरणा से मैं इस प्रयागराज (/काशी) में मैं परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, जोशी (ब्रह्मा) द्वारा आह्वानित प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त 11 सितम्बर 2001 को वैश्विक शिव स्वरुप को प्राप्त हुआ ऐसे परमाचार्य परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द(चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ)|=--> 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक मेरा सनातन राम (/कृष्ण) के पांच के पाँचों स्वरुप तक का वैश्विक स्तर तक का दायित्व निर्वहन/परीक्षण हो चुका है:--वैश्विक शिव-11 सितम्बर, 2001///वैश्विक विष्णु-7 फरवरी, 2003////वैश्विक ब्रह्मा-29 मई, 2006///वैश्विक शिव(11/काशी)(+विष्णु+ब्रह्मा/10/प्रयागराज)-11( /10) सितम्बर, 2008/// वैश्विक राम-30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/5 अगस्त, 2020 /25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)///वैश्विक कृष्ण-28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006| = बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म अर्थात रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म केवल कहने के लिए और कोई अधिकार जताने या किसी पर बल प्रयोग हेतु नहीं हूँ; उसे विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक (22/25 वर्ष:12 मई, 1997 से 1 अगस्त, 2022// (25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) इस प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए मानव जगत में सम्भव सर्वोच्च आदर्श के साथ ऐसे सर्वोच्च दायित्व को जिया भी हूँ और यह विश्वमानवता को समर्पित मेरे समस्त गुरु (/जो भी हों) से वादा है कि कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (/1 अगस्त, 2058) तक उसे जीता भी रहूँगा|>>यह संसार आप सभी को व्यवहारिक, रुचिकर और चमत्कारिक लगे इस प्रकार विविधता में एकता के साथ ही साथ सत्य पर आधारित होते हुए इस विश्वमानवता के सतत संचालन का अपना ही महत्त्व होता है (जैसा सन्दर्भ हो:--जगत सत्य/व्यवहारिक सत्य; पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य; और पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान का पालन आवश्यक है); जो की त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न पर आधारित होता है| = विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का<=>मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार || शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र, सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| = इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)>>>===जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|==प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट सफलता को हाथ से जाता देख जब 29 (15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे?==यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?=हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिट ने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते हैं और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास हैं| === जिसकी ऊंचाई और गहराई तथा क्षेत्र विस्तार अनन्त हो और जो सम्पूर्ण मानवता का गर्भ स्थल और कवच रहा हो उसके बगल खड़े होकर अपना आकार नहीं नापते हैं:----जब यह समझ में आए तब न की विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ट/ब्रह्मलीन/समर्पित कौन था और संस्थागत और मानवतागत पूर्णातिपूर्ण अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त हो जाने पर भी कौन समयानुसार समुचित रूप से आगे भी ऐसे ही स्वरुप में बने रहने की क्षमता रखता है:-->>सनातन राम (/कृष्ण)/सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन आदिदेव /सदाशिव /महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनके आविर्भाव से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा (महागौरी की शक्ति का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| और इस प्रकार मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था से ही मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) के पांच के पांचो आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का उनके सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल त्रिशक्ति की छाया)>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (परमब्रह्म विष्णु)/सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव ( परमब्रह्म विष्णु)/सनातन राम(/कृष्ण) है| = मौलिक/नैसर्गिक दृष्टि से अफ्रीका के वैश्विक पैरोकार तमिल-तेलगु व् उत्तर में उनके अंध समर्थकों को हर प्रकार के यत्न/योग/उद्यम/तप कर लेने पर भी हर स्थिति में इस दुनिया में केवल एक आठवाँ अंश ही निहित है उन्हें एक आठवाँ भाग ही मिलने वाला है|और भी की मिश्रित व्यवस्था से निम्न संस्कृति वाले को ही अधिकतम लाभ है मिलता है यह केवल सैद्धांतिक ही नहीं वैज्ञानिक सत्य भी है| = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<<=>>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| == विगत अद्वितीय दो दसक से अधिक समय तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित हो मैंने अपनी लेखनी (सच्चे सन्दर्भ में 29 (15-29) मई, 2006 आते आते अपना संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/ 11परिवार) पूर्ण कर लेने की उपरान्त 30 मई, 2006 से सतत चलायमान लेखनी: ब्लॉग-Vivekanand and Modern Tradition, ऑरकुट, फेसबुक) तथा अपनी उपस्थिति (11 सितम्बर, 2001 (/5 सितम्बर, 2000)// 25 मई, 1998 (12 मई, 1997--- से----25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)) और फिर वर्तमान तक), हाव, भाव, आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति-संस्कार और त्याग, बलिदान, तप/योग/उद्यम/यत्न से वही """"ज्ञान व शिवत्व (कल्याण/मंगल का अन्तर्निहित भाव)""""" इस सम्पूर्ण विश्व को सिखाया जिसने विश्वमहाविभीषिका (11 सितम्बर, 2001) को भी शिवमय/कल्याणकारी/मंगलमय बना दिया अर्थात इस बीस वर्ष के दौरान यथोचित रूप से सम्पूर्ण सहस्राब्दी महापरिवर्तन/ विश्वमहा-परिवर्तन/विश्व महा-समुद्रमंथन करा दिया जिससे विश्व-मानवता को कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सतत रूप से चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-सम्बर्धन हेतु जीवन के प्रत्येक क्षेत्र हेतु अमूल्य रत्न निकले और सम्पूर्ण संसार """विश्व एक गाँव स्वरुप को प्राप्त कर लिया""""|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<<=====>>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| == इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)>>>सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण): मुझे अनैतिक व चरित्रहीन होने की कोई जरूरत नहीं किसी को अपना कहलवाने या अपना बनाने हेतु; तो फिर उस देवी के सिवा जो विधि-विधान और यम-नियम से मेरे सानिध्य में हो किसी अन्य देवी से किसी भी प्रकार के भौतिक या अनैतिक संपर्क से संतान की मुझे कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है; और न किसी भी देवी से ऐसा कोई भौतिक या अनैतिक संपर्क मेरा रहा है| पर जिसने मुझे अपना माना हो और अपनी सन्तति को अप्रत्यक्ष मुझे समर्पित किया हो या अन्य कोई भी किसी संतति को मुझे समर्पित/संकल्पित किया हो तो उसके प्रति मेरे स्वाभाविक प्रेम से उसको मेरा तेज अवश्य प्राप्त होगा ====जो मेरा था/है और जिसने मुझसे कभी निःस्वार्थ प्रेम किया था वह आज भी मेरा ही है और मुझे उससे उतना ही प्रेम है चाहे यह संसार कल-बल-छल व् साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनसे मेरे प्रति अपराध/अपमान ही क्यों न कराया हो या मुझे अभिशिप्त भी क्यों न कराया हो|======और यह की इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित सिद्धि निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को जब मैं वैश्विक शिव के स्वरुप में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? पुनः 7 फरवरी, 2003 को जब पूर्णातिपूर्ण रूप से मैं वैश्विक विष्णु के स्वरुप में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे? इसके बाद अभीष्ट सफलता को हाथ से जाता देख जब 29 (15-29) मई, 2006 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं निहित चेतना से मैं वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हुआ अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु से युक्त वैश्विक ब्रह्मा बना इस प्रकार विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के जाग्रत अवस्था परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त हुआ तो फिर क्या उसमें मेरे साथ मेरे समस्त परिवारजन और सम्बन्धी तथा पैतृक सम्पत्ति मेरे किसी काम के थे?======यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?=हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते हैं और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास हैं| === विश्व-मानवता का मूल/जड़त्व केन्द्र 10/11 सितम्बर, 2008 (10:प्रयागराज (वैश्विक विष्णु+ वैश्विक ब्रह्मा) व 11:काशी (वैश्विक शिव)) से ही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप से दक्षिण भारत से उत्तर भारत ऐसे ही नहीं हो गया है:====वैश्विक शिव-11 सितम्बर, 2001 (प्रयागराज)///वैश्विक विष्णु-7 फरवरी, 2003 (प्रयागराज)////वैश्विक ब्रह्मा-29 मई, 2006 (प्रयागराज)==>>स्वयं निहित आर्थिक व भौतिक स्वार्थ्य; और सीमित व अस्थाई मानसिकता की सीमा के अंतर्गत कार्य करने वाले स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय माफिया या आतंकवादी संगठन या अन्य कोई सीमित सिद्धांत वाला संगठन/संस्था/दल/पार्टी द्वारा नहीं किया जाएगा और न किया गया है बल्कि ""पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान द्वारा"" 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमण काल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौरान सबसे अधिकतम समय तक इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) ही केंद्रित रहते हुए कौन निरपेक्ष रूप से वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा और उनका एकल धारक वैश्विक कृष्ण और इस प्रकार उनका एकल धारक वैश्विक राम दायित्व का धारक रहा है अर्थात निर्वहन किया अर्थात वैश्विक मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पॉंच के पाँचो स्वरुप (वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, वैश्विक ब्रह्मा, वैश्विक कृष्ण व वैश्विक राम) को कौन प्राप्त हुआ है इसका प्राकृतिक व स्वाभाविक निर्धारण किया जाना था और वह 10/11 सितम्बर, 2008 (10:प्रयागराज (वैश्विक विष्णु+ वैश्विक ब्रह्मा) व 11:काशी (वैश्विक शिव)); 28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006 (मथुरा-वृंदाबन(वैश्विक कृष्ण)) और 30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/05 अगस्त, 2020/25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) (अयोध्या(वैश्विक राम)) को हो चुका है| == कृष्ण: वृष्णि वंश (/यदुवंश) कश्यप गोत्रीय, रोहिणी नक्षत्र, कृष्णपक्ष भाद्रपद अष्टमी< <- --> >इक्षाकुवंश (/सूर्यवंश) कश्यप गोत्र में पुनर्वसु नक्षत्र, शुक्लपक्ष चैत्र नवमी को जन्मे भगवान राम की कुलदेवी देवकाली (महागौरी के नौ स्वरुप में से एक देवकाली/महाकाली) के घोर भयानक(/डरावने) काले स्वरुप के अलावा सभी हिन्दू देवी देवताओं का रूप-रंग आभा व् कान्तियुक्त तथा आकर्षक रहा है वह चाहे स्वेत (गौर वर्ण), पीले (/गेहुअन), नीले (/घनश्याम) व् लाल किसी भी रूप-रंग का रहा हो:----राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018):---वाल्मीकि रामायण में बताया है कैसे दिखते थे राम, कैसा था उनका स्वभाव और अन्य खास बातें:->>वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के बाल लंबे और चमकदार थे। चेहरा चंद्रमा के समान सौम्य, ""कांतिवाला"" कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे बड़ी और कमल के समान थी। उन्नत नाक यानी चेहरे के अनुरुप सुडोल और बड़ी नाक थी। == 11 सितम्बर, 2001(वैश्विक मूल शिव:11 सितम्बर, 2008 से सहस्राब्दियों हेतु काशी में पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित):-पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य : कम से कम एक सहस्राब्दी निमित्त मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखते हुए व्यवहारिक सत्य से अति परे विशेष संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग तो विश्व-जनमानस को होनी ही है नहीं तो स्वतंत्रता अतिघातक स्वक्षन्दता में बदल जाती है और इस मानवता के रक्षण-संरक्षण, चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण और वर्धन-संवर्धन हेतु जो लोग आजतक त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न किये है उनका प्रतिकार और अपमान होगा|---नश्लीय (काले) रँग का उन्माद इतना की भारत माता भी काले रँग की ही चाहिए: --दक्षिण भारत की तरह उत्तर भारत में भी महानुभावों; देवी-देवताओं, और महापुरुषों की मूर्तियों को रँग दीजिये काले रंग से जिसका परिणाम यह होगा कि आप रोयेंगे और तरसेंगे सुंदरता (शिव:सत्यम शिवम सुंदरम) के लिए तमिल-तेलगु की ही तरह आपका द्रविण (धनसंपदा का खोखला आवरण) काम नहीं आएगा|<=> प्रायोजित छ्द्म (/कूटरचित) प्रेम; प्रायोजित छ्द्म (/कूटरचित) प्रेम विवाह और प्रायोजित छ्द्म (/कूटरचित) पारिवारिक समझौते के तहत आयोजित विवाह विवाह का स्थानीय से लेकर प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर तक का आपका कैसा गिरोह बन्द सामाजिक न्याय है की महिला-मित्र/पत्नी/बहु तो केवल गौर वर्ण वाली ही प्रथम प्रायिकता है आपकी; पर उस महिला-मित्र/पत्नी/बहु के भाई/भतीजे/पिता सब आपके रँग अर्थात काले रँग के हों तभी प्रिय होंगे?--मौलिक/नैसर्गिक दृष्टि से अफ्रीका के वैश्विक पैरोकार तमिल-तेलगु व् उत्तर में उनके अंध समर्थकों को हर प्रकार के यत्न/योग/उद्यम/तप कर लेने पर भी हर स्थिति में इस दुनिया में केवल एक आठवाँ अंश ही निहित है उन्हें एक आठवाँ भाग ही मिलने वाला है|<=>और भी की मिश्रित व्यवस्था से निम्न संस्कृति वाले को ही अधिकतम लाभ है मिलता है यह केवल सैद्धांतिक ही नहीं वैज्ञानिक सत्य भी है| = राम वह है जो तन-मन (/मष्तिष्क) और आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से सुन्दर हो| राम वह है जो विष्णु की तरह पापों का नाश करे और शिव की तरह पापों को जला दे; और कृष्ण वह जो इस समस्त मानवता के कलुष को समाप्त कर उसे निर्मल बनाये; न की वह जिसका शरीर कृष्णिका जैसा काला हो|अनायास ही नहीं 11/10 सितम्बर, 2008 से विश्व मानवता का मूल केंद्र दक्षिण भारत से उत्तर भारत हो गया है: मेरा पूरे दो वर्ष का प्रोफेशनली तो सामान्य पर जीवन के सभी पहलुओं का सम्यक दृषिकोण के साथ अतीव तेज कार्य करने वाले मनोदशा में दक्षिण का अध्ययन है दक्षिण रहते हुए (भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के शताब्दी वर्ष में प्रवास के दौर में)- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।। करोड़ों सूर्य की आभा से ज्योतिमान भगवान भोलेनाथ शिव के दत्तक पुत्र गणेश से प्रार्थना है की उत्तर भारतीयों को सद्बुद्धि दे कि दक्षिण भारत की तरह उत्तर भारत के लोगों, महापुरुषों और देवी-देवताओं की मूर्तियों तक को भी तमिल-तेलगु के सबसे प्रिय रँग अर्थात काले रँग से रँगे जाने का परिणाम वही होता है जो स्वयं तमिल-तेलगु का हो चुका है अर्थात उत्तर भारत भी सुंदरता (शिव: सत्यम शिवम् सुंदरम) के लिए तरसेगा और सब ज्ञान-विज्ञान और कला-कौशल रहते हुए भी उनकी प्रवृत्ति भी असुरों जैसी होगी| === प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत सभी अभीष्ट लक्ष्य यथोचित सकुशल सम्पन्न हो चुके हैं तो यह कोई प्रतिक्रियात्मक नहीं रावण के ससुराल की जानकारी इसमें निहित है:>गुरुदेव (जोशी:1999-2004:तत्कालीन ब्रह्मा)) तक सूचना पंहुचे की मुझे आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) से प्रयागराज आने के केवल तीन ही रास्ते हैं एक तो काशी होकर, दूसरा जमदग्निपुर (/जौनपुर) होकर और तीसरा अवध होकर तो किसी भी स्थिति में मेरठ (मेघनाद के ननिहाल) से होकर प्रयागराज नहीं आना पड़ता है की मेघनाद के शिष्य कुल का हो उनका भी कर्ज उतरना पड़े| == विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर (/केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है---25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पांचो वैश्विक आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है:-->>>सारंग अर्थात सारंग धनुष से भवार्थित हो विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष); सारंग अर्थात गंगा से भवार्थित हो कमण्डल में गंगा/सारँग को धारण करने वाले ब्रह्मा; व् सारँग अर्थात गंगा से भावार्थित हो गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु ; शिव ( सारँग अर्थात चंद्र से भावार्थित हो तो चंद्रशेखर:शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव); और सारँग अर्थात गंगा:अल्का को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:गंगेश्वर(शिव)|===>>विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वह व्यक्तित्व जिसके अन्दर वैश्विक शिव के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक शिव जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक विष्णु के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक विष्णु जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण जैसा आचरण रहा हो; और वैश्विक राम के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक राम जैसा आचरण रहा हो तो फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था को प्राप्त ऐसी विभूति जिससे राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ हो उसको किसकी नक़ल करने की जरूरत पड़ती?===>>बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ :सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/--/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| == 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर तक जिनके हिस्से में शिव रहा उनको वैश्विक शिव की सौगात, जिनके हिस्से में कृष्ण रहा उसको वैश्विक कृष्ण की सौगात और जिनके हिस्से में राम रहा उनको वैश्विक राम की सौगात और प्रयागराज को सर्व सुलभ वैश्विक विष्णु (/राम=विष्णुकान्त) और सर्व सुलभ वैश्विक ब्रह्मा (/कृष्ण=कृष्णकान्त) की सौगात:====काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपका वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) मंदिर बन गया/बन रहा है न; तो कुछ चर्चा स्वयं इस प्रयागराज में ही संस्थागत निमित्त भी की जाए वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के सन्दर्भ में==>कोई कहा पाण्डेय सामान्य विधि/ प्रक्रिया/ प्रोसेस से प्रयागराज विश्वविद्यालय स्टेट विश्वविद्यालय से अपने केंद्रीय स्वरुप को नहीं प्राप्त करता; और कोई कहा की ऐसे केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र/विभाग व् उनके समेत 11 नए केंद्र/विभाग की स्थापना (11 सितम्बर, 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) नहीं होती हैं पर ये सब तो हो गए लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहा और ऐसे विधि/प्रक्रिया/प्रोसेस के साथ ही साथ सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्र-मंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल का भी दौर गुजर गया| लेकिन आपको विदित हो कि कोई स्वयं भले ही जानता रहा हो पर वास्तविक सन्दर्भ में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) 29 (/15-29) मई, 2006 को हांसिल हो जाने के पहले मैंने कहीं भी अपना कुल व् गोत्र प्रकट नहीं किया था अर्थात कुल और गोत्र आधार पर मैंने कोई सफलता पायी हो ऐसा नहीं रहा तो फिर आपको अपनी पहचान हेतु समाज चाहिए न तो फिर 29 मई, 2006 के बाद से ही मैंने अपना दोनों तरफा प्राकृतिक रूप से पेटेन्ट कुल और गोत्र आपकी सुविधा के लिए प्रकट किया की आप मेरा पीछा कर सकें और मुझे भी समाज का सुचारु रूप से चालन-सञ्चालन, रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण व् वर्धन-संवर्धन में सुविधा मिले और इस हेतु आपका मार्ग प्रशस्त करने हेतु अपने ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" और सोसल मीडिया के अन्य माध्यम के प्रयोग से अनुभव व् सच्चाई प्रकट करता रहा| और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य के निमित्त पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन-तीन बार संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो क्रमिक रूप से वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003) और फिर वैश्विक ब्रह्मा ( 29 (/15-29) मई, 2006) होते हुए इसी क्रम में मै वैश्विक सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) से वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त हो बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया|====यह सृष्टि (/संसार) तो त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न से ही चलता है तो इसे किस सहनशीलता तक रोचक और चमत्कारिक बनाना है उसके अनुरूप ही किसी न किसी को यह दायित्व उठाना ही पड़ता है तो इसके लिए मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव (सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण:: सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप) को दोष न दीजिये अगर अपने हिस्से में आये किसी दायित्व से आप अपनी जान छुड़ाना चाह रहे हैं|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा<<=>केदारेश्वर ही सबका मूल माध्यम इसलिए है क्योंकि अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) प्राप्ति हेतु 29 (/15-29) मई, 2006 के बीच मेरे द्वारा किये गए विस्तृत विवरण युक्त संवाद व माँगी गयी सूचना को प्रेषित करने हेतु किये गए इमेल पत्राचार में केदारेश्वर केन्द्र के ही शोधछात्र युक्त हस्ताक्षर/सिग्नेचर से था| == विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैं अर्थात "(मूल सारंगधर की मूल अवस्था/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव/सांगत शक्तियों समेत एकल स्वरुप में ब्रह्मा, विष्णु और शिव/सनातन राम (/कृष्ण))" ने सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं| === प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत सभी अभीष्ट लक्ष्य यथोचित सकुशल सम्पन्न हो चुके हैं तो यह कोई प्रतिक्रियात्मक नहीं रावण के ससुराल की जानकारी इसमें निहित है:>गुरुदेव (जोशी:1999-2004:तत्कालीन ब्रह्मा)) तक सूचना पंहुचे की मुझे आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) से प्रयागराज आने के केवल तीन ही रास्ते हैं एक तो काशी होकर, दूसरा जमदग्निपुर (/जौनपुर) होकर और तीसरा अवध होकर तो किसी भी स्थिति में मेरठ (मेघनाद के ननिहाल) से होकर प्रयागराज नहीं आना पड़ता है की मेघनाद के शिष्य कुल का हो उनका भी कर्ज उतरना पड़े|------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान वैश्विक स्तर तक के मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के कोई आयाम नहीं छूटा है अर्थात /विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आद्या/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम/कृष्ण से ही उनके पांचो आयाम क्रमसः राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है| = तो फिर आप सबको तमिल-तेलगु के सामने नत मस्तक होना है तो होइए पर मैं आज भी वही प्रयागराज (/काशी) हूँ जो विपक्ष में खड़े इस संसार के हर ज्ञानी-विज्ञानी को परास्त करते हुए मात्र 14 दिन अर्थात ""15 मई, 2006 से 29 मई, 2006 तक" ही सक्रीय हो मैंने डॉ. कलाम (जिनका मै स्वयं व्यक्तिगत रूप से सम्मान करता था/हूँ) की ओट में कार्यरत तमिल-तेलगू का चक्रव्यूह भेद कर अपना लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) हांसिल कर लिया था---तो मैं क्रियाशील रूप से विशेष पूर्णातिपूर्ण वैश्विक ब्रह्मा (अर्थात वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु युक्त ब्रह्मा अर्थात सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण) अवस्था मे 14 दिन के लिए रहा अपने अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति तक: मुझे निष्पक्ष ही स्वीकार कर लीजिये क्योंकि मै तमिल-तेलगु ही नहीं अपितु किसी भी सज्जन या दुर्जन का अहित नहीं चाहता हूँ और पर उनके कृतित्व को उनके परिमार्जन हेतु ही जाहिर कर दिया करता हूँ वह भी तब जबकि उनका इसमें सीधे अब कोई अहित नहीं बल्कि उनके समेत सम्पूर्ण मानवता का हित निहित है; ऐसा इसलिए क्योंकि मेरा किसी के भी विपक्ष में होते हुए मुझे सक्रीय रूप से सहन कर पाना बहुत कष्टकारी होता है| = जब मेरे (प्रयागराज (/काशी) के ही विश्व मानवता का मूल/जड़त्व केन्द्र बने रहने से ही दुनिया की प्रत्यक्ष और परोक्ष चमत्कारिकता और रोचकता इस विगत अद्वितीय दो दसक से अधिक समय तक जारी है और आगे भी समयानुकूल समुचित रूप से जारी रहने वाली है (ऐसे में 11 सितम्बर, 2008 से यह प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से विश्व-मानवता का केंद्र साबित हो चुका है) तो अगर हम अपना जड़त्व/मूल स्वभाव छोड़ दें आपसे निकृष्टतम प्रतिवाद करने में तो फिर आप का और इस सम्पूर्ण दुनिया के चमत्कारिकता और रोचकता का क्या होगा और फिर इस दुनिया के अस्तित्व का क्या होगा? तो फिर मुझमें और अपने में आप अन्तर स्वयं समझ लीजिये की आप एक परजीवी हैं; और यह समझें की आपका अस्तित्व भी मुझसे ही रहा है और मुझसे ही रहेगा और आपकी दुर्व्यसन की ऐसी ही प्रवृत्ति बनी रही तो आप हमेशा परजीवी ही बने रहेंगे अर्थात गाय की पूंछ पकड़कर ही भव सागर पार करेंगे, अपने बूते नहीं पार कर सकते; तो आपकी दुर्व्यसन की ऐसी ही आदत आपको निम्न कोटि का नागरिक बनाती है और इसमें अब सुधार लाइए नहीं तो जिस गाय का पूंछ पकड़कर आप भव सागर पार करना चाह रहे है उसका भी आधार और ऊर्जा स्रोत होने के नाते हम उसका भी अस्तित्व प्रभावित कर सकते हैं| = मेरे द्वितीय सुपुत्र कृष्णकान्त को जन्मदिन की शुभकामनाएं:--यह पोस्ट श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कृष्ण पक्ष शाम बुधवार 8.12 बजे तिथि 28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014) -(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का योग कई वर्षों की तुलना में सर्वाधिक था| 5057 वर्ष बाद ऐसा संयोग जो की बुधवार ही के दिन जिस दिन श्रीकृष्ण जन्म हुआ था और रोहिणी नक्षत्र योग 28 अगस्त दोपहर 12.50 से 29 अगस्त, सुबह 3.28 तक था अर्थात 5057 वर्ष तक ऐसा संयोग नहीं हुआ था) को मेरे द्वितीय सुपुत्र कृष्णकान्त (राशिनाम: वासुदेव अर्थात कृष्ण) के जन्म के एक दिन पहले का है तो फिर स्वाभाविक रूप से इनके जन्म का इन्तजार एक दिन पहले से था पर अपने सही समय पर उनको आना था///प्रथम सुपुत्र, विष्णुकान्त (राशिनाम: वेदांग अर्थात वेद जिसके अंग हों अर्थात विष्णु:राम) का जन्म-शुक्ल पक्ष, वृहस्पतिवार सुबह 5.11 तिथि 30 सितम्बर 2010 (/ 9 नवम्बर 2019/5 अगस्त, 2020)| = इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए (फरवरी, 2017)>>>=== विवेक/सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/शिव व् शिवा:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव/सनातन राम (राशिनाम: गिरिधर अर्थात कृष्ण):---25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर तक जिनके हिस्से में मै शिव रहा उनको वैश्विक शिव की सौगात, जिनके हिस्से में मै कृष्ण रहा उसको वैश्विक कृष्ण की सौगात और जिनके हिस्से में मै राम रहा उनको वैश्विक राम की सौगात और प्रयागराज को सर्व सुलभ वैश्विक विष्णु (/राम=विष्णुकान्त) और सर्व सुलभ वैश्विक ब्रह्मा (/कृष्ण=कृष्णकान्त) की सौगात:==काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपका वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) मंदिर बन गया/बन रहा है न; तो कुछ चर्चा स्वयं इस प्रयागराज में ही संस्थागत निमित्त भी की जाए वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के सन्दर्भ में=>कोई कहा पाण्डेय सामान्य विधि/ प्रक्रिया/ प्रोसेस से प्रयागराज विश्वविद्यालय स्टेट विश्वविद्यालय से अपने केंद्रीय स्वरुप को नहीं प्राप्त करता; और कोई कहा की ऐसे केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र/विभाग व् उनके समेत 11 नए केंद्र/विभाग की स्थापना (11 सितम्बर, 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) नहीं होती हैं पर ये सब तो हो गए लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहा और ऐसे विधि/प्रक्रिया/प्रोसेस के साथ ही साथ सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्र-मंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल का भी दौर गुजर गया| लेकिन आपको विदित हो कि कोई स्वयं भले ही जानता रहा हो पर वास्तविक सन्दर्भ में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) 29 (/15-29) मई, 2006 को हांसिल हो जाने के पहले मैंने कहीं भी अपना कुल व् गोत्र प्रकट नहीं किया था अर्थात कुल और गोत्र आधार पर मैंने कोई सफलता पायी हो ऐसा नहीं रहा तो फिर आपको अपनी पहचान हेतु समाज चाहिए न तो फिर 29 मई, 2006 के बाद से ही मैंने अपना दोनों तरफा प्राकृतिक रूप से पेटेन्ट कुल और गोत्र आपकी सुविधा के लिए प्रकट किया की आप मेरा पीछा कर सकें और मुझे भी समाज का सुचारु रूप से चालन-सञ्चालन, रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण व् वर्धन-संवर्धन में सुविधा मिले और इस हेतु आपका मार्ग प्रशस्त करने हेतु अपने ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" और सोसल मीडिया के अन्य माध्यम के प्रयोग से अनुभव व् सच्चाई प्रकट करता रहा| और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य के निमित्त पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन-तीन बार संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो क्रमिक रूप से वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003) और फिर वैश्विक ब्रह्मा ( 29 (/15-29) मई, 2006) होते हुए इसी क्रम में मै वैश्विक सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत अवस्था/वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) से वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त हो बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया|==यह सृष्टि (/संसार) तो त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न से ही चलता है तो इसे किस सहनशीलता तक रोचक और चमत्कारिक बनाना है उसके अनुरूप ही किसी न किसी को यह दायित्व उठाना ही पड़ता है तो इसके लिए मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/महाशिव/ सदाशिव (सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम (/कृष्ण:: सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप) को दोष न दीजिये अगर अपने हिस्से में आये किसी दायित्व से आप अपनी जान छुड़ाना चाह रहे हैं|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरामें बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा<<=>केदारेश्वर ही सबका मूल माध्यम इसलिए है क्योंकि अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) प्राप्ति हेतु 29 (/15-29) मई, 2006 के बीच मेरे द्वारा किये गए विस्तृत विवरण युक्त संवाद व माँगी गयी सूचना को प्रेषित करने हेतु किये गए इमेल पत्राचार में केदारेश्वर केन्द्र के ही शोधछात्र युक्त हस्ताक्षर/सिग्नेचर से था| = आसुरी शक्तियों के शरण दाता वैश्विक शिव जब स्वयं आसुरी शक्तियों से घिर जाते हैं तो स्वयं वैश्विक शिव को असुरों से मुक्त कराने का कार्य तो वैश्विक मूल सारंगधर (केन्द्रीय) विष्णु ही करते आये हैं तो वह विशेष कार्य भी हो गया (शिव का ही वरदान पाकर शिव को ही समाप्त कर शिव-शक्ति पार्वती को पा स्वयं शिव होने की चेष्टा करने वाले भस्मासुर को विष्णु द्वारा समाप्त करना एक प्रमुख उदाहरण) :----सनातन हिन्दू धर्म जिसे ब्राह्मण धर्म भी कहते हैं का रंचमात्र भी वायलेशन नहीं हुआ है:----विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला:------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /महा-समुद्रमंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर तक जिनके हिस्से में मै शिव रहा उनको वैश्विक शिव की सौगात, जिनके हिस्से में मै कृष्ण रहा उसको वैश्विक कृष्ण की सौगात और जिनके हिस्से में मै राम रहा उनको वैश्विक राम की सौगात और प्रयागराज को सर्व सुलभ वैश्विक विष्णु (/राम=विष्णुकान्त) और सर्व सुलभ वैश्विक ब्रह्मा (/कृष्ण=कृष्णकान्त) की सौगात:===काशी, अयोध्या व् मथुरा-वृंदावन में क्रमसः आपका वैश्विक स्तर का शिव (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) और कृष्ण (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) मंदिर बन गया/बन रहा है न; तो कुछ चर्चा स्वयं इस प्रयागराज में ही संस्थागत निमित्त भी की जाए वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के सन्दर्भ में==========विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का<========>मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र, सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं|==== ===>कोई कहा पाण्डेय सामान्य विधि/ प्रक्रिया/ प्रोसेस से प्रयागराज विश्वविद्यालय स्टेट विश्वविद्यालय से अपने केंद्रीय स्वरुप को नहीं प्राप्त करता; ===और कोई कहा की पाण्डेय ऐसे केदारेश्वर (/आदिशिव) नामित केंद्र/विभाग व् उनके समेत 11 नए केंद्र/विभाग की स्थापना (11 सितम्बर, 2001 से लेकर 29 मई, 2006:: 67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) नहीं होती हैं पर ये सब तो हो गए लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं रहा और ऐसे विधि/प्रक्रिया/प्रोसेस के साथ ही साथ सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्र-मंथन काल व उसके संक्रमण काल तथा उत्तर संक्रमण काल का भी दौर गुजर गया| लेकिन आपको विदित हो कि कोई स्वयं भले ही जानता रहा हो पर वास्तविक सन्दर्भ में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) 29 (/15-29) मई, 2006 को हांसिल हो जाने के पहले मैंने कहीं भी अपना कुल व् गोत्र प्रकट नहीं किया था अर्थात कुल और गोत्र आधार पर मैंने कोई सफलता पायी हो ऐसा नहीं रहा तो फिर आपको अपनी पहचान हेतु समाज चाहिए न तो फिर 29 मई, 2006 के बाद से ही मैंने अपना दोनों तरफा प्राकृतिक रूप से पेटेन्ट कुल और गोत्र आपकी सुविधा के लिए प्रकट किया की आप मेरा पीछा कर सकें और मुझे भी समाज का सुचारु रूप से चालन-सञ्चालन, रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण व् वर्धन-संवर्धन में सुविधा मिले और इस हेतु आपका मार्ग प्रशस्त करने हेतु अपने ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" और सोसल मीडिया के अन्य माध्यम के प्रयोग से अनुभव व् सच्चाई प्रकट करता रहा| और इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य के निमित्त पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन-तीन बार संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो क्रमिक रूप से वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003) और फिर वैश्विक ब्रह्मा ( 29 (/15-29) मई, 2006) होते हुए इसी क्रम में मै वैश्विक सशरीर विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत अवस्था/वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) से वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) को प्राप्त हो बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया|=======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरामें बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<=>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा<<=>केदारेश्वर ही सबका मूल माध्यम इसलिए है क्योंकि अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) प्राप्ति हेतु 29 (/15-29) मई, 2006 के बीच मेरे द्वारा किये गए विस्तृत विवरण युक्त संवाद व माँगी गयी सूचना को प्रेषित करने हेतु किये गए इमेल पत्राचार में केदारेश्वर केन्द्र के ही शोधछात्र युक्त हस्ताक्षर/सिग्नेचर से था| = 11 सितम्बर, 2008 को वैश्विक शिव को काशी में पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया और अब वे सहस्राब्दियों तक अपने परिवार समेत वहीं रहेंगे और उनकी छायाप्रति ही इस प्रयागराज (काशी) से दूर किसी स्थान या विदेश के किसी कोने में जाएगी और यह मूल प्रति यहीं की यहीं रहेगी| = == =आसुरी शक्तिओं के प्रभाव से दूषित शक्तियों के बल पर स्वयं आसुरी शक्ति के शिकार हो वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा होने का नाटक करने की धृष्ट्ता कोई भी करता हो वह सदा के लिए छोड़ दे तो उसके स्वयं के लिए और मानवता दोनों के लिए उचित रहेगा तब जबकि वैश्विक शिव स्वयं काशी में प्रतिस्थापित हो चुके हैं (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर, 2021//11 सितम्बर, 2001; वैश्विक राम स्वयं अयोध्या में प्रतिस्थापित (30 सितम्बर, 2010 (/09 नवम्बर, 2019/5अगस्त, 2020)/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल. 2018) हो चुके हैं और वैश्विक कृष्ण स्वयं मथुरा-वृन्दाबन में स्थापित हो चुके हैं (/28 अगस्त, 2013(/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006)) तथा वैश्विक विष्णु (विष्णुकान्त/राम) और वैश्विक ब्रह्मा (कृष्णकान्त/कृष्ण) स्वयं प्रयागराज में सर्व सुलभ रूप से विद्यमान हैं| ---------विशुद्ध भाव से वैश्विक शिव शक्ति 11 सितम्बर, 2001 से 10/11 सितम्बर, 2008 तक मेरे साथ रही उसी प्रकार विशुद्ध भाव से वैश्विक विष्णु शक्ति 07 फरवरी, 2003 से 10/11 सितम्बर, 2008 तक मेरे साथ रही और इसी प्रकार विशुद्ध भाव से वैश्विक ब्रह्मा की शक्ति 25/29 मई, 2006 से 10/11 मई, 2008 तक मेरे साथ रही पर 25/29 मई, 2006 को जब मेरे सशरीर परमब्रह्म विष्णु और फिर सशरीर परमब्रह्म विष्णु से उनकी जाग्रत अवस्था सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप होते ही अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हो चुकी (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) तो फिर जब ऐसी अवस्था से जब मुझे हुए वैश्विक कृष्ण स्वरुप और वैश्विक राम स्वरुप में आने को हुआ तो ऐसे में इन शक्तियों का कोई उपयुक्त धारक न मिला तो मैंने अपने सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप से 10 सितम्बर, 2008 को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा को प्रयागराज में समाहित किया और 11 सितम्बर, 2008 को वैश्विक शिव को काशी में पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया और अब वे सहस्राब्दियों तक अपने परिवार समेत वहीं रहेंगे और उनकी छायाप्रति ही इस प्रयागराज (काशी) से दूर किसी स्थान या विदेश के किसी कोने में जाएगी और यह मूल प्रति यहीं की यहीं रहेगी| = हांलाकी मुझे 29 (/15-29) मई, 2006 को स्वयं निहित निर्देश पर तीसरी बार पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होना पड़ा था वास्तविक सन्दर्भ में पूर्ण लक्ष्य प्राप्त करने हेतु तथापि तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, वैश्विक मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर) ने विशेष निर्देश दिया था कि किसी भी स्थिति में तुमको इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) से अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण हुए बिना कहीं नहीं जाना है:;7 फरवरी 2003 को दूसरी बार प्रत्यक्ष रुप से संस्थागत व् अप्रत्यक्ष मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन करते हुए| जबकि अपने निमित्त और अपने स्तर पर उनके आशीर्वाद, सहमति और निर्देश पर पहली बार 11 सितम्बर, 2001 को प्रत्यक्ष रुप से संस्थागत व् अप्रत्यक्ष मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन मैं ही किया गया था और तब स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तन को दृष्टिगत करते हुए नियमों का हवाला देते हुए कार्य बाधित कर दिया गया था| = इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अर्थात प्रथम भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में यह अकाट्य सत्य ही है कि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|और इसके साथ विश्व मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह भी अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलता है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| = 11 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (काशी) में स्थापित धर्मचक्र /कालचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक आपका साक्षात्कार समुचित समय पर अवश्य ही लेगा:-वैश्विक शिव (11 सितम्बर 2001), वैश्विक विष्णु (7 फरवरी 2003) और वैश्विक ब्रह्मा (15 (/15-29) मई 2006) के स्वरुप से साक्षात्कार तो प्रयागराज (/काशी) वासियों से करा चुका था पर वैश्विक कृष्ण (प्रामाणिक कृष्ण:अभीष्ट लक्ष्य हाँसिल किये हुए कृष्ण) द्वारा वैश्विक ईसाई समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक कृष्ण मन्दिर (29 (/15-29) मई 2006/28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014) कहाँ सम्भव था (कृष्ण समानान्तर ईसाइयत)? और वैश्विक राम (प्रामाणिक राम:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए राम) द्वारा वैश्विक इस्लामिक समाज को बिना साक्षात्कार कराये वैश्विक राम मन्दिर(/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/30 सितम्बर 2010 (/09 नवम्बर 2019/5अगस्त 2020)/13 अप्रैल 2018) कहाँ सम्भव था (राम समानान्तर इस्लामियत)? और सम्पूर्ण विश्व-मानवता से वैश्विक शिव (प्रामाणिक शिव:अभीष्ट लक्ष्य हांसिल किये हुए शिव) के साक्षात्कार हुए बिना वैश्विक शिव मन्दिर (11 सितम्बर, 2008/ 8 मार्च, 2018/13 दिसम्बर 2021/11 सितम्बर 2001) कहाँ सम्भव था?==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान(//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है| = विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वह व्यक्तित्व जिसके अन्दर वैश्विक शिव के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक शिव जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक विष्णु के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक विष्णु जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण जैसा आचरण रहा हो; और वैश्विक राम के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक राम जैसा आचरण रहा हो तो फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था को प्राप्त ऐसी विभूति जिससे राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ हो उसको किसकी नक़ल करने की जरूरत पड़ती| = आप पाँचों में से जो भी नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत पर चलते हुए कमजोर पड़ा मैं तो उसी के साथ हो लिया क्योंकि मुझे स्थानीय से लेकर वैश्विक सन्दर्भ तक नैसर्गिक/सनातन सिद्धांत की रक्षा करनी ही करनी थी|------विगत दो अद्वितीय दशक से अधिक के समय में इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज काशी में अगर पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य (//समानान्तर इस्लाम) को पता है कि मैं ही 11 सितम्बर 2001/11 सितम्बर 2008 अर्थात वैश्विक शिव रहा हूँ--और--मै ही 30 सितम्बर 2010/09 नवम्बर 2019/25 मई 2018/31 जुलाई 2018/13 अप्रैल 2018 अर्थात वैश्विक राम रहा हूँ--तथा--पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगततारन/करूणानिधि/पतितपावन (समानान्तर ईसाइयत) को यह पता की मैं ही 28 अगस्त 2013/16 मार्च 2014/29 (/15-29) मई 2006 अर्थात वैश्विक मै ही कृष्ण रहा हूँ तो सनातन हिन्दू समेत सम्पूर्ण विश्व समाज को यह भी पता होना चाहिए की मैं ही 07 फरवरी 2003 और 29 (/15-29) मई 2006 अर्थात मैं ही वैश्विक वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी रहा हूँ अर्थात केंद्रीय विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ हूँ अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव और इस प्रकार सनातन आदि देव/पुराणपुरुष/सनातन आद्या/संतान राम कृष्ण अवस्था कोमैं ही प्राप्त हुआ हूँ जिससे मूल सारंगधर के पाँच के पाँचो आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत देविओं समेत आविर्भाव हुआ है| == इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैं """(मूल सारंगधर की मूल अवस्था/मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु केंद्रीय स्वरुप की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/सदाशिव/सांगत शक्तियों समेत एकल स्वरुप में ब्रह्मा, विष्णु और शिव/सनातन राम (/कृष्ण))""" सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:-मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी बुधवारीय (/प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवारीय) व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं<<==>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके​ संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|<<=>>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = वैश्विक स्तर तक के शिव (11 सितम्बर, 2008/11 सितम्बर, 2001), राम (30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/5 अगस्त, 2020/25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018))/कृष्ण (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006) मन्दिर हेतु किसी के महादेव (शिव) तथा परमब्रह्म परमेश्वर (राम/कृष्ण) होने का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है (और इस प्रकार जगत व्यापी और प्रयागराज केंद्रित इन तीनों के केंद्र बिन्दु मेरे वैश्विक विष्णु स्वरूप अर्थात मूल सारंगधर स्वरुप (7 फरवरी, 2003/10 सितम्बर, 2008) और मेरे वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप (29 मई, 2006/10 सितम्बर, 2008) का भी परीक्षण इस प्रयागराज (/काशी) में हुआ है)):=>>आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत सभी अभीष्ट प्रयोजन की सिद्धि हेतु ऐसे मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का तो फिर वह 25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के बीच हो चुका है और अब किसी परीक्षण की जरूरत नहीं रही:=>विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए इस प्रकार अपने स्वाभाविक स्थान और स्वाभाविक अवस्था में रह अपना स्वाभाविक दायित्व निभाते हुए इन अद्वितीय दो दसक से अधिक समय में मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम (/कृष्ण) भी वैश्विक हो चुके हैं और इस प्रकार उन के पांच के पाँचों आयाम अर्थात आपके राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा भी वैश्विक हो चुके है::=>वैश्विक राम-30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/5 अगस्त, 2020 /25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)///वैश्विक कृष्ण-28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006///वैश्विक शिव-11 सितम्बर, 2001///वैश्विक विष्णु-7 फरवरी, 2003////वैश्विक ब्रह्मा-29 मई, 2006///वैश्विक शिव(11/काशी)(+विष्णु+ब्रह्मा/10/प्रयागराज)-11( /10) सितम्बर, 2008 और इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक मेरे पांच के पाँचों स्वरुप का परीक्षण हो चुका है|<=>आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:=विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम/कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर आसुरी शक्तियों के प्रभाव में व्याप्त अव्यवस्था के बीच मेरे स्वयं के लिए किसी भी स्थिति में अनुमन्य न होने पर भी नारी जीवन के संघर्ष को देखते हुए और साथ ही हर माह उनको पवित्र बनाने की ईश्वरीय देन को देखते हुए वैश्विक स्तर तक के शिव, राम, कृष्ण और विष्णु तथा ब्रह्मा के रूप में मैं केवल अपने नैतिक और चरित्र बल की जिम्मेदारी लूंगा और इस प्रकार सनातन राम (/कृष्ण) के पाँच के पाँचों वैश्विक स्वरूप के अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु केवल मेरा ही परीक्षण अनिवार्य था न की देवियों का<==>मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||=जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र, सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?==>>विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|======मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| == यह मत कहिये की पैतृक जिला आजमगढ़ (सनातन आर्य क्षेत्र) में कुछ ही वर्ष (रेगुलर) रहा हूँ तो फिर वहाँ का अनुभव मुझे कम है:-------किसी निर्दोष पर कोई आंच न आये तो ऐसे तथ्य को और सम्यक वैश्विक परिवर्तन को ध्यान में रख जैसी जिसकी उपयोगिता है उस अनुसार ही एक व्यक्ति अपना कार्य करेगा और स्थान विशेष पर उस अनुसार अपनी क्षमता का उचित समय पर उचित प्रयोग करेगा तो यह मत कहिये की पैतृक जिला आजमगढ़ (सनातन आर्य क्षेत्र) में मै कुछ ही वर्ष (रेगुलर) रहा हूँ तो फिर वहाँ का अनुभव मुझे कम है, जब इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मुझे तैनात कर इस सम्पूर्ण विश्व-मानवता का ही मुझे बना दिए हैं आप:====आज तो पूरा विश्व अपना हो गया है पर यह अवसर जिसका परिणामी है वह इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 को मुझे संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ करने का ही परिणामी है अर्थात वैश्विक मोर्चे परतत्कालीन रूप से इस 25 वर्षीय अखण्ड ब्रह्मचर्य युवा को आपने 11 सितम्बर, 2001 को लगा दिया गया था और आपको याद हो कि शायद मैं तब यहाँ के लिए नया था अर्थात आप के अनुसार मुझे यहॉं का भी अनुभव नहीं था न जैसा की 5 सितम्बर, 2000 को ही बोरिया बिस्तर समेत काशी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) से यहाँ आया था| = सनातन धर्म (/ब्राह्मण धर्म) के दिशा निर्देश का हर हाल में पूर्णतः पालन हुआ है:===>>सशरीर परमब्रह्म राम (/कृष्ण:::सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप)::>>>>=>सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण:: सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप)===>पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान अर्थात 25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018 की सीमा रेखा के परे नहीं बल्कि अभी तक अन्दर हूँ ही हूँ और अन्दर ही रहूँगा अर्थात इस संसार के किसी पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान से परे आम आदमी के जीवन में हूँ तो फिर इसी से अंदाज हो जाना चाहिए की सदाशिव/महाशिव की चरम पराकाष्ठा पार कर भी महाशिव/सदाशिव की सीमा रेखा के अन्दर ही हूँ और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत निमित्त अभीष्ट लक्ष्य हांसिल करने के बाद भी सामान्य मानव जीवन में भी सदाशिव/महाशिव स्वरुप में ही विद्यमान हूँ और अपने मूल पद पर ही हूँ और अपने मूल पद पर ही रहूँगा इसमें कोई संदेह न कीजिये<=====>मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और यह भी की विगत दो अद्वितीय दसक में मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से एक भी आयाम नहीं छूटा है|---मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) अर्थात परमगुरु परमपिता परमेश्वर की सहमति व आशीर्वाद से और जिनकी प्रेरणा से मैं इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, जोशी (ब्रह्मा) द्वारा आह्वानित प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त 11 सितम्बर 2001 को वैश्विक शिव स्वरुप को प्राप्त हुआ ऐसे परमाचार्य परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द(चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ)|== =--> और यह सिलसिला यही तक नहीं थमा इसी प्रयागराज (/काशी) में अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति तक अर्थात 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक मेरा मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पांच के पाँचों स्वरुप तक का वैश्विक स्तर तक का दायित्व निर्वहन/परीक्षण हो चुका है:--वैश्विक शिव-11 सितम्बर, 2001///वैश्विक विष्णु-7 फरवरी, 2003////वैश्विक ब्रह्मा-29 मई, 2006///वैश्विक शिव(11/काशी)(+विष्णु+ब्रह्मा/10/प्रयागराज)-11( /10) सितम्बर, 2008/// वैश्विक राम-30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/5 अगस्त, 2020 /25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)///वैश्विक कृष्ण-28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006|<<==>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|==>>>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = ज़रा सोचिये अपने प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र के पूर्वजों/अग्रजों के बारे में भी जिन्होंने आपके अनुसार आज तक आप को सताया है (जिनकी वजह से आज आपका सम्पूर्ण दुनिया में विस्तार हो चुका है):----इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में इस विश्व-मानवता के रक्षण-संरक्षण, चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण और वर्धन-संवर्धन हेतु आपके इतने पूर्वज/अग्रज लोग आज तक कितना और कैसे स्तर तक का त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न किये है की आज भी यह प्रयागराज (/काशी) भारत का प्रथम सांस्कृतिक केन्द्र बना हुआ है जबकि सुदूर दक्षिण स्थित किष्किंधा क्षेत्र स्थित बैंगलोर ज्ञान-विज्ञान-तकनीकी का उच्च केंद्र होने के बाद भी आज भी दूसरा ही भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र कहलाता है| यह गौरव हांसिल होने के बावजूद आपको शिकायत रहती है की आपके उन पूर्वजो/अग्रजों ने आपको सताया है (जिनकी वजह से आज आपका सम्पूर्ण दुनिया में विस्तार हो चुका है)| = विश्व-मानवता के गुरुत्व/जड़त्व अर्थात सनातन हिन्दू धर्म को किसी भी स्थिति में कोई हानि न पंहुचने से सम्पूर्ण विश्व-मानवता को लाभ है चाहे वह कोई भी मानवीय जाति/पन्थ/मजहब हो तो सबके बीच में समन्वय/संतुलन किसी भी स्थिति में आवश्यक है ही:----भैया आप अपने यहाँ बेतहासा ईसाईकरण से अपना निवारण कर लीजिये और उत्तर भारत स्वयं अपनी क्षमता के बल पर इस्लामीकरण और ईसाईकरण दोनों से अपना निवारण कर लेगा और इस प्रकार हम दोनों स्वावलम्बी बन जाएंगे तो दोनों के लिए अच्छा रहेगा |---------हिन्दू, ईसाइयत और इस्लाम का संतुलन और समन्वय दक्षिण और उत्तर दोनों की जिम्मेदारी है और यह स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रवाद से नहीं जाने वाला है: सामाजिक अनुभव और विज्ञान स्वयं कहता है की ईसाईकरण अपनाने से जीवन के शॉफ्ट क्षेत्र में लाभ ज्यादा है तो आप उससे समन्वय स्थापित करने में जब लचीला रुख अपनाते हैं तो उनका आपके यहां प्रसार होता है और बदले में आप ऐसे शॉफ्ट क्षेत्र में लाभान्वित होते हैं और फिर आप उस क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता पर उन्माद करने लगते हैं; पर हाँ आगे चलकर ऐसे लोग ईसाई समुदाय की तरह मानवीय संसाधन की कमी जरूर महसूस करते है| और ऐसे में जो उत्तर भारत ईसाइयत और इस्लाम दोनों से समन्वय व् संतुलन स्थापित करने में रत रहता है वह जीवन के जीवन के सॉफ्ट क्षेत्र में अवश्य ही कुछ पीछे अपने आप हो जाता है पर ऐसे लोग मानवीय संसाधन की कमी नहीं महसूस करते हैं| == कम से कम 11 नवम्बर, 1975(/01 अगस्त, 1976) से 11 नवम्बर, 2057(/01 अगस्त, 2058) तक:---यद्यपि दूरस्थ स्थित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत रहने वाले संस्था स्थापना निमित्त 25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से ही संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन था तथापि कोई विकल्प न होने पर तत्कालीन रूप से इस 25 वर्षीय (जन्म: 11 नवम्बर, 1975(/01 अगस्त, 1976)) अखण्ड ब्रह्मचर्य युवा को आपने 11 सितम्बर, 2001 को वैश्विक मोर्चे पर लगा दिया गया था अर्थात प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से विश्वमानवतागत अभीष्ट हित के निमित्त संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया था; और आपको याद हो कि शायद मैं तब इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) के लिए नया था अर्थात आप के अनुसार मुझे यहॉं का भी अनुभव नहीं था न जैसा की 5 सितम्बर, 2000 को ही बोरिया बिस्तर समेत काशी (/काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) से यहाँ आया था| विगत दो अद्वितीय दसक के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: शिव, विष्णु, ब्रह्मा, कृष्ण और राम) में से कोई भी आयाम नहीं छूटा है ===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल:---ऐसे दौर गुजर जाने के बाद ऐसे दौर के स्तर के दायित्व की वास्तविक सन्दर्भ में आवश्यता नहीं रही तो फिर सामान्यतः इस दुनिया को अपनी सहनसीलता अनुसार रोचक और चमत्कारिक बनाये रखते हुए एक आम जन को व्यावहारिक जीवन जीने की कला सीख लेनी चाहिए|===आप बहुत ही भाग्यशाली हैं की विगत अद्वितीय दो दसक को आप जीते हुए इस दौर में प्रवेश किये है तो उस दौर में मेरे सशरीर की भौतिक अवस्था आपने देखी नहीं थी न?===सामान्य जीवन में कार्यरत रह क्यों पूर्णातिपूर्ण शिव होने का स्वांग कोई रचा रहा जब क्षमता और सहनशीलता दोनों की दृष्टि से आप इस दायित्व के योग्य नहीं हैं/थे इस जन्म में तो फिर मूल वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001) की ऊर्जा को उस दौर में मैंने धारण किया था और इतना ही नहीं उसी अवस्था में मूल विष्णु (07 फरवरी, 2003) और मूल ब्रह्मा 29 (15-29) मई, 2006) की ऊर्जा को भी इसी क्रम में धारण किया था जिसकी परिणति है वैश्विक शिव(11 सितम्बर, 2008 /काशी)(+विष्णु+ब्रह्मा/10 सितम्बर, 2008 /प्रयागराज)-11( /10) सितम्बर, 2008/// वैश्विक राम-30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/5 अगस्त, 2020 /25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)///वैश्विक कृष्ण-28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006| तो ऐसे अवस्था की पराकाष्ठा के प्रभाव में वास्तविक सन्दर्भ में 29 (15-29) मई, 2006 को अपने संकल्प/समर्पण/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के बाद मूल वैश्विक शिव को उनके मूल धाम काशी में 11 सितम्बर, 2008 को पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया था अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के जाग्रत स्वरुप परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप से तो सामजिक रूप से कोई उनका मूल प्रतिरूप तो मौजूद तो नहीं है पर हाँ उनका अंश स्वरुप ही ऐसा हर कोई सामाजिक शिव रहेगा| 225 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|=>>मुझ बिशुनपुर-रामापुर एक युग्म और इस प्रकार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म का प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| == तो वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण हो 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित निर्देश पर तीसरी बार पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो अपना अभीष्ट लक्ष्य (67:परिवारिक सदस्य/11:परिवार) प्राप्त करना वैश्विक संतुलन हेतु एक आवश्यक कार्यवाही थी जिसको जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य वालों को समझाने में मुझे आज 16 वर्ष लग गए और पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य को समझाने में 12 वर्ष (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) लग गए जबकि पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य ने तो उसी समय मुझे समझकर इसे स्वीकार कर लिया था|==तो समझ में आया की वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण हो 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित निर्देश पर तीसरी बार पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो अपना अभीष्ट लक्ष्य (67:परिवारिक सदस्य/11:परिवार) क्यों प्राप्त करना पड़ा था?== तो वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण हो 29 (/15-29) मई 2006 को स्वयं निहित निर्देश पर तीसरी बार पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो अपना अभीष्ट लक्ष्य (67:परिवारिक सदस्य/11:परिवार प्राप्ति) प्राप्त करना वैश्विक संतुलन हेतु एक आवश्यक कार्यवाही थी जिसको जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य वालों को समझाने में मुझे आज 16 वर्ष लग गए और पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य को समझाने में 12(25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) वर्ष लग गए जबकि पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान ने तो उसी समय मुझे समझकर इसे स्वीकार कर लिया था| == 11 सितम्बर, 2001 को मेरे वैश्विक शिव स्वरुप का सफल परीक्षण इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मुझे प्रथम बार संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ करते हुए किया गया; स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर के परिवर्तन के बीच इसी प्रयागराज (/काशी) में मुझे पुनः संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ करते हुए 07 फरवरी, 2003 से 14 मई, 2006 तक मेरे वैश्विक विष्णु स्वरुप का सफल परीक्षण किया गया और जिसके आगे दूसरी बार स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर के परिवर्तन के बीच अभीष्ट लक्ष्य हाँथ से जाता देख स्वयं निहित संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो 15 मई, 2006 से 29 मई, 2006 तक मेरे वैश्विक ब्रह्मा होने का परीक्षण हुआ जिसकी परिणति मेरे वैश्विक परमब्रह्म विष्णु स्वरुप(सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप) में हो उनकी जाग्रत अवस्था वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण के स्वरुप में हो मैंने अपने प्रत्यक्ष रूप से अभीष्ट लक्ष्य (67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) को भी प्राप्त किया और आगे 12 वर्ष तक और परीक्षण के परिणाम स्वरुप मै 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को मैं इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अपना सभी लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण प्राप्त करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप को प्राप्त हुआ तो अब उसके बाद कोई भी प्रतिकार मेरा निरर्थक है| इसी बीच 2006 से 2018 के मध्य 2008 के प्रथम अर्ध्य में धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत समस्त मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के टूट जाने पर मेरे तत्कालीन परमब्रह्म विष्णु स्वरुप की जाग्रत अवस्था (परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप) की ऊर्जा से 11 सितम्बर, 2008 से जो वैश्विक शिव काशी में पुनर्प्रस्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित हैं वे कम से कम सहस्राब्दियों तक ऐसे धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत समस्त मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के रक्षक बने रहेंगे जिस धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र से स्थानीय से लेकर प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर तक के व्यक्तियों का सामना होगा--->--जिस-जिस ने मेरा प्रतिकार किया सबने सार्वभैमिक यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान को स्वयं तोड़ा क्योंकि वे स्वयं पूर्णातिपूर्ण नहीं बल्कि स्थानीय, राष्ट्रिय व् अंतरार्ष्ट्रीय स्तर तक की वाह्य शक्तियों से निर्देशित किये जाते रहे हैं वे लोग:--क्या तमिल-तेलगु और उत्तर भारत के उनके पक्षधर से स्वयं सनातन हिन्दू धर्म के ऐसे सार्वभौमिक नियम का पालन हुआ था 2001 से 2006 के बीच:--और इस प्रकार क्या धर्म चक्र /कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में नहीं टूटा था? -मै जगत सत्य/व्यवहारिक सत्य; पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य; और पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान सभी की बात कर रहा हूँ=धर्म चक्र (सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र क्यों टूटा था 2008 के प्रथम अर्ध्य में जिसको 11 सितम्बर, 2008 को मेरे परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था ) द्वारा पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित किया गया और इस प्रकार मुझे काशी जाकर मेरे परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था ) द्वारा वैश्विक शिव की पुनर्प्रतिष्ठा/पुनर्स्थापना स्वयं करना पड़ा| >>>क्या तमिल-तेलगु और उत्तर भारत के उनके पक्षधर से स्वयं सनातन हिन्दू धर्म के ऐसे सार्वभौमिक नियम का पालन हुआ था 2001 से 2006 के बीच:--वह दुनिया जो जातीय रूप से बफर है और जहाँ पर नश्ल (वैज्ञानिक तथ्य) ही मुख्य आयाम है मैं उसकी बात नहीं कर रहा; उनका अपना अपना सिद्धांत है और हर धर्म व् जाति व् नश्ल को अपनी स्थानीय से लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर तक अपने अस्तित्व की रक्षा का अधिकार भी है; पर भारत वर्ष जहाँ व्यावहारिक स्तर पर सामाजिक रूप से जातीय व धार्मिक व्यवस्था लागू है वहाँ हिन्दू धर्म वैवाहिक मामले में इस्लाम या अन्य धर्म से ज्यादा कठोर है और वह यह है की:>>सनातन हिन्दू समाज की किसी भी स्त्री या पुरुष का अपनी ही जाति में विवाह सब प्रकार से सर्वोपरि है पर अंतर जातीय/अंतर धार्मिक विवाह में हिन्दू शास्त्रीय विधि से अर्थात पाँव पूजन पद्धति से विवाह (अन्य किसी भी तरह के विवाह की बात नहीं) तभी मान्य है जब वर पक्ष शास्त्रीय विवाह के सम्पूर्ण कर्म काण्ड में आह्वानित सभी देवी देवताओं के प्रति सच्ची श्रद्धा, आस्था, निष्ठा व् विश्वास रखता हो (जिसमें अधिकतम हिन्दू देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है)|----और इस प्रकार क्या धर्म चक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में नहीं टूटा था? = 30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/और/28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014:---सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर के दो अद्वितीय दसक से ज्यादा का समय अर्थात लगभग 25 वर्ष (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)//12 मई, 1997 से 1 अगस्त, 2022) गुजर गए जिसमें हम निर्णायक रूप से राष्ट्रिय व्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक व्यवस्था के अंग बन चुके हैं:===25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता/समर्पण मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = बिशुनपुर-223103-रामापुर-223225 एकल युग्म अर्थात रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म केवल कहने के लिए और कोई अधिकार जताने या किसी पर बल प्रयोग हेतु नहीं हूँ; उसे विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय तक (22/25 वर्ष: (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)//12 मई, 1997 से 1 अगस्त, 2022) इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए मानव जगत में सम्भव सर्वोच्च आदर्श के साथ ऐसे सर्वोच्च दायित्व को जिया भी हूँ और यह विश्वमानवता को समर्पित मेरे समस्त गुरु (/जो भी हों) से वादा है कि कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (/1 अगस्त, 2058) तक उसे जीता भी रहूँगा|>>>>यह संसार आप सभी को व्यवहारिक, रुचिकर और चमत्कारिक लगे इस प्रकार विविधता में एकता के साथ ही साथ सत्य पर आधारित होते हुए इस विश्वमानवता के सतत संचालन का अपना ही महत्त्व होता है (जैसा सन्दर्भ हो:--जगत सत्य/व्यवहारिक सत्य; पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य; और पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान का पालन आवश्यक है); जो की त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न पर आधारित होता है|==>सशरीर परमब्रह्म राम (/कृष्ण)<<==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि/पतित पावन (//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और यह भी की विगत दो अद्वितीय दसक में मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम में से एक भी आयाम नहीं छूटा है|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|==मेरा प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और वह भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| === ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा (मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था) और मैं ही तिरंगा (त्रिफला:त्रिदेव/त्रिदेवी/त्रिपत्र)| तो इसमें से किसी एक का भी अनुशरण करते हैं आप तो धर्मचक्र/कालचक्र/कथित अशोकचक्र का सामना आप सकुशल कर लेंगे|=====विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वह व्यक्तित्व जिसके अन्दर वैश्विक शिव के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक शिव जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक विष्णु के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक विष्णु जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण जैसा आचरण रहा हो; और वैश्विक राम के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक राम जैसा आचरण रहा हो तो फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था को प्राप्त ऐसी विभूति जिससे राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ हो उसको किसकी नक़ल करने की जरूरत पड़ती?========गुरु अगर स्वयं परमगुरु परमपिता परमेश्वर मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) हो जाएँ या की फिर गुरु सशरीर परमब्रह्म परमेश्वर स्वयं हो जाएँ अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) स्वयं गुरु हो जाएँ तो फिर उसके प्रभाव में सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल जैसा दौर भी ऐसे सकुशल बीत जाता है की ऐसे दौर का भी पता ही नहीं चलता है:------->>>सबका यथोचित सम्मान है पर मूल सारङ्गधर (श्रीधर:विष्णु) से ही समस्त देवी-देवताओं समेत इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है इसमें कोई संदेह न कीजिये; हांलाकी 11 सितम्बर, 2001 को ही वैश्विक शिव के रूप में मैं इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था परन्तु वैश्विक परिवर्तन बीच नियमों का हवाला देकर कार्य बाधित कर दिए जाने से दूसरी युक्ति के तहत सफलता पाने हेतु प्रयास में मेरे दूसरी बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किये जाने को मैंने अस्वीकार कर दिया था तो फिर फरवरी 2003 में जब मैंने आगे यहाँ बने रहने से मना किया तो 7 फरवरी, 2003 को मूल सारङ्गधर (श्रीधर:विष्णु) ने कहा था की जोशी (ब्रह्मा) और प्रेमचन्द (शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सम्मान को बनाये रखने हेतु प्रयागराज (/काशी) स्थित प्रयागराज विश्विद्यालय में बिना केदारेश्वर (आदिशिव) की स्थापना हुए तुमको यहाँ से कहीं नहीं जाना है तो फिर ऐसी परिस्थिति में मुझे वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी होते हुए "मूल सारङ्गधर की मूल अवस्था"' में आना ही था क्योंकि केदारेश्वर (आदिशिव) तो इसी प्रक्रिया से आविर्भवित हो सकते हैं) तो फिर वैश्विक परिवर्तन बीच असंभव को सम्भव बनाने की जिद में ऐसी अवस्था से स्वयं निहित संकल्प/समर्पण द्वारा वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर 29 (15-29) मई, 2006 को केदारेश्वर(आदिशिव) के समेत 11 परिवार को 67 पारिवारिक सदस्यों के साथ आबाद कर दिया गया| फिर जिसने मुझे नहीं पहचाना था 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए उनको इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर वैश्विक परमब्रह्म राम के रूप में पहचनवा दिया| तो फिर 16 मार्च, 2014 (/28 अगस्त, 2013)//29 (15-29) मई, 2006 (कृष्ण) और 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010)/// 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (राम) की परिणति तो होनी ही थी और इसके पहले 11(/10) सितम्बर, 2008 को मैंने अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप से विष्णु और ब्रह्मा को सपरिवार प्रयागराज और शिव को सपरिवार काशी पंहुचा धर्मचक्र को पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया था|>>>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए फरवरी, 2017)<| == इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 (/वास्तविक सन्दर्भ 25 मई, 1998/12 मई, 1997 से ही) से संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होकर मैने अपना ॠषि (/गुरु) ऋण (29(15-29)-05-2006//25-05-2018(/31--7-2018)) को; देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008//27-30 अगस्त, 2017) को (बंगलुरू प्रवास (25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ); और मात्रृ-पितृ ऋण (30-09-2010//28-08-2013) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 से 29 (15-29), मई, 2006 आते आते ही मैं पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका पर 12 वर्ष और संघर्षरत रह सांसारिक रूप से भी हर प्रकार से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो फिर आगे चलकर 30-09-2010/28-08-2013 का प्रमाण पत्र 09-11-2019 को चाहे भले ही जारी किया गया हो| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 09-11-2019/5-08-2020 ( (/30-09-2010) और 16-03-2014 (/28-08-2013) के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु) के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|====गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001) या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| इस विगत अद्वितीय दो दसक तक प्रयागराज (/काशी) केंद्रित नव सृजन (विशेष रूप से::यही विशेष अन्तर मुझमें और उनमें है क्योंकि उनकी जो प्रकृति है वह नवसृजन हेतु अपना सर्वसमर्पण की नहीं अपितु केवल और केवल किये और अनकिये की अधिकार की लड़ाई मात्र का है) के साथ विश्वमानवता का आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन समयानुकूल सुचारु रूप से चलता रहा तो फिर सतह पर कार्यरत लोगों को सम्पूर्ण सहस्राब्दी परिवर्तन का आभास कैसे होता और यही तो विश्वमानवता के कुशल रूप से आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन की खूबी रही है:===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|====मेरा प्रतिद्वंदी यह संसार जानना चाहा तो अटकलों पर अंतिम विराम लगाने हेतु बता दिया (11 सितम्बर, 2001) जो की वैश्विक और सीमा पार से (उसके सीमा के अन्दर से भी सम्बन्ध हो सकते हैं) तथा अभिलेखों अनुसार मेरी ही तरह रविवारीय (वास्तविक दिवस कुछ भी हो) रहा है और प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और मेरा प्रतिरूप भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = सनातन राम (/कृष्ण)/ मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ महाशिव/ सदाशिव/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या द्वारा किसी भी गुरु की अवमानना नहीं बल्कि उनका उन्नयन ही किया गया है: वास्तविक संदर्भ में जहाँ तक केवल गुरुजन वृन्द की बात है तो उनको उनकी गुरुदक्षिणा मेरे सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप से (67 (पारिवारिक सदस्य)/11(परिवार)) तिथि 29 मई, 2006 को ही दी जा चुकी थी पर उन पर आसुरी शक्तियों का आवरण बराबर बने रहने की वजह से उनको इसका आभास ही नहीं रहा जिसकी वजह से वे कालिदास जैसा व्यवहार कर अपने ही आधार केदारेश्वर (/आदिशिव(/महामृत्युंजय/विश्वेश्वर)) को ही काटने में लगे रहे लोगों का ही साथ देते रहे तो फिर बिना किसी मर्यादा का हनन किये हुए 12 वर्ष और लगाते हुए 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को इन आसुरी शक्तियों का आवरण हटा मैं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप से आगे पंहुच सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्रमाणित कर दिया जिसका प्रमाणपत्र ""परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान"" ने 09 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010) को सार्वजनिक रूप से दे दिया| === यह संसार आप सभी को व्यवहारिक, रुचिकर और चमत्कारिक लगे इस प्रकार विविधता में एकता के साथ ही साथ सत्य पर आधारित होते हुए इस विश्वमानवता के सतत संचालन का अपना ही महत्त्व होता है (जैसा सन्दर्भ हो:- जगत सत्य/व्यवहारिक सत्य; पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य; और पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान का पालन आवश्यक है); जो की त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न पर आधारित होता है| प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 (/वास्तविक सन्दर्भ 25 मई, 1998/12 मई, 1997 से ही (दूरस्थ-विश्वस्तरीय वैज्ञानिक संस्था की स्थापना हेतु) से संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ होकर मैने अपना ॠषि (/गुरु) ऋण (29(15-29)-05-2006//25-05-2018(/31-7-2018)) को; देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008//27-30 अगस्त, 2017) को (बंगलुरू प्रवास (25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ); और मात्रृ-पितृ ऋण (30-09-2010//28-08-2013) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 से 29 (15-29), मई, 2006 आते आते ही मैं पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका पर 12 वर्ष और संघर्षरत रह सांसारिक रूप से भी हर प्रकार से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो फिर आगे चलकर 30-09-2010/28-08-2013 का प्रमाण पत्र 09-11-2019 को चाहे भले ही जारी किया गया हो| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 09-11-2019/5-08-2020 (/30-09-2010) और 16-03-2014 (/28-08-2013) के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु) के परमब्रह्म स्वरूप के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|==गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001) या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| इस विगत अद्वितीय दो दसक तक प्रयागराज (/काशी) केंद्रित नव सृजन (विशेष रूप से::यही विशेष अन्तर मुझमें और उनमें है क्योंकि उनकी जो प्रकृति है वह नवसृजन हेतु अपना सर्वसमर्पण की नहीं अपितु केवल और केवल किये और अनकिये की अधिकार की लड़ाई मात्र का है) के साथ विश्वमानवता का आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन समयानुकूल सुचारु रूप से चलता रहा तो फिर सतह पर कार्यरत लोगों को सम्पूर्ण सहस्राब्दी परिवर्तन का आभास कैसे होता और यही तो विश्वमानवता के कुशल रूप से आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन की खूबी रही है:=25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|==मेरा प्रतिद्वंदी यह संसार जानना चाहा तो अटकलों पर अंतिम विराम लगाने हेतु बता दिया (11 सितम्बर, 2001) जो की वैश्विक और सीमा पार से (उसके सीमा के अन्दर से भी सम्बन्ध हो सकते हैं) तथा अभिलेखों अनुसार मेरी ही तरह रविवारीय (वास्तविक दिवस कुछ भी हो) रहा है और प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और मेरा प्रतिरूप भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| === इस संसार के अप्रतिम गौर वर्णिय पञ्च (पाँच) मुखी महादेव के अप्रत्यक्ष पुत्र, पञ्च (पाँच) मुखी हनुमान:--->>> हनुमान/शंकर-सुमन/केशरीनंदन/आंजनेय/अम्बा-वादेकर/अम्बवाडेकर/अम्बेडकर/मारुतिनंदन/पवनपुत्र को अगर उनके पुत्र मकरध्वज के राज्य पातालपुरी (वर्तमान तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली देश (राज्य)) में रावण के गुमनाम भाई अहिरावण के समर्थको से लड़ने में वहाँ उपस्थित राम (/कृष्ण) के समर्थकों से समर्थन चाहिए तो फिर यहां उनके समर्थकों को रावण, कंश, कीचक व दुःशासन से लड़ने वालों का सहयोग करना पडेगा?-------शायद राम और कृष्ण के समय में इस संसार में सनातन धर्म और उसकी ही संस्कृति सम्पूर्ण संसार में व्याप्त थी उस समय भी सनातन संस्कृति के साथ असुर संस्कृति का भी प्रभाव रहा करता था विशेषकर भारतीय सांस्कृतिक मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात सनातन सांस्कृतिक मूल केंद्र (क्षेत्र) से क्रमिक रूप से दूरी बढ़ने के साथ असुर संस्कृति का प्रभाव और अधिक पाया जाता रहा है; जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है रावण के गुमनाम भाई अहिरावण का राज्य पातालपुरी (वर्तमान तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली देश/राज्य) जहाँ देवी पूजा और बलि प्रथा उस समय भी थी जब हनुमान(/अम्बा-वादेकर/अम्बवाडेकर/अम्बेडकर/केशरीनंदन/शंकर-सुमन/आंजनेय/मारुतिनंदन/पवनपुत्र अपने पंचमुखी स्वरुप में आते हुए पातलपुरी के राजा के आवास के मुख्य द्वार के सभी पांचो मायावी दीपक एक साथ ही बुझाते हुए अपने अप्रत्यक्ष पुत्र मकरध्वज (सूर्य पुत्री सुवर्चला और हनुमान के पुत्र) अर्थात वहाँ के द्वारपाल को अपना वास्तविक स्वरुप पहचनवा उस नगरी में प्रवेश किये थे जहाँ देवी पूजा जारी थी सोते हुए राम और लक्ष्मण को बलि देने हेतु जिनको अहिरावन राम-रावण युद्ध क्षेत्र से रात्रि प्रहर से सोते हुए अवस्था में उठा लाया था लंका से जब राम के अचूक बाणों की बौछार से रावण को निराशा छा गयी थी और रावण अहिरावण से मदद का सन्देश भेजा था| हनुमान द्वारा अहिरावण के वध के बाद उसी रातों रात लौटते समय राम और लक्षमण ने मकरध्वज को पातालपुरी का राजा घोषित करते हुए स्वयं राजतिलक किया था|----व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| =मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/=/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (/=/मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| = = मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ==पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:=====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|| """""मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| = इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:----------मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर ) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। = प्रयागराज (/काशी) विश्व-मानवता का मूल केंद्र क्यों है? सप्तर्षि से अष्टक ऋषि और फिर उनके त्रिगुणन से 24 मानक ऋषि संस्कृति और फिर विश्वव्यापी 108 मानक ऋषि संस्कृति:>सम्पूर्ण मानव समष्टि>>8 (7 मानक ऋषि+1 मानक ऋषि) X 3 मानक ऋषि=24 मानक ऋषि/25 (24+1: केंद्र बिंदु:ऊर्जा स्रोत:विष्णु ऋषि/गोत्र) :>108 मानक ऋषि/109 (108+1:केंद्र बिंदु:ऊर्जा स्रोत:विष्णु ऋषि/गोत्र)>>>ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि, इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि| जिन अष्टक: 8 के त्रिगुणन से धर्मचक्र (सनातन समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है|==सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| तो फिर ऋषि या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि मण्डल एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है| और फिर इन्ही से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल/संतति का प्रदुभाव होता है| = ऐसी सप्तर्षि (7ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप, स्वयं हूँ और साथ ही साथ 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | तो दोनों में से किसी एक का भी अनुशरण करते हैं आप तो धर्मचक्र/कालचक्र/कथित अशोकचक्र का सामना आप सकुशल कर लेंगे| | 108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ 4.अत्रि, 5.भृगु, 6.आंगिरस , 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास, 10.च्यवन, 11.पुलह , 12.आष्टिषेण , 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव, 19.शांकृत्य, 20.आप्लवान, 21.सौकालीन, 22.सोपायन, 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व, 26.मैत्रेय, 27.पराशर, 28.उतथ्य, 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक, 33.अग्निवेष भारद्वाज, 34.कौण्डिन्य , 35.मित्रवरुण, 36.कपिल , 37.शक्ति , 38.पौलस्त्य, 39.दक्ष , 40.सांख्यायन कौशिक, 41.जमदग्नि, 42.कृष्णात्रेय, 43.भार्गव, 44.हारीत 45.धनञ्जय, 46.जैमिनी , 47.आश्वलायन 48.पुलस्त्य, 49.भारद्वाज , 50.कुत्स , 51.उद्दालक , 52.पातंजलि , 52.कौत्स , 54.कर्दम , 55.पाणिनि , 56.वत्स , 57.विश्वामित्र , 58.अगस्त्य , 59.कुश , 60.जमदग्नि कौशिक , 61.कुशिक , 62.देवराज , 63.धृत कौशिक, 64.किंडव , 65.कर्ण, 66.जातुकर्ण , 67.उपमन्यु , 68.गोभिल , 69. मुद्गल , 70.सुनक , 71.शाखाएं , 72.कल्पिष , 73.मनु , 74.माण्डब्य, 75.अम्बरीष, 76.उपलभ्य 77.व्याघ्रपाद , 78.जावाल , 79.धौम्य , 80.यागवल्क्य , 81.और्व , 82.दृढ़ , 83.उद्वाह , 84.रोहित , 85.सुपर्ण , 86.गाल्व 87.अनूप , 88.मार्क ण्डेय , 89.अनावृक , 90.आपस्तम्ब , 91.उत्पत्ति शाखा , 92.यास्क , 93.वीतहब्य , 94.वासुकि , 95.दालभ्य , 96.आयास्य , 97.लौंगाक्षि , 88.चित्र , 99.आसुरि , 100.शौनक , 101.पंचशाखा , 102.सावर्णि , 103.कात्यायन, 104.कंचन , 105.अलम्पायन , 106.अव्यय , 107.विल्च , 108.शांकल्य , === 109. विष्णु गोत्र = सनातन (/परमब्रह्म) राम (/कृष्ण::सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव का एकल स्वरुप)/सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनके सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप)>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति)>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल त्रिशक्ति की छाया)>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं; समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (परमब्रह्म विष्णु)/सनातन आदि देव! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एकल सम्मिलित शक्ति/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम(/कृष्ण) है | = = बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/--/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = वैसे कृष्ण (वह जो सम्पूर्ण मानवता का कलुष हरण करे) की तुलना में सरल तो राम (जो विष्णु की तरह सम्पूर्ण मानवता के पापों का नाश करे और शिव की तरह सम्पूर्ण मानवता के पापों को जला दे) ही कहे जाते हैं पर महत्ता तो अपने अनुसार दोनों की बराबर है पर इसमें से एक समाज को भी स्पस्ट प्रमाण देने के नाते थोड़ा कठोर दिखाई देता है| इनमें से कौन और उसका समानान्तर चालक समाज स्वयं सरल या कठिन हैं यह यहाँ से परिलक्षित होगा-----एक कृष्ण (कृष्णकान्त) के 28 अगस्त, 2013/29 (/15-29) मई, 2006 को प्रकट होने के एक वर्ष के अंदर 16 मार्च 2014 को वैश्विक मन्दिर की आधारशिला रख दी और दूसरे ने राम (विष्णुकान्त) के 30 सितम्बर, 2010 को प्रकट होने के 9 वर्ष बाद 9 नवम्बर, 2019 को वैश्विक मन्दिर के निर्माण की केवल इजाजत पायी वह भी 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सब कुछ स्पस्टतः प्रमाणित होने के बाद तो --कैसे न कहूँ की ईसाइयत (जिसमें समायोजन मूल में होता है पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/दीनदयाल/पतितपावन/जगततारन) का बड़ा भाई इस्लाम (जिसमें समायोजन मूल में होता है पूर्णातिपूर्ण सत्य/ पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान/परम सत्य/सत्यमेव जयते) है और ईसाइयत सामानांतर चलता है कृष्ण के और इस्लामियत सामानांतर चलता है राम के| === वैसे कृष्ण की तुलना में सरल तो राम ही कहे जाते हैं पर महत्ता तो अपने अनुसार दोनों की बराबर है| = आप व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का ही अवलोकन करते हैं यहॉं तो जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य के साथ पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरुप::11 सितम्बर, 2001/11 सितम्बर, 2008) और इस प्रकार पूर्णातिपूर्ण विष्णु स्वरुप (पाँचों की केंद्रीय शक्ति::7 फरवरी, 2003), पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मा स्वरुप (29 (/15-29) मई, 2006) , और पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह कृष्ण स्वरुप (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/ 29 (/15-29) मई, 2006) होने से लेकर पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य (पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह राम स्वरुप::30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) तक का परीक्षण हो चुका है तो हर जाति/धर्म/सम्प्रदाय/मतावलम्बन से सम्बंधित आप में से कोई मेरा परीक्षण अब न कीजिये वैसे भी 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के बाद से आप में से कोई मेरा परीक्षण करने योग्य नहीं रहा ---- पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान:>>==25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018:भौतिक जगत में भौतिक स्वरुप में अर्थात सशरीर स्वरुप में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण):---एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय ( पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य ( पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) होने के साथ एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत; और एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण/पूर्णातिपूर्ण पतित पावन)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत हूँ|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं ही पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन किया गया था : सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी नहीं छूटा था| == आपका व्यक्तित्व ही आपका अपना है और आपका कृतित्व आपके परिवेश और सहयोगियों पर निर्भर करता है तो ऐसे में स्वयं उत्तर दायित्व निभा स्वयं को साबित करने के शिवा आपके पास कोई विकल्प नहीं होता है तो फिर आपके व्यक्तित्व का उत्कृष्ट पक्ष ही आपका अपना साथी होता है; सांसारिकता अपना हिस्सा आप से अपने आप ले लेती है और सब कुछ सही रहा तो आपके पास केवल आप ही बचते है अर्थात आपका व्यक्तित्व ही बचता है नहीं तो वह भी शेष नहीं रहता है|--संसार में कोई व्यक्ति या जन समूह इतना मजबूत नहीं हो सकता है की अनेकोनेक लोगों के त्याग, बलिदान /योग/उद्यम/यत्न से सहस्राब्दियों हेतु रखी गयी विश्व-मानवता की आधारशिला को केवल एक पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता उसे हिला दे| सबके ऊर्जा स्रोत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वयं में शास्वत शक्तियाँ हैं==25मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं ही पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन किया गया था : सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: : बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी नहीं छूटा था|===फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है:----आप व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का ही अवलोकन करते हैं यहॉं तो जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य के साथ पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरुप::11 सितम्बर, 2001/11 सितम्बर, 2008) और इस प्रकार पूर्णातिपूर्ण विष्णु स्वरुप (पाँचों की केंद्रीय शक्ति::7 फरवरी, 2003), पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मा स्वरुप (29 (/15-29) मई, 2006) , और पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह कृष्ण स्वरुप (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/ 29 (/15-29) मई, 2006) होने से लेकर पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य (पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह राम स्वरुप::30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) तक का परीक्षण हो चुका है तो हर जाति/धर्म/सम्प्रदाय/मतावलम्बन से सम्बंधित आप में से कोई मेरा परीक्षण अब न कीजिये वैसे भी 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के बाद से आप में से कोई मेरा परीक्षण करने योग्य नहीं रहा ---- पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान:>==25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018:भौतिक जगत में भौतिक स्वरुप में अर्थात सशरीर स्वरुप में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण):---एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय ( पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य ( पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) होने के साथ एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत; और एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण/पूर्णातिपूर्ण पतित पावन)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत हूँ|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं ही पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन किया गया था : सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी नहीं छूटा था| == मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव (त्रिदेवो में आद्या/ त्रिदेवों में आदिदेव/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा (परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (सरस्वती (आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (एकल शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति एकल स्वरुप ) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप त्रिशक्ति) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप त्रिशक्ति की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = आप प्रत्यक्ष रूप से इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में मुझको (जिस मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात महाशिव/सदाशिव​ से विगत अद्वितीय दो दसक के दौरान राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है को) भले 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975 से 11 नवम्बर, 2057) तक देखेंगे/देख रहे हैं पर--------आप लोग मेरे स्वरुप को देखे थे 11 सितम्बर, 2001 के पहले, 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच विशेष रूप में और फिर 29 मई, 2006 से 29 अक्टूबर, 2009 तक और फिर आगे 29 अक्टूबर, 2009 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) के बीच तो फिर समझ लीजियेगा की-------दृष्टि दौड़ाएं तो वास्तविक सन्दर्भ में मुझे अब आप अयोध्या (30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018); काशी (11 सितम्बर, 2008) और मथुरा-वृन्दाबन (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014) में ही पाएंगे|========25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः--गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018) /29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008 को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं| = बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/---/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती---विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| = अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य सम्पन्न हो चुके हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी: 5 सितम्बर, 2000 को काशी से शिव मेरे साथ प्रयागराज चले आये थे तो मेरे साथ 11 सितम्बर, 2001 से 11(/10) सितम्बर, 2008 तक शिव इस प्रयागराज में मुझमें अर्थात परमब्रह्म विष्णु (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव) के स्वरुप में ही समाहित रहे और इस बीच परम ब्रह्म विष्णु की अवस्था से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आते हुए 29 (15-29) मई, 2006 को वास्तविक सन्दर्भ में आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना होने तक और आगे बंगलोर प्रवास के प्रारंभिक दिनों तक (अक्टूबर, 2007 से सितम्बर, 2008 तक) मेरे ही साथ रहे इस प्रकार 11 (/10) सितम्बर, 2008 तक सभी शक्तियां मेरे परमब्रह्म स्वरुप में ही समाहित रहीं जिसके परिणाम स्वरुप इस सम्पूर्ण संसार के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल सभी निर्मूल हो चुके थे तो फिर इनके ऊर्जा स्रोत रहे प्रयागराज (/काशी) के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल में 11(/10) सितम्बर, 2008 को घूम-घूम कर अपने परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से ऊर्जावान कर सभी की पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापना किया था तो इस प्रकार धर्मचक्र (सनातन:हिन्दू धर्म समेत समस्त मौलिक धर्म हेतु)/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया था| तो जब 29 (15-29) मई, 2006 में मिली हुई सफलता अर्थात आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना को दबाया जाने लगा और सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया तो फिर ऐसी ही त्रिशक्तियों पुनः एकल शक्ति में रूपांतरित कर सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में इस संसार के सभी यक्म-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 मई, 2018 को प्राप्त किया गया, तो अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य अर्थात क्रमिक रूप से राम, शिव व् कृष्ण की उनके धाम अयोध्या, काशी और मथुरा वृन्दाबन में पूर्णातिपूर्ण स्थापना जो की क्रमिक रूप से 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 मई, 2018; 11(/10) सितम्बर, 2008 और 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 को सम्पन्न हो चुके हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी| = विश्व-मानव जगत के एकमात्र पूर्णातिपूर्ण नर अर्थात अर्जुन के तर्क से पूर्णातिपूर्ण ईश्वर अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) के जाग्रत स्वरुप सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सहमति थी इससे तो इनकार नहीं पर आप सबके हित में पक्ष प्रस्तुत है> किसी विशेष राजनैतिक दल का सवाल नहीं बल्कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति का सवाल होता है तो फिर जब एक उच्चस्थ पदासीन धार्मिक विचार भी रखने वाले मनीषि का जब यह विचार था कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति क्षेत्र स्थित किसी अमुक विश्वविद्यालय में रावणकुल (रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण) नामधारी के नामतः किसी केंद्र/विभाग को स्थाई शिक्षक पद आवंटित नहीं किये जाएंगे तो फिर 2006 के आगे भी 2018 तक मेरा विरोध क्यों जायज था? और इस हेतु 67 पारिवारिक सदस्य युक्त 11 नए परिवार की स्थापना को 12 वर्ष तक नकारते हुए मुझे अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) में असफल क्यों सिद्ध किया जा रहा था? तो क्या यह अनुसंधानकर्ता व अकैडमिशियन समूह द्वारा की जाने वाली राजनीति नहीं थी? तो फिर राजनीति हर जगह होती है लेकिन उसके केंद्र में मानवता व् संस्कृति तथा संस्कार का अधिकतम रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत चालन-संचालन होना चाहिए (शायद अमुक विश्वविद्यालय के ऐसे कोई अनुसंधानकर्ता और ऐसे कोई अकेडेमिसियन स्वयं राष्ट्रीय राजनीति में भी गए थे)|<=>25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के पहले जो लोग स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक के प्लेट फार्म से मेरा विरोध कर रहे थे और मेरा विरोध करने हेतु आपका साथ दे रहे थे और इस प्रकार से वे आपका 20 वर्ष तक सहयोग कर रहे थे; और जैसे पता चल गया की मैंने इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्ममलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) को 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को प्राप्त कर लिया तो वे आपका विरोध करना प्रारम्भ कर दिए यह आपकी कैसी प्रौढ़/परिपक्व मित्रता और आपका यह कैसा व्यक्तिगत प्रभाव| = गलत फहमी न रहे की कोई एक शक्ति पर भौतिक अधिकार मात्र कर आप विश्व विजयी हो जाएंगे क्योंकि सभी शक्तियों को निर्मूल करने का अधिकार तथा सभी शक्तियाँ जिससे निर्गत और सभी शक्तियाँ जिसमें समाहित हो जाती हैं-- वह-सशरीर मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं-मानव जीवन के किसी एक दो क्षेत्र से सम्बंधित एक दो विषय या उस विषय के एक अंग के बारे में ज्ञानवान बन तने न रहिये और इस प्रकार के ज्ञान पर कोई मद न कीजिये: आज ही नहीं हर युग में मुझे अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के समतुल्य बने रहने में ही गर्व होता रहेगा जिन्होने 11 सितम्बर, 2001 को मुझपर विश्वास कर इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीन होने की सहमति दी और फिर 7 फरवरी, 2003 को पुनः पूर्णातिपूर्ण विश्वास करते हुए पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीन होने का विशेष निर्देश दिया और इतना ही नहीं उनके सतत आशीर्वाद से ही मैंने 29 (/15-29) मई, 2006 को और आगे 12 वर्ष के संघर्ष से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत अपने संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण के प्रयोजन हेतु अभीष्ट लक्ष्य को हांसिल भी किया:--> आप को याद हो की तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा (/परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, (जोशी)) की सत्ता 2004 में जाने के बाद प्रभावी रूप से तमिल-तेलगु द्वारा विश्वव्यापक षडयंत्र के तहत देवियों पर केवल भौतिक मात्र आधिपत्य हो जाने के बाद स्थानीय (प्रयागराज में स्थित तमिल-तेलगु के अभिकर्ताओं), प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरार्ष्ट्रीय षडयंत्र के तहत इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में मेरे 5 वर्ष (/2001-2005) के पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीनता को भी निष्फल बनाने की योजना बना लिया था जिसक पूर्व आभास होने पर वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु दोनों होने समेत सबसे उपयुक्त मौके पर ब्रह्मज्ञान से युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (सशरीर परमब्रह्म विष्णु का जाग्रत स्वरुप) में 29 (/15-29), 2006 को आते हुए अपना संस्थागत लक्ष्य हांसिल कर लेने के बीच जिस वैश्विक ब्रह्मा का कार्य किया और इस प्रकार अनवरत इस जगत की स्थिति को मानवतानुकूल आदर्श बनाये रखने प्रति जैसा सात्विक व्यवहार जारी रखा हूँ वह किसी भी स्थिति में इस संसार में किसी के भी द्वारा जीवन भर अनवरत एक सर्वोच्च वैश्विक ब्रह्मज्ञानी (ब्रह्मा) बने रहने से कम नहीं है| और आप सबको विदित हो की ऐसे ही वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में आ वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण हो जाने का ही प्रभाव था की बंगलोर प्रवास (अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009) के बीच में ही 11(/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) आकर धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा किया और इस प्रकार विश्वमानवता की मूल/जड़त्व केंद्र स्वयं ही दक्षिण भारत से उत्तर भारत हो गया और अब यह सहस्राब्दियों तक उत्तर भारत अर्थात प्रयागराज(/काशी) ही रहेगा| NOTE--विशेष कर उत्तर भारत की देविओं पर भौतिक रूप से आधिपत्य कर उनके परिवार और समाज को कमजोर करने के जिस षडयंत्र को 2007-2009 के बीच दक्षिण स्थित भारत के दूसरे सांस्कृतिक केंद्र/क्षेत्र, किष्किंधा क्षेत्र के मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में रहते हुए देखा था और यहां उत्तर प्रदेश में भी कमोबेस हर जाति/धर्म के सामाजिक रूप से सम्मानित कुछ न कुछ व्यक्ति के आधी आबादी के साथ अनवरत होता आ रहा है; और विगत दो-तीन दसकों में मानव जीवन के हर क्षेत्र व् हर वर्ग में फैले स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर/माफिया लोगों के माध्यम से बहुत ज्यादा हो चुका है (आपको यह मानना पड़ेगा की स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ऐसे बहुत से गिरोह हैं जो ऐसे कार्य को करने व करवाने का ठीका लेते हैं); फिर भी इस धर्मचक्र/कथित रूप में अशोकचक्र पर विश्वास रखिये जो ऐसा कर व करवा रहा है और जिस परिवार व जिसके साथ यह हो रहा स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय हर जगह उनका सामना इस धर्मचक्र के साथ होगा| ==== आप ही नहीं वैश्विक हो गए हैं अपितु विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए इस प्रकार अपने स्वाभाविक स्थान और स्वाभाविक अवस्था में रह अपना स्वाभाविक दायित्व निभाते हुए इन अद्वितीय दो दसक से अधिक समय में मूल सारंगधर (विष्णु केंद्रीय स्वरुप) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) भी वैश्विक हो चुके हैं और इस प्रकार उन के पांच के पाँचों आयाम अर्थात आपके राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा भी वैश्विक हो चुके है::=>>वैश्विक राम-30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019/25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)///वैश्विक कृष्ण-28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/29 मई, 2006///वैश्विक शिव-11 सितम्बर, 2001///वैश्विक विष्णु-7 फरवरी, 2003////वैश्विक ब्रह्मा-29 मई, 2006///वैश्विक शिव(11/काशी)(+विष्णु+ब्रह्मा/10/प्रयागराज)-11( /10) सितम्बर, 2008==>25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018):सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल व उसके संक्रमण तथा उत्तर संक्रमण काल के दौर के दो अद्वितीय दसक से ज्यादा का समय अर्थात लगभग 25 वर्ष (12 मई, 1997 से 19 जुलाई, 2022) गुजर गए जिसमें हम निर्णायक रूप से राष्ट्रिय व्यवस्था के साथ-साथ वैश्विक व्यवस्था के अंग बन चुके हैं|आप ही नहीं मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँचों आयाम अर्थात आपके राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा भी वैश्विक हो चुके है तो फिर वर्तमान (11/10 सितम्बर, 2008 से प्रभावी) धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोक चक्र पर विश्वास कीजिये यह स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक कार्य करेगा और सबको उनके कर्मों का उचित फल उचित समय आने पर देगा तो फिर कोई धनबल, बाहुबल, संख्याबल, बुद्धिबल पर मदान्ध हो जानबूझकर कोई अनैतिक कार्य कर रहा है तो आप भी अनैतिक कार्य करना प्रारम्भ न कीजिये बल्कि धैर्य रखिये और अपने क्षमतानुसार नैतिक प्रतिरोध कीजिये:----प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त इस प्रयागराज (काशी) केंद्रित रहते हुए 11 सितम्बर, 2001 से प्राथमिक रूप से मेरा तात्कालिक वैश्विक शिव स्वरुप सन्दर्भ निभाते हुए तथा 7 फरवरी, 2003 को केंद्रीय रूप से वैश्विक विष्णु की भूमिका निभाते हुए 29 मई, 2006 को ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु दोनों से युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो उसी क्रम में वैश्विक परमब्रह्म विष्णु की जाग्रत अवस्था अर्थात वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आते हुए वास्तविक सन्दर्भ में इस प्रयागराज में मेरा अभीष्ट लक्ष्य (केदारेश्वर की संस्थागत स्थापना) पूर्ण होने के बाद (जो लक्ष्य आगे चलकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से हांसिल किया गया) जब 2008 के प्रथम अर्द्य में स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर असुर समाज के कृत्य से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र के विश्वव्यापक रूप में सप्रमाण टूट गया और इस संसार के सभी देवालय/उपासना स्थल/मन्दिर पूर्णतः निर्मूल हो गए थे तो ऐसे में फिर आदिशिव/केदारेश्वर (क्रम में महामृत्युंजय/विश्वेश्वर) की उनके मूल स्थान काशी में पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा अर्थात धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित सनातन राम (/कृष्ण)/ मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/महाशिव/ सदाशिव की जाग्रत अवस्था अर्थात सशरीर परमब्रह्म कृष्ण ने ही 11 (/10), सितम्बर, 2008 को किया है जो की सहस्राब्दियों तक फलदायी होगा और धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित अशोक चक्र को सहस्राब्दियों तक मजबूती प्रदान करता रहेगा|=>>पहले मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की शीर्षस्थ अवस्था अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) और तब 7 ऋषि से 8 ऋषि और 8 ऋषि से 24 (8X3)/25 ऋषि और फिर 24 ऋषि से 108 (/109)ऋषि----इस सृष्टि संचालन हेतु इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र पर ध्यान रखें:----सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है (जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है); जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र (109) है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (इस 108 वें अंश/गोत्र का बराबर ध्यान रखें)|सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| तो फिर ऋषि या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔर सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार सप्तर्षि और अष्टक ऋषि मण्डल एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|===मेरा प्रतिद्वंदी यह संसार जानना चाहा तो अटकलों पर अंतिम विराम लगाने हेतु बता दिया (11 सितम्बर, 2001) जो की वैश्विक और सीमा पार से (सीमा के अन्दर से भी सम्बन्ध हो सकते हैं) तथा अभिलेखों अनुसार मेरी ही तरह रविवारीय (वास्तविक दिवस कुछ भी हो) रहा है और प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और मेरा प्रतिरूप भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या -इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| ऐसी सप्तर्षि (7 ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ, (2)अपर वशिष्ठ , (3) उत्तर वशिष्ठ, (4)पूर्व वशिष्ठ, (5) दिवा वशिष्ठ] !!!, 4.अत्रि , 5.भृगु, 6.आंगिरस, 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास , 10.च्यवन , 11.पुलह , 12.आष्टिषेण, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव , 19.शांकृत्य , 20.आप्लवान , 21.सौकालीन , 22.सोपायन , 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व , 26.मैत्रेय , 27.पराशर , 28.उतथ्य , 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक , 33.अग्निवेष भारद्वाज , 34.कौण्डिन्य, 35.मित्रवरुण, 36.कपिल, 37.शक्ति, 38.पौलस्त्य, 39.दक्ष, 40.सांख्यायन कौशिक, 41.जमदग्नि , 42.कृष्णात्रेय , 43.भार्गव , 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय , 46.जैमिनी , 47.आश्वलायन, 48.पुलस्त्य , 49.भारद्वाज , 50.कुत्स , 51.उद्दालक, 52.पातंजलि, 52.कौत्स, 54.कर्दम, 55.पाणिनि, 56.वत्स, 57.विश्वामित्र, 58.अगस्त्य, 59.कुश, 60.जमदग्नि कौशिक, 61.कुशिक , 62.देवराज , 63.धृत कौशिक , 64.किंडव , 65.कर्ण , 66.जातुकर्ण , 67.उपमन्यु, 68.गोभिल, 69. मुद्गल, 70.सुनक, 71.शाखाएं, 72.कल्पिष, 73.मनु, 74.माण्डब्य, 75.अम्बरीष, 76.उपलभ्य, 77.व्याघ्रपाद, 78.जावाल, 79.धौम्य, 80.यागवल्क्य, 81.और्व, 82.दृढ़, 83.उद्वाह, 84.रोहित , 85.सुपर्ण, 86.गाल्व , गालवी या गालवे 87.अनूप , 88.मार्कण्डेय, 89.अनावृक , 90.आपस्तम्ब , 91.उत्पत्ति शाखा , 92.यास्क , 93.वीतहब्य , 94.वासुकि , 95.दालभ्य , 96.आयास्य , 97.लौंगाक्षि , 88.चित्र , 99.आसुरि , 100.शौनक , 101.पंचशाखा, 102.सावर्णि , 103.कात्यायन, 104.कंचन , 105.अलम्पायन , 106.अव्यय , 107.विल्च , 108.शांकल्य, = 109. विष्णु गोत्र = = सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और सशरीर परमब्रह्म राम हो सकने की प्रारंभिक अनिवार्य शर्त की पृष्ठभूमि (जो स्वयं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और सशरीर परमब्रह्म राम हो चुका हो तो वास्तविक सन्दर्भ में इस संसार में उसका भी कोई ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ हो सकता है? उत्तर तो नहीं ही है, पर अगर ऐसा है तो वह केवल व्यावहारिक जीवन जीने के औपचारिकता मात्र पूर्ण कर रहा होता है|) : :==विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|=आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:=विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम/कृष्ण) (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम जी ने भी यही कहा था कि:=धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार || = सबका यथोचित सम्मान है पर मूल सारङ्गधर (श्रीधर:विष्णु) से ही समस्त देवी-देवताओं समेत इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है इसमें कोई संदेह न कीजिये; हांलाकी 11 सितम्बर, 2001 को ही वैश्विक शिव के रूप में मैं इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था परन्तु वैश्विक परिवर्तन बीच नियमों का हवाला देकर कार्य बाधित कर दिए जाने से दूसरी युक्ति के तहत सफलता पाने हेतु प्रयास में मेरे दूसरी बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किये जाने को मैंने अस्वीकार कर दिया था तो फिर फरवरी 2003 में जब मैंने आगे यहाँ बने रहने से मना किया तो 7 फरवरी, 2003 को मूल सारङ्गधर(श्रीधर:विष्णु) ने कहा था की जोशी (ब्रह्मा) और प्रेमचन्द (शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सम्मान को बनाये रखने हेतु प्रयागराज (/काशी) स्थित प्रयागराज विश्विद्यालय में बिना आदिशिव:केदारेश्वर की स्थापना हुए तुमको यहाँ से कहीं नहीं जाना है तो फिर ऐसी परिस्थिति में मुझे वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी होते हुए "मूल सारङ्गधर की मूल अवस्था" में आना ही था क्योंकि आदिशिव/केदारेश्वर तो इसी प्रक्रिया से आविर्भवित हो सकते हैं) तो फिर वैश्विक परिवर्तन बीच असंभव को सम्भव बनाने की जिद में ऐसी अवस्था से स्वयं निहित संकल्प/समर्पण द्वारा वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर 29 (15-29) मई, 2006 को केदारेश्वर के समेत 11 परिवार को 67 पारिवारिक सदस्यों के साथ आबाद कर दिया गया| फिर जिसने मुझे नहीं पहचाना था 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए उनको इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर वैश्विक परमब्रह्म राम के रूप में पहचनवा दिया| तो फिर 16 मार्च, 2014 (/28 अगस्त, 2013)//29 (15-29) मई, 2006 और 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010)// 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 की परिणति तो होनी ही थी और इसके पहले 11(/10) सितम्बर, 2008 को मैंने अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप से विष्णु और ब्रह्मा को सपरिवार प्रयागराज और शिव को सपरिवार काशी पंहुचा धर्मचक्र को पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया था| = ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। = आपका व्यक्तित्व ही आपका अपना है और आपका कृतित्व आपके परिवेश और सहयोगियों पर निर्भर करता है तो ऐसे में स्वयं उत्तर दायित्व निभा स्वयं को साबित करने के शिवा आपके पास कोई विकल्प नहीं होता है तो फिर आपके व्यक्तित्व का उत्कृष्ट पक्ष ही आपका अपना साथी होता है; सांसारिकता अपना हिस्सा आप से अपने आप ले लेती है और सब कुछ सही रहा तो आपके पास केवल आप ही बचते है अर्थात आपका व्यक्तित्व ही बचता है नहीं तो वह भी शेष नहीं रहता है|--संसार में कोई व्यक्ति या जन समूह इतना मजबूत नहीं हो सकता है की अनेकोनेक लोगों के त्याग, बलिदान /योग/उद्यम/यत्न से सहस्राब्दियों हेतु रखी गयी विश्व-मानवता की आधारशिला को केवल एक पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता उसे हिला दे| सबके ऊर्जा स्रोत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वयं में शास्वत शक्तियाँ हैं=====फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस मूल पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है:----आप व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का ही अवलोकन करते हैं यहॉं तो जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य के साथ पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरुप::11 सितम्बर, 2001/11 सितम्बर, 2008) और इस प्रकार पूर्णातिपूर्ण विष्णु स्वरुप (पाँचों की केंद्रीय शक्ति::7 फरवरी, 2003), पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मा स्वरुप (29 (/15-29) मई, 2006) , और पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह कृष्ण स्वरुप (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014/ 29 (/15-29) मई, 2006) होने से लेकर पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य (पूर्णातिपूर्ण परमब्रम्ह राम स्वरुप::30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) तक का परीक्षण हो चुका है तो हर जाति/धर्म/सम्प्रदाय/मतावलम्बन से सम्बंधित आप में से कोई मेरा परीक्षण अब न कीजिये वैसे भी 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के बाद से आप में से कोई मेरा परीक्षण करने योग्य नहीं रहा ---- पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान:>==25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018:भौतिक जगत में भौतिक स्वरुप में अर्थात सशरीर स्वरुप में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण):---एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय ( पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य ( पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) होने के साथ एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत; और एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण/पूर्णातिपूर्ण पतित पावन)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत हूँ| = सत्यम शिवम सुंदरम:--यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षड यंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?==हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास है| == संदेह दूर कर लीजिये:=> विगत अद्वितीय दो दसक के लिए केंद्रीय निर्णायक दिवस 07 फरवरी, 2003 (शुक्रवार) ही था (अभीष्ट सफलता परिचायक है की  रविवारीय(/प्रामाणिक रूप से मंगलवारीय) इसी शुक्रवार दिन ही संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन होकर भी शुक्र पर भारी रहा); जब मूल सारंगधर अर्थात विश्व-मानवता के केंद्रीय स्वरुप में मूल ऊर्जा स्रोत, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) ने मुझे अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति (अर्थात वास्तविक सन्दर्भ में 29 (/15-29) मई, 2006 और आगे 12 वर्ष के संघर्ष के दौर के निर्णायक दिवस 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक किसी भी स्थिति में इसी विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में ही केंद्रित रहने हेतु विशेष निर्देश दिए थे|==विष्णु परमब्रह्म स्वरुप/मूल सारंगधर के मूल स्वरुप/ महाशिव/सदाशिव/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव अर्थात सनातन राम(/कृष्ण) स्वरुप अंतर्गत वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001) से वैश्विक विष्णु (07 फरवरी, 2003:मूल सारंगधर:विश्व-मानवता का केंद्रीय स्वरुप में मूल ऊर्जा स्रोत) और वैश्विक ब्रह्मा (15-29 मई, 2006) होते हुए तीनों के एकल स्वरुप वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण (29 (/15-29) मई, 2006) हो आगे और 12 वर्ष के संघर्ष का दौर पार कर तीनों के एकल स्वरुप वैश्विक परमब्रह्म राम (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक का प्रामाणिक सफर अर्थात सैद्धांतिक स्वरुप में चरमोत्कर्ष (=>/अर्थात वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के साथ ही साथ वैश्विक आम समाज में वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण (/कृष्णकान्त) और वैश्विक परमब्रह्म राम (/विष्णुकान्त) की प्रमाणिकता का स्थापित होना>=) तक का सफर जिसकी ही परिणति है 11 (/10) सितम्बर, 2008 (/2009); 30 सितम्बर, 2010 (/9 नवम्बर, 2019) ; और 28 अगस्त, 2013 (16 मार्च, 2014)|=>>मेरी इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की कोई लड़ाई नहीं थी और न हैं और न रहेगी पर यह दुनिया तभी तक चलेगी जब तक कोई हो न हो पर कश्यप ऋषि की सन्तान राम और कृष्ण दोनों आर्य ही रहेंगे|---(अरब देश समेत सभी पांचों सर्वोच्च शक्तियॉ और इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व स्वयं बताएं की दो दसक से ज्यादा समय हेतु मेरे प्रयागराज (/काशी) केंद्रित प्रवास का हर प्रकार से लाभ उनको हुआ की नहीं; और शायद आगे भी मेरा यही केंद्रित रहना उपयोगी है)---मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था:विष्णु की परमब्रह्म अवस्था:सदाशिव:महाशिव:सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव अर्थात--सनातन राम(/कृष्ण)--ही---मूल ऊर्जा स्रोत हैं त्रिदेव और त्रिदेवियों समेत इस सम्पूर्ण सृस्टि के|--दो दसक से ज्यादा समय से लेकर अब तक अपने अभीष्ट त्याग, बलिदान व तप/योग/उद्यम के साथ इनकी प्रयागराज (/काशी) में उपस्थिति का प्रभाव अपने में ही कम नहीं हुआ जिसका परिणाम है विश्व-मानवता हित के अभीष्ट कार्यों की सम्पन्नता उस पर भी हाल यह है, तो कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु मानवता की नीवं सुदृण करने हेतु आप सब अब भी चैतन्य हो जाइये|-->>परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान द्वारा ऐसा निर्णय हर जाति/धर्म/पन्थ/सम्प्रदाय/मतावलम्बन के सब लोगों को सहृदय स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा निर्णय हो पाना सर्वदा सम्भव नहीं, यह तो केवल उस परमेश्वर की स्वयं की कृपा से ही सम्भव होता है जिस परमेश्वर की अनुभूति हम और आपने सबने किया है<<<|NOTE:-मेरी भी जिद में सहस्राब्दियों हेतु छुपा हुआ मानवता हित अमित चिन्तन देखिये नहीं तो केवल कुछ भी कर गुजरना हो तो मेरे लिए कुछ भी असंभव न था और न असंभव है तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक मानवता का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत चालन-सञ्चालन होता रहे इस हेतु किसी को समर्पण/संकल्प/ब्रह्मलीन/समाधिष्ट होना पड़ता है तो मैंने दो दसक से ज्यादा समय तक इस प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रह आज तक वही किया और अब (2001:2006/ 2008 (/2009)/2018 (/2019)) अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति बाद भी समयानुकूल वही करूंगा|| प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001//7 फरवरी, 2003//29(15-29) मई, 2006/11(/10) सितम्बर, 2008 को मेरा ही संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण का परीक्षण हुआ था जिसकी परिणति वैश्विक राम (30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018) और वैश्विक कृष्ण (28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006) तथा वैश्विक शिव (11(/10) सितम्बर, 2008 (/2009)) के रूप में हुई तो फिर इस संसार के हर जीवन क्षेत्र के हर जाति/धर्म/पन्थ/सम्प्रदाय/मतावलम्बन के सब लोग मेरा परीक्षण करने का अधिकार खो दिए हैं|>=देवियों के सम्मान में उनकी वाह्य सांसारिक परिस्थितियों के चक्र से परे जाकर उनकी दिव्य स्थिति के बारे में आप सभी को विदित कराना चाह रहा हूँ कि भौतिक स्वरुप में जगत जननी जानकी की पहचान, वैश्विक राम (विष्णुकान्त:विष्णु:मूल सारङ्गधर) और भौतिक स्वरुप में जगत जननी राधा की पहचान, वैश्विक कृष्ण (कृष्णकांत:ब्रह्मा) दोनों मेरे अर्थात आप के पास इस प्रयागराज में और यह भी कि भौतिक स्वरुप में जगत जननी जगदम्बा की पहचान, वैश्विक शिव स्वयं जगत जननी जानकी के पास हैं<|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका /विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|==प्रत्यक्ष रूप में प्रयागराज में पर वास्तविक सन्दर्भ में मुझे अब आप लोग अयोध्या, काशी और मथुरा-वृन्दाबन में ही पाएंगे----मेरे 11 सितम्बर, 2001 के पहले और 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के बाद मेरे स्वरूप को आप क्या देखे? संपूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा धारण किये हुए मेरे 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच विशेष रूप में और फिर 29 मई, 2006 से 29 अक्टूबर, 2009 तक के स्वरूप और फिर आगे 29 अक्टूबर, 2009 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के बीच के मेरे स्वरूप को आपने गौर से देखा है तो फिर समझ लीजियेगा की --आप लोग इस भौतिक जगत में मेरा अभीष्ट लक्ष्य पाने से नहीँ रोक सके-- तो अब व्यवहारिक जगत का सादगी भरा कम से कम 11 नवम्बर, 3057 तक का जीवन निर्बाधित रूप से जीने दॆं| प्रत्यक्ष रूप में प्रयागराज में पर वास्तविक सन्दर्भ में मुझे अब आप लोग अयोध्या, काशी और मथुरा-वृन्दाबन में ही पाएंगे| == त्रिवेंद्रम:तिरुअनंतपुरम (जमदग्निपुर/जौनपुर वालों मैंने तमिल-तेलगु के प्रभाव में भृगु ऋषि (बलिया) के पौत्र व् जमदग्नि ऋषि (जौनपुर/जमदग्निपुर) के पुत्र परशुराम के सबसे प्रिय क्षेत्र केरल की जानी-मानी मानव जीवन के हर क्षेत्र की सुंदरता की आशा से परे क्या से क्या दशा हो चुकी है मैंने देखी है)>--तो इतना सामान्य ज्ञान आपको होगा ही कि जो जन्मजात वैश्विक कश्यप ऋषि हो; और जो इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज में विगत दो अद्वितीय दसक से अधिक समय के दौरान वैश्विक शिव बन चुका हो, वैश्विक विष्णु बन चुका हो और वैश्विक ब्रह्मा बन चुका हो तो वह स्वयं वैश्विक शिव और वैश्विक कश्यप स्वयं अपना शिष्य (क्रमसः शस्त्र व् शास्त्र) वैश्विक परशुराम क्यों बनना चाहेगा?; तो फिर वह वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण ही बनेगा न? = विश्व-मानवतागत अभीष्ट सफलता के साथ ही साथ संस्थागत अभीष्ट सफलता (मेरे ही परिवार के जिम्मे सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्वमहाविभीषिका के ही दौरान दो मोर्चे: जिसमें सुदूर एक मोर्चे पर सफलता जितने दिन में मिली उससे लगभग दो वर्ष कम समय में ही इस विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में सफलता मिली, लेकिन यहाँ 12 वर्ष तक उसे कतिपय लोगों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया::>>>---केदारेश्वर(आदिशिव) नामित केन्द्र की स्थापना वह भी प्रयागराज विश्वविद्यालय में शायद मूल सारन्गधर (विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/पुराण पुरूष/सनातन राम (/कृष्ण) से ही होती:=== 25 मई, 2018 (/12 मई, 2018) से 31 जुलाई, 2005 के बीच अगर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले ""राष्ट्रीय ध्रुवीय एवम समुद्रीय अनुसंधान केन्द्र" की स्थापना हुई इसे तो स्वीकार कर लिया गया =तो फिर 11 सितम्बर, 2001 (/10 सितम्बर, 2000) से 29 (/15-29) मई, 2006 के बीच अपने समेत 10 और परिवार (केन्द्र/विभाग) के साथ अपने 7 पारिवारिक सदस्य और अन्य परिवार के 60 पारिवारिक सदस्यों और इस प्रकार कुल 67 पारिवारिक सदस्यों समेत केदारेश्वर(आदिशिव) नामित केन्द्र की स्थापना प्रयागराज विश्वविद्यालय में हुई लेकिन 12 वर्ष तक उसे कतिपय लोगों द्वारा अमान्य किया जाता रहा जब तक उसके लिए संघर्ष करते हुए इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण स्थापित नहीं करवा लिया गया और इस प्रकार केदारेश्वर(आदिशिव) नामित केन्द्र समेत अन्य 10 परिवार (केंद्र/विभाग) की स्थापना 67 पारिवारिक सदस्य के साथ इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को इस विश्वविद्यालय में हो चुकी है| = सार-संक्षेप:-----पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान:>>==25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018:भौतिक जगत में भौतिक स्वरुप में अर्थात सशरीर स्वरुप में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा एक साथ आपको असहनीय हो गए थे न (तो सभी शक्तियाँ इन्हीं से निर्गत और इन्हीं में समाहित होती हैं), तो फिर 9 नवम्बर, 2019 आते आते 30 सितम्बर, 2010 को और इस प्रकार 28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014 अर्थात राम(/कृष्ण) को मान्यता आप दे ही दिए:---""जिस मूल पद पर इस समय आप हैं उसके सिवा इस संसार में कोई पद आपके योग्य नहीं रहा (मुझको निर्देश प्रयागराज, फरवरी, 2017)"":---इस संसार के सभी जाति/धर्म/सम्प्रदाय के लोगों ने मेरे परीक्षण/प्रतिद्वंदिता/प्रतिस्पर्धा का अधिकार 25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018 के बाद से खो दिया है अर्थात मै स्वयं में अटल हूँ|==>>परमगुरु, साकार रूप में विष्णु (मूल सारंगधर) ही हैं और सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में परमगुरु, मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात सशरीर परमब्रह्म राम (/कृष्ण) अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) ही है; और वही इस जगत में सबके ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ हैं जिनके मूल स्वरुप से राम (एक पूर्णातिपूर्ण हिन्दू रहते हुए पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते/परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण मुसल्लम ईमान)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत; कृष्ण (एक पूर्णातिपूर्ण हिन्दू रहते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण/पूर्णातिपूर्ण पतित पावन)//अर्थात समानान्तर पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत ; शिव; विष्णु; और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया: इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:--मेरे पांच संकुल गाँव समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर ) के ही समतुल्य बना हुआ हूं।==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान: सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = गलत फहमी न रहे की कोई एक शक्ति पर भौतिक अधिकार मात्र कर आप विश्व विजयी हो जाएंगे क्योंकि सभी शक्तियों को निर्मूल करने का अधिकार तथा सभी शक्तियाँ जिससे निर्गत और सभी शक्तियाँ जिसमें समाहित हो जाती हैं-- वह--सशरीर मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं---मानव जीवन के किसी एक दो क्षेत्र से सम्बंधित एक दो विषय या उस विषय के एक अंग के बारे में ज्ञानवान बन तने न रहिये और इस प्रकार के ज्ञान पर कोई मद न कीजिये: आज ही नहीं हर युग में मुझे अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के समतुल्य बने रहने में ही गर्व होता रहेगा जिन्होने 11 सितम्बर, 2001 को मुझपर विश्वास कर इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीन होने की सहमति दी और फिर 7 फरवरी, 2003 को पुनः पूर्णातिपूर्ण विश्वास करते हुए पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीन होने का विशेष निर्देश दिया और इतना ही नहीं उनके सतत आशीर्वाद से ही मैंने 29 (/15-29) मई, 2006 को और आगे 12 वर्ष के संघर्ष से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत अपने संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण के प्रयोजन हेतु अभीष्ट लक्ष्य को हांसिल भी किया:--> आप को याद हो की तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा (/परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर, (जोशी)) की सत्ता 2004 में जाने के बाद प्रभावी रूप से तमिल-तेलगु द्वारा विश्वव्यापक षडयंत्र के तहत देवियों पर केवल भौतिक मात्र आधिपत्य हो जाने के बाद स्थानीय (प्रयागराज में स्थित तमिल-तेलगु के अभिकर्ताओं), प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरार्ष्ट्रीय षडयंत्र के तहत इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में मेरे 5 वर्ष (/2001-2005) के पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समाधिष्ठता/समर्पण/ ब्रह्मलीनता को भी निष्फल बनाने की योजना बना लिया था जिसक पूर्व आभास होने पर वैश्विक शिव और वैश्विक विष्णु दोनों होने समेत सबसे उपयुक्त मौके पर ब्रह्मज्ञान से युक्त वैश्विक ब्रह्मा हो वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप (सशरीर परमब्रह्म विष्णु का जाग्रत स्वरुप) में 29 (/15-29), 2006 को आते हुए अपना संस्थागत लक्ष्य हांसिल कर लेने के बीच जिस वैश्विक ब्रह्मा का कार्य किया और इस प्रकार अनवरत इस जगत की स्थिति को मानवतानुकूल आदर्श बनाये रखने प्रति जैसा सात्विक व्यवहार जारी रखा हूँ वह किसी भी स्थिति में इस संसार में किसी के भी द्वारा जीवन भर अनवरत एक सर्वोच्च वैश्विक ब्रह्मज्ञानी (ब्रह्मा) बने रहने से कम नहीं है| और आप सबको विदित हो की ऐसे ही वैश्विक ब्रह्मा स्वरुप में आ वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण हो जाने का ही प्रभाव था की बंगलोर प्रवास (अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009) के बीच में ही 11(/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) आकर धर्मचक्र(सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा किया और इस प्रकार विश्वमानवता की मूल/जड़त्व केंद्र स्वयं ही दक्षिण भारत से उत्तर भारत हो गया और अब यह सहस्राब्दियों तक उत्तर भारत अर्थात प्रयागराज(/काशी) ही रहेगा| NOTE--विशेष कर उत्तर भारत की देविओं पर भौतिक रूप से आधिपत्य कर उनके परिवार और समाज को कमजोर करने के जिस षडयंत्र को 2007-2009 के बीच दक्षिण स्थित भारत के दूसरे सांस्कृतिक केंद्र/क्षेत्र, किष्किंधा क्षेत्र के मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में रहते हुए देखा था और यहां उत्तर प्रदेश में भी कमोबेस हर जाति/धर्म के सामाजिक रूप से सम्मानित कुछ न कुछ व्यक्ति के आधी आबादी के साथ अनवरत होता आ रहा है; और विगत दो-तीन दसकों में मानव जीवन के हर क्षेत्र व् हर वर्ग में फैले स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पेशेवर/माफिया लोगों के माध्यम से बहुत ज्यादा हो चुका है (आपको यह मानना पड़ेगा की स्थानीय स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ऐसे बहुत से गिरोह हैं जो ऐसे कार्य को करने व करवाने का ठीका लेते हैं); फिर भी इस धर्मचक्र/कथित रूप में अशोकचक्र पर विश्वास रखिये जो ऐसा कर व करवा रहा है और जिस परिवार व जिसके साथ यह हो रहा स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय हर जगह उनका सामना इस धर्मचक्र के साथ होगा| = परमाचार्य/परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द (चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव (वास्तविक रुप में शिव सन्दर्भ केवल शुक्ल-पक्ष द्वितीया का श्वेत/शुभ्र आभायुक्त चन्द्रमा से ही है)): अगर यह सत्य है की चन्द्रमा अविनाशी है राहु ग्रसित होने पर भी दिव्य शक्तियां उसका विनाश नहीं होने देती हैं क्योंकि यह पृथ्वी और इस प्रकार सम्पूर्ण मानवता को सूर्य के आतप से बचाकर उनको शीतलता प्रदान करता है; पर यह भी सत्य है कि यह अविनाशी चन्द्रमा स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशवान होता है और यह भी सत्य है कि इस मानव जगत के लिए हर ऊर्जावान/प्रकाशवान सूर्य के ऊर्जा/प्रकाश के भी सर्वकालिक स्रोत विष्णु:मूल सारंगधर ही हैं|>>> सारंगधर/...../देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र--विवेक (गिरिधर) (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))]| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| == सत्यम शिवम सुंदरम:--यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?==हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास है| = किसी विशेष राजनैतिक दल का सवाल नहीं बल्कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति का सवाल होता है तो फिर जब एक उच्चस्थ पदासीन धार्मिक विचार भी रखने वाला मनीषि का जब यह विचार था कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति क्षेत्र स्थित किसी अमुक विश्वविद्यालय में रावणकुल (रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण) नामधारी के नामतः किसी केंद्र/विभाग को स्थाई शिक्षक पद आवंटित नहीं किये जाएंगे तो फिर 2006 के आगे भी 2018 तक मेरा विरोध क्यों जायज था? और इस हेतु 67 पारिवारिक सदस्य युक्त 11 नए परिवार की स्थापना को 12 वर्ष तक नकारते हुए मुझे अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्ममलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) में असफल क्यों सिद्ध किया जा रहा था ? =========25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के पहले जो लोग स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक के प्लेट फार्म से मेरा विरोध कर रहे थे और मेरा विरोध करने हेतु आप साथ दे रहे थे और इस प्रकार हर प्रकार से वे आपका 20 वर्ष तक सहयोग कर रहे थे और जैसे पता चल गया की मैंने इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्ममलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) को 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को प्राप्त कर लिया तो वे आपका विरोध करना प्रारम्भ कर दिए यह आपकी कैसी प्रौढ़/परिपक्व मित्रता और आपका यह व्यक्तिगत कैसा प्रभाव| ====== विश्व-मानव जगत के एकमात्र पूर्णातिपूर्ण नर अर्थात अर्जुन के तर्क से पूर्णातिपूर्ण ईश्वर अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) के जाग्रत स्वरुप सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की पूर्णातिपूर्ण सहमति थी इससे तो इनकार नहीं पर आप सबके हित में पक्ष प्रस्तुत है:-->> किसी विशेष राजनैतिक दल का सवाल नहीं बल्कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति का सवाल होता है तो फिर जब एक उच्चस्थ पदासीन धार्मिक विचार भी रखने वाले मनीषि का जब यह विचार था कि प्रयागराज (/काशी) संस्कृति क्षेत्र स्थित किसी अमुक विश्वविद्यालय में रावणकुल (रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण) नामधारी के नामतः किसी केंद्र/विभाग को स्थाई शिक्षक पद आवंटित नहीं किये जाएंगे तो फिर 2006 के आगे भी 2018 तक मेरा विरोध क्यों जायज था? और इस हेतु 67 पारिवारिक सदस्य युक्त 11 नए परिवार की स्थापना को 12 वर्ष तक नकारते हुए मुझे अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) में असफल क्यों सिद्ध किया जा रहा था? तो क्या यह अनुसंधानकर्ता व अकैडमिशियन समूह द्वारा की जाने वाली राजनीति नहीं थी? तो फिर राजनीति हर जगह होती है लेकिन उसके केंद्र में मानवता व् संस्कृति तथा संस्कार का अधिकतम रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत चालन-संचालन होना चाहिए (शायद अमुक विश्वविद्यालय के ऐसे कोई अनुसंधानकर्ता और ऐसे कोई अकेडेमिसियन स्वयं राष्ट्रीय राजनीति में भी गए थे)|<<=>25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 के पहले जो लोग स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक के प्लेट फार्म से मेरा विरोध कर रहे थे और मेरा विरोध करने हेतु आपका साथ दे रहे थे और इस प्रकार से वे आपका 20 वर्ष तक सहयोग कर रहे थे; और जैसे पता चल गया की मैंने इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान से अपने लक्ष्य (संकल्प/समर्पण/ब्रह्ममलीनता/समधिष्ठता के उद्देश्य) को 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को प्राप्त कर लिया तो वे आपका विरोध करना प्रारम्भ कर दिए यह आपकी कैसी प्रौढ़/परिपक्व मित्रता और आपका यह कैसा व्यक्तिगत प्रभाव| = कश्मीर और कन्याकुमारी के बीच संतुलन बैठाते हुए अपने समाज को चलाने हेतु कोई प्रतीक खोजना आपकी अपनी मजबूरी भले हो (/तमिल-तेलगू/आंध्रा: भारतीय आबादी का लगभग 1/8 भाग मात्र :वैश्वीकरण का चरम पार कर चुका क्षेत्र:तो नकारात्मक पक्ष भी होगा मूल भारतीय संस्कृति के हिंसाब से वैसे भी प्रयागराज (/काशी) से दूरी साथ यह नकारात्मक पक्ष सामान्य रूप से स्वयं बढ़ता है हर दिशा में); पर शास्वत सत्य यही है और यह ही शास्वत रहेगा की इस संसार के प्रथम नागरिक और इस प्रकार प्रथम आदिवासी, मूल शिव और उनके अप्रत्यक्ष पुत्र व राम भक्त, मूल हनुमान/अम्बेडकर/अम्ब वादेकर/अम्ब वाडेकर दोनों केवल एक और एक ही वर्ण अर्थात गौर वर्णीय थे और गौर वर्णीय ही रहेंगे: कर्पूर गौरं करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम, सदा वसंतम हृदया रविन्दे भवम भवानी सहितं नमामी| सारंगधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) से के अंश से आविर्भवित होने वाले इस संसार के प्रथम नागरिक और इस प्रकार प्रथम आदिवासी और विशाल जलप्लावन के बीच इस संसार की आदि नगरी काशी को अपने साथ कीचड़ से सने हुए अवस्था में लेकर ऊपर आने वाले शिव (आदिशिव/केदारेश्वर/महामृत्युंजय/विश्वेश्वर) और उनके अप्रत्यक्ष पुत्र हनुमान/अम्ब वादेकर/अम्ब वाडेकर/अम्बेडकर/शंकर सुमन/केशरी नन्दन/मारूतिनंदन/आञ्जनेय स्वयं में केवल एक और एक ही वर्ण अर्थात गौर वर्णीय थे| सारंगधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव (त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा (परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (सरस्वती(आदि त्रिदेवी/आद्या); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (एकल शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा (त्रिशक्ति स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (एकल शक्ति स्वरुप) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल त्रिशक्ति स्वरुप) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ===== मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से त्रिदेव (शिव (त्रिदेवो में आद्या); विष्णु (त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा (परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (सरस्वती(आदि त्रिदेवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति एकल स्वरुप )>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप त्रिशक्ति की छाया)>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण)/सशरीर ब्रह्म (सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ-आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4-सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5-और इस प्रकार जगत में सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सनातन राम(/कृष्ण) है | == सार्वभौमिक तथ्य की बात सामने रख रहा हूँ:--आप लोग सब गोत्र को मिला दिए हैं तो इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र पर ध्यान रखें: 7 से 8 और 8 से 24 (8X3)/25 और फिर 24 से 108 (/109):-इसका भी ध्यान रखना चाहिए इस सृष्टि के संचालन हेतु:--सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है (जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है); जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र (109) है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (इस 108 वें अंश/गोत्र का ध्यान रखें)| ---सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या -इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| ऐसी ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| 108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप), 2.गौतम, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ, (2)अपर वशिष्ठ , (3) उत्तर वशिष्ठ, (4)पूर्व वशिष्ठ, (5) दिवा वशिष्ठ] !!!, 4.अत्रि , 5.भृगु, 6.आंगिरस, 7.कौशिक, 8.शांडिल्य, 9.व्यास , 10.च्यवन , 11.पुलह , 12.आष्टिषेण, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन , 15.बुधायन , 16.माध्यन्दिनी , 17.अज , 18.वामदेव , 19.शांकृत्य , 20.आप्लवान , 21.सौकालीन , 22.सोपायन , 23.गर्ग , 24.सोपर्णि , 25.कण्व , 26.मैत्रेय , 27.पराशर , 28.उतथ्य , 29.क्रतु , 30.अधमर्षण , 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक , 33.अग्निवेष भारद्वाज , 34.कौण्डिन्य, 35.मित्रवरुण, 36.कपिल, 37.शक्ति, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व , गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, === 109. विष्णु गोत्र = तो अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य सम्पन्न हो चुके हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी: 5 सितम्बर, 2000 को काशी से शिव मेरे साथ प्रयागराज चले आये थे तो मेरे साथ 11 सितम्बर, 2001 से 11(/10) सितम्बर, 2008 तक शिव इस प्रयागराज में मुझमें अर्थात परमब्रह्म विष्णु (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव) के स्वरुप में ही समाहित रहे और इस बीच परम ब्रह्म विष्णु की अवस्था से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आते हुए 29 (15-29) मई, 2006 को वास्तविक सन्दर्भ में आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना होने तक और आगे बंगलोर प्रवास (25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के प्रारंभिक दिनों तक (25 अक्टूबर, 2007 से 10 सितम्बर, 2008 तक) मेरे ही साथ रहे इस प्रकार 11 (/10) सितम्बर, 2008 तक सभी शक्तियां मेरे परमब्रह्म स्वरुप में ही समाहित रहीं जिसके परिणाम स्वरुप इस सम्पूर्ण संसार के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल सभी निर्मूल हो चुके थे तो फिर इनके ऊर्जा स्रोत रहे प्रयागराज (/काशी) के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल में 11(/10) सितम्बर, 2008 को घूम-घूम कर अपने परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से ऊर्जावान कर सभी की पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापना किया था तो इस प्रकार धर्मचक्र (सनातन हिन्दू धर्म समेत समस्त मौलिक धर्म हेतु)/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया था| तो जब 29 (15-29) मई, 2006 में मिली हुई सफलता अर्थात आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना को दबाया जाने लगा और सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया तो फिर ऐसी ही त्रिशक्तियों को पुनः एकल शक्ति में रूपांतरित कर सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 को प्राप्त किया गया, तो अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य अर्थात क्रमिक रूप से वैश्विक राम, वैश्विक शिव व् वैश्विक कृष्ण की उनके धाम अयोध्या, काशी और मथुरा वृन्दाबन में पूर्णातिपूर्ण स्थापना क्रमिक रूप से 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 मई, 2018; 11(/10) सितम्बर, 2008 और 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 को सम्पन्न हो चुकी हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी| दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल:रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। = सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम् सुंदरम):31 जुलाई, 2018 (मंगलवार, अंगारक श्री गणेश चतुर्थी)//25 मई, 2018 (शुक्रवार, प्रथम ज्येष्ठ शुक्ल तिथि एकादशी//12 (/11) अगस्त, 2001 (रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी )::-16 वर्ष से अधिक समय तक (30 मई, 2006 से आज तक) जारी अनवरत मानवता के अभीष्ट हित में ऑरकुट, फेसबुक और ब्लॉग पर एक वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान का शोधकर्ता व शिक्षक (29, अक्टूबर, 2009 से आज तक) होते हुए किये जाने वाले लेखन पर एक स्वैक्षिक लंबा विराम=>मेरी इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की कोई लड़ाई नहीं थी और न हैं और न रहेगी (क्योंकि मेरे ही समर्पण/संकल्प/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने पर ही स्वयं मुझ समेत सभी क्रियाशील लोगों द्वारा रंगमंच पर अभिनय 20 वर्ष से अधिक समय तक जारी रहा है: 11 सितम्बर, 2001 से आज तक); अपितु मेरा इससे सरोकार है की प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत जिस अभीष्ट कार्य के लिए 11 सितम्बर, 2001/07 फरवरी, 2003/ 29 (/15-29) मई, 2006 और आगे भी 12 वर्ष तक और अर्थात 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 तक मैं इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था वह वास्तविक सन्दर्भ में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आने से 29 मई, 2006 को पूर्ण हुआ और विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आने से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण हुआ (इसके साथ ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित को बनाये रखने हेतु मैंने अपने को प्रयागराज (/काशी) केंद्रित करते हुए अपने निमित्त आवश्यक प्रोफेशनल कार्य के अलावा 30 मई, 2006 से अपना लेखन कार्य भी अनवरत जारी रखा था ऑरकुट, फेसबुक और ब्लॉग पर भी जैसा की मेरे अनुसार मेरा संस्थागत कार्य 29 (/15-29) मई, 2006 को ही हो गया था और हो सकता है की मानवता अभीष्ट हित का कार्य बाकी रहा 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण हुआ):-सभी सम्बंधित पक्षों के द्वारा दिए गए शपथ पत्र द्वारा भी और प्रयागराज विश्वविद्यालय द्वारा उच्च न्यायालय प्रयागराज को 25 मई, 2018 और इस प्रकार भारत संघ (Union of India) को 31 जुलाई, 2018 को पंहुचे जबाव अनुसार भी इस विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र तात्कालिक रूप से हर विधि से अस्तित्व में है जिस केंद्र का मै एक शिक्षक हूँ अर्थात इस विश्वविद्यालय में इस केंद्र की पूर्ण स्थापना सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को हो चुकी है जो वास्तविक सन्दर्भ में 29 मई, 2006 को ही स्थापित हो चुका था जब इसके 7 समेत साथ में नवोदित सभी 11 परिवार के 67 परिवार सदस्य के साथ आबाद किया गया था| तो अब सभी देवी-देवता, नर-नारी व नाग-किन्नर-गन्धर्व और असुर समाज को अपने प्रश्न का जबाब मिल जाना चाहिए की इस समस्त मानवता का मूल स्रोत अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सनातन राम(/कृष्ण) मै ही हूँ जिससे ही राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ है जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं|वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर के लिए किसी को वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण होना पड़ता है तो अगर अन्य किसी से सम्भव नहीं हो सका तो 11 सितम्बर, 2001 से ही परमब्रह्म स्वरुप में रहने वाला कोई एक ही क्रमिक रूप से शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा, कृष्ण और राम सब बन गया| = मानवता हित में विशेष रूप से अनिवार्य :-इसके लिए थोड़ा पीछे चलते हैं--जो लोग शिव, राम और कृष्ण होने की प्राथमिक धारणशील योग्यता ही नहीं रखते थे सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन के जैसे दौर में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय माफियागीर लोग माफिया गिरी करते हुए 20 (1998-2018) वर्ष तक उनको शिव, राम और कृष्ण बनाये रखने का नाटक/अभिनय करवाते रह अपनी आजीविका और राजनीति चमकाते रहे| तब ऐसे अमानवीय प्रवृति के लोग परमब्रह्म राम और परमब्रह्म कृष्ण की पात्रता और उनकी योग्यता, क्षमता का अनुमान कैसे लगा सकते थे? तो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में दायित्व निभाने की योग्यता होने के नाते आवश्यता पड़ने पर मूल सारन्गधर की मूल अवस्था/सशरीर परमब्रह्म विष्णु/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) हो कोई एक ही तीनों (शिव, राम और कृष्ण) ही हो लिया; और इस प्रकार मूल सारन्गधर के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) कोई एक ही हो लिया|======सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और सशरीर परमब्रह्म राम हो सकने की प्रारंभिक अनिवार्य शर्त की पृष्ठभूमि:>=>विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला--आज तक जो भ्रम पाले हैं सदा के लिए दूर कर लीजिए:==विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है||NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे|===========मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम जी ने भी यही कहा था कि: धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||=जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = मेरी कुंडली खोजने की जरूरत नहीं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:=सारंगधर (विष्णु) मूल अवस्था से मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था और फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था से मूल सारंगधर अवस्था तो फिर व्यवधान न डालियेगा सब कुछ व्यावहारिक रास्ते पर ही चलने दीजियेगा क्योंकि मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ है; और इसे विशेष रूप से याद रखियेगा| वास्तविक सन्दर्भ में निरपेक्ष रहते हुए केवल एक पक्ष का केंद्र नहीं सभी पक्ष का केन्द्र एक साथ रहा हूँ| विश्वास दिलाता हूँ की इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज केन्द्रित रहते हुए कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975/01 अगस्त, 1976 से 11 नवम्बर, 2057) तक सादगी से आपका साथ दूंगा तो फिर कोई अन्य गैर कानूनी कृत्य कर अपना ही मजाक न बनवाइयेगा क्योंकि अब मुझे 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975/01 अगस्त, 1976 से 11 नवम्बर, 2057) तक इस प्रयागराज (/काशी) में ही रहना है और कुछ भी हो जाएगा तो भी कहीं नहीं जाना है| = विवेक (गिरिधर)::विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:-विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|==बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिदेव:त्रिदेवी: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/अरपणेय अस्तित्व रहा तो स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/-/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती- विवेक (गिरिधर)| == सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम् सुंदरम):------सामाजिक या भौतिक जगत में किसी भी प्रक्रिया में गुण की दृष्टि से देखा जाए तो मिक्सअप/मिश्रित होने में हमेशा अवगुण (कुसंस्कारी व्यक्ति व समाज) वाले का ही लाभ निहित होता है और गुणकारी (संस्कारी व्यक्ति व समाज) लोगों को अपनी तत्कालीन अवस्था में समझौता करने या सबको गुणवान (संस्कारी व्यक्ति व समाज) बनाने के सिवा कुछ शेष नहीं बचता है तो फिर यह अपनी वाह्य (अर्थात भौतिक/सामाजिक) अवनति के रूप में किया गया समझौता उनकी दिव्य शक्ति के रूप में अलौकिक रूप में उसमें ही शामिल हो जाती है|========= जो त्याग व बलिदान करता है तो यह उसकी महानता है जो की उसकी दिव्य शक्ति/अलौकिक शक्ति में शामिल हो जाती है अर्थात उसकी आंतरिक स्थितिज ऊर्जा में समाहित हो जाती है तो त्यागशील व बलिदानी व्यक्ति व समाज जो अपने त्याग व बलिदान के साथ ही साथ बराबर अपना तप/योग/उद्यम/साधना भी जारी रखा हो उससे बराबरी पावर पॉलिटिक्स के आधार पर आप नहीं कर सकते है और न इस संसार में सब किसी को बराबर कभी भी किया जा सकता है:----- सामाजिक या भौतिक जगत में किसी भी प्रक्रिया में गुण की दृष्टि से देखा जाए तो मिक्सअप/मिश्रित होने में हमेशा अवगुण (कुसंस्कारी व्यक्ति व समाज) वाले का ही लाभ निहित होता है और गुणकारी (संस्कारी व्यक्ति व समाज) लोगों को अपनी तत्कालीन अवस्था में समझौता करने या सबको गुणवान (संस्कारी व्यक्ति व समाज) बनाने के सिवा कुछ शेष नहीं बचता है तो फिर यह अपनी वाह्य (अर्थात भौतिक/सामाजिक) अवनति के रूप में किया गया समझौता उनकी दिव्य शक्ति के रूप में अलौकिक रूप में उसमें ही शामिल हो जाती है| = सार-संक्षेप:---"""जिस मूल पद पर इस समय आप हैं उसके सिवा इस संसार में कोई पद आपके योग्य नहीं रहा (प्रयागराज, फरवरी, 2017)"""":------ऐसे ही 11 (/10) सितम्बर, 2008 से प्रत्यक्ष और परोक्ष हर प्रकार से विश्व मानवता का मूल केंद्र दक्षिण भारत से उत्तर भारत (प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र) नहीं हुआ है और यही नहीं कम से कम एक सहस्राब्दी तक यह ही विश्व मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र रहेगा:---सहस्राब्दियों हेतु शिव के स्थायित्व और इस प्रकार विश्व-मानवता के स्थायित्व हेतु मूल शिव:आदिशिव ( केदारेश्वर/महामृत्युंजय/विश्वेश्वर) की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा 11 सितम्बर, 2008 को तत्कालीन रूप से मेरे परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से ही ही काशी में की गयी है (यही नहीं इस प्रयागराज और काशी में घूम-घूम कर यहॉं के समस्त मुख्य मंदिरों की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा 10/11 सितम्बर, 2008 को तत्कालीन रूप से मेरे परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से ही ही काशी में की गयी है); तो फिर धर्म चक्र(सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र पर विश्वास कीजिये यह स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर पर उचित भूमिका निभाएगा और आर्य संस्कृति (प्रगतिशील सच्चाई का प्रतिपालक) को जड़ से उखाड़ फेकने की कसम खाये लोगों को भी श्रीलंका जैसी स्थिति लाने और फिर उसका जबाव खोज न पाने (जबाव न दे पाने) से बचना चाहिए क्योकि प्रतिक्रिया व् प्रतिशोध में अंधा हो वह ही सब कुछ कर गुजरता है जिसकी जबाब देही प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक केंद्र के उत्तर प्रदेश जैसे स्थान के आंचलिक क्षेत्र में मौलिक जीवन के प्रति नहीं होती है बल्कि उनकी जबाव देही उनके प्रति होती है जिसका जीवन अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे क्षेत्र में मौलिक जीवन जीने वाले लोगों की लाशों पर पलता है (जिस मौलिक जीवन को जीने के लिए ऐसे क्षेत्र वालों ने हर त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम/यत्न जारी रखा हुआ है); और इसके परे जिसकी जबाब देही प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक केंद्र के उत्तर प्रदेश जैसे स्थान के आंचलिक क्षेत्र में मौलिक जीवन के प्रति होती है वह सब कुछ कर गुजरने की नहीं सोचता बल्कि उस नैतिक कर्तव्य और आर्य संस्कृति को अपनाता है जिसमें की जीवन की मौलिकता को अक्षुण्य बनाये रखने हेतु अन्तिम प्रयास में भी कोई कमी न हो| = आप प्रत्यक्ष रूप से इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में मुझको (जिस मूल सारंगधर (/विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात महाशिव/सदाशिव​ से विगत अद्वितीय दो दसक के दौरान राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है को) भले 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975 से 11 नवम्बर, 2057) तक देखेंगे/देख रहे हैं पर-----दृष्टि दौड़ाएं तो वास्तविक सन्दर्भ में मुझे अब आप अयोध्या (30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018); काशी (11 सितम्बर, 2008); और मथुरा-वृन्दाबन (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014) में ही पाएंगे|--------आप लोग मेरे स्वरुप को देखे थे 11 सितम्बर, 2001 के पहले, 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच विशेष रूप में और फिर 29 मई, 2006 से 29 अक्टूबर, 2009 तक और फिर आगे 29 अक्टूबर, 2009 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) के बीच तो फिर समझ लीजियेगा की----आप लोग मेरे स्वरुप को देखे थे 11 सितम्बर, 2001 के पहले, 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच विशेष रूप में और फिर 29 मई, 2006 से 11 (/10) सितम्बर, 2008; 11 (/10) सितम्बर, 2008 से 29 अक्टूबर, 2009 तक और फिर आगे 29 अक्टूबर, 2009 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018/13 अप्रैल, 2018) के बीच तो फिर समझ लीजियेगा की -----दृष्टि दौड़ाएं तो वास्तविक सन्दर्भ में मुझे अब आप अयोध्या (30 सितम्बर, 2010/09 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018); काशी (11 सितम्बर, 2008) और मथुरा-वृन्दाबन (28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014) में ही पाएंगे| == आप सभी को विदित हो कि 11 सितम्बर, 2001//7 फरवरी, 2003//15/29 मई, 2006 को भले ही प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था पर 5 सितम्बर, 2000 को ही मैं शिव को ही अपने में समाहित कर बोरिया बिस्तर समेत काशी से प्रयागराज आ चुका था (10 सितम्बर, 2000 को प्रयागराज विश्वविद्यालय में केदारेश्वर:आदिशिव की स्थापना हेतु नींव दिए जाना पूर्णातिपूर्ण संज्ञान में था):---धर्म चक्र के पालक मूल शिव अब 11 (/10) सितम्बर, 2008 से काशी में ही रह रहे हैं और अपने परिवार समेत सहस्राब्दियों तक अपने मूल स्थान, काशी ही रहेंगे और उससे बाहर उनकी छाया प्रति ही जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए और जब तक प्रयागराज (विष्णु और ब्रह्मा) को मूल शिव की प्रत्यक्ष उपस्थिति की जरूरत न हो और उन पर मूल अधिकार काशी वासियों का ही होगा| और धर्म ध्वजा धारक विष्णु व् सृस्टि संचार कर्ता ब्रह्मा अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान प्रयागराज में ही सहस्राब्दियों तक रहेंगे और इनकी भी छायाप्रति ही बाहर जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए| इसी प्रकार 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में पुनर्स्थापित धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/ तथा कथित अशोकचक्र का सम्मान कीजिये आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा तो आपका सामना भी इसी से होगा | 29 (/15-29) मई, 2006 को प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज में इस संसार के सर्वकालिक सबसे गौर वर्णीय स्वरुप वाले ""केदारेश्वर/आदिशिव:"" (मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से आविर्भवित होने वाले केदारेश्वर/आदिशिव जो इस संसार में स्थल के प्रथम नागरिक हैं और जिनको आप इस संसार के प्रथम आदिवासी भी कह सकते है और जो विशाल जलप्लावन के बीच इस संसार की सबसे पुरानी धरा, काशी को अपने साथ लेकर कीचड (केदार) से सने हुए स्वरुप में निकले थे जिसके नाते उनको केदारेश्वर कहा गया है) की स्थापना होने के बाद मुझे मूल ब्रह्मा और मूल विष्णु को प्रयागराज; और मूल शिव को उनके मूल स्थान, काशी में स्थापित करना ही था तो फिर उसके निमित्त भी उचित ऊर्जा की आवश्यकता थी (जिस प्रकार मैं शिव शक्ति, विष्णु शक्ति और ब्रह्मा की शक्ति से त्रिशक्ति सम्पन्न हो परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में 29 (/15-29) मई, 2006 को आते हुए अपना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण किया था तो आगे भी अभीष्ट सफलता को सामाजिक रूप से सर्वमान्य रूप से स्वीकार न करने पर 12 वर्ष तक के संघर्ष के दौरान विष्णु और ब्रह्मा के स्वरुप को मूल शिव की आवश्यकता पड़ने पर पुनः त्रिशक्ति को पुनः संयुक्त कर त्रिशक्ति सम्पन्न हो 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 को परमब्रह्म राम स्वरुप में आते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण किया गया था) तो फिर 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में मन्दिर मन्दिर घूम-घूमकर दोनों स्थान के उन मंदिरों जो सम्पूर्ण संसार के देवस्थान/मन्दिर/देवालय/उपासना स्थल को ऊर्जा देते हैं उन सभी की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए धर्मचक्र /तथा कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना करते हुए मूल विष्णु और मूल ब्रह्मा को 10 सितम्बर, 2008 आपके और हमारे बीच इस प्रयागराज में और मूल शिव को 11 सितम्बर, 2008 को उनके परिवार समेत काशी में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया गया| == बहुत हो चुकी आसुरी गोत्र (सम्पूर्ण 108 गोत्रों में से एक मात्र गोत्र/ऋषि या इस विश्वमानवता के 108 वें अंश) पर कृपा =>सम्पूर्ण विश्व मानवता को 11 सितम्बर, 2001 के त्राहिमाम का दिन याद है न तो फिर मूल शिव के द्वारा इस सम्पूर्ण विश्व मानवता के सहस्राब्दियों हेतु पूर्ण कल्याण (शिव) स्थापित किये जाने के बाद 11(/10) सितम्बर, 2008 से शिव अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान काशी में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा इसी प्रकार 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| अब शिव, राम और कृष्ण की केवल छायाप्रति ही अब इनके मूल स्थान से सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से ही कहीं जा सकेगी| तो फिर 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये| सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी के मानस/आदर्श पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| = जहाँ से मैं ऊर्जा लिया करता था उसी परम स्रोत, मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) से वैश्विक मानद शिव भी अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने हेतु ऊर्जा लिया करते थे--पहले मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की शीर्षस्थ अवस्था अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का सन्दर्भ और तब सन्दर्भ आता है 7, 8, 24/25 और 108/109 गोत्र/ऋषि का- इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र पर ध्यान रखें: 7 से 8 और 8 से 24 (8X3)/25 और फिर 24 से 108 (/109) गोत्र/ऋषि:--इसका भी ध्यान रखना चाहिए इस सृष्टि के संचालन हेतु:-सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है (समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव); जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र (25/109वांगोत्र ) है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (इस 108 वें अंश/गोत्र का बराबर ध्यान रखें)|--सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| = सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 1-जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप त्रिशक्ति)>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप त्रिशक्ति)>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप त्रिशक्ति की छाया)>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2-त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| 3 - सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 -सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 -और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) है | = सबका यथोचित सम्मान है पर मूल सारङ्गधर (श्रीधर:विष्णु) से ही समस्त देवी-देवताओं समेत इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है इसमें कोई संदेह न कीजिये; हांलाकी 11 सितम्बर, 2001 को ही वैश्विक शिव के रूप में मैं इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था परन्तु वैश्विक परिवर्तन बीच नियमों का हवाला देकर कार्य बाधित कर दिए जाने से दूसरी युक्ति के तहत सफलता पाने हेतु प्रयास में मेरे दूसरी बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किये जाने को मैंने अस्वीकार कर दिया था तो फिर फरवरी 2003 में जब मैंने आगे यहाँ बने रहने से मना किया तो 7 फरवरी, 2003 को मूल सारङ्गधर(श्रीधर:विष्णु) ने कहा था की जोशी (ब्रह्मा) और प्रेमचन्द (शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सम्मान को बनाये रखने हेतु प्रयागराज (/काशी) स्थित प्रयागराज विश्विद्यालय में बिना आदिशिव:केदारेश्वर की स्थापना हुए तुमको यहाँ से कहीं नहीं जाना है तो फिर ऐसी परिस्थिति में मुझे वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा भी होते हुए "मूल सारङ्गधर की मूल अवस्था" में आना ही था क्योंकि आदिशिव/केदारेश्वर तो इसी प्रक्रिया से आविर्भवित हो सकते हैं) तो फिर वैश्विक परिवर्तन बीच असंभव को सम्भव बनाने की जिद में ऐसी अवस्था से स्वयं निहित संकल्प/समर्पण द्वारा वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर 29 (15-29) मई, 2006 को आदिशिव:केदारेश्वर के समेत 11 परिवार को 67 पारिवारिक सदस्यों के साथ आबाद कर दिया गया| फिर जिसने मुझे नहीं पहचाना था 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए उनको इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर वैश्विक परमब्रह्म राम के रूप में पहचनवा दिया| तो फिर 16 मार्च, 2014 (/28 अगस्त, 2013)//29 (15-29) मई, 2006 और 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010)/// 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 की परिणति तो होनी ही थी और इसके पहले 11(/10) सितम्बर, 2008 को मैंने अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप से विष्णु और ब्रह्मा को सपरिवार प्रयागराज और शिव को सपरिवार काशी पंहुचा धर्मचक्र को पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया था| = दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल:रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (मूल सारंगधर:विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। == तो अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य सम्पन्न हो चुके हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी: 5 सितम्बर, 2000 को काशी से शिव मेरे साथ प्रयागराज चले आये थे तो मेरे साथ 11 सितम्बर, 2001 से 11(/10) सितम्बर, 2008 तक शिव इस प्रयागराज में मुझमें अर्थात परमब्रह्म विष्णु (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव) के स्वरुप में ही समाहित रहे और इस बीच परम ब्रह्म विष्णु की अवस्था से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आते हुए 29 (15-29) मई, 2006 को वास्तविक सन्दर्भ में आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना होने तक और आगे बंगलोर प्रवास के प्रारंभिक दिनों तक (अक्टूबर, 2007 से सितम्बर, 2008 तक) मेरे ही साथ रहे इस प्रकार 11 (/10) सितम्बर, 2008 तक सभी शक्तियां मेरे परमब्रह्म स्वरुप में ही समाहित रहीं जिसके परिणाम स्वरुप इस सम्पूर्ण संसार के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल सभी निर्मूल हो चुके थे तो फिर इनके ऊर्जा स्रोत रहे प्रयागराज (/काशी) के सभी देवालयों/मंदिरों/उपासना स्थल में 11(/10) सितम्बर, 2008 को घूम-घूम कर अपने परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से ऊर्जावान कर सभी की पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापना किया था तो इस प्रकार धर्मचक्र (सनातन:हिन्दू धर्म समेत समस्त मौलिक धर्म हेतु)/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया था| तो जब 29 (15-29) मई, 2006 में मिली हुई सफलता अर्थात आदिशिव:केदारेश्वर की इस प्रयागराज में स्थापना को दबाया जाने लगा और सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया तो फिर ऐसी ही त्रिशक्तियों पुनः एकल शक्ति में रूपांतरित कर सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में इस संसार के सभी यक्म-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 मई, 2018 को प्राप्त किया गया, तो अब जब विश्व मानवता के सभी अभीष्ट कार्य अर्थात क्रमिक रूप से राम, शिव व् कृष्ण की उनके धाम अयोध्या, काशी और मथुरा वृन्दाबन में पूर्णातिपूर्ण स्थापना जो की क्रमिक रूप से 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 मई, 2018; 11(/10) सितम्बर, 2008 और 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 को सम्पन्न हो चुके हैं तो ऐसे में कम से कम एक सहस्राब्दी तक शिव को सशरीर काशी से प्रयागराज आने की जरूरत नहीं पड़ेगी| == सत्यम शिवम सुंदरम:---यह अटल सत्य है कि जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?==यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?===हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास =======सम्बंधित पक्षों के द्वारा दिए गए शपथ पत्र और प्रयागराज विश्वविद्यालय द्वारा उच्च न्यायालय प्रयागराज को 25 मई, 2018 और इस प्रकार भारत संघ (Union of India) को 31 जुलाई, 2018 को दिए जबाव अनुसार इस विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र अस्तित्व में है जिस केंद्र का मै एक शिक्षक हूँ अर्थात इस विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र की पूर्ण स्थापना सभी यम--अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को हो चुकी है जो वास्तविक सन्दर्भ में 29 (15-29) मई, 2006 को ही स्थापित हो चुका था जब इसके 7 समेत सभी 11 परिवार के 67 परिवार सदस्य के साथ आबाद किया गया था| तो अब सभी देवी-देवता, नर-नारी व नाग-किन्नर-गन्धर्व को अपने प्रश्न का जबाब मिल जाना चाहिए की इस समस्त मानवता का मूल स्रोत अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) मै ही हूँ|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|------ == सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम् सुंदरम):------मेरी कुंडली खोजने की जरूरत नहीं पूरे पते के साथ कुंडली यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:======सारंगधर (विष्णु) मूल अवस्था से मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था और फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था से मूल सारंगधर अवस्था तो फिर व्यवधान न डालियेगा सब कुछ व्यावहारिक रास्ते पर ही चलने दीजियेगा क्योंकि मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ है जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं; और इसे विशेष रूप से याद रखियेगा क्योंकि वास्तविक सन्दर्भ में निरपेक्ष रहते हुए केवल एक पक्ष का केंद्र नहीं सभी पक्ष का केन्द्र एक साथ रहा हूँ| =====मेरी कुंडली खोजने की जरूरत नहीं पूरे पते के साथ कुंडली यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ और मुझे अब आगे अधिक लम्बे समय कुछ न लिखने को कहा गया है तो फिर आप को विश्वास दिलाता हूँ की इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज केन्द्रित रहते हुए कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975/01 अगस्त, 1976 से 11 नवम्बर, 2057) तक सादगी से आपका साथ दूंगा तो फिर कोई अन्य गैर कानूनी कृत्य कर अपना ही मजाक न बनवाइयेगा क्योंकि अब मुझे 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975/01 अगस्त, 1976 से 11 नवम्बर, 2057) तक इस प्रयागराज (/काशी) में ही रहना है और कुछ भी हो जाएगा तो भी कहीं नहीं जाना है| === सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम् सुंदरम):31 जुलाई, 2018 (मंगलवार, अंगारक श्री गणेश चतुर्थी)//25 मई, 2018 (शुक्रवार, प्रथम ज्येष्ठ शुक्ल तिथि एकादशी//12 (/11) अगस्त, 2001 (रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी )::---16 वर्ष से अधिक समय तक (30 मई, 2006 से आज तक) जारी अनवरत मानवता के अभीष्ट हित में ऑरकुट, फेसबुक और ब्लॉग पर एक वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान का शोधकर्ता व शिक्षक (29, अक्टूबर, 2009 से आज तक) होते हुए किये जाने वाले लेखन पर एक स्वैक्षिक लंबा विराम==>>मेरी इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की कोई लड़ाई नहीं थी और न हैं और न रहेगी (क्योंकि मेरे ही समर्पण/संकल्प/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने पर ही स्वयं मुझ समेत सभी क्रियाशील लोगों द्वारा रंगमंच पर अभिनय 20 वर्ष से अधिक समय तक जारी रहा है: 11 सितम्बर, 2001 से आज तक); अपितु मेरा इससे सरोकार है की प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत जिस अभीष्ट कार्य के लिए 11 सितम्बर, 2001/07 फरवरी, 2003/ 29 (/15-29) मई, 2006 और आगे भी 12 वर्ष तक और अर्थात 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 तक मैं इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था वह वास्तविक सन्दर्भ में विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आने से 29 मई, 2006 को पूर्ण हुआ और विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप में आने से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण हुआ (इसके साथ ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित को बनाये रखने हेतु मैंने अपने को प्रयागराज (/काशी) केंद्रित करते हुए अपने निमित्त आवश्यक प्रोफेशनल कार्य के अलावा 30 मई, 2006 से अपना लेखन कार्य भी अनवरत जारी रखा था ऑरकुट, फेसबुक और ब्लॉग पर भी जैसा की मेरे अनुसार मेरा संस्थागत कार्य 29 (/15-29) मई, 2006 को ही हो गया था और हो सकता है की मानवता अभीष्ट हित का कार्य बाकी रहा 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण हुआ):----सभी सम्बंधित पक्षों के द्वारा दिए गए शपथ पत्र द्वारा भी और प्रयागराज विश्वविद्यालय द्वारा उच्च न्यायालय प्रयागराज को 25 मई, 2018 और इस प्रकार भारत संघ (Union of India) को 31 जुलाई, 2018 को पंहुचे जबाव अनुसार भी इस विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र तात्कालिक रूप से हर विधि से अस्तित्व में है जिस केंद्र का मै एक शिक्षक हूँ अर्थात इस विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र की पूर्ण स्थापना सभी यम--अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को हो चुकी है जो वास्तविक सन्दर्भ में 29मई, 2006 को ही स्थापित हो चुका था जब इसके 7 समेत साथ में नवोदित सभी 11 परिवार के 67 परिवार सदस्य के साथ आबाद किया गया था| तो अब सभी देवी-देवता, नर-नारी व नाग-किन्नर-गन्धर्व और असुर समाज को अपने प्रश्न का जबाब मिल जाना चाहिए की इस समस्त मानवता का मूल स्रोत अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात सनातन राम(/कृष्ण) मै ही हूँ जिससे ही राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ है जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं|वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण मन्दिर के लिए किसी को वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण होना पड़ता है तो अगर अन्य किसी से सम्भव नहीं हो सका तो 11 सितम्बर, 2001 से ही परमब्रह्म स्वरुप में रहने वाला कोई एक ही क्रमिक रूप से शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा, कृष्ण और राम सब बन गया|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| === विवेक (गिरिधर)::विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण)/::::Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|======बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../देवीधर/रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/--/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-- विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:--विवेक (राशिनाम गिरिधर)-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। = आप लोग सब गोत्र को मिला दिए हैं तो मैं किसी जाति या धर्म विशेष की की बात नहीं कर रहा हूँ पर सार्वभौमिक तथ्य की बात सामने रख रहा हूँ: ---जहाँ से मैं ऊर्जा लिया करता था उसी परम स्रोत, मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) से वैश्विक मानद शिव भी अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने हेतु ऊर्जा लिया करते थे----पहले मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की शीर्षस्थ अवस्था अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का सन्दर्भ और तब सन्दर्भ आता है 7, 8, 24/25 और 108/109 गोत्र/ऋषि का --- इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र का बराबर ध्यान रखें: 7 से 8 और 8 से 24 (8X3)/25 और फिर 24 से 108 (/109) गोत्र/ऋषि:--इसका भी ध्यान रखना चाहिए इस सृष्टि के संचालन हेतु:--सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है (समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव); जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र (समस्त ऋषि/गोत्र का ऊर्जा स्रोत, 24/25//108/109वां गोत्र) है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र का बराबर ध्यान रखें)| ---सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| ===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = सबका यथोचित सम्मान है पर मूल सारङ्गधर (श्रीधर:विष्णु) से ही समस्त देवी-देवताओं समेत इस सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है इसमें कोई संदेह न कीजिये; हांलाकी 11 सितम्बर, 2001 को ही मैं इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मैं संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था परन्तु वैश्विक परिवर्तन बीच नियमों का हवाला देकर कार्य बाधित कर दिए जाने से दूसरी युक्ति के तहत सफलता पाने हेतु प्रयास में मेरे दूसरी बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किये जाने को मैंने अस्वीकार कर दिया था तो फिर फरवरी 2003 में जब मैंने आगे यहाँ बने रहने से मना किया तो 7 फरवरी, 2003 को मूल सारङ्गधर(श्रीधर:विष्णु) ने कहा था की जोशी (ब्रह्मा) और प्रेमचन्द (शिव/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सम्मान को बनाये रखने हेतु प्रयागराज (/काशी) स्थित प्रयागराज विश्विद्यालय में बिना आदिशिव:केदारेश्वर की स्थापना हुए तुमको यहाँ से कहीं नहीं जाना है तो फिर ऐसी परिस्थिति में मुझे """मूल सारङ्गधर की मूल अवस्था""" में आना ही था फिर वैश्विक परिवर्तन बीच असंभव को सम्भव बनाने की जिद में ऐसी अवस्था से स्वयं निहित संकल्प/समर्पण द्वारा परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर 29 (15-29) मई, 2006 को आदिशिव:केदारेश्वर के समेत 11 परिवार को 67 पारिवारिक सदस्यों के साथ आबाद कर दिया गया, तो फिर जिसने मुझे नहीं पहचाना था 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए उनको इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर पहचनवा दिया| तो फिर 16 मार्च, 2014 (/28 अगस्त, 2013)//29 (15-29) मई, 2006 और 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010)/// 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 की परिणति तो होनी ही थी और इसके पहले 11(10) सितम्बर, 2008 को मैंने अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप से विष्णु और ब्रह्मा को सपरिवार प्रयागराज और शिव को सपरिवार काशी पंहुचा धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र को पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया था| ===225 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = बिशुनपुर-223103 व रामापुर-23225 का एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>किसी एक ही का या दोनों ही का डमी या प्रॉक्सी या छाया प्रति नहीं अद्वितीय मूल प्रति हूँ रामानन्द और सारंगधर के अद्वितीय एकल युग्म का:------------इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रयागराज विश्वविद्यालय में आदिशिव:केदारेश्वर की स्थापना हेतु वैश्विक शिव के रूप में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किये जाने वाले दिन अर्थात 11 सितम्बर, 2001 को मूल रूप में दो पीढ़ी से एकल सन्तति जो अपनी तीन पीढ़ी की जिम्मेदारी व ऊर्जा लिए रहा हो ऐसे मुझ तत्कालीन तक आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी (व प्रयागराज (/काशी) ही केंद्रित रहकर आगे चलकर 33 वर्ष पर विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी); आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी तथा बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम या ख़ास नशे से दूर रहने वाला की उम्र मात्र 25 वर्ष 1 माह, 10 दिन ऑफिशल (और 25 वर्ष, 10 माह वास्तविक रूप से) मेरे जन्म तिथि 11 नवम्बर, 1975 वास्तविक (/1 अगस्त, 1976 ऑफिशल) जन्मदिन के अनुसार थी और इसके साथ आप सबको विदित हो की कम से कम 11 नवम्बर, 2057 तक अवश्य ही आप सबका सादगी के साथ इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में साथ दूंगा|=======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = मै केवल शिव कहाँ महाशिव/सदाशिव अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) हो चुका हूँ जो शिव की तरह माया मोह में सती/गौरी की लाश लेकर नहीं ढोता (तो ऐसे में सृष्टि को विनाश से बचाने हेतु विष्णु द्वारा सती:गौरी की लाश छतिग्रस्त करना पड़े); क्योंकि सती:गौरी ही नहीं हर किसी की शक्ति के अवस्था /स्थान/काया परिवर्तन में वह मूल शक्ति मुझमें ही अर्थात महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) में ही समाहित होती है अर्थात हर शक्ति को निर्मूल करने की क्षमता मुझमें निहित है| ===सनातन राम(/कृष्ण) वह मूल शक्ति हैं जिनमें सती:गौरी ही नहीं हर किसी की शक्ति के अवस्था/स्थान/काया परिवर्तन करने पर उसे निर्मूल करने की क्षमता में निहित है -======समस्त शक्तियां सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात महाशिव/सदाशिव अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) में ही समाहित होती है अर्थात हर शक्ति को निर्मूल करने की क्षमता सनातन राम(/कृष्ण) में निहित है| == ---मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम के मूल स्वरुप राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव अपने सांगत शक्तियों समेत इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद रहेंगे:------क्योंकि ----सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी::जिनके नौ स्वरूपों में एक स्वरुप देवकाली/महाकाली हैं) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+ महालक्ष्मी+ महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| तो फिर समझ लीजिये शिव (11 सितम्बर, 2008) अपने परिवार सहित काशी में प्रतिस्थापित हो चुके हैं, राम (विष्णुकान्त:राम: 30-09-2010: 09-11-2019) और कृष्ण (कृष्णकान्त:कृष्ण:28 -08 -2013: 16-03-2014 ) क्रमसः अयोध्या और मथुरा में प्रतिस्थापित हो चुके हैं अन्यथा यह समझिएगा की दोनों विष्णु (विष्णुकान्त:राम) और ब्रह्मा (कृष्णकान्त:कृष्ण) के रूप में हमारे और आप के बीच इस प्रयागराज में अवस्थित हैं जिनके माध्यम से आप इस सृष्टि का सञ्चालन जारी रखे और जरूरत पड़ने पर आप काशी, अयोध्या और मथुरा जाकर शिव, राम और कृष्ण से भी ऊर्जा लेते रहिये तो इस प्रकार मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम के मूल स्वरुप इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद रहेंगे|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = वैसे कृष्ण (वह जो सम्पूर्ण मानवता का कलुष हरण करे) की तुलना में सरल तो राम(जो विष्णु की तरह सम्पूर्ण मानवता के पापों का नाश करे और शिव की तरह सम्पूर्ण मानवता के पापों को जला दे) ही कहे जाते हैं पर महत्ता तो अपने अनुसार दोनों की बराबर है पर इसमें से एक समाज को भी स्पस्ट प्रमाण देने के नाते थोड़ा कठोर दिखाई देता है| इनमें से कौन और उसका समानान्तर चालक समाज स्वयं सरल या कठिन हैं यह यहाँ से परिलक्षित होगा-----एक कृष्ण (कृष्णकान्त) के 28 अगस्त, 2013/29 (/15-29) मई, 2006 को प्रकट होने के एक वर्ष के अंदर 16 मार्च 2014 को वैश्विक मन्दिर की आधारशिला रख दी और दूसरे ने राम (विष्णुकान्त) के 30 सितम्बर, 2010 को प्रकट होने के 9 वर्ष बाद 9 नवम्बर, 2019 को वैश्विक मन्दिर के निर्माण की केवल इजाजत पायी वह भी 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को सब कुछ स्पस्टतः प्रमाणित होने के बाद तो --कैसे न कहूँ की ईसाइयत (जिसमें समायोजन मूल में होता है पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/दीनदयाल/पतितपावन/जगततारन) का बड़ा भाई इस्लाम (जिसमें समायोजन मूल में होता है पूर्णातिपूर्ण सत्य/ पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान/परम सत्य/सत्यमेव जयते) है और ईसाइयत सामानांतर चलता है कृष्ण के और इस्लामियत सामानांतर चलता है राम के| === वैसे कृष्ण की तुलना में सरल तो राम ही कहे जाते हैं पर महत्ता तो अपने अनुसार दोनों की बराबर है पर इसमें से एक समाज को भी स्पस्ट प्रमाण देने के नाते थोड़ा कठोर दिखाई देता है| इनमें से कौन और उसका समानान्तर चालक समाज स्वयं सरल या कठिन हैं यह अंतर यहां आप को समझना है किसी को भी अपमानित करने से पहले क्योंकि हिन्दू समाज को दोनों के सामानांतर चलना है तो अपने को ऐसी परिस्थिति के अनुकूल बनाना है? = मेरे द्वारा परम ज्ञानी परमपिता परमेश्वर (जोशी:ब्रह्मा: 10 सितम्बर, 2000/29 (/15-29) मई, 2006)), परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचंद्र:चन्द्रप्रेमी:सोमेश्वर /सोमनाथ:::11 सितम्बर, 2001: 11(/10) सितम्बर, 2008) और परमगुरु परमपिता परमेश्वर (श्रीधर:विष्णु:मूल सारंगधर: ऊर्जा के मूल स्रोत: निर्णायक भूमिका:::07 फ़रवरी, 2003) में से किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ है और सभी उत्तर प्रदेश के सीमा के अन्दर है और विशेष रूप से जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान, """"शिव"" स्वयं जगत जननी जानकी के पास है और अन्य दोनों प्रयागराज (/काशी) में मेरे अर्थात आप के ही पास हैं इस प्रकार राम:::जगत जननी जानकी की पहचान (30 सितम्बर, 2010 (/9 नवम्बर, 2019)//25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) और कृष्ण:::जगत जननी राधा की पहचान (28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006) दोनों भी मेरे अर्थात आप के ही पास प्रयागराज (/काशी) में अर्थात उत्तर प्रदेश के सीमा के अन्दर है| ===मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था जिससे ही राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव होता है) स्वयं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण विश्व-मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय स्वयं मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। == होते तो दो ही ध्रुव हैं पर तीनों ध्रुवों (दो ध्रुव +भूमध्य रेखा) का दर्शन इन चित्रों में कराते हैं हम (अब आप की इक्षा थी की मन्दिर चाहिए पर साकार मैंने 11 सितम्बर, 2001 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 तक तीनों ध्रुवों को एक किया हुआ था पर हाँ मंदिर तो युगों-युगों तक रहेगा साकार तो मैं 11 नवम्बर, 2057 मात्र तक ही रहूँगा): = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997)::::संदेह दूर करने हेतु:-----वह दौर जब भारतीय प्रतिभा भारत तक विशेष रूप तक ही सीमित रहती थी तो ऐसे समय में इसरो के एक सीनियर साइंटिस्ट और अपने अहमदाबाद स्थित केंद्र पर रेमोटसेंसिंग एंड ओसेनोग्राफी डिवीज़न के संस्थापक प्रमुख जो भौतिकी विभाग, प्रयागराज विश्वविद्यालय से ही शिक्षा ग्रहण किये थे और जो रामापुर-223225 से हैं (मेरे ही मूल कुल, सारंगधर कुल से हैं और मेरे अति घनिष्ट थे और मेरे लिए बचपन के दौर के विज्ञान की दुनिया के एक प्रेरणा श्रोत थे) और जिनका इसरो से पत्र मेरे जूनियर हाई स्कूल (1985) से लेकर स्नातक (1997) शिक्षा तक मेरे नाम बिशुनपुर-223225 (रामानन्द कुल) में आता था| उनकी सर्वांगीण क्षमता का आंकलन करते हुए उनको अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले भारतीय वैज्ञानिक संस्थान, ; National Centre for Polar and Ocean Research, Goa (राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्रीय अध्ययन केंद्र, गोवा) का संस्थापक निदेशक बनाया गया था और तिथि थी 25 मई, 1998 (12 मई, 1997)| ----------- मुझको जानबूझकर अवनत करने से उत्सर्जित सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से हुए वैश्विक सामाजिक परिवर्तन से मैं संतुष्ट हूँ पर मुझे पता हो चुका है की काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में किस कारन से और किन लोगों के दबाव में मेरे प्रैक्टिकल का अंक तुलनात्मक रूप से अति कम किया गया था जिसके परिणाम स्वरुप प्रथम श्रेणी में आने से 1 प्रतिसत अंक से रोका गया और इससे सम्बंधित दूसरा कारन था प्रथम वर्ष में चेचक की वहज से तीन पेपर की परीक्षा छूटना| निकटता का हानि-लाभ दोनों होता है तो जो लाभ हुआ उसी पर न फोकस करें व्यक्ति का अपना भी कुछ व्यक्तित्व होता है जो हर सम्बन्ध से परे होता है|=========25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में आगे भी मेरी उपस्थिति वर्तमान परिस्थिति अनुकूल इसी स्वरुप में अनिवार्य है:----------मैं (मूल सारंगधर की मूल अवस्था में विराजमान) त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर ) के ही समतुल्य बना हुआ हूं।=======दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:====>>>>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधिक समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। ==== संदेह दूर करने हेतु: 11 सितम्बर, 2001:--- उस केंद्र का नाम है केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS), प्रयागराज विश्वविद्यालय है तो जिस दिन यह दुनिया त्राहिमाम कर रही थी उसी दिन सृजनात्मक कार्य हेतु विशेष रूप से अपने समर्पण/संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता के निमित्त स्थापित किये जाने वाले केन्द्र पर मैंने """"वैश्विक शिव"""" के रूप में पहला कदम रखा था जो अंतिम रूप से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से स्थापित हुआ मेरे संकल्प/समर्पण के साथ जिसकी नींव मात्र 10 सितम्बर, 2000 को पडी थी, वैसे वह 29 मई, 2006 और इस प्रकार 29 अक्टूबर, 2009 को ही स्थापित हो चुका था| === संदेह दूर करने हेतु: 07 फ़रवरी, 2003 (शोध व् समकालीन परिवर्तन, प्रयास व् सफलता)--- 11 सितम्बर, 2001 से प्रारब्ध हुई केदारेश्वर बनेर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS), प्रयागराज विश्वविद्यालय के स्थापना की प्रक्रिया नियमतः बाधित होने पर 07 फ़रवरी, 2003 को विशेष रूप से अपने को समर्पण/संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता जाने के तहत """"वैश्विक विष्णु"""" के रूप में दूसरा दौर था जब मैंने इसे सफल बनाने हेतु अपनी इक्षा के विरुद्ध जाकर विद्वत और माननीय लोगों के कार्य को पूर्ण परिणति तक पंहुचाने हेतु केंद्र से पीएचडी में प्रथम नामांकन लिया| किन्तु वैश्विक परिवर्तन और सत्ता परिवर्तन को देखते हुए केंद्र के अस्तित्व विहीन हो जाने का आंकलन करते हुए === तीसरे दौर में 15 से 29 मई, 2006 (संदेह दूर करने हेतु) के बीच स्वैक्षिक रूप से समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो ""वैश्विक"ब्रह्मा"""" भी होते हुए त्रिशक्ति संपन्न हो """"वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण"""" के रूप में समाहित ऊर्जा का प्रयोग करते हुए और चमत्कारिक कदम उठाते हुए 29 (15-29) मई, 2006 को इस केंद्र को 7 स्थाई शिक्षक पद समेत समस्त 11 नवोदित केंद्र/विभाग हेतु 67 स्थाई शिक्षक पद के सृजन में परिणामी भूमिका निभाई| और इसके साथ 10 मार्च, 2007 को अपनी थीसिस सबमिट किया तथा 10 सितम्बर, 2007 को पीएचडी वाइवा दिया/डिफेंड किया तथा 18 सितम्बर, 2007 को मुझे केदारेश्वर बनेर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS), प्रयागराज विश्वविद्यालय के माध्यम से मुझे इस केंद्र की पहली पीएचडी डिग्री अवार्ड हुई| == 15 जनवरी, 2008 (संदेह दूर करने हेतु): ---- प्रयागराज विश्वविद्यालय के विशेष हित में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ रहने हेतु और इसे समृद्ध करने हेतु तथा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS) से प्रथम शोध उपाधि प्राप्त करने हेतु 15 जनवरी, 2008 को Allahabad Alumni Association (Regd no. 407/2000, under Society Act 1860) द्वारा गौरवशाली पुरा छात्र ( PROUD PAST ALUMNI) के रूप में सम्मानित किया गया| = 10/11 सितम्बर, 2008 (संदेह दूर करने हेतु):----25 अक्टूबर, 2007-28 अक्टूबर, 2009 (संदेह दूर करने हेतु) के दौर में मैं भारतीय विज्ञान संस्थान से शताब्दी वर्ष में मैं पीडीऍफ़/प्रोजेक्ट एसोसिएट रहा| धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच में ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को ऊर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र /कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है| = 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018): संदेह दूर करने हेतु:---29 अक्टूबर, 2009 को मैंने केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS), प्रयागराज विश्वविद्यालय में स्थाई शिक्षक का पद ज्वाइन किया| फिर भी इस नाम को मान्यता न मिलने पर """"वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम"""" के रूप में जारी संघर्ष के दौरान सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान के तहत विश्वविद्यालय द्वारा 25 मई, 2018 को केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र/Kedareshwar Banerjee Centre of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS) को एक केंद्र के रूप में प्रामाणित करते हुए प्रयागराज उच्च न्यायलय को प्रमाणिक जबाब जारी किया (जो सभी पक्ष द्वारा उसी केंद्र के सदस्य होने के शपथपत्र को पूर्ण करता था/है); और जिसकी प्रति यूनियन ऑफ़ इंडिया तक 31 जुलाई, 2018 को विधिवत पँहुची| = = 30 सितम्बर, 2010:::राम मन्दिर के पक्ष में निर्णय (/9 नवम्बर, 2019), दिन वृहस्पतिवार को विष्णुकान्त के रूप में सुबह 5-11 पर पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई| = 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014: वैश्विक स्तर के चंद्रोदय कृष्ण मन्दिर की तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा नीव) को कृष्णकान्त के रूप में दिन बुधवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को शाम 8.12 पर दूसरे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई| == वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे: = आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं)| = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = विगत दो दसक तक केंद्रित रहने बाद भी आगे इस प्रयागराज (/काशी) में मेरे केंद्रित रहने मात्र में ही विश्व-मानवता के हित का ही बहुत बड़ा निःस्वार्थ प्रयोजन है; तो केवल खाना खाकर सोने या घर-द्वार बनाकर पेट-पालने व दिन में एक दो लेक्चर व् पेपर प्रकाशित कर देने हेतु ही मैंने कुछ विशेष आजीवन अपनी जिद नहीं पाली है न और न पाली थी और 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से ही मैं वैश्विक निशाने पर रह रहा हूँ और अभीष्टतम देने के बाद ही ऐसा कहता हूँ ऐसे नहीं कहता हूँ की इस मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|""""मैंने जिद पाल रखी है अभी भी की इस देश से बाहर कभी भी नहीं जाना है तो 2004 में बने पासपोर्ट को मात्र एक 18 दिन की 2004 में ही की यात्रा के बाद 2014 आने पर भी अपनी जिद से रिन्यू नहीं करवाया; दूसरा की भारतीय विज्ञान संस्थान में 2007 से 2009 के बीच इस संसार में कहीं भी किसी भी देश में एस्टैब्लिश कर दिया जाएगा केवल प्रस्ताव स्वीकार कर लीजिये पर राजी नहीं हुआ और इस्टैब्लिश तो दूर आज तक दूसरी विदेश यात्रा नहीं किया; अपनी जिद पर बचपन से लेकर आज तक किसी चलचित्र मन्दिर में प्रवेश नहीं किया और आज तक कभी भी अकेले या परिवार के साथ किसी पिकनिक पर नहीं गया हूँ| == सार-संक्षेप:--हर प्रकार का ज्ञान आपको कहीं भी मिल जाएगा इसमें सन्देह नहीं हो सकता पर मानवता को चिर स्थायी रखने में विशेष सहयोगी संस्कार और संस्कृति भी वहां मिलेगी जहाँ ज्ञान होगा यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह स्थान विशेष की, समाज विशेष की या परिवार विशेष की अपनी संपत्ति है जो पीढ़ी-दर पीढ़ी धीरे-धीरे स्थान्तरित होती रहती है|=======मुझ त्रिफला-कश्यप (तिरंगा) और विष्णु (मूल सारंगधर::भगवा) का ही न्याय नहीं यह प्राकृतिक न्याय भी है:---अगस्त्य/कुम्भज ऋषि के क्षेत्र अर्थात तेलगु (+आंध्र) और तमिल क्षेत्र के चाहे समस्त लोग सांस्कृतिक व् सांस्कारिक मानदण्ड के साथ उत्तर चले आएं या सम्पूर्ण रूप से उत्तर वालों से मिश्रित हो जाएँ या अपनी संख्या असीमित कर लें पर यह प्राकृतिक न्याय है कि उनके मूल जनों को इस समस्त भारत और इस प्रकार सम्पूर्ण संसार की सम्पूर्ण विकास और समृद्धि का मात्र 1/8 भाग ही हांसिल होगा और साथ ही कर्तव्य के आधार पर ही अधिकार निहित होगा तथा कोई विशेष सुविधा और छूट नहीं होगी| दक्षिण की ही गलती से टूटे हुए धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा मेरे द्वारा 11(/10) सितम्बर, 2008 को किये जाने के साथ विश्व-मानवता का केन्द्र प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से उत्तर हो गया है जो अब सहस्राब्दियों तक रहेगा, जो कभी प्रत्यक्ष दक्षिण भारत में दिखता था (जबकि तब भी यह केंद्र आतंरिक रूप से उत्तर ही रहता था); ऐसे में सातों सप्तर्षियों के अंश से काशी में अविर्भावित और विंध्य क्षेत्र पार कर तमिल-तेलगु क्षेत्र को अपना कर्म क्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि (सप्तर्षि से अष्टक ऋषि परम्परा की शुरुआत) के क्षेत्र अर्थात तेलगु (+आंध्र) और तमिल क्षेत्र के चाहे समस्त लोग सांस्कृतिक व् सांस्कारिक मानदण्ड के साथ उत्तर चले आएं या सम्पूर्ण रूप से उत्तर वालों से मिश्रित हो जाएँ या अपनी संख्या असीमित कर लें पर यह प्राकृतिक न्याय है कि उनके मूल जनों को इस समस्त भारत और इस प्रकार सम्पूर्ण संसार की सम्पूर्ण विकास और समृद्धि का मात्र 1/8 भाग ही हासिल होगा और साथ ही कर्तव्य के आधार पर ही अधिकार निहित होगा तथा कोई विशेष सुविधा और छूट नहीं होगी| = सार-संक्षेप 2:-- डॉ साहब का व्यक्तिगत व्यक्तित्व और उनकी शिक्षा तो ठीक है पर सुदूर दक्षिण स्थित उनके मूल क्षेत्र की संस्कृति वालों के बीच मै दो वर्ष तक रहा हूँ तो पता है की वे गुप्त रूप से बहु धर्म व् जाति मिश्रित समाज में शीत युद्ध लड़कर अपने अस्तित्व को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है इसकी शिक्षा उनके समाज वाले दे सकते हैं तथा ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा भी दे सकते हैं पर वे संस्कृति और संस्कार जो दीर्घकालिक मानवता का आधार है उसकी शिक्षा भी दे सकते हैं यह विरले ही संभव है|-----अतः कम से कम उनके क्षेत्र का ऐसा अंधानुकरण न किया जाय|========हर प्रकार का ज्ञान आपको कहीं भी मिल जाएगा इसमें सन्देह नहीं हो सकता पर मानवता को चिर स्थायी रखने में विशेष सहयोगी संस्कार और संस्कृति भी वहां मिलेगी जहाँ ज्ञान होगा यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह स्थान विशेष की, समाज विशेष की या परिवार विशेष की अपनी संपत्ति है जो पीढ़ी-दर पीढ़ी धीरे-धीरे स्थान्तरित होती रहती है| ====== डॉ साहब का व्यक्तिगत व्यक्तित्व और उनकी शिक्षा तो ठीक है पर सुदूर दक्षिण स्थित उनके मूल क्षेत्र की संस्कृति वालों के बीच मै दो वर्ष तक रहा हूँ तो पता है की वे गुप्त रूप से बहु धर्म व् जाति मिश्रित समाज में शीत युद्ध लड़कर अपने अस्तित्व को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है इसकी शिक्षा भी उनके समाज वाले दे सकते हैं तथा ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा भी दे सकते हैं पर वे संस्कृति और संस्कार जो दीर्घकालिक मानवता का आधार है उसकी शिक्षा भी दे सकते हैं यह विरले ही संभव है| ------अतः कम से कम उनके क्षेत्र का ऐसा अंधानुकरण न किया जाय|| = विगत दो अद्वितीय दसक के दौरान मूल सारंगधर मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर(विष्णु) ही रहे हैं जो जौनपुर (/जमदग्निपुर) स्थित बिशुनपुर-223225 गाँव के रामानन्द कुलीन मूल भूमि वासिंदे तथा प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवारीय तथा व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय हैं; और मूल सारंगधर(श्रीधर:विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था में स्वयं मै (सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्यासी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) गोत्रीय और रविवारीय किन्तु प्रामाणिक रूप से मंगलवारी, विवेक (गिरिधर:आतंरिक शक्ति के आधार पर ही कम से कम कृष्ण)) ही रहा हूँ जिससे स्वयं मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों मूल आयाम का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव हुआ है (अर्थात राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव हुआ है जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं)| ======तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव होते है और वे शिव स्वयम जगत जननी जानकी के पास है|===हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है|===तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास है|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = हनुमान/शंकर-सुमन/केशरीनंदन/आंजनेय/अम्बा-वादेकर/अम्बवाडेकर/अम्बेडकर/मारुतिनंदन/पवनपुत्र को अगर उनके पुत्र मकरध्वज के राज्य पातालपुरी (वर्तमान तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली देश राज्य) में रावण के गुमनाम भाई अहिरावण के समर्थको से लड़ने में वहाँ उपस्थित राम (/कृष्ण) के समर्थकों से समर्थन चाहिए तो फिर यहां उनके समर्थकों को रावण, कंश, कीचक व दुःशासन से लड़ने वालों का सहयोग करना पडेगा?--------------अहिरावण शायद राम और कृष्ण के समय में इस संसार में सनातन धर्म और उसकी ही संस्कृति सम्पूर्ण संसार में व्याप्त थी उस समय भी सनातन संस्कृति के साथ असुर संस्कृति का भी प्रभाव रहा करता था विशेषकर भारतीय सांस्कृतिक मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात सनातन सांस्कृतिक मूल केंद्र (क्षेत्र) से क्रमिक रूप से दूरी बढ़ने के साथ असुर संस्कृति का प्रभाव और अधिक पाया जाता रहा है; जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है रावण के गुमनाम भाई अहिरावण का राज्य पातालपुरी (वर्तमान तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली देश/राज्य) जहाँ देवी पूजा और बलि प्रथा उस समय भी थी जब हनुमान(/अम्बा-वादेकर/अम्बवाडेकर/अम्बेडकर/केशरीनंदन/शंकर-सुमन/आंजनेय/मारुतिनंदन/पवनपुत्र अपने पंचमुखी स्वरुप में आते हुए पातलपुरी के राजा के आवास के मुख्य द्वार के सभी पांचो मायावी दीपक एक साथ ही बुझाते हुए अपने अप्रत्यक्ष पुत्र मकरध्वज (सूर्य पुत्री सुवर्चला और हनुमान के पुत्र) अर्थात वहाँ के द्वारपाल को अपना वास्तविक स्वरुप पहचनवा उस नगरी में प्रवेश किये थे जहाँ देवी पूजा जारी थी सोते हुए राम और लक्ष्मण को बलि देने हेतु जिनको अहिरावन राम-रावण युद्ध क्षेत्र से रात्रि प्रहार से सोते हुए अवस्था में उठा लाया था लंका से जब राम के अचूक बाणों की बौछार से रावण को निराशा छा गयी थी और रावण अहिरावण से मदद का सन्देश भेजा था| हनुमान द्वारा अहिरावण के वध के बाद उसी रातों रात लौटते समय राम और लक्षमण ने मकरध्वज को पातालपुरी का राजा घोषित करते हुए स्वयं राजतिलक किया था| तो ऐसे में, यद्यपि ऋषि श्रृंखला की दृष्टि से इस 108 वें अंश (असुर संस्कृति) को हम पूर्णातिपूर्ण समाप्त तो नहीं कर सकते किन्तु इसे 108 वें (1/108) अंश तक ही सीमित कर उसे पूर्णातिपूर्ण नियंत्रण में अवश्य ले सकते हैं:-----व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| =मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ==पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:=====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला==== ======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| """""मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| = मैं ही त्रिफला-कश्यप (तिरंगा) और मैं ही विष्णु (मूल सारंगधर: भगवा):::------वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अर्थात परमब्रह्म विष्णु अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था की ऊर्जा अर्थात परमब्रह्म की ऊर्जा से 11(/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) के समस्त मंदिरों की घूम घूम कर पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए 2008 के पूर्वार्ध में खण्डित धर्म चक्र(सनातन धर्म समेत सभी मूल धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा किया गया है तो फिर इसका सम्मान कीजिये तथा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का पालन कीजिये पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम् सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम सत्य/सत्यमेव जयते द्वारा आपके प्रारब्ध और वर्तमान कर्म के आधार पर आपके साथ समुचित न्याय अवश्य होगा|--------------------वैश्विक श्रृंखला भले ही टूट गयी हो दिसम्बर, 2018 में पर आज आप स्वयं में एक वैश्विक धुरी के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके है-----------मूल शिव, मूल विष्णु, मूल ब्रह्मा और इस प्रकार मूल राम और मूल कृष्ण अपने मूल स्थान पर प्रतिस्थापित/प्रतिष्ठित हो चुके हैं अर्थात उत्तर प्रदेश की मूल सीमा के अंदर हैं --------फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं)| ---------वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अर्थात परमब्रह्म विष्णु अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था की ऊर्जा अर्थात परमब्रह्म की ऊर्जा से 11(/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) के समस्त मंदिरों की घूम घूम कर पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए 2008 के पूर्वार्ध में खण्डित धर्म चक्र(सनातन धर्म समेत सभी मूल धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा किया गया है तो फिर इसका सम्मान कीजिये जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का पालन कीजिये पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम् सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम सत्य/सत्यमेव जयते द्वारा आपके साथ समुचित न्याय अवश्य होगा| =========धर्मचक्र पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं)|------ ----------मूल शिव, मूल विष्णु, मूल ब्रह्मा और इस प्रकार मूल राम और मूल कृष्ण अपने मूल स्थान पर प्रतिस्थापित/प्रतिष्ठित हो चुके हैं अर्थात उत्तर प्रदेश की मूल सीमा के अंदर हैं ------- तो वैश्विक श्रृंखला भले ही टूट गयी हो दिसम्बर, 2018 में पर आज आप स्वयं में एक वैश्विक धुरी के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके है| = ईसाइयत का सञ्चालन सामानांतर होता है कृष्ण के और इस्लाम का संचालन समानान्तर होता है राम के; तथा जिस तरह राम बड़े हैं कृष्ण से उसी तरह इस्लाम बड़ा है ईसाइयत के:-------------11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 तक ईसाइयत के सामानांतर और फिर 29 मई, 2006 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 तक इस्लाम के समानांतर चलते हुए क्रमसः दोनों को पीछे छोड़ चुका हूँ तो फिर क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य और इस प्रकार समस्त मानवता के सामानांतर नहीं चला? तो फिर धर्म/काल/समय चक्र स्वयं परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते के प्रति निष्ठा पालन में किसी के साथ समझौता नहीं करता है वरन सदैव चलायमान ही रहता है इसी से ही सृष्टि का सतत सञ्चालन होता रहता है अन्यथा सभी सगे-सम्बन्धी तो 29 मई, 2006 तक में ही समझौता कर चुके थे तो फिर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) का दिन अर्थात 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010) का शुभ दिन कैसे आता?===>>>>तो फिर जिस जमीन पर पाँव हो उस जमीन को भी प्रणाम करते है तो जो व्यवस्था भी दे और दिशा-निर्देश भी दे उसके प्रति आपका क्या व्यवहार होना चाहिए; शायद प्रयागराज (/काशी) पर तो सम्पूर्ण विश्वमानवता का प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष भार रहता आया है):==>>>सनातन हिन्दू धर्म की पूर्ण परिधि में रहते हुए उनसे श्रेष्ठ ब्राह्मण, उनसे श्रेष्ठ क्षत्रिय, उनसे श्रेष्ठ वैश्य, और इस प्रकार उनसे श्रेष्ठ पूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/मुसल्लम ईमान (/इस्लामानुयाई) और उनसे श्रेष्ठ दीनदयाल/कृपानिधान/जगत्तारण/पतितपावन/करूणानिधि (/ईसायतानुयाई) जैसे सभी गुणों युक्त इस दृश्य जगत में संभव नहीं है ======जो 30 सितम्बर, 2010/09 नवंबर, 2019 तदनुसार 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को अयोध्या प्रतिष्ठित/प्रतिस्थापित हुए और जो 28 अगस्त, 2013/16 मार्च, 2014 तदनुसार 29 (/15-29) मई, 2006 को मथुरा-वृंदाबन प्रतिष्ठित/प्रतिस्थापित हुए तथा जो तीन 10/11 सितम्बर, 2008 तदनुसार 07 फरवरी, 2003/11 सितम्बर, 2001 को प्रयागराज (/काशी) में प्रतिष्ठित/प्रतिस्थापित हुए हैं वे इस संसार में एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त सशरीर परमब्रह्म से ही उत्सर्जित शक्ति हैं=====और सनातन हिन्दू धर्म की पूर्ण परिधि में रहते हुए उनसे श्रेष्ठ ब्राह्मण, उनसे श्रेष्ठ क्षत्रिय, उनसे श्रेष्ठ वैश्य, और इस प्रकार उनसे श्रेष्ठ पूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते/मुसल्लम ईमान (/इस्लामानुयाई) और उनसे श्रेष्ठ दीनदयाल/कृपानिधान/जगत्तारण/पतितपावन/करूणानिधि (/ईसायतानुयाई) जैसे सभी गुणों युक्त इस दृश्य जगत में संभव नहीं है| =======25 मई, 1998 (12 मई, 1997)-----से------25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौरान====25 मई, 1998 (/12 मई, 1997)::::::::11 सितम्बर, 2001 (11/12 अगस्त, 2001//05 सितम्बर, 2000):::::::::07 फ़रवरी, 2003::::::29(/15-29) मई, 2006 (10 मार्च, 2007::10/18 सितम्बर, 2007):::::::::10/11 सितम्बर, 2008 (25 अक्टूबर, 2007-28 अक्टूबर, 2009)::::::::::30 सितम्बर, 2010 (/9 नवम्बर, 2019)::::::::28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014):::::::::13 अप्रैल, 2018:::::::::25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)==>>मेरी वैश्विक मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था सदाशिव/महाशिव अवस्था अर्थात सनातन राम/कृष्ण की अवस्था का ही परिणाम है मुझे वैश्विक शिव अवस्था (11 सितम्बर, 2001), वैश्विक विष्णु अवस्था (07 फ़रवरी, 2003), इन दोनों से युक्त वैश्विक ब्रह्मा अवस्था इस प्रकार वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण अवस्था (29(/15-29) मई, 2006) और फिर 12 वर्ष तक और संघर्ष बाद इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान और इस संसार के सभी युक्ति से युक्त वैश्विक परमब्रह्म राम अवस्था (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात एक साथ मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के पांच के पांचो आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) की प्राप्ति हुई अन्यथा इनमें से कोई एक भी देव दुर्लभ है और इन सभी आयामों की प्राप्ति स्वयं 30 सितम्बर, 2010 (/9 नवम्बर, 2019) ::::और :::::28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014) को प्राकृतिक रूप से स्वतः आयाम प्राप्ति पूर्व और आयाम प्राप्ति उत्तर में ही प्रमाणित हैं|=======अर्थात विगत अद्वितीय दो दसक के दौरान दूर-दूर केंद्रित नहीं बल्कि विश्वमानवता मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित केवल सतह पर कार्यरत नहीं पर वास्तविक स्वरुप में आंतरिक से लेकर सतह तक कार्य करने वाले की मुझे भी खोज थी की वैश्विक मानक पर कोई वैश्विक शिव बन जाय नहीं बन सका कोई (11 सितम्बर, 2001) तो मुझे ही बनना पड़ा; वैश्विक विष्णु बन जाय कोई (7 फरवरी, 2003) नहीं बन सका कोई तो मुझे ही बनना पड़ा; वैश्विक ब्रह्मा इस प्रकार वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण बन जाय कोई (29(15-29) मई, 2006) नहीं बन सका कोई तो मुझे ही बनना पड़ा; वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम बन जाय कोई (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) नहीं बन सका कोई तो मुझे ही बनना पड़ा--तो फिर जब बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हो गयी तो फिर क्या औचित्य रह क्या गया अनावश्यक नाटक करने का अर्थात जब मुझे मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव अवस्था में जाकर सभी आयाम का दायित्व स्वयं ही निभाना पड़ा हो ऐसे सन्दर्भ में? तो फिर समझ लीजिये शिव (11 सितम्बर, 2008) अपने परिवार सहित काशी में प्रतिस्थापित हो चुके हैं, राम (विष्णुकान्त:राम: 30-09-2010: 09-11-2019) और कृष्ण (कृष्णकान्त:कृष्ण:28 -08 -2013: 16-03-2014 ) क्रमसः अयोध्या और मथुरा में प्रतिस्थापित हो चुके हैं अन्यथा यह समझिएगा की दोनों विष्णु (विष्णुकान्त:राम) और ब्रह्मा (कृष्णकान्त:कृष्ण) के रूप में हमारे और आप के बीच इस प्रयागराज में अवस्थित हैं जिनके माध्यम से आप इस सृष्टि का सञ्चालन जारी रखे और जरूरत पड़ने पर आप काशी, अयोध्या और मथुरा जाकर शिव, राम और कृष्ण से भी ऊर्जा लेते रहिये तो इस प्रकार मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम के मूल स्वरुप इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद रहेंगे|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम सुंदरम) तो फिर विश्वास रखिये और यथोचित रूप से यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन कीजिये 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में मेरे द्वारा पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित यह धर्मचक्र (सभी मौलिक धर्म के लिए)/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा| मैं ऐसे नहीं कहा हूँ की मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) के मूल स्वरुप इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद हैं:====समस्त शक्तियां मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) में ही समाहित होती है अर्थात हर शक्ति को निर्मूल करने की क्षमता सनातन राम(/कृष्ण) में निहित है| ===== मै केवल शिव कहाँ महाशिव/सदाशिव अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) हो चुका हूँ जो शिव की तरह माया मोह में सती/गौरी की लाश लेकर नहीं ढोता (तो ऐसे में सृष्टि को विनाश से बचाने हेतु विष्णु द्वारा सती:गौरी की लाश छतिग्रस्त करना पड़े); क्योंकि सती:गौरी ही नहीं हर किसी की शक्ति के अवस्था /स्थान/काया परिवर्तन में वह मूल शक्ति मुझमें ही अर्थात महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) में ही समाहित होती है अर्थात हर शक्ति को निर्मूल करने की क्षमता मुझमें निहित है|======सनातन राम(/कृष्ण) वह मूल शक्ति हैं जिनमें सती:गौरी ही नहीं हर किसी की शक्ति के अवस्था/स्थान/काया परिवर्तन करने पर उसे निर्मूल करने की क्षमता में निहित है|-------मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम के मूल स्वरुप राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव अपने सांगत शक्तियों समेत इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद रहेंगे:------क्योंकि ----सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी::जिनके नौ स्वरूपों में एक स्वरुप देवकाली/महाकाली हैं) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+ महालक्ष्मी+ महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =======तो फिर समझ लीजिये शिव (11 सितम्बर, 2008) अपने परिवार सहित काशी में प्रतिस्थापित हो चुके हैं, राम (विष्णुकान्त:राम: 30-09-2010: 09-11-2019) और कृष्ण (कृष्णकान्त:कृष्ण:28 -08 -2013: 16-03-2014 ) क्रमसः अयोध्या और मथुरा में प्रतिस्थापित हो चुके हैं अन्यथा यह समझिएगा की जहाँ तक सशरीर उपस्थिति की बात है वहाँ जगत जननी जगदम्बा की पहचान, शिव स्वयं जगत जननी जानकी के पास और जगत जननी जानकी के पहचान, राम (विष्णुकान्त) मेरे अर्थात आपके साथ तथा जगत जननी राधिका की पहचान, कृष्ण (कृष्णकान्त) मेरे अर्थात आपके साथ इस प्रयागराज में अवस्थित हैं जिनके माध्यम से आप इस सृष्टि का सञ्चालन जारी रखे और जरूरत पड़ने पर आप काशी, अयोध्या और मथुरा जाकर शिव, राम और कृष्ण से भी ऊर्जा लेते रहिये तो इस प्रकार मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम के मूल स्वरुप इस उत्तर प्रदेश की सीमा में ही मौजूद हैं और अब सहस्राब्दियों तक मौजूद रहेंगे|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2008//11 सितम्बर, 2001), वैश्विक कृष्ण (28 अगस्त, 2013 /16 मार्च, 2014//29 मई, 2006) , और वैश्विक राम (30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 ) मन्दिर और किस प्रकार बनता?---------लेकिन आप सहन नहीं कर सके और भारतीय संविधान की दुहाई देने वाले और संविधान बनवाने हेतु अपने देश के संविधान का दस्तावेज प्रस्तुत करने वाले लोग ही दिसम्बर, 2018 में यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान की धज्जी उड़ाते हुए सक्षम पदाधिकारी पर अतिशय दबाव डालते हुए गैर कानूनी फर्जी आदेश पारित करवा दिए और इस प्रकार इस जगत को मेरे राम भी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण मिल ही गया; फिर इस प्रकार वैश्विक श्रृंखला टूट गयी जिसकी परिणति 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010) के रूप में हुई|------शंकर सुमन/केशरीनंदन/मारुतिनंदन/अम्बेडकर/हनुमान/अम्बवाडेकर/अम्बा-वादेकर के पुत्र मकरध्वज और रावण के गुमनाम भाई अहिरावण के राज्य (विश्व के तथाकथित सर्वोच्शक्तिशाली राज्य) का उसके ही अभिकर्ता (एजेन्ट) बन और अपमान न कराइये उसी से जो मकरध्वज का राज्याभिषेक कभी स्वयं किये रहा हो:-----------तुममें से कोई शिव है: तो शिव ही नहीं वैश्विक शिव था/है जो 11 सितम्बर, 2001 को प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया और सकुशल अपने कार्य का निष्पादन किया, तुममें से कोई विष्णु है, तो विष्णु ही नहीं वैश्विक विष्णु था/है जो 7 फरवरी, 2003 को प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया और सकुशल अपने कार्य का निष्पादन किया लेकिन 2004 में सत्ता ही बदल गयी तो प्रश्न हुआ की तुममें से कोई ब्रह्मा है, तो ब्रह्मा ही नहीं वैश्विक ब्रह्मा था/है जो 29 (/15-29) मई, 2006 को फिर स्वयं प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो त्रिशक्ति के रूप में आ सशरीर वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण होते हुए सबके सभी प्रश्न ही समाप्त कर अपना अभीष्ट लक्ष्य ही हांसिल कर लिया| और इस प्रकार इसी परमब्रह्म की ऊर्जा से 11(/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) के समस्त मंदिरों की घूम घूम कर पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए 2008 के पूर्वार्ध में खण्डित धर्म चक्र(सनातन धर्म समेत सभी मूल धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा किया|---------फिर प्रश्न हुआ की तुममें से कोई राम है जो रावण के सामने खड़ा हो सके और सामाजिक रूप से सिद्ध कर सके की अभीष्ट लक्ष्य पूरा हो गया तो फिर 25 मई, 2018/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को राम ही नहीं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम भी वही होते हुए बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य भी हांसिल कर लिया लेकिन आप सहन नहीं कर सके और भारतीय संविधान की दुहाई देने वाले और संविधान बनवाने हेतु अपने देश के संविधान का दस्तावेज प्रस्तुत करने वाले लोग ही दिसम्बर, 2018 में यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान की धज्जी उड़ाते हुए सक्षम पदाधिकारी पर अतिशय दबाव डालते हुए गैर कानूनी फर्जी आदेश पारित करवा दिए और इस प्रकार इस जगत को मेरे राम भी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण मिल ही गया; फिर इस प्रकार वैश्विक श्रृंखला टूट गयी जिसकी परिणति 9 नवम्बर, 2019 (/30 सितम्बर, 2010) के रूप में हुई|-====वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2008//11 सितम्बर, 2001), वैश्विक कृष्ण (28 अगस्त, 2013 /16 मार्च, 2014//29 मई, 2006) , और वैश्विक राम (30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019//25 मई, 2018/25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 ) मन्दिर और किस प्रकार बनता? == विगत अद्वितीय दो दसक 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान: मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) के मूल स्वरुप से सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उत्त्पत्ति की पुष्टि हुई|===जो इस विश्व-मानवता की एकल इकाई रहा हो उसका विश्व-मानवता हित के हेतु उचित समय पर उचित दायित्व और व्यक्तित्व उसके प्रभाव को व्यक्त करता है न की उसकी अपने स्वयं के सांसारिक पारिवारिक हैसियत; क्योंकि उसकी वास्तविक हैशियत तो यह विश्व व्यापक संसार है जिसके हेतु उसने वह भी संकल्प/समर्पण कर दिया जो उसके अपने हक में भी नहीं था (जिसका मुझे अधिकार नहीं था, उसका भी बलिदान किया):---- आज भी यही कहूंगा की 7 फरवरी, 2003 ऐसा दिन था जो टर्निंग पॉइन्ट था जिस दिन मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर(विष्णु) जो जौनपुर (/जमदग्निपुर) स्थित बिशुनपुर-223225 गाँव के रामानन्द कुलीन मूल भूमि वासिंदे तथा प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवारीय तथा व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय रहे हैं, उनके विशेष निर्देश को स्वीकार करते हुए इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र , प्रयागराज (/काशी) में निर्णायक रूप से दूसरी बार पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ था जबकि यह जानते हुए भी की ऐसे महामानवता के यज्ञ का आह्वान गुरुदेव जोशी (ब्रह्मा) और पूरित करने की जिम्मेदारी प्रेमचन्द (चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) ने ली थी जिस हेतु उन्होंने स्वयं परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के सहमति से यहां 11 सितम्बर, 2001 को प्रथम बार मुझे पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया था जिसका मेरे स्तर का समुचित सार्थक परीणाम आया था और इसके बाद भी मैं यहाँ पुनः पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने से मना कर चुका था| इस प्रकार 7 फरवरी, 2003 को इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र , प्रयागराज (/काशी) में परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के विशेष निर्देश पर पुनः पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होते हुए तथा 29 (/15-29) मई, 2006 की स्वयं के स्तर की ब्रह्मलीनता के तहत परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप ने और फिर 12 वर्ष तक के संघर्ष के दौरान 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 को परमब्रह्म राम के स्वरुप ने इस विश्वमानवता केे सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान ने पूर्णातिपूर्ण सफलता दिलाई| तो सबका मूल केंद्र 7 फरवरी, 2003 का विशेष दिन ही था जो टर्निंग पॉइन्ट था जिस दिन मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर(विष्णु) के विशेष निर्देश को स्वीकार करते हुए इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र , प्रयागराज (/काशी) में निर्णायक रूप से दूसरी बार पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ और इस प्रकार मैंने स्वयं श्रीधर (विष्णु:सारंगधर) को इस संसार की उत्पत्ति का मूल स्रोत प्रामाणिक रूप से सिद्ध किया जिनकी प्रेरणा से मैं वैश्विक शिव से वैश्विक विष्णु का वह स्वरुप धारण किया जिसमे स्वयं वैश्विक शिव और आगे चलकर वैश्विक ब्रह्मा समाहित रहे और आगे जिनसे वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम की उत्पत्ति हुई तो इस प्रकार श्रीधर(विष्णु:सारंगधर) के मूल स्वरुप से सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उत्त्पत्ति की पुष्टि हुई|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = मैंने 11 सितम्बर, 2001 से प्रारम्भ कर 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 आते-आते इस संसार की सभी देवियों जिनको कल-बल-छल तथा साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनके स्वाभाविक नारी प्रवृत्ति का फायदा उठाकर परिस्थितिजन्य दोषी बनाया गया था उन सभी को दोष मुक्त कर दिया था (अभासीय रूप से आपको जिसमें दोष नजर आया हो किसी पराये की की वजह से); तो क्या आम समाज ऐसा कर सकता है? तो फिर अपने परिस्थिति अनुसार सबसे उचित नैतिकतापूर्ण जीवन जीने और सतत रूप से और अधिक उचित रास्ता चुनने का प्रयास कीजिये और इस प्रकार व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य के रास्ते पर चलते रहिये बाकी कार्य ईश्वर पर छोड़ दीजिये पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते अपने आप अपना कार्य करेगा| = विगत दो अद्वितीय दो दसक तक इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित वह व्यक्तित्व जिसके अन्दर वैश्विक शिव के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक शिव जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक विष्णु के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक विष्णु जैसा आचरण रहा हो; वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक ब्रह्मा और इस प्रकार वैश्विक कृष्ण जैसा आचरण रहा हो; और वैश्विक राम के आयाम के दायित्व निभाने की आवश्यकता पड़ने पर वैश्विक राम जैसा आचरण रहा हो तो फिर मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव की अवस्था को प्राप्त ऐसी विभूति जिससे राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव हुआ हो उसको भी इस विश्व मानवता के किसी विभूति के आचरण की नक़ल करने की जरूरत पड़ती? == केवल आज के किसी विशेष सन्दर्भ की बात नहीं; मैंने 11 सितम्बर, 2001 से प्रारम्भ कर 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 आते-आते इस संसार की सभी देवियों जिनको कल-बल-छल तथा साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनके स्वाभाविक नारी प्रवृत्ति का फायदा उठाकर परिस्थितिजन्य दोषी बनाया गया था उन सभी को दोष मुक्त कर दिया था (अभासीय रूप से आपको जिसमें दोष नजर आया होवह भी वास्तविक सन्दर्भ में किसी पराये की कृत्य की वजह से); तो क्या आम समाज ऐसा कर सकता है? तो फिर अपने परिस्थिति अनुसार सबसे उचित नैतिकतापूर्ण जीवन जीने और सतत रूप से और अधिक उचित रास्ता चुनने का प्रयास कीजिये और इस प्रकार व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य के रास्ते पर चलते रहिये बाकी कार्य ईश्वर पर छोड़ दीजिये पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते अपने आप अपना कार्य करेगा| = यह संयोग सहस्राब्दियों में ही होता है की कोई एक ही जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी:::जिनके नौ स्वरूपों में एक स्वरुप देवकाली/महाकाली हैं) की मूल पहचान वैश्विक शिव (11 सितम्बर, 2001) और जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+ महालक्ष्मी+ महागौरी) की मूल पहचान वैश्विक विष्णु (7 फरवरी, 2003) दोनों 2004 तक में ही हो गया हो तो फिर ऐसी स्थिति में उसे महाशिव/सदाशिव अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था में आना ही था तो फिर 29 (/15-29) मई, 2006 आते आते ही वैश्विक ब्रह्मा भी होते हुए वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में आकर अपने अभीष्ट लक्ष्य (67(पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार), जिसमें 7 सदस्यीय एक परिवार स्वयं केदारेश्वर का है) को प्राप्त कर सिद्ध कर दिया था की महाशिव/सदाशिव अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था उसी ने धारण किया था; लेकिन नहीं फिर भी संघर्ष जारी रखा गया तो फिर वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम की अवस्था में आकर 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम-विधि विधान संविधान तथा हर युक्ति युक्त से प्रमाणित कर दिया गया की केदारेश्वर अर्थात स्वयं आदिशिव का आविर्भाव जिससे होता है वह पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन राम (/कृष्ण) वह ही है अर्थात जिससे सारंगधर के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव उसी से होता है| और इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 2008 के पूर्वार्ध में खंडित हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्मों के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना 10/11 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) के मंदिर-मंदिर घूमते हुए उन सभी को अपने परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा देते हुए उन सभी की पुनर्प्राणप्रतिस्था/पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए किया था| ===>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|======बिना विश्व मानवता के अभीष्ट हित के प्रयोजन के मेरी कहीं भी कभी भी किसी भी प्रकार की कोई सामाजिक सहभागिता नहीं है और न प्रतिक्रियात्मक रहा हूँ सिवाय इसके कि सर्वजन हिताय हेतु प्रोत्साहन व किसी भी सामाजिक गलत स्वरुप को उभरने से रोकने के प्रतिरोधक निर्देश के तो आप मूल सारन्गधर मूल अवस्था के पाँच के पाँचों स्वतंत्र-चर/पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित मूल आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) एवं अनेकोनेक प्रतिरूप में से हर किसी भी स्वरुप को मुझ महाशिव/सदाशिव/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से विश्व मानवता के सकारात्मक कार्य/हित हेतु अर्थात सुचारु रूप से विश्व-मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् चालन-संचालन हेतु के प्रयोजन में कम से कम एक सहस्राब्दी तक अनवरत ऊर्जा मिलती रहेगी जो की आप के स्वयं के कृत्य और क्षमता पर निर्भर करता रहेगा|=====हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास है और जगत जननी जानकी की मूल पहचान विष्णु तथा ब्रह्मा हमारे और आप के बीच इसी प्रयागराज में है||======जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?==यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ? >>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? == सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा ( एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ======फिर भी सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी के मानस/आदर्श पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|==9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)29 (/15-29) मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये| = तो धर्म चक्र के पालक मूल शिव अब 11 (/10) सितम्बर, 2008 से काशी में ही रह रहे हैं और अपने परिवार समेत सहस्राब्दियों तक अपने मूल स्थान, काशी ही रहेंगे और उससे बाहर उनकी छाया प्रति ही जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए और जब तक प्रयागराज (विष्णु और ब्रह्मा) को प्रत्यक्ष उपस्थिति की जरूरत न हो उनपर मूल अधिकार काशी वासियों का ही होगा| और धर्म ध्वजा धारक विष्णु व् सृस्टि संचार कर्ता ब्रह्मा अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान प्रयागराज में ही सहस्राब्दियों तक रहेंगे और इनकी भी छायाप्रति ही बाहर जाएगी और वह भी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए| इसी प्रकार 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| ======11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/ तथा कथित अशोकचक्र का सम्मान कीजिये आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा तो आपका सामना इसी से होगा | 29 (/15-29) मई, 2006 को प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज में इस संसार के सर्वकालिक सबसे गौर वर्णीय स्वरुप वाले ""केदारेश्वर:आदिशिव: "" (मूल सारंगधर की मूल अवस्त्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्त्था से आविर्भवित होने वाले आदिशिव जो इस संसार में स्थल के प्रथम नागरिक हैं और जिनको आप इस संसार के प्रथम आदिवासी भी कह सकते है और जो विशाल जलप्लावन के बीच इस संसार की सबसे पुरानी धरा, काशी को अपने साथ लेकर कीचड (केदार) से सने हुए स्वरुप में निकले थे जिसके नाते उनको केदारेश्वर कहा गया है) की स्थापना होने के बाद मुझे मूल ब्रह्मा और मूल विष्णु को प्रयागराज; और शिव को उनके मूल स्थान, काशी में स्थापित करना ही था तो फिर उसके निमित्त भी उचित ऊर्जा की आवश्यकता थी (जिस प्रकार मैं शिव शक्ति, विष्णु शक्ति और ब्रह्मा की शक्ति से त्रिशक्ति सम्पन्न हो 29 (/15-29) मई, 2006 को अपना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण किया था) तो फिर 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में मन्दिर मन्दिर घूम-घूमकर दोनों स्थान के उन मंदिरों जो सम्पूर्ण संसार के देवस्थान/मन्दिर/देवालय/उपासना स्थल को ऊर्जा देते हैं उन सभी की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/ तथा कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए मूल विष्णु और मूल ब्रह्मा को 10 सितम्बर, 2008 आपके और हमारे बीच इस प्रयागराज में और मूल शिव को 11 सितम्बर, 2008 को उनके परिवार समेत काशी में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया गया| तो धर्म चक्र के पालक मूल शिव अब 11 (/10) सितम्बर, 2008 से काशी में ही रह रहे हैं और अपने परिवार समेत सहस्राब्दियों तक अपने मूल स्थान, काशी ही रहेंगे और उससे बाहर उनकी छाया प्रति ही जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए औरजब तक प्रयागराज (विष्णु और ब्रह्मा) को प्रत्यक्ष उपस्थिति की जरूरत न हो उनपर मूल अधिकार काशी वासियों का ही होगा| और धर्म ध्वजा धारक विष्णु व् सृस्टि संचार कर्ता ब्रह्मा अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान प्रयागराज में ही सहस्राब्दियों तक रहेंगे और इनकी भी छायाप्रति ही बाहर जाएगी और वह भी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए| इसी प्रकार 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| = बहुत हो चुकी आसुरी गोत्र (सम्पूर्ण 108 गोत्रों में से एक मात्र गोत्र/ऋषि या इस विश्वमानवता के 108 वें अंश) पर कृपा ======>>सम्पूर्ण विश्व मानवता को 11 सितम्बर, 2001 के त्राहिमाम का दिन याद है न तो फिर मूल शिव के द्वारा इस सम्पूर्ण विश्व मानवता के सहस्राब्दियों हेतु पूर्ण कल्याण (शिव) स्थापित किये जाने के बाद 11(/10) सितम्बर, 2008 से शिव अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान काशी में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा इसी प्रकार 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| ======बहुत हो चुकी आसुरी गोत्र (सम्पूर्ण 108 गोत्रों में से एक मात्र गोत्र/ऋषि) पर कृपा तो अब शिव, राम और कृष्ण की केवल छायाप्रति ही अब इनके मूल स्थान से सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से ही कहीं जा सकेगी ======तो फिर 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये| ==सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा ( एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==फिर भी सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी के मानस/आदर्श पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|==तो फिर 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये||===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = स्वयं हिन्दुओं द्वारा भी इतिहास कैसा लिखा गया यह इतिहासकार की मानसिकता और उसपर आतंरिक व् वाह्य दबाव पर निर्भर करता है:== विवेक कुमार/प्रदीप कुमार/बेचनराम (समुचित उपलब्ध प्रमाण से प्रमाणित::::गोपनीयता बनाये रखने हेतु प्रमाण हटाए गए)/रामप्रसाद/देवीधर/.../सारंगधर:---लोग अपने निहित स्वार्थ्य और ईर्ष्यावश राम शब्द नाम से हटाने तथा गरीबी रेखा से नीचे दिखाने की भर पूर कोशिस किये तो मैंने स्वयं इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (कृष्णकान्त)::29 (/15 -29) मई, 2006:::28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014) और सशरीर परमब्रह्म राम (विष्णुकान्त):::25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)::30 सितम्बर, 2010 (/9 नवम्बर, 2019) होके दिखा दिया| = = सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी::जिनके नौ स्वरूपों में एक स्वरुप देवकाली/महाकाली हैं) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरुप में महासरस्वती+ महालक्ष्मी+ महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सीधे परमब्रह्म राम न होकर पहले परमब्रह्म कृष्ण ऐसे नहीं होना पड़ता (सामाजिक कलुष दूर करने हेतु अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए समयानुसार जिसका मानवता हेतु समर्पित कार्य प्रत्यक्ष तौर पर समय विशेष के लिए नियम से कुछ अलग ही दिखाई दे:::11 सितम्बर, 2001 से 29(/15-29) मई, 2006:::अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति::::67(पारिवारिक सदस्य)/11(परिवार)::जिसमें 7 सदस्यीय एक परिवार स्वयं केदारेश्वर/आदिशिव का है) बल्कि असुर कुल का जबाब देने हेतु ही होना पड़ता है:->>हमारे लिए संस्कृति व् संस्कार सदा से सर्वोपरि रहे हैं व उसके संरक्षण का अधिकार भी हमारे पास सन्निहित है :==दूसरों पर सामाजिक और संवैधानिक नियम के पालन हेतु उंगली उठाने वालों और जिन पर उंगली उठाई जाती है उनके लिए भी की हिन्दू शास्त्रीय विवाह (धर्म पति-पत्नी) अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से विवाह की अपनी भी शर्त होती है अन्यथा समाज को धता बताकर न्यायालय व अन्य विवाह पद्धति से आप पति-पत्नी हो लीजिये जिसमें आप धर्म पति-पत्नी कहलाने के अधिकारी हो नहीं सकते: >>सनातन हिन्दू धर्म में विवाह पद्धति के समय हिन्दू धर्म के अधिकतम देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और उनको साक्षी माना जाता है तो जो व्यक्ति या उसका समाज विवाह के पूर्व से लेकर विवाह के समय और विवाह के बाद भी ऐसे देवी-देवताओं में आस्था, विश्वास और श्रद्धा नहीं रखता है उसके साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य ही नहीं किसी भी सनातन हिन्दू की लड़की की शादी यदि किसी लालच, दबाव वस या अन्य किसी प्रकार से भयातुर होते हुए या स्वेक्षा से भी लड़की के पक्ष के लोग केवल वाह्य आडम्बर हेतु दिखावा स्वरुप हिन्दू शास्त्रीय विवाह अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से अगर करते हैं तो वह हिन्दू शास्त्रीय विवाह अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से किया गया ऐसा विवाह हर प्रकार से अमान्य है|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = मैंने 11 सितम्बर, 2001 से प्रारम्भ कर 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 आते-आते इस संसार की सभी देवियों जिनको कल-बल-छल तथा साम-दाम-दण्ड-भेद के तहत उनके स्वाभाविक नारी प्रवृत्ति का फायदा उठाकर परिस्थितिजन्य दोषी बनाया गया था उन सभी को दोष मुक्त कर दिया था तो क्या आम समाज ऐसा कर सकता है तो फिर अपने परिस्थिति अनुसार सबसे उचित नैतिकतापूर्ण जीवन जीने और सतत रूप से और उचित रास्ता चुनने का प्रयास कीजिये और इस प्रकार व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य के रास्ते पर चलते रहिये बाकी कार्य ईश्वर पर छोड़ दीजिये पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते अपने आप अपना कार्य करेगा| = सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और सशरीर परमब्रह्म राम हो सकने की प्रारंभिक अनिवार्य शर्त की पृष्ठभूमि (जो स्वयं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण और सशरीर परमब्रह्म राम हो चुका हो तो वास्तविक सन्दर्भ में इस संसार में उसका भी कोई ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ हो सकता है? उत्तर तो नहीं ही है, पर अगर ऐसा है तो वह केवल व्यावहारिक जीवन जीने के औपचारिकता मात्र पूर्ण कर रहा होता है|):====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|=====आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:====विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है||NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||=जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था|==============बिशुनपुर-रामापुर -एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/---/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती---विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| === मूल सारन्गधर अर्थात विष्णु और मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही (मुख्य आयाम राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव होता है) जिस शिव का जन्म होगा वह """"केदारेश्वर (प्रमाणित/प्रतिष्ठित/प्रतिस्थापित :::: 25-05-2018(31--7-2018)//29(15-29)-05-2006)//10/11-9-2008//11/18-09-2007//10-03-2007//07-02-2003: वास्तविक संदर्भ मे प्रथम कदम::11-09-2001/प्रवर्तन::10-09-2000""""" अर्थात आदिशिव/आदित्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या (सनातन आद्या तो सनातन राम/कृष्ण) ही होंगे जिनसे शिव के सभी स्वरूपों का आविर्भाव होता है| मूल सारन्गधर अर्थात विष्णु और मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिससे महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहते है से ही सांगत देवियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तदनुसार सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) आविर्भाव होता है जिससे उनकी छाया रूपी सॄष्टि (एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मीऔर महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=======तो मूल सारन्गधर अर्थात विष्णु और मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही जिस शिव का जन्म होगा वह आदिशिव/आदित्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या (सनातन आद्या तो राम/कृष्ण) ही होंगे जिनसे शिव के सभी स्वरूपों का आविर्भाव होता है| ========सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव/महाशिव अवस्था) अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था| मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव/महाशिव अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है तदनुसार सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) आविर्भाव होता है जिससे उनकी छाया रूपी सॄष्टि (एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| == ===== केवल रामापुर-223225 का प्रभाव: हर युग में केदारेश्वर (आदिशिव/त्रिदेवों में आद्या का आदि स्वरुप) का परजीवी रहा है सम्पूर्ण रावणकुल (रावण/कुम्भकर्ण/मेघनाद) यह तो सर्वविदित है पर केदारेश्वर को ही जिसे स्थापित करना था और जिसके लिए वे वैश्विक विष्णु (श्रीधर) से आशीर्वाद ले चुके थे उसी वैश्विक शिव (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) ने मुझे रावणकुल (कुम्भकर्ण/मेघनाद) परिवार की सदस्यता हेतु नामांकन से 2001 में मना किया था तो फिर सर्व विदित हो की रावणकुल (रावण/कुम्भकर्ण/मेघनाद) से हर कोई छुटकारा पाना चाहता है पर छुटकारा उसी को मिलता है जिस पर विष्णु की कृपा होती है| रावण कुल अभिषप्त किसलिए रहा है यह उसके दो दसक के कर्मों से भी विदित है|== = तीनों ऋण से उऋण व्यक्ति को पता ही होता है कि इस दुनिया में किसी को कुछ भी बिना ऋण अदा किये नहीं मिलता है या मिल गया हो तो उसका ऋण न अदा करना पड़े|; तो फिर तीनों मूल ऋण: देवऋण, ऋषि/गुरुऋण और पितृऋण/मातृऋण(संस्था/संगठन/व्यक्ति समूह:व्यक्ति समूह के सभी व्यक्तियों::जितना बड़ा व्यक्ति समूह उतना बड़ा ऋण) से उऋण होने पर ही पता चलता है की कितना भी बड़ा पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान प्राप्त कर लीजिये पर इस दुनिया से किसी व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व से ज्यादा यहाँ उसका अपना स्वयं का कुछ भी नहीं है| = अटकलों पर अंतिम विराम:===पांच मकारों ने बौद्ध धर्म को लगभग सम्पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया था तो फिर अन्य धर्म विशेषकर सनातन हिन्दू धर्म वाले आज की स्थिति में विचार करें:---- मेरा प्रतिद्वंदी यह संसार जानना चाहा तो अटकलों पर अंतिम विराम लगाने हेतु बता दिया (11 सितम्बर, 2001) जो की वैश्विक और सीमा पार से (उसके सीमा के अन्दर से भी सम्बन्ध हो सकते हैं) तथा अभिलेखों अनुसार मेरी ही तरह रविवारीय(वास्तविक दिवस कुछ भी हो) रहा है और प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी और मेरा प्रतिरूप भी मैं ही रहूँगा और उसमे और मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| शायद कोई प्रश्न हो और उसका उत्तर देना पड़े तो फिर मुझे फेसबुक पर अपने बीच बहुत लम्बे अंतराल बाद पाएंगे|====गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001) या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008 को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु) के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|===वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 से 29 (15-29), मई, 2006 आते आते ही मैं पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका पर 12 वर्ष और संघर्षरत रह सांसारिक रूप से भी हर प्रकार से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो फिर आगे चलकर 30-09-2010/28-08-2013 का प्रमाण पत्र 09-11-2019 को चाहे भले ही जारी किया गया हो| ====इस विगत अद्वितीय दो दसक तक प्रयागराज (/काशी) केंद्रित नव सृजन (विशेष रूप से::यही विशेष अन्तर मुझमें और अन्य में है क्योंकि उनकी जो प्रकृति है वह नवसृजन हेतु अपना सर्वसमर्पण की नहीं अपितु अधिकार की लड़ाई मात्र का है) के साथ विश्वमानवता का आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन समयानुकूल सुचारु रूप से चलता रहा तो फिर सतह पर कार्यरत लोगों को सम्पूर्ण सहस्राब्दी परिवर्तन का आभास कैसे होता और यही तो विश्वमानवता के कुशल रूप से आतंरिक पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण, वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन की खूबी रही है:===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| == मैं तो केवल इतना (विवेक (गिरिधर)/ त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र) सा था किन्तु परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर(विष्णु:मूल सारंगधर) को मेरी पहचान और मुझे दिए हुए विशेष निर्देश का इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 को स्वीकार कर लेने का प्रभाव क्या से क्या कर दिया (शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण)<<<<<>>>>> विवेक (/गिरिधर):::===---विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम (/कृष्ण)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| === सम्पूर्ण संसार में विश्वमानवता का सबसे अधिक बोझ (सबसे अधिक तनाव) सहने की क्षमता प्रयागराज (/काशी) की रही है जिसे बने रहना चाहिए: इस विश्वमानवता का वाह्य सञ्चालन व्यावहारिक रूप से कीजिये पर कभी भी ऐसा प्रतिक्रियात्मक माहौल न तैयार हो की प्रयागराज (/काशी) अपनी मूल प्रकृति (आन्तरिक सञ्चालन व्यवस्था) खो दे और उसकी मूल प्रकृति यह है की इस संसार के इतिहास में सबसे अधिक तनाव झेलने की क्षमता प्रयागराज वासियों में और उसके बाद काशी वासियों में रहता रहा है इस प्रकार सम्पूर्ण संसार में विश्वमानवता का सबसे अधिक बोझ सहने की क्षमता प्रयागराज (/काशी) की रही है जिसे बने रहना चाहिए और वैसे भी इस दो दसक के वैश्विक परिवर्तन के बाद ऐसा ही रहा है तो फिर आगे भी रहे इसी प्रयास के तहत भारतीय संस्कृति अर्थात प्रयागराज (/काशी) की संस्कृति के पालक और प्रतिपालक को सामाजिक रूप से पिछड़ा समझ उसका अपमान न करें उनका भी सामाजिक अधिकार उनकी संस्कृति के अनुसार संरक्षित और सुरक्षित रखें क्योंकि ऐसे ही लोगों की सांस्कृतिक रूप में संचित ऊर्जा (जिसको संचित स्थितिज ऊर्जा कहते है और जरूरत पड़ने पर गतिज ऊर्जा के रूप में जो कार्य भी करता है) इस विश्वमानवता के संचालन में विशेष रूप से सहयोगी होती रही है और आज भी सहयोगी साबित हुई है| === वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 से 29 (15-29), मई, 2006 आते आते ही मैं पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका पर 12 वर्ष और संघर्षरत रह सांसारिक रूप से भी हर प्रकार से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो फिर आगे चलकर 30-09-2010/28-08-2013 का प्रमाण पत्र 09-11-2019 को चाहे भले ही जारी किया गया हो|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| ==== गणितज्ञ/मैथमेटिशियन हैं आप पर इतना भी गणित/मैथमेटिक्स नहीं पता की पूर्ण का प्रतिलोम/इनवर्स पूर्ण ही होता है: यहाँ तो उसको भी भुलाने की कोशिश हुई जिसका विस्तार ""आधार से लेकर शिखर""अर्थात""""आधार (विवेक(गिरिधर:प्रत्यक्ष)/ शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम (/कृष्ण)/महाशिव/सदाशिव::::::::विष्णु(श्रीधर:परोक्ष)) से लेकर शिखर (शिव/प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ)""""" तक रहा:--- इस दुनिया में किसी को कुछ भी बिना ऋण अदा किये नहीं मिलता है या मिल गया हो तो उसका ऋण न अदा करना पड़ा हो या न अदा करना पड़े :::: 15 जनवरी, 2008:::11 सितम्बर, 2001--TO---11/18 सितम्बर, 2007 ::29 (15-29) मई, 2006::67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार) जबकि लक्ष्य केवल केदारेश्वर(आदि शिव/शिव का आदि स्वरुप/त्रिदेवों में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या(सनातन आद्या तो सनातन राम/कृष्ण हैं) थे जो की दस और परिवार के पारिवारिक सदस्य लेकर आये(यह दुनिया है जिसमे जिसको केवल विरोध करने हेतु खरीद लिया गया है उन अभिकर्ता/एजेंट समूह को न 29 मई, 2006 की अभीष्ट संस्थागत(प्रत्यक्ष)/मानवतागत (परोक्ष) सफलता स्वीकार थी न 15 जनवरी, 2008 का यह समुचित सम्मान) :------लोग शिक्षा के बाद गुरुदक्षिणा देते हैं पर यहाँ प्रयागराज विश्वविद्यालय में हमने शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व ही गुरुदक्षिणा दिया हैं और भी कि बूँद आसमान से अपना पहचान बनाते हुए चलती है तब अपने को महासागर में विलीन करती है पर यहाँ इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय अभूतपूर्व हलचल के बीच प्रारम्भ में ही महासागर में समाते हुए और उसमे तूफान मचा अपना अभीष्ठ लक्ष्य पाते हुए बाद में एक बूँद के रूप में अपना पहचान बनाये हुए हूँ यह सामान्य संकल्प/समर्पण/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता की बात नहीं होती है|------<तीनों ऋण से उऋण व्यक्ति को पता ही होता है कि इस दुनिया में किसी को कुछ भी बिना ऋण अदा किये नहीं मिलता है या मिल गया हो तो उसका ऋण न अदा करना पड़े; तो फिर तीनों मूल ऋण: देवऋण, ऋषि/गुरुऋण और पितृऋण/मातृऋण(संस्था/संगठन/व्यक्ति समूह:व्यक्ति समूह के सभी व्यक्तियों::जितना बड़ा व्यक्ति समूह उतना बड़ा ऋण) से उऋण होने पर ही पता चलता है की कितना भी बड़ा पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान प्राप्त कर लीजिये पर इस दुनिया से किसी व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व से ज्यादा यहाँ उसका अपना स्वयं का कुछ भी नहीं है| === बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म:-- मूल सारंगधर की मूल अवस्था की पाँच की पाँचों सर्वोच्च मूल महा-शक्तियाँ उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्दर हैं: --पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान मैं सभी सांसारिक मर्यादा से परिपूर्ण एक मात्र मूल तत्व हूँ बिशुनपुर-रामापुर युग्म का न की औरों की तरह डमी तत्व हूँ किसी एक का या युग्म का:->बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः--गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ==मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|---इस संसार के इतिहास की कौन सी विभूति का आचरण है जो नाभिकीय संलयन विधि से युक्त होकर राम के आचरण में शामिल न हो और समुचित समय आने पर वह प्रदर्शित न हो (मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में से मूल आयाम राम ही हैं)|=>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| = लोग शिक्षा के बाद गुरुदक्षिणा देते हैं पर यहाँ प्रयागराज विश्वविद्यालय में हमने शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व ही गुरुदक्षिणा दिया हैं और भी कि बूँद आसमान से अपना पहचान बनाते हुए चलती है तब अपने को महासागर में विलीन करती है पर यहाँ इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय अभूतपूर्व हलचल के बीच प्रारम्भ में ही महासागर में समाते हुए और उसमे तूफान मचा अपना अभीष्ठ लक्ष्य पाते हुए बाद में एक बूँद के रूप में अपना पहचान बनाये हुए हूँ यह सामान्य संकल्प/समर्पण/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता की बात नहीं होती है|--------------------------मुझे कोई संवैधानिक या संस्थागत/संस्थानगत वैज्ञानिक व शैक्षिक स्थाई या अस्थाई पद नहीं दिया गया था पर हा मूल रूप से अनुसंधान सहायक का पद गोवा में अंतर्राष्ट्रीय मानक पर कार्य करने वाले एक स्थाई किन्तु नवीनतम नव स्थापित विकासोन्मुखी संस्थान के एक विभाग में नियमतः अवश्य दिया गया था उस संस्था के इतिहास में वहां होने वाले प्रथम साक्षात्कार में और फिर यहाँ प्रयागराज विश्वविद्यालय में केदारेश्वर को नामित एक अस्थायी केन्द्र को स्थाई केन्द्र बनाने हेतु अस्थायी अनुसंधान सहायक पद पर नियुक्त कर स्थानीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय चुनौती के बीच 11 सितम्बर, 2001 को संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया गया और इस प्रकार 7 फरवरी, 2003 को निर्णायक रूप से संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिए जाने के बाद भी पुनः 29 (15-29) मई, 2006 को स्वतः संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होते हुए केदारेश्वर के माध्यम से 67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार) का स्थाई रूप से पदार्पण हुआ जो की 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को जाकर ऐसी लगभग दो दसक की प्रक्रिया के दौरान बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई| ===>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == तिथि के अनुसार 7 फरवरी, 2003 टर्निंग पॉइंट था जिस दिन मूल सारंगधर अर्थात श्रीधर (विष्णु) के विशेष आग्रह और निर्देश पर विश्वमानवता के मूल/जड़त्व, केंद्र प्रयागराज (काशी) में मैं पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था====वैसे तो 11 सितम्बर, 2001 को भी इस प्रयागराज (काशी) में मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की सहमति से वैश्विक शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के द्वारा मैं ही पूर्णतः संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया जिसका यथोचित परिणाम आया था किन्तु 7 फरवरी, 2003 को पुनः एक बार और मुझे पूर्णतः संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किये जाने की स्वीकृति मेरे द्वारा न दिए जाने पर भी 7 फरवरी, 2003 का दिन एक निर्णायक दिन था जिस दिन मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) ने मुझपर विश्वास करते हुए वैश्विक रूप से मुझे दॉँव पर लगा दिया था (पूर्णतः संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ कर दिया गया था) और उसके बाद 29 (/15-29) मई, 2006 को स्वयं निहित पूर्णतः संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो जाने पर मिली पूर्ण सफलता और 25 मई, 2018(31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से मिली अभीष्ठ लक्ष्य सफलता के साथ मैं उस विश्वास पर खरा उतरा| == दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं। === कम से कम आज के दिन मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर) को पता हो की प्रयागराज (/काशी) स्थित प्रथम भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किन्धा स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु में 2007-2009 के दौरान शिक्षा और शोध के साथ-साथ जो सब लोग कर रहे थे और जैसा आचरण व व्यवहार कर रहे थे वह ही मैं भी कर रहा था ऐसा सच नहीं है| क्योंकि इससे मैं जो चाहता था और वह मैंने किया तो ऐसे मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ युक्त आध्यात्मिक और धार्मिक कार्य को जो सब लोग कर रहे थे और जैसा आचरण व व्यवहार कर रहे थे वह करके सम्भव नहीं बनाया जा सकता था यह ही एक अपने में प्रमाण है| हांलाकी जानकारी मैंने सभी ली लेकिन सब विधा से निर्लिप्त और वासना मुक्त होकर| और प्रयागराज (/काशी) में भी 20 वर्ष से अधिक समय से सबसे निरपेक्ष रहते हुए ऐसे ही रहा और ऐसे रह रहा हूँ | = मूल सारंगधर की मूल अवस्था की पाँच की पाँचों सर्वोच्च मूल महा-शक्तियाँ उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्दर हैं: --पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान मैं सभी सांसारिक मर्यादा से परिपूर्ण एक मात्र मूल तत्व हूँ बिशुनपुर-रामापुर युग्म का न की औरों की तरह डमी तत्व हूँ:-===>>>बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः--गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ==मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं|---इस संसार के इतिहास की कौन सी विभूति का आचरण है जो नाभिकीय संलयन विधि से युक्त होकर राम के आचरण में शामिल न हो और समुचित समय आने पर वह प्रदर्शित न हो (मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में से मूल आयाम राम ही हैं)|=>225 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| == ब्रह्मा चरित्रहीन होते हैं यह किसने प्रमाणित किया और किसी एक दो विषय सन्दर्भ के ज्ञाता को ब्रह्मा नहीं कहा जा सकता बल्कि उसका वर्तमान से लेकर भविष्य तक के सन्दर्भ में ब्रह्म ज्ञानी स्वरुप होना चाहिए? ब्रह्मा चरित्रहीन अवस्था में अस्तित्व में ही नहीं रह सकते क्योकि वे अपने में ही तीन में से एक अविनाश स्वयं है अर्थात त्रिदेवों में से कनिष्ठ देव हैं: गौर से देखिये आदिदेवी/त्रिदेवियों में आद्या/महादेवी/सरस्वती ही नहीं त्रिदेव और त्रिदेवी सभी परमब्रह्म अर्थात परमब्रह्म विष्णु की सन्तान है न की ब्रह्मा की तो सरस्वती किस प्रकार से ब्रह्मा की पत्नी नहीं हो सकती हैं?-विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर की मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| === विष्णु के मीन अवतार से ज्यादा महत्त्व का है कूर्मावतार पर विष्णु का कूर्मावतार तभी तक धारण किये रहना ठीक है जब तक कि देवता और असुर का संघर्ष मानवता हित के अभीष्ट लक्ष्य पाने तक जारी रहे अन्यथा देवता लोग जब असुरों की ही शर्त पर समझौता कर लें (2004 के बाद की स्थिति:::गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा) की सत्ता जाने के बाद का स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य) तो फिर विष्णु को कूर्मावतार से बाहर आते हुए सतह पर आकर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (29(/15-29) मई, 2006) अवस्था में आना पड़ता है| == परशुराम और उनके शिष्य होने की जरूरत तब पड़ती है जब सीधी लड़ाई हो पर जब हर तरफ से आतंरिक व् वाह्य वार होता है तो वहाँ राम और कृष्ण और उनके शिष्य बनने की आवश्यकता होती हैं| अर्थात कूट नीति भी अपनाएं इसके तहत जहां सीधा युद्ध जरुरी हो वहां वह भी करें पर जहाँ तर्क और बुद्धि का प्रयोग करना पड़े वहां बुद्ध भी बन जाय और अपने ईश्वर पर विश्वास कर अपने को सत्कर्मों में लगाए रखें| गोत्र से त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) ही नहीं हूँ वर्तमान में कश्यप ऋषि के रोल में भी हूँ और इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए दो दसक के दौरान तात्कालिक वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के बाद स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकल सन्दर्भ में वैश्विक स्तर के ऐसे दायित्व में क्रमिक रूप से वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु, और वैश्विक ब्रह्मा तदनुसार वैश्विक कृष्ण (सरीर परमब्रह्म) और वैश्विक राम (सरीर परमब्रह्म) तक होते हुए भी वर्तमान समयानुकूल आवश्यकतानुसार विष्णु ऋषि/गोत्र के रोल में भी इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में मैं ही हूँ| परशुराम के पिता, जमदग्नि की कर्मस्थली जमदग्निपुर/जौनपुर में मेरा जन्म भी हुआ है और स्नातक स्तर तक की शिक्षा भी लिया हूँ और ऊर्जाशक्ति का केंद्र भी वही रहा है, जबकि पैतृक आवास दुर्वाशा/कृष्णात्रेय( सप्तर्षियों में सबसे तेजस्वी अत्रि ऋषि की संतति) की कर्म स्थली सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़/आजमगढ़ है|---------- तो फिर परशुराम ( जिनके पिता जमदग्नि, बाबा भृगु (सप्तर्षियों में ब्राह्मणत्व गुण त्याग में सर्वश्रेष्ठ व विष्णु के अनन्य भक्त ) और शास्त्र गुरु स्वयं कश्यप (जो की उनको संज्ञा शून्य करते हुए रक्तपात बन्द कराते हुए शांति हेतु महेंद्र पर्वत/गिरी पर भेजे थे और जिनके अस्त्र-शस्त्र गुरु स्वयं शिव थे) और उनके समर्थकों को मालूम हो कि --------परशुराम और उनके शिष्य होने की जरूरत तब पड़ती है जब सीधी लड़ाई हो पर जब हर तरफ से आतंरिक व् वाह्य वार होता है तो वहाँ राम और कृष्ण और उनके शिष्य बनने की आवश्यकता होती हैं| अर्थात कूट नीति भी अपनाएं इसके तहत जहां सीधा युद्ध जरुरी हो वहां वह भी करें पर जहाँ तर्क और बुद्धि का प्रयोग करना पड़े वहां बुद्ध भी बन जाय और अपने ईश्वर पर विश्वास कर अपने को सत्कर्मों में लगाए रखें| === सत्यमेव जयते (/सत्यम शिवम् सुंदरम):------सामाजिक या भौतिक जगत में किसी भी प्रक्रिया में गुण की दृष्टि से देखा जाए तो मिक्सअप/मिश्रित होने में हमेशा अवगुण (कुसंस्कारी व्यक्ति व समाज) वाले का ही लाभ निहित होता है और गुणकारी (संस्कारी व्यक्ति व समाज) लोगों को अपनी तत्कालीन अवस्था में समझौता करने या सबको गुणवान (संस्कारी व्यक्ति व समाज) बनाने के सिवा कुछ शेष नहीं बचता है तो फिर यह अपनी सवाह्य (अर्थात भौतिक/सामाजिक) अवनति के रूप में किया गया समझौता उनकी दिव्य शक्ति के रूप में अलौकिक रूप में उसमें ही शामिल हो जाती है|========= जो त्याग व बलिदान करता है तो यह उसकी महानता है जो की उसकी दिव्य शक्ति/अलौकिक शक्ति में शामिल हो जाती है अर्थात उसकी आंतरिक स्थितिज ऊर्जा में समाहित हो जाती है तो त्यागशील व बलिदानी व्यक्ति व समाज जो बराबर अपना तप/योग/उद्यम/साधना जारी रखा है भी जारी रखा हो उससे बराबरी पावर पॉलिटिक्स के आधार पर आप नहीं कर सकते है और न इस संसार में सब किसी को बराबर कभी भी किया जा सकता है:----- सामाजिक या भौतिक जगत में किसी भी प्रक्रिया में गुण की दृष्टि से देखा जाए तो मिक्सअप/मिश्रित होने में हमेशा अवगुण (कुसंस्कारी व्यक्ति व समाज) वाले का ही लाभ निहित होता है और गुणकारी (संस्कारी व्यक्ति व समाज) लोगों को अपनी तत्कालीन अवस्था में समझौता करने या सबको गुणवान (संस्कारी व्यक्ति व समाज) बनाने के सिवा कुछ शेष नहीं बचता है तो फिर यह अपनी वाह्य (अर्थात भौतिक/सामाजिक) अवनति के रूप में किया गया समझौता उनकी दिव्य शक्ति के रूप में अलौकिक रूप में उसमें ही शामिल हो जाती है| === फिर भी विश्वमानवता की मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) बीस वर्ष से अधिक समय तक अडिग है ------कोई भी जाति/धर्म वाला कोई कोर कसर नहीं नहीं छोड़ा है तो फिर सब कुछ देखने वाला ऊपर वाला (अंतरिक्ष वाला) ही नहीं है यहाँ मध्यवाला (स्थल वाला)) और नीचे वाला (पाताल: जमीन(समुद्र) के अन्दर वाला) भी देखने वाला होता था/है; यह आभास कम से कम आज तो कर लीजिये और हर जगह स्वार्थ्य हॉबी था और आज भी है--------फिर भी विश्वमानवता की मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) बीस वर्ष से अधिक समय तक अडिग है| = मानवताहित में कभी भिक्षाटन करना स्वाभिमान को समाप्त कर लेना नहीं कहा जा सकता है:----मानवता हित में भिक्षाटन तीनों मूल देवों (ब्रहा, विष्णु और शिव) को करना पड़ा है (उदहारण बहुत से हैं) जबकि मानवता के रक्षण-संरक्षण हेतु भिक्षाटन की मूल प्रवृति शिव में ही सदा रहती आयी है और स्वाभाविक व प्राकृतिक नियमों के पालन में भिक्षाटन की अंतिम बारी सृस्टि के पालनहार विष्णु की आती हैं| = आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा तो आपका सामना इसी से होगा ---------आप कोई भी पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान आप पाएंगे तो 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में पुनर्स्थापित/पुनर्प्रतिष्ठित यह धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा तो आपका सामना इसी से होगा| = सत्यम शिवम सुंदरम: मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ व पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान होना तो ठीक है पर इसके साथ ही साथ सुंदरता भी होना भी कोई अपराध या किसी का अपमान नहीं--इस संसार सत्यम शिवम सुंदरम: मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ व पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान होना तो ठीक है पर इसके साथ ही साथ सुंदरता भी होना भी कोई अपराध या किसी का अपमान नहीं--इस संसार के प्रथम नागरिक या प्रथम आदिवासी आदिशिव: केदारेश्वर जैसा गौर वर्ण किसी देव का नहीं रहा और सती/गौरी जैसी सुन्दर गौर वर्ण कोई नारी नहीं रही आज तक इस संसार में -मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से विशाल जल प्लावन बीच काशी की धरा को लेकर आविर्भवित होने वाले इस संसार प्रथम नागरिक या प्रथम आदिवासी आदिशिव:केदारेश्वर जैसा गौर वर्ण कोई देव नहीं रहा और सती/गौरी जैसी सुन्दर गौर वर्ण कोई नारी नहीं रही आज तक इस संसार में प्रथम नागरिक या प्रथम आदिवासी आदिशिव: केदारेश्वर जैसा गौर वर्ण किसी देव का नहीं रहा और सती/गौरी जैसी सुन्दर गौर वर्ण कोई नारी नहीं रही आज तक इस संसार में -मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से विशाल जल प्लावन बीच काशी की धरा को लेकर आविर्भवित होने वाले इस संसार प्रथम नागरिक या प्रथम आदिवासी आदिशिव:केदारेश्वर जैसा गौर वर्ण कोई देव नहीं रहा और सती/गौरी जैसी सुन्दर गौर वर्ण कोई नारी नहीं रही आज तक इस संसार में| == विदित हो कि 11 सितम्बर, 2001//7 फरवरी, 2003//15/29(15-29) मई, 2006 को भले ही प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य हेतु संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन किया गया था पर 5 सितम्बर, 2000 को ही मैं बोरिया बिस्तर समेत काशी से प्रयागराज आ चुका था (10 सितम्बर, 2000 पूर्णातिपूर्ण संज्ञान में था):-------धर्म चक्र के पालक मूल शिव अब 11 (/10) सितम्बर, 2008 से काशी में ही रह रहे हैं और अपने परिवार समेत सहस्राब्दियों तक अपने मूल स्थान, काशी ही रहेंगे और उससे बाहर उनकी छाया प्रति ही जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए और जब तक प्रयागराज (विष्णु और ब्रह्मा) को मूल शिव की प्रत्यक्ष उपस्थिति की जरूरत न हो और उन पर मूल अधिकार काशी वासियों का ही होगा| और धर्म ध्वजा धारक विष्णु व् सृस्टि संचार कर्ता ब्रह्मा अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान प्रयागराज में ही सहस्राब्दियों तक रहेंगे और इनकी भी छायाप्रति ही बाहर जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए| इसी प्रकार 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| ===11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/ तथा कथित अशोकचक्र का सम्मान कीजिये आपका स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का कवच और आपके कर्मों का एक सीसीटीवी कैमरा बना रहेगा तो आपका सामना भी इसी से होगा | 29 (/15-29) मई, 2006 को प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज में इस संसार के सर्वकालिक सबसे गौर वर्णीय स्वरुप वाले ""केदारेश्वर/आदिशिव:"" (मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से आविर्भवित होने वाले केदारेश्वर/आदिशिव जो इस संसार में स्थल के प्रथम नागरिक हैं और जिनको आप इस संसार के प्रथम आदिवासी भी कह सकते है और जो विशाल जलप्लावन के बीच इस संसार की सबसे पुरानी धरा, काशी को अपने साथ लेकर कीचड (केदार) से सने हुए स्वरुप में निकले थे जिसके नाते उनको केदारेश्वर कहा गया है) की स्थापना होने के बाद मुझे मूल ब्रह्मा और मूल विष्णु को प्रयागराज; और मूल शिव को उनके मूल स्थान, काशी में स्थापित करना ही था तो फिर उसके निमित्त भी उचित ऊर्जा की आवश्यकता थी (जिस प्रकार मैं शिव शक्ति, विष्णु शक्ति और ब्रह्मा की शक्ति से त्रिशक्ति सम्पन्न हो परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में 29 (/15-29) मई, 2006 को आते हुए अपना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण किया था तो आगे भी अभीष्ट सफलता को सामाजिक रूप से सर्वमान्य रूप से स्वीकार न करने पर 12 वर्ष तक के संघर्ष के दौरान विष्णु और ब्रह्मा के स्वरुप को मूल शिव की आवश्यकता पड़ने पर पुनः त्रिशक्ति को पुनः संयुक्त कर त्रिशक्ति सम्पन्न हो 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 को परमब्रह्म राम स्वरुप में आते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण किया गया था) तो फिर 11 (/10) सितम्बर, 2008 को प्रयागराज(/काशी) में मन्दिर मन्दिर घूम-घूमकर दोनों स्थान के उन मंदिरों जो सम्पूर्ण संसार के देवस्थान/मन्दिर/देवालय/उपासना स्थल को ऊर्जा देते हैं उन सभी की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म हेतु)/कालचक्र/समयचक्र/ तथा कथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना/पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए मूल विष्णु और मूल ब्रह्मा को 10 सितम्बर, 2008 आपके और हमारे बीच इस प्रयागराज में और मूल शिव को 11 सितम्बर, 2008 को उनके परिवार समेत काशी में पुनर्प्रतिष्ठित/पुनर्स्थापित कर दिया गया| तो धर्म चक्र के पालक मूल शिव अब 11 (/10) सितम्बर, 2008 से काशी में ही रह रहे हैं और अपने परिवार समेत सहस्राब्दियों तक अपने मूल स्थान, काशी ही रहेंगे और उससे बाहर उनकी छाया प्रति ही जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए और जब तक प्रयागराज (विष्णु और ब्रह्मा) को मूल शिव की प्रत्यक्ष उपस्थिति की जरूरत न हो और उन पर मूल अधिकार काशी वासियों का ही होगा| और धर्म ध्वजा धारक विष्णु व् सृस्टि संचार कर्ता ब्रह्मा अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान प्रयागराज में ही सहस्राब्दियों तक रहेंगे और इनकी भी छायाप्रति ही बाहर जाएगी और वह भी सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान का पालन करते-करवाते हुए|| इसी प्रकार 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| =====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| == बहुत हो चुकी आसुरी गोत्र (सम्पूर्ण 108 गोत्रों में से एक मात्र गोत्र/ऋषि या इस विश्वमानवता के 108 वें अंश) पर कृपा ==>>सम्पूर्ण विश्व मानवता को 11 सितम्बर, 2001 के त्राहिमाम का दिन याद है न तो फिर मूल शिव के द्वारा इस सम्पूर्ण विश्व मानवता के सहस्राब्दियों हेतु पूर्ण कल्याण (शिव) स्थापित किये जाने के बाद 11(/10) सितम्बर, 2008 से शिव अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान काशी में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा इसी प्रकार 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018 से राम अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान अयोध्या में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे तथा 28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 से कृष्ण अपने मूल स्वरुप में अपने मूल स्थान मथुरा-वृंदावन में ही हैं और अब सहस्राब्दियों तक वहीं रहेंगे| ===बहुत हो चुकी आसुरी गोत्र (सम्पूर्ण 108 गोत्रों में से एक मात्र गोत्र/ऋषि) पर कृपा तो अब शिव, राम और कृष्ण की केवल छायाप्रति ही अब इनके मूल स्थान से सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से ही कहीं जा सकेगी ===तो फिर 30 सितम्बर, 2010/9 नवम्बर, 2019/ (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये| ==सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा ( एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==फिर भी सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी के मानस/आदर्श पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/ब्रह्मदेवी/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|==तो फिर 9 नवम्बर, 2019/30 सितम्बर, 2010 (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018)/13 अप्रैल, 2018///11 (/10) सितम्बर, 2008///28 अगस्त, 2013 (/16 मार्च, 2014)/29 (/15-29) मई, 2006 के बाद से स्पस्ट रूप से इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा तो फिर मै अब अपने स्तर पर किसी भी प्रतिस्पर्धा से परे हूँ तो आप सब जिनको प्रतिस्पर्धा/प्रतिद्वंदिता करनी है आपस में कीजिये||===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| == आप लोग सब गोत्र को मिला दिए हैं तो मैं किसी जाति या धर्म विशेष की की बात नहीं कर रहा हूँ पर सार्वभौमिक तथ्य की बात सामने रख रहा हूँ: ---जहाँ से मैं ऊर्जा लिया करता था उसी परम स्रोत, मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) से वैश्विक मानद शिव भी अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने हेतु ऊर्जा लिया करते थे----पहले मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की शीर्षस्थ अवस्था अर्थात मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सम्मिलित शक्ति)/ महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का सन्दर्भ और तब सन्दर्भ आता है 7, 8, 24/25 और 108/109 गोत्र/ऋषि का --- इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र का बराबर ध्यान रखें: 7 से 8 और 8 से 24 (8X3)/25 और फिर 24 से 108 (/109) गोत्र/ऋषि:--इसका भी ध्यान रखना चाहिए इस सृष्टि के संचालन हेतु:--सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है (समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव); जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र (समस्त ऋषि/गोत्र का ऊर्जा स्रोत, 24/25//108/109वां गोत्र) है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (इस विश्व-मानवता के 108वें अंश या आसुरी गोत्र का बराबर ध्यान रखें)| ---सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है| ===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/महा-समुद्रमंथन काल व् उसके संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौर में बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं-राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था अर्थात पूरे दो दसक तक संकल्प/ब्रह्मलीनता/समाधिष्ठता मेरा ही हुआ था अर्थात अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था//सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को मै ही प्राप्त हुआ था| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या -इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी सप्तर्षि (7 ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, === 109. विष्णु गोत्र = इसमें सांसारिक पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान का सन्दर्भ कहाँ रहा जब मैं इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में विगत दो दशक के दौरान तीन-तीन बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन रहा तो बस इससे मानवता के अभीष्ट हित का प्रयोजन सिद्ध होना था तो अयोध्या (9 नवम्बर, 2019 (तदनुसार 30 सितम्बर, 2010)/5 अगस्त, 2020), काशी (11 सितम्बर, 2008) और मथुरा (16 नवम्बर, 2014 (/28 अगस्त, 2013) केंद्रित ऐसी शक्तियों का सहस्राब्दियों का अभीष्ट प्रयोजन पूरा हुआ| =25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 29 (/15-29) मई, 2006 के दौरान मैं वैश्विक रूप से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण सब कुछ हो चुका था पर आप कैसे शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण भक्त थे की 12 वर्ष आपने ऐसी सफलता को सर्वमान्य नहीं होने दिया और फिर 12 वर्ष तक के संघर्ष के बाद सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में आने पर 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को ही पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति होने पर ही इसे सर्वमान्य होने दिया| ===ईर्ष्या न हो श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) से जिनकी मूल अवस्था अर्थात सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था मैं रहा हूँ और समयानुकूल आज भी मैं ही हूँ=महत्ता उसकी ज्यादा होती है जिसने आपकी शक्ति पहचाना और उसने आप पर भरोषा और विश्वास कर आपको दॉँव पर लगा दिया तो मुझ पर ऐसी कृपा मूल सारंगधर अर्थात वैश्विक विष्णु (श्रीधर) की रही जिन्होंने 7 फरवरी, 2003 को मुझे कुछ भी हो जाने के बावजूद गुरुदेव जोशी (वैश्विक ब्रह्मा) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) द्वारा पूरित किये जाने वाले कार्य को पूर्ण परिणति तक पहुँचाने हेतु इसी विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में ही टिके रहने निर्देश दिया था जबकि 11 सितम्बर, 2001 को संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने के बाद और स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक अपने योग्य समुचित प्रभाव दिखाने के बाद 7 फरवरी, 2003 आते आते हुए स्थानीय, प्रांतीय व अन्तर्राष्टीय परिवर्तन के बीच मैंने सब कुछ समझते हुए हुए और पूर्वानुमान लगाते हुए 7 फरवरी, 2003 दूसरी बार इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने से सीधा मना कर दिया था| तो श्रीधर ( विष्णु:मूल सारंगधर) के निर्देशनुसार 7 फरवरी, 2003 को संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने पर भी गुरुदेव जोशी (ब्रह्मा) की सत्ता चले जाने पर अभीष्ट लक्ष्य हाँथ से जाता हुआ देख 29 (/15-29) मई, 2006 को स्वयं निहित संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन अवस्था में आते हुए विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से वैश्विक परमब्रह्म कृष्ण के रूप में अभीष्ट सफलता, 67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार) को प्राप्त किया जो कि प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत थी पर वास्तविक सन्दर्भ में परोक्ष रूप में मानवतागत थी|--- 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 29 (/15-29) मई, 2006 के दौरान मैं वैश्विक रूप से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण सब कुछ हो चुका था पर आप कैसे शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण भक्त थे की 12 वर्ष आपने ऐसी सफलता को सर्वमान्य नहीं होने दिया और फिर 12 वर्ष तक के संघर्ष के बाद सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में आने पर 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को ही पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति होने पर ही इसे सर्वमान्य होने दिया| तो इसमें सांसारिक पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान का सन्दर्भ कहाँ रहा जब मैं इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में विगत दो दशक के दौरान तीन-तीन बार संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन रहा तो बस इससे मानवता के अभीष्ट हित का प्रयोजन सिद्ध होना था तो अयोध्या (9 नवम्बर, 2019 (तदनुसार 30 सितम्बर, 2010)/5 अगस्त, 2020), काशी (11 सितम्बर, 2008) और मथुरा (16 नवम्बर, 2014 (/28 अगस्त, 2013) केंद्रित ऐसी शक्तियों का सहस्राब्दियों का अभीष्ट प्रयोजन पूरा हुआ| ====>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == जब मुझ व्यवहारिक सत्य/जगतसत्य को व्यक्तिगत रूप में पहले पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम सुन्दरम और फिर पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम सुन्दरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते बनने को मजबूर कर दिया आपने अर्थात सनातन धर्म/ मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म की सीमा के अन्दर रहते हुए ही मुझे एक मुसल्लम ईमान बना ही दिया आपनें तो आपका धर्म ही मुसल्लम ईमान/मुसलमान है तो आप भी पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते बन जाइये|====आप की वहज से ही मुझे सार्वजनिक रूप स्वीकारना पड़ा कि मूल सारंगधर श्रीधर:विष्णु थे/हैं और मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था में विगत दो दसक तक मैं ही था और आज भी समयानुकूल मैं ही हूँ| और यह कि मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सांगत देवियों समेत मूल सारंगधर के पांच के पाँचों आयाम का आविर्भाव होता है अर्थात सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं| इस प्रकार मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| <<<<====>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर की मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=====>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए सम्पूर्ण संसार को मैंने (मूल सारंगधर की मूल अवस्था ने) सहन किया और आम समाज के बीच रह मूल सारंगधर, विष्णु (श्रीधर)) ने मुझे सहन किया:>>>ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं वही हुआ|| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर +गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) के ही समतुल्य बना हुआ हूं।==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = मुझे गर्व है कि मै = सप्तर्षियों में ब्राह्मणत्व गुण त्याग में सर्वश्रेष्ठ और भगवान् विष्णु के अनन्य भक्त, भृगु ऋषि के पौत्र तथा सप्तर्षि में कश्यप ऋषि (शास्त्र) व शिव (अस्त्र-शस्त्र) के शिष्य, परशुराम के पिता, जमदग्नि की कर्म स्थली जमदग्निपुर/जौनपुर स्थित अपने पिता के ननिहाल में मेरा जन्म हुआ और इसी जनपदगत और इसी तहसील अंतर्गत अपने ननिहाल, बिशुनपुर-223103, विकास खण्ड खुटहन, तहसील शाहगंज में रहते हुए प्राथमिक से लेकर स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण किया जबकि मेरा पैतृक गाँव, रामापुर-223225, विकास खण्ड पवई, तहसील फूलपुर, आजमगढ़/आर्यमगढ़/सनातन आर्य क्षेत्र (सप्तर्षियों में सबसे तेजस्वी अत्रि ऋषि के पुत्र, दुर्वाषा/कृष्णात्रेय की तपोस्थली) है जहाँ से भी मैंने प्राथमिक शिक्षा के प्रथम चार वर्ष पूर्ण किये| ======इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| वेद माता गायत्री::::::सविता (/ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य) की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण गायत्री का दूसरा नाम सावित्री भी है ======विश्वामित्र/विश्वरथ (कौशिक) द्वारा रचित (सिद्ध किया हुआ) गायत्री मन्त्र ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य (/सविता) की समस्त शक्तियों के आह्वान का मन्त्र है और इस ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य के ऊर्जा का स्रोत सविता (/सावित्री) हैं जो स्वयं परमब्रह्म में समाहित शक्ति हैं; यही है सूर्य और सविता (/सावित्री)/गायत्री का सम्बन्ध और फिर उनसे परमब्रह्म का सम्बन्ध| = वसुधैव कुटुम्बकम::::विगत दो दसक में विश्व एक गाँव व्यवस्था पूर्णतः स्थापित हो चुकी है पर साथ ही साथ इस संसार विशेषकर भारत ने समयानुकूल परिस्थिति के तहत आभासीय राष्ट्रवाद को दिसम्बर, 2018 से अपना लिया है :- ---11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे उसी परमब्रह्म स्वरुप उर्जा ही द्वारा की गयी|====वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019(/2020)/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(/2020)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको=|=======इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात इस प्रथम भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र के बाद दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञानं संस्थान बेंगलुरु में 2007-2009 के प्रवास बीच मुझमें समाहित परमब्रह्म की ऊर्जा स्वयं प्रयागराज (/काशी) की ही थी, न की मैंने वहाँ से ऊर्जा लिया तो, यह समझिये मैंने इसी प्रयागराज (/काशी) केंद्रित परमब्रह्म की ऊर्जा से वहाँ को भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक के लिए ऊर्जावान किया और इस प्रकार मूल सारंगधर (विष्णु:श्रीधर) की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था की ऊर्जा से वहां को भी ऊर्जावान किया इस प्रकार वहाँ भी स्वयं की ऊर्जा से ऊर्जावान रहा किसी से ऊर्जा नहीं लिया और उसी ऊर्जा से 11/10 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा की गयी|----------- प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज (/काशी) आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ति देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मे धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा किया गया था अर्थात धर्मचक्र /कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|===वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019(/2020)/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(/2020)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको|===>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === जिसके रहते इस संसार से शिवत्व (कल्याण/उदारता) की भावना इस संसार से समाप्त नहीं हो सकती है तो ऐसे सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) के रहते हुए केदारेश्वर (आदि शिव) को समाप्त हुआ कैसे देखा जा सकता था? तो ऐसी स्थिति आयी थी की शिव और ब्रह्मा दोनों स्वयं विष्णु में ही समाहित रहे विगत दो दसक के प्रारंभिक दशक में परिणामतः राम और कृष्ण का आविर्भाव और इस प्रकार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव तो निश्चित ही था अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) के पांच के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव निश्चित था|==== शिव और शिवा:सती:गौरी की भी जो आतंरिक सुरक्षा शक्ति (कवच) हो वह ही त्रयम्बक है और वह त्रयम्बक कौन हो सकता है?-----विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात जो शिव और शिवा की भी रक्षा कर सके वह ही शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु) की मूल अवस्था (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) को प्राप्त करने वाला ही होगा जिसके रहते इस संसार से शिवत्व (कल्याण/उदारता) की भावना इस संसार से समाप्त नहीं हो सकती है तो ऐसे सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) के रहते हुए केदारेश्वर (आदि शिव) को समाप्त हुआ कैसे देखा जा सकता था? तो ऐसी स्थिति आयी थी की शिव और ब्रह्मा दोनों स्वयं विष्णु में ही समाहित रहे विगत दो दसक के प्रारंभिक दशक में परिणामतः राम और कृष्ण का आविर्भाव और इस प्रकार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव तो निश्चित ही था अर्थात मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) के पांच के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव निश्चित था| = हे जगदम्बा! जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जगदम्बा (देवकाली) को स्वयं उस जानकी और आपकी पहचान दोनों को कभी भी किसी भी प्रकार नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| == शिव और शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति (कवच): त्रयम्बक शिव--ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। शिवा:सती:गौरी--ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। NOTE: त्रयम्बक---विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) देवियाँ सब कुछ बन सकती हैं पर यह स्वाभाविक व प्रामाणिक सत्य है की वे सशरीर परमब्रह्म स्वरुप जैसे एकल अवस्था में नहीं आ सकती हैं जो की देवों के लिए भी दुर्लभ है जिसपर की विष्णु का एकमेव अधिकार व् स्वयं निहित पात्रता है:-----सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेवी और त्रिदेव दोनों पक्षों इस प्रकार समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है:----देवियाँ जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (जिनके 9 स्वरूपों में एक स्वरुप हैं चामुंडा महाकाली /देवकाली) बन सकती हैं; उनकी की सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी बन सकती हैं; उनकी छाया रूपी सृष्टि बन सकती हैं जिनसे कि समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है पर सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में नहीं आ सकती हैं तो इसका कारन है की सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेवी और त्रिदेव दोनों पक्षों का आविर्भाव होता है इस प्रकार सांगत देवियों समेत मूल सारंगधर के पांच के पाँचों पात्रों/आयामों (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम,कृष्ण, शिव, विष्णु ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तदनुसार समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है| = इस संसार को कम से कम मेरे त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन मात्र भी होने का अनुमान तभी लगा लेना चाहिए था जब मैं अपने अनुभव और भविष्यकालीन परिदृश्य का आंकलन करते हुए वैश्विक ब्रह्मा (जोशी गुरुदेव) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव (प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) द्वारा पूरित किये जाने वाले संस्थागत प्रत्यक्ष और मानवतागत परोक्ष यज्ञ हेतु दूसरी बार संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित होने से स्पष्ट तौर पर मना कर दिया था (जब स्थानीय, राष्ट्रिय से लेकर वैश्विक परिवर्तन के बीच सभी महारथी हिम्मत हार चुके थे) और फिर वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर उनकी भी तरफ से भी इक्षाशक्ति पूर्वक इसे पूरित किये जाने के प्रति निष्ठा भाव समझकर इसके लिए 7 फरवरी, 2003 (इसके पहले 11 सितम्बर, 2001 को इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में मैं ही संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हुआ था) को इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हुआ| अर्थात एक मात्र उन्होंने पूरे अधिकार से कहा था की कुछ भी हो जाय विवेक तुम्हें गुरुदेव जोशी (ब्रह्मा) और पांडेय जी (शिव/प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सम्मान हेतु तुम्हें इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहना है और बिना अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण हुए कही नहीं जाना है तो फिर 29 (/15-29) मई, 2006 को परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई और आगे स्थाई शिक्षक पद पर रहते हुए 12 वर्ष के संघर्ष के बाद सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त किया| == 25 मई, 1998/12 मई, 1997 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018: के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:===मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| = दो दशक तक विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए मैंने सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है और इस प्रकार सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार किये एक सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) का आचरण को समाज के सन्मुख प्रस्तुत करते हुए पहले ईसाइयत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (29 मई, 2006) और फिर 12 वर्ष बाद इस्लामियत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात क्रमसः दोनों के सामानांतर चलते हुए क्रमिक रूप से पूर्णातिपूर्ण सफलता अर्जित किया| और इसीलिये कहता हूँ की ईसाईयत कृष्ण के समानान्तर और इस्लामियत राम के सामानांतर चलता है और इस प्रयागराज (काशी) में दोनों मेरे सामानांतर चले और मैंने अपना अभीष्ट लक्ष्य उसके बाद भी प्राप्त किया| 》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है===""दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है"" और यह भी की विगत दो दसक में मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा है| 11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और 29 (15-29) मई, 2006 को इस प्रयागराज (/काशी) में समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित मै ही किया गया था/हुआ था (29 (15-29) मई, 2006): जो प्रमाणित करता है की मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ था जिसके सामाजिक आविर्भाव से त्रिदेव-त्रिदेवी समेत समस्त देवी देवताओं और इस प्रकार समस्त विश्व मानवता का आविर्भाव होता है| ===तो फिर 29 (/15-29) मई, 2006 को परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई और आगे स्थाई शिक्षक पद पर रहते हुए 12 वर्ष के संघर्ष के बाद सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त किया| मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|==इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए|=======यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?==विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए| = जरूरत पड़ने पर उचित मंच पर भी प्रमाणित किया जाएगा वैसे पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत)-2006 के स्वतः निर्धारण करने बाद पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत)-2018 ने भी स्वतः ही निर्धारण कर दिया है की सर्वकालिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुए बिना वैश्विक रूप से कैसे और कब ऐसे आयाम को प्राप्त हुआ/था/हूँ:----मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं) और तदनुसार पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत)|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = किसी भी सांसारिक घटना या पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय या अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर किसी प्रकार की राजनीति या कुचक्र या सम्पूर्ण जनमानस द्वारा मेरा घेराव किये जाने से यह अटल सत्य मेरे द्वारा बदला नहीं जा सकता है क्योंकि यह सब पहले भी हो चुका है जब मै अनुभवहीन था और उसपर भी अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया था तो आज अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर चुका हूँ और अनुभव भी है व्यावहारिक और तथ्यगत दोनों:---25 अप्रैल, 2022 का लेख और तथ्य:--->>मै गुरुदेव (जोशी: तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा) के सत्ता के 2004 में चले जाने के उस दौर का भी इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में मैं साक्षी हूँ जिस दौर में मुझे अपने प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु (वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव(प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) तथा वैश्विक विष्णु (श्रीधर) द्वारा पूरित किये जाने वाले अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु) सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सक्रीय अवस्था में 29 (15-29) मई, 2006 को आना पड़ा था (बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति::67/11::67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और इस प्रकार वैश्विक ईसाइयत शक्ति को नत मस्तक किया था (जिनका सर्वोच्च आदर्श प्रामाणिक रूप से पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि हैं) और जिसके आगे सीधे तौर वैश्विक इस्लामिक प्रेरित शक्तियों से 12 वर्ष संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई तो यह विचार का विषय है की स्वयं सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य को स्वयं पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते के रूप में प्रमाणित किया की नहीं यह इस्लामिक सर्वोच्च आदर्श (प्रामाणिक रूप से मुसल्लम ईमान) अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते का पूर्णः पालन करने वाले जाने (जो की 2019 /2020 में प्रमाणित भी कर चुके हैं पर हर समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो नहीं माने हैं तो हर समाज के ऐसे उद्दण्ड़ प्रवृत्ति के लोगों का उपचार जरूरी होता है और वे अवश्य हे दण्ड के भागीदार होंगे)|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ==धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | = और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| ==मूल सारंगधर के मूल स्वरुप अर्थात परमब्रह्म विष्णु के पाँच के पाँचों मूल आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक आयाम भी नहीं छूटा है) का मूल स्वरुप उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्तर्गत ही विद्यमान हैं: दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहने वाला ही 11 सितम्बर, 2001 का अंतर्राष्ट्रीय शिव, 7 फरवरी, 2003 का अंतर्राष्ट्रीय विष्णु, 29 (15-29) मई, 2006 का अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा और इस प्रकार परमब्रह्म विष्णु अवस्था से बाहर आया हुआ अन्तर्राष्ट्रीय परमब्रह्म कृष्ण है जिसने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना अपने तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया और इस प्रकार 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अंतर्राष्ट्रीय परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्राप्त किया|==और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| == जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?>>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? == वसुधैव कुटुम्बकम::::विगत दो दसक में विश्व एक गाँव व्यवस्था पूर्णतः स्थापित हो चुकी है पर साथ ही साथ इस संसार विशेषकर भारत ने समयानुकूल परिस्थिति के तहत आभासीय राष्ट्रवाद को दिसम्बर, 2018 से अपना लिया है :======मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है|============25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = इसी स्वरुप में मेरी उपस्थिति इस विश्व मानवता के जड़त्व/मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018 ) के बाद भी आवश्यक थी/है तो इसी स्वरुप में सदैव रहूँगा|========मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है===""दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है"" और यह भी की विगत दो दसक में मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा है| 11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और 29 (15-29) मई, 2006 को इस प्रयागराज (/काशी) में समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित मै ही किया गया था/हुआ था (29 (15-29) मई, 2006): जो प्रमाणित करता है की मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ था जिसके सामाजिक आविर्भाव से त्रिदेव-त्रिदेवी समेत समस्त देवी देवताओं और इस प्रकार समस्त विश्व मानवता का आविर्भाव होता है| ===तो फिर 29 (/15-29) मई, 2006 को परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आकर अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई और आगे स्थाई शिक्षक पद पर रहते हुए 12 वर्ष के संघर्ष के बाद सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त किया| मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|==इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए|=======यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?==विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए| == सच्चे सन्दर्भ में न कभी गौरी का त्याग हुआ, न कभी लक्ष्मी का त्याग हुआ और न कभी सरस्वती का त्याग हुआ और इस प्रकार न कभी जगदम्बा का त्याग हुआ और न कभी जानकी का त्याग हुआ और न कभी राधा का त्याग हुआ; इसका कारन यह है कि ये अनन्य और अटूट रिश्ते हैं जो हमेशा साथ में दृष्टिगत न होने पर भी बने रहते हैं और इनका भौतिक त्याग आप को कभी नजर आया भी तो उसका एकमात्र कारण अति व्यापक सामाजिक दोष रहा है तो फिर सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग तथा कलयुग तक में वह कोई भी युग ले लीजिये ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा राम(/कृष्ण) द्वारा उस सामाजिक दोष निवारण में भौतिक रूप में ये देवियाँ आपको परितक्त्या दिखाई देती रही हैं|=======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?>>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? == वसुधैव कुटुम्बकम::::विगत दो दसक में विश्व एक गाँव व्यवस्था पूर्णतः स्थापित हो चुकी है पर साथ ही साथ इस संसार विशेषकर भारत ने समयानुकूल परिस्थिति के तहत आभासीय राष्ट्रवाद को दिसम्बर, 2018 से अपना लिया है :======मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है|============25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = किसी भी सांसारिक घटना या पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय या अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर किसी प्रकार की राजनीति या कुचक्र या सम्पूर्ण जनमानस द्वारा मेरा घेराव किये जाने से यह अटल सत्य मेरे द्वारा बदला नहीं जा सकता है क्योंकि यह सब पहले भी हो चुका है जब मै अनुभवहीन था और उसपर भी अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया था तो आज अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर चुका हूँ और अनुभव भी है व्यावहारिक और तथ्यगत दोनों:---25 अप्रैल, 2022 का लेख और तथ्य:--->>मै गुरुदेव (जोशी: तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा) के सत्ता के 2004 में चले जाने के उस दौर का भी इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में मैं साक्षी हूँ जिस दौर में मुझे अपने प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु (वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव(प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) तथा वैश्विक विष्णु (श्रीधर) द्वारा पूरित किये जाने वाले अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु) सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सक्रीय अवस्था में 29 (15-29) मई, 2006 को आना पड़ा था (बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति::67/11::67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और इस प्रकार वैश्विक ईसाइयत शक्ति को नत मस्तक किया था (जिनका सर्वोच्च आदर्श प्रामाणिक रूप से पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि हैं) और जिसके आगे सीधे तौर वैश्विक इस्लामिक प्रेरित शक्तियों से 12 वर्ष संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई तो यह विचार का विषय है की स्वयं सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य को स्वयं पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते के रूप में प्रमाणित किया की नहीं यह इस्लामिक सर्वोच्च आदर्श (प्रामाणिक रूप से मुसल्लम ईमान) अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते का पूर्णः पालन करने वाले जाने (जो की 2019 /2020 में प्रमाणित भी कर चुके हैं पर हर समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो नहीं माने हैं तो हर समाज के ऐसे उद्दण्ड़ प्रवृत्ति के लोगों का उपचार जरूरी होता है और वे अवश्य हे दण्ड के भागीदार होंगे)| == अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ==धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | = और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| ==मूल सारंगधर के मूल स्वरुप अर्थात परमब्रह्म विष्णु के पाँच के पाँचों मूल आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक आयाम भी नहीं छूटा है) का मूल स्वरुप उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्तर्गत ही विद्यमान हैं: दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहने वाला ही 11 सितम्बर, 2001 का अंतर्राष्ट्रीय शिव, 7 फरवरी, 2003 का अंतर्राष्ट्रीय विष्णु, 29 (15-29) मई, 2006 का अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा और इस प्रकार परमब्रह्म विष्णु अवस्था से बाहर आया हुआ अन्तर्राष्ट्रीय परमब्रह्म कृष्ण है जिसने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना अपने तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया और इस प्रकार 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अंतर्राष्ट्रीय परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्राप्त किया|==और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| == किसी भी सांसारिक घटना या पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय या अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर किसी प्रकार की राजनीति या कुचक्र या सम्पूर्ण जनमानस द्वारा मेरा घेराव किये जाने से यह अटल सत्य मेरे द्वारा बदला नहीं जा सकता है क्योंकि यह सब पहले भी हो चुका है जब मै अनुभवहीन था और उसपर भी अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया था तो आज अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर चुका हूँ और अनुभव भी है व्यावहारिक और तथ्यगत दोनों:---25 अप्रैल, 2022 का लेख और तथ्य:--->>मै गुरुदेव (जोशी: तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा) के सत्ता के 2004 में चले जाने के उस दौर का भी इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में मैं साक्षी हूँ जिस दौर में मुझे अपने प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु (वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव(प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) तथा वैश्विक विष्णु (श्रीधर) द्वारा पूरित किये जाने वाले अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु) सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सक्रीय अवस्था में 29 (15-29) मई, 2006 को आना पड़ा था (बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति::67/11::67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और इस प्रकार वैश्विक ईसाइयत शक्ति को नत मस्तक किया था (जिनका सर्वोच्च आदर्श प्रामाणिक रूप से पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि हैं) और जिसके आगे सीधे तौर वैश्विक इस्लामिक प्रेरित शक्तियों से 12 वर्ष संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई तो यह विचार का विषय है की स्वयं सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य को स्वयं पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते के रूप में प्रमाणित किया की नहीं यह इस्लामिक सर्वोच्च आदर्श (प्रामाणिक रूप से मुसल्लम ईमान) अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते का पूर्णः पालन करने वाले जाने (जो की 2019 /2020 में प्रमाणित भी कर चुके हैं पर हर समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो नहीं माने हैं तो हर समाज के ऐसे उद्दण्ड़ प्रवृत्ति के लोगों का उपचार जरूरी होता है और वे अवश्य हे दण्ड के भागीदार होंगे)| == अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ==धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | = और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| ==मूल सारंगधर के मूल स्वरुप अर्थात परमब्रह्म विष्णु के पाँच के पाँचों मूल आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक आयाम भी नहीं छूटा है) का मूल स्वरुप उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्तर्गत ही विद्यमान हैं: दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहने वाला ही 11 सितम्बर, 2001 का अंतर्राष्ट्रीय शिव, 7 फरवरी, 2003 का अंतर्राष्ट्रीय विष्णु, 29 (15-29) मई, 2006 का अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा और इस प्रकार परमब्रह्म विष्णु अवस्था से बाहर आया हुआ अन्तर्राष्ट्रीय परमब्रह्म कृष्ण है जिसने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना अपने तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया और इस प्रकार 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अंतर्राष्ट्रीय परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्राप्त किया|==और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| == जब मुझ व्यवहारिक सत्य/जगतसत्य को व्यक्तिगत रूप में पहले पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम सुन्दरम और फिर पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/ सत्यम शिवम सुन्दरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते बनने को मजबूर कर दिया आपने अर्थात सनातन धर्म/ मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म की सीमा के अन्दर रहते हुए ही मुझे एक मुसल्लम ईमान बना ही दिया आपनें तो आपका धर्म ही मुसल्लम ईमान/मुसलमान है तो आप भी पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते बन जाइये|====आप की वहज से ही मुझे सार्वजनिक रूप स्वीकारना पड़ा कि मूल सारंगधर श्रीधर:विष्णु थे/हैं और मूल सारंगधर (श्रीधर:विष्णु) की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था में विगत दो दसक तक मैं ही था और आज भी समयानुकूल मैं ही हूँ| और यह कि मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सांगत देवियों समेत मूल सारंगधर के पांच के पाँचों आयाम का आविर्भाव होता है अर्थात सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और जिसमें मुख्य आयाम राम ही हैं| इस प्रकार मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| <<<<====>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर की मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=====>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == निम्न सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है| -----वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु की अवस्था स्वयम वैश्विक विष्णु के मात्र दो स्वरूप/अवतार को प्राप्त होती है जिसमें प्रथम हैं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण अर्थात सनातन कृष्ण और दूसरे हैं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अर्थात सनातन राम| इस प्रकार विष्णु के सशरीर परमब्रह्म स्वरूप की एकल असीमित ऊर्जा से ही सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार विष्णु की इसी अवस्था/स्वरूप से जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (जगदम्बा:दुर्गा--महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) -- व-- उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (जगत जननी जानकी--महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है--- और फिर इस प्रकार--- जगत जननी जानकी की छाया रूपी श्रृष्टि (श्रृष्टि--त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिनसे की समस्त मानव समष्टि का प्रादुर्भाव होता है| ===इस सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है| ===दो दशक (25 मई, 1998/12 मई, 1997 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए मैंने सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है और इस प्रकार सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार किये एक सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) का आचरण को समाज के सन्मुख प्रस्तुत करते हुए पहले ईसाइयत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (29 मई, 2006) और फिर 12 वर्ष बाद इस्लामियत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात क्रमसः दोनों के सामानांतर चलते हुए क्रमिक रूप से पूर्णातिपूर्ण सफलता अर्जित किया| और इसीलिये कहता हूँ की ईसाईयत कृष्ण के समानान्तर और इस्लामियत राम के सामानांतर चलता है और इस प्रयागराज (काशी) में दोनों मेरे सामानांतर चले और मैंने अपना अभीष्ट लक्ष्य उसके बाद भी प्राप्त किया| 》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ===== मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|==========इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए|=======यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए|==== = मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ======>>>मैंने कहा है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है|=====मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| = किसी भी सांसारिक घटना या पारिवारिक, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय या अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर किसी प्रकार की राजनीति या कुचक्र या सम्पूर्ण जनमानस द्वारा मेरा घेराव किये जाने से यह अटल सत्य मेरे द्वारा बदला नहीं जा सकता है क्योंकि यह सब पहले भी हो चुका है जब मै अनुभवहीन था और उसपर भी अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया था तो आज अभीष्ट लक्ष्य भी प्राप्त कर चुका हूँ और अनुभव भी है व्यावहारिक और तथ्यगत दोनों:---25 अप्रैल, 2022 का लेख और तथ्य:--->>मै गुरुदेव (जोशी: तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा) के सत्ता के 2004 में चले जाने के उस दौर का भी इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में मैं साक्षी हूँ जिस दौर में मुझे अपने प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु (वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव(प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) तथा वैश्विक विष्णु (श्रीधर) द्वारा पूरित किये जाने वाले अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु) सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सक्रीय अवस्था में 29 (15-29) मई, 2006 को आना पड़ा था (बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति::67/11::67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) और इस प्रकार वैश्विक ईसाइयत शक्ति को नत मस्तक किया था (जिनका सर्वोच्च आदर्श प्रामाणिक रूप से पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि हैं) और जिसके आगे सीधे तौर वैश्विक इस्लामिक प्रेरित शक्तियों से 12 वर्ष संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई तो यह विचार का विषय है की स्वयं सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य को स्वयं पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते के रूप में प्रमाणित किया की नहीं यह इस्लामिक सर्वोच्च आदर्श (प्रामाणिक रूप से मुसल्लम ईमान) अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते का पूर्णः पालन करने वाले जाने (जो की 2019 /2020 में प्रमाणित भी कर चुके हैं पर हर समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो नहीं माने हैं तो हर समाज के ऐसे उद्दण्ड़ प्रवृत्ति के लोगों का उपचार जरूरी होता है और वे अवश्य हे दण्ड के भागीदार होंगे)|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से इस संसार के प्रथम नागरिक आदि शिव का काशी में आविर्भाव हुआ जो केदारेश्वर कहलाये (विशाल जल प्लावन के बीच से काशी की धरा को लिए हुए कीचड़ से सने हुए अवस्था में जल सतह से ऊपर निकलने के कारण इन्हें केदारेश्वर कहा गया)| शिव के अनेकानेक स्वरूप व नाम है पर सभी के आधार यही केदारेश्वर ही है और इस प्रकार विष्णु स्वयम शिव के मूल ऊर्जा स्रोत है| और विष्णु स्वयम शिव के बाद अवतरित होते हैं अर्थात विष्णु स्वयम शिव को इस संसार में भेजने के बाद ही अवतरित होते हैं| == अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ==धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | == = और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| ==मूल सारंगधर के मूल स्वरुप अर्थात परमब्रह्म विष्णु के पाँच के पाँचों मूल आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक आयाम भी नहीं छूटा है) का मूल स्वरुप उत्तर प्रदेश की सीमा के अन्तर्गत ही विद्यमान हैं: दो दसक तक इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहने वाला ही 11 सितम्बर, 2001 का अंतर्राष्ट्रीय शिव, 7 फरवरी, 2003 का अंतर्राष्ट्रीय विष्णु, 29 (15-29) का अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा और इस प्रकार परमब्रह्म विष्णु अवस्था से बाहर आया हुआ अन्तर्राष्ट्रीय परमब्रह्म कृष्ण है जिसने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना अपने तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना किया और इस प्रकार 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अंतर्राष्ट्रीय परमब्रह्म राम स्वरुप को भी प्राप्त किया|==== और यह ही 9 नवम्बर, 2019 (30 सितम्बर, 2010) और इस प्रकार 5 अगस्त, 2020 को प्रमाणित हुआ है| == सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना उसके ही द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | == इस संसार में दो सत्य हैं एक जन्म और दूसरी मृत्यु लेकिन इन दोनों के बीच में जो कुछ है वह है जीवन, तो हम सब का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन चमत्कारिक व व्यावहारिक लगे यह तो सब चाहते हैं पर इसके लिए भी एक शर्त है की हम सबका------ जीवन कितना चमत्कारिक व व्यावहारिक लगे उसकी सीमा इस जीवन को चलाने वाले और इस जीवन को जीने वालों की सहनशीलता और गुणवत्ता तथा संस्कृति और संस्कार पर निर्भर करता है और इस पर भी की हम अपने ऐसे कर्मों से आने वाली पीढ़ियों के जीवन को कितने वर्षों तक चमत्कारिक जीने योग्य छोड़ रहे हैं या सम्पूर्ण समाज की क्षमता का अधिकतम उपयोग वर्तमान कुछ समय में ही कर उसे खोखला बना दे रहे हैं| समाज के हर व्यक्ति का भी दायित्व है की वो भी पूरा बोझ समाज को चलाने वालों पर ही नहीं छोड़ दे|====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): गुजरे हुए अद्वितीय दो दसक का ज़माना जिसने विश्व-एक गाँव व्यवस्था(/तंत्र) की स्थापना किया और जिसमे अद्वितीय कार्य हुए हैं और यह ज़माना कभी वापस नहीं आना है लेकिन यह दो दसक हमें गौरवान्वित करने वाला होने की वजह से इसे सदैव यादकर हमें भविष्य के लिए उसको अपना ऊर्जा श्रोत बनाए रखना श्रेष्कर है: मैंने अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा, अंतरार्ष्ट्रीय विष्णु और अंतर्राष्ट्रीय शिव किसी के साथ अन्याय नहीं किया है:==मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों मूल पात्र/आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा था:---प्रतिरूप तो अनेकों हो सकते हैं पर राम अर्थात विष्णुकान्त (/विष्णु:30 सितम्बर, 2010 अर्थात 9 नवम्बर, 2019) और कृष्ण अर्थात कृष्णकान्त(/ब्रह्मा:28 अगस्त, 2013 अर्थात 16 नवम्बर, 2014) मुझ कश्यप के पास हैं और जगदम्बा की पहचान कहे जाने वाले शिव (2008/2009) स्वयं जानकी के पास हैं;==अन्यथा==यह मान लीजिये की राम 2019 में अयोध्या गए और कृष्ण 2014 में मथुरा-वृन्दाबन गए तथा धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की मेरे द्वारा पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर दिए जाने के साथ शिव 11 सितम्बर, 2008 को काशी गए और विष्णु तथा ब्रह्मा मेरे/आपके साथ इस प्रयागराज (10 सितम्बर, 2008 से) में हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में विष्णुकान्त स्वयं विष्णु की भूमिका में और कृष्णकान्त स्वयं ब्रह्मा की भूमिका में होंगे| 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = ""दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है"" और यह भी की विगत दो दसक में मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम में से कोई आयाम नहीं छूटा है| 11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और 29 (15-29) मई, 2006 को इस प्रयागराज (/काशी) में समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित मै ही किया गया था/हुआ था (29 (15-29) मई, 2006):जो प्रमाणित करता है की मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ था जिसके सामाजिक आविर्भाव से त्रिदेव-त्रिदेवी समेत समस्त देवी देवताओं और इस प्रकार समस्त विश्व मानवता का आविर्भाव होता है| सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|- = आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:= विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है||NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||=जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? = गुजरे हुए अद्वितीय दो दसक का ज़माना जिसने विश्व-एक गाँव व्यवस्था(/तंत्र) की स्थापना किया और जिसमे अद्वितीय कार्य हुए हैं और यह ज़माना कभी वापस नहीं आना है लेकिन यह दो दसक हमें गौरवान्वित करने वाला होने की वजह से इसे सदैव यादकर हमें भविष्य के लिए उसको अपना ऊर्जा श्रोत बनाए रखना श्रेष्कर है: 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): मैंने अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा, अंतरार्ष्ट्रीय विष्णु और अंतर्राष्ट्रीय शिव किसी के साथ अन्याय नहीं किया है: ==मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों मूल पात्र/आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा था:---प्रतिरूप तो अनेकों हो सकते हैं पर राम अर्थात विष्णुकान्त (/विष्णु:30 सितम्बर, 2010 अर्थात 9 नवम्बर, 2019) और कृष्ण अर्थात कृष्णकान्त(/ब्रह्मा:28 अगस्त, 2013 अर्थात 16 नवम्बर, 2014) मुझ कश्यप के पास हैं और जगदम्बा की पहचान कहे जाने वाले शिव (2008/2009) स्वयं जानकी के पास हैं;==अन्यथा==यह मान लीजिये की राम 2019 में अयोध्या गए और कृष्ण 2014 में मथुरा-वृन्दाबन गए तथा धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की मेरे द्वारा पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर दिए जाने के साथ शिव 11 सितम्बर, 2008 को काशी गए और विष्णु तथा ब्रह्मा मेरे/आपके साथ इस प्रयागराज (10 सितम्बर, 2008 से) में हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में विष्णुकान्त स्वयं विष्णु की भूमिका में और कृष्णकान्त स्वयं ब्रह्मा की भूमिका में होंगे| 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = === इस विश्व मानवता के मूल /जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में शिव (11 सितम्बर, 2001) को परमब्रम्ह अवस्था वाले विष्णु (ब्रह्मा समेत शिव से संयुक्त विष्णु की अवस्था) अर्थात महाशिव/सदाशिव (7 फरवरी, 2003) और फिर उससे बाहर आ सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (29(/15-29) मई, 2006) से 12 वर्ष और लेते हुए सशरीर परमब्रह्म राम तक के सफर (25 मई, 2018)/31 जुलाई, 2018) में यही ज्ञात हुआ की राम (25 मई, 2018)/31 जुलाई, 2018) ही शिव (11 सितम्बर, 2001) थे, महाशिव/सदाशिव अर्थात परमब्रम्ह अवस्था वाले विष्णु (ब्रह्मा समेत शिव से संयुक्त विष्णु की अवस्था) थे और इस प्रकार राम ही कृष्ण, शिव, विष्णु, और ब्रह्मा थे| और इस प्रकार इस विश्व मानवता के मूल /जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है| =====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ==== माता-पिता, ऋषि (/गुरुजन) और देवजन जब आसुरी छाया के प्रकोप का शिकार हो अपने ही अस्तित्व को मिटाने पर तुल जाय तो उसके लिए कोई बचाव का रास्ता अपनाते हुए उनको आसुरी शक्तियों से निजात दिलाना ही एक मात्र शिवत्व को प्रमाणिक व संरक्षित करने का रास्ता है| शिव को ही कमजोर करने या उनका ही अस्तित्व मिटाने से समाज में शिवत्व कहाँ रह जाता| ===== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः--गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर के पाँचो आयाम में मुख्य आयाम राम ही हैं|===<<<इसके पीछे एक छोटा सा परिचय जो इस सबके बीज में था>>===निवाजी बाबा(बिशुनपुर-223103) और सारंगधरबाबा (रामापुर-223225) दोनों ने जीते जी जमीन के अंदर समाधि ली अर्थात जीते जी जमीन के अन्दर ब्रह्मलीन हुए थे====जौनपुर/जमदग्निपुर (भृगु पौत्र परशुराम के पिता जमदग्नि की नगरी) के एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय ने गोरक्षपुर/गोरखपुर से आये व्याशी-गौतम गोत्रीय मिश्रा ब्राह्मण श्रध्देय निवाजी बाबा को 300 बीघा की उच्च गुणवत्ता युक्त जमीन वाले गाँव बिशुनपुर (ननिहाल के गाँव) को दान में दिया था और इसी निवाजी बाबा के वंसज रामानन्द कुल है===और आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़ के एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय ने बस्ती (अवध क्षेत्र) से आये त्रिफला-कश्यप गोत्रीय पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर को मूल गाँव ओरिल समेत पांच गाँव (रामापुर, बाग़ बहार,लग्गूपुर, गुमकोठी, औराडार) को दान में दिया था जिसमें से उच्च गुणवत्ता युक्त जमीन का 500 बीघे का मेरा पैतृक गाँव, रामापुर है|====बिशुनपुर(223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:शशांकधर: राकेशधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती------->>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /महाशिव (शिव व् शिवा:सती:गौरी की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम(/कृष्ण)::Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ======= अकबर का संदेह दूर करने हेतु बीरबल से खिचड़ी न पकवाइये अब मान लीजिये की ""दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है"" और यह भी की विगत दो दसक में मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं:राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है| 11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और 29 (15-29) मई, 2006 को इस प्रयागराज (/काशी) में समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित मै ही किया गया था/हुआ था (29 (15-29) मई, 2006):जो प्रमाणित करता है की मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ था जिसके सामाजिक आविर्भाव से त्रिदेव-त्रिदेवी समेत समस्त देवी देवताओं और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा, जगत जननी जानकी व्स जानकी की छाया रूपी सृष्टि और इस प्रकार समस्त विश्व मानवता का आविर्भाव होता है| == दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है:=====आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:= विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर=>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है||NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| == मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार || जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ==== हे राम, हे राम, जग में साचे तेरो नाम । हे राम.. तू ही माता, तू ही पिता है तू ही तू हे राधा का श्याम हे राम.. तू अर्न्तायामी, सबका स्वमी तेरो चरणों में चारो धाम हे राम. तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे इस जग के सारे काम हे राम.. तू ही जग दाता, विश्व विधाता तू ही सुबह, तू ही शाम हे राम.. == विश्वामित्र/विश्वरथ (कौशिक) द्वारा रचित (सिद्ध किया हुआ) गायत्री मन्त्र सूर्य (/सविता) की समस्त शक्तियों के आह्वान का मन्त्र है और इस ब्रह्माण्ड के समस्त सूर्य के ऊर्जा का स्रोत सविता (/सावित्री) हैं जो स्वयं परमब्रह्म में समाहित शक्ति हैं; यही है सूर्य और सविता (/सावित्री) का सम्बन्ध और फिर उनसे परमब्रह्म का सम्बन्ध| ========================= पूरी विश्व मानवता गलतफहमी में न रहे और विदित हो की 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बीच वर्तमान युग में विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) की वैश्विक स्तर पर सार्वभौमिक सत्ता का विधिवत प्रतिपादन/प्रमाणीकरण हुआ है न की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को प्रयागराज (/काशी) की ऊर्जा का समापन और अन्त हो गया, तो आज भी और आगे कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्वमानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत संचालन का मूल स्रोत यह ही रहेगा| =====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = जिसके समानान्तर चलते हुए सम्पूर्ण ईसाई समाज 29 (15-29) मई, 2006 आते आते में नतमस्तक हो चुका था (बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति::67/11::67 पारिवारिक सदस्य/11 परिवार) अर्थात उसको एक पूर्णातिपूर्ण हिन्दू रहते ही अपने सर्वोच्च माप दण्ड के मानक, सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (जिसके स्वयं नीचे की जमीन न बची हो ऐसा त्याग और बलिदान जिसपर भी वह सर्व समर्थ हो) मान चुका था अर्थात कृष्ण मान चुका था (जिसके स्वयं नीचे की जमीन न बची हो ऐसा त्याग और बलिदान जिसपर भी वह सर्व समर्थ हो) तो उन्हीं ईसाई विद्वतजन द्वारा स्थापित विश्विद्यालय में ही ऐसे ही कृष्ण (और राम) के पारस्परिक आराध्य आदिशिव/त्रिदेवों में आदिदेव के आदिस्वरूप केदारेश्वर के नाम से स्थापित केंद्र को केदारेश्वर के परजीवी रावणकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) के नाम से नामित केंद्र के बहाने संस्थागत के साथ सार्वजनिक मान्यता कब तक नहीं दिया जाता? मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण और केदारेश्वर/आदिशिव कभी जुड़वा हो सकते हैं क्या की उनको बराबरी के तराजू पर टोला जाए वह भी बिना किसी त्याग और बलिदान के उनके बराबर का दर्जा किसी को दे दिया जाए| जैसी रावणकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) वालों की करनी रही वैसी ही उनकी भरनी रही तो ऐसे में सत्कर्मों की भी बराबरी होनी चाहिए अर्थात त्याग, बलिदान, तप/योग/यत्न/उद्यम जैसे अंगों भी बराबरी पहले की जानी चाहिए न की 20 वर्ष टांग खिचाई करने वाले को बराबरी का दर्जा दे दिया जाए (रावणकुल प्रवृत्ति ही ऐसी है) | तो इस प्रकार आगे 12 वर्ष और संघर्ष करते हुए इस्लाम के समानांतर चलते हुए वह मौक़ा आना ही था तो 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को आ गया जब तीनों मानक ऋण पूर्ण करने के बाद बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर इस्लाम के सर्वोच्च मानक सर्वोच्च सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/ परमसत्य/सत्यमेव जयते अवस्था को प्राप्त हुआ और इस प्रकार स्वयं को सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में स्थापित करते हुए केदारेश्वर/आदिशिव (11 सितम्बर, 2001) अर्थात पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम को स्वयं प्रमाणित किया इस प्रकार स्वयं सशरीर परमब्रह्म राम होकर अपने शिव स्वरुप को प्रमाणित करना पड़ा अर्थात मूल सारंगधर के मूल स्वरुप के मुख्य आयाम ने दूसरे आयाम को प्रमाणित किया| ====== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)=>तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर शिव और ब्रह्मा दोनों की शक्ति को अपने में समाहित करते हुए महामंगल कहे जाने वाले विष्णु के महामंगल कार्यहेतु उनके परमब्रह स्वरुप में 7 फरवरी, 2003 आना पड़ा और ऐसे अनुष्ठान के अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति 29 (/15-29) मई, 2006 को ऐसे समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के सामाजिक स्वरुप, सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप आने से हुई|=== 11 सितम्बर, 2001 से 7 फरवरी, 2003 आते आते मैं ही था जिसने तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) और वैश्विक शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के मानवता हित के अनुष्ठान के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 11 सितम्बर, 2001 को एक बार समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित हो वैश्विक रूप से समुचित परिणाम देते हुए भी प्रयागराज (/काशी) में स्वयं अपने प्रतिकूल परिस्थिति में रहकर भी ऐसी ही स्थान पर पुनः समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित होने से मना कर दिया था: 11 सितम्बर, 2001 ( मै ही वह समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित शिव था) जिसे समयानुकूल दायित्व निभाने के बाद वैश्विक परिवर्तन को देखते हुए तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) और वैश्विक शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के मानवता हित के अनुष्ठान के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर शिव और ब्रह्मा दोनों की शक्ति को अपने में समाहित करते हुए महामंगल कहे जाने वाले विष्णु के महामंगल कार्यहेतु उनके परमब्रह स्वरुप में 7 फरवरी, 2003 आना पड़ा और ऐसे अनुष्ठान के अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति 29 (/15-29) मई, 2006 को ऐसे समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप के सामाजिक स्वरुप, सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप आने से हुई| === 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)=>=मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| = 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|========मुझे पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| | तो इस प्रकार हर कोई अपने कर्मों और प्रारब्ध कर्मों के परिणाम को भुगतेगा| =====इस विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहते हुए परोक्ष रूप से मानवताहित व प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत अभीष्ट हित हेतु त्रिस्तरीय पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण (/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता) (11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003/29(15-29) मई, 2006) मेरा ही हुआ था और इसमें पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद भी संघर्ष 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति चला| -===विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)=>भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु (शताब्दी वर्ष: 2007-2009): भाई मैं वहाँ शिव व कृष्ण स्वरुप में था; राम स्वरुप में तब तक नहीं आया था; राम स्वरुप में तो प्रयागराज (/काशी) में लौटने पर ही आया (जिसमें 29 (15-29) मई, 2006 से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था प्रयागराज (/काशी) से जारी थी)>>--->>सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए बिना ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला) धर्म स्वीकार किये हुए एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) किसी को बनना ही पड़ता है हर युग में तो फिर 11 सितम्बर, 2001 फिर 7 फरवरी, 2003 और पुनः 29 (15-29) मई 2006 को जो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो और ईसाइयत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए अपने को सर्वोच्च ईसाई (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अपना लक्ष्य हांसिल करने वाला और आगे भी 12 वर्ष तक इस्लामियत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अपने को सर्वोच्च मुसल्लम ईमान(पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/पूर्णातिपूर्ण ईमान वाला) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म राम होते हुए अपना लक्ष्य इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से प्राप्त करने वाला ही बन लिया| ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण)//सामानान्तर कृष्ण और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला)//सामानान्तर राम| === मूल सारन्गधर अर्थात विष्णु और मूल सारन्गधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिससे महाशिव/सदाशिव/पुराण पुरूष/सनातन आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहते है से ही सांगत देवियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तदनुसार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी की सम्मिलित शक्ति) आविर्भाव होता है जिससे उनकी छाया रूपी सॄष्टि (एकल स्वरूप में महासरस्वती, महालक्ष्मीऔर महागौरी की सम्मिलित शक्ति) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का प्रादुर्भाव होता है| = इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में किसी के राम (सशरीर परमब्रह्म राम अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) होने का परीक्षण (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तो अन्तिम था उसके पूर्व 11 सितम्बर, 2001 को शिव, 7 फरवरी, 2003 को विष्णु, 29(/15-29) मई, 2006 के बीच ब्रह्मा और कृष्ण (सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) होने का परीक्षण हो चुका था जिसकी परिणति थी 11/10 सितम्बर, 2008 को इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत व परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ ही साथ धर्म चक्र/काल चक्र/ समय चक्र/ कथित रूप से अशोक चक्र की स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सहस्राब्दियों तक क्रियाशील रहने हेतु पुनर्स्थापना|》==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = हे जगदम्बा जिस जानकी ने आप और आपकी पहचान को मिटने से बचाया है उस जानकी और स्वयम आपकी अपनी पहचान को आपको कभी नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सॄष्टि के संचालन का मूल मंत्र है| तो आप सब को विदित हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव होते है और वे स्वयम जगत जननी जानकी के पास है| = जिसने अंतर्मन से मुझे चाहा और मुझसे मेरा जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार ईश्वरीय (भौतिकता विहीन) प्रक्रिया से किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर किसी के द्वारा इसमें भी उसको दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?=====यह कथन तो विष्णु के परमब्रह्म अवस्था को धारण किये हुए तत्कालीन अवस्था के लिए है जो पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सहित सम्पूर्ण विश्व-मानवता की ऊर्जा धारण किये हुए था (जो की विष्णु के अलावा हर एक देव के लिए भी दुर्लभ है) तो आम जन का इसमें कोई प्रसंग कहाँ?===== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ======== इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में किसी के राम (सशरीर परमब्रह्म राम अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) होने का परीक्षण (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तो अन्तिम था उसके पूर्व 11 सितम्बर, 2001 को शिव, 7 फरवरी, 2003 को विष्णु, 29(/15-29) मई, 2006 के बीच ब्रह्मा और कृष्ण (सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) होने का परीक्षण हो चुका था जिसकी परिणति थी 11/10 सितम्बर, 2008 को इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत व परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ ही साथ धर्म चक्र/काल चक्र/ समय चक्र/ कथित रूप से अशोक चक्र की स्थानीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सहस्राब्दियों तक क्रियाशील रहने हेतु पुनर्स्थापना|》》》====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == भस्मासुर का काल जब सिर पर चढ़कर बोलता है तो वह पार्वती जी को अपना शिकार बनाने लगता है और जब रावण का काल सिर चढ़कर बोलता है तो वह जानकी जी को अपना शिकार बनाने लगता है:--------11/10 सितम्बर, 2008 से ही विश्व-मानवता का केंद्र दक्षिण से शिफ्ट होकर प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से उत्तर हो चुका है (और अब सहस्राब्दियों तक उत्तर ही रहेगा) जो परोक्ष (जबकी सच्चे सन्दर्भ में तब भी उत्तर ही केंद्र था पर प्रतीत दक्षिण में होता रहा) रूप से 11/10 सितम्बर, 2008 के पहले तक दक्षिण ही दिखाई देता था (अनाधिकार की चेष्टा नहीं करनी चाहिए):==अर्थात पूर्ण सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य को प्रतिष्ठित पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते ने किया--==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 11/10 सितम्बर, 2008 का दौर अर्थात सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन के दौर का अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के 52 में से 50 लोग पूरे दो वर्ष के प्रत्यक्ष पूर्ण सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य के साक्षी नहीं हो सके और जिसका परिणाम था की ब्रह्मा समेत शिव को मेरे विष्णु स्वरुप में समाहित हो जाना पड़ा जो आगे चलकर ऐसे परमब्रह्म विष्णु के परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आ 29 (15-29) मई, 2006 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अपने पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण (/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता के अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया और फिर इसी विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप अर्थात परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप द्वारा ही 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् वैश्विक स्तरीय पुनर्प्राणप्रतिष्ठा की गयी और इस प्रकार शिव अपने परिवार सहित काशी में पुनर्प्रतिष्ठित किये गए और विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज में पुनर्प्रतिष्ठित किये गए परिणाम स्वरुप प्रयागराज (/काशी) में असीमित ऊर्जा का संचार हुआ तथा क्रमिक रूप से जिसकी परिणति आज आपको दिखाई दे रही रही और आगे सहस्राब्दियों तक दिखाई देगी| और इसी का ही परिणाम था सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन के संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल में 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| अर्थात पूर्ण सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य को प्रतिष्ठित पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते ने किया| = भारतीय मानवीय संसाधन की हालत:===अंतराष्ट्रीय स्तर पर तीस वर्ष तक हीरे की लूट रही और अब कोयले की रखवाली हो ऐसे बन्द सन्दूक व्यवस्था वाले राष्ट्रवाद से भी जहाँ तक हो सके बचना ही चाहिए और व्यापक सन्दर्भ में ही राष्ट्रवाद को देखने की व्यवस्था जारी रखनी चाहिए; क्योंकि जिस हीरे की लूट तीस वर्ष से हुई है वह भी हमारा (हम भारतीयों जैसे ऐसे महत्वपूर्ण स्रोत का) प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सम्बल और पहचान है| और इस ज्ञात तीस वर्ष के आधार पर सहस्राब्दियों पहले तक की ऐसी व्यवस्था श्रृंखला के बारे में आप विचार कर सकते हैं| और कवि की इन पक्तियों पर भी ध्यान दीजिये:----चरन धरत चिंता करत, चितवत चारों ओर। सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।। = देवियाँ सब कुछ बन सकती हैं पर यह स्वाभाविक व प्रामाणिक सत्य है की वे सशरीर परमब्रह्म स्वरुप जैसे एकल अवस्था में नहीं आ सकती हैं जो की देवों के लिए भी दुर्लभ है जिसपर की विष्णु का एकमेव अधिकार व् स्वयं निहित पात्रता है:-----सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेवी और त्रिदेव दोनों पक्षों इस प्रकार समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है:----देवियाँ जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (जिनके 9 स्वरूपों में एक स्वरुप हैं चामुंडा महाकाली /देवकाली) बन सकती हैं; उनकी की सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी बन सकती हैं; उनकी छाया रूपी सृष्टि बन सकती हैं जिनसे कि समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है पर सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में नहीं आ सकती हैं तो इसका कारन है की सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेवी और त्रिदेव दोनों पक्षों का आविर्भाव होता है इस प्रकार सांगत देवियों समेत मूल सारंगधर के पांच के पाँचों पात्रों/आयामों (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम,कृष्ण, शिव, विष्णु ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है तदनुसार समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव होता है| = अरब देश समेत पञ्च सर्वोच्च शक्तियों को ज्ञात हो कि मैं (सारंगधर स्वरुप) विश्व-मानवता के इतिहास का पाँच के पाँचों मूल पात्र (सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) था और हूँ (पर केवल किसी एक का सानिध्य मात्र पाकर आपको मद था और आज भी रह-रह मद हो जाता है) : ---दो दसक ''25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)'' के दौरान कोई एक निकाय के रूप में विश्व-व्यापक शिव था/है, विश्व-व्यापक विष्णु था/है, विश्व-व्यापक ब्रह्मा था/है तो इन सबका प्रामाणिक अस्तित्व तथा स्वयं विश्व-व्यापक राम और विश्वव्यापक कृष्ण की प्रामाणिक उत्पत्ति और अस्तित्व स्वयं मेरे इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन/संकल्पित होने की परिणति से रही है अर्थात सशरीर परमब्रह्म अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप अर्थात सदाशिव/महाशिव (जगत आधार और सम्पूर्ण विश्वमानवता का एकल ऊर्जा स्रोत) स्वरुप में बने रहने की परिणति से रही है और विश्व-मानवता के इतिहास के ऐसे अद्वितीय दो दसक बाद आज भी वैश्विक व्यवस्था स्थापित होने के बाद भी आवश्यकता अनुरूप मेरी ऐसे ही अवस्था है जो की पांचों मूल पात्रों में मानवता के प्रति उनके दायित्व की कमी को पूर्ण कर रहा है तो आज भी गलती हो रही है और आगे भी होगी किन्तु गलती कम से कम हो की यह विश्व-मानवता की नीव कम से कम एक सहस्राब्दी तक कमजोर न हो| ==== अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| == 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): मैंने अंतर्राष्ट्रीय ब्रह्मा, अंतरार्ष्ट्रीय विष्णु और अंतर्राष्ट्रीय शिव किसी के साथ अन्याय नहीं किया है: ==मूल सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्र/आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा):---प्रतिरूप तो अनेकों हो सकते हैं पर राम अर्थात विष्णुकान्त (/विष्णु:30 सितम्बर, 2010 (/प्रमाणित) अर्थात 9 नवम्बर, 2019 (/पुनः प्रमाणित)) और कृष्ण अर्थात कृष्णकान्त(/ब्रह्मा:28 अगस्त, 2013 अर्थात 16 नवम्बर, 2014(/प्रमाणित 29 मई, 2006) मुझ कश्यप के पास हैं और जगदम्बा की पहचान कहे जाने वाले शिव (2008/2009 (/प्रमाणित 11 सितम्बर, 2008 ) ) स्वयं जानकी के पास हैं; अन्यथा यह मान लीजिये की राम 2009 में अयोध्या गए और कृष्ण 2014 में मथुरा-वृन्दाबन गए तथा धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की मेरे द्वारा पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर दिए जाने के साथ शिव 11 सितम्बर, 2008 को काशी गए और विष्णु तथा ब्रह्मा मेरे/आपके साथ इस प्रयागराज (10 सितम्बर, 2008 से इसी प्रयागराज में ही हैं) में हैं|=>>>>>मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)---राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = व्यवहारिक जीवन में मेरे सभी सम्बन्धी और मेरी सम्पूर्ण स्थाई प्रॉपर्टी (मेरे जीवन के कई पहलू में से मात्र दो पहलू) आपको दिखाई देती है जिन दोनों को कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के तहत मेरे पक्ष-विपक्ष में प्रयोग में लाने से कोई गुरेज नहीं किये; यह तो इसका केवल और केवल सांसारिक पहलू मात्र है लेकिन व्यक्तित्व के रूप में इन सभी से जुड़ा रहकर भी मेरा अपना सबसे अलग स्वरुप है जो स्वयं अपने में अनूठी ईश्वरीय देन है और परिस्थिति और समय की माँग के तहत सबके सामने आया जिस किरदार को मुझे कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975 से 11 नवम्बर, 2057) तक विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहते हुए निभाना है:----विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहते हुए परोक्ष रूप से मानवताहित व प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत अभीष्ट हित मे मेरे त्रिस्तरीय संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता (11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003/29(15-29) मई, 2006) और इसमें पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद भी 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम विधि विधान संविधान के तहत पुनः पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने के दौरान संघर्ष में भी शायद मेरे सभी सम्बन्धी व् स्थाई प्रापर्टी मेरे साथ रहे हैं; तो याद हो की इसके साथ सार्वजनिक प्रोफेसनल जीवन में रहते हुए भी परोक्ष रूप से मानवतागत और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित के सर्वकालिक हित और सत्य के साथ कोई समझौता नहीं किया है तो ====व्यवहारिक जीवन में मेरे सभी सम्बन्धी और मेरी सम्पूर्ण स्थाई प्रॉपर्टी (मेरे जीवन के कई पहलू में से मात्र दो पहलू) आपको दिखाई देती है जिन दोनों को कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के तहत मेरे पक्ष-विपक्ष में प्रयोग में लाने से कोई गुरेज नहीं किये; यह तो इसका केवल और केवल सांसारिक पहलू मात्र है लेकिन व्यक्तित्व के रूप में इन सभी से जुड़ा रहकर भी मेरा अपना सबसे अलग स्वरुप है जो स्वयं अपने में अनूठी ईश्वरीय देन है और परिस्थिति और समय की माँग के तहत सबके सामने आया जिस किरदार को मुझे कम से कम 11 नवम्बर, 2057 (11 नवम्बर, 1975 से 11 नवम्बर, 2057) तक विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहते हुए निभाना है:=====विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहते हुए परोक्ष रूप से मानवताहित व प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत अभीष्ट हित के मेरे त्रिस्तरीय (11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003/29(15-29) मई, 2006) संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता के दो दसक (1998/1997 से 2018) तक मैंने अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति के साथ मूल सारंगधर के पाँच पाँचों के पाँचों मूल पात्रों/आयामों (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) समेत इतिहास के हर विभूति का आचरण करने पर भी हर स्थिति में ब्राह्मणोचित ही क्यों बना रहा? और इस प्रकार बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न); सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है| = आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी| सामाजिक रूप में भी शिव स्वरुप जिनके (ब्रह्मा समेत जिनके) आधार व् ऊर्जा स्रोत विष्णु हैं का परीक्षण 2018/2008(/2009)), कृष्ण स्वरुप जिनके अवलम्बन विष्णु हैं का परीक्षण (2014(/2013)//2006), राम स्वरुप जिनके अवलम्बन विष्णु हैं का परीक्षण (2019/2010) हो चुका और वास्तविक संदर्भ में ये सभी परीक्षण 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक प्राथमिक रूप में हो चुके थे| == 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) में मुझसे कहा गया था कि अब जिस मूल पद पर आप हैं उसके सिवा इस संसार में कोई और पद आपके योग्य नहीं बचा| अब भी कोई मेरी पदोन्नति और पद जानना चाहे तो? दो दसक के बाद भी प्रयागराज (काशी) में अब भी मेरी उपस्थिति बने रहना ही इस संसार में सबसे बड़ा पद और दायित्व है मेरा|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = अगर मैंने विष्णु (श्रीधर) को मूल सारंगधर कहा तो इस विश्व-मानवता में 11 सितम्बर, 2001 के बाद भी जीवित रहने वाले किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार से ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसी मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था में मैं 7 फरवरी, 2003 को आ गया था और आप को विदित हो कि ऐसे ही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल सारंगधर की मूल अवस्था जिसके अवलम्बन मूल सारंगधर अर्थात विष्णु (श्रीधर) करीब दो दशक तक ऐसे ही बने रहें हैं का परिणाम है सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रादुर्भाव इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा, उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी व् उनकी सामाजिक छाया सृष्टि का आविर्भाव और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव| जिसका ही परिणाम है आपका विश्व-स्तरीय शिव मंदिर (2008/2018), विश्व-स्तरीय राम मन्दिर (2019/2010) और विश्व-स्तरीय कृष्ण मंदिर (2014/2013) की स्थापना/पुनर्स्थापना/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा और वर्तमान जागृत भारतीय और विश्वसमाज| NOTE--मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था में मैं 7 फरवरी, 2003 को मैं आ गया था और मार्च 2003 से ब्राह्मण (/सवर्ण) परिवार के इज्जत को बचाने के लिए इनके द्वारा मुझे सदा के लिए चुप हो जाने हेतु और मेरी ऊर्जा शक्ति को रूपांतरित करने हेतु वैदकी विभाग को भेज दिया गया था मन का फितूर पैदा हो जाने का आरोप लगा जबकि आवश्यकता इसकी नहीं थी: आप को विदित हो की जिन लोगों की वजह से ब्राह्मण(/सवर्ण) की लड़की ब्राह्मण(/सवर्ण) के घर की नहीं रही तो उनके और उनके सम्पूर्ण समाज का मात्र 2 वर्ष में अर्थात 2007-2009 के बीच सब कच्चा चिट्ठा इकठ्ठा कर ऐसे लोगों का मान मर्दन कर चुका हूँ, वही रहकर जिनकी वजह से मुझे वैदकी विभाग के हवाले किया गया था प्रयागराज (/काशी) वासियों को मूर्ख बना के| मेरा किसी को दुखी करने और उनकी सामाजिक व्यवस्था का उपहास करने कराने का कोई उद्देश्य नहीं पर इतना है की जीवन के मात्र एक-दो क्षेत्र की मास्टरी करके उद्दंडता नहीं करते हैं|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == यह परमसत्य है की विगत दो दसक के पहले दसक में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय और अंतरार्ष्ट्रीय परिस्थिति के तहत ऐसी स्थिति थी ही:--विश्व-व्यापी शिव और विश्व-व्यापी ब्रह्मा दोनों स्वयं सर्वमङ्गलमय मूल विश्व-व्यापी विष्णु (श्रीधर) में ही समाहित हो विश्व-व्यापी परमब्रह्म विष्णु या विश्व-व्यापी सारंगधर मूल अवस्था में आ जाते है ऐसे वक्तव्य से मैंने विगत दो दसक के पहले दसक और तत्पश्चात के दौर के दसक के अनुभव के आधार पर कहा है इसमें अपने ताऊजी, प्रेमचन्द (विश्व-व्यापक चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) और गुरुदेव जोशी (विश्व-व्यापक-ब्रह्मा) के महत्त्व और क्षमता को कम करके नहीं आका गया है अपितु संस्थागत प्रत्यक्ष और विश्वमानवतागत परोक्ष अभीष्ट लक्ष्य की पूर्ती --(ब्रह्मा के ऐसे प्रयोजन को शिव को पूर्ण करना था जिसके लिए आशीर्वादित विष्णु (श्रीधर) ने किया था और पर परिस्थितियाँ ऐसी आ गयीं की अंतिम जिम्मेदारी सर्वमङ्गलमय मूल विष्णु की ही आ गयी जैसा की हर युग में होता आया है)---हेतु उन तीनों लोगों की तात्कालिक त्रिशक्ति का एकल निकाय इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में स्वयं होकर इस सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा के धारण करने वाला निकाय स्वयं था अर्थात विश्व-व्यापक विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सारंगधर मूल अवस्था/सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी स्वयं रही जिससे स्वयं मूल सारंगधर के इस मानवता के पांच के पाँचों मूल पात्रों का राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है तो दो दसक तक ऐसी अवस्था में रह विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित किये जाने और तत्पश्चात आभासी रूप से राष्ट्रव्यापी व्यवस्था मात्र को 2018 में अंगीकार कर लिए जाने (सर्वकालिक रूप विश्व-मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र बने रहने के तहत आत्मरक्षा हेतु) के दौर का समुचित आंकलन करके उनका वर्णन किया है| = हर स्तर और हर जीवन आयाम का व्यक्ति अपने-अपने तरीके से अपनी समझ और क्षमता अनुसार जीवन और समाज को रोमांचक बनाने में अपने अपने स्तर तक सहयोग करता है:=====हम कैसे कहें की सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन परिवर्तन प्रयागराज (/काशी) की धरा वालों की तरफ से भी प्रायोजित भी न होकर केवल स्वाभाविक मात्र ही था तो सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन की तैयारी पूरे विश्व में थी क्योंकि 2001 से लेकर 2004 तक मात्र यह दो गीत केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर केंद्र में दोपहर में लंच के समय मेरे लिए एक बंधु द्वारा अक्सर बजा दिया जाता था शायद मुझे ब्रह्मलीन/समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ बने रह प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहने हेतु जबकि मैं अपने त्याग और बलिदान के बल पर इन सबसे भी बहुत ऊपर उठ चुका था| वैसे तो मै प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत हित हेतु स्वयं ब्रह्मलीन/समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ अपने को इस विश्न-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 को और 7 फरवरी, 2003 को कर चुका था यह अवश्य था की प्रथमतः ब्रह्मलीन/समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ अवस्था स्वयं तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) सहमति और तत्कालीन शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के आग्रह और फिर दूसरी बार पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ अवस्था तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर था: =====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = अब किसी को मेरी तरह और पिता जी की तरह ऐसे स्तर तक (मेरे और मेरे पिता जी के स्तर तक) विश्व-मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में नहीं आना पडेगा और अर्थात मूल सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (जिसमें मूल पात्र राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) को कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे स्तर तक (मेरे और मेरे पिता जी के स्तर तक) विश्व-मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में नहीं आना पडेगा कम से कम इतना प्रभाव 15 वर्ष तक अनवरत चली मेरी लेखनी और प्रयागराज (/काशी) केंद्रित मेरे 20 वर्ष के प्रवास ने छोड़ा है:=वैसे मेरे जन्म के एक वर्ष बाद अर्थात 1976 से पिता जी की चिकित्सा जारी थी पर हाईस्कूल बाद से लेकर स्नातक तक की शिक्षा के दौरान अपने पिता श्री प्रदीप कुमार पांडेय की चिकित्सा हेतु मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार दूबे के पास जाता था तो जब स्नातक के अंतिम वर्ष को पूर्ण कर लिया था 1997 में तो डॉ. अशोक कुमार दूबे ने कहा था की आपके पिता जी विश्व-मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में है और अब आप अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दीजियेगा तथा अब मेरे पास मत आइयेगा और मेरी यह लिखी हुई दवा उनके जीवन पर्यन्त खिलाते रहिएगा| तो उसके मात्र तीन/चार वर्ष बाद 11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003 से मैं भी विश्व-मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में आ गया| अंतर केवल इतना था की वे (त्रिफला-कश्यप (वशिष्ठ से त्रिफला-कश्यप)) आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) केंद्रित थे और मैं (त्रिफला-कश्यप (व्यासी-गौतम से त्रिफला-कश्यप)) विश्वमानवता मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) केंद्रित हूँ लेकिन==अब किसी को मेरी तरह और पिता जी की तरह ऐसे स्तर तक (मेरे और मेरे पिता जी के स्तर तक) मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में नहीं आना पडेगा और अर्थात मूल सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (जिसमें मूल पात्र राम ही हैं: राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) को कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे स्तर तक (मेरे और मेरे पिता जी के स्तर तक) विश्व-मानवताहित के सर्वाधिक यूज/प्रयोग में नहीं आना पडेगा कम से कम इतना प्रभाव 15 वर्ष तक अनवरत चली मेरी लेखनी और प्रयागराज (/काशी) केंद्रित मेरे 20 वर्ष के प्रवास ने छोड़ा है| आज ऐसी स्थिति में हूँ की जिस दौर को पार किया था सब समझ है पर दुनिया चलती रहती है तो व्यावहारिक आदर्श जीवन के साथ जिए जा रहा हूँ उसका कोई अनावश्यक लाभ ले या अनावश्यक परीक्षण जारी रखे तो जारी रखे क्योंकि भुगतान उसी को करना पडेगा इससे मैं उसे पूर्णातिपूर्ण आस्वस्त करता हूँ| = बस्ती (अवध) मूल के सारंगधर बाबा (रामापुर-223225) और गोरक्षपुर (गोरखपुर) मूल के निवाजी बाबा (बिशुनपुर-223103) दोनों जीते जी जमीन के अंदर समाधि लिए थे| ===विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में दो दसक (1998/1997 से 2018) तक केंद्रित रहते हुए अपने त्रिस्तरीय (11 सितम्बर, 2001/7 फरवरी, 2003/29(15-29) मई, 2006) संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता के अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति के साथ मूल सारंगधर के पाँच पाँचों के पाँचों मूल पात्रों/आयामों (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) समेत इतिहास के हर विभूति का आचरण करने पर भी हर स्थिति में ब्राह्मणोचित ही क्यों बना रहा? और इस प्रकार बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न); सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है| = बिशुनपुर(223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार से 300 बीघे के एक गाँव बिशुनपुर (विष्णु;मूल सारंगधर के सम्मान में) को दान में पाए सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण निवाजी बाबा के वंशज रामानंद/-/रामप्रसाद/ रमानाथ)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती- और एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार से मूल गाँव ओरिल व अन्य पाँच गाँव (जिसमें रामापुर 500 बीघे का एक गाँव है और अन्य गाँव हैं लग्गूपुर, गुम कोठी, बाग़ बहार तथा औराडार) को दान में पाए हुए सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] के वंशज देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र=>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:-विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| = भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु (शताब्दी वर्ष: 2007-2009): भाई मैं वहाँ शिव व कृष्ण स्वरुप में था; राम स्वरुप में तब तक नहीं आया था; राम स्वरुप में तो प्रयागराज (/काशी) में लौटने पर ही आया (जिसमें 29 (15-29) मई, 2006 से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था प्रयागराज (/काशी) से जारी थी)---पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान मात्र ही पहचान नहीं है मानवता की सेवा करने का और ऐसी स्थिति में आपसे मानवीय जीवन के बहुत सारे आयाम अछूते रह जाते है:---और सुनिए जिस दिन मैं प्रयागराज विश्वविद्यालय में शिक्षक पद को ग्रहण करने आ रहा था विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, दक्षिण के किष्किंधा स्थित मधुबन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान केंद्र के देवताओं का तो नहीं पर केंद्र के समस्त शिक्षकों के साथ ही साथ उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की उम्र में छोटे से लेकर बड़ी हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और ब्राह्मण से लेकर दलित तक सभी देविओं का चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर आया था| == विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, दक्षिण के किष्किंधा स्थित मधुबन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु में भाई स्टूडेंट काउन्सिल का चेयरमैन बन गया और पाताल लोक (तथाकथित आधुनिक सर्वोच्च शक्तिशाली देश) चला गया और वहाँ शिक्षक (+ अनुसंधानकर्ता) बन गया और दो वर्ष पूर्व प्रयागराज में मिलने पर पूंछता है की भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु का अब भी कोई आपका परिचित बचा हैं: भाई मेरे जाने के पूर्व उत्तर से कितने स्टूडेंट काउन्सिल के चेयरमैन बने थे?==मैंने जो किया था -- पहले तो पता हो की मैं वहाँ शताब्दी वर्ष के दौरान गया था (2007-2009)---मैंने जिस अवस्था में तीन दिन पूरे भारतीय विज्ञान संस्थान के हर केंद्र, विभाग और संकाय, अतिथिगृह, व् पुरुष छात्र के सभी छात्रावास का जिस अंदाज में सभी शिक्षक और छात्र-छात्राओं व् शोध व् शोधेत्तर छात्रों व् अन्य कर्मचारियों के सामने शुद्धीकरण किया था शताब्दियों तक के लिए ऊर्जावान करने हेतु वह शायद किसी से संभव नहीं है|--वहाँ पूरे दो वर्ष भागवत ग्रुप और हिंदी समिति में सक्रीय रहा यह तो व्यावहारिक स्वरुप ही था पर---इतना ही नहीं तीन दिन जयप्रकाश नारायण पार्क, मतिकरे से प्रारम्भकर यशवन्तपुर तथा मल्लेश्वरम तक के शायद ही कोई मन्दिर, मस्जिद और चर्च/गिरिजाघर रहा हो जहाँ मैं अंदर तक प्रवेश न किया हूँ| मलिन बस्ती से लेकर सम्भ्रान्त आवासीय क्षेत्र की बस्तियों तक कोई ऐसा आवासीय क्षेत्र ऐसा नहीं रहा जहां का दौरा न किया हों| --यह भी की शनिवार और व् रविवार को अपने वायुमंडलीय व् महासागर विज्ञान केंद्र के एक शिक्षिका समेत सभी शिक्षकों का उन सभी के बन्द चैम्बर से सामने उनको उपस्थित मान उन सभी का सुबह के समय अक्सर शाष्टांग नमन किया करता था|---और सुनिए जिस दिन मैं प्रयागराज विश्वविद्यालय में शिक्षक पद को ग्रहण करने आ रहा था विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, दक्षिण के किष्किंधा स्थित मधुबन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान केंद्र के देवताओं का तो नहीं पर केंद्र के समस्त शिक्षकों के साथ ही साथ उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की उम्र में छोटे से लेकर बड़ी हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और ब्राह्मण से लेकर दलित तक सभी देविओं का चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर आया था| = किसी सामाजिक/संस्थागत/मानवतागत अभीष्ट हित हेतु के मामले को छोड़कर केवल अपने तात्कालिक तुछ्य व्यक्तिगत हित हेतु पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम व् परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण/सत्यमेव जयते को भी नजर अंदाज कर हमें हर किसी को भाई, बहन या सम्बन्धी बनाने और छोड़ने जैसे व्यवहार से बचना चाहिए तथा ऐसे लोगों से सामान्य मानवीय संवेदना व् व्यवहार तक सीमित रहना चाहिए न की उनकी हर नौतिक जिम्मेदारी लेने तक सम्बन्ध आप रखें और इस प्रकार ईश्वर की सत्ता पर भी विश्वास करना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास कर अपनी व्यक्तिगत लड़ाई स्वयं लड़नी चाहिए जिसमे किसी संख्याबल की जरूरत नहीं पड़ती है केवल सत्य से असत्य टकराता है| =====मुझे अपने पिताजी जो गोत्र से त्रिफला-कश्यप (वशिष्ठ से त्रिफला कश्यप) थे और जिनका मेरा सीधा (वन टू वन) सानिध्य प्राथमिक शिक्षा के 4 वर्ष गाँव में रहने के दौरान और उनके इलाज के दौरान व्यक्तिगत रूप से रहा है हाईस्कूल से स्नातक के 7 वर्ष के लगभग 84 दिन (84 माह में हर माह में एक दिन) इलाज के लिए ले जाते वक्त और वैसे भी वे मेरे जन्म के दूसरे वर्ष से मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित किये जाने के बाद से मानसिक चिकित्सा के दौर से गुजरे थे तो उनके संस्कार व आचरण पर इतना विश्वास अवश्य है की उनको मात्र दो भौतिक सन्तान हैं एक मैं और दूसरी मेरी बहन पर अगर किसी भी जाति/धर्म से कोई मेरे साथ भाई-बहन जैसा व्यवहार प्रदर्शित करता है या प्रदर्शित करवाने पर प्रदर्शित कर रहा है तो उसका स्वागत करना और स्वीकार करना मानवता के अन्तर्गत मात्र आता है व् मानवीय आदर्श व्यवहार की तरह आदर्श व्यावहारिक रूप मात्र में ही केवल स्वीकार करने जैसा ही ही है पर मानवता के अभीष्ट हित में पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम व् परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण/सत्यमेव जयते की कसौटी पर कसे जाने पर वास्तविकता के तहत ऐसे सम्बन्ध की जमीनी स्थिति स्पष्ट करना ही उचित है अन्यथा उसका नाजायज लाभ लेने वाले समाज में भ्रान्ति फैला सामाजिक स्वरुप और आप की सामाजिक छवि को हानि पंहुचा सकते है|==== किसी सामाजिक/संस्थागत/मानवतागत अभीष्ट हित हेतु के मामले को छोड़कर केवल अपने तात्कालिक तुछ्य व्यक्तिगत हित हेतु पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम सुंदरम व् परमसत्य/पूर्णातिपूर्ण/सत्यमेव जयते को भी नजर अंदाज कर हमें हर किसी को भाई, बहन या सम्बन्धी बनाने और छोड़ने जैसे व्यवहार से बचना चाहिए तथा ऐसे लोगों से सामान्य मानवीय संवेदना व् व्यवहार तक सीमित रहना चाहिए न की उनकी हर नौतिक जिम्मेदारी लेने तक सम्बन्ध आप रखें और इस प्रकार ईश्वर की सत्ता पर भी विश्वास करना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास कर अपनी व्यक्तिगत लड़ाई स्वयं लड़नी चाहिए जिसमे किसी संख्याबल की जरूरत नहीं पड़ती है केवल सत्य से असत्य टकराता है| = 11 सितम्बर, 2001 को, 7 फरवरी, 2003 और फिर 29 (15-29) मई, 2006 और इसके बाद कम से कम 11/10 सितम्बर, 2008 को मेरा कोई ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ था की सभी से स्वीकार करा लिया होता की मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में मैंने शिव, विष्णु, ब्रह्मा और इस प्रकार अंतिम में सशरीर परमब्रह्म कृष्ण के रूप में अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण प्राप्त कर लिया; तो नहीं माने लोग तो फिर 12 वर्ष के लगातार संघर्ष में मुझे सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था को 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को प्राप्त होना ही पड़ा अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/ परमसत्य/सत्यमेव जयते को प्राप्त होते हुए 11 सितम्बर, 2001 को स्वयं प्रमाणित करना पड़ा अर्थात शिव अर्थात पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम को स्वयं प्रमाणित करना पड़ा| = बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः--गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं| = इस संसार के इतिहास की कौन सी विभूति का आचरण है जो नाभिकीय संलयन विधि से युक्त होकर राम के आचरण में शामिल न हो और समुचित समय आने पर वह प्रदर्शित न हो (मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में से मूल आयाम राम ही हैं)| = अपने वर्तमान कर्म और प्रारब्ध कर्म पर विश्वास है तो इंतज़ार कीजिये की 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रान्तीय व् राष्ट्रिय तथा अंतराष्ट्रीय किसी स्तर तक के लिए आप के व्यक्तिगत, संगठनगत, संस्थागत, समूहगत कार्य के लिए उचित परिणाम देने का दायित्व निभाएगा ही निभाएगा (जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): ==धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|==वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:=आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको| पूर्ण विश्वास था की मेरे परमब्रह्म स्वरुप द्वारा 11/10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज (/काशी) में स्थापित धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठीक से कार्य करेगा तो आज वह ठीक से कार्य कर रहा है और आगे भी कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसे ही कार्य करेगा| == मै गुरुदेव (जोशी: तत्कालीन वैश्विक ब्रह्मा) के सत्ता के 2004 में चले जाने के उस दौर का इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र में भी मैं साक्षी हूँ जिस दौर में मुझे अपने प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु (वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) द्वारा आह्वानित और वैश्विक शिव(प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) तथा वैश्विक विष्णु (श्रीधर) द्वारा पूरित किये जाने वाले अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु) सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की सक्रीय अवस्था में 29 (15-29) मई, 2006 को आना पड़ा था और इस प्रकार वैश्विक ईसाइयत शक्ति को नत मस्तक किया था (जिनका सर्वोच्च आदर्श प्रामाणिक रूप से पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि हैं) और जिसके आगे सीधे तौर वैश्विक इस्लामिक प्रेरित शक्तियों से 12 वर्ष संघर्ष करते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति हुई तो यह विचार का विषय है की स्वयं सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्ण सत्य को स्वयं पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते के रूप में प्रमाणित किया की नहीं यह इस्लामिक सर्वोच्च आदर्श (प्रामाणिक रूप से मुसल्लम ईमान) अर्थात पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/ सत्यमेव जयते का पूर्णः पालन करने वाले जाने(जो की 2019 /2020 में प्रमाणित भी कर चुके हैं पर हर समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जो नहीं माने हैं तो हर समाज के ऐसे उद्दण्ड़ प्रवृत्ति के लोगों का उपचार जरूरी होता है और वे अवश्य हे दण्ड के भागीदार होंगे)|====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ===== विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)=>भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु (शताब्दी वर्ष: 2007-2009): भाई मैं वहाँ शिव व कृष्ण स्वरुप में था; राम स्वरुप में तब तक नहीं आया था; राम स्वरुप में तो प्रयागराज (/काशी) में लौटने पर ही आया (जिसमें 29 (15-29) मई, 2006 से परमब्रह्म कृष्ण अवस्था प्रयागराज (/काशी) से जारी थी)>>>मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--->>सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए बिना ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला) धर्म स्वीकार किये हुए एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) किसी को बनना ही पड़ता है हर युग में तो फिर 11 सितम्बर, 2001 फिर 7 फरवरी, 2003 और पुनः 29 (15-29) मई 2006 को जो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो और ईसाइयत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए अपने को सर्वोच्च ईसाई (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अपना लक्ष्य हांसिल करने वाला और आगे भी 12 वर्ष तक इस्लामियत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अपने को सर्वोच्च मुसल्लम ईमान(पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/पूर्णातिपूर्ण ईमान वाला) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म राम होते हुए अपना लक्ष्य इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से प्राप्त करने वाला ही बन लिया| ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण)//सामानान्तर कृष्ण और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला)//सामानान्तर राम| = 7 फरवरी, 2003 (प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित 7 फरवरी, 2003 को मेरा पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण:-वैसे तो वैश्विक सन्दर्भ में 11 सितम्बर, 2001 को भी मेरा ही पूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण यही हुआ था और आगे जाकर 29(/15-29) मई, 2006 को यही स्वयं निहित किये गए पूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण से पूर्ण लक्ष्य प्राप्ति"" (निर्देश का पूर्णातिपूर्ण पालन करते हुए 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच न कहीं आवेदन किया और न कोई परीक्षा दिया और इस प्रकार अभीष्ट सफलता प्राप्ति के बाद ही 11/18 सितम्बर,2007 ( /10 मार्च, 2007) को पीएचडी उपाधि प्राप्ति से पहले आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट, नैनीताल में वैज्ञानिक "सी" हेतु आवेदन किया तथा इंटरव्यू भी दिया तथा प्रयागराज विश्विद्यालय में शिक्षक पद हेतु आवेदन किया था और 29 अक्टूबर, 2009 को योग्य पाया गया इस बीच 27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009 तक भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजना में प्रोजेक्ट एसोसिएट रहा)"" और इसके आगे पुनः 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक चले संघर्ष से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति हुई|-विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 से 29(15-29) मई, 2006 के बीच माध्यम मैं ही रहा पर इस दौरान अवलम्बन विश्व-व्यापक विष्णु (श्रीधर) रहे हैं और ऐसी अवस्था को पूर्णातिपूर्ण रूप से विष्णु की परमब्रह्म अवस्था कहते हैं जब मैं पक्ष-विपक्ष-निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को धारण किये हुए एक मात्र चलती फिरती काया लिए हुए भी अपने निमित्त उचित सांसारिक दायित्व भी निभा रहा था जिस अवस्था से कोई वापस नहीं आता है अपना कर्तव्य और संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हेतु लक्ष्य प्राप्ति तो दूर की बात होती है और ऐसे समय पर भी मैंने अपने लक्ष्य भेद को प्रामाणिक रूप दिया|=>11 सितम्बर, 2001 से 6 फरवरी, 2003 तक ऐसे काल में विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित 'वैश्विक शिव मै ही रहा जिसे स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक परिवर्तन के बीच अपने अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 7 फरवरी, 2003 से वैश्विक विष्णु और आगे जटिल परिवर्तन के बीच पुनः वैश्विक ब्रह्मा की शक्तियों से सम्पन्न हो 29(15-29) मई, 2006 को वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण स्वरूप अर्थात वैश्विक विष्णु के प्रथम सशरीर परमब्रह्म स्वरूप में आना पड़ा और फिर भी सामाजिक मान्यता न मिलने पर आगे 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को वैश्विक परब्रह्म विष्णु के दूसरे स्वरूप वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम स्वरूप तक आना पड़ा (7 फरवरी, 2003 से 29(15-29) मई, 2006 के बीच माध्यम मैं ही रहा पर इस दौरान अवलम्बन विश्व-व्यापक विष्णु (श्रीधर) रहे हैं और ऐसी अवस्था को पूर्ण परमब्रह्म अवस्था कहते हैं जब मैं एक मात्र चलती फिरती काया लिए हुए भी अपने निमित्त उचित सांसारिक दायित्व भी निभा रहा था जिस अवस्था से कोई वापस नहीं आता है अपना कर्तव्य और संकल्प/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हेतु लक्ष्य प्राप्ति तो दूर की बात होती है और ऐसे समय पर भी मैंने अपने लक्ष्य भेद को प्रामाणिक रूप दिया)|=ॐ 卐 ॐ अद्वितीय दो दशक गुजर जाने के बाद भी प्रॉक्सी वार से व्यवहारिक सत्य को ही जब नहीं मिटाया जा सका तो फिर सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्णसत्य और सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य को कैसे मिटाया जा सकता था? तो फिर सुनिए वैश्विक ब्रह्मा (जोशी), वैश्विक शिव(प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) और वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संस्थागत प्रयोजन अर्थात परोक्ष रूप से सम्पूर्ण मानवता के अभीष्ठ हित हेतु के अभीष्ट प्रयोजन (2001/2000) के लक्ष्य 67(/11) को 29 (/15-29) मई, 2006 को विष्णु के जिस परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तिओं समेत ब्रह्मा, विष्णु, शिव की सम्मिलित शक्ति) स्वरुप में आते हुए कलाम (दक्षिण के कलाम) के मातृ प्रदेश व् पड़ोसी प्रदेश वालों व् उनके समर्थकों व प्रयागराज (/काशी) समेत उनके विश्वव्यापक अभिकर्ताओं के विपरीत जाकर अर्जुन के माध्यम से पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त किया था और इस प्रकार स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व् अन्तर्राष्ट्रीय जटिलतम साजिस को सबसे निर्णायक अवसर पर विफल किया था तो उसी पूर्णातिपूर्ण सफलता, 67(/11) दिवस 29 (15-29) मई, 2006 को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से सामाजिक रूप में विष्णु के दूसरे परमब्रह्म स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को प्रमाणित किया था अर्थात शिव की सत्ता, स्वरुप और संकल्प को प्रमाणित किया था अर्थात सत्यम शिवम् सुंदरम/पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य को स्वयं सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य ने प्रमाणित किया था| = = पुनः दोहराता हूँ की यद्यपि ऋषि सत्ता का ही एक स्वरुप है गुरु की सत्ता तथापि मेरा यह कथन है कि ऋषि सत्ता और राज सत्ता दोनों पर असुर सत्ता का साया बना रहता है और इससे निजात दिलाती है गुरु सत्ता ठीक उसी तरह से शिव सत्ता और ब्रह्मा की सत्ता जब जब असुर सत्ता से घिर जाती है तब तब उससे विष्णु (मूल सारंगधर: त्रिदेवों में भी गुरु ब्रह्मस्पति) सत्ता ही निजात दिलाती है| ===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| = यह संसार यही सुनना चाह रहा था तो सुनिए की मूल सारंगधर (विष्णु) होंगे तो फिर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव सांगत शक्तियों समेत अवश्य होंगे अर्थात यह मानवता अवश्य होगी तो अब जान लीजिये की आप देख श्रीधर (विष्णु) को चैतन्य रूप में देख रहे थे और इस विश्वमानवता मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में उनकी परमब्रह्म अवस्था मैं था अर्थात सारंगधर मूल अवस्था अर्थात एक चलती फिरती हुई काया मात्र जो सम्पूर्ण विश्व मानवता की ऊर्जा को धारण किये हुए था जो अपने निमित्त प्रोफेशनल कार्य भी जारी रखे हुए था (ऐसी अवस्था से बाहर बिना सम्पूर्ण मानवता कल्याण का आस लिए और अभीष्ट लक्ष्य पूर्ण किये कोई बाहर आता है क्या, तो 29 (/15-29) मई, 2006 और आगे 11(/10) सितम्बर, 2008 से इससे बाहर आना प्रारम्भ किया)| आप मेरी सहनशीलता और धैर्य की अनुभूति नहीं कर पाएंगे मुझसे प्रतिद्वंदिता करने की तो दूर की बात अर्थात मेरे बिना अस्तित्व भी स्वयं आप किसी का संभव नहीं| ===अविनाशी तो तीनों (शिव, विष्णु, ब्रह्मा) हैं पर एक अवस्था ऐसी आती है की शिव और ब्रह्मा इसी विष्णु (/श्रीधर) में ही समाहित हो जाते हैं और इसे कहते हैं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सारंगधर मूल अवस्था/सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)===विगत दो दसक के प्रारंभिक दसक में यह अवस्था आ चुकी थी===11 सितम्बर, 2001 को विश्वमानवतागत हित निमित्त मेरे इस विश्वमानवता केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने से लेकर 11 (/10) सितम्बर, 2008 का दौर ( मेरे द्वारा धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/ कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना का दौर)===जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (जिनके 9 स्वरूपों में एक स्वरुप हैं चामुंडा महाकाली /देवकाली) की सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी की छाया रूपी सृष्टि द्वारा सृजन(समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव) जिनकी छाया में होता है वे यही हैं----सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सनातन राम(/कृष्ण) जिनके पाँच के पाँचों आयाम (जिसमे मूल आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से कोई आयाम शेष रहा क्या अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से किसी पात्र का दायित्व शेष रहा क्या? उत्तर है की पाँचों में से कोई आयाम शेष नहीं रहा और इतना ही नहीं विश्व-मानवता के इतिहास की कोई विभूति ऐसी नहीं रही जिसका आचरण शेष रहा अर्थात जिसकी पात्रता को विगत दो दसक में न निभाया गया हो इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में |तो फिर 11 सितम्बर, 2008 से वैश्विक स्तर तक धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र पुनर्प्रतिष्ठित हो चुका है ऐसे में हर किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन, व्यक्ति समूह व् उनके समर्थकों को उनके स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर के अपने हर प्रकार के कार्य का प्रतिफल भोगना ही पडेगा| ==व्यक्तिगत जीवन में राम से शिव(/काशी), शिव से कृष्ण (प्रयागराज:11 अगस्त, 2001, जन्मास्टमी) और आगे इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से विश्व-मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 11 सितम्बर, 2001 से 6 फरवरी, 2003 तक वैश्विक शिव के दायित्व का निर्वहन और उसके बाद वैश्विक परिवर्तन को देखते समकालीन परिस्थिति में वैश्विक शिव शक्ति को अपने अंदर समाहित किये हुए वैश्विक विष्णु (+शिव) तक के दायित्व का निर्वहन और पुनः 29 (/15-29) मई, 2006 को वैश्विक ब्रह्मा की भी शक्ति को भी समाहित करते हुए वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (एकल स्वरुप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप) तक का दायित्व निर्वहन इसी विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (काशी) में किया जिसका परिणाम था 29 (/15-29) मई, 2006 को मिली हुई संस्थागत पूर्णातिपूर्ण सफलता जो प्रतीकात्मक थी विश्व-मानवतागत सफलता के और इसके परिणति के तहत मेरे द्वारा 10 सितम्बर, 2008 को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा को इस प्रयागराज में प्रतिष्ठित किया गया और 11 सितम्बर, 2008 वैश्विक शिव को काशी में पुनर्प्रतिष्ठित किया गया| इस सब के उपरान्त मेरी स्वीकार्यता न किये जाने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट सफलता को प्रमाणित करते हुए वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम की अवस्था को प्राप्त हुआ (एकल स्वरुप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप को प्राप्त हुआ) | ==तो फिर सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (जिसमे मूल आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से कोई आयाम शेष रहा क्या अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से किसी पात्र का दायित्व शेष रहा क्या? उत्तर है की पाँचों में से कोई आयाम शेष नहीं रहा और इतना ही नहीं विश्व-मानवता के इतिहास की कोई विभूति ऐसी नहीं रही जिसका आचरण शेष रहा अर्थात जिसकी पात्रता को विगत दो दसक में न निभाया गया हो इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में | तो फिर 11 सितम्बर, 2008 से वैश्विक स्तर तक धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र पुनर्प्रतिष्ठित हो चुका है ऐसे में हर किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन, व्यक्ति समूह व् उनके समर्थकों को उनके स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर के अपने हर प्रकार के कार्य का प्रतिफल भोगना ही पडेगा|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (जिनके 9 स्वरूपों में एक स्वरुप हैं चामुंडा महाकाली /देवकाली) की सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी की छाया रूपी सृष्टि द्वारा सृजन(समस्त विश्व-मानवता का आविर्भाव) जिनकी छाया में होता है वे यही हैं----सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सनातन राम(/कृष्ण) जिनके पाँच के पाँचों आयाम (जिसमे मूल आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से कोई आयाम शेष रहा क्या अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से किसी पात्र का दायित्व शेष रहा क्या? उत्तर है की पाँचों में से कोई आयाम शेष नहीं रहा और इतना ही नहीं विश्व-मानवता के इतिहास की कोई विभूति ऐसी नहीं रही जिसका आचरण शेष रहा अर्थात जिसकी पात्रता को विगत दो दसक में न निभाया गया हो इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में |तो फिर 11 सितम्बर, 2008 से वैश्विक स्तर तक धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र पुनर्प्रतिष्ठित हो चुका है ऐसे में हर किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन, व्यक्ति समूह व् उनके समर्थकों को उनके स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर के अपने हर प्रकार के कार्य का प्रतिफल भोगना ही पडेगा|=====व्यक्तिगत जीवन में राम से शिव(/काशी), शिव से कृष्ण (प्रयागराज:11 अगस्त, 2001, जन्मास्टमी) और आगे इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से विश्व-मानवतागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 11 सितम्बर, 2001 से 6 फरवरी, 2003 तक वैश्विक शिव के दायित्व का निर्वहन और उसके बाद वैश्विक परिवर्तन को देखते समकालीन परिस्थिति में वैश्विक शिव शक्ति को अपने अंदर समाहित किये हुए वैश्विक विष्णु (+शिव) तक के दायित्व का निर्वहन और पुनः 29 (/15-29) मई, 2006 को वैश्विक ब्रह्मा की भी शक्ति को भी समाहित करते हुए वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (एकल स्वरुप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप) तक का दायित्व निर्वहन इसी विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र प्रयागराज (काशी) में किया जिसका परिणाम था 29 (/15-29) मई, 2006 को मिली हुई संस्थागत पूर्णातिपूर्ण सफलता जो प्रतीकात्मक थी विश्व-मानवतागत सफलता के और इसके परिणति के तहत मेरे द्वारा 10 सितम्बर, 2008 को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा को इस प्रयागराज में प्रतिष्ठित किया गया और 11 सितम्बर, 2008 वैश्विक शिव को काशी में पुनर्प्रतिष्ठित किया गया| इस सब के उपरान्त मेरी स्वीकार्यता न किये जाने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट सफलता को प्रमाणित करते हुए वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम की अवस्था को प्राप्त हुआ (एकल स्वरुप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा अर्थात विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप को प्राप्त हुआ) | ==तो फिर सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के पाँच के पाँचों आयाम (जिसमे मूल आयाम राम ही हैं: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से कोई आयाम शेष रहा क्या अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से किसी पात्र का दायित्व शेष रहा क्या? उत्तर है की पाँचों में से कोई आयाम शेष नहीं रहा और इतना ही नहीं विश्व-मानवता के इतिहास की कोई विभूति ऐसी नहीं रही जिसका आचरण शेष रहा अर्थात जिसकी पात्रता को विगत दो दसक में न निभाया गया हो इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में | तो फिर 11 सितम्बर, 2008 से वैश्विक स्तर तक धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र पुनर्प्रतिष्ठित हो चुका है ऐसे में हर किसी व्यक्ति, संस्था, संगठन, व्यक्ति समूह व् उनके समर्थकों को उनके स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरराष्ट्रीय स्तर के अपने हर प्रकार के कार्य का प्रतिफल भोगना ही पडेगा| == सम्बंधित पक्ष द्वारा जिम्मेदारी निभायी नहीं जा सकी (सवाल उपयुक्त विशिष्ट योग्यता धारण का रहा)==----विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा पुनर्प्रतिष्ठित धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोक चक्र केवल राष्ट्रिय स्तर तक नहीं कार्य कर रहा अपितु स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर पर हर व्यक्ति, व्यक्ति समूह, संगठन, संस्था व् संस्थान को उसके द्वारा किये गए कार्य व् प्रारब्ध (पूर्व कर्म और परिस्थितिजन्य मजबूरी या किसी दबाव में किये गए कर्म) को देखते हुए परिणाम भुगतने को अवश्य देगा और यह परिणाम जाति/पंथ/मजहब/सम्प्रदाय निरपेक्ष है::==5 सितम्बर, 2000 से 11 सितम्बर, 2008 तक शिव काशी में थे क्या? जिसका उत्तर है नहीं अर्थात इतने दिन शिव की उपस्थिति काशी में नहीं रही है बल्कि 5 सितम्बर, 2000 को बोरिया-बिस्तर समेत मेरे काशी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) छोड़ प्रयागराज आते समय ही मुझमें ही समाहित हो लिए थे| 2008 प्रथम अर्ध में धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र टूट जाने के बाद जब इस संसार के सभी मन्दिर/देवालय/देवस्थान निष्प्राण अर्थात तेज विहीन हो चुके थे (सम्बंधित पक्ष द्वारा जिम्मेदारी निभायी नहीं जा सकी::सवाल उपयुक्त विशिष्ट योग्यता धारण का रहा) तो 11 सितम्बर, 2008 को उनकी पुनर्प्राणप्रतिष्ठा मेरे द्वारा की गयी थी (अर्थात विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अपने संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता निमित्त अभीष्ठ लक्ष्य 67 (11) को 29 मई, 2006 को प्राप्त करने के बाद मुझसे ही शिव का पुनरोद्भव/पुनर-आविर्भाव हुआ है)|===हाँलाकि मैं इन विगत दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""" में विश्व मानवता के मूल बिंदु प्रयागराज (/काशी) में बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुरगत रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित, मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के आशीर्वाद से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का अधोलिखित अंतरार्ष्ट्रीय मानक पर निर्वहन विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव अवस्था में आकर मैंने किया है और कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्वमानता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् चालन व् संचालन हेतु इस संसार के समस्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान को ऊर्जा देने वाले आज तक का सबसे भव्य राम, कृष्ण और शिव मन्दिर का निर्माण हो गया (/हो रहा है) तो ऐसे में शिव पर केवल सम्पूर्ण विश्वव्यापी काशी वालों का ही अधिकार वैसे ही है जैसे विष्णु और ब्रह्मा पर सम्पूर्ण विश्वव्यापी प्रयागराज वालों का अधिकार है| स्वयं मै, जो की विगत दो दसक तक पूर्णातिपूर्ण रूप से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का धारक रहा हूँ की इसमें सहर्ष पूर्ण स्वीकृति है, जिसका मूल कारण है की सारंगधर के ये पाँचों स्वरुप अपने में अनन्य हैं| ==== यह अवश्य सत्य है की नारी जगत जननी दुर्गा(नौ दुर्गा के एक स्वरुप में वह चामुण्डा महाकाली) बन सकती है और उनका सामाजिक स्वरुप जगत जननी जानकी बन सकती है पर अवश्य ही वह सशरीर परमब्रह्म(सांगत समेत त्रिदेव की एकल शक्ति) नहीं बन सकती है, पर उसी परम्ब्रह्म के आविर्भवित होने पर हमने त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी, गौरी) दोनों का आविर्भाव होता हुआ पाया है और हमने नारी शक्ति को हमेशा आधा अधिकार दिया है: ==========सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सारंगधर मूल अवस्था) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा ( एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|===============इतना आसान नहीं है किसी पराये और सर्वजन कल्याण हित हेतु निः स्वार्थ अपना मान-सम्मान सहित भौतिक रूप से जीवन, धन-वैभव, सगे-सम्बन्धियों से सम्बन्ध और सभी सम्बंधित वस्तुओं का त्याग और बलिदान कर एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण अर्थात पूर्णातिपूर्ण ईसाई बन पाना और यह भी जीवन में आसान नहीं की अपने भी स्वयं के अस्तित्व को सब प्रकार से मिटाकर पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान अर्थात पूर्णातिपूर्ण इस्लाम अपने को बना पाना और यहाँ यह भी सत्य प्रतीत होता है की यह सब एक कड़ी परिक्षा है जिसको पास कर पाना मौलिक/व्यावहारिक जीवन में शायद किसी-किसी के लिए ही सम्भव है| तो इतना कठिन व्रत वाला जीवन बहुसंख्यक क्यों अपनाएँ? जीवन के रहस्य और उसके चमत्कार को बनाये रखने हेतु कुछ लचीलापन और ढ़ील जरूरी है जिसमे ही मौलिक सृजन का आविर्भाव होता है और उसके लिए सहिष्णुता चाहिए और यह सहिष्णुता सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में हिन्दू धर्म कहते हैं उसमें विद्यमान होने की वजह से सृजनात्मकता हिन्दू धर्म की ज्यादा है और विश्वमानवता सभी धर्मावलम्बियों को इस सृजनात्मकता को बनाये रखने हेतु और स्वयं उनके अस्तित्व को बनाये रखने भी हेतु भारतवर्ष को हिन्दू बहुल बनाये रखने में सहयोग करना चाहिए चाहे वह इस्लाम या ईसाइयत अनुयायी हों अन्य पन्थानुयाई/मतावलम्बी| तो फिर सनातन हिन्दू धर्म के ब्राह्मण (त्याग), क्षत्रिय (बलिदान) और वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) और उनकी सन्तति होकर पारस्परिक निर्भरता भरा जीवन जीते हुए यथा सम्भव व्यावहारिक सत्य और व्यावहारिक दीन दयालुता निभाने और इस प्रकार आगे चलकर इस सनातन धर्मी/मौलिक रूप में हिन्दू धर्मी बने रहते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारण की सीमा को और पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार की सीमा को हम पार कर सकते है और उसके लिए हमें ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म नहीं अपनाना पडेगा और हम आसान और सृजनातमतापूर्ण जीवन जीते हुए हम भारतीय विश्वमानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन--संवर्धन और सतत चालन-संचालन में अन्य मतावलम्बियों का सहर्ष सहयोग कर सकते हैं|================विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)=>सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए बिना ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला) धर्म स्वीकार किये हुए एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) किसी को बनना ही पड़ता है हर युग में तो फिर 11 सितम्बर, 2001 फिर 7 फरवरी, 2003 और पुनः 29 (15-29) मई 2006 को जो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो और ईसाइयत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए अपने को सर्वोच्च ईसाई (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अपना लक्ष्य हांसिल करने वाला और आगे भी 12 वर्ष तक इस्लामियत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अपने को सर्वोच्च मुसल्लम ईमान(पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/पूर्णातिपूर्ण ईमान वाला) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म राम होते हुए अपना लक्ष्य इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से प्राप्त करने वाला ही बन लिया| ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण)//सामानान्तर कृष्ण और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला)//सामानान्तर राम| =========== यह भी एक व्यक्तिगत, स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रिय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक का सद्भाव है की हर युग में हमने अपने समेत सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु 108 कड़ियों की माला ही फेरा है (सुदर्शन चक्र के 108 आरियों//सम्पूर्ण विश्व में फैले 108 मानक ऋषियों/गोत्रों (जिनकी संतति है सम्पूर्ण विश्व) के बराबर--यह है हमारा विश्वबंधुत्व) तो फिर सांगत देवियाँ समेत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की तरह ये 7 ऋषि (गोत्र), 8 (7+1) ऋषि (गोत्र), 8X 3=24 ऋषि (गोत्र) और 108 ऋषि (गोत्र) भी शास्वत ही रहेंगे चाहे आप जितना भी धर्म(/जाति)/पन्थ/सम्प्रदाय/मजहब बना लीजियेगा| =====ऐसी सप्तर्षि (7 ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा: सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर = ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है|=========प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| == एक प्रिय नाना जी (बिशुनपुर-223103) जो उम्र में लगभग समकक्ष थे (2001-2007::2007-2009) और जो स्वयं घाट-घाट का पानी पिए थे वे प्रयागराज से लेकर बंगलोर तक संपर्क में रहते थे मुझे बीच-बीच में निर्देश दिया करते थे की शिव, राम और कृष्ण आजीवन अखण्ड ब्रह्मचर्य थे अर्थात विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदाब्रह्मचारी| और जहाँ तक कृष्ण के रासलीला (गुरुकुल में जाने से पूर्व:12 से 14 वर्ष की आयुसीमा तक ही) या बहु-पत्नियों (असुरों के चंगुल से इन देविओं को छुड़ाने के बाद जब इनके पति इनको स्वीकार नहीं किये तो स्वयं इनकी जिम्मेदारी लेने पर) की बात है वह दिव्य-प्रेम का पर्याय है और कृष्ण का भौतिक संपर्क केवल रुक्मणी (एकमात्र भौतिक पत्नी) से ही हुआ था और इस प्रकार वे सुदर्शनचक्र धारी रह सके|==========वैश्विक ईसाई समाज से कृष्ण होने और वैश्विक इस्लामिक समाज से राम होने का प्रमाणपत्र ऐसे ही नहीं मिला है (अर्थात राम (2010) के होने का प्रमाणपत्र 2019 में इस्लामिक (जिसके पूर्णातिपूर्ण स्वरुप को पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमान/मुसल्लम ईमान कहते हैं) जगत से ऐसे नहीं मिला है)==29 (15-29) मई, 2006 को वैश्विक ईसाई समाज (जिसके पूर्णातिपूर्ण स्वरुप को पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगत तारन कहते हैं) अवाक हुआ था और उसे उत्तर मिला था की इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 और पुनः 7 फरवरी, 2003 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष मानवतागत मेरा ही पूर्णातिपूर्ण संकल्प/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता/समर्पण हुआ था अर्थात सशरीर परमब्रह्म कृष्ण मै ही था और इसी क्रम को दुहराते हुए वैश्विक इस्लामिक समाज 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अवाक हुआ और उसे उत्तर मिला कि इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 और पुनः 7 फरवरी, 2003 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष मानवतागत मेरा ही पूर्णातिपूर्ण संकल्प/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता/समर्पण हुआ था अर्थात सशरीर परमब्रह्म राम भी मै ही था|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === एक के विरोध में हम दूसरे के जाल में फँस जाय यह कहाँ की बुद्धिमता है तो भविष्य के सन्दर्भ में दूरदृष्टि के तहत किसी का विरोध दीर्घकालिक सत्य को स्थापित करने और आत्म रक्षा तक का ही हम किसी का करें जिससे हमारी प्रवृति स्वयं दूषित न हो या हम किसी दूसरे के चंगुल में स्वतः न फँस जाय:====इस्लाम//समानान्तर राम और ईसाइयत // सामानांतर कृष्ण: ===वास्तविक सन्दर्भ में वैश्विक प्रयोजन में इस दुनिया की सर्वोच्च शक्ति ईस्लाम ही है इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए और एक सनातन धर्मी या मौलिक रूप से हिन्दू धर्म के पूर्णातिपूर्ण सीमा में रहते हुए सारंगधर के मुख्य आयाम, राम अवस्था को प्राप्त करने वाले को पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमान/मुसल्लम ईमान अर्थात पूर्णातिपूर्ण इस्लाम (वास्तविक सन्दर्भ) अवस्था पार ही करनी पड़ती है और मुझे भी इस प्रयागराज (/काशी) में हर मानक विशिष्ट ऋण पूर्णातिपूर्ण कर सारंगधर के द्वितीय मुख्य आयाम परमब्रह्म कृष्ण ( एक सनातन धर्मी या मौलिक रूप से हिन्दू धर्म में होते हुए पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/पूर्णातिपूर्ण/करूणानिधि/पूर्णातिपूर्ण जगततारन अवस्था अर्थात एक पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (वास्तविक सन्दर्भ) अवस्था को पार कर) अवस्था (2006) से परमब्रह्म राम अवस्था में आने हेतु में 12 वर्ष लग गए | ==25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018):--सरकारें आएँगी जाएंगी; ज्ञान-विज्ञान का प्रभाव बढ़ेगा घटेगा; और शिक्षण और वैज्ञानिक संस्थान बनेंगे बिगड़ेंगे लेकिन राम, कृष्ण व् शिव मन्दिर तभी बनते हैं जब राम, कृष्ण और शिव होते हैं (2019:---समयानुकूल पूर्णातिपूर्ण पहचान (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के साथ उत्कृष्ठ निर्णय (/2019)) =तो आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त राम(2019(/2018)/2010), कृष्ण (2014(/2013)//2006) और शिव (2018/2008 (/2009)) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से आप को आशीर्वादित करते हुए और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे| ====== सारंगधर मूल अवस्था (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है|===और इस प्रकार सांगत देवियों समेत सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का आविर्भाव होता है| इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| == विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र में दो दसक तक केंद्रित रहते हुए अपने संकल्प के अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति के साथ इस विश्व-मानवता के इतिहास के सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़ी विभूतियों में से किसी भी विभूति की पात्रता शेष रही निम्नलिखित पात्र को पूर्णातिपूर्ण निभाने में?:=====विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र (/सरस्वती/आदिदेवी/महादेवी का जेष्ठ मानस पुत्र)/शिवरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन राम/महाशिव /सदाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति): Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति स्वयं निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| सारंगधर मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सारंगधर मूल अवस्था) जिसके सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = जिस प्रकार शिव (परमाचार्य) असुरों से हर युग में घिर जाते हैं और उनको विष्णु (परमगुरु) छुटकारा दिलाते हैं उसी प्रकार प्रत्येक युग में ऋषि सत्ता और राज सत्ता दोनों पर असुर सत्ता का साया मंडराता रहता है और इस असुर सत्ता से राज सत्ता और ऋषि सत्ता को छुटकारा दिलाने का एक मात्र उपचार है गुरु सत्ता जो ऋषि सत्ता की ही एक सामाजिक इकाई है अर्थात ऋषि सत्ता व राज सत्ता का केंद्र गुरु सत्ता है| ===पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान और सांसारिक भोग-विलास की चाह और दौड़ में रहने की इक्षा रखने वाला विश्व-मानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में ही दो दसक तक लगातार केंद्रित हो (जो आगे भी कम से कम 11 नवम्बर, 2057 तक यहीं केंद्रित रहेगा) प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व-मानवतागत हित हेतु/निमित्त पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने को तैयार होता क्या?=>तो तीन-तीन बार (11 सितम्बर, 2001/ 7 फरवरी, 2003/ 29(15-29) मई, 2006(/ 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018))) पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो पूर्णातिपूर्ण रूप से लक्ष्य प्राप्ति कर साबित बचे रहने वाले को आँकलन होता है की उसे स्वयं पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान व सांसारिकता की चाह और दौड़ में न जाना है और न प्रभावित किये जाने पर प्रभावित होना है बल्कि उसके लिए सामान्य जीवन ही सर्वश्रेष्ठ जीवन होता है अन्यथा उसके ऐसे पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने का कोई महत्त्व नहीं|====यह ही एकमेव शास्वत सत्य है कि सारंगधर (मूलतः विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव होता है |==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=======11 सितम्बर, 2001 से 7 फरवरी, 2003 तक के मेरे निष्पक्ष आँकलन में विश्व-धर्म धुरी के रथ का पहिया विश्व-मानवता के बोझ से सबसे अधिक प्रयागराज में ही धँसा हुआ मिला था अतएव त्रिशक्ति की प्रेरणा के बावजूद मैं 7 फरवरी, 2003 को यहाँ पुनः पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने से मना कर दिया था और 7 फरवरी, 2003 को पुनः मेरे यहाँ पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने के बावजूद यहीं की संलिप्तता दूरस्थ असुर समाज से होने की आहट लगने पर पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति हेतु ही 29(15-29) मई, 2006 तक मुझे स्वयं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण बनना पड़ा और यहाँ सब लोग मात्र व्यक्तिगत जीवन वाले अनगिनत कृष्ण की महत्ता बताये जा रहे हैं|=====11 सितम्बर, 2001 से 11 सितम्बर, 2008 आते आते सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) द्वारा शिव काशी में पुनर्प्रतिष्ठित हो चुके हैं| वैश्विक शिव (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के निर्देश और वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के सहमति पर वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) के मानवता हित के कार्य के प्रयोजन निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को शिव रूप में ही पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ था पर इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज में लेकिन विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर शिव को अपने में समाहित कर विष्णु के रूप में 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने का कारण था:-जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये|:》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == माता-पिता, ऋषि (/गुरुजन) और देवजन जब आसुरी छाया के प्रकोप का शिकार हो अपने ही अस्तित्व को मिटाने पर तुल जाय तो उसके लिए कोई बचाव का रास्ता अपनाते हुए उनको आसुरी शक्तियों से निजात दिलाना ही एक मात्रा शिवत्व को प्रमाणिक व संरक्षित करने का रास्ता है| शिव को ही कमजोर करने या उनका ही अस्तित्व मिटाने से समाज में शिवत्व कहाँ रह जाता| == अकबर का संदेह दूर करने हेतु बीरबल से खिचड़ी न पकवाइये अब मान लीजिये की ""दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है"" और यह भी की विगत दो दसक में मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पांच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं:राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) में से कोई आयाम नहीं छूटा है| 11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और 29 (15-29) मई, 2006 को इस प्रयागराज (/काशी) में समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन/समर्पित मै ही किया गया था/हुआ था (29 (15-29) मई, 2006):जो प्रमाणित करता है की मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को मैं ही प्राप्त हुआ था जिसके सामाजिक आविर्भाव से त्रिदेव-त्रिदेवी समेत समस्त देवी देवताओं और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा, जगत जननी जानकी व्स जानकी की छाया रूपी सृष्टि और इस प्रकार समस्त विश्व मानवता का आविर्भाव होता है| मैं पहले भी कहता था और आज भी कहता हूँ की इस प्रयागराज (/काशी) में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मैं ही भगवा(व्याशी-गौतम: बिशुनपुर-223103: विष्णु) और मैं ही तिरंगा (त्रिफला- कश्यप: रामापुर- 223225: त्रिफला- कश्यप) तो आपको ज्ञातव्य हो की फरवरी 2017 में इस संसार के सबसे बड़े सन्गठन के अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध मनीषी ने बोला था की आपका स्थान कार्यपालिका में अब नहीं रह गया और अब आपके योग्य इस संसार में आपके मूल पद के अलावा कोई अन्य पद शेष नहीं है तो धीरे-धीरे आप संगठन से बाहर हो जाइये और मैंने तभी से स्वीकार कर लिया था तो फिर संगठन में एक दायित्व के साथ 2012 में सदस्य बने व्यक्ति ने संगठन के दायित्व व् संगठन से फरवरी, 2017 में मुक्ति पायी और आभास नहीं होने दिया की स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय रूप से मैं स्वयं में ही भगवा और तिरंगा| लेकिन मेरा व्यक्तिगत प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत संघर्ष अभी बाकी था और अब भी मेरे व्यक्तिगत दायित्य में मुझे इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का इंतज़ार रह गया था जो की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्ण हुआ| = जीवन कितना चमत्कारिक लगे उसकी सीमा इस जीवन को चलाने वाले और इस जीवन को जीने वालों की सहनशीलता और गुणवत्ता तथा संस्कृति और संस्कार पर निर्भर करता है और इस पर भी की हम अपने ऐसे कर्मों से आने वाली पीढ़ियों के जीवन को कितने वर्षों तक चमत्कारिक जीने योग्य छोड़ रहे हैं या सम्पूर्ण समाज की क्षमता का अधिकतम उपयोग वर्तमान कुछ समय में ही कर उसे खोखला बना दे रहे हैं-------इस संसार में दो सत्य हैं एक जन्म और दूसरी मृत्यु लेकिन इन दोनों के बीच में जो कुछ है वह है जीवन तो हम सब का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन चमत्कारिक लगे यह तो सब चाहते हैं पर इसके लिए भी एक शर्त है की हम सबका------ जीवन कितना चमत्कारिक लगे उसकी सीमा इस जीवन को चलाने वाले और इस जीवन को जीने वालों की सहनशीलता और गुणवत्ता तथा संस्कृति और संस्कार पर निर्भर करता है और इस पर भी की हम अपने ऐसे कर्मों से आने वाली पीढ़ियों के जीवन को कितने वर्षों तक चमत्कारिक जीने योग्य छोड़ रहे हैं या सम्पूर्ण समाज की क्षमता का अधिकतम उपयोग वर्तमान कुछ समय में ही कर उसे खोखला बना दे रहे हैं| == विश्वमानवता की एकल इकाई (यूनिट)===>>>सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए बिना ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला) धर्म स्वीकार किये हुए एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) किसी को बनना ही पड़ता है हर युग में तो फिर 11 सितम्बर, 2001 फिर 7 फरवरी, 2003 और पुनः 29 (15-29) मई 2006 को जो इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ हो और ईसाइयत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए अपने को सर्वोच्च ईसाई (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अपना लक्ष्य हांसिल करने वाला और आगे भी 12 वर्ष तक इस्लामियत से संघर्ष कर सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते हैं की पूर्ण सीमा में रहते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को अपने को सर्वोच्च मुसल्लम ईमान(पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/पूर्णातिपूर्ण ईमान वाला) सिद्ध कर सशरीर परमब्रह्म राम होते हुए अपना लक्ष्य इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से प्राप्त करने वाला ही बन लिया| ईसाई (पूर्ण दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तारण)//सामानान्तर कृष्ण और ईस्लाम (पूर्ण ईमानदार/पूर्ण ईमान वाला)//सामानान्तर राम:---》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| === अर्जुन उसी तरह पूर्णातिपूर्ण नर है जैसे सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अपने में पूर्णातिपूर्ण ईश्वर हैं (पूर्णातिपूर्ण ईश्वर: जिनसे समस्त देवी व् देवताओं का आविर्भाव होता है इस प्रकार समस्त मानव जगत का आविर्भाव होता है): विगत अद्वितीय दो दसक तक सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था के अवलम्बन विष्णु (श्रीधर) ही रहे अर्थात विगत अद्वितीय दो दसक तक ऐसी अवस्था के केन्द्रीय भाव में विष्णु (श्रीधर) ही रहे हैं:-------तो फिर इन अद्वितीय दो दसक (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)) में इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में यह प्रमाणित हुआ है की यह संसार एक से मतलब सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही आविर्भवित है मतलब सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही सांगत देवियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा और इस प्रकार सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा तथागत जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फिर उनकी सामाजिक छाया शृष्टि और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है:---》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|==== इस दुनिया का कौन सा ज्ञान और विज्ञान मुझे सिखाओगे विवेक? मुझे तुम्हारा संतुलित रहना अति आवश्यक है (दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर में ; तो फिर गुरुदेव बृहस्पति स्वरूप श्रद्धेय विष्णु (श्रीधर:त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति)! मुझे तो वास्तविक सन्दर्भ में लक्ष्य (67(/11)) दिनांक 29/05/2006 को ही मिल गया था पर मेरी मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ का लोहा इस संसार से मनवा लेना शेष रह गया था तो वह 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक आते आते ही पूर्णातिपूर्ण हो चुका था| 11 सितम्बर, 2001 से 15 सितम्बर, 2006 तक: सहयोगी मित्र कहते थे कि पाण्डेय जी सेंटरवा (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) चलेगा की नहीं चलेगा? या हम सबका मेहनत और कैरियर तथा समय बेकार हो जाएगा, ऐसे में मेरा कथन होता था की जब तक मैं हूँ कम से कम तब तक यह विश्वास कीजियेगा कि यह सेंटरवा (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) अवश्य चलेगा बाकी बाद की कोई गारण्टी नहीं; तो (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) दौड़ने लगा और जिस केदारेश्वर (आदिशिव) जी ने अपने माध्यम से कुछ नव पौध रूप में आरोपित और कुछ कागज पर पौध रूप में आरोपित अपने सहित लगभग 10 अन्य परिवार(केंद्र/विभाग) के लिए कुल 67(/11) पारिवारिक सदस्य(शिक्षक) अगर दिनांक 29/05/2006 को लेकर आये थे तो यह उन्हीं को ही नामित रहा (25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) अर्थात सत्यम शिवम् सुंदरम/पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य के प्रणेता को सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम् सत्य के प्रणेता ने ही प्रामाणिक रूप दिया| = राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| === हे राम, हे राम, हे राम, हे राम जग में साचे तेरो नाम । हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है तू ही तू हे राधा का श्याम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू अर्न्तायामी, सबका स्वमी तेरो चरणों में चारो धाम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे इस जग के करे काम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम तू ही जग दाता, विश्व विधाता तू ही सुबह, तू ही शाम हे राम, हे राम, हे राम, हे राम === मई, 1998 के बाद दूसरी बार 13 अप्रैल, 2018 दिन शुक्रवार को अयोध्या जाने पर वहाँ राम दरबार के पण्डित जी ने बैठने को कहा तो मेरी दृष्टि राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ती पर गयी और पण्डित जी ने यह तर्क दिया की राम काले थे और लक्ष्मण गोर अतः राम की मूर्ती काली है और लक्ष्मण व सीता के मूर्ति गोरी है| मैंने कहाँ जिस पाण्डुलिपि में राम कोयल या लँगूर जैसे काले थे लिखा गया हो उसे तिलांजलि देते हुए राम की आकर्षक प्रतिमा ही राम दरबार में भी लगवाइये| मैंने कहा की 1998 में रामलला का दर्शन किया लेकिन वहाँ रामलला की प्रतिमा काली नहीं थी (आप की जानकारी के लिए उसी दिन बाद में देखा रामलला को तो वहां अब भी काली प्रतिमा नहीं थी)|===गौरी, गौरी शंकर व गणेश की दूध जैसी सफेद प्रतिमा न सही पर भगवान् या किसी भी देवी-देवता या महापुरुष की आकर्षक प्रतिमा ही दर्शन करने पर हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा देती है तो महाकाली/देवकाली/चामुण्डा के काली प्रतिमा तो ठीक है पर दक्षिण भारत तरह लंगूर या काली कोयल जैसी प्रतिमा लगाने का क्या औचित्य जिस प्रतिमा से हमें नकारात्मकता और भय के सिवा कुछ नहीं मिलता हो| घर से लेकर देवालय तक हमें नश्लीय युद्ध नहीं जारी रख्नना चाहिए क्योंकि दैवीय मामलों में हमें इससे बचना चाहिए और यहाँ भी समाजवाद नहीं लागू करना चाहिए बल्कि सार्वभौमिक नैसर्गिक नियम ही जारी रखना चाहिए|====स्थानीय सर्वमान्य नियम का पालन तो किसी भी स्थिति में करना ही पड़ता है तो मई, 1998 के बाद दूसरी बार 13 अप्रैल, 2018 दिन शुक्रवार को अयोध्या जाने पर हनुमान गढ़ी (+कनक भवन + राम दरबार) के मान्य देवी/देवताओं का यथोचित पूजन-अर्चन करने के बाद ही श्रीरामजन्मभूमि हेतु गाड़ी को आगे जाने दिया गया था जबकि ललक श्रीरामजन्मभूमि की ही थी और समय भी सीमित ही था अपने पास|=======वहाँ राम दरबार के पण्डित जी ने बैठने को कहा तो मेरी दृष्टि राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ती पर गयी और पण्डित जी ने यह तर्क दिया की राम काले थे और लक्ष्मण गोर अतः राम की मूर्ती काली है और लक्ष्मण व सीता के मूर्ति गोरी है| मैंने कहाँ जिस पाण्डुलिपि में राम कोयल या लँगूर जैसे काले थे लिखा गया हो उसे तिलांजलि देते हुए राम की आकर्षक प्रतिमा ही राम दरबार में भी लगवाइये| मैंने कहा की 1998 में रामलला का दर्शन किया लेकिन वहाँ रामलला की प्रतिमा काली नहीं थी (आप की जानकारी के लिए उसी दिन बाद में देखा रामलला को तो वहां अब भी काली प्रतिमा नहीं थी)|===गौरी, गौरी शंकर व गणेश की दूध जैसी सफेद प्रतिमा न सही पर भगवान् या किसी भी देवी-देवता या महापुरुष की आकर्षक प्रतिमा ही दर्शन करने पर हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा देती है तो महाकाली/देवकाली/चामुण्डा की काली प्रतिमा तो ठीक है पर दक्षिण भारत की तरह लंगूर या काली कोयल जैसी प्रतिमा लगाने का क्या औचित्य जिस प्रतिमा से हमें नकारात्मकता और भय के सिवा कुछ नहीं मिलता हो| घर से लेकर देवालय तक हमें नश्लीय युद्ध नहीं जारी रख्नना चाहिए क्योंकि दैवीय मामलों में हमें इससे बचना चाहिए और यहाँ भी समाजवाद नहीं लागू करना चाहिए बल्कि सार्वभौमिक नैसर्गिक नियम ही जारी रखना चाहिए| ======================================================================================================= वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) समेत वैश्विक शिव (प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के आधार और ऊर्जा श्रोत स्वयं विष्णु रहे हैं और वैश्विक राम (/कृष्ण) के अवलम्बन भी स्वयं विष्णु रहे हैं अर्थात त्रिशक्ति संपन्न होकर भी राम(/कृष्ण) के अवलम्बन स्वयं वैश्विक विष्णु ही रहे हैं (विष्णु (/श्रीधर) :--विशुनपुर-223225, जौनपुर/जमदग्निपुर के रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित श्रीधर) और इसीलिये इनको (विष्णु:श्रीधर) को सर्व मंगल मूल कहा जाता है| == =>>> >>तो फिर इन दो दसक में इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में यह प्रमाणित हुआ है की यह संसार एक से मतलब सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही आविर्भवित है मतलब सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही सांगत देवियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा और इस प्रकार सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा तथागत जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फिर उनकी सामाजिक छाया शृष्टि और इस प्रकार समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है:--------- 》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|========= इस दुनिया का कौन सा ज्ञान और विज्ञान मुझे सिखाओगे विवेक? मुझे तुम्हारा संतुलित रहना अति आवश्यक है (दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर में ; तो फिर गुरुदेव बृहस्पति स्वरूप श्रद्धेय विष्णु (श्रीधर:त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति)! मुझे तो वास्तविक सन्दर्भ में लक्ष्य (67(/11)) दिनांक 29/05/2006 को ही मिल गया था पर मेरी मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ का लोहा इस संसार से मनवा लेना शेष रह गया था तो वह 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक आते आते ही पूर्णातिपूर्ण हो चुका था| 11 सितम्बर, 2001 से 15 सितम्बर, 2006 तक: सहयोगी मित्र कहते थे कि पाण्डेय जी सेंटरवा (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) चलेगा की नहीं चलेगा? या हम सबका मेहनत और कैरियर तथा समय बेकार हो जाएगा, ऐसे में मेरा कथन होता था की जब तक मैं हूँ कम से कम तब तक यह विश्वास कीजियेगा कि यह सेंटरवा (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) अवश्य चलेगा बाकी बाद की कोई गारण्टी नहीं; तो (केदारेश्वर बनर्जी सेंटर) दौड़ने लगा और जिस केदारेश्वर (आदिशिव) जी ने अपने माध्यम से कुछ नव पौध रूप में आरोपित और कुछ कागज पर पौध रूप में आरोपित अपने सहित लगभग 10 और परिवार(केंद्र/विभाग) के लिए कुल 67(/11) पारिवारिक सदस्य(शिक्षक) अगर दिनांक 29/05/2006 को लेकर आये थे तो यह उन्हीं को ही नामित रहा (25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018)) अर्थात सत्यम शिवम् सुंदरम/पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य के प्रणेता को सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम् सत्य के प्रणेता ने ही प्रामाणिक रूप दिया| = == वैश्विक परिवर्तन के बीच 11 सितम्बर, 2001 से लेकर 10/11 सितम्बर, 2008 आते आते प्रयागराज (/काशी) को पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया गया था अर्थात विष्णु, ब्रह्मा और शिव को पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया गया था (कम से कम एक सहस्राब्दी के लिए जाति/धर्म/पंथ से परे अर्थात सभी जाति/धर्म/पंथ के लिए यह तथ्य तभी (10/11 सितम्बर, 2008) से ही लागू है की जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह, शासक/अधिशासक, नेता/ अभिनेता या किसी भी प्रकार का संगठन स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक जैसा ही मानवता के प्रति व्यवहार करेगा वह उस कर्म और प्रारब्ध कर्म के अनुसार परिणामी का भुगतान करेगा ही करेगा): === धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी केंद्रित हो (प्रतिस्थापित हो) दायित्व निभा रहे है|===वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:===आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| == मानवता के अभीष्ट हित के पालन में मजबूरी एक अपवाद विशेष ही हो सकता है पर सर्वमान्य नियम नहीं बन सकता है: शिव व् सती/गौरी प्रकरण में ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री सती/गौरी के द्वारा पिता दक्षप्रजापति द्वारा आहूत यज्ञ के हवन कुण्ड में आत्मदाह (पिता दक्ष प्रजापति द्वारा शिव के अपमान स्वरूप) के परिणति स्वरुप जब सती/गौरी की अन्य 13 बहनों का विवाह अन्य किसी से नहीं हो पा रहा था तो ऐसी स्थिति में ब्रह्मा के निवेदन पर ऋषियों में सबसे ज्येष्ठ ऋषि मारीच(/सूर्य) ने अपने के इकलौते पुत्र कश्यप को सती/गौरी की 13 बहनों से विवाह का आदेश दिया था तो फिर ब्रह्मा के निवेदन के दबाव में पिता, मारीच के आदेश के पालन का परिणाम था उनका 13 देवियों से विवाह जो की मजबूरी में लिया गया कदम था तो हर युग में न शिव और सती/गौरी प्रकरण होता है और न सती/गौरी का पिता के यज्ञ में हवनकुण्ड में आत्मदाह होता है और न सती/गौरी की अन्य बहनों का विवाह रुकता है तो ऐसे में कश्यप का कई देवियों से विवाह भी हर जन्म में मान्य नहीं होना चाहिए| हर जन्म में कश्यप या कश्यप गोत्रीय ऐसा ही करें यह कोई नौतिकता नहीं एक असामाजिक परिपाटी हो जाएगी|======= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान: इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है; तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है|=======गोत्र स्तर पर कश्यप गोत्र से समझौता कैसे हो सकता है तो फिर हाँ वैश्विक रूप से सर्वमान्य कुशल प्रशासक कश्यप(व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) गोत्र से हूँ, व्यासी-गौतम का नाती हूँ, और इसके साथ वशिष्ठ का परनाती हूँ जिनके घर (पिता के ननिहाल) पर मेरा जन्म हुआ:----- प्रयागराज और काशी के लिए कश्यप का इतिहास अन्य ऋषियों से पुराना हैं: कश्यप गोत्र से आविर्भवित चन्द्रवंशीय इला (इक्षानुसार नर से नारी और नारी से नर बन जाने की कला से युक्त) के प्रसंग को छोड़ देने पर भी जहाँ तक भारद्वाज की बात है प्रयागराज में ही तमसा के किनारे कश्यप ऋषि के बहिस्कृति पौत्र बाल्मीकि(कश्यप पुत्र वरुणदेव के पुत्र जो असामाजिक गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से युवावस्था में बहिस्कृत कर दिए गए थे) ऋषि का आश्रम था जो भारद्वाज (आंगिरस पुत्र) के गुरु थे और भारद्वाज का प्रसंग गंगा के किनारे से आता है और गंगा को स्वयं कश्यप (मारीच:सूर्य के एकल पुत्र) के वंसज भगीरथ की तपश्या से ही पृथ्वी पर लाया गया था उसी तरह से काशी के सन्दर्भ में कश्यप (मारीच:सूर्य के एकल पुत्र) के वंसज हरिश्चंद्र का प्रसंग आता है| ==== भारद्वाज (आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था उनमें दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर) के पिता कश्यप) तथा भृगु के पौत्र (भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि/पर्वत पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे)|========== ===आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत इंद्र, विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की| ==== चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सीधे प्रभाव के साथ ही साथ सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे)|=====जिस समय पूरी पृथ्वी ही जल मग्न थीं उस समय विश्व व्यापक जलप्रवाह रोक कर केदारेश्वर (आदि आदि-त्रिदेव/आदि शिव: जिनको महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र कहते है मतलब पाँचों मूल तत्वों के देव के नेतृत्वकर्ता इन्द्र ही नही उनके स्वामी महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र) ने मानवीय समय प्रारम्भ होने के पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले काशी में कीचड़ तैयार कर दिया और उसके बीच से ही उनकी उत्पत्ति हुई। तो स्पष्ट सी बात है कि पृथ्वी पर काशी ही एक मात्र वह स्थान है जहाँ पर इस विश्व के प्रथम नागरिक शिव ने अपनी शक्ति(सती:पारवती) के साथ रहने योग्य इसे पृथ्वी का प्रथम स्थल बनाया | =======केदारेश्वर शिव ने ऋषिकाल प्रारम्भ होने से पहले तक शक्ति (सती: पार्वती) के साथ इसी काशी मे रहे और जैसे ही प्रयागराज मे ऋषि संस्कृति ने जन्म लेकर मानव समय का प्रारम्भ किया वे हिमालय पर्वत को निवास स्थल बना लिए और जिसमे कश्यप ऋषि जो शिव के शाढ़ू भाइ भी हुये (पिता, मारीच:आदित्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि:ब्रह्मर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया और कुछ समय वहां बिताने के बाद शिव हिमालय के पूर्वोत्तर सिरे को अपना आशियाना बनाया| =========जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है।जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ |=== ==== जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|===== 108(/109) गोत्रीय श्रृंखला में हम सभी का पहला गोत्र कश्यप (मारीच अर्थात सूर्य गोत्र/रिषि का एकल गोत्र/रिषि, कश्यप जो कि 7/8/24 गोत्र/रिषि श्रेणी में भी पहला गोत्र है) और सभी गोत्रों का ऊर्जा स्रोत गोत्र अर्थात 109 वाँ गोत्र विष्णु गोत्र है तो फिर आप अपने पारिवारिक संस्कार का दर्पण धुंधला न होने दीजिये जिसके राष्ट्रीय औसत से सनातन संस्कृति का राष्ट्रीय स्तर निर्धारित (सृजन) होता है| इस संस्कार की एक कड़ी में नामकरण संस्कार भी आता है| हमारे परिवारजन के नाम कम से कम असुर संस्कृति को बढ़ावा न दें जिसमें विशेषरूप से रावणकुल (/रावण/कुम्भकर्ण/मेघनाद) जैसे नाम को बढ़ावा न मिले|=====क्या सूर्यदेव (मानव जीवन का आधार है) से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सूर्यदेव के केवल एक चरित्र (/गुण) विशेष पर अनुसंधान किया हुआ वैज्ञानिक/अनुसंधानकर्ता?====जिसका उत्तर है कि रंचमात्र भी नहीं बल्कि वह सहनमात्र नहीँ कर सकता सूर्य को| ====पर ऐसे विश्व समाज का क्या होगा जहाँ मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में ही ऐसे भी ज्ञानी-विज्ञानी भी भरे पड़े हैं जो 23 वर्ष से आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने के असम्भव प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यय तो कर ही रहे हैं और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे हैं, उनकी भी कम से कम कुछ जबाबदेहि तय हो समाज हित में:====शायद यह विश्वविदित है कि असुरकुल वाले भी मूर्धन्य ज्ञानी व विज्ञानी हुए है पर आजतक उनका अस्तित्व स्वयम शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा पात्रता पर ही निर्भर रहा है अर्थात वे विनाश को प्राप्त हुए हैं अर्थात असुर कुल का विनाश अवश्य ही होता है, लेकिन शिव, विष्णु और ब्रह्मा का कभी भी विनाश नहीं होता है और न केदारेश्वर (शिव) कभी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा रहे हैं| ==== इस संसार को चमत्कारिक बनाये रखने का सबसे प्रमुख कारण स्वयं भारत में ही विद्यमान है वह है कश्मीर और कन्याकुमारी का सम्बन्ध: कश्मीर का महत्त्व इसी से परिलक्षित होता है की कन्याकुमारी स्वयं कश्मीर सहस्राब्दियों से बनना चाहता है लेकिन कश्मीर कभी भी कन्याकुमारी नहीं बनना चाहता और दोनों का यह आपसी संघर्षरत प्रेम मानवता के अन्तिम समय तक चलता रहेगा और इसका कोई अंत नहीं होने वाला|======ऐसे सप्तर्षि (7 ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा:======सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर =- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल है और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है|====प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| ==== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है||====आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है: सामाजिक रूप में भी शिव स्वरुप जिनके आधार व् स्रोत विष्णु हैं का परीक्षण(2018/2008(/2009)), कृष्ण स्वरुप जिनके अवलम्बन विष्णु हैं का परीक्षण (2014(/2013)//2006), राम स्वरुप जिनके अवलम्बन विष्णु हैं का परीक्षण (2019/2010) हो चुका और वास्तविक संदर्भ में ये सभी परीक्षण 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक प्राथमिक रूप में हो चुके थे| 》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|===जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| = मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:==धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? = बिशुनपुर(223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:-विश्वमानवता के अभीष्ट हित निमित्त मेरी जहाँ सबसे अधिक उपयोगिता है वहीं (विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में) हूँ और इसके अनुसार जिस अनुरूप मेरा कार्य था उस अनुरूप अद्वितीय रूप से दो दसक ''25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति''' के दौरान अपना दायित्व निभाया हूँ; आवश्यकता अनुसार आज भी ऐसा दायित्व निभाया जा रहा है और आगे भी आवश्यकता अनुसार दायित्व निभाया जाएगा| प्रयागराज विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान जैसे विषय (केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र) में शिक्षक होने के बावजूद जो 2014 से पासपोर्ट नवीकरण (रिन्यू) नहीं कराया है न तो शिक्षक होने के बाद विदेश में कहीं सेमिनार/कॉन्फ्रेंस/सम्मेलन/फ़ेलोशिप हेतु आवेदन किया है आजतक (पासपोर्ट वैधता 2004 से 2014 तक रहा जिसमें शोध के दौरान शोधछात्र के रूप में इटली की यात्रा भी हुई है 2004 में ही), वह भी शायद मूल भारतीय नागरिक है इस सनातन संस्कृति और विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात भारतवर्ष का| जिसको की 2007-2009 में दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक केंद्र किष्किंधा-क्षेत्र स्थिति मधुबन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान में प्रवास के दौरान कई बार प्रस्ताव मिला रहा हो की आप जिस देश और जिस सम्बंधित संस्था में जाना चाहेंगे वही आप की व्यवस्था कर दी जाएगी केवल प्रस्ताव स्वीकार कर लीजिये और यह जो ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" पर लिखते हैं उसको पुस्तक/बुक/किताब लिखकर पब्लिश करवा लिया कीजिये| दो दशकों में वैश्विक परिवर्तन अर्थात विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित होने का परिवर्तन निरपेक्ष रहा है| लेकिन क्या तब हम आज का दिन इस स्वरुप में ऐसे देख पाते? लेकिन क्या तब मेरी पंहुच लाखों-लाखों साक्षर पाठकों तक निःशुल्क हो पाती? और क्या मेरी स्वयं की इस विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में उपस्थिति का कोई प्रभाव हो पाता मानवता के अभीष्ट हित हेतु इह देश और विदेश सभी के लिए? |===किसी के भारतीय मूल का होने का प्रमाणपत्र समाजशास्त्र के भाड़े के तथाकथित विद्वान या दक्षिण के दो राज्य नहीं देंगे बल्कि इसका प्रमाणपत्र अपने दायित्व व् कर्तव्य तथा संस्कृति व् संस्कार से वह स्वयं देगा अन्यथा इसका प्रमाणपत्र प्रयागराज(/काशी) वाले देंगे| ==== विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ===विवेक (राशिनाम गिरिधर):-----विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)):==-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = बिशुनपुर(223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:--रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव//सनातन राम(/कृष्ण) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE=====विवेक (राशिनाम गिरिधर):-----विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)):==-गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| = विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| == आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए= विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:-राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| === मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि=धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||=जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? == निम्न सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है| -----वैश्विक सशरीर परमब्रह्म विष्णु की अवस्था स्वयम वैश्विक विष्णु के मात्र दो स्वरूप/अवतार को प्राप्त होती है जिसमें प्रथम हैं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण अर्थात सनातन कृष्ण और दूसरे हैं वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम अर्थात सनातन राम| इस प्रकार विष्णु के सशरीर परमब्रह्म स्वरूप की एकल असीमित ऊर्जा से ही सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और इस प्रकार विष्णु की इसी अवस्था/स्वरूप से जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (जगदम्बा:दुर्गा--महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) -- व-- उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (जगत जननी जानकी--महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है--- और फिर इस प्रकार--- जगत जननी जानकी की छाया रूपी श्रृष्टि (श्रृष्टि--त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिनसे की समस्त मानव समष्टि का प्रादुर्भाव होता है| ===इस सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है| ===दो दशक (25 मई, 1998/12 मई, 1997 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए मैंने सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है और इस प्रकार सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार किये एक सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) का आचरण को समाज के सन्मुख प्रस्तुत करते हुए पहले ईसाइयत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (29 मई, 2006) और फिर 12 वर्ष बाद इस्लामियत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात क्रमसः दोनों के सामानांतर चलते हुए क्रमिक रूप से पूर्णातिपूर्ण सफलता अर्जित किया| और इसीलिये कहता हूँ की ईसाईयत कृष्ण के समानान्तर और इस्लामियत राम के सामानांतर चलता है और इस प्रयागराज (काशी) में दोनों मेरे सामानांतर चले और मैंने अपना अभीष्ट लक्ष्य उसके बाद भी प्राप्त किया| 》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ===== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है: 1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| 2---त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)| 3 --- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है| 4 --सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है ->फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं| 5 ---और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| = हे जगदम्बा! जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जगदम्बा (देवकाली) को स्वयं उस जानकी और आपकी पहचान दोनों को कभी भी किसी भी प्रकार नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| = God ( Vishnu and Shiv); goddess (आदिदेवी/आद्या/भगवतीदेवी/महादेवी: Saraswati) most often being prayed by Hindu individual: त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु= मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं। =आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती= 1) शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ । =त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव)= कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी| अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। = हे जगदम्बा! जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जगदम्बा (देवकाली) को स्वयं उस जानकी और आपकी पहचान दोनों को कभी भी किसी भी प्रकार नहीं भूलना चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| = सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम ह 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, === 109. विष्णु गोत्र ==== मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर आप सबको ज्ञात हो कि अब समय ऐसा आ चुका है की अति उत्तेजना (किसी जाति/धर्म और सम्प्रदाय के लिए लाभकर नहीं है) से हमें बचना चाहिए और ठंढे दिमाग से युक्तिपूर्ण रूप से कम से कम एक सहस्राब्दी तक के लिए मानवता के अविरल प्रवाह को ध्यान में रखकर प्रगतिशील रहने हेतु अपनी ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग मात्र करना ही शेष रह गया है:>>>मैंने आज तक किसी का सहयोग नहीं लिया है वैश्विक विष्णु(श्रीधर) और वैश्विक शिव (प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सिवा और उनके सहयोग से विश्वव्यापी ब्रह्मा (जोशी) के विश्व-व्यापक सृष्टि के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व चालन सञ्चालन में विगत दो अद्वितीय दसक में विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में रहकर अद्वितीय योगदान दिया और आगे भी समुचित रूप से आवश्यकतानुसार अपने स्तर से क्रियान्वयन किया जाता रहेगा| यही सार संक्षेप है इस वैश्विक व्यवस्था/विश्व एक गाँव व्यवस्था का:---अब समय ऐसा आ चुका है की ठंढे दिमाग से काम लेने में किसी जाति/धर्म और सम्प्रदाय को कोई हानि नहीं क्योंकि किसी के पास स्किल और योग्यता है तो किसी के पास संख्याबल(संख्याबल में लाभ के साथ विसंगतियाँ तो प्राकृतिक पर्याय स्वरुप होती ही हैं)  या धनबल या बाहुबल है; और कोई देश में भारी है तो कोई विदेश में भारी है या कोई विदेश के माध्यम से देश में भारी है अर्थात यदि किसी को एक स्थान से कोई कमजोर करेगा तो वह दूसरे स्थान से या दूसरे माध्यम से अपना अधिकार अर्जित करेगा इस प्रकार आप किसी का अधिकार मार नहीं सकते हैं| ===== सहस्राब्दियों में ही ऐसा कभी सम्भव होता है तो इस बात पर आप गर्व करें की आप का आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला राम मन्दिर(2019/2010) अयोध्या में बन गया (बन रहा) और आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला कृष्ण मन्दिर(2014(/2013/2006) मथुरा-वृंदावन में बन गया (बन रहा) जाहिर सी बात हैं की अंतरराष्ट्रीय राम की शक्ति अयोध्या में और अंतरराष्ट्रीय कृष्ण की शक्ति मथुरा-वृंदावन में अवश्य ही ठीक उसी तरह प्रतिस्थापित हो चुकी है जैसे अंतर्राष्ट्रीय शिव की शक्ति काशी के आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि शिव वाले शिव मंदिर (2018/2008(/2009)) में प्रतिस्थापित हो चुकी है| ये तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे| और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| =======इन विगत दो दसक के सहस्राब्दी महापरिवर्तन के दौर के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में किसी भी कार्य को बकाया नहीं छोड़ा गया है--जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए|-तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो-शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| =====आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु; तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी|============पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर किसी रूप, रंग व् जाति-धर्म के पक्षकार देश के अन्दर व बाहर कहीं न कहीं बैठे है और ऐसा हर कोई अगर ऐसे दूकान खोलकर बैठे हुए पक्षकार समूह को लाभ पहुँचा रहा है उसको ऐसे कार्य के बदले लाभ है; जो उसे मिल रहा है चाहे विश्व के किसी कोने में बैठे किसी के व्यक्तिगत व् स्थानीय सूचना आदान-प्रदान केे बदले का ही लाभ क्यों न हो? किसी को अपने धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व्तो संस्कृति को संरक्षित करने का भी तो अधिकार है अगर वह ऐसे धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व संस्कृति के संरक्षण हेतु त्याग, बलिदान व् तप/योग/उद्यम करते हुए सामजिक नियमों का उल्लघन कर मानवता को हानि न पंहुचाता हो तो ऐसे में अब किसी के रूप, रंग व् जाति-धर्म के आधार पर मात्र किसी एक ही रूप, रंग व जाति-धर्म वालों पर नश्लवाद व् जाति-धर्मवाद का आरोप लगाना बेईमानी ही है| ============================= दक्षिण और उत्तर में दक्षिण के समर्थकों ने स्थानीय, राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अनेकों गलतियाँ किये थे और उसी का परिणाम है की उत्तर 2008(/2009) से प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों विश्व-मानवता का केंद्र बन गया जो उत्तर कभी केवल परोक्ष(आतंरिक) रुप से विश्व-मानवता का केंद्र हुआ करता था और विश्व-मानवता का केंद्र बने होने का श्रेय दक्षिण लिया करता था:-->>>दृश्य सत्य तो होता ही है पर अदृश्य भी सत्य हो सकता है लेकिन इस आधार पर कम से कम उसे पराजित करने की कभी न सोचे जो की इतना मजबूत हो की वैश्विक रूप में चरम संघर्ष के दौर के दो दशक का जीवन जीकर और ऐसे हर जीवन क्षेत्र में व्यावहारिक जीवन जीते हुए भी कोई गलती कभी किया ही न हो तो अदृश्य सत्य को उसके सन्दर्भ में अदृश्य सत्य ही रहने दीजियेगा| तो यह समझियेगा कि वास्तविक सन्दर्भ मेरी सत्ता अर्थात धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र सत्ता 10/11 सितम्बर, 2008(/2009) से ही चल रही है (विश्वमानवता का मूल केंद्र तभी से उत्तर भारत हो चुका है) तो जो स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय रूप से जो कोई भी जो कुछ कर रहा है वह उसके खाते में अवश्य जा रहा है उसे उसके प्रारब्ध और वर्तमान कर्मों के आधार पर उसका खट्टा या मीठा या कड़वा या तीता फल उसे और उसके अनुगामियों/शुभचिंतको/अनुयायियों को अवश्य मिलेगा अर्थात उसकी भरपाई ऐसे लोगों को अवश्य ही करनी पड़ेगी| अतः अदृश्य सत्य को सत्य सिद्ध करने का लाभ आप केवल उसके सन्दर्भ मात्र में ले सकते हैं जो इतना कमजोर हो की कभी सामाजिक या संवैधानिक या मानवीय या ईश्वरीय नियम को तोड़ा हो और ऐसी गलती करने की उसकी आम आदत हो| =========== मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर आप सबको ज्ञात हो कि अब समय ऐसा आ चुका है की अति उत्तेजना (किसी जाति/धर्म और सम्प्रदाय के लिए लाभकर नहीं है) से हमें बचना चाहिए और ठंढे दिमाग से युक्तिपूर्ण रूप से कम से कम एक सहस्राब्दी तक के लिए मानवता के अविरल प्रवाह को ध्यान में रखकर प्रगतिशील रहने हेतु अपनी ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग मात्र करना ही शेष रह गया है:>>>मैंने आज तक किसी का सहयोग नहीं लिया है वैश्विक विष्णु(श्रीधर) और वैश्विक शिव (प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के सिवा और उनके सहयोग से विश्वव्यापी ब्रह्मा (जोशी) के विश्व-व्यापक सृष्टि के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व चालन सञ्चालन में विगत दो अद्वितीय दसक में विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में रहकर अद्वितीय योगदान दिया और आगे भी समुचित रूप से आवश्यकतानुसार अपने स्तर से क्रियान्वयन किया जाता रहेगा| यही सार संक्षेप है इस वैश्विक व्यवस्था/विश्व एक गाँव व्यवस्था का:---अब समय ऐसा आ चुका है की ठंढे दिमाग से काम लेने में किसी जाति/धर्म और सम्प्रदाय को कोई हानि नहीं क्योंकि किसी के पास स्किल और योग्यता है तो किसी के पास संख्याबल या धनबल या बाहुबल है; और कोई देश में भारी है तो कोई विदेश में भारी है या कोई विदेश के माध्यम से देश में भारी है अर्थात यदि किसी को एक स्थान से कोई कमजोर करेगा तो वह दूसरे स्थान से या दूसरे माध्यम से अपना अधिकार अर्जित करेगा इस प्रकार आप किसी का अधिकार मार नहीं सकते हैं| ================== यह संसार रोचक/रुचिकर व चमत्कारिक ढंग से सुचारू रूप से चलाया जा सके इसके लिए इस संसार को ज्ञान, विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति तथा संस्कार युक्त करने में उच्चतम जीवन स्तर से लेकर निम्नतम जीवन स्तर तक की असंख्य जिंदगियाँ इसकी नींव में समाहित हो जाती है जिनका समाज में जिक्र तक नहीं होता उनको सामाजिक न्याय दिलाने की बात तो बहुत दूर है पर कम से कम हम यह तय करें की यह दुनिया रोचक/रुचिकर और चमत्कारिक लगे इसमें हमारी सहनशीलता का कितना योगदान है न की केवल हम अधिकार ही अधिकार की बात करें अर्थात हम उन उच्चतम से लेकर निम्नतम जीवन जीने वाले जो नींव की ईंट बन गए उनसे हमने क्या सीखा उसका प्रयोग तो करें? विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए| निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| == यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? == दो दशक (25 मई, 1998/12 मई, 1997 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए मैंने सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है और इस प्रकार सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार किये एक सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) का आचरण को समाज के सन्मुख प्रस्तुत करते हुए पहले ईसाइयत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (29 मई, 2006) और फिर 12 वर्ष बाद इस्लामियत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात क्रमसः दोनों के सामानांतर चलते हुए क्रमिक रूप से पूर्णातिपूर्ण सफलता अर्जित किया| और इसीलिये कहता हूँ की ईसाईयत कृष्ण के समानान्तर और इस्लामियत राम के सामानांतर चलता है और इस प्रयागराज (काशी) में दोनों मेरे सामानांतर चले और मैंने अपना अभीष्ट लक्ष्य उसके बाद भी प्राप्त किया| == निम्न सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है|=इस सन्दर्भ को ध्यान में रख विशेष रूप से आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) व् प्रतापगढ़ (अवध) से प्रश्न एक और केवल एक की इस संसार में पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागशील) की जरूरत है कि नहीं या कुछ लोगों को ब्राह्मण (त्यागशील) बनाने और बने रहने की जरूरत है की नहीं जहाँ लोग दिग्भ्रमित कर ब्राह्मणोचित कर्म से विमुख बनाये जा रहे हैं (आप सभी की सहनशक्ति 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद जवाब दे गयी थी न? और दो अद्वितीय दो दसकों तक वैश्विक व्यवस्था की पूर्ण स्थापना करते हुए भी आभासीय रूप से राष्ट्र केंद्रित व्यवस्था मात्र स्वीकार कर वैश्विक श्रृंखला दिसंबर, 2018 आते-आते तोड़ दी गयी| और जिसके परिणति स्वरुप 9 नवम्बर, 2019 तक वैश्विक राम की सत्ता अर्थात इस संसार की सर्वोच्च सत्ता की वैश्विक स्वीकृति के बाद ऐसे वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या में स्थापित कर दी गयी)? सारंगधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉंच के पाँचों मूल आयाम/पात्र के गुणों के बिना परमब्रह्म अपने पूर्ण स्वरुप को प्राप्त नहीं हो सकते अर्थात पाँचों मूल आयाम/पात्र के उद्भव व् उनके सशरीर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में विलीनता और फिर पुनरुद्भव एक सतत प्रक्रिया है जिसमें सभी पाँचों (राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश या इस प्रकार तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का अंश समान रूप से इस मानवता के बीच बना रहता है| स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से कोई ब्राह्मण विमुख होगा तो कोई ब्राह्मण बनेगा और यही क्रम क्षत्रिय (बलिदान), वैश्य (तप/योग/उद्यम/यत्न) , इस्लाम (ईमान/ईमानदार) और ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि) के लिए भी प्राकृतिक सत्य है| ===दो दशक (25 मई, 1998/12 मई, 1997 से 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) तक विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए मैंने सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और ईस्लाम धर्म स्वीकार किये एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय/सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य/सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम/यत्न) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण/सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) के दायित्व का निर्वहन किया है और इस प्रकार सनातन धर्म जिसे मौलिक रूप में सनातन हिन्दू धर्म कहते है की सीमा में रहते हुए और बिना ईसाई और इस्लाम धर्म स्वीकार किये एक सर्वोच्च दीनदयाल/करूणानिधि/जगत तरन (सर्वोच्च ईसाइयत) और सर्वोच्च/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार (सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/इस्लाम) का आचरण को समाज के सन्मुख प्रस्तुत करते हुए पहले ईसाइयत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (29 मई, 2006) और फिर 12 वर्ष बाद इस्लामियत से मिली चुनौती में पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया (25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) अर्थात क्रमसः दोनों के सामानांतर चलते हुए क्रमिक रूप से पूर्णातिपूर्ण सफलता अर्जित किया| और इसीलिये कहता हूँ की ईसाईयत कृष्ण के समानान्तर और इस्लामियत राम के सामानांतर चलता है और इस प्रयागराज (काशी) में दोनों मेरे सामानांतर चले और मैंने अपना अभीष्ट लक्ष्य उसके बाद भी प्राप्त किया| == इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को ही प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति का भी समयानुसार मूल्यांकन किये जाना चाहिए| == जिस प्रकार शिव (परमाचार्य) असुरों से हर युग में घिर जाते हैं और उनको विष्णु (परमगुरु) छुटकारा दिलाते हैं उसी प्रकार प्रत्येक युग में ऋषि सत्ता और राज सत्ता दोनों पर असुर सत्ता का साया मंडराता रहता है और इस असुर सत्ता से राज सत्ता और ऋषि सत्ता को छुटकारा दिलाने का एक मात्र उपचार है गुरु सत्ता जो ऋषि सत्ता की ही एक सामाजिक इकाई है अर्थात ऋषि सत्ता व राज सत्ता का केंद्र गुरु सत्ता है| ===पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान और सांसारिक भोग-विलास की चाह और दौड़ में रहने की इक्षा रखने वाला विश्व-मानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में ही दो दसक तक लगातार केंद्रित हो (जो आगे भी कम से कम 11 नवम्बर, 2057 तक यहीं केंद्रित रहेगा) प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व-मानवतागत हित हेतु/निमित्त पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने को तैयार होता क्या?=>तो तीन-तीन बार (11 सितम्बर, 2001/ 7 फरवरी, 2003/ 29(15-29) मई, 2006(/ 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018))) पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हो पूर्णातिपूर्ण रूप से लक्ष्य प्राप्ति कर साबित बचे रहने वाले को आँकलन होता है की उसे स्वयं पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान व सांसारिकता की चाह और दौड़ में न जाना है और न प्रभावित किये जाने पर प्रभावित होना है बल्कि उसके लिए सामान्य जीवन ही सर्वश्रेष्ठ जीवन होता है अन्यथा उसके ऐसे पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने का कोई महत्त्व नहीं|====यह ही एकमेव शास्वत सत्य है कि सारंगधर (मूलतः विष्णु) की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही सांगत देवियों समेत राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव होता है |==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=11 सितम्बर, 2001 से 7 फरवरी, 2003 तक के मेरे निष्पक्ष आँकलन में विश्व-धर्म धुरी के रथ का पहिया विश्व-मानवता के बोझ से सबसे अधिक प्रयागराज में ही धँसा हुआ मिला था अतएव त्रिशक्ति की प्रेरणा के बावजूद मैं 7 फरवरी, 2003 को यहाँ पुनः पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने से मना कर दिया था और 7 फरवरी, 2003 को पुनः मेरे यहाँ पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने के बावजूद यहीं की संलिप्तता दूरस्थ असुर समाज से होने की आहट लगने पर पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति हेतु ही 29(15-29) मई, 2006 तक मुझे स्वयं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण बनना पड़ा और यहाँ सब लोग मात्र व्यक्तिगत जीवन वाले अनगिनत कृष्ण की महत्ता बताये जा रहे हैं| =11 सितम्बर, 2001 से 11 सितम्बर, 2008 आते आते सारंगधर मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) द्वारा शिव काशी में पुनर्प्रतिष्ठित हो चुके हैं| वैश्विक शिव (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के निर्देश और वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के सहमति पर वैश्विक ब्रह्मा (जोशी) के मानवता हित के कार्य के प्रयोजन निमित्त 11 सितम्बर, 2001 को शिव रूप में ही पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन हुआ था पर इस विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज में विष्णु (श्रीधर) के विशेष आग्रह पर शिव को अपने में समाहित कर विष्णु के रूप में 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होने का प्रारम्भ में उल्लेखित कारण था:--तो जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| === मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव अवस्था): शिव स्वरुप से केंद्रीय रूप में विष्णु स्वरुप (जिसमें केंद्रीय रूप में स्वयं शिव व ब्रह्मा आंतरिक रूप से समाहित रहे हों) और फिर ब्रह्मा स्वरुप में क्रमशः आकर त्रिशक्ति सम्पन्न हो विष्णु के प्रथम परमब्रह्म स्वरुप, परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप को प्रमाणित करता हुआ परमब्रह्म विष्णु के द्वितीय स्वरुप, परमब्रह्म राम स्वरुप/चरित्र/पात्र को प्रमाणित किया जिससे की स्वयं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ है: 11 सितंबर, 2001 से लेकर 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक इस संसार की हर स्तर की हर परीक्षा पास कर चुका और आगे वैश्विक स्तर तक कोई परीक्षक परीक्षा लेने योग्य नहीं रहा, तब जाकर आम नागरिक का जीवन जीने को मिला है (अर्थात प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत लक्ष्य के पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति के साथ विश्वमानवता का सवसे बड़ा लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण रूप में प्राप्त हूआ):-11 सितंबर, 2001 को तत्कालीन रूप से इस संसार का सबसे समर्थ व्यक्ति इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) की सहमति से तत्कालीन वैश्विक शिव(प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) द्वारा संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया गया था जो फरवरी, 2003 तक वैश्विक शिव होने का समुचित दायित्व निर्वहन किया तत्पश्चात् स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक परिवर्तन बीच 7 फरवरी, 2003 को तत्कालीन वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के निर्देशानुसार पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन कर दिया गया इस प्रकार 15 मई, 2006 तक ऐसी अवस्था को होता हुआ स्वयम निहित वैश्विक ब्रह्मा की अवस्था में आते हुए 29 (/15-29) मई, 2006 को वैश्विक परमब्रह्म विष्णु स्वरुप के वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त कर अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया| इसी परिवर्तन के बीच 10/11 सितम्बर, 2008 को वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा को प्रयागराज व वैश्विक शिव को काशी में पुनर्प्रतिष्ठित भी किया अर्थात प्रमाणित किया की वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा के संयोग से वैश्विक परमब्रह्म विष्णु स्वरुप का प्रादुर्भाव होता है तो फिर इसी वैश्विक परमब्रह्म विष्णु स्वरुप से वैश्विक शिव, वैश्विक विष्णु और वैश्विक ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और 29 (/15-29) मई, 2006 को वैश्विक परमब्रह्म विष्णु स्वरुपके वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में प्राप्त अभीष्ट लक्ष्य को वैश्विक स्तर पर सामाजिक मान्यता न मिलने पर पुनः वैश्विक विष्णु के वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम स्वरूप को प्रमाणित करते हुए 25 मई, 2018(31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम नियम अधिनियम व विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण रूप से अपना अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त किया| ============================ सनातन धर्म से आविर्भवित बौद्ध धर्म का साम्राज्य कैसे और किन विकारों और मकारों से  समाप्त हुआ याद हैं न? तो फिर इस दो दसकों में सृष्टि अर्थात विश्व मानवता ने  भी अतिसय त्याग, बलिदान और यत्न/तप/योग/उद्यम से ऐसे ही विकारों से निजात पाते हुए दूसरा जन्म पाया है:- किसी एक जाति/धर्म और पन्थ में नहीं बल्कि हर एक में कमोबेस रूप से शूद्रता और असुरता को बढ़ावा देने वाले कार्य व् उसके समूह को इतना अधिक प्रश्रय न दीजिये या इतना अधिक न बढ़ने दीजिये की इस सहस्राब्दी के अंदर ही में एक बार फिर आप के इस संसार से विश्वमानवता के इतिहास के पाँचों मूल पात्र/आयाम राम, कृष्ण, विष्णु, ब्रह्मा और शिव के वैश्विक स्तर के मानक दायित्व का निर्वहन प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र से किसी द्वारा संभव न हो सके; और ऐसी ही स्थिति में सृष्टि को संहार से बचने हेतु असहनीय पीड़ा को सहन करते हुए भी हर प्रकार से सक्रीय अवस्था में रहते हुए विष्णु के सशरीर परमब्रह्म स्वरुप अर्थात सारंगधर के मूल स्वरुप में आना पड़ता है जिसके माध्यम से ही सभी पात्रों/आयामों (राम, कृष्ण, विष्णु, ब्रह्मा और शिव) के दायित्व को उचित रूप से निभाया जाता है या यदि अन्य कोई इस पांच स्वरुप/आयाम में से हर एक या किसी एक के स्वरुप/आयाम में आंशिक रूप से है उसकी भी पूर्ती विष्णु के इस सशरीर परमब्रह्म स्वरुप/ सारंगधर के मूल स्वरुप के माध्यम से की जाती है|  मेरा मानना है की जाति/धर्म मानना यथा संभव समाज को संचालित और क्रियान्वित रखने हेतु ही होता है फिर भी किसी को लगता है की अगर केवल समाज में जाति प्रथा होने से ही समाज का अंत होता है तो शायद बौद्ध धर्म तथाकथित रूप से जातिविहीन था और है तो उसका अंत नहीं होना चाहिए था|  ============================ किसी के सीरियल बनाने से न तो विष्णु का महत्त्व कम हो जाएगा अर्थात विष्णु के अलावा कोई अन्य देव न इस जगत उद्भवकर्ता व आधार कहलाने लगेगा (योग्यता के साथ क्षमता और सहनसीलता तथा मंगलमूल होना पड़ता है तभी विष्णु सबके उद्भवकर्ता व जगत आधार कहलाते हैं); और पण्डित और महात्मा या महामंडलेश्वर या शंकराचार्य से किसी सनातन कृति में कुछ अंश में परिवर्तन करा लेने या फिल्मी या लोक गीत गाने या कपोल कल्पना करने से राम और कृष्ण स्वयं में काजल जैसे काले नहीं हो जाएंगे तो इतना समझियेगा की न मैं इंगलैण्ड वालों से ज्यादा गौर वर्ण वाला हूँ और न अफ्रीकी मूल वालों से ज्यादा काला हूँ अर्थात इन दोनों के बीच में से हूँ| जो प्रतिमा या मूर्ती तेज विहीन हो जिसमें आकर्षण न हो अर्थात मुझे ऊर्जा न दे और महाकाली जैसी भयावह काली हो वह देव या महामानव की प्रतिमा और मूर्ति भय देने के आलावा मुझे निर्भय क्या करेगा और उसके दर्शन से मुझे क्या ऊर्जा और तेज मिलेगा? मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही सांगत शक्तिओं समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा तथा राम और कृष्ण का आविर्भाव होता है इस प्रकार मूल सारंगधर से ही सांगत शक्तियों समेत सारंगधर के पांच के पाँचों आयाम अर्थात इस मानवता के पांच के पाँचों मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है| इस प्रकार इसी मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) से ही जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी) का आविर्भाव होता हैं जिनसे ही उनकी सामाजिक स्वरुप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है परिणामतः जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे की मानव समष्टि का आविर्भाव होता है |-------तो सिर ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी": सनातन राम(/कृष्ण)|-》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था|==================अरब देश समेत पञ्च तथाकथित सर्वोच्च महाशक्तियाँ व् अन्य सभी देश बताएं की किसके अधिकार का हनन विगत दो दसक में इस विश्वमानवता के मूल/जड़त्व केंद्र , प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र के माध्यम से किया गया सिवाय इसके की विश्व-व्यापक एक गाँव व्यवस्थागत मानवता के प्रसार के कार्य के संपादन और उसकी स्थापना में विशेष सहयोग के; तो फिर प्रयागराज (/काशी) के प्रति आपका भी तो कुछ समर्पण होना चाहिए तो फिर इतना ध्यान दीजिये की किसी के स्वाभिमान पर चोट नहीं करते यदि कोई दो दशक में स्वयं को जब विश्व-मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र स्वयं सिद्ध किया हो ? ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- 7 फरवरी, 2003 (प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व मानवतागत अभीष्ट हित निमित्त प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित 7 फरवरी, 2003 को मेरा पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण:--------------वैसे तो वैश्विक सन्दर्भ में 11 सितम्बर, 2001 को भी मेरा ही पूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण यही हुआ था और आगे जाकर 29(/15-29) मई, 2006 को यही स्वयं निहित किये गए पूर्ण संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण से पूर्ण लक्ष्य प्राप्ति""""" (निर्देश का पूर्णातिपूर्ण पालन करते हुए 11 सितम्बर, 2001 से 29 मई, 2006 के बीच न कहीं आवेदन किया और न कोई परीक्षा दिया और इस प्रकार अभीष्ट सफलता प्राप्ति के बाद ही 11/18 सितम्बर,2007 ( /10 मार्च,  2007) को पीएचडी उपाधि प्राप्ति से पहले  आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑब्ज़र्वेशनल विज्ञान, नैनीताल में वैज्ञानिक "सी" हेतु आवेदन किया तथा  इंटरव्यू भी दिया तथा प्रयागराज विश्विद्यालय में शिक्षक पद हेतु मार्च, 2007/2008 में आवेदन किया था और 29 अक्टूबर, 2009 को योग्य पाया गया इस बीच 27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009 तक भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में हिन्द महासागर व भारतीय मानसून की वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजना में प्रोजेक्ट एसोसिएट रहा)"""""""" और इसके आगे पुनः 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक चले संघर्ष से पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति हुई):-------------विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 से 29(15-29) मई, 2006 के बीच माध्यम मैं ही रहा पर इस दौरान अवलम्बन विश्व-व्यापक विष्णु (श्रीधर) रहे हैं और ऐसी अवस्था को पूर्णातिपूर्ण रूप से विष्णु की परमब्रह्म अवस्था कहते हैं जब मैं पक्ष-विपक्ष-निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को धारण किये हुए एक मात्र चलती फिरती काया लिए हुए भी अपने निमित्त उचित सांसारिक दायित्व भी निभा रहा था जिस अवस्था से कोई वापस नहीं आता है अपना कर्तव्य और संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हेतु लक्ष्य प्राप्ति तो दूर की बात होती है और ऐसे समय पर भी मैंने अपने लक्ष्य भेद को प्रामाणिक रूप दिया|=====>>>>11 सितम्बर, 2001 से 6 फरवरी, 2003 तक ऐसे काल में विश्व मानवता के अभीष्ट हित निमित्त प्रयागराज (/काशी) केन्द्रित 'वैश्विक शिव मै ही रहा जिसे स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक परिवर्तन के बीच अपने अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति हेतु 7 फरवरी, 2003 से वैश्विक विष्णु और आगे जटिल परिवर्तन के बीच पुनः वैश्विक ब्रह्मा की शक्तियों से सम्पन्न हो 29(15-29) मई, 2006 को वैश्विक सशरीर परमब्रह्म कॄष्ण स्वरूप अर्थात वैश्विक विष्णु के प्रथम सशरीर परमब्रह्म स्वरूप में आना पड़ा और फिर भी सामाजिक मान्यता न मिलने पर आगे 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को वैश्विक परब्रह्म विष्णु के दूसरे स्वरूप वैश्विक सशरीर परमब्रह्म राम स्वरूप तक आना पड़ा (7 फरवरी, 2003 से 29(15-29) मई, 2006 के बीच माध्यम मैं ही रहा पर इस दौरान अवलम्बन विश्व-व्यापक विष्णु (श्रीधर) रहे हैं और ऐसी अवस्था को पूर्ण परमब्रह्म अवस्था कहते हैं जब मैं एक मात्र चलती फिरती काया लिए हुए भी अपने निमित्त उचित सांसारिक दायित्व भी निभा रहा था जिस अवस्था से कोई वापस नहीं आता है अपना कर्तव्य और संकल्प/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हेतु लक्ष्य प्राप्ति तो दूर की बात होती है और ऐसे समय पर भी मैंने अपने लक्ष्य भेद को प्रामाणिक रूप दिया)|=========ॐ 卐 ॐ अद्वितीय दो दशक गुजर जाने के बाद भी प्रॉक्सी वार से व्यवहारिक सत्य को ही जब नहीं मिटाया जा सका तो फिर सत्यम शिवम् सुंदरम/वास्तविक सत्य/पूर्णसत्य और सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य को कैसे मिटाया जा सकता था? तो फिर सुनिए वैश्विक ब्रह्मा (जोशी), वैश्विक शिव(प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) और वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में संस्थागत प्रयोजन अर्थात परोक्ष रूप से सम्पूर्ण मानवता के अभीष्ठ हित हेतु के अभीष्ट प्रयोजन (2001/2000) के लक्ष्य 67(/11) को 29 (/15-29) मई, 2006 को विष्णु के जिस परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तिओं समेत ब्रह्मा, विष्णु, शिव की सम्मिलित शक्ति) स्वरुप में आते हुए कलाम (दक्षिण के कलाम) के मातृ प्रदेश व् पड़ोसी प्रदेश वालों व् उनके समर्थकों व प्रयागराज (/काशी) समेत उनके विश्वव्यापक अभिकर्ताओं के विपरीत जाकर अर्जुन के माध्यम से पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त किया था और इस प्रकार स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व् अन्तर्राष्ट्रीय जटिलतम साजिस को सबसे निर्णायक अवसर पर विफल किया था तो उसी पूर्णातिपूर्ण सफलता, 67(/11) दिवस 29 (15-29) मई, 2006 को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से सामाजिक रूप में विष्णु के दूसरे परमब्रह्म स्वरुप में आते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को प्रमाणित किया था अर्थात शिव की सत्ता, स्वरुप और संकल्प को प्रमाणित किया था अर्थात सत्यम शिवम् सुंदरम/पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य को स्वयं सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य ने प्रमाणित किया था जिसने की सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्व-महापरिवर्तन/ विश्व-महाविभीषिका/विश्व-महासमुद्रमंथन कर डाला| टिप्पणी==वसुधा को कुटुंबकम समझ सम्पूर्ण विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु इस प्रयागराज (/काशी) में दॉँव पर लगकर पूर्णातिपूर्ण रूप से तीन बार (2001/2003/2006(2018)) संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होकर अपने अभीष्ट त्याग, बलिदान व् तप/योग/उद्यम से दो दसक तक विश्वमानवता हित को सर्वोपरि सिद्ध करने पर भी अब मुझमें सामाजिक रूप से वाह्य परिवार को समाहित करने की क्या जरूरत जब मुझे सुचितायुक्त संपर्क व्यक्तिगत रूप में कार्य फलित करने हेतु चाहिए| वर्तमान में जो नवप्रयोगवादी लोग जिन लोगों से मेरी तुलना करने कोशिस किये जा रहे हैं स्वयं उनको और जिनसे मेरी तुलना की जा रही है उन लोगों को पता हो की उनके समेत सम्पूर्ण विश्वमानवता का आधार व उर्जा स्रोत मै ही रहा हूँ और आज भी हूँ औरआगे भी मैं ही रहूँगा और जिन लोगों से मेरी तुलना की आप किये जा रहे हैं वे लोग सतह पर कार्यरत रहते हुए समयानुकूल परिवर्तित होते हुए धारावाही(सुगमता के लिए धारा की दिशा में ही गतिमान होकर) होकर पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान की लड़ाई में शामिल रहे (अब मेरी श्रेणी में कोई 11 सितम्बर, 2001 के बाद या 7 फरवरी, 2003 के बाद या 29 मई, 2006 के बाद या 11/10 सितम्बर, 2008 के बाद या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) बाद जन्म लेने वाला ही आएगा या वास्तविक संदर्भ में कम से कम सहस्राब्दियों बाद ही कोई आएगा)|--मेरे जैसी अवस्था (सशरीर परमब्रह्म राम/कृष्ण: एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्ति सम्पन्न अवस्था की प्राप्ति जिस अवस्था को राम और कृष्ण के अलावा कोई अन्य विष्णु का अवतार आज तक प्राप्त नहीं कर सका) में जब कोई अन्य आज तक के मानवता के इतिहास में नहीं गया और सतह पर ही कार्यरत रहा उससे मेरी क्या तुलना-तो ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम(/कृष्ण)|》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| =============================================== मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: अर्थात सदाशिव:महाशिव) के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :----सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है|====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==================== इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव) के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं| बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं| ================= आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ==========मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ================================ वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है:===परशुराम के गुरु कहे जाने वाले वैश्विक शिव को परशुराम बनना अनिवार्य है क्या? या रावण के आराध्य कहे जाने वाले वैश्विक शिव को रावण बनना अनिवार्य है क्या? लेकिन वैश्विक शिव को सम्पूर्ण विश्व मानवता के इतिहास के विष्णु के मात्र दो सशरीर परमब्रह्म स्वरुप पाए हुए राम (एकल स्वरुप में सांगत शक्तिओं समेत त्रिदेव की सम्मिलित शक्तियुक्त) और कृष्ण (एकल स्वरुप में सांगत शक्तिओं समेत त्रिदेव की सम्मिलित शक्तियुक्त) बनने की आवश्यता रहती है स्वयं में पूर्णातिपूर्णता पाने हेतु अर्थात वैश्विक शिव को अपना आराध्य बन पूर्णता प्राप्ति की आवश्यकता रहती है:====वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है तो अब किसी सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व् वैज्ञानिक क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण कार्य को महत्तम स्थान प्रदान करने महानुभाव को प्रॉक्सी पारिवारिक सदस्य देने के बजाय (यह कार्य तो असुर समाज भी सफलता पूर्वक करने में महारत हांसिल किये हुआ है जो की स्वयं सनातन हिन्दू समाज विधिवत रूप से सदा-सदा से ही एक हिस्सा रहा है) किसी के भी वास्तविक पारिवारिक सदस्य को थोड़ा-थोड़ा शिव, थोड़ा थोड़ा राम और थोड़ा-थोड़ा कृष्ण बनाते रहिये तो फिर प्रॉक्सी परिवारिक सदस्य देने जैसे असत्य को सत्य सिद्ध करने वाले अनैतिक कार्य हेतु कसरत नहीं करनी पड़ेगी बल्कि आपको और आपके ऐसे महानुभाव जिनको आप प्रॉक्सी पारिवारिक सदस्य देना चाह रहे होते हैं उनकी हर आवश्यकता के दिनों में ऐसे ही आंशिक शिव, आंशिकराम औरआंशिक कृष्ण उनके पूर्ण कालिक पारिवारिक सदस्य की भूमिका में हर वक्त कार्यरत नजर आएंगे और उसे उचित रूप से निभाएंगे भी|=====समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था(/आयाम) अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी":--सनातन राम(/कृष्ण): इस 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"""" के दौरान>>>>>इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) /सारन्गधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉँच पाँचों मुख्य आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी के पात्र का निर्वहन किया गया किन्तु माध्यम केवल और केवल सनातन राम (/कृष्ण) ही रहे| इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल सनातन राम की कला से हुआ| ====================== वैश्विक शिव, वैश्विक राम और वैश्विक कृष्ण अपने मूल केंद्र क्रमसः काशी (2018/2008 (/2009)) , अयोध्या (2019/2010) व् मथुरा-वृन्दाबन (2014/2013/2006) में प्रतिस्थापित हो चुके है| तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और प्रयागराज अवस्थित विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे:===मूल सारंगधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: अर्थात सदाशिव:महाशिव) के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :----सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे (बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म को) आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया| = विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक ""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"""" के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:==विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला==== विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान """""मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| = विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है|===विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============ सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आने के परिणामतः 29 (15-29) मई, 2006 को संस्थागत सफलता (67/11) मिल जाने के बाद से ही (और इसी क्रम में 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 के इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से मिली पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था की प्राप्ति हुई); इस प्रथम भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र (विश्व-मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र), प्रयागराज (/काशी) से सोसल मिडिया के अपने ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" पर मैंने लिखना प्रारम्भ किया था| इस ब्लॉग पर दक्षिण के किष्किंधा क्षेत्र स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के मधुबन रुपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में अक्टूबर, 2007 से लेकर अक्टूबर, 2009 तक जो कुछ भी लिखा था उसी का सारगर्भित व् रूपांतरित स्वरुप ही वर्तमान ब्लॉग "Vivekanand and Modern Tradition" का स्वरुप है जो सारगर्भित रूप में उचित प्रकार से सामाजिक प्रभाव व् परिवर्तन का आकलन करने के साथ कई बार लिखा और मिटाया जा चुका है और वह ही अब आप सबको समर्पित है| यह ब्लॉग इसी "Vivekanand and Modern Tradition" नाम से जो दूसरे वेबसाइट एड्रेस पर था उसे 29 मई, 2006 से जनवरी 2019 तक लगभग कई लाख लोगों द्वारा पूरे विश्व से देखा गया था जिसमे लगभग आधे विजिट संयुक्त राज्य अमेरिका से थे उसके बाद भारत व अन्य देश के लोग देखे थे: संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में भारत के कुछ कम लोगों द्वारा देखे जाने का कारन इसे सीधे फेसबुक के माध्यम से देखना रहा है| ============================================================== हम एकल निकाय हैं अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की एकल ऊर्जा इकाई हैं तो फिर मूल सारंगधर (विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था स्वयं में हैं, दूसरे शब्दों में सशरीर परमब्रह्म विष्णु (भगवा) हैं स्वयं जिससे ही सांगत शक्तियों समेत तीन (त्रिफला/तिरंगा: शिव, विष्णु और ब्रह्मा) या इस प्रकार पाँचों (इस प्रकार फिर इसी त्रिफला/त्रिपात्र से पञ्चफला/पञ्चपात्र अर्थात सांगत शक्तियों समेत राम (त्रिशक्ति सम्पन्न), कृष्ण (त्रिशक्ति सम्पन्न), शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है| यहाँ उल्लेखित करना है कि राम (त्रिशक्ति सम्पन्न)//सामानान्तर इस्लामियत, कृष्ण (त्रिशक्ति सम्पन्न)//समानान्तर ईसाइयत तो फिर राम की परीक्षा इस्लामियत और कृष्ण की परीक्षा ईसाइयत लेती है तो फिर विगत दो दशक में वैश्विक रूप में मेरे दोनों स्वरूपों की परीक्षा मेरे इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयारगराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए ही हो चुकी हैं; तो फिर आप सभी से निवेदन है की मेरे सन्दर्भ में आप नव प्रयोगवादी न बनें और मुझे अपने इस दायित्व के साथ ही साथ आम व्यक्ति की तरह व्यावहारिक दुनिया का दायित्व भी निभाने दें| क्योंकि राम और कृष्ण तक ही यह परीक्षा सीमित नहीं रही अपितु मने सिद्ध किया की मैं ही सनातन राम और सनातन कृष्ण स्वरुप में अर्थात सशरीर परमब्रह्म राम (/कृष्ण) का दायित्व निभाते हुए इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयारगराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए ही अपने अभीष्ठ लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूप से प्राप्त करने के दौरान ही राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी के दायित्व का वैश्विक मानक का पालन करते हुए निर्वहन किया है| ==========विश्व मानवता का मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में विगत दो दसक के अन्तर्गत धारित परमब्रह्म विष्णु के इन दोनों स्वरूपों परमब्रह्म कृष्ण (2006(/2013/2014) और परमब्रह्म राम (2018(/2010/2019) जिसमें की सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा का समावेष होता है उससे भी परे इस सम्पूर्ण विश्व में कोई जाति/धर्म है क्या? तो फिर जाति/धर्म सामाजिक व्यवस्था को यथा सम्भव सुचारु रूप से चलाने हेतु ही हैं (आज आपको स्वयं सोचना है की जिस समाज में आप और आपकी आने वाली पीढ़ी युगों-युगों तक जीना चाहती है उस समाज हेतु आपका अपने हिस्से से कितना त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम किया जा रहा है), इसके साथ की सबको अपने प्रारब्ध के साथ स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अपने कर्मों का परिणाम किसी न किसी रूप में स्वीकार करना ही पड़ता है यह वह नहीं धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र निर्धारित करता है जिसके धारक विष्णु और रक्षक स्वयं शिव हैं (जो शिव 2018 (/2008/2009) से पुनः काशी पुनर्प्रस्थापित चुके हैं); और यह अब वैश्विक स्तर पर अपना कार्य सुचारु रूप से कर रहा है| मैंने ऐसे दोनों स्वरूपों के धारक के रूप में कहा है की एक सर्वोच्च ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्यागयुक्त: पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण), एक सर्वोच्च क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदानयुक्त:पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय), एक सर्वोच्च वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम युक्त: पूर्णातिपूर्ण वैश्य) , एक सर्वोच्च दीनदयाल (पूर्णातिपूर्ण करूणानिधि/जगत तारण: पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत/सर्वोच्च ईसाइ) और एक सर्वोच्च सत्यवादी (/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार: पूर्णातिपूर्ण मुसलमान/सर्वोच्च मुसलमान) युक्त एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण हूँ अर्थात किसी भी स्वरुप में मैंने सनातन धर्म और उसके विशुद्ध स्वरुप सनातन हिन्दू धर्म का कहीं भी अतिक्रमण नहीं किया है|========""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम(/कृष्ण)|》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>《《《《कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर (मुख्य आयाम राम ही हैं) के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| तो फिर मै ही भगवा और मै ही तिरंगा यह तो 1998 (/1997) से 2018 तक में ही वैश्विक रूप से सिद्ध किया जा चुका है अब  कोई भी द्वन्दात्मक स्थित या सन्देह आप सभी को नहीं रहना चाहिए और नव प्रयोगवादियों को अब कोई प्रमाण नहीं दिया जाएगा बल्कि उनको नव प्रयोग का परिणाम ही उनको सद्बुद्धि देगा| ===================================================================================================================================================== वत्स गोत्र:==>>>कश्यप (मारीच:सूर्य के एकल पुत्र) के लिए जैसे कण्व गोत्रीय हैं वैसे गौतम के लिए वत्स गोत्रीय हैं: कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्ध कौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| ============================================== हम स्वयं अपने पूर्वज का अपमान नहीं रहे किन्तु विश्व-मानवता को अमित व अखण्ड रूप में यह सच्चाई अवश्य बता रहे की रामप्रसाद(/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रहा अपितु स्वयं सनातन राम(/कृष्ण)/आद्या तक बन जाना पड़ा है अर्थात उन सभी के सामूहिक कुल का पूर्वज सारंगधर तक बन जाना पड़ा है जिनके अंतर्गत विश्व मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और बह्मा के दायित्व का निर्वहन इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में किया गया इस """25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:--1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"""""के ऐसे दो दसक के दौर में और तब जाकर विश्व एक गाँव व्यवस्था को पूर्णातिपूर्ण प्रभावी बनाया जा सका है|-बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| = ========================================= सच्चे सन्दर्भ में न कभी गौरी का त्याग हुआ, न कभी लक्ष्मी का त्याग हुआ और न कभी सरस्वती का त्याग हुआ और इस प्रकार न कभी जगदम्बा का त्याग हुआ और न कभी जानकी का त्याग हुआ और न कभी राधा का त्याग हुआ; इसका कारन यह है कि ये अनन्य और अटूट रिश्ते हैं जो हमेशा साथ में दृष्टिगत न होने पर भी बने रहते हैं और इनका भौतिक त्याग आप को कभी नजर आया भी तो उसका एकमात्र कारण अति व्यापक सामाजिक दोष रहा है तो फिर सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग तथा कलयुग तक में वह कोई भी युग ले लीजिये ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा राम(/कृष्ण) द्वारा उस सामाजिक दोष निवारण में भौतिक रूप में ये देवियाँ आपको परितक्त्या दिखाई देती रही हैं| ==================================== जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?>>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? =========================================== समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था(/आयाम) अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी":--सनातन राम(/कृष्ण): इस 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"""" के दौरान>>>>>इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) /सारन्गधर (सशरीर परमब्रह्म विष्णु) के पॉँच के पाँचों मुख्य आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी के पात्र का निर्वहन किया गया किन्तु माध्यम केवल और केवल सनातन राम (/कृष्ण) ही रहे| बीस वर्ष के ऐसे अद्वितीय कालखंड के दौर के परिणामतः वैश्विक कृष्ण की शक्ति मथुरा-वृंदाबन (2014/2013/2006); वैश्विक राम की शक्ति अयोध्या (2019/2010); और वैश्विक शिव की शक्ति काशी (2018/2008) में प्रतिस्थापित हो चुकी है| अर्थात जो धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप में अशोकचक्र 2008 में प्रयागराज (/काशी) में पुनर्स्थापित हो चुका था वह अपने पूर्णातिपूर्ण स्वरुप में स्थापित हो चुका है तो फिर स्थानीय, राष्ट्रिय व् वैश्विक स्तर पर जो कुछ भी करेगा किसी न किसी रूप में उसे उसका उचित परिणाम अवश्य प्राप्त होगा| =====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018: ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी">>>>> विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) या इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल सनातन राम की कला से हुआ| ========""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम|》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>《《《《कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर (मुख्य आयाम राम ही हैं) के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं | ======================================= =========================================== अपने ईष्ट देव ( प्रेम के ईष्ट देव) के प्रति अप्रत्यक्ष अपनी आस्था जताने वाले समुदाय से काशी (शिव:व्यक्तिगत प्रेम के ईष्ट देव ) की ही तरह अनावश्यक टकराव से हमें बचना चाहिए(यहाँ मुख्य मन्दिर पर ही कब्जा नहीं है बल्कि बगल में उनका आराधना स्थल/देवालय है) वह भी उस ईष्ट देव के लिए जो स्वयं अपने भक्तों और ब्राह्मणों और सामान्यजन के हित को देखते हुए अपने को रणछोर कहलाने में कोई अपमान नहीं समझा हो| =====उसके लिए हमेशा अज्ञानता में नहीं जीना चाहिए तो इन विगत दो दसक के सहस्राब्दी महापरिवर्तन के दौर के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में किसी भी कार्य को बकाया नहीं छोड़ा गया है=-------आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला कृष्ण मन्दिर(2014(/2013/2006) मथुरा-वृंदावन में बन गया (बन रहा) हैं न?:=====सहस्राब्दियों में ही ऐसा कभी सम्भव होता है तो इस बात पर आप गर्व करें की आप का आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला राम मन्दिर(2019/2010) अयोध्या में बन गया (बन रहा) और आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला कृष्ण मन्दिर(2014(/2013/2006) मथुरा-वृंदावन में बन गया (बन रहा) जाहिर सी बात हैं की अंतरराष्ट्रीय राम की शक्ति अयोध्या में और अंतरराष्ट्रीय कृष्ण की शक्ति मथुरा-वृंदावन में अवश्य ही ठीक उसी तरह प्रतिस्थापित हो चुकी है जैसे अंतर्राष्ट्रीय शिव की शक्ति काशी के आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि शिव वाले शिव मंदिर (2018/2008(/2009)) में प्रतिस्थापित हो चुकी है| ये तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे| ======== 11 सितम्बर, 2001 (/1998 (/1997))-2018: इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में विश्व मानवता के पॉंच के पॉंचो मूल पात्र अर्थात सारंगधर के पांच के पाँचों स्वरुप राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा के पात्र का विगत दो दशक में निर्वहन करते हुए सभी के प्रति निरपेक्ष भाव से हूँ तो अपना धैर्य न खोइए वस् अपने कर्मों और ईश्वर पर विश्वास कीजिये मुझपर आरोप न लगाए| मैं निरपेक्ष हूँ और मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| तो आप को ज्ञात हो कि इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में श्रीधर (वैश्विक विष्णु) के निर्देशानुसार 11 सितम्बर, 2001 से ही पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होकर (विश्व मानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा का आधार व धारक होकर) मैं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप में आते हुए 29(/15 -29) मई, 2006 को मिली हुई संस्थागत अभीष्ट सफलता, 67(/11) को पाने (जिसकी परिणति थी 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को परमब्रह्म राम स्वरुप में आते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया: तो जब - जब इस मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में सशरीर परमब्रह्म मुझे बनना होगा तब तब मुझमें त्रिशक्ति सम्पन्न होने का सामर्थ्य स्वयं में निहित रहेगा) के बाद भी वैश्विक शिव(प्रेमचन्द /चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) को 11 सितम्बर, 2008 तक सर्वोच्च स्थान पर रखा और उसके बाद ही अपने सशरीर परमब्रह्म स्वरुप से अलग करते हुए 10 सितम्बर, 2008 को ब्रह्मा और विष्णु को प्रयागराज तथा 11 सितम्बर, 2008 शिव को पुनः काशी में पुनर्प्रतिस्थापित किया गया था अर्थात धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/ कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा 11 सितम्बर, 2008 से की जा चुकी है; तो ऐसे में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतराष्ट्रीय स्तर अनुसार जो कोई भी जो कुछ भी कर रहा है उसका परिणाम उसको उसके प्रारब्ध और वर्तमान कर्म दोनों के अनुसार मिल रहा है और आगे भी मिलेगा तो अगर आप कुछ भी सकारात्मक किये जा रहे हैं तो अपना धैर्य न खोइए वस अपने कर्मों और ईश्वर पर विश्वास कीजिये मुझपर आरोप न लगाए|===मेरे जैसी अवस्था (सशरीर परमब्रह्म राम/कृष्ण: एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्ति सम्पन्न अवस्था की प्राप्ति जिस अवस्था को राम और कृष्ण के अलावा कोई अन्य विष्णु का अवतार आज तक प्राप्त नहीं कर सका) में जब कोई अन्य आज तक के मानवता के इतिहास में नहीं गया और सतह पर ही कार्यरत रहा उससे मेरी क्या तुलना और यह ही एक तथ्य है की मैंने कहा है की जिसने अन्तरमन मुझे चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला तो फिर वैश्विक व् स्थानीय साजिसन दक्षिण भारत की तरह ही उत्तर भारत को भी देवी दुर्गा के सातवें अवतार देवकाली के स्वरुप में सभी देवी और देवताओं तथा महापुरुषों की काली मूर्तियों से ही पाटने का कोई परिणाम नहीं आने वाला हैं| सारंगधर के पॉंच के पांचो स्वरुप का राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा का धारक स्वयं मैं ही रहा हूँ इस विश्व-मानवता के मुल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में| हाँलाकि मैं इन विगत दो दसक में विश्व मानवता के मूल बिंदु प्रयागराज (/काशी) में बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुरगत रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित, मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के आशीर्वाद से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का अधोलिखित अंतरार्ष्ट्रीय मानक पर निर्वहन विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव अवस्था में आकर मैंने किया है और कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्वमानता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् चालन व् संचालन हेतु इस संसार के समस्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान को ऊर्जा देने वाले आज तक का सबसे भव्य राम, कृष्ण और शिव मन्दिर का निर्माण हो गया (/हो रहा है) तो ऐसे में शिव पर केवल सम्पूर्ण विश्वव्यापी काशी वालों का ही अधिकार वैसे ही है जैसे विष्णु और ब्रह्मा पर सम्पूर्ण विश्वव्यापी प्रयागराज वालों का अधिकार है| स्वयं मै, जो की विगत दो दसक तक पूर्णातिपूर्ण रूप से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का धारक रहा हूँ की इसमें सहर्ष पूर्ण स्वीकृति है, जिसका मूल कारण है की सारंगधर के ये पाँचों स्वरुप अपने में अनन्य हैं| === जोशी जी (ब्रह्मा) के मानवता हेतु परोक्ष और संस्थागत प्रत्यक्ष प्रयोजन हेतु श्रीधर(विष्णु) की संस्तुति लेते हुए पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) ने इसे सफल बनाने हेतु मुझे प्रयागराज(/काशी) भेजा था और इस प्रकार 11 सितम्बर, 2001 को दाँव पर लगा (अर्थात संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता मेरी हुई थी) और 6 फरवरी, 2003 तक रहा तो स्थानीय से लेकर वैश्विक परिवर्तन के बीच पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के हिस्से का सीधा दायित्व तब तक निभा चुका था अतः यह ज्ञात होते हुए भी की इसमें जोशी जी (ब्रह्मा) और पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के लिए विशेष सम्मान की बात है बावजूद इसके मैं आगे 7 फरवरी, 2003 को पुनः दाँव पर लगाने से सीधा मना कर दिया था लेकिन श्रीधर(विष्णु) द्वारा मुझपर कार्यपूर्ण का विश्वास जताते हुए जोशी जी (ब्रह्मा) और पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के ऐसे मानवता हेतु परोक्ष और संस्थागत प्रत्यक्ष मानवता हेतु परोक्ष और संस्थागत प्रत्यक्ष हेतु विशेष रूप से स्वयं के निर्देशनुसार पुनः 7 फरवरी, 2003 को दाँव पर लग जाने का आह्वान किया था (अर्थात संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता मेरी हुई थी) तो मुझे उसे अपने पूर्णपरिणति तक पंहुचाना ही था तो फिर आगे और भी स्थानीय और वैश्विक परिवर्तन के बीच अभीष्ठ लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण प्राप्त करने हेतु मुझे 29 (15-29) मई, 2006 को अपनी स्वयं की इक्षा और अंतरात्मा की आवाज से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण की अवस्था में आते हुए (अर्थात संकल्प/समर्पण/समधिष्ठाता/ब्रह्मलीनता मेरी हुई थी) यह लक्ष्य 67 (11) हांसिल करना ही था तो फिर वही किया और इसमें कोई अनुचित नहीं किया और इसी सशरीर परमब्रह्म कृष्ण का 12 वर्ष के बाद 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) का स्वरूप था परमब्रह्म राम वाला स्वरुप| और इस प्रकार सहस्राब्दी परिवर्तन के ऐसे विगत दो दशक के दौरान जमीनी रूप से मैं वैश्विक शिव/ पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव), वैश्विक विष्णु/ श्रीधर(विष्णु) और वैश्विक ब्रह्मा/ जोशी जी (ब्रह्मा) की पूर्णातिपूर्ण शक्ति का धारक रहा हूँ | ="25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""| ============ ननिहाल के गाँव अर्थात मातृपक्ष गाँव (एक) और पितृपक्ष अर्थात सारंगधर कुलीन 6 (1+5) गाँव का विश्लेषण तो जन्म भर नहीं करूंगा जिन लोगों मुझसे कहा था की कुछ भी हो जाए प्रयागराज(/काशी) अर्थात केदारेश्वर बनर्जी केंद्र से मत हटना:----मैं रावणकुल नामतः किसी केंद्र/विभाग/संस्था/संस्थान का हिस्सा कैसे हो सकता था तो नहीं हुआ ? 67:सदस्य (/11:परिवार):29 (15-29) मई, 2006:::== ननिहाल से रामानन्द कुलीन (बिशुनपुर-223103) और गाँव से सारंगधर कुलीन (रामापुर-223225) को स्वयं गाँव से सारंगधर कुलीन (रामापुर-223225) वैश्विक शिव/ पाण्डेय जी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) ने कहा था की केदारेश्वर बनर्जी केंद्र में ही तुमको अप्लाई करना है क्योंकि इसे पूर्ण विकसित केंद्र बनाने की योजना अंतर्गत उचित मद के साथ प्रोजेक्ट दिए गए हैं तो तुमको इसे किसी भी तरह सफल बनाना है; जबकि मेघनाद साहा केंद्र में नाम मात्र मद वाला दो/तीन प्रोजेक्ट इसरो वालों ने दिया है केवल कालम पूर्ती हेतु (जिसे भौतिकी विभाग वाले तीन लोग अपने व्यक्तिगत प्रोजेक्ट की तरह अपने विभाग से चलवाते थे और अपने प्रोजेक्ट का पैसा सामूहिक कार्य के सम्बन्घित मद हेतु भी नहीं देते थे; और अपने छात्रों का पीएचडी में नामांकन भी भौतिकी विभाग में ही करवाए थे जबकि हम लोगों का पीएचडी नामांकन केदारेश्वर बनर्जी केंद्र में ही प्रथम बैच के रूप में हुआ था) ) तो इस प्रकार मेघनाद साहा केन्द्र प्रारम्भ से स्वयं में केदारेश्वर बनर्जी केंद्र का वैसे परजीवी रहा जैसे शिव का परजीवी रावणकुल रहा है| 67:सदस्य (/11:परिवार):29 (15-29) मई, 2006::: तत्कालीन सर्वोच्च पदस्थ मनीषी ने भी भारतीय संस्कृति पर आघात पंहुचाने वाले नाम जैसे रावणकुल नामतः किसी केंद्र/विभाग/संस्था/संस्थान को कोई पद न देने को कहा था| =========== तो उसे पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान और जमीन-जायदाद के संघर्ष से क्या लेना इसके सिवा की अपने हिस्से के अधिकार के साथ आम नागरिक का जीवन यापन करते रहते हुए जीवन के हर क्षेत्र के नायक बने हुए अपने छोटे और बड़े भाइयों और बहनों को सुपंथ के लिए प्रेरित करते रहने के सिवा========अपनी तीन पीढ़ी की ऊर्जा को अपने में समाहित किये हुए 25 वर्षीय अखण्ड ब्रह्मचर्य ब्राह्मण कुमार को इस प्रयागराज (/काशी) में स्थानीय से लेकर वैश्विक संघर्ष के बीच 11 सितम्बर, 2001 को दाँव पर लगा दिया गया था जो अपने जीवन में एक भी नैतिक व चारित्रिक गलती नहीं किया रहा हो और ग्रामीण स्तर से लेकर शहरीय स्तर की शिक्षा के दौरान शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक लोगों को अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से सद्चरित्र और शिक्षा के प्रति प्रेरित किये रहा हो इस प्रकार वह अपने संस्थागत लक्ष्य को 29 (15-29) मई, 2006 को सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को प्राप्त करते हुए प्राप्त किये रहा हो तत पश्चात मिनी अमेरिका कहे जाने वाले स्थान भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु जाकर दो वर्ष प्रवास करने के बावजूद भी किसी नैतिक और चारित्रिक गलती से बचा रहा हो और विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला हो वह स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के बीच उसी तंत्र के बीच रहते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को सशरीर परमब्रह्म राम स्वरुप को प्राप्त करते हुए इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अपना लक्ष्य प्राप्त किया हो====तो उसे पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान और जमीन-जायदाद के संघर्ष से क्या लेना इसके सिवा की अपने हिस्से के अधिकार के साथ आम नागरिक का जीवन यापन करते रहते हुए जीवन के हर क्षेत्र के नायक बने हुए अपने छोटे और बड़े भाइयों और बहनों को सुपंथ के लिए प्रेरित करते रहने के सिवा|NOTE----""""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:--25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========मेरे जैसी अवस्था (सशरीर परमब्रह्म राम/कृष्ण: एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्ति सम्पन्न अवस्था की प्राप्ति जिस अवस्था को राम और कृष्ण के अलावा कोई अन्य विष्णु का अवतार आज तक प्राप्त नहीं कर सका) में जब कोई अन्य आज तक के मानवता के इतिहास में नहीं गया और सतह पर ही कार्यरत रहा उससे मेरी क्या तुलना और यह ही एक तथ्य है की मैंने कहा है की जिसने मुझे अंतर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला तो उसमें उसका कोई दोष किसी भी प्रकार निहित नहीं है| ======= विगत दो दसक में विश्व एक गाँव व्यवस्था तो पूर्णातिपूर्ण रूप से स्थापित हो चुकी है पर आप सबकी सहनशीलता जवाब दे देने के परिणामत: 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद से वैश्विक श्रृंखला टूट जाने पर आंशिक कार्यकारी लोगों (जो ऐसी व्यवस्था का लाभ लेकर अपनी तरफ से वैश्विक स्तर की सेवाएं दे रहे हैं) को छोड़कर आम भारतवासी अपने हिस्से का ही मानवतागत बोझ तब से उठा रहे है जो की लगभग दो दशक तक सम्पूर्ण विश्व-मानवता का बोझ उठाये चल रहे थे| और यह वैश्विक सामाजिक न्यायगत व्यस्था अपने में एक स्थानीय सह केंद्रीय व्यवस्था का एक अनूठा नमूना है| और यही एक मात्र कारण है की विगत दो दसक में कोई महत्वपूर्ण कार्य अपूर्ण नहीं छोड़ा गया है:==अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी| ============================================= मातृपक्ष(गुरुपक्ष)////पितृपक्ष ===बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर/ गोरखपुर (/गोरक्षपुर))////रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/ बस्ती (अवधक्षेत्र))||====एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा गोरखपुर (/गोरक्षपुर) निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण, निवाजी बाबा (जिस कुल अंतर्गत रामानन्द कुल) को दान में दिया गया 300 बीघा मात्र का गाँव बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) और एक इस्लाम अनुयायी गौतम गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा बस्ती (अवधक्षेत्र) निवासी कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण बाबा सारंगधर को दान में दिए गए पॉंच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+ बागबहार+ लग्गूपुर+ गुमकोठी+ औराडार) में से 500 बीघे मात्र का एक गाँव रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र)|========ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर+गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही समतुल्य बना हुआ हूं। ========================================== वह जो सशरीर परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त किया हो और जिससे साजिसन प्रायोजित कोई एक भी नैतिक गलती आज तक भी कोई नहीं करवा पाया हो --- वह----उन सभी देवी व् देवताओं को जो सजिसन गलती कर देने के शिकार हुए हैं उनको ऐसी साजिसन गलती के प्रायश्चित से बचाव करता है <<<ऐसे >>प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान """"(25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान""""""मानवता की हर स्थिति में रक्षा की प्रथम और अंतिम रक्षक इकाई विष्णु ही हैं अर्थात शिव की सहनशीलता जबाब दे देने के बावजूद भी| ऐसा ही इस दो दसक में साबित हुआ जिसका मूल कारन है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु व् ब्रह्मा का आविर्भाव होना जो एक सामान्य प्रक्रिया नहीं तो ऐसी स्थति से बचने हेतु विष्णु को स्वयं हर स्थिति में मानवता के रक्षण की प्रथम और अंतिम कड़ी बनना पड़ता है:===== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है: ====>>>>>>>> =====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है|==== सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :----------सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया| ==================== 11 सितम्बर, 2001 के दौर में जो शिव इस विश्व मानवता के मूल केंद्र अर्थात विश्व मानवता के जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में अडिग रहते हुए केंद्रित रहा और जो काशी जाने से पहले 7 फरवरी, 2003 से 11 सितम्बर, 2008(/29 मई, 2006 अर्थात पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य 67(11) को प्राप्त करने तक, जिसका की सामाजिक स्वरूप 12 वर्ष बाद इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम व् विधि-विधान-संविधान के साथ 25 मई, 2018(/31 जुलाई, 2018) को सामने आया) तक विष्णु और ब्रह्मा के साथ केंद्रित रहा प्रयागराज में (इस प्रकार जो विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप में विलीन रहा) उसे याद रखियेगा|===="25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""का दौर||====जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान, शिवलला (बाल शिव) स्वयं जगत जननी जानकी/सीता के साथ हैं:-----आपको मालूम हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव ही हैं (जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा अर्थात महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी जिसमें से देवकाली स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप):=========जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| NOTE:====जगत जननी जानकी/सीता अर्थात महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी| और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है| ====== मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा (मैं निरपेक्ष हूँ: सुपंथ पर आगे बढ़ें मानवता की कमी को पूरा करें): === व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| =मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है|============हमेशा अज्ञानता में नहीं जीना चाहिए तो इन विगत दो दसक के सहस्राब्दी महापरिवर्तन के दौर के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में किसी भी कार्य को बकाया नहीं छोड़ा गया है=-------आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला कृष्ण मन्दिर(2014(/2013/2006) मथुरा-वृंदावन में बन गया (बन रहा) हैं न?:=====सहस्राब्दियों में ही ऐसा कभी सम्भव होता है तो इस बात पर आप गर्व करें की आप का आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला राम मन्दिर(2019/2010) अयोध्या में बन गया (बन रहा) और आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि वाला कृष्ण मन्दिर(2014(/2013/2006) मथुरा-वृंदावन में बन गया (बन रहा) जाहिर सी बात हैं की अंतरराष्ट्रीय राम की शक्ति अयोध्या में और अंतरराष्ट्रीय कृष्ण की शक्ति मथुरा-वृंदावन में अवश्य ही ठीक उसी तरह प्रतिस्थापित हो चुकी है जैसे अंतर्राष्ट्रीय शिव की शक्ति काशी के आजतक का सबसे भव्य अंतरराष्ट्रीय छवि शिव वाले शिव मंदिर (2018/2008(/2009)) में प्रतिस्थापित हो चुकी है| ये तीनों अपने प्रतीकों के माध्यम से और विष्णु और ब्रह्मा आप के बीच में मौजूद रहते हुए कम से कम एक सहस्राब्दी तक आप की ऊर्जा शक्ति बने रहेंगे| ======================पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:=====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला==== विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान """"(25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:------ (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान""""""मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| =आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी ======जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| === =आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी ======जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| =================आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है|पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर किसी रूप, रंग व् जाति-धर्म के पक्षकार देश के अन्दर व बाहर कहीं न कहीं बैठे है और ऐसा हर कोई अगर ऐसे दूकान खोलकर बैठे हुए पक्षकार समूह को लाभ पहुँचा रहा है उसको ऐसे कार्य के बदले लाभ है; जो उसे मिल रहा है चाहे विश्व के किसी कोने में बैठे किसी के व्यक्तिगत व् स्थानीय सूचना आदान-प्रदान केे बदले का ही लाभ क्यों न हो? किसी को अपने धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व्तो संस्कृति को संरक्षित करने का भी तो अधिकार है अगर वह ऐसे धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व संस्कृति के संरक्षण हेतु त्याग, बलिदान व् तप/योग/उद्यम करते हुए सामजिक नियमों का उल्लघन कर मानवता को हानि न पंहुचाता हो तो ऐसे में अब किसी के रूप, रंग व् जाति-धर्म के आधार पर मात्र किसी एक ही रूप, रंग व जाति-धर्म वालों पर नश्लवाद व् जाति-धर्मवाद का आरोप लगाना बेईमानी ही है|========मैंने कई बार इन्गित किया है की स्थान और प्रवृत्ति ही जिसकी निम्न हो वह अपनी स्वयं की सामाजिक व् आर्थिक व् भौगोलिक मजबूरियों के तहत अपने ऐसे निम्न कर्तव्य से बाज नहीं आता है वह मिश्रित व्यवस्था को अंगीकार भी करता है तो केवल व केवल अपने निहित स्वार्थ हेतु; सम्पूर्ण मिश्रित व्यवस्था का केवल अपने अधिकतम हित हेतु उसका हमेशा एकमेव प्रयास रहता है; न की उस हित भावना को प्रत्येक घटक तक समान रूप से पंहुचाने हेतु; तो फिर उसे नियंत्रित करना ही पड़ता है| ====== तो मैंने वादा किया था की मैं अपने प्रोफेशनल कर्तव्यों के साथ राजनैतिक क्षेत्र के छोटे-बड़े भाई बहनों का सहयोग अपने संकेतो द्वारा इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए करता रहूँगा तो फिर उसे निरपेक्ष भाव से निभाता रहा हूँ और निभाता रहूँगा अपने प्रोफेशनल दायित्व का निर्वहन करते हुए; जैसा की गुरुकुल व्यवस्था का दायित्व होता है अच्छे से अच्छे समाज के निर्माण और उसके हेतु दिशा निर्देशन करते हुए समाज और गुरुकुल के ताल-मेल को स्थापित किये रखने का| -----हाँ यह अवश्य है की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद अपनी सहनशीलता जबाब दे जाने पर आपने आभासीय रूप से राष्ट्रिय व प्रांतीय व्यवस्था को भले अंगीकार कर लिया वैश्विक व्यवस्था को स्थापित हुआ देखकर----- पर-----पूर्णातिपूर्ण अनुभव या ज्ञान यदि अभी भी आपको न हो की इस विगत दो दसकों विश्व एक गाँव व्यवस्था या भौगोलीकरण व्यवस्था स्थापित हो चुकी है पूर्ण रूप से तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), रराम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| ================== भारतीय समाज के लिए अमूल्य निधि अर्पित करता हूँ:===विश्व-मानवता के इतिहास के पांच मूल पात्र हैं राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है| मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है==अमूल्य निधि अर्पित करता हूँ भारतीय समाज के लिए विशेष कर प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र और इस प्रकार मानवता के सबसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए जिसे सम्पूर्ण विश्व पूर्णातिपूर्ण रूप से विश्व-मानवता का केंद्र यह मान चुका है:==आज आपकी पीढ़ी एक समाज विशेष से यह समझ चुकी है की ब्रेन वास (ह्रदय परिवर्तन) और एक माह के समय के उपरान्त हम किसी को भी अपना बना सकते हैं; और दूसरे समुदाय विशेष से यह समझ गया है की जिसका सामान्य गलती पर हम घर निकाला कर देते हैं, उसके घर से निकल जाने के बाद प्रत्यक्ष उससे हमारा कोई सरोकार भले नहीं रह जाता है फिर भी उसका हमारे ही विरोध में प्रयोग किया जाता है उस समाज द्वारा जिसमे वह जाकर शामिल होता है, तो फिर इस दोनों तथ्य से पूर्ण भिज्ञ समाज आज अपनी आधी आबादी को संरक्षित कर अपना संरक्षण कर सके तो कर ले, क्योंकि सनातन धर्म जब तक इस संसार में जीवित रहेगा तभी तक विश्व मानवता को मजबूती प्राप्त होती रहेगी अन्यथा सनातन धर्म पर आश्रित सम्पूर्ण विश्व-मानवता एक खाना बदोश जीवन की मिसाल हो जाएगी अर्थात उनकी संस्कृति का प्रतिरोध और उसकी संस्कृति को राह दिखाने वाला कोई नहीं होगा| क्योंकि सनातन संस्कृति का विशुद्ध रूप हिन्दू संस्कृति ही है तो ऐसे व्यापक विचार से प्रेरित हो उसको इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व-मानवता को बचा सको तो बचा लो और उसका क्षरण अब ऐसे वैज्ञानिक तथ्य सामने आने के बाद भी न होने दीजिये| और इन्ही तथ्यों के आधार पर ही मैंने कहा है की राम के सामानान्तर इस्लाम और कृष्ण के सामानांतर ईसाइयत का संचालन होता है; तो फिर किसी भी समानान्तर रेखा का समाप्त होना मानवता के लिए ठीक नहीं है| ==================== विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है की यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ==पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:==विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला==== विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान ""(25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:--- (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान""""""मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| =आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), रराम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी =जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| ====आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), रराम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी ==जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| ==आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है|पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर किसी रूप, रंग व् जाति-धर्म के पक्षकार देश के अन्दर व बाहर कहीं न कहीं बैठे है और ऐसा हर कोई अगर ऐसे दूकान खोलकर बैठे हुए पक्षकार समूह को लाभ पहुँचा रहा है उसको ऐसे कार्य के बदले लाभ है; जो उसे मिल रहा है चाहे विश्व के किसी कोने में बैठे किसी के व्यक्तिगत व् स्थानीय सूचना आदान-प्रदान केे बदले का ही लाभ क्यों न हो? किसी को अपने धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व्तो संस्कृति को संरक्षित करने का भी तो अधिकार है अगर वह ऐसे धर्म, जाति, नश्ल, संस्कार व संस्कृति के संरक्षण हेतु त्याग, बलिदान व् तप/योग/उद्यम करते हुए सामजिक नियमों का उल्लघन कर मानवता को हानि न पंहुचाता हो तो ऐसे में अब किसी के रूप, रंग व् जाति-धर्म के आधार पर मात्र किसी एक ही रूप, रंग व जाति-धर्म वालों पर नश्लवाद व् जाति-धर्मवाद का आरोप लगाना बेईमानी ही है|========मैंने कई बार इन्गित किया है की स्थान और प्रवृत्ति ही जिसकी निम्न हो वह अपनी स्वयं की सामाजिक व् आर्थिक व् भौगोलिक मजबूरियों के तहत अपने ऐसे निम्न कर्तव्य से बाज नहीं आता है वह मिश्रित व्यवस्था को अंगीकार भी करता है तो केवल व केवल अपने निहित स्वार्थ हेतु; सम्पूर्ण मिश्रित व्यवस्था का केवल अपने अधिकतम हित हेतु उसका हमेशा एकमेव प्रयास रहता है; न की उस हित भावना को प्रत्येक घटक तक समान रूप से पंहुचाने हेतु; तो फिर उसे नियंत्रित करना ही पड़ता है| ====== तो मैंने वादा किया था की मैं अपने प्रोफेशनल कर्तव्यों के साथ राजनैतिक क्षेत्र के छोटे-बड़े भाई बहनों का सहयोग अपने संकेतो द्वारा इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए करता रहूँगा तो फिर उसे निरपेक्ष भाव से निभाता रहा हूँ और निभाता रहूँगा अपने प्रोफेशनल दायित्व का निर्वहन करते हुए; जैसा की गुरुकुल व्यवस्था का दायित्व होता है अच्छे से अच्छे समाज के निर्माण और उसके हेतु दिशा निर्देशन करते हुए समाज और गुरुकुल के ताल-मेल को स्थापित किये रखने का| -----हाँ यह अवश्य है की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद अपनी सहनशीलता जबाब दे जाने पर आपने आभासीय रूप से राष्ट्रिय व प्रांतीय व्यवस्था को भले अंगीकार कर लिया वैश्विक व्यवस्था को स्थापित हुआ देखकर----- पर-----पूर्णातिपूर्ण अनुभव या ज्ञान यदि अभी भी आपको न हो की इस विगत दो दसकों विश्व एक गाँव व्यवस्था या भौगोलीकरण व्यवस्था स्थापित हो चुकी है पूर्ण रूप से तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| ====== विगत दो दसक में विश्व एक गाँव व्यवस्था तो पूर्णातिपूर्ण रूप से स्थापित हो चुकी है पर आप सबकी सहनशीलता जवाब दे देने के परिणामत: 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद से वैश्विक श्रृंखला टूट जाने पर आंशिक कार्यकारी लोगों (जो ऐसी व्यवस्था का लाभ लेकर अपनी तरफ से वैश्विक स्तर की सेवाएं दे रहे हैं) को छोड़कर आम भारतवासी अपने हिस्से का ही मानवतागत बोझ तब से उठा रहे है जो की लगभग दो दशक तक सम्पूर्ण विश्व-मानवता का बोझ उठाये चल रहे थे| और यह वैश्विक सामाजिक न्यायगत व्यस्था अपने में एक स्थानीय सह केंद्रीय व्यवस्था का एक अनूठा नमूना है| (और यही एक मात्र कारण है की विगत दो दसक में कोई महत्वपूर्ण कार्य अपूर्ण नहीं छोड़ा गया है:==अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी| =============== 7 से 8 और 8 से 24 (8X3)/25 और फिर 24 से 108 (/109):--इसका भी ध्यान रखना चाहिए इस सृष्टि के संचालन हेतु:----सप्तर्षि से अष्टक ऋषि, अष्टक ऋषि के त्रिगुणन से 24 ऋषि (धर्मचक्र/ कालचक्र/ समयचक्र/ तथाकथित अशोक चक्र) का आविर्भाव होता है तो ऐसी 24 ऋषि श्रृंखला से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक ऋषि का प्रादुर्भाव होता है जिनका मूल केंद्र/स्रोत विष्णु गोत्र है तथा इन 108 मानक ऋषि में से एक गोत्र आसुरी गोत्र है (आप लोग सबको मिला दिए हैं तो इस 108 वें अंश का बराबर ध्यान रखें)--------------- सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| =तो फिर ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| = प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या -इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी सप्तर्षि (7 ऋषि) मण्डल, अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप (एकल कश्यप गोत्र), स्वयं हूँ और साथ ही साथ धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि), विष्णु ऋषि (/गोत्र) स्वयं ही हूँ | ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा| ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम: 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, === 109. विष्णु गोत्र = सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :----------सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है|====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------==1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|-----3 ----- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|--------4 ------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ======God ( Vishnu and Shiv) goddess (आदिदेवी/आद्या/भगवतीदेवी/महादेवी: Saraswati) most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and it have no any fixed duration of time in a year| =========त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु ===मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं। ====आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती=======1) या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें| 2) शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ । =====त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव)===कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। ==================== विश्व मानवता के मूल केंद्र अर्थात विश्व मानवता के जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में विश्वमानवतागत अप्रत्यक्ष व संस्थागत प्रत्यक्ष कार्य हेतु 11 सितंबर, 2001 से 6 फरवरी, 2003 तक सारंगधर कुल का दायित्व निभाया और उसके बाद 6 फरवरी, 2003 से 14 मई, 2006 रामानन्द कुल का दायित्व निभाया और फिर 15 मई, 2006 से लेकर 29 मई, 2006 तक प्रयागराज(/काशी) कुल का दायित्व निभाते हुए 29 मई, 2006 को अपना अभीष्ट लक्ष्य 67 (/11) प्राप्त किया (इस प्रकार मेरे सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था में आ जाने से इस प्रयागराज (/काशी) में मेरे संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण के निमित्त मानवतागत/संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति के विरोध में असुरकुल की स्थानीय से लेकर वैश्विक साजिश नाकाम हो गयी); उसके बाद भी मेरे अस्तित्व को स्वीकार न किये जाने पर सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में मैंने इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अपना अभीष्ट लक्ष्य 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण प्राप्त कर लेने का प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया तो फिर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के तथाकथित एक मात्रा रखवाले पक्ष के संज्ञान में सबकुछ आने के बाद से हाय-तोबा मचाने और आसमान सिर पर उठा लेने से और स्वयं उनके ही द्वारा यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान तोड़ने से क्या अर्जित होने वाला था?===========ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का समतुल्य अगर कोई है तो वह एक मात्र बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं तो फिर वह ही साबित हुआ| ======================================================================================== शायद राम और कृष्ण के समय में इस संसार में सनातन धर्म और उसकी ही संस्कृति सम्पूर्ण संसार में व्याप्त थी उस समय भी सनातन संस्कृति के साथ असुर संस्कृति का भी प्रभाव रहा करता था विशेषकर भारतीय सांस्कृतिक मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात सनातन सांस्कृतिक मूल केंद्र (क्षेत्र) से क्रमिक रूप से दूरी बढ़ने के साथ असुर संस्कृति का प्रभाव और अधिक पाया जाता रहा है; जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है रावण के गुमनाम भाई अहिरावण का राज्य पातालपुरी (वर्तमान तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली देश/राज्य) जहाँ देवी पूजा और बलि प्रथा उस समय भी थी जब हनुमान(/अम्बा-वादेकर/अम्बवाडेकर/अम्बेडकर/केशरीनंदन/शंकर-सुमन/आंजनेय/मारुतिनंदन/पवनपुत्र) अपने पंचमुखी स्वरुप में आते हुए पातलपुरी के राजा के आवास के मुख्य द्वार के सभी पांचो मायावी दीपक एक साथ ही बुझाते हुए अपने अप्रत्यक्ष पुत्र मकरध्वज(सूर्य पुत्री सुवर्चला और हनुमान के पुत्र) अर्थात वहाँ के द्वारपाल को अपना वास्तविक स्वरुप पहचनवा उस नगरी में प्रवेश किये थे जहाँ देवी पूजा जारी थी सोते हुए राम और लक्ष्मण को बलि देने हेतु जिनको अहिरावन राम-रावण युद्ध क्षेत्र से रात्रि प्रहार से सोते हुए अवस्था में उठा लाया था लंका से जब राम के अचूक बाणों की बौछार से रावण को निराशा छा गयी थी और रावण अहिरावण से मदद का सन्देश भेजा था| हनुमान द्वारा अहिरावण के वध के बाद उसी रातों रात लौटते समय राम और लक्षमण ने मकरध्वज को पातालपुरी का राजा घोषित करते हुए स्वयं राजतिलक किया था| तो ऐसे में, यद्यपि ऋषि श्रृंखला की दृष्टि से इस 108 वें अंश (असुर संस्कृति) को हम पूर्णातिपूर्ण समाप्त तो नहीं कर सकते किन्तु इसे 108 वें(1/108) अंश तक ही सीमित कर उसे पूर्णातिपूर्ण नियंत्रण में अवश्य ले सकते हैं:-----व्यापक दृष्टिकोण से आंकलन करने पर यह अकाट्य सत्य ही दृष्टिगोचर होता है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| ================================== मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ========================================= मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| =========================================== पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:=====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला======= विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| ================================= आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी ======जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| ========================================== इस मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था | अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|------------==========आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? =======विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला======= इस मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था | अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ========================================= आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी ======जब मैं पूर्णातिपूर्ण शिव स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो शिव काशी में प्रतिस्थापित कर दिए गए; जब मैं पूर्णातिपूर्ण कृष्ण स्वरूप में था तब आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो कृष्ण मथुरा-वृंदावन में प्रतिस्थापित कर दिए गए; और जब मैं पूर्णातिपूर्ण राम स्वरुप में था तो आप मुझे सहन कर पाए थे क्या? तो राम अयोध्या में प्रतिस्थापित कर दिए गए| तो तीनों शक्तियाँ अपने मूल स्थान पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतीकों के रूप में प्रतिस्थापित कर दी गयी तो अब आप एक सहस्राब्दी तक उनसे इस विश्व-मानवता के चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऊर्जा लेते रहिएगा| पर हाँ आप तो विष्णु और ब्रह्मा को आप सहन कर सकते हैं तो शिव, राम और कृष्ण के आशीर्वाद से और विष्णु और ब्रह्मा के माध्यम से यह संसार चल रहा है इसे अनवरत सहस्रादियों तक चलाते रहिये| =========================================== आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए|========मैंने कई बार इन्गित किया है की स्थान और प्रवृत्ति ही जिसकी निम्न हो वह अपनी स्वयं की सामाजिक व् आर्थिक व् भौगोलिक मजबूरियों के तहत अपने ऐसे निम्न कर्तव्य से बाज नहीं आता है वह मिश्रित व्यवस्था को अंगीकार भी करता है तो केवल व केवल अपने निहित स्वार्थ हेतु; सम्पूर्ण मिश्रित व्यवस्था का केवल अपने अधिकतम हित हेतु उसका हमेशा एकमेव प्रयास रहता है; न की उस हित भावना को प्रत्येक घटक तक समान रूप से पंहुचाने हेतु; तो फिर उसे नियंत्रित करना ही पड़ता है| ====== तो मैंने वादा किया था की मैं अपने प्रोफेशनल कर्तव्यों के साथ राजनैतिक क्षेत्र के छोटे-बड़े भाई बहनों का सहयोग अपने संकेतो द्वारा इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए करता रहूँगा तो फिर उसे निरपेक्ष भाव से निभाता रहा हूँ और निभाता रहूँगा अपने प्रोफेशनल दायित्व का निर्वहन करते हुए; जैसा की गुरुकुल व्यवस्था का दायित्व होता है अच्छे से अच्छे समाज के निर्माण और उसके हेतु दिशा निर्देशन करते हुए समाज और गुरुकुल के ताल-मेल को स्थापित किये रखने का| --------हाँ यह अवश्य है की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद अपनी सहनशीलता जबाब दे जाने पर आपने आभासीय रूप से राष्ट्रिय व प्रांतीय व्यवस्था को भले अंगीकार कर लिया वैश्विक व्यवस्था को स्थापित हुआ देखकर----- पर-----पूर्णातिपूर्ण अनुभव या ज्ञान यदि अभी भी आपको न हो की इस विगत दो दसकों विश्व एक गाँव व्यवस्था या भौगोलीकरण व्यवस्था स्थापित हो चुकी है पूर्ण रूप से तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019(2018)/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| =============================================================================================================================== पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:-----विश्व-मानवता हित में विगत दो दसक के दौरान विश्व-मानवता के किसी भी विभूति का कोई गुण/युक्ति और आचरण नहीं छूटा था:=====विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला=======विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के निमित्त विगत दो दशक के दौरान मेरा ही पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्प/समाधिष्टता/ब्रह्मलीनता/समर्पण हुआ था उसपर भी मैं सक्रीय रूप में साबित रहा| =======इस मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था | अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|-------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ===========आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? =======विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला======= इस मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था | अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=======================पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान वालों व् उच्च भौतिकता से लेकर निम्न स्तर का जीवन जीने वालों:----अगर संयमित हो कर आप आज अपने धर्म की रक्षा करेंगे तो आगे चलकर धर्म आपकी रक्षा करेगा और इसी प्रकार अगर आप यथासंभव सामाजिक व धार्मिक नियम की रक्षा करेंगे तो सामाजिक व धार्मिक नियम आपकी और आपके आने वाली पीढ़ियों की रक्षा करेगा------------यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=========== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर सनातन धर्म का कभी भी किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| =========================================== मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| =========================================== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ======>>>मैंने कहा है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है == ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ========================================================================== बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने तो 7 फरवरी, 2003 को प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत व् अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत हित हेतु इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी को पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पित होने को कहा था यह कहते हुए की गुरुदेव जोशी (ब्रह्मा) और प्रेमचन्द (चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) के सम्मान की बात है और तुम्हें वहां से कहीं नहीं जाना है====इसके साथ=====कालान्तर गाँव जाने पर मेरे गाँव रामापुर-223225 के दो लोगों ने भी यह कहते हुए प्रयागराज (/काशी) रुकने को कहा था की प्रेमु (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) के सम्मान हेतु कुछ भी हो जाय वहीं रुके रहो और वे हैं दिवंगत डॉ अभयचन्द पाण्डेय (आजीवन स्वयंसेवक) व् श्री राधेमोहन पाण्डेय (रीडर:सह आचार्य संस्कृत महाविद्यालय , खेतासराय, जौनपुर)| ========= तो फिर =======मानवता के मूल केन्द्र अर्थात जडत्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन मैं ही हुआ था अर्थात निरपेक्ष रूप में प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन मैं ही हुआ था न तो 29 (15-29) मई, 2006 को एक बार फिर संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अंतिम परिणामी 67 (/11) हेतु संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन मैं स्वयं की आवाज पर हो लिया|===========मैंने ही कहा था की जिसने अन्तरमन मुझे चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला तो फिर वैश्विक व् स्थानीय साजिसन दक्षिण भारत की तरह ही उत्तर भारत को भी देवी दुर्गा के आठवें अवतार देवकाली के स्वरुप में सभी देवी और देवताओं तथा महापुरुषों की काली मूर्तियों से ही पाटने का कोई परिणाम नहीं आने वाला हैं| सारंगधर के पॉंच के पांचो स्वरुप का राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा का धारक स्वयं मैं ही रहा हूँ इस विश्व-मानवता के मुल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में|================मानवता के मूल केन्द्र अर्थात जडत्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण इस संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन अर्थात निरपेक्ष रूप से प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन मैं ही हुआ था न तो 29 (15-29) मई, 2006 को एक बार फिर संस्थागत और परोक्ष रूप से मानवतागत अंतिम परिणामी 67 (/11) हेतु संकल्पित/समाधिष्ठ/समर्पित/ब्रह्मलीन मैं स्वयं की आवाज पर हो लिया:========एक ब्राह्मण की कन्या का प्रथम घर एक ब्राह्मण का घर होता है, द्वितीय घर एक सवर्ण का घर होता है, तृतीय घर एक सनातन हिन्दू (जो कि सनातन धर्म के देवी देवताओं के प्रति अपनी आस्था और विश्वास रखता है जिसमें सनातन हिन्दू विवाह के मांगलिक कार्य जिसमे अधितम देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है उन सभी में आस्था और विश्वास शामिल है) का घर होता है जबकि यहाँ तो सीमा ही पार हो चुकी थी तो धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोकचक्र टूटा था की नहीं? तो आप अपनी छोटी से जिम्मेदारी नहीं निभा पाए और पूरी दुनिया मेरे विरोध में सिर पर उठा लिये थे लेकिन मैंने अपना लक्ष्य 67 (/11) भी 29 (15-29) मई, 2006 को सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वरूप में आते हुए ही पूर्णातिपूर्ण कर लिया और 11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोकचक्र की पुनर्स्थापना और इसके रक्षक शिव की प्राणप्रतिष्ठा कर आप सबको क्षमा भी किया (तो अब जैसा कार्य वैसा परिणाम पाने को तैयार रहें)| आप अपने निकृष्ट कर्म से कम से कम अब बाज आइये जब आपको विदित हो गया हो की मै वह सारंगधर हूँ जिससे की विश्व मानवता के इतिहास के उनके पाँच के पाँच स्वरूपों अर्थात राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का उनकी सांगत देवियों समेत आविर्भाव हुआ है अर्थात सृष्टि का पुनरोद्भव हुआ है|===================ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं तो फिर वह ही साबित हुआ|================5 सितम्बर, 2000 से 11 सितम्बर, 2008 तक शिव काशी में थे क्या? जिसका उत्तर है नहीं अर्थात इतने दिन शिव की उपस्थिति काशी में नहीं रही है| और 11 सितम्बर, 2008 को उनकी पुनर्प्राण प्रतिष्ठा मेरे द्वारा की गयी थी 2008 प्रथम अर्ध में धर्मचक्र/समयचक्र/कालचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र टूट जाने के बाद जब इस संसार के सभी मन्दिर/देवालय/देवस्थान निष्प्राण अर्थात तेज विहीन हो चुके थे (अर्थात मुझसे ही शिव का पुनरोद्भव/पुनर-आविर्भाव हुआ है)| ======हाँलाकि मैं इन विगत दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में विश्व मानवता के मूल बिंदु प्रयागराज (/काशी) में बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुरगत रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित, मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के आशीर्वाद से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का अधोलिखित अंतरार्ष्ट्रीय मानक पर निर्वहन विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव अवस्था में आकर मैंने किया है और कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्वमानता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् चालन व् संचालन हेतु इस संसार के समस्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान को ऊर्जा देने वाले आज तक का सबसे भव्य राम, कृष्ण और शिव मन्दिर का निर्माण हो गया (/हो रहा है) तो ऐसे में शिव पर केवल सम्पूर्ण विश्वव्यापी काशी वालों का ही अधिकार वैसे ही है जैसे विष्णु और ब्रह्मा पर सम्पूर्ण विश्वव्यापी प्रयागराज वालों का अधिकार है| स्वयं मै, जो की विगत दो दसक तक पूर्णातिपूर्ण रूप से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का धारक रहा हूँ की इसमें सहर्ष पूर्ण स्वीकृति है, जिसका मूल कारण है की सारंगधर के ये पाँचों स्वरुप अपने में अनन्य हैं|===========धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और =========फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|================बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) का सारंगधर कुलीन पॉंच संकुल गाँव (रामापुर समेत पाँच संकुलीन गाँव (ओरिल):- रामापुर+ बागबहार+ लग्गूपुर+ गुमकोठी+ औराडार) से सम्बन्ध:=======रामानन्द व् सारंगधर (जिस स्वरुप के अंतर्गत इस विश्व मानवता के आज तक के पॉंच के पांचो मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा स्वयं आते हैं तथा जिनके अंतरगत विश्व मानवता के आजतक की समस्त विभूतियों के गुण अपने में समाहित हैं) के दायित्व का पूर्ण निर्वहन मेरे द्वारा इस प्रयागराज (/काशी) में विगत दो दसक "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""के दौरान किया गया:=====एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा गोरखपुर (/गोरक्षपुर) निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण, निवाजी बाबा (जिस कुल अंतर्गत रामानन्द कुल) को दान में दिया गया 300 बीघा मात्र का गाँव बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) और एक इस्लाम अनुयायी गौतम गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा बस्ती (अवधक्षेत्र) निवासी कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण बाबा सारंगधर को दान में दिए गए पॉंच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+ बागबहार+ लग्गूपुर+ गुमकोठी+ औराडार) में से 500 बीघे मात्र का एक गाँव रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र)|=========ऐसा मैंने कहा था की संसार में मुझ सारंगधर कुलीन त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी का एक मात्र समतुल्य अगर कोई है तो वह बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही हैं| तो फिर मेरे पांच संकुल गाँव (ओरिल: रामापुर+बागबहार+लग्गूपुर+गुमकोठी+औराडार) वालों समेत सम्पूर्ण विश्व को ज्ञात होना चाहिए की मैं त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) व रविवारीय (/प्रामाणिक रूप से मंगलवारी) रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र) वासी दो दशकों से अधित समय तक प्रयागराज (काशी) में केंद्रीत रह सम्पूर्ण मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत रूप से चालन-संचालन में सहयोग करते हुए भी आज तक बिशुनपुर-223103, जौनपुर (जमदग्निपुर) गत रामानंद कुलीन मूल भूमिवासी प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार आविर्भावित व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) गोत्रीय मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ही समतुल्य बना हुआ हूं।===================आपके वो मन्दिर तो केवल राष्ट्रिय स्तर के थे न? तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए|========मैंने कई बार इन्गित किया है की स्थान और प्रवृत्ति ही जिसकी निम्न हो वह अपनी स्वयं की सामाजिक व् आर्थिक व् भौगोलिक मजबूरियों के तहत अपने ऐसे निम्न कर्तव्य से बाज नहीं आता है वह मिश्रित व्यवस्था को अंगीकार भी करता है तो केवल व केवल अपने निहित स्वार्थ हेतु; सम्पूर्ण मिश्रित व्यवस्था का केवल अपने अधिकतम हित हेतु उसका हमेशा एकमेव प्रयास रहता है; न की उस हित भावना को प्रत्येक घटक तक समान रूप से पंहुचाने हेतु; तो फिर उसे नियंत्रित करना ही पड़ता है| ====== तो मैंने वादा किया था की मैं अपने प्रोफेशनल कर्तव्यों के साथ राजनैतिक क्षेत्र के छोटे-बड़े भाई बहनों का सहयोग अपने संकेतो द्वारा इस प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए करता रहूँगा तो फिर उसे निरपेक्ष भाव से निभाता रहा हूँ और निभाता रहूँगा अपने प्रोफेशनल दायित्व का निर्वहन करते हुए; जैसा की गुरुकुल व्यवस्था का दायित्व होता है अच्छे से अच्छे समाज के निर्माण और उसके हेतु दिशा निर्देशन करते हुए समाज और गुरुकुल के ताल-मेल को स्थापित किये रखने का| --------हाँ यह अवश्य है की 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद अपनी सहनशीलता जबाब दे जाने पर आपने आभासीय रूप से राष्ट्रिय व प्रांतीय व्यवस्था को भले अंगीकार कर लिया वैश्विक व्यवस्था को स्थापित हुआ देखकर----- पर-----पूर्णातिपूर्ण अनुभव या ज्ञान यदि अभी भी आपको न हो की इस विगत दो दसकों विश्व एक गाँव व्यवस्था या भौगोलीकरण व्यवस्था स्थापित हो चुकी है पूर्ण रूप से तो फिर अज्ञानता में हमेशा न जीवित रहिये आपका अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) और अब किसी अन्य मंदिर की आवश्यकता सहस्राब्दियों तक नहीं रहेगी आपको इस विश्व-मानवता के पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्ध, रक्षण-संरक्षण और सतत चालन-सञ्चालन हेतु तो ज्यादा उत्तेजना में आने की जरूर नहीं है| पर हाँ अब आपको जरूरत है की ऐसे मन्दिर के समकक्ष वैश्विक व् स्थानीय राम, कृष्ण और शिव को ब्रह्मा और विष्णु के माध्यम से तैयार करते रहने की तो थोड़ा-थोड़ा राम, थोड़ा-थोड़ा कृष्ण और थोड़ा-थोड़ा शिव सबको बनाते रहिये ऐसे वैश्विक स्तर हेतु तैयार करने के लिए| ==================================================================================== 2004 के बाद की बात मैं कर रहा हूँ अर्थात गुरुदेव की केवल राजनैतिक(/सामाजिक मात्र की) सत्ता जाने के बाद की बात मैं कर रहा हूँ (मै स्वयं अपने तौर पर भारतीय संस्कृति और आस्था पर चोट पंहुचाने वाले रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के नाम से नामित किसी केंद्र/विभाग/संस्थान/संस्था की स्थापना का न समर्थन करता हूँ और न उसको प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रोत्साहित करता हूँ और न ही उसका अंग होना है फिर भी):======मुझे प्रसन्नता इस बात की है की कम से कम जब आज आप लोग किसी पद पर पदासीन हो रहे हैं तो फिर प्रोफेसर, भटनागर सम्मान, किसी संस्था के निदेशक और मन्त्री की अहमियत कुछ ज्यादा हो गयी है शायद प्रोफेसर श्रीवास्तव स्वयं प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रह चुके थे; प्रोफेसर पाण्डेय स्वयं भटनागर सम्मान से सम्मानित तथा इसरो और नासा (उत्कृष्ट कार्य हेतु नासा द्वारा भी सम्मानित) जैसे संस्था में कार्यरत रहे तथा अंतरास्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले किसी संस्था के निदेशक ही नहीं वरन संस्थापक निदेशक थे और जो कि तत्पश्चात (2005 के बाद से) आई आई टी सिस्टम में भी आज तक हैं; और प्रोफेसर जोशी स्वयं प्रोफेसर, मानव संशाधन विकास मंत्री, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री के साथ महासागर विकास मंत्री थे|============29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 को ही हासिल कर लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया|======Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र (ऋषि):विष्णु गोत्र (/ऋषि) है):----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी|====सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ===11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित रूप से धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 ही पा लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया| ===========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है|============सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=========== =========जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय----व----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|==========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है| आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह कार्य से विरत करवाकर|========= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| अतएव पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते अनुसार आभासीय रूप से ही सही उनको वंश विहीन किया जाना ही उनकी सजा है| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों| =================================================================================== सशरीर परमब्रह्म से सांगत शक्तियों समेत एकल स्वरूप में शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है तो फिर वह सशरीर परमब्रह्म व्यक्तिगत रूप में किसी देव या देवी पर निर्भर नहीं रहा अपितु इस विश्वमानवता के मूल केंद्र/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज में स्वयं विश्वव्यापक शिव और विश्वव्यापक ब्रह्मा के अभीष्ट कार्य के प्रयोजन (11 सितम्बर, 2001/10 सितम्बर, 2000) को पूर्णातिपूर्ण करने हेतु विश्वव्यापक विष्णु के द्वारा निर्देशित होते ही पूर्णातिपूर्ण समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन होते ही (7 फरवरी, 2003 से 29 मई, 2006 तक के ही सीमित समय मात्र में ही प्रयोजन हेतु निर्धारित प्रामाणिक लक्ष्य को सैद्धांतिक रूप में पूर्णातिपूर्ण करने के साथ ) स्वयं सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा का धारक होते हुए सशरीर परमब्रह्म स्वरुप अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त हुआ| अर्थात जो "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""के दौरान स्वयं समस्त देवी और देवता की ऊर्जा का स्रोत रहा हो|===विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है| ======================== सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :-------सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है| सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों (त्रिदेवी) समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता और फिर आगे इसी क्रम में जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================== स्वयं के परिवार से दुनिया के कोने कोने तक के लोगों का भ्रम समाप्त हो जाय की कैसे मैं ही वह मूल सारंगधर की मूल अवस्था/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) हूँ जिससे त्रिदेव-त्रिदेवी और इस प्रकार राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा समेत समस्त मानव जगत का आविर्भाव होता है:--""सर्वकालिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं हुआ है--""-जिस दिन दुनिया के एक कोने पर विनाश से त्राहिमाम (11 सितम्बर, 2001) मचा था उसी दिन मेरे एक कदम से दूसरे किनारे पर सृजन प्रारम्भ हुआ (11 सितम्बर, 2001) और इस प्रकार उस सृजनात्मक कार्य में प्रत्यक्ष तौर पर और विश्वमानवता हित के प्रयोजन में परोक्ष तौर पर इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से सफलता मिली हो तो उसको कौन नजरअंदाज करेगा और कौन भ्रांतियां पैदा करेगा यह संसार खुद समझेगा| = गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह विश्वमानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी (11 सितम्बर, 2001) या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| मैने अपना मात्रृ-पितृ ऋण (28-08-2013/30-09-2010) को, ॠषि ऋण (25-05-2018(31--7-2018)/29(15-29)-05-2006) को व देव ऋण (10/11 सितम्बर, 2008) को बंगलुरू प्रवास के बीच क्रमशः प्रयागराज व काशी आकर तथा 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा के साथ) को पूर्णतः चुकता कर चुका हूँ| शायद यह अवस्था पूर्णातिपूर्णता ही है जिसकी परिणति ही 2019/2020 के रूप में हुई है तो इसीलिए कहता हूँ कि सारन्गधर (विष्णु) के परमब्रह्म स्वरूप: सदाशिव/महाशिव के पाँचो आयाम राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा में मुख्य आयाम राम ही हैं| = वैसे तो मैं 5 सितम्बर, 2000 को काशी से प्रयागराज आ गया था अर्थात तब से ही इस विश्व मानवता के मूल/जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मेरी उपस्थिति है पर वैश्विक विष्णु (श्रीधर) की सहमति से वैश्विक शिव (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ) के निर्देश से केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र जिसके लिए मैं ही संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ किया गया था उसपर आधिकारिक रूप से कदम 11 सितम्बर, 2001 को रखा था (तो वह केन्द्र है तो वैश्विक शिव मैं ही था/हूँ इसमें संदेह न हो किसी को); जब मैंने अपने हेतु लक्ष्य को पूर्ण कर लिया अर्थात विश्वविभीषिका को दूर कर दिया तो फिर अपने योग्य कार्य को समाप्त समझ कर यहाँ से जाना चाह रहा तो फिर बदली हुई वैश्विक परिस्थितियों बीच इस केंद्र को पूर्णतः स्थापित करने हेतु वैश्विक विष्णु (श्रीधर) के विशेष निर्देश पर न चाहते हुए भी 7 फरवरी, 2003 को पूर्णतः को संकल्पित/समर्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ संकल्पित हुआ अर्थात (अब शिव को समाहित किये हुए विष्णु की अवस्था मेरी थी); आगे 2004 को गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा) की सत्ता चली गयी तो फिर ब्रह्मा, शिव को समाहित किये हुए विष्णु की अवस्था मेरी हुई; आगे इस केंद्र की स्थापना को और अधिक बाधित किये जाने के प्रयास को मटियामेट करने हेतु 29 (15/16-29) मई, 2006 के बीच किये गए सफल प्रयास ने सिद्ध किया है की ऐसे विष्णु के परमब्रह्म अवस्था अर्थात शिव और ब्रह्मा को समाहित किये हुए विष्णु की अवस्था से सशरीर परमब्रह्म कृष्ण के रूप में इस कार्य को मैंने ही सफल बनाया है और इस प्रकार केदारेश्वर ही नहीं 67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार) एक साथ आये|----वैसे जो स्वयं सनातन राम/कृष्ण हो सकता है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है पर समय को अपना कार्य करने देना है इस सृष्टि के सञ्चालन हेतु तो फिर 12 वर्ष और लेते हुए सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति करते हुए स्वयं केदारेश्वर को सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में स्वयं स्थापित किया और इसी बीच प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक केंद्र अर्थात किष्किंधा क्षेत्र स्थित दक्षिण के मधुबन रूपी गुरुकुल में 25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009 के प्रवास के बीच 10/11 सितम्बर, 2008( देव ऋण पूर्ण और साथ ही साथ 27-30 अगस्त, 2017 में प्रयागराज(/काशी) से तिरूअनन्तपुर की यात्रा भी देवऋण पूर्ण की ही हैं अर्थात कृष्ण स्थान पर जा कृष्ण के दायित्व से उऋण होने का था) को यहाँ आकर धर्म/काल/समय चक्र अर्थात कथित रूप से अशोकचक्र की स्थापना किया अर्थात शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सत्ता को कम से कम एक सहस्राब्दी के लिए पुनर्स्थापित किया| और जो दो तिथि है 30 सितम्बर, 2010 (विष्णुकान्त:राम)/28 अगस्त, 2013(कृष्णकान्त:कृष्ण) की वह मेरे पितृ ऋण पूर्ण दिवस की हैं जिसका प्रमाण पत्र स्वयं 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से ही पूर्ण हो जाता है और जिसकी स्वीकृति 13 अप्रैल, 2018 की मेरी अयोध्या यात्रा से हो चुकी थी|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं--राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| == जरूरत पड़ने पर उचित मंच पर भी प्रमाणित किया जाएगा वैसे पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत)-2006 के स्वतः निर्धारण करने बाद पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत)-2018 ने भी स्वतः ही निर्धारण कर दिया है की सर्वकालिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुए बिना वैश्विक रूप से कैसे और कब ऐसे आयाम को प्राप्त हुआ/था/हूँ:----मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव (मुख्य आयाम सनातन राम ही हैं) और तदनुसार पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत)| = तुलनात्मक रूप में भी मैं स्वयं इंग्लैण्ड वालों से काला हूँ लेकिन अफ्रीका वालों से गोरा हूँ पर मैं अपने को अश्वेत या स्वेत दोनों नहीं समझता हूँ (अर्थात वैश्विक दृष्टिकोण में साँवला हूँ) क्योंकि इसमें रूप-रंग-नाक-नक्श-संस्कार-संस्कृति-आहार-विहार व् उस समाज का व्यक्तिगत दर्शन भी शामिल होता है और इस हेतु मुझे स्वेत बनाम अश्वेत लड़ाई में अश्वेतों के लिए न युद्ध करना है और न उसे प्रोत्साहित करना है| और ऐसे युद्ध करने वालों को स्वेतों की आधी आबादी प्यारी लगती है और आधी आबादी दुश्मन लगती है यह कौन सा स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक न्याय है (अगर इतना ही प्यार अश्वेतों से जिस भारतीय समूह को है तो उस समूह के लोग है लोग अफ्रीकी मूल की बहुएँ अपने घर क्यों नहीं लाना चाहते हैं जो की उनके द्वारा एक न्यायपूर्ण पहल होगी ऐसे प्यार को साबित करने की)|=================पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान तथा धन धान्य की दौड़ के सतह पर कार्यरत लोग तो मुझे परिभाषित नहीं कर सकते और न तो उनका आंकलन सही ही हो सकता है पर सक्षम लोगों द्वारा मुझे परिभाषित किया जा चुका है:=====जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला|==========जहाँ पर 96 प्रतिशत लोग सुबह शाम दोनों समय मांसाहार (मांसाहार में सर्वाहार यहाँ तक की कुछ लोग गाय तक का भी मांस खाते हों) करते हो अर्थात जितना की हमारे यहाँ जनजातियां या कोई समुदाय न करता हो तथा खुलेआम उनके यहाँ स्त्री और पुरुष में मदिरापान आम हो तो फिर ऐसे संस्कार वालों और अन्य वैदेशिकों के संस्कार वालों में अंतर् कहाँ रहा? तो अब वही लोग उत्तर भारतीयों को जीवन जीना सिखाएंगे और संस्कार सिखाएंगे (चिराग तले अँधेरा)? आपको विदित हो कि आज भी हमारे यहॉं ऐसे व्यवहार पर आम नारी समाज अपने स्तर पर पति का प्रतिरोध करती नजर आती है|===========नागरिकों के व्यक्तिगत संस्कार जिससे राष्ट्र की संस्कृति की उत्पत्ति होती है (जो कि समस्त नागरिकों के संस्कार का औसत होता है| आज के हमारे सामूहिक संस्कार मतलब हम सभी के संस्कारों की औसत ही भारतीय संस्कृति कहलायेगी अगर वर्तमान समय की बात की जाएगी; जिस संस्कार को अर्जित करने हेतु व्यक्ति को अपनी गतिकीय ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में बदलना पड़ता है जिसमें दसकों लग जाते हैं उसी तरह किसी समाज के सुसंस्कृत होने में शताब्दियों तक का समय लग जाता है)| ऐसे में सुसंस्कारित से कुसंस्कारित और सुसंस्कृति से कुसंस्कृतिवान होने में समय नहीं लगता किन्तु सुसंस्कारवान और सुसंस्कृतिवान होने में अधिक समय लगता है| भारतीय संस्कृति जिसका हम डंका पीटते हैं सम्पूर्ण विश्व में उसमे आज भी सबसे अधिक योगदान भारत के किस भाग से है इसकी चर्चा हम स्वयं नहीं करना चाहते है क्योंकि अगर आप चाहेंगे तो यह भी अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं (शायद विश्व मानवता का मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज(/काशी) प्रभावित सांस्कृतिक क्षेत्र ही वह क्षेत्र है जिसका की योगदान आज भी भारतीय संस्कृति में सबसे अधिक है)|===========सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले आठवें ऋषि अगस्त्य/कुम्भज के आविर्भाव से सप्तर्षि से अष्टक ऋषि मण्डल का प्रादुर्भाव हुआ है| अतः इस सम्पूर्ण संसार के सभी आयाम में अगस्त्य/कुम्भज ऋषि को केवल एक आठवाँ भाग ही मिलेगा उससे चाहे वे अपना कल्याण(/शिवत्व: सत्यम शिवम् सुंदरम: बिना सुंदरम के शिवत्व के परिकल्पना ही नहीं कीजियेगा) स्थापित करने की सोचें या वैश्विक रूप से स्वेत और अश्वेत युद्ध में अश्वेत के अधिकार मात्र की लड़ाई (दूसरे देश के घर में आश्रय लेकर दखलंदाजी) स्वयं करें तो फिर उनको किसी भी स्थित में एक आठवां भाग ही मिलेगा (आठवें ऋषि अगस्त्य/कुम्भज का स्वयं में अपना कुछ अस्तित्व नहीं है बल्कि सातों सप्तर्षि के एक सातवें के अंशदान स्वरुप जिसका अस्तित्व है)||=======तुलनात्मक रूप में भी मैं स्वयं इंग्लैण्ड वालों से काला हूँ लेकिन अफ्रीका वालों से गोरा हूँ पर मैं अपने को अश्वेत या स्वेत दोनों नहीं समझता हूँ (अर्थात वैश्विक दृष्टिकोण में साँवला हूँ) क्योंकि इसमें रूप-रंग-नाक-नक्श-संस्कार-संस्कृति-आहार-विहार व् उस समाज का व्यक्तिगत दर्शन भी शामिल होता है और इस हेतु मुझे स्वेत बनाम अश्वेत लड़ाई में अश्वेतों के लिए न युद्ध करना है और न उसे प्रोत्साहित करना है| और ऐसे युद्ध करने वालों को स्वेतों की आधी आबादी प्यारी लगती है और आधी आबादी दुश्मन लगती है यह कौन सा स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक न्याय है|==========जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| =================शायद अब कोई पोस्ट अत्यधिक लम्बे समय तक न हो क्योंकि विगत दो दशक में विश्व एक गाँव व्यवस्था अर्थात भौगोलीकरण पूर्ण रूप से स्थापित हो जाने के बाद मेरे सभी पोस्ट से सबका संदेह दूर हो जाना चाहिए की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा (अर्थात इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में दो दशक से केंद्रित रहते हुए बिशुनपुर-223103 और रामापुर-223225 दोनों के स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय व् अंतरास्ट्रीय दायित्व का पूर्णातिपूर्ण सफल निर्वहन मैंने ही किया है) ऐसा मैंने क्यों कहा था और कह रहा हूँ, लेकिन इसका यह मतलब यह भी नहीं होता है कि बेटा सिर उठाये तो उसका गला काट दिया जाए| इस विश्व मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक स्तर के सारंगधर के पॉँच के पाँचों स्वरुप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) की मानक अर्हता/पात्रता """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" के दौरान मुझे ही रखनी पड़ी ऐसा मानवीय समाज का निर्माण आप लोग अपने व्यक्तित्व से किये थे और आज भी कुछ लोग कर रहे हैं:===:कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्धकौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| + और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले आठवें ऋषि अगस्त्य/कुम्भज के आविर्भाव से सप्तर्षि से अष्टक ऋषि मण्डल का प्रादुर्भाव हुआ है| अतः इस सम्पूर्ण संसार के सभी आयाम में अगस्त्य/कुम्भज ऋषि को केवल एक आठवाँ भाग ही मिलेगा उससे चाहे वे अपना कल्याण(/शिवत्व: सत्यम शिवम् सुंदरम: बिना सुंदरम के शिवत्व के परिकल्पना ही नहीं कीजियेगा) स्थापित करने की सोचें या वैश्विक रूप से स्वेत और अश्वेत युद्ध में अश्वेत के अधिकार मात्र की लड़ाई (दूसरे देश के घर में आश्रय लेकर दखलंदाजी) स्वयं करें तो फिर उनको किसी भी स्थित में एक आठवां भाग ही मिलेगा (आठवें ऋषि अगस्त्य/कुम्भज का स्वयं में अपना कुछ अस्तित्व नहीं है बल्कि सातों सप्तर्षि के एक सातवें के अंशदान स्वरुप जिसका अस्तित्व है)|| =========================================== जिस श्वेत और अश्वेत शीत युद्ध जारी रखने का कोई सकारात्मक परिणाम दशकों से दक्षिण भारतीयों को नहीं प्राप्त हुआ और वे उल्टे ही स्वयं अपने विदेशी आकाओं के ऊपर ही आश्रित हो गए और उनका आधार स्वयं उत्तर भारत ही हो चुका है तो फिर वही गलती उत्तर भारतीयों को नहीं करनी चाहिए जो की 11 (/10) सितम्बर, 2008 से विश्व मानवता का केंद्र बने हुए हैं| ======दक्षिण भारतीयों की तर्ज पर स्वदेश के हर जाति/धर्म लोगों, परिजनों, सम्बन्धियों का घर तोड़कर विदेशी अश्वेतों लोगों का घर कब तक आप बसायेंगे इसका पर्याय क्रूरता नहीं वरण अपनी स्वयं की क्षमता कम हो तो फिर बहुत अधिक दानशीलता नहीं दिखाई जाती है अपितु अपनी क्षमता के अंदर ही रहा जाता है तो स्वेदशी लोगों का घर उजाड़ कर विदेशी अश्वेतों के अधिकार की लड़ाई समाप्त कीजिये अन्यथा उत्तर भारत भी लुट जाएगा दक्षिण भारतीयों की तरह वैदेशिक शक्तियों का गुलाम होगा तथा भारत से सुंदरता शब्द उसी तरह समाप्त हो जाएगा जैसे की दक्षिण भारत से लगभग समाप्त प्राय हो चुका है अर्थात सत्यम शिवम् सुंदरम से सुंदरम शब्द की इति हो जाएगी और इस प्रकार शनैः शैनः शिवत्व(/कल्याण/) का लोप होता जाएगा| =====स्वाभाविक तौर पर अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह ही नहीं अपितु स्थानीय से लेकर राष्ट्रिय एवं अंतरार्ष्ट्रीय तौर पर प्रायोजित अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह को बढ़ावा इसलिए आप द्वारा दिया जाता है जिससे की स्वेत और अश्वेत के यह लड़ाई जारी रखी जा सके तो यह बलात कार्य आपके लिए शुभ लक्षण वाला होना ही नहीं था और न है| अगर कोई भी व्यक्ति अपने त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम के बल पर अपने जाति और धर्म को संरक्षित रखना चाह रहा है तो कुछ भी अनुचित नहीं है और उसे धिक्कारने का अधिकार उसे नहीं है जो अपने किसी निजी या सामूहिक लाभ हेतु अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह करता या बढ़ावा देता है|=====भारतीय क्षेत्र से एफ्रो-अमेरिकी या एफ्रो-फ्रांसीसी जैसी नश्लीय शीत युद्ध जारी रखे जाना या उसका समर्थन करना भारत के लिए सुखद स्थिति नहीं बल्कि दुखद स्थिति ही लाएगा| आप सभी को ज्ञात हो की वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह पुष्ट हो चुका है की भारत में नश्लीय स्थिति एफ्रो-अमेरिकी या एफ्रो-फ्रांसीसी रूप-रंग-नाक-नक्श-संस्कृति-संस्कार के जैसी नश्लीय स्थिति में नहीं हैं अर्थात मेरे यहां श्वेत व् अश्वेत जैसा कोई नश्लीय विभाजन नहीं है| भारत के लोग शायद चीन से सीखें की चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्वेत बनाम अश्वेत लड़ाई में अश्वेत के अधिकार के लिए एक ठीकेदार की भूमिका का निर्वहन नहीं कर रहा है; तो फिर भारत के स्वयं के पास इतनी आबादी नहीं है की भारत के अघोषित समूह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्वेत बनाम अश्वेत के शीत युद्ध में अश्वेत के अधिकार के लिए एक ठीकेदार की भूमिका का निर्वहन कर सकेें अर्थात उनको ऐसी ठीकेदारी छोड़ देनी चाहिए; अन्यथा उत्तर भारत जो वर्तमान में 11 (/10) सितम्बर, 2008 से विश्वमानवता का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष केंद्र बन चुका है उसकी भी हालत शीघ्र ही दक्षिण भारत की तरह ही हो जाएगी और उत्तर भारत के लोग भी दक्षिण भारत की तरह जिन लोगों (बौद्धिक रूप से समर्थ लोगों) का देश निकाला कर रहे हैं ऐसे उन देश निकाला लोगों (बौद्धिक रूप से समर्थ लोगों) के ऊपर उत्तर भारत भी आश्रित हो जाएगा जैसा की दक्षिण भारत के लोग उनके ऊपर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आश्रित रहने लगें हैं अर्थात उत्तर भारत के लोग भी एक तरह से विदेश में बैठे बौद्धिक लोगों के गुलाम हो जाएंगे| =========================================== ======================================================================================================================================================== जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान,शिवलला स्वयं जगत जननी जानकी/सीता के साथ हैं:-----आपको मालूम हो कि जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा की पहचान शिव ही हैं (जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा अर्थात महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी जिसमें से देवकाली स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप):=========जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| NOTE:====जगत जननी जानकी/सीता अर्थात महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी| और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है| =========================================== और मैंने यह कहा है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है| ===================================== जो विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में दो दसक तक केंद्रित रहते हुए सारंगधर के पॉंच के पांचो स्वरुप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) को प्राप्त हुआ तो वह अवश्य ही विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) स्वरुप को प्राप्त हुआ होता है तो उसको तो जीवन में वह कर्तव्य मात्र ही शेष रहता है जिसमें जीवन के रंगमंच पर एक आदर्श अभिनय करना और एक आदर्श अभिनय करवाने जैसा ही रहता है======मैंने इन दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में किसी भी अवस्था में मानवता से शिवत्व को समाप्त नहीं होने दिया और न समाप्त होने दिया जाएगा और इस प्रकार विश्व मानवता अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई|========सारंगधर के अंतर्गत विश्व मानवता के इतिहास के पॉंच के पाँचों पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा सभी आते हैं किन्तु पहले ही सन्दर्भ लोग राम का ही बोध करते हैं अर्थात मुख्य पात्र राम को ही मानते हैं:----सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले), और शिव (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (/अलका )को अपने अलकों में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] ========इस प्रकार वह सारंगधर बना जो कि """विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव:महाशिव:सनातन राम/कृष्ण) में सभी अवस्थाएं समाहित है अर्थात उस असीमित ऊर्जा में समस्त ऊर्जाएं समाहित हैं किन्तु सुचारु रूप से इस संसार के सञ्चालन हेतु इस संसार में पाँच मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा""" की अवस्था को प्राप्त हुआ क्योंकि मैंने इन दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में किसी भी अवस्था में मानवता से शिवत्व को समाप्त नहीं होने दिया और न समाप्त होने दिया जाएगा और इस प्रकार विश्व मानवता अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई|| ================================================================================================================================= मेरे गाँव, रामापुर-223225, आजमगढ़/आर्यमगढ़ की सीमा के अन्दर में मेरे पास वह जमीन और वह जायदाद 11 सितम्बर, 2001; 7 फरवरी, 2003 और 15-29 मई, 2006 को भी थी जब मै क्रमसः परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचंद्र/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव); परमगुरु परमपिता परमेश्वर (श्रीधर/विष्णु) और स्वयं की आतंरिक आवाज पर इसी मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण रूप से समाधिष्ठ/समर्पित/संकल्पत/ब्रह्मलीन हुआ था और गाँव की सीमा के अंतर्गत वही जमीन व् जायदाद आज भी है पर अब परेशानी इस बात की किसी की हो की निर्णय लेने में उसकी राय क्यों नहीं ली गयी यह उसकी अक्षमता और परेशानी है इस समय पर 15-29 मई, 2006 को ही शरीर परमब्रह्म कृष्ण के रूप में संस्थागत अभीष्ट सफलता (67/11) दिलाने के बावजूद भी मेरे अस्तित्व को न स्वीकारने पर ===========मैंने सोचा था की विश्व-मानवता पर बोझ/ग्रह कहे जाने वाला असुर समाज जब स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर अपनी सम्पूर्ण क्षमता के अनुसार मेरा विरोध कर लेगा तब बताएँगे की अब वे मेरा विरोध कर मेरे मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ में कम से कम एक सहस्राब्दी तक कमियाँ निकलते रहे क्योंकि मुझे जो सामाजिक प्रमाणपत्र मिलना था वह मिल चुका है की मैं शिव, राम, कृष्ण बन चुका हूँ अर्थात राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा जैसे सारंगधर के पांच के पाँचो मूल पात्रों का निर्वहन अंतरास्ट्रीय मानक पर कर चुका हूँ क्योंकि राम ( विष्णु का परमब्रह्म स्वरूप अर्थात सांगत शक्तियों युक्त एकल स्वरुप में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शक्ति से सम्पन्न अवस्था) और कृष्ण (विष्णु का परमब्रह्म स्वरूप अर्थात सांगत शक्तियों युक्त एकल स्वरुप में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की शक्ति से सम्पन्न अवस्था) बन चुका हूँ| =====""""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"""""=======जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त राम(2019(2018)/2010), कृष्ण (2014(/2013)//2006) और शिव (2018/2008), मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला|=============हाँलाकि इन विगत दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में विश्व मानवता के मूल बिंदु प्रयागराज (/काशी) में बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुरगत रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित, मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के आशीर्वाद से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का अधोलिखित अंतरार्ष्ट्रीय मानक पर निर्वहन विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सदाशिव अवस्था में आकर मैंने किया है और कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्वमानता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् चालन व् संचालन हेतु इस संसार के समस्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान को ऊर्जा देने वाले आज तक का सबसे भव्य राम, कृष्ण और शिव मन्दिर का निर्माण हो गया (/हो रहा है) तो ऐसे में शिव पर केवल सम्पूर्ण विश्वव्यापी काशी वालों का ही अधिकार वैसे ही है जैसे विष्णु और ब्रह्मा पर सम्पूर्ण विश्वव्यापी प्रयागराज वालों का अधिकार है| स्वयं मै, जो की विगत दो दसक तक""""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" पूर्णातिपूर्ण रूप से सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा) का धारक रहा हूँ की इसमें सहर्ष पूर्ण स्वीकृति है, जिसका मूल कारण है की सारंगधर के ये पाँचों स्वरुप अपने में अनन्य हैं|===========धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और =========फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है| ========================= आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ===================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?===विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008 तक) तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहते हुए विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ इसके साथ ही साथ आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति और संस्कार से शाकाहारी हूँ तथा आजीवन आम नशे से लेकर ख़ास नशे का किसी भी प्रकार से कभी भी सेवन नहीं किया हूँ और मैं अपनी प्रतिज्ञा(/इक्षाशक्ति पर नियंत्रण की जिद) अनुसार मैं कभी चलचित्र मन्दिर में बचपन से लेकर आज तक कभी प्रवेश नहीं लिया हूँ| यह इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक चुनौतियों में बीच परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण की सहन शक्ति हेतु अपने में पर्याप्त है तो ऐसे दायित्व का निर्वहन 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक किया गया और आगे भी आवश्यकतानुसार किया जाता रहेगा| ============================ जो विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में दो दसक तक केंद्रित रहते हुए सारंगधर के पॉंच के पांचो स्वरुप (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा) को प्राप्त हुआ तो वह अवश्य ही विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम (/कृष्ण) स्वरुप को प्राप्त हुआ होता है तो उसको तो जीवन में वह कर्तव्य मात्र ही शेष रहता है जिसमें जीवन के रंगमंच पर एक आदर्श अभिनय करना और एक आदर्श अभिनय करवाने जैसा ही रहता है======मैंने इन दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में किसी भी अवस्था में मानवता से शिवत्व को समाप्त नहीं होने दिया और न समाप्त होने दिया जाएगा और इस प्रकार विश्व मानवता अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई|========सारंगधर के अंतर्गत विश्व मानवता के इतिहास के पॉंच के पाँचों पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा सभी आते हैं किन्तु पहले ही सन्दर्भ लोग राम का ही बोध करते हैं अर्थात मुख्य पात्र राम को ही मानते हैं:----सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले), और शिव (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (/अलका )को अपने अलकों में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] ========इस प्रकार वह सारंगधर बना जो कि """विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव:महाशिव:सनातन राम/कृष्ण) में सभी अवस्थाएं समाहित है अर्थात उस असीमित ऊर्जा में समस्त ऊर्जाएं समाहित हैं किन्तु सुचारु रूप से इस संसार के सञ्चालन हेतु इस संसार में पाँच मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा""" की अवस्था को प्राप्त हुआ क्योंकि मैंने इन दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में किसी भी अवस्था में मानवता से शिवत्व को समाप्त नहीं होने दिया और न समाप्त होने दिया जाएगा और इस प्रकार विश्व मानवता अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई|| ======================================== मई, 1998 के बाद दूसरी बार 13 अप्रैल, 2018 दिन शुक्रवार को अयोध्या जाने पर वहाँ राम दरबार के पण्डित जी ने बैठने को कहा तो मेरी दृष्टि राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ती पर गयी और पण्डित जी ने यह तर्क दिया की राम काले थे और लक्ष्मण गोर अतः राम की मूर्ती काली है और लक्ष्मण व सीता के मूर्ति गोरी है| मैंने कहाँ जिस पाण्डुलिपि में राम कोयल या लँगूर जैसे काले थे लिखा गया हो उसे तिलांजलि देते हुए राम की आकर्षक प्रतिमा ही राम दरबार में भी लगवाइये| मैंने कहा की 1998 में रामलला का दर्शन किया लेकिन वहाँ रामलला की मूर्ती काली नहीं थी ( आप की जानकारी के लिए उसी दिन बाद में देखा रामलला को तो वहां अब भी काली प्रतिमा नहीं थी)|===गौरी, गौरी शंकर व गणेश की दूध जैसी सफेद प्रतिमा न सही पर भगवान् या किसी भी देवी-देवता या महापुरुष की आकर्षक प्रतिमा ही दर्शन करने पर हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा देती है तो महाकाली/देवकाली/चामुण्डा के काली प्रतिमा तो ठीक है पर दक्षिण भारत तरह लंगूर या काली कोयल जैसी प्रतिमा लगाने का क्या औचित्य जिस प्रतिमा से हमें नकारात्मकता और भय के सिवा कुछ नहीं मिलता हो| घर से लेकर देवालय तक हमें नश्लीय युद्ध नहीं जारी रख्नना चाहिए क्योंकि दैवीय मामलों में हमें इससे बचना चाहिए और यहाँ भी समाजवाद नहीं लागू करना चाहिए बल्कि सार्वभौमिक नैसर्गिक नियम ही जारी रखना चाहिए|====स्थानीय सर्वमान्य नियम का पालन तो किसी भी स्थिति में करना ही पड़ता है तो मई, 1998 के बाद दूसरी बार 13 अप्रैल, 2018 दिन शुक्रवार को अयोध्या जाने पर हनुमान गढ़ी (+कनक भवन + राम दरबार) के मान्य देवी/देवताओं का यथोचित पूजन-अर्चन करने के बाद ही श्रीरामजन्मभूमि हेतु गाड़ी को आगे जाने दिया गया था जबकि ललक श्रीरामजन्मभूमि की ही थी और समय भी सीमित ही था अपने पास|=======वहाँ राम दरबार के पण्डित जी ने बैठने को कहा तो मेरी दृष्टि राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ती पर गयी और पण्डित जी ने यह तर्क दिया की राम काले थे और लक्ष्मण गोर अतः राम की मूर्ती काली है और लक्ष्मण व सीता के मूर्ति गोरी है| मैंने कहाँ जिस पाण्डुलिपि में राम कोयल या लँगूर जैसे काले थे लिखा गया हो उसे तिलांजलि देते हुए राम की आकर्षक प्रतिमा ही राम दरबार में भी लगवाइये| मैंने कहा की 1998 में रामलला का दर्शन किया लेकिन वहाँ रामलला की मूर्ती काली नहीं थी ( आप की जानकारी के लिए उसी दिन बाद में देखा रामलला को तो वहां अब भी काली प्रतिमा नहीं थी)|===गौरी, गौरी शंकर व गणेश की दूध जैसी सफेद प्रतिमा न सही पर भगवान् या किसी भी देवी-देवता या महापुरुष की आकर्षक प्रतिमा ही दर्शन करने पर हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा देती है तो महाकाली/देवकाली/चामुण्डा के काली प्रतिमा तो ठीक है पर दक्षिण भारत तरह लंगूर या काली कोयल जैसी प्रतिमा लगाने का क्या औचित्य जिस प्रतिमा से हमें नकारात्मकता और भय के सिवा कुछ नहीं मिलता हो| घर से लेकर देवालय तक हमें नश्लीय युद्ध नहीं जारी रख्नना चाहिए क्योंकि दैवीय मामलों में हमें इससे बचना चाहिए और यहाँ भी समाजवाद नहीं लागू करना चाहिए बल्कि सार्वभौमिक नैसर्गिक नियम ही जारी रखना चाहिए| ================================================================================================================ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव:महाशिव:सनातन राम/कृष्ण) में सभी अवस्थाएं समाहित है अर्थात उस असीमित ऊर्जा में समस्त ऊर्जाएं समाहित हैं किन्तु सुचारु रूप से इस संसार के सञ्चालन हेतु इस संसार में पाँच मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा के व्युत्पन्न के रूप में ही इस शृष्टिगत मानवता के समस्त विभूतियों का अवलोकन किया जाता है:============विवेक (/(/राशिनामतः गिरिधर)==------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सनातन राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)====और======गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है ऐसी अवस्था को विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित रहते हुए वही प्राप्त हुआ जो 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति == हेतु==सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को प्राप्त हुआ अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव:महाशिव:सनातन राम/कृष्ण) में सभी अवस्थाएं समाहित है अर्थात उस असीमित ऊर्जा में समस्त ऊर्जाएं समाहित हैं किन्तु सुचारु रूप से इस संसार के सञ्चालन हेतु इस संसार में पाँच मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा के व्युत्पन्न के रूप में ही इस शृष्टिगत मानवता के समस्त विभूतियों का अवलोकन किया जाता है|=============केवल अलग अलग ब्रह्मा, विष्णु व् शिव ही नहीं वरण थोड़ा-थोड़ा राम (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) आप सब बन लेंगे तो पूरा-पूरा राम या पूरा-पूरा कृष्ण कोई बन लेगा (वास्तविक सन्दर्भ में 11 सितम्बर, 2001 से 29(/15-29) मई, 2006 आते-आते मैं स्वयं अपने पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता का अभीष्ट लक्ष्य हांसिल करने हेतु सशरीर परमब्रह्म कृष्ण हो चुका था) तो फिर 29 मई, 2006 से लेकर आज तक की लेखनी चलाने का यही उद्देष्य था की कोई पूरा-पूरा राम बन जाय, न की लेखनी चलाने का उद्देष्य किसी ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ जन को उपेक्षित करने का था| तो प्रामाणिक रूप से 25 मई,2018 (31 मई, 2018) को फिर पूरा-पूरा राम भी मैं बन गया| -----जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| === == ======================================== == ===================================== सारंगधर के अंतर्गत विश्व मानवता के इतिहास के पॉंच के पाँचों पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा सभी आते हैं किन्तु पहले ही सन्दर्भ लोग राम का ही बोध करते हैं अर्थात मुख्य पात्र राम को ही मानते हैं:----सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और शिव (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] ========इस प्रकार वह सारंगधर बना जो कि """विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सदाशिव:महाशिव:सनातन राम/कृष्ण) में सभी अवस्थाएं समाहित है अर्थात उस असीमित ऊर्जा में समस्त ऊर्जाएं समाहित हैं किन्तु सुचारु रूप से इस संसार के सञ्चालन हेतु इस संसार में पाँच मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु व् ब्रह्मा""" की अवस्था को प्राप्त हुआ क्योंकि मैंने इन दो दसक """"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति""""" में किसी भी अवस्था में मानवता से शिवत्व को समाप्त नहीं होने दिया और न दिया जाएगा और इस प्रकार विश्व मानवता अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हुई| ====================================== प्रयागराज (/काशी): वैश्विक परिवर्तन के बीच परमब्रह्म विष्णु स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज को विष्णुमय और ब्रह्मामय तथा 11 सितम्बर, 2008 काशी को शिव को शिवमय पुनः कर दिया गया था अर्थात मूल स्वरुप में विष्णु, ब्रह्मा और शिव की ऊर्जा को यह वैश्विक संसार सहन नहीं कर सका और पुनः उनको उसी मूल स्थान पर पुनर्स्थापित कर दिया गया| उसके बाद का परिवर्तन उनके अपने मूल स्वरुप में मूल स्थान में प्रतिस्थापित किये जाने का प्रभाव है| ===========25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ==========-----जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| =========================================== सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 11 सितम्बर, 2001 की प्रारम्भिक अवस्था प्रारंभिक रूप से ====रामानन्द -सारंगधर एकल युग्म का होना ही पर्याप्त था परन्तु आगे 7 फरवरी, 2003 से संस्थागत प्रत्यक्ष व् मानवतागत अप्रत्यक्ष अभीष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति हेतु श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) की शक्ति से भी संपन्न होना पड़ा जैसा की कार्य सिद्ध हेतु श्रध्धेय प्रेमचन्द (/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) को आशीर्वादित किया गया था=====एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार से बस्ती जनपद के एक त्रिफला कश्यप गोत्रीय पाण्डेय ब्राह्मण को दान में मिले पॉँच (+मूल गाँव) में से एक 500 बीघे का महत्वपूर्ण गाँव, रामापुर-223225 (आजमगढ़/आर्यमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र) और दूसरा एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार से गोरखपुर/गोरक्षपुर के एक व्याशी गौतम गोत्रीय मिश्र ब्राह्मण को दान में मिला 300 बीघे का गाँव, बिशुनपुर-223103 (जौनपुर/जमदग्निपुर):=====रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और शिव (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र====और====== बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| =====गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| =========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है| ==================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| ====== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है, राधा का श्याम हे राम, हे राम; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में, चारो धाम; हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; तू ही बिगाड़े तू ही सवारे; इस जग के, सारे काम हे राम, हे राम; तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह, तू ही शाम; हे राम, हे राम हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम ======================================= कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्धकौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| ===================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ======================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?===विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008 तक) तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहते हुए विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ इसके साथ ही साथ आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति और संस्कार से शाकाहारी हूँ तथा आजीवन आम नशे से लेकर ख़ास नशे का किसी भी प्रकार से कभी भी सेवन नहीं किया हूँ और मैं अपनी प्रतिज्ञा(/इक्षाशक्ति पर नियंत्रण की जिद) अनुसार मैं कभी चलचित्र मन्दिर में बचपन से लेकर आज तक कभी प्रवेश नहीं लिया हूँ| यह इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक चुनौतियों में बीच परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण की सहन शक्ति हेतु अपने में पर्याप्त है तो ऐसे दायित्व का निर्वहन 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक किया गया और आगे भी आवश्यकतानुसार किया जाता रहेगा| ======================================================================== प्रयागराज (/काशी): वैश्विक परिवर्तन के बीच परमब्रह्म विष्णु स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज को विष्णुमय और ब्रह्मामय तथा 11 सितम्बर, 2008 काशी को शिव को शिवमय पुनः कर दिया गया था अर्थात मूल स्वरुप में विष्णु, ब्रह्मा और शिव की ऊर्जा को यह वैश्विक संसार सहन नहीं कर सका और पुनः उनको उसी मूल स्थान पर पुनर्स्थापित कर दिया गया| उसके बाद का परिवर्तन उनके अपने मूल स्वरुप में मूल स्थान में प्रतिस्थापित किये जाने का प्रभाव है| ===========25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ==========-----जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| =============================================== सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 11 सितम्बर, 2001 की प्रारम्भिक अवस्था प्रारंभिक रूप से ====रामानन्द -सारंगधर एकल युग्म का होना ही पर्याप्त था परन्तु आगे 7 फरवरी, 2003 से संस्थागत प्रत्यक्ष व् मानवतागत अप्रत्यक्ष अभीष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति हेतु श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) की शक्ति से भी संपन्न होना पड़ा जैसा की कार्य सिद्ध हेतु श्रध्धेय प्रेमचन्द (/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) को आशीर्वादित किया गया था=====एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार से बस्ती जनपद के एक त्रिफला कश्यप गोत्रीय पाण्डेय ब्राह्मण को दान में मिले पॉँच (+मूल गाँव) में से एक 500 बीघे का महत्वपूर्ण गाँव, रामापुर-223225 (आजमगढ़/आर्यमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र) और दूसरा एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार से गोरखपुर/गोरक्षपुर के एक व्याशी गौतम गोत्रीय मिश्र ब्राह्मण को दान में मिला 300 बीघे का गाँव, बिशुनपुर-223103 (जौनपुर/जमदग्निपुर):=====रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और शिव (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र====और====== बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| =====गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|===========================================विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है| =============================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विष्णु के परमब्रह्म अवस्था मेरी ही रही अर्थात सारंगधर के मूल स्वरुप की अवस्था मेरी ही रही अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी ही रही है और समयानुकूल बदले हुए परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसे ही चरित्र का निर्वहन किया जा रहा है:=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने अन्तर्मन से मुझे चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ---------- मैंने कहा था कि मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर देवों और देवियों दोनों के लिए ऊर्जा स्रोत हूँ| अतः अपने पूरे जीवन काल में किसी देवी या देवता की शक्ति पर निर्भर नहीं रहा फिर भी असुर समाज के अनैतिक कृत्य को भांपते हुए मानवता को हर अमंगल कार्य से बचाने हेतु देवों और देवियों के लिए और इस प्रकार समस्त मानवता के लिए समय समय पर स्वयं ही एक स्वयंसेवक होता रहा हूँ इसको किसी सन्गठन मात्र से न जोड़ें; कारण की जब जहाँ अति आवश्यकता थी वहाँ तब तक आप को दर्शित होता रहा|----------- अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| -----------देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =======आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?======इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक के दौरान सारंगधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप:सदाशिव/महाशिव) से ही सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव/उद्भव हुआ है और इस प्रकार समस्त मानवता का पुनरोद्भव हुआ है| ======मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है| ======================== गुरुवार (बृहस्पतिवार), दिनाँक 29 अक्टूबर, 2009 को प्रयागराज विश्वविद्यालय में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र में प्रथम स्थाई प्रवक्ता/सहायक आचार्य/असिस्टेंट प्रोफेसर (एक प्रवक्ता जिसे वर्तमान में सहायक आचार्य:असिस्टेंट प्रोफेसर कहते हैं) के रूप में सेवारत हुआ हूँ| फेसबुक पर मुझे सहन करने हेतु आप सभी को सहृदय धन्यवाद क्योंकि आशातीत सकारात्मक परिवर्तन को देखते हुए आगे शायद लेखनी कम ही चले| =========================================== जब शीर्षस्थ की ही सहमति किसी कार्य की रही हो अर्थात यह कार्य अपने में ही पूर्णातिपूर्ण रूप से स्वयं में ही प्रमाणित रहा हो तो ऐसे में आम राय बनाये जाने का कोई औचित्य ही नहीं रहता है तो फिर आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे|=====देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते| मैंने हर देवी व देवता के आमंत्रण/निमंत्रण को स्वीकार कर सम्यक रूप से मर्यादित आचरण ही सदैव किया है| किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ================================= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ========================================================================= जौनपुर/जमदग्निपुर (जन्म:बचपन से स्नातक:;=जौनपुर/जमदग्निपुर (मातृ क्षेत्र): शायद यह काशी क्षेत्र:मण्डल में ही आता है)//आजमगढ़ (/आर्य मगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र (पैतृक क्षेत्र)) से काशी (1998-2000) ; और फिर काशी से प्रयागराज और प्रयागराज से बैंगलोर (2007- 2009) और फिर स्थाई रूप से 29 अक्टूबर, 2009 से आज तक प्रयागराज में केंद्रित हूँ:----- 5 सितम्बर, 2000 (काशी से प्रयागराज), 12 अगस्त, 2001, 11 (3/4) सितम्बर, 2001 (संस्थागत लक्ष्य हेतु पूर्ण संकल्पित हुआ था), 7 फरवरी, 2003 (संस्थागत लक्ष्य हेतु पूर्णातिपूर्ण संकल्पित हुआ था), 29 (15-29) मई, 2006 (67/11: अपने संकल्प गत संस्थागत लक्ष्य को प्राप्त कर चुका था), 18/11 सितम्बर, 2007 (10 मार्च, 2007), 25(/27) अक्टूबर, 2007, 10/11सितम्बर, 2008 (विश्व मानवता के मूल केंद्र अर्थात विश्व मानवता के जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र (कथित रूप से अशोक चक्र) की कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु पुनर्स्थापना), 28 अक्टूबर, 2009 फिर 29 अक्टूबर, 2009, 30 सितम्बर, 2010, 28 अगस्त, 2013, और इस प्रकार 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को प्राप्त किया| ============================== 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था , 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था [25 मई, 2018/15-29 मई, 2006 (67(सदस्य)/11(परिवार)::राम (शिव)/कृष्ण (अर्जुन)] और आगे इसे मान्यता न मिलने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर अपने को राम सिद्ध करना पड़ा लेकिन इसके साथ ही साथ आपको ज्ञात हो कि आपने 12 वर्ष शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया है मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा तो फिर किस प्रकार से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण के साधक और सनातन धर्मी हैं आप? ========================== आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?===देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ============================= रामायण और महाभारत काल स्वयं गवाह है की ऋषि संस्कृति रहने पर भी प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र से दूरी बढ़ने पर असुर संस्कृति का प्रभाव व्यापक होता रहा है तो फिर गुरुकुल के ऊपर असुर संस्कृति को समाप्त करने की जिम्मेदारी विश्व-एक गाँव व्यवस्था स्थापित किये जाने के दौरान कैसे छोड़ दी जाती, तो असुर संस्कृति को समाप्त करने हेतु किसी न किसी के स्वरुप में शिव और विष्णु का अवतरण होता रहा है: लक्षण क्या हैं जब कह दिया जाय की विश्व के समस्त गुरुकुल काम करना बन्द कर दिए थे, तो उत्तर है कि जब गुरुकुल के स्वयं के कर्तव्य और गुरुकुल के प्रभाव में कार्यरत विश्व-मानवता समस्त जनों के व्यापक कार्य के परिणति स्वरुप विश्व मानवता से शिवत्व (/कल्याण) का भाव समाप्त हो जाए अर्थात इस संसार में मानवता समाप्त प्राय हो जाए|=== यह मुझ रविवार (प्रामाणिक रूप से मंगलवार) अविर्भावित त्रिफला-कश्यप (व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) पाण्डेय का सौभाग्य है की बचपन से लेकर स्नातक तक मेरा गुरुकुल, रामानन्द कुल (बिशुनपुर-223103/जौनपुर/जमदग्निपुर) ही है जिस कुल की मूलभूमि के वाशिंदे प्रामाणिक रूप से गुरुवार(/बृहस्पतिवार) को अविर्भावित परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (व्याशी-गौतम (कश्यप से व्याशी-गौतम) ने 11 सितम्बर, 2001 के बाद जब सभी गुरुकुल काम करना बन्द कर दिए थे तो प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से विश्व-मानवता हित हेतु मुझे इसी प्रयागराज (/काशी) में ही रुके रहने का फरवरी, 2003 में निर्देश दिया था| =========================================================================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| ======================================================= 11 सितम्बर, 2001 (जो विश्व-मानवता का मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात विश्व मानवता का जड़त्व केंद्र में विश्व-मानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा का धारक रहा हो वह कोई एक कैसे हो सकता है? और होने को तो हो सकता है पर एक रंगमंच के अभिनय जैसा ही हो सकता है, इसीलिए मैं रवि (/मङ्गल) अपने को सदाशिव:महाशिव अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) स्वरुप में अंगीकार किये हुए हूँ लेकिन इसका मतलब यह है की मैं इस विश्व-मानवता की हर विभूति बन सकता हूँ जैसा की स्वयं में मैं पूर्णातिपूर्ण स्वरुप में रह चुका हूँ=- 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018)== विश्व-मानवता का मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात विश्व मानवता का जड़त्व केंद्र और इस जड़त्व (अर्थात स्थितिज ऊर्जा) को बनाये रखने के लिए अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान और अभीष्ट तप/योग/उद्यम के साथ-साथ असीमित सहनसीलता का दायित्व निभाना पड़ता है अर्थात शिव से महाशिव अर्थात सनातन राम (/कृष्ण) बनना पड़ता है अन्यथा मुझसे उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ तथा प्रखर बुद्धि किसकी थी (1991:हाई- स्कूल के बाद से अप्रत्यक्ष रूप के सदा बाधा डालने का कार्य होता रहा तो इससे केवल किताबी अंक कुन्द होता है बुद्धि नहीं) की श्रध्धेय ताऊजी, प्रेमचन्द(/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर काशी से प्रयागराज आकर पूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हो 11 सितम्बर, 2001 से लेकर फरवरी, 2003 तक अपने निमित्त उचित कार्य का सम्पादन कर लेने ले उपरान्त स्थिति और परिस्थिति का आंकलन कर मैं 7 फरवरी, 2003 को प्रयागराज छोड़कर जा रहा था| ------लेकिन मुझे श्रध्देय श्रीधर (विष्णु) ने यही पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हो जाने को कहा था और तब से अब तक इसी प्रयागराज (/काशी) में मैं जड़ ही बना हुआ हूँ और इस प्रकार प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र को लगभग एक सहस्राब्दी के लिए विश्व-मानवता का मूल केंद्र अर्थात विश्व मानवता का जड़त्व केंद्र बने रहने की ऊर्जा से संपन्न किया| ==========तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये |==परोक्ष रूप से मानवताहित हेतु (प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित) अभीष्ट प्रयोजन में स्वजनों द्वारा आत्मविश्वास से युक्त यह कैसा मेरा संकल्प/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण किया जाना था की 5 सितम्बर, 2000 को काशी (काशी हिन्दू विश्व-विद्यालय) से इस प्रयागराज में बोरिया-बिस्तर समेत आया था लेकिन यह नहीं पता था की शिव को स्वयं अपने में ही समाहित किये हुए था की इस संसार के समस्त मंदिर/देवालय/देवस्थान जो इससे ऊर्जा पाते हैं जल्द ही ऊर्जा विहीन हो जाएंगे और मुझे पुनः उन्हें 11 सितम्बर, 2008 को सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में आते हुए पुनःप्रतिष्ठापित करना पडेगा:=="10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|" तो अब विष्णु व् ब्रह्मा प्रयागराज तथा शिव काशी में सहस्राब्दियों-सहस्राब्दियों तक अपने परिवार समेत रहेंगे अर्थात अपने ही इन्ही मूल केंद्र में रहेंगे| ===================25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विष्णु के परमब्रह्म अवस्था मेरी ही रही अर्थात सारंगधर के मूल स्वरुप की अवस्था मेरी ही रही अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी ही रही है और समयानुकूल बदले हुए परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसे ही चरित्र का निर्वहन किया जा रहा है:=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने अन्तर्मन से मुझे चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ---------- मैंने कहा था कि मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर देवों और देवियों दोनों के लिए ऊर्जा स्रोत हूँ| अतः अपने पूरे जीवन काल में किसी देवी या देवता की शक्ति पर निर्भर नहीं रहा फिर भी असुर समाज के अनैतिक कृत्य को भांपते हुए मानवता को हर अमंगल कार्य से बचाने हेतु देवों और देवियों के लिए और इस प्रकार समस्त मानवता के लिए समय समय पर स्वयं ही एक स्वयंसेवक होता रहा हूँ इसको किसी सन्गठन मात्र से न जोड़ें; कारण की जब जहाँ अति आवश्यकता थी वहाँ तब तक आप को दर्शित होता रहा|----------- अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| -----देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन------आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?===देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|======मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है| =25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== विश्व-मानवता का मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात विश्व मानवता का जड़त्व केंद्र=---- मैंने दो वर्ष (2007-2009) देश के सुदूर दक्षिण में कही (प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र:::बेंगलुरु) ऐसे गुजारे हैं और वहाँ (तेलगु/तमिल ) के शहरीय के साथ-साथ विशेष रूप से ग्रामीण जीवन का गहन आंकलन किया है तथा उनके जीवन की आर्थिक विसंगतिगत अस्थिरता (वैदेशिक पलायनवाद जो कि बहुत ही हावी है) तथा इसके साथ ही साथ परिणामी सांस्कृतिक व् सांस्कारिक विसंगति को नजदीक से देखा है=--जब आपकी आबादी वैश्विक या राष्ट्रीय या प्रांतीय या स्थानीय रूप से कम हो तो ऐसे में आपका सम्पूर्ण समूह अविवाहित रह कर अपनी आधी आबादी दूसरे देश या देश के किसी अन्य भाग या अन्य समूह के घर भेज देने पर भी न तो तथाकथित नश्लवाद समाप्त कर सकता है; न तो तथाकथित समरसता स्थापित हो सकती है; तथा न तो समानता स्थापित होने वाली हो (क्योंकि ये सब व्यापक रूप से वैचारिक समानताएं स्थापित होने पर ही संभव हैं न की वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये जाने पर संभव होंगी वह भी केवल वैचारिक स्तर तक ही सीमित रहेगा न की नैसर्गिक स्तर तक)) तो फिर उचित यही है की आप स्वयं अपनी आधी आबादी अपने सम्पूर्ण समूह (अपने और अपने सम्बन्धियों तक सीमित रखें) में रखें इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है| =================================== गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस: हर दिन उसी तरह बराबर नहीं जिस तरह से हर व्यक्ति बराबर नहीं तो किसी दिन या व्यक्ति की वोट में कोई कार्य सम्पादित कर लेने से हर दिन या हर व्यक्ति बराबर नहीं हो जाता है तो फिर इस दुनिया में अगर वास्तविकता में मुझ सारंगधर का कोई समकक्ष है तो फिर मुझ रामापुर-223225, आजमगढ़/आर्यमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र वासी रविवार(प्रामाणिक रूप से मंगलवार)-आविर्भवित गोत्रगत त्रिफला-कश्यप(व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) के विपरीत गोत्र क्रम में आने वाले एक ही समकक्ष हैं और वह हैं बिशुनपुर-223103, जौनपुर/जमदग्निपुरगत रामानन्द कुलीन मूल भूमि वाशिंदे व्याशी-गौतम (कश्यप से गौतम) गोत्रीय और प्रामाणिक रूप से गुरुवार (बृहस्पतिवार) दिवस अवतरित, श्रध्धेय श्री श्रीधर(विश्व-व्यापक विष्णु) जिनके आशीर्वाद से शुक्रवारीय गुरुदेव (जोशी: विश्व-व्यापक ब्रह्मा) और शुक्रवारीय (प्रामाणिक रूप से सोमवार को आविर्भवित) ताऊजी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/विश्व-व्यापक शिव) के लक्ष्य को गुरुदेव की सत्ता 2004 में जाने के बाद भी 29 मई, 2006 को विश्व-व्यापक परमब्रह्म कृष्ण रूप में पूर्ण किया और इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम व् विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को विश्व-व्यापक परमब्रह्म राम रूप में पूर्णातिपूर्ण किया था| और इस हेतु ताऊजी (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/सोमनाथ/शिव) ने 2000 से 2005 के बीच 4 बार रामानन्द कुल जाकर स्वयं उनसे आशीर्वाद लिया था जिसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूँ|=== मै (रविवार(/मंगल)) स्वयं शुक्र (गुरुदेव जोशी) और शुक्र/सोम (ताऊजी) तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि सोम/बुद्ध, सोम/शुक्र और शुक्र/शुक्र तक का आधार बना और इस प्रकार समस्त संसार का आधार होते हुए आपको सतह पर दिखाई देता रहा और आज तक दिखाई देता रहा हूँ इसके साथ यह भी कहता हूँ की कम से कम 10 नवम्बर, 2057 तक तो अवश्य दिखाई देता रहूंगा तो फिर आप से यही कहना चाहता हूँ की समस्त देव व् देवी का आविर्भाव मुझसे ही होता आया है| ================================== किसी समाज या व्यक्ति को उसके उत्कर्ष पर तो नहीं किन्तु कम से कम चरमोत्कर्ष पर पहुंचने के बाद अवश्य ही अपनी रफ़्तार साम्य अवस्था में लाना चाहिए अन्यथा वह अपने ही स्वजनों को रौंदना सुरु कर देता है और अपयश का भागीदार होता है; यही गतिकीय साम्य का नियम है इसका मतलब यह नहीं की वह समाज या व्यक्ति ऊर्जा विहीन हो चुका है बल्कि दीर्घकालीन रूप से इस अवस्था में बने रहने का परिचायक है|===25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान::सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|====इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक के दौरान सारंगधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप:सदाशिव/महाशिव) से ही सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव/उद्भव हुआ है और इस प्रकार समस्त मानवता का पुनरोद्भव हुआ है|========आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?===देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|​=======मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है|========11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था , 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था| 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर अपने को राम सिद्ध करना पड़ा लेकिन इसके साथ ही साथ आपको ज्ञात हो कि आपने 12 वर्ष शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया है मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा तो फिर किस प्रकार से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण के साधक और सनातन धर्मी हैं आप?==इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक के दौरान सारंगधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप:सदाशिव/महाशिव) से ही सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव/उद्भव हुआ है और इस प्रकार समस्त मानवता का पुनरोद्भव हुआ है| ===मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है|====यह संसार एक से मतलब विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों (देवियों) से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित तौर पर अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?====विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये|== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=======मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|===मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है|==>>मैंने कहा है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है|======मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|===बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|=====25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विष्णु के परमब्रह्म अवस्था मेरी ही रही अर्थात सारंगधर के मूल स्वरुप की अवस्था मेरी ही रही अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी ही रही है और समयानुकूल बदले हुए परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसे ही चरित्र का निर्वहन किया जा रहा है:=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने अन्तर्मन से मुझे चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ---------- मैंने कहा था कि मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर देवों और देवियों दोनों के लिए ऊर्जा स्रोत हूँ| अतः अपने पूरे जीवन काल में किसी देवी या देवता की शक्ति पर निर्भर नहीं रहा फिर भी असुर समाज के अनैतिक कृत्य को भांपते हुए मानवता को हर अमंगल कार्य से बचाने हेतु देवों और देवियों के लिए और इस प्रकार समस्त मानवता के लिए समय समय पर स्वयं ही एक स्वयंसेवक होता रहा हूँ इसको किसी सन्गठन मात्र से न जोड़ें; कारण की जब जहाँ अति आवश्यकता थी वहाँ तब तक आप को दर्शित होता रहा|----------- अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| -----------देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =============इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है|====जिस विशालकाय सन्गठन की बात होती है मैंने 2007-2009 के बीच भारतीय संस्थान बैंगलोर की स्थानीय इकाई के एक सदस्य के अनुरोध पर भी उसे नहीं ज्वाइन किया था यह कहते हुए की मैं एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक स्वयं में हूँ; लेकिन 2012 में काशी के एक ज्येष्ठ भ्राता जो 1998 से 2000 के बीच काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में मेरे कक्ष में कभी-कभी आते थे उनके प्रयागराज प्रभारी बनाये जाने पर उनसे मेरा प्रयागराज स्थित आवास पर जब मिलन हुआ और मुझे लगा भी की तत्कालीन रूप से की स्थानीय स्वयंसेवा की आवश्यकता है भी तो ऐसे संगठन का सक्रीय सदस्य बना तो इसका मतलब यह हुआ की 2012 पहले मै एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक था| फिर सामाजिक समरसता की परख के तहत प्रयागराज के दो अतिसंवेदनशील स्थान में से एक स्थान पर 2016 में दो/चार लोगों के साथ और एक स्थान पर फरवरी 2017 में अकेले शाखा लगाने के बाद क्षमता और प्रदर्शन को देखते हुए वरिष्ठ पदाधिकारी ने धीरे-धीरे संगठन से अलग हो जाने का परोक्ष संकेत खुद दिया था और इस प्रकार 2018 से पूर्ण रूप से पुनः एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ| =====""इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ|" ========================== किसी समाज या व्यक्ति को उसके उत्कर्ष पर तो नहीं किन्तु कम से कम चरमोत्कर्ष पर पहुंचने के बाद अवश्य ही अपनी रफ़्तार साम्य अवस्था में लाना चाहिए अन्यथा वह अपने ही स्वजनों को रौंदना सुरु कर देता है और अपयश का भागीदार होता है; यही गतिकीय साम्य का नियम है इसका मतलब यह नहीं की वह समाज या व्यक्ति ऊर्जा विहीन हो चुका है बल्कि दीर्घकालीन रूप से इस अवस्था में बने रहने का परिचायक है|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान::सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|====इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक के दौरान सारंगधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप:सदाशिव/महाशिव) से ही सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव/उद्भव हुआ है और इस प्रकार समस्त मानवता का पुनरोद्भव हुआ है|==========आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?===देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|=======मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है|========11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था , 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था [25 मई, 2018/15-29 मई, 2006 (67(सदस्य)/11(परिवार)::राम (शिव)/कृष्ण (अर्जुन)] और आगे इसे मान्यता न मिलने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर अपने को राम सिद्ध करना पड़ा लेकिन इसके साथ ही साथ आपको ज्ञात हो कि आपने 12 वर्ष शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया है मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा तो फिर किस प्रकार से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण के साधक और सनातन धर्मी हैं आप?=======इस प्रकार 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक के दौरान सारंगधर (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप:सदाशिव/महाशिव) से ही सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव/उद्भव हुआ है और इस प्रकार समस्त मानवता का पुनरोद्भव हुआ है| ======मानवता को सहस्राब्दियों तक संचालित/वर्धित-संवर्धित/पोषित-सम्पोषित/रक्षित-संरक्षित किये जाने की भरपूर ऊर्जा लिए हुए इन प्रामाणिक उत्तरों के साथ एक तरफा प्रश्नों की बौछार किये जाने का अधिकार अब लॉक/समाप्त हो चुका है| अब आप लोग कर्मों और उसके प्रतिफल पर ध्यान केंद्रित कीजिये क्योंकि आपको आपके कर्मों का उचित प्रतिफल अब अवश्य ही मिलना है|====यह संसार एक से मतलब विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों (देवियों) से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित तौर पर अशोक चक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===================धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये|====== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=======मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और न कभी भी किसी से कोई अवैध सम्बन्ध स्थापित किया है| और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|==========मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है|========>>>मैंने कहा है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है|======मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसाइयत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|=========बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|==============25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान विष्णु के परमब्रह्म अवस्था मेरी ही रही अर्थात सारंगधर के मूल स्वरुप की अवस्था मेरी ही रही अर्थात सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी ही रही है और समयानुकूल बदले हुए परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसे ही चरित्र का निर्वहन किया जा रहा है:=====अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने अन्तर्मन से मुझे चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| ---------- मैंने कहा था कि मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा तो फिर देवों और देवियों दोनों के लिए ऊर्जा स्रोत हूँ| अतः अपने पूरे जीवन काल में किसी देवी या देवता की शक्ति पर निर्भर नहीं रहा फिर भी असुर समाज के अनैतिक कृत्य को भांपते हुए मानवता को हर अमंगल कार्य से बचाने हेतु देवों और देवियों के लिए और इस प्रकार समस्त मानवता के लिए समय समय पर स्वयं ही एक स्वयंसेवक होता रहा हूँ इसको किसी सन्गठन मात्र से न जोड़ें; कारण की जब जहाँ अति आवश्यकता थी वहाँ तब तक आप को दर्शित होता रहा|----------- अगर मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में एक भी अमर्यादित कृत्य किया होता तो असुर समाज उसे अपना हथियार बना लेता और आप आज का दिन न देख पाते किन्तु यह भी सत्य है कि जिसने मुझे अपने अन्तर्मन से चाहा उसे मेरे जैसा ही मिला| -----------देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| ======= NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है|=========जिस विशालकाय सन्गठन की बात होती है मैंने 2007-2009 के बीच भारतीय संस्थान बैंगलोर की स्थानीय इकाई के एक सदस्य के अनुरोध पर भी उसे नहीं ज्वाइन किया था यह कहते हुए की मैं एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक स्वयं में हूँ; लेकिन 2012 में काशी के एक ज्येष्ठ भ्राता जो 1998 से 2000 के बीच काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में मेरे कक्ष में कभी-कभी आते थे उनके प्रयागराज प्रभारी बनाये जाने पर उनसे मेरा प्रयागराज स्थित आवास पर जब मिलन हुआ और मुझे लगा भी की तत्कालीन रूप से की स्थानीय स्वयंसेवा की आवश्यकता है भी तो ऐसे संगठन का सक्रीय सदस्य बना तो इसका मतलब यह हुआ की 2012 पहले मै एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक था| फिर सामाजिक समरसता की परख के तहत प्रयागराज के दो अतिसंवेदनशील स्थान में से एक स्थान पर 2016 में दो/चार लोगों के साथ और एक स्थान पर फरवरी 2017 में अकेले शाखा लगाने के बाद क्षमता और प्रदर्शन को देखते हुए वरिष्ठ पदाधिकारी ने धीरे-धीरे संगठन से अलग हो जाने का परोक्ष संकेत खुद दिया था और इस प्रकार 2018 से पूर्ण रूप से पुनः एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ| ==========""इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ|"============आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ================================= मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ?================विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008 तक) तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहते हुए विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ इसके साथ ही साथ आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति और संस्कार से शाकाहारी हूँ तथा आजीवन आम नशे से लेकर ख़ास नशे का किसी भी प्रकार से कभी भी सेवन नहीं किया हूँ और मैं अपनी प्रतिज्ञा(/इक्षाशक्ति पर नियंत्रण की जिद) अनुसार मैं कभी चलचित्र मन्दिर में बचपन से लेकर आज तक कभी प्रवेश नहीं लिया हूँ| यह इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक चुनौतियों में बीच परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण की सहन शक्ति हेतु अपने में पर्याप्त है तो ऐसे दायित्व का निर्वहन 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक किया गया और आगे भी आवश्यकतानुसार किया जाता रहेगा| ================================== जिस विशालकाय सन्गठन की बात होती है मैंने 2007-2009 के बीच भारतीय संस्थान बैंगलोर की स्थानीय इकाई के एक सदस्य के अनुरोध पर भी उसे नहीं ज्वाइन किया था यह कहते हुए की मैं एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक स्वयं में हूँ; लेकिन 2012 में काशी के एक ज्येष्ठ भ्राता जो 1998 से 2000 के बीच काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में मेरे कक्ष में कभी-कभी आते थे उनके प्रयागराज प्रभारी बनाये जाने पर उनसे मेरा प्रयागराज स्थित आवास पर जब मिलन हुआ और मुझे लगा भी की तत्कालीन रूप से की स्थानीय स्वयंसेवा की आवश्यकता है भी तो ऐसे संगठन का सक्रीय सदस्य बना तो इसका मतलब यह हुआ की 2012 पहले मै एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक था| फिर सामाजिक समरसता की परख के तहत प्रयागराज के दो अतिसंवेदनशील स्थान में से एक स्थान पर 2016 में दो/चार लोगों के साथ और एक स्थान पर फरवरी 2017 में अकेले शाखा लगाने के बाद क्षमता और प्रदर्शन को देखते हुए वरिष्ठ पदाधिकारी ने धीरे-धीरे संगठन से अलग हो जाने का परोक्ष संकेत खुद दिया था और इस प्रकार 2018 से पूर्ण रूप से पुनः एक स्वत्रन्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ| ==========""इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ|" ==================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ==================== ==मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ============================================== विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008 तक) तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहते हुए विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ इसके साथ ही साथ आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति और संस्कार से शाकाहारी हूँ तथा आजीवन आम नशे से लेकर ख़ास नशे का किसी भी प्रकार से कभी भी सेवन नहीं किया हूँ और मैं अपनी प्रतिज्ञा(/इक्षाशक्ति पर नियंत्रण की जिद) अनुसार मैं कभी चलचित्र मन्दिर में बचपन से लेकर आज तक कभी प्रवेश नहीं लिया हूँ| यह इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक चुनौतियों में बीच परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण की सहन शक्ति हेतु अपने में पर्याप्त है तो ऐसे दायित्व का निर्वहन 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक किया गया और आगे भी आवश्यकतानुसार किया जाता रहेगा| =========================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है, राधा का श्याम हे राम, हे राम; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में, चारो धाम; हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; तू ही बिगाड़े तू ही सवारे; इस जग के, सारे काम हे राम, हे राम; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही सुबह, तू ही शाम; हे राम, हे राम हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम =========================================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| ========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से ही त्रिदेव व् त्रिदेवी का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार जगत जनंनी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार उनके सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव हुआ है और उनकी सामाजिक छाया सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव हुआ है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव हुआ है तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई देने की जरुरत नहीं है और अगर मैंने यह कहा है| ============================== ऋषियों में मारीच (/सूर्य) का एकल पुत्र कश्यप ऋषि हूँ जिनके वंशज स्वाभाविक रूप से आदित्य कहलाते हैं (अदिति से आदित्य) अर्थात स्वयं ज्येष्ठ सप्तर्षि हूँ अर्थात सभी ऋषियों में सबसे कुशल प्रशासक स्वयं हूँ; और आपको ज्ञात हो की इसके साथ विश्वव्यापक शिव अवस्था को प्राप्त हो (विश्वव्यापक शिव की समस्त अवस्थाओं को होता हुआ शिव की सर्वोच्च सहनशीलता अवस्था, विश्वव्यापक नीलकण्ठ महादेव अवस्था को प्राप्त हुआ), फिर विश्वव्यापक विष्णु अवस्था को प्राप्त हो और अंतिम में विश्वव्यापक ब्रह्मा होते हुए विश्वव्यापक विष्णु परब्रह्म अवस्था को प्राप्त हो विश्वव्यापक कृष्ण और विश्वव्यापक राम तक हो चुका हूँ अर्थात विश्वव्यापक सदाशिव/महाशिव तक हो चुका हूँ; तो मैं केवल और केवल स्वयं से ही नियंत्रित हो सकता हूँ मुझ पर बल प्रयोग का अधिकार आपको कभी नहीं था लेकिन आप ऐसा करने से बाज नहीं आये और उसका परिणाम भी संसार पाया फिर अंतिम रूप से यह समझ लीजिये की मुझसे ही आप का अस्तित्व है न की आप से मेरा अस्तित्व है अर्थात मै वही सारंगधर हूँ जिससे स्वयं शिव, विष्णु, ब्रह्मा और इस प्रकार कृष्ण और राम का आविर्भाव होता है| ======================= कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्धकौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| ============================================================================================== देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है| =======आजतक का सबसे भव्य शिव, राम, और कृष्ण मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? =========================================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति :: = = = ===प्रयागराज (/काशी): वैश्विक परिवर्तन के बीच परमब्रह्म विष्णु स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज को विष्णुमय और ब्रह्मामय तथा 11 सितम्बर, 2008 काशी को शिव को शिवमय पुनः कर दिया गया था अर्थात मूल स्वरुप में विष्णु, ब्रह्मा और शिव की ऊर्जा को यह वैश्विक संसार सहन नहीं कर सका और पुनः उनको उसी मूल स्थान पर पुनर्स्थापित कर दिया गया| उसके बाद का परिवर्तन उनके अपने मूल स्वरुप में मूल स्थान में प्रतिस्थापित किये जाने का प्रभाव है| ============================================================ 67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार)::::राम(/शिव)/कृष्ण(/अर्जुन):::::29 (15-29) मई, 2006/ 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):--- बात व्यक्ति विशेष की ही नहीं है परोक्ष रूप से विश्वमानवता हित हेतु और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित निमित्त अभीष्ट प्रयोजन में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय मिलीभगत व् षडयंत्र के बीच तत्कालीन किसी तथाकथित सर्वोच्च शक्ति के भी छाया में किये जाने वाले अचूक अस्त्र के प्रहार के सम्मुख प्रयागराज/काशी (केवल बन्द बॉक्स(/संदूक) रूपी प्रयागराज (/काशी) मात्र ही नहीं बल्कि वैश्विक रूप में व्याप्त सारभौमिक प्रयागराज(/काशी)) को पराजित हुआ कैसे स्वीकार किया जा सकता था? तो फिर रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म को अपने परमब्रह्म स्वरुप राम(/शिव)/कृष्ण(/अर्जुन: पूर्णातिपूर्ण नर) को सामने लाना ही था जिससे की समस्त देवी व् देवताओं समेत सम्पूर्ण विश्व मानवता (नर/नारी) का आविर्भाव होता है| NOTE:--अर्जुन एक पूर्णातिपूर्ण नर:===एक पूर्णातिपूर्ण नर के रूप में अर्जुन की दुविधा तो उचित ही थी पर तत्कालीन अवस्था में आकर कृष्ण को अधर्म के साम्राज्य को मिटाने का लक्ष्य तो पूर्ण करना ही था| =========================================== विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से विशाल जल प्रलय के बीच इस संसार की आदि नगरी काशी को अपने साथ लिए हुए कीचड़ (सांस्कृतिक अर्थ केदार) से सने हुए स्वरूप में अवतरित होने वाले इस संसार के प्रथम नागरिक/आदि मानव अर्थात आदि शिव (/केदारेश्वर/आदि-आदित्रिदेव) का स्वरुप इस संसार में सबसे गौर वर्णीय होने के बावजूद यहाँ आज तक मूल निवासी होने की लड़ाई कोई और ही कर रहा था (अभी भी कुछ लोग कर रहे हैं) तो यह कैसा विरोधाभास है या इस संसार की यह कैसी चमत्कारिकता है कि जिससे ही लोगों का जन्म होता है उसी से ही रार/लड़ाई जारी है?======त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव)====कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। ============================================== जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी में कुछ भी नहीं आता है|======इस प्रकार भौतिक जगत में सतह पर कार्यरत देव, ऋषि व् माता-पिता व् अन्य सम्बन्धी व् अन्य शुभेक्षुजन व्यापक सन्दर्भ में आप मुझे दोषी सिद्ध नहीं कर सकते हैं क्योंकि आप जिस सतह पर कार्यरत है उसका आधार स्वयं मै ही था, हूँ और आगे भी रहूँगा और आप के हिस्से में आपके कार्यफल के बदले में जो आया वह मिला और जो आएगा वह मिलेगा| ======इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीय रूप से परोक्ष रूप से विश्व-मानवता हित हेतु और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित हेतु दॉँव पर लगा दिए जाने पर पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता अवस्था (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) प्राप्ति अवस्था मेरी ही रही है:::::======11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था, 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था| और आगे इसे मान्यता न मिलने पर 12 वर्ष मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया गया और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा| 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर मुझे अपने को राम सिद्ध करना पड़ा| तो फिर मेरे ऊपर किस देव, ऋषि और पितृ (माता-पिता) का ऋण शेष रहा हैं तो फिर ऐसे में व्यावहारिक जगत के चमत्कारिकता को बनाये रखने हेतु उचित सामाजिक मान्य व्यवहार इस जगत में जारी है और सब ऋण लिया और चुकाया जा रहा हैं| ======================================== मैं (रामापुर-223225 गत त्रिफला-कश्यप गोत्रीय (व्याशी-गौतम से त्रिफला कश्यप) सारंगधर कुलीन मूल भूमि वासी तथा प्रामाणिक रूप से मंगलवार दिवस (गुरुवत कृपागत अभिलेखानुसार रविवार) अवतरित विवेक(राशिनाम: गिरिधर)) इन विगत दो दशकों से भौतिक रूप से जिस विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप को धारण किये रहा हूँ, वे हैं बिशुनपुर-223103 के रामानन्द कुलीन मूलभूमि वाशिंदे और प्रामाणिक रूप से गुरूवार/बृहस्पतिवार दिन को आविर्भवित होने वाले व्याशी-गौतम गोत्रीय (कश्यप से व्याशी-गौतम), श्रद्धेय श्रीधर (विष्णु:मूल सारंगधर) और इसी विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सारंगधर से सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल स्वरूप/आयाम अर्थात विश्व मानवता के इतिहास के पांच के पाँचों मूल पात्रों (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार इसके माध्यम से विश्व-मानवता के इतिहास के सभी विभूतियों का आविर्भाव हुआ है| मुझे आशा है वैश्विक मान्यता व् सहमति के अनुरूप इस संसार के समस्त देवालय/मन्दिर/देवस्थान को ऊर्जा देने वाले शिव, राम और कृष्ण के भव्य मन्दिर के निर्माण/पुनर्निर्माण/पुनर्रोद्धार/पुनर्प्राणप्रतिष्ठा हो जाने के साथ विश्व मानवता को कम से कम एक सहस्राब्दी से ज्यादा समय तक रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत संचालन हेतु पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी और इसके साथ ही साथ आसुरी शक्तियों पर समुचित नियंत्रण स्थापित करने में पर्याप्त सफलता हांसिल होगी| परिणाम स्वरुप निम्नतम से उच्चतम जीवन स्तर का जीवन जी रहे हर जाति/धर्म/सम्प्रदाय/मतावलम्बी को स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर समुचित न्याय/दण्ड मिलना सुनिश्चित होगा| =========================================== ऋषियों में मारीच (/सूर्य) का एकल पुत्र कश्यप ऋषि हूँ जिनके वंशज स्वाभाविक रूप से आदित्य कहलाते हैं(अदिति से आदित्य) अर्थात ज्येष्ठ सप्तर्षि स्वयं हूँ अर्थात सभी ऋषियों में सबसे कुशल प्रशासक स्वयं हूँ और आपको ज्ञात हो की इसके साथ विश्वव्यापक शिव अवस्था को प्राप्त हो (विश्वव्यापक शिव की समस्त अवस्थाओं को होता हुआ शिव की सर्वोच्च सहनशीलता अवस्था, विश्वव्यापक नीलकण्ठ महादेव अवस्था को प्राप्त हुआ), फिर विश्वव्यापक विष्णु अवस्था को प्राप्त हो और अंतिम में विश्वव्यापक ब्रह्मा होते हुए विश्वव्यापक विष्णु परब्रह्म अवस्था को प्राप्त हो विश्वव्यापक कृष्ण और विश्वव्यापक राम तक हो चुका हूँ अर्थात विश्वव्यापक सदाशिव/महाशिव तक हो चुका हूँ; तो मैं केवल और केवल स्वयं से ही नियंत्रित हो सकता हूँ मुझ पर बल प्रयोग का अधिकार आपको कभी नहीं था लेकिन आप ऐसा करने से बाज नहीं आये और उसका परिणाम भी संसार पाया फिर अंतिम रूप से यह समझ लीजिये की मुझसे ही आप का अस्तित्व है न की आप से मेरा अस्तित्व है अर्थात मै वही सारंगधर हूँ जिससे स्वयं शिव, विष्णु, ब्रह्मा और इस प्रकार कृष्ण और राम का आविर्भाव होता है| ========================================================================================== कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्धकौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| ====================================================================================== विश्व-मानवता प्रेमियों व् उसके रक्षक-संरक्षक, पोषक-सम्पोषक, वर्धक-संवर्धक व् सतत चालक-संचालक आप सब अब अपने में सुधार लाइए यह भी की यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान के अनुरूप जो अपने अधिकार क्षेत्र में रहे उसी अधिकार मात्र का आप प्रयोग करें तथा अनावश्यक यत्न करते हुए अपनी ऊर्जा को व्यर्थ न गवाँए क्योंकि मेरा प्रतिद्वन्दी और प्रतिस्पर्धी जब कोई था ही नहीं तो मिलेगा कहाँ से? =======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) दौरान इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीय रूप से पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता हेतु जब कोई योग्य नहीं मिला था और इस प्रकार जब ऐसे परोक्ष मानवता हित और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित हेतु कोई प्रतिद्वंदी और प्रतिस्पर्धी जब कोई नहीं था और बावजूद इसके शुद्ध और सक्षम/समर्थ रहने के कारण अगर कोई साबित बचा रहा अभीष्ट लक्ष्य हांसिल करके तो फिर अब उसका प्रतिस्पर्धी और प्रतिद्वन्दी कहाँ से मिलेगा कोई क्योंकि यह तो फिर किसी दूसरे जन्म के द्वारा ही सम्भव है? ==29 मई, 2006 और 25 मई, 2018 गवाह है कि अपनी पूर्ण क्षमता का प्रयोग करते हुए अनौतिक रूप से तात्कालिक सतहीसत्य/ व्यावहारिक सत्य को ही सामने कर पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम-शिवम्-सुंदरम) और पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते/परम सत्य) को ही मिटाने के प्रयास किये गए फिर भी लोग असफल रहे हैं| इसके अलावा किसी और प्रमाण व् प्रयोग की कोई मान्यता अब नहीं होगी| अतः अब से ही जिद छोड़कर सुपंथ पर चलना सीख लें तब भी कल्याण निहित हो सकता है| ===========इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में केंद्रीय रूप से परोक्ष रूप से विश्व-मानवता हित हेतु और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित हेतु दॉँव पर लगा दिए जाने पर पूर्णातिपूर्ण संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठता अवस्था प्राप्ति मेरी ही रही है:::::>>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर अवस्था): सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को प्राप्त हुआ हूँ अर्थात विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा का एकल धारणकर्ता मै ही रहा हूँ और इस प्रकार परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण किये हुए अपने निमित्त निर्धारित संस्थागत दायित्व का भी उचित रूप से सुविधानुसार निर्वहन भी करता रहा हूँ और आज भी किया जा रहा है| विष्णु की इसी परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर अवस्था) से सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है और इस प्रकार इनके माध्यम से विश्व-मानवता के इतिहास की सभी विभूतियों का आविर्भाव हुआ है| |======अतः मैं आपका निरपेक्ष उचित सहयोग करता रहूँगा ===|===>>>>>बिशुनपुर-223225 (जमदग्निपुर/जौनपुर); रामापुर -223225 (सनातन आर्य-क्षेत्र/आर्यमगढ़/आजमगढ़) तथा गुरुकुलों में वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जमदग्निपुर/जौनपुर); काशी हिन्दू विश्वविद्यालय काशी (/वाराणसी); प्रयागराज-विश्वविद्यालय प्रयागराज; और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु और इस प्रकार से देश के उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम तक का बहुत सूक्ष्म से लेकर उच्च स्तर तक का अनुभव है की आप सभी लोगों के पास ऐसा कोई नहीं था और आप लोग अनावश्यक मुझे घेरे में लिए हुए थे और घेरे में लिए हुए हैं जबकि मैं वैश्विक शक्तियों का सामना अपनी सूझ बूझ से करते हुए बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के आपको पहले 29 (/15-29) मई, 2006 को विजय दिलाया (शिव अवस्था से प्रारम्भ कर और विष्णु और ब्रह्मा की शक्ति धारणकर परमब्रह्म विष्णु स्वरुप में आते हुए परमब्रह्म कृष्ण के रूप में) और उसके बाद 12 वर्ष और लेते हुए फिर 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को विजय दिलाया (परमब्रह्म राम के रूप में)| विवाह पूर्व 33 वर्ष (11 नवम्बर, 1975 से 18 अप्रैल, 2008 तक) तक अखण्ड ब्रह्मचर्य रहते हुए विवाह बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ इसके साथ ही साथ आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति और संस्कार से शाकाहारी हूँ तथा आजीवन आम नशे से लेकर ख़ास नशे का किसी भी प्रकार से कभी भी सेवन नहीं किया हूँ और मैं अपनी प्रतिज्ञा(/इक्षाशक्ति पर नियंत्रण की जिद) अनुसार मैं कभी चलचित्र मन्दिर में बचपन से लेकर आज तक कभी प्रवेश नहीं लिया हूँ| यह इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में वैश्विक चुनौतियों में बीच परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा धारण की सहन शक्ति हेतु अपने में पर्याप्त है तो ऐसे दायित्व का निर्वहन 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक किया गया और आगे भी आवश्यकतानुसार किया जाता रहेगा| =========================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|==== विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| =========================================== राम (/कृष्ण) और शिव मन्दिर आपका बन गया न तो फिर सशरीर परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 से विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज में और 11 सितम्बर, 2008 से शिव काशी में अपने सांगत शक्ति और पारिवारिक सदस्यों के साथ पुनर्स्थापित हो चुके हैं और विद्यमान हैं तथा अपने मूल स्वरुप में अपने इसी मूल स्थान पर सहस्राब्दियों तक रहेंगे| फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| =====>>>>>अर्थात धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की विश्व-व्यापक प्रमाणिकता के साथ पुनर्स्थापना हो चुकी है जिसका निहितार्थ है की स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय रूप से अपने कर्मों के भागीदार आप ही होंगे चाहे जिस किसी भी जाति/पन्थ/समुदाय से आप होंगे|====इस संसार में जिसको यह न लगा हो की सहस्राब्दि महापरिवर्तन (सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान हुआ तो इसमें इस दौरान विश्व-मानवता का चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण और रक्षण-संरक्षण तथा वर्धन-संवर्धन करने वालों की महत्ता उससे और ज्यादा की है जिनको लगा हो की इस दौरान सहस्राब्दि परिवर्तन हुआ है| लेकिन जिनको न लगा हो की इस दौरान सहस्राब्दि परिवर्तन हुआ है उनके आस्था व् विश्वास पर आघात नहीं वरन उनको इससे अवगत करा उनका मार्ग सुगम करें| =========================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =========================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? =========================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है, राधा का श्याम हे राम, हे राम; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में, चारो धाम; हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; तू ही बिगाड़े तू ही सवारे; इस जग के, सारे काम हे राम, हे राम; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही सुबह, तू ही शाम; हे राम, हे राम हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम =========================================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| =========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण):==.>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर अवस्था) से सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:==:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरा | =====इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ================================================================================================================================================= विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण):==.>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर अवस्था) से सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस विश्व-मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ है 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरा | ========इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| =========================================== जिस तरह अरब देश समेत पञ्च सर्वोच्च शक्तियों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका व् अन्य किसी भी देश का कोई अहित नहीं चाहता हूँ इस तथ्य को दृष्टिगत रखने हुए की वे विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) और इस प्रकार भारत का कोई अहित न करें उसी तरह से भारत के किसी भूभाग के प्रति मेरा कोई दूषित विचार नहीं हैं शिवाय इसके की वे प्रयागराज(/काशी) का कोई अहित न करें या इसके स्वाभिमान व् मान सम्मान का मजाक न उड़ाएँ| क्योंकि मैंने प्रत्यक्ष जहाँ का हर तरीके से सामाजिक रूप से दो वर्ष अध्ययन किया वह समय मेरे लिए वहां की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सांस्कारिक और धार्मिक स्थिति ज्ञात करने के लिए बहुत है इसके सिवा और अधिक समय मुझे नहीं चाहिए किसी स्थान विशेष के अध्ययन के लिए| और इसीलिए कहता हूँ कि विश्व-मानवता का मूल केंद्र, (प्रयागराज (/काशी) है| अतः आप अपनी मर्यादा में रहें अनर्गल प्रलाप और उद्दंडता नहीं करें क्योंकि हम इस दुनिया को चमत्कारिक बनाये रहने और इसके रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, और चालन-सञ्चालन के प्रति कृत/दृण संकल्प हैं|| ============================================================================== गोत्र स्तर पर कश्यप गोत्र से समझौता कैसे हो सकता है तो फिर हाँ वैश्विक रूप से सर्वमान्य कुशल प्रशासक कश्यप(व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) गोत्र से हूँ और इसके साथ वशिष्ठ का परनाती हूँ जिनके घर (पिता के ननिहाल) पर मेरा जन्म हुआ:----- प्रयागराज और काशी के लिए कश्यप का इतिहास अन्य ऋषियों से पुराना हैं: कश्यप गोत्र से आविर्भवित चन्द्रवंशीय इला (इक्षानुसार नर से नारी और नारी से नर बन जाने की कला से युक्त) के प्रसंग को छोड़ देने पर भी जहाँ तक भारद्वाज की बात है प्रयागराज में ही तमसा के किनारे कश्यप ऋषि के बहिस्कृति पौत्र बाल्मीकि(कश्यप पुत्र वरुणदेव के पुत्र जो असामाजिक गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से युवावस्था में बहिस्कृत कर दिए गए थे) ऋषि का आश्रम था जो भारद्वाज (आंगिरस पुत्र) के गुरु थे और भारद्वाज का प्रसंग गंगा के किनारे से आता है और गंगा को स्वयं कश्यप (मारीच:सूर्य के एकल पुत्र) के वंसज भगीरथ की तपश्या से ही पृथ्वी पर लाया गया था उसी तरह से काशी के सन्दर्भ में कश्यप (मारीच:सूर्य के एकल पुत्र) के वंसज हरिश्चंद्र का प्रसंग आता है| ======================================================================================================================= कश्यप (सप्तर्षियों में सर्वोच्च प्रशासक: मारीच:सूर्य के एकल पुत्र)/कण्व के अलावा गौतम (सप्तर्षियों में सर्वोच्च मानवतावादी/न्यायवादी)/वत्स; वशिष्ठ (सप्तर्षियों में सर्वोच्च गुरु)/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु; आंगिरस (सप्तर्षियों में सर्वोच्च दार्शनिक/वैज्ञानिक)/भारद्वाज/गर्ग; भृगु (सप्तर्षियों में सर्वोच्च ब्राह्मणोचित गुण त्याग युक्त)/जमदग्नि; अत्रि (सप्तर्षियों में सर्वोच्च तेजस्वी)/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय; कौशिक (सप्तर्षियों में सर्वोच्च युद्धकौशल:क्षत्रिय गुण युक्त)/विश्वामित्र(विश्वरथ)| =========================================================================================================================================================== आजतक का सबसे भव्य शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण मन्दिर (2014(/2013)//2006) आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के?===देवी शक्ति को भी नमन और देव शक्ति को भी नमन| वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों के बीच यही पारस्परिक नमन हमारे विनम्र और सहिष्णु समाज को जन्म देता है|====================================================25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान: इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है|==============जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|=====आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की|==== 108(/109) गोत्रीय श्रृंखला में हम सभी का पहला गोत्र कश्यप (मारीच अर्थात सूर्य गोत्र/रिषि का एकल गोत्र/रिषि, कश्यप जो कि 7/8/24 गोत्र/रिषि श्रेणी में भी पहला गोत्र है) और सभी गोत्रों का ऊर्जा स्रोत गोत्र अर्थात 109 वाँ गोत्र विष्णु गोत्र है तो फिर आप अपने पारिवारिक संस्कार का दर्पण धुंधला न होने दीजिये जिसके राष्ट्रीय औसत से सनातन संस्कृति का राष्ट्रीय स्तर निर्धारित (सृजन) होता है| इस संस्कार की एक कड़ी में नामकरण संस्कार भी आता है| हमारे परिवारजन के नाम कम से कम असुर संस्कृति को बढ़ावा न दें जिसमें विशेषरूप से रावणकुल (/रावण/कुम्भकर्ण/मेघनाद) जैसे नाम को बढ़ावा न मिले|=====क्या सूर्यदेव (मानव जीवन का आधार है) से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सूर्यदेव के केवल एक चरित्र (/गुण) विशेष पर अनुसंधान किया हुआ वैज्ञानिक/अनुसंधानकर्ता?====जिसका उत्तर है कि रंचमात्र भी नहीं बल्कि वह सहनमात्र नहीँ कर सकता सूर्य को| ==== चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सीधे प्रभाव के साथ ही साथ सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे)|=भारद्वाज (आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था उनमें दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर) के पिता कश्यप) तथा भृगु के पौत्र (भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि/पर्वत पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे)|========== जिस समय पूरी पृथ्वी ही जल मग्न थीं उस समय विश्व व्यापक जलप्रवाह रोक कर केदारेश्वर (आदि आदि-त्रिदेव/आदि शिव: जिनको महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र कहते है मतलब पाँचों मूल तत्वों के देव के नेतृत्वकर्ता इन्द्र ही नही उनके स्वामी महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र) ने मानवीय समय प्रारम्भ होने के पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले काशी में कीचड़ तैयार कर दिया और उसके बीच से ही उनकी उत्पत्ति हुई। तो स्पष्ट सी बात है कि पृथ्वी पर काशी ही एक मात्र वह स्थान है जहाँ पर इस विश्व के प्रथम नागरिक शिव ने अपनी शक्ति(सती:पारवती) के साथ रहने योग्य इसे पृथ्वी का प्रथम स्थल बनाया | =======केदारेश्वर शिव ने ऋषिकाल प्रारम्भ होने से पहले तक शक्ति (सती: पार्वती) के साथ इसी काशी मे रहे और जैसे ही प्रयागराज मे ऋषि संस्कृति ने जन्म लेकर मानव समय का प्रारम्भ किया वे हिमालय पर्वत को निवास स्थल बना लिए और जिसमे कश्यप ऋषि जो शिव के शाढ़ू भाइ भी हुये (पिता, मारीच:आदित्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि:ब्रह्मर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया और कुछ समय वहां बिताने के बाद शिव हिमालय के पूर्वोत्तर सिरे को अपना आशियाना बनाया| =========जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है।जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ |=== ====पर ऐसे विश्व समाज का क्या होगा जहाँ मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में ही ऐसे भी ज्ञानी-विज्ञानी भी भरे पड़े हैं जो 23 वर्ष से आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने के असम्भव प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यय तो कर ही रहे हैं और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे हैं, उनकी भी कम से कम कुछ जबाबदेहि तय हो समाज हित में:====शायद यह विश्वविदित है कि असुरकुल वाले भी मूर्धन्य ज्ञानी व विज्ञानी हुए है पर आजतक उनका अस्तित्व स्वयम शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा पात्रता पर ही निर्भर रहा है अर्थात वे विनाश को प्राप्त हुए हैं अर्थात असुर कुल का विनाश अवश्य ही होता है, लेकिन शिव, विष्णु और ब्रह्मा का कभी भी विनाश नहीं होता है और न केदारेश्वर (शिव) कभी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा रहे हैं| =============================== प्रयागराज में ऋषिकाल या मानवीय समय की प्रथम नीव कहें तो ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु तथा शिव द्वारा पूरित प्रकृष्टा या प्राकट्य यज्ञ से ब्रह्मा के सातों मानस पुत्र (सप्तर्षि) (और सप्तर्षि के ही अंश से काशी में आविर्भवित/प्रकट होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि के साथ अष्टक (7+1=8) ऋषि प्रकट हुए)| राम (/कृष्ण) और शिव मन्दिर आपका बन गया न तो फिर सशरीर परमब्रह्म की असीमित ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 से विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज में और 11 सितम्बर, 2008 से शिव काशी में अपने सांगत शक्ति और पारिवारिक सदस्यों के साथ पुनर्स्थापित हो चुके हैं और विद्यमान हैं तथा अपने मूल स्वरुप में अपने इसी मूल स्थान पर सहस्राब्दियों तक रहेंगे| अर्थात धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की विश्व-व्यापक प्रमाणिकता के साथ पुनर्स्थापना हो चुकी है जिसका निहितार्थ है की स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय रूप से अपने कर्मों के भागीदार आप ही होंगे आप चाहे जिस किसी भी जाति/पन्थ/समुदाय से आप होंगे|=============इस संसार में जिसको यह न लगा हो की सहस्राब्दि महापरिवर्तन (सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान हुआ तो इसमें इस दौरान मानवता का चालन-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण और रक्षण-संरक्षण तथा वर्धन-संवर्धन करने वालों की महत्ता उससे और ज्यादा की है जिनको लगा हो की इस दौरान सहस्राब्दि परिवर्तन हुआ है| लेकिन जिनको न लगा हो की इस दौरान सहस्राब्दि परिवर्तन हुआ है उनके आस्था व् विश्वास पर आघात नहीं वरन उनको इससे अवगत करा उनका मार्ग सुगम करें| ========================================= आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम​ ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार मूल रूप सारन्गधर (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) से ही सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) अर्थात विश्व-मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव होता है; और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ======================================================== Please do not confuse now onward: Since 11 September, 2008, Lord SHIVA in his original form remaining in KASHI only and will be remain there in his original form for millions of year: Today is anniversary of establishment of our Centre, Kedareshwar Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS) (Hindi: केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवम महासागरीय अध्ययन केंद्र), Institute of Inter-Disciplinary Studies (IIDS), Nehru Science Centre, University of Allahabad, the centre was Inaugurated on 10 September, 2000 (At the time my presence was in Prayagraj, as I stepped Prayagraj from Kashi On 5 September, 2000). On 11 September, 2001 we stepped here as 1st batch Junior Research Fellow (Research Assistant) on National Centre for Polar and Ocean Research (NCPOR), Goa sponsored project (Although I already awarded Junior Research Fellowship in an remote sensing project at NCPOR, Goa in au interview of 1st batch JRF in July, 2001: Thus it has a great meaning that I joined a JRF position at KBCAOS, University of Allahabad in a research project from NCPOR). I enrolled in this Centre as 1st batch D. Phil Scholar on 7-02-2003; awarded 1st D. Phil/PhD on Tuesday, 18 Septembe, 2007/11 September, 2007 (/10 March, 2007:Thesis Submission) and also appointed as 1st batch Assistant Professor (the then Lecturer) in this Centre on 29 October, 2009. This is the one of leading centre of that time among the growing centers, based on performance of which 67 (/11) faculty positions (under planned) sanctioned by University Grant Commission, New Delhi on 29/05/2006: Kedareshwar (K.) Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS:10/09/2000 to 25/05/2018 onward) Centre of Food Technology Centre of Biotechnology Centre of Bioinformatics Centre of Behavioural and Cognitive Sciences Centre of Environmental Science Centre of Material Science Department of Physical Education(Re-structure) Centre of Globalization and Development Studies School of Modern Languages Department of Sociology =========================================== साम्यवाद (मार्क्सवाद) जिसे हमारे स्नातक के समय में अँकवाद (मार्क्स=अंक वाद) कहते थे उसका शिकार न होकर अपने स्थितिज ऊर्जा अर्थात जड़त्व (संस्कृति/संस्कार) के साथ गतिशीलता और उचाई को आप प्राप्त हों अर्थात गतिज ऊर्जा की प्राप्ति करें| अतः प्रयागराज (/काशी) को किसी का अंधानुकरण करने की आवश्यकता नहीं है और न किसी को अपना गुरु मानने की| क्योकि वास्तविक सन्दर्भ में वे ही विश्व मानवता के मूल केंद्र हैं| अतः मध्यम गति है तो वह ही उचित है|===============NATURAL JUSTICE(11 September, 2008/11September, 2001: LORD SHIVA's original form's place is Kashi, along with his family he is remaining at Kashi since 11 September, 2008 and will be remain here for millions of year):=====साहब न ही श्रीधर (विष्णु) हिले थे और न ही गिरिधर अर्थात न ही विवेक (राशिनाम: गिरिधर) हिले थे हम तो अंतिम स्तर तक जाकर भी विश्व-मानवता हित में व्यवस्था बनाये रखने के प्रति दृण/कृत संकल्प हैं अर्थात इस दुनिया को चमत्कारिक बनाये रखने की व्यवस्था को बनाये रखने वाले हैं इस प्रकार स्वयं शिव की अद्वितीय आतंरिक सुरक्षा शक्ति हैं अर्थात महाशिव/सदाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम हैं======पहाड़ों पर ठिठुरने की क्या जरूरत आप भी उतरकर मैदान में आ जाइये जैसे समुद्री क्षेत्र वाले मैदान में आते जा रहे हैं (11 सितम्बर, 2008 से शिव भी मूल रूप में सहस्राब्दियों तक के लिए केवल और केवल काशी में ही हैं और आगे सहस्राब्दियों तक मूल रूप में काशी में ही मिलेंगे): =====साहब को मोहरा दिसम्बर, 2018 को तब बनाया गया जब मैं अपना अभीष्ट लक्ष्य भेद 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (/29 मई, 2006 ) को कर चुका था तो फिर यह उनका कार्य था जो मुझे मेरे अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति से रोकने का असम्भव प्रयास दो दशकों से करते रहे तो उनका यह प्रयास भी असंभव तथा यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के विरुद्ध ही था और शायद साहब को कश्यप ऋषि पर बहुत गर्व तो था पर उनको यह नहीं पता था की मैं वहाँ का कश्यप ऋषि हूँ जहां सप्तर्षि के आविर्भाव हेतु ब्रह्मा (जोशी) के आह्वान पर सप्तर्षि प्राकट्य यज्ञ (प्राक्यज्ञ) किया गया था जिसे विष्णु (श्रीधर) और शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) ने पूरित किया|==========================25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से  11 सितम्बर, 2001 की प्रारम्भिक अवस्था प्रारंभिक रूप से ====रामानन्द -सारंगधर एकल युग्म का होना ही पर्याप्त था परन्तु आगे 7 फरवरी, 2003 से संस्थागत प्रत्यक्ष व् मानवतागत अप्रत्यक्ष अभीष्ठ  लक्ष्य की प्राप्ति हेतु श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) की शक्ति से भी संपन्न होना पड़ाजैसा की कार्य सिद्ध हेतु श्रध्धेय प्रेमचन्द (/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) को आशीर्वादित किया गया था=====एक गौतम गोत्रीय इस्लाम अनुयायी क्षत्रिय जागीरदार से बस्ती जनपद के एक त्रिफला कश्यप गोत्रीय पाण्डेय ब्राह्मण को दान में मिले पॉँच (+मूल गाँव) में से एक 500 बीघे का महत्वपूर्ण गाँव, रामापुर-223225 (आजमगढ़/आर्यमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र) और दूसरा एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार से गोरखपुर/गोरक्षपुर के एक व्याशी गौतम गोत्रीय मिश्र ब्राह्मण को दान में मिला 300 बीघे का गाँव, बिशुनपुर-223103 (जौनपुर/जमदग्निपुर):=====रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र====और====== बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| =====गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|===================================पहाड़ों पर ठिठुरने की क्या जरूरत आप भी उतरकर मैदान में आ जाइये जैसे समुद्री क्षेत्र वाले मैदान में आते जा रहे हैं (11 सितम्बर, 2008 से शिव भी मूल रूप में सहस्राब्दियों तक के लिए केवल और केवल काशी में ही हैं और आगे सहस्राब्दियों तक मूल रूप में काशी में ही मिलेंगे): ========साहब को मोहरा दिसम्बर, 2018 को तब बनाया गया जब मैं अपना अभीष्ट लक्ष्य भेद 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (/29 मई, 2006 ) को कर चुका था तो फिर यह उनका कार्य था जो मुझे मेरे अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति से रोकने का असम्भव प्रयास दो दशकों से करते रहे तो उनका यह प्रयास भी असंभव तथा यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के विरुद्ध ही था और शायद साहब को कश्यप ऋषि पर बहुत गर्व तो था पर उनको यह नहीं पता था की मैं वहाँ का कश्यप ऋषि हूँ जहां सप्तर्षि के आविर्भाव हेतु ब्रह्मा (जोशी) के आह्वान पर सप्तर्षि प्राकट्य यज्ञ (प्राक्यज्ञ) किया गया था जिसे विष्णु (श्रीधर) और शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) ने पूरित किया|================पहाड़ों पर ठिठुरने की क्या जरूरत आप भी उतरकर मैदान में आ जाइये जैसे समुद्री क्षेत्र वाले मैदान में आते जा रहे हैं (11 सितम्बर, 2008 से शिव भी मूल रूप में सहस्राब्दियों तक के लिए केवल और केवल काशी में ही हैं और आगे सहस्राब्दियों तक मूल रूप में काशी में ही मिलेंगे): ========साहब को मोहरा दिसम्बर, 2018 को तब बनाया गया जब मैं अपना अभीष्ट लक्ष्य भेद 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (/29 मई, 2006 ) को कर चुका था तो फिर यह उनका कार्य था जो मुझे मेरे अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति से रोकने का असम्भव प्रयास दो दशकों से करते रहे तो उनका यह प्रयास भी असंभव तथा यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के विरुद्ध ही था और शायद साहब को कश्यप ऋषि पर बहुत गर्व तो था पर उनको यह नहीं पता था की मैं वहाँ का कश्यप ऋषि हूँ जहां सप्तर्षि के आविर्भाव हेतु ब्रह्मा (जोशी) के आह्वान पर सप्तर्षि प्राकट्य यज्ञ (प्राक्यज्ञ) किया गया था जिसे विष्णु (श्रीधर) और शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) ने पूरित किया|==========================================विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|==== विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा|============================================11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था , 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था [25 मई, 2018/15-29 मई, 2006 (67(सदस्य)/11(परिवार)::राम/कृष्ण(अर्जुन)] और आगे इसे मान्यता न मिलने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर अपने को राम सिद्ध करना पड़ा लेकिन इसके साथ ही साथ आपको ज्ञात हो कि आपने 12 वर्ष शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया है मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा तो फिर किस प्रकार से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण के साधक और सनातन धर्मी हैं आप?===============फरवरी, 2017: ===>>>इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ|==================NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| =========================================================================================================================================== NATURAL JUSTICE(11 September, 2008/11September, 2001: LORD SHIVA's original form's place is Kashi, along with his family he is remaining at Kashi since 11 September, 2008 and will be remain here for millions of year):=== ======साहब न ही श्रीधर (विष्णु) हिले थे और न ही गिरिधर अर्थात न ही विवेक (राशिनाम: गिरिधर) हिले थे हम तो अंतिम स्तर तक जाकर भी विश्व-मानवता हित में व्यवस्था बनाये रखने के प्रति दृण/कृत संकल्प हैं अर्थात इस दुनिया को चमत्कारिक बनाये रखने की व्यवस्था को बनाये रखने वाले हैं इस प्रकार स्वयं शिव की अद्वितीय आतंरिक सुरक्षा शक्ति हैं अर्थात महाशिव/सदाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम हैं============पहाड़ों पर ठिठुरने की क्या जरूरत आप भी उतरकर मैदान में आ जाइये जैसे समुद्री क्षेत्र वाले मैदान में आते जा रहे हैं (11 सितम्बर, 2008 से शिव भी मूल रूप में सहस्राब्दियों तक के लिए केवल और केवल काशी में ही हैं और आगे सहस्राब्दियों तक मूल रूप में काशी में ही मिलेंगे): ========साहब को मोहरा दिसम्बर, 2018 को तब बनाया गया जब मैं अपना अभीष्ट लक्ष्य भेद 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018 (/29 मई, 2006 ) को कर चुका था तो फिर यह उनका कार्य था जो मुझे मेरे अभीष्ट लक्ष्य प्रा प्ति से रोकने का असम्भव प्रयास दो दशकों से करते रहे तो उनका यह प्रयास भी असंभव तथा यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान के विरुद्ध ही था और शायद साहब को कश्यप ऋषि पर बहुत गर्व तो था पर उनको यह नहीं पता था की मैं वहाँ का कश्यप ऋषि हूँ जहां सप्तर्षि के आविर्भाव हेतु ब्रह्मा (जोशी) के आह्वान पर सप्तर्षि प्राकट्य यज्ञ (प्राक्यज्ञ) किया गया था जिसे विष्णु (श्रीधर) और शिव (प्रेमचंद/चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर) ने पूरित किया| ========================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|==== विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| =========================================== परोक्ष रूप से मानवताहित हेतु (प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित) अभीष्ट प्रयोजन में स्वजनों द्वारा आत्मविश्वास से युक्त यह कैसा मेरा संकल्प/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण किया जाना था की 5 सितम्बर, 2000 को काशी (काशी हिन्दू विश्व-विद्यालय) से इस प्रयागराज में बोरिया-बिस्तर समेत आया था लेकिन यह नहीं पता था की शिव को स्वयं अपने में ही समाहित किये हुए था की इस संसार के समस्त मंदिर/देवालय/देवस्थान जो इससे ऊर्जा पाते हैं जल्द ही ऊर्जा विहीन हो जाएंगे और मुझे पुनः उन्हें 11 सितम्बर, 2008 को सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में आते हुए पुनःप्रतिष्ठापित करना पडेगा:========="10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|" तो अब विष्णु व् ब्रह्मा प्रयागराज तथा शिव काशी में सहस्राब्दियों-सहस्राब्दियों तक अपने परिवार समेत रहेंगे अर्थात अपने ही इन्ही मूल केंद्र में रहेंगे| ============================================================================ अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है क्योंकि 2008 के उत्तरार्द्ध में कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर तत्कालीन रूप से मेरे अन्दर समाहित परमब्रह्म की विश्वमानवता-उर्जा से 10/11 सितम्बर, 2008 को सहस्राब्दियों-सहस्राब्दियों के लिए मेरे द्वारा विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज और शिव काशी में अपने सांगत शक्तियों/परिवार समेत पूर्णप्रतिस्थापित कर दिए गए हैं और अपने प्रतिरूपों के माध्यम से/के द्वारा विश्वमानवता के पोषण-सम्पोषण, चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन तथा रक्षण-संरक्षण का दायित्व निभा रहें है| ===================================================================================== धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और =========फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|),======== तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ========================================================================================= प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों सत्य जिसमें समाहित हो वही तो ही पूर्णातिपूर्ण सत्य होगा न?===>>>>>>तो जो लोग सतह पर ही जो दिखाई देता है उसे ही सच्चाई मानने को तैयार होते हैं तो उनके लिए अर्जुन ही महाभारत की लड़ाई (धर्म-युद्ध) जीते थे यह ही सत्य लिखना पडेगा न की कृष्ण? ========>>>>>29(15-29) मई, 2006 [67:पारिवारिक सदस्य (/11:परिवार):: राम/कृष्ण (अर्जुन:::निर्देशनुसार उपयुक्त समय पर असुर प्रवृत्ति के लोगों पर अचूक निशाना साधते हुए संस्थागत लक्ष्य प्राप्ति में अद्वितीय योगदान)]: === किसी के व्यक्तिगत जीवन के कृष्ण का प्रसंग नहीं अपितु विश्वमानवतागत हित हेतु समर्पित विश्व व्यापक रूप से प्रमाणिक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (जो मानवता का कलुष हरण कर उसे निर्मल करे) का प्रसंग=====>>>>>शिव (11 सितम्बर, 2001) से शिव-विष्णु (7 फरवरी, 2003) और शिव-विष्णु से शिव-विष्णु-ब्रह्मा अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (15-29 मई, 2006) को जमीन इस विश्वविद्यालय में 29 मई, 2006 को ही मिल गयी थी और शायद विश्विद्यालय शहर में ही आता है| और सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से यह 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित होते ही यही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वयं सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में भी प्रमाणित हो चुके (जिनसे स्वयं त्रिदेव व् उनकी सांगत देवियों समेत सम्पूर्ण मानवता का आविर्भाव होता है)| =======फिर भी उसके बाद से ही जगतसत्य/ सांसारिकसत्य/ व्यावहारिक सत्य को इस शहर में भी इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने हेतु निभाया जा रहा है जबकि यह पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम सत्य/सत्यमेव जयते के रूप में पहले ही प्रमाणिकता के साथ सिद्ध किया जा चुका है| (NOTE:---अतएव मेरे लिखने का पर्याय और प्रभाव होता है और इसके बाद से ही इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात 29 मई, 2006 से लिखना प्रारम्भ किया था तो फिर भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के दो वर्ष को लेकर आज तक लिखता ही रहा शायद अब लिखने की जरूरत न पड़े) =================================== 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये | टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| ====================================================== केंद्रीय शक्ति परमगुरु विष्णु (मूल सारंगधर) ही होते हैं यही तो सिद्ध हुआ है इस प्रयागराज (/काशी) में तो दृश्यमान जगत की व्यवस्था अन्तिम स्तर पर जाकर भी बनी रहे उसके लिए उत्तरदायी विष्णु ही हैं अन्यथा स्थिति नियंत्रण से बाहर होते देख शिव तो सृष्टि का संहार करते हुए सम्पूर्ण मानवता रक्षण-संरक्षण/पोषण-सम्पोषण/चालन-सञ्चालन की जिम्मेदारी विष्णु को ही सौंपने वाले हैं और मानवता का यही दायित्व निभाने के कारन विष्णु ने कभी असुर समाज का समर्थन कभी नहीं किया है -------->>>>>>--प्रेमचन्द (चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर आया था तो शिव शक्ति समाहित अपने में ही थी और तद्नुरूप वैश्विक परिश्थिति अनुसार अपने निमित्त उचित कार्य को इस प्रयागराज (/काशी) में रहकर सम्पादित भी किया; अन्तिम रूप से श्रीधर (विष्णु) के निर्देश पर ही इस प्रयागराज (/काशी) में रुका रहा तो विष्णु शक्ति भी समाहित रही और जोशी (ब्रह्मा) द्वारा आह्वानित मानवतागत व् प्रत्यक्ष में संस्थागत कार्य था तो फिर उसे हर हाल में पूर्ण करना ही था तो उसमें ब्रह्मात्व शक्ति भी समाहित होते ही त्रिशक्ति सम्पन्न हो विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त हो सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अभीष्ठ लक्ष्य को सही अर्थों में प्राप्त किया और पुनः उसे सामाजिक मान्यता न मिलने पर 12 वर्षों के हर प्रकार के संघर्ष से सामाजिक जीवन जीते हुए इसे संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट लक्ष्य हांसिल कर सशरीर परमब्रह्म राम हो लिया| और फिर 2 दशक के ऐसे लम्बे कार्यकाल के फल स्वरुप समस्त देवियों और देवताओं का नए सिरे से प्रादुर्भाव/आविर्भाव भी हुआ| ===================================================================================================== मुझे इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान शिखाओगे मुझे तुम्हारा संतुलित रहना ही अति अनिवार्य है, प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के प्रारंभिक दौर में मेरे लिए यह थे मेरे गुरु व् मेरे पालक श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के कथन तो फिर 10/11 सितम्बर, 2008 के बाद मेरे वाह्य स्वरुप में उत्तरोत्तर सुधार हुआ और मेरा सन्तुलित स्वरुप क्रमसः सामने आने लगा और फिर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को वैश्विक रूप के निमित्त अपने सार्वजनिक दायित्व निर्वहन कर और इस प्रकार अपनी मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ का विश्व-मानवता हित में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर उसे प्रामाणिक/प्रमाणित करने के बाद से एकदम सन्तुलित हो गया| ====================================================================================================== धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना  शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी  उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से  इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ====================================================================================================== साम्यवाद (मार्क्सवाद) जिसे हमारे स्नातक के समय में अँकवाद (मार्क्स=अंक वाद) कहते थे उसका शिकार न होकर अपने स्थितिज ऊर्जा अर्थात जड़त्व (संस्कृति/संस्कार) के साथ गतिशीलता और उचाई को आप प्राप्त हों अर्थात गतिज ऊर्जा की प्राप्ति करें| अतः प्रयागराज (/काशी) को किसी का अंधानुकरण करने की आवश्यकता नहीं है और न किसी को अपना गुरु मानने की| क्योकि वास्तविक सन्दर्भ में वे ही विश्व मानवता के मूल केंद्र हैं| अतः मध्यम गति है तो वह ही उचित है| ======>>>>11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये |========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (मूल सारंगधर अवस्था) से उनके पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव : 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है=========विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)| =========================================== 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये | ========================================== टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| =========================================== केंद्रीय शक्ति परमगुरु विष्णु (मूल सारंगधर) ही होते हैं यही तो सिद्ध हुआ है इस प्रयागराज (/काशी) में तो दृश्यमान जगत की व्यवस्था अन्तिम स्तर पर जाकर भी बनी रहे उसके लिए उत्तरदायी विष्णु ही हैं अन्यथा स्थिति नियंत्रण से बाहर होते देख शिव तो सृष्टि का संहार करते हुए सम्पूर्ण मानवता रक्षण-संरक्षण/पोषण-सम्पोषण/चालन-सञ्चालन की जिम्मेदारी विष्णु को ही सौंपने वाले हैं और मानवता का यही दायित्व निभाने के कारन विष्णु ने कभी असुर समाज का समर्थन कभी नहीं किया है -------->>>>>>--प्रेमचन्द (चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर आया था तो शिव शक्ति समाहित अपने में ही थी और तद्नुरूप वैश्विक परिश्थिति अनुसार अपने निमित्त उचित कार्य को इस प्रयागराज (/काशी) में रहकर सम्पादित भी किया; अन्तिम रूप से श्रीधर (विष्णु) के निर्देश पर ही इस प्रयागराज (/काशी) में रुका रहा तो विष्णु शक्ति भी समाहित रही और जोशी (ब्रह्मा) द्वारा आह्वानित मानवतागत व् प्रत्यक्ष में संस्थागत कार्य था तो फिर उसे हर हाल में पूर्ण करना ही था तो उसमें ब्रह्मात्व शक्ति भी समाहित होते ही त्रिशक्ति सम्पन्न हो विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त हो सशरीर परमब्रह्म कृष्ण होते हुए अभीष्ठ लक्ष्य को सही अर्थों में प्राप्त किया और पुनः उसे सामाजिक मान्यता न मिलने पर 12 वर्षों के हर प्रकार के संघर्ष से सामाजिक जीवन जीते हुए इसे संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से अभीष्ट लक्ष्य हांसिल कर सशरीर परमब्रह्म राम हो लिया| और फिर 2 दशक के ऐसे लम्बे कार्यकाल के फल स्वरुप समस्त देवियों और देवताओं का नए सिरे से प्रादुर्भाव/आविर्भाव भी हुआ| ========================================== मुझे इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान शिखाओगे मुझे तुम्हारा संतुलित रहना ही अति अनिवार्य है, प्रयागराज (/काशी) के बाद दूसरे भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) के प्रारंभिक दौर में मेरे लिए यह थे मेरे गुरु व् मेरे पालक श्रध्धेय श्रीधर(विष्णु) के कथन तो फिर 10/11 सितम्बर, 2008 के बाद मेरे वाह्य स्वरुप में उत्तरोत्तर सुधार हुआ और मेरा सन्तुलित स्वरुप क्रमसः सामने आने लगा और फिर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को वैश्विक रूप के निमित्त अपने सार्वजनिक दायित्व निर्वहन कर और इस प्रकार अपनी मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ का विश्व-मानवता हित में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर उसे प्रामाणिक/प्रमाणित करने के बाद से एकदम सन्तुलित हो गया|===========================================धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये|==========================================25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है|===========================================हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे रामतू ही माता, तू ही पिता है; तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है, राधा का श्यामहे राम, हे राम; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में, चारो धाम; हे राम, हे रामतू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; तू ही बिगाड़े तू ही सवारे; इस जग के, सारे कामहे राम, हे राम; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही सुबह, तू ही शाम; हे राम, हे रामहे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम===========================================राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे|==========================================सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :-----------------सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है| ========== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) =============>>>>>>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== परोक्ष रूप से मानवताहित हेतु (प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित) अभीष्ट प्रयोजन में स्वजनों द्वारा आत्मविश्वास से युक्त यह कैसा मेरा संकल्प/समाधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण किया जाना था की 5 सितम्बर, 2000 को काशी (काशी हिन्दू विश्व-विद्यालय) से इस प्रयागराज में बोरिया-बिस्तर समेत आया था लेकिन यह नहीं पता था की शिव को स्वयं अपने में ही समाहित किये हुए था की इस संसार के समस्त मंदिर/देवालय/देवस्थान जो इससे ऊर्जा पाते हैं जल्द ही ऊर्जा विहीन हो जाएंगे और मुझे पुनः उन्हें 11 सितम्बर, 2008 को सशरीर परमब्रह्म स्वरुप में आते हुए पुनःप्रतिष्ठापित करना पडेगा:========"10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|" तो अब विष्णु व् ब्रह्मा प्रयागराज तथा शिव काशी में सहस्राब्दियों-सहस्राब्दियों तक अपने परिवार समेत रहेंगे अर्थात अपने ही इन्ही मूल केंद्र में रहेंगे| =========================================== अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है क्योंकि 2008 के उत्तरार्द्ध में कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर तत्कालीन रूप से मेरे अन्दर समाहित परमब्रह्म की विश्वमानवता-उर्जा से 10/11 सितम्बर, 2008 को सहस्राब्दियों-सहस्राब्दियों के लिए मेरे द्वारा विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज और शिव काशी में अपने सांगत शक्तियों/परिवार समेत पूर्णप्रतिस्थापित कर दिए गए हैं और अपने प्रतिरूपों के माध्यम से/के द्वारा विश्वमानवता के पोषण-सम्पोषण, चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन तथा रक्षण-संरक्षण का दायित्व निभा रहें हैI =========================================== प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों सत्य जिसमें समाहित हो वही तो ही पूर्णातिपूर्ण सत्य होगा न?===>>>>>>तो जो लोग सतह पर ही जो दिखाई देता है उसे ही सच्चाई मानने को तैयार होते हैं तो उनके लिए अर्जुन ही महाभारत की लड़ाई (धर्म-युद्ध) जीते थे यह ही सत्य लिखना पडेगा न की कृष्ण? ========>>>>>29(15-29) मई, 2006 [67:पारिवारिक सदस्य (/11:परिवार):: राम/कृष्ण (अर्जुन:::निर्देशनुसार उपयुक्त समय पर असुर प्रवृत्ति के लोगों पर अचूक निशाना साधते हुए संस्थागत लक्ष्य प्राप्ति में अद्वितीय योगदान)]: === किसी के व्यक्तिगत जीवन के कृष्ण का प्रसंग नहीं अपितु विश्वमानवतागत हित हेतु समर्पित विश्व व्यापक रूप से प्रमाणिक सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (जो मानवता का कलुष हरण कर उसे निर्मल करे) का प्रसंग=====>>>>>शिव (11 सितम्बर, 2001) से शिव-विष्णु (7 फरवरी, 2003) और शिव-विष्णु से शिव-विष्णु-ब्रह्मा अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त सशरीर परमब्रह्म कृष्ण (15-29 मई, 2006) को जमीन इस विश्वविद्यालय में 29 मई, 2006 को ही मिल गयी थी और शायद विश्विद्यालय शहर में ही आता है| और सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से यह 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित होते ही यही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण स्वयं सशरीर परमब्रह्म राम के रूप में भी प्रमाणित हो चुके (जिनसे स्वयं त्रिदेव व् उनकी सांगत देवियों समेत सम्पूर्ण मानवता का आविर्भाव होता है)| =======फिर भी उसके बाद से ही जगतसत्य/ सांसारिकसत्य/ व्यावहारिक सत्य को इस शहर में भी इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने हेतु निभाया जा रहा है जबकि यह पूर्ण सत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परम सत्य/सत्यमेव जयते के रूप में पहले ही प्रमाणिकता के साथ सिद्ध किया जा चुका है| (NOTE:---अतएव मेरे लिखने का पर्याय और प्रभाव होता है और इसके बाद से ही इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) अर्थात 29 मई, 2006 से लिखना प्रारम्भ किया था तो फिर भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के दो वर्ष को लेकर आज तक लिखता ही रहा शायद अब लिखने की जरूरत न पड़े) =========================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है, राधा का श्याम हे राम, हे राम; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में, चारो धाम; हे राम, हे राम तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; तू ही बिगाड़े तू ही सवारे; इस जग के, सारे काम हे राम, हे राम; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही जगदाता, विश्वविधता; तू ही सुबह, तू ही शाम; हे राम, हे राम हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम ===================================================================================================================== राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| =================================================================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ======================================= धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है| ====================================================================================== फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ============================================================================================================================== 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित कर अपने को शिव सिद्ध किया था , 7 फरवरी, 2003 को इसी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में पूर्णातिपूर्ण समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर अपने को विष्णु सिद्ध किया था तथा 15-29 मई, 2006 को इसी भी विश्वमानवता के मूल केन्द्र प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मात्व अर्जित करते हुए अपने समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन निमित्त अभीष्ट लक्ष्य पाकर अपने को परमब्रह्म कृष्ण सिद्ध किया था [25 मई, 2018/15-29 मई, 2006 (67(सदस्य)/11(परिवार)::राम/कृष्ण(अर्जुन)] और आगे इसे मान्यता न मिलने पर 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्त कर अपने को राम सिद्ध करना पड़ा लेकिन इसके साथ ही साथ आपको ज्ञात हो कि आपने 12 वर्ष शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण की अवहेलना किया है मुझको और मेरे अस्तित्व को सत्य न मानते हुए और इस कारन से जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य से पूर्ण सत्य/ वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और फिर आगे परम सत्य/पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते तक की 12 वर्ष की अवधि तक पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने तक संघर्ष जारी रहा तो फिर किस प्रकार से शिव, विष्णु, ब्रह्मा और कृष्ण के साधक और सनातन धर्मी हैं आप? ========================================= कम से कम एक सहस्राब्दी की ऊर्जा आप लोगों को दी जा चुकी है तो फिर उसके आगे के लिए प्रयास कीजिए फिलहाल अब विश्वव्यापक राम, कृष्ण और ब्रह्मा, विष्णु और शिव अपने उचित स्थान पर केंद्रित हैं तथा इस प्रयागराज (/काशी) में, 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है जो की महाशिव/सदाशिव अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से उद्भवित/आविर्भवित शिव का मूल आविर्भविक/उद्भव स्थल है और सहस्राब्दियों से यही यही काशी ही शिव का मूल केंद्र रहा है और सहस्राब्दियों तक यही काशी ही शिव का मूल केंद्र रहेगा| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का दौर|===========================सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये | टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| =========================================== धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ========================================== शायद इससे ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं होगी| आपको कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे आगे के विश्व मानवता के संचालन निमित्त पर्याप्त ऊर्जा दी जा चुकी है:======इतना आसान नहीं है कोई एक या उससे आविर्भवित संतति होना:--------पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण(सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार))| =========================================== विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| =========== =============================== मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ========================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम​ ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ======================================= राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे|------ ========राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):-------सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और यही है सदाशिव/महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिसे आप परमब्रह्म (एकल आधार रूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म कहते है वही पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहलाते हैं| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में सारंगधर के पाँच के पाँचों आयाम: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग आगे से थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लेंगे| ======सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] =========-================================ वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः आने वाले एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु मात्र ही प्रयास जारी रखिये यही आशा आप लोगों से है| ========================================== विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== 1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| ========= ================================= प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है. .1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत्र, 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =========== 109. विष्णु गोत्र ========================================== सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा :-----------------सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है| =========================================== God ( Vishnu and Shiv) goddess (आदिदेवी/आद्या/भगवतीदेवी/महादेवी: Saraswati) most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and it have no any fixed duration of time in a year| =========त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु ======== मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं। =======आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती=============== 1) या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें| 2) शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ । =======त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव)===== कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है। ==================================== जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| =========================================== वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| =========================================== वैश्विक मानवता रूपी दीपक <<<<<>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के प्रारंभिक दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का दौर::=====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ========================================== ब्रह्मास्त्र , नारायण अस्त्र और पशुपति अस्त्र से जिन देवों को कोई हानि नहीं होनी होती है तब भी कोई नियम विरूद्ध जाकर दम्भ में या अज्ञानता में कोई चला भी दे तब भी इन देवताओं द्वारा ऐसे अस्त्र से न डरने पर भी व्यवस्था को बनाये रखने की जिम्मेदारी के तहत इनका समुचित सम्मान करना ही पड़ता है तो वह ही किया गया है आजतक| अतः न कोई हिल गया था और न कोई एक झटके में समाप्त हो गया था| Note: पर आजतक ऐसे अस्त्रों के गलत प्रयोग का परिणाम तो भुगतने पड़े ही है समाज को न? =========================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| ==================================================================== इतना आसान नहीं है कोई एक या उससे आविर्भवित संतति होना:=====पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण(सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार))|===========विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=========== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ======================================================================================= ====================================================================================== शायद इससे ज्यादा कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं होगी| आपको कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे आगे के विश्व मानवता के संचालन निमित्त पर्याप्त ऊर्जा दी जा चुकी है:======इतना आसान नहीं है कोई एक या उससे आविर्भवित संतति होना:--------पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण(सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार))|===========विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=========== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ========================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ======================================= राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे|------ ========राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):-------सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और यही है सदाशिव/महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिसे आप परमब्रह्म (एकल आधार रूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म कहते है वही पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहलाते हैं|=========25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में सारंगधर के पाँच के पाँचों आयाम: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग आगे से थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लेंगे| ======सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]]=========-वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः आने वाले एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु मात्र ही प्रयास जारी रखिये यही आशा आप लोगों से है| ======================================= विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================================================================================================================================== शिव, राम, कृष्ण और विष्णु अवस्था तो विरासत में था ही पर 15-29 मई, 2006 के दौर में दिव्यदृष्टा हो ब्रह्म पद पाकर और इस प्रकार ब्रह्मा द्वारा आह्वानित, विष्णु और शिव द्वारा पूरित किये जाने वाले यज्ञ को इस प्रयागराज (/काशी) में पूरित कर मैं महाशिव/सदाशिव अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्रमाणित अर्थात सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था को प्रमाणित कर 25 मई, 2018 को ऐसे पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते और पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम अवस्था को जगत सत्य/सामाजिक सत्य/व्यावहारिक सत्य के रूप में प्रमाणित करना ही शेष रह गया था| =========================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (बिशुनपुर-223103:::::एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा दान में दिया गया गाँव)-रामापुर (रामापुर-223225::::एक ईस्लाम अनुयायी गौतम गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा दान में दिए गए पाँच (/छह: पॉँच + मूल गाँव) गाँव में से एक गाँव)----------एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| ================================= कम से कम एक सहस्राब्दी की ऊर्जा आप लोगों को दी जा चुकी है तो फिर उसके आगे के लिए प्रयास कीजिए फिलहाल अब विश्वव्यापक राम, कृष्ण और ब्रह्मा, विष्णु और शिव अपने उचित स्थान पर केंद्रित हैं तथा इस प्रयागराज (/काशी) में, 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है जो की महाशिव/सदाशिव अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से उद्भवित/आविर्भवित शिव का मूल आविर्भविक/उद्भव स्थल है और सहस्राब्दियों से यही यही काशी ही शिव का मूल केंद्र रहा है और सहस्राब्दियों तक यही काशी ही शिव का मूल केंद्र रहेगा| ============================ 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| इस प्रकार बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का दौर::=====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ======================================================================================================= मूल सारंगधर केंद्र रामानन्द कुलीन मूल भूमि (बिशुनपुर-223103:::::एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा दान में दिया गया गाँव) वासी और प्रामाणिक रूप से बृहस्पतिवार दिवस को ही आविर्भवित श्रध्धेय, श्रीधर(विष्णु) - गौतम (व्याशी-गौतम)[कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)] गोत्रीय ही रहे और जिनकी पाँचों अवस्थाओं/आयामों (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) को उनके आशीर्वाद/प्रसाद अनुसार मैं-कश्यप (त्रिफला-कश्यप) [गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला-कश्यप)] पैतृक रूप से सारंगधर कुलीन (रामापुर-223225::::एक ईस्लाम अनुयायी गौतम गोत्रीय क्षत्रिय जागीरदार द्वारा दान में दिए गए पाँच (/छह: पॉँच + मूल गाँव) गाँव में से एक गाँव) ने इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में जिया है अर्थात मानवता के ऐसे पाँचों मूल पात्रों के चरित्र का विश्वव्यापक निर्वहन इन दो दसक के समय में किया है और और सारंगधर के नाम को सार्थक किया है और आज भी विश्वव्यापक रूप से आवश्यकतानुरूप ऐसे चरित्र का ही निर्वहन कर रहा हूँ| जैसे की फरवरी 2017 के बाद भी यदा कदा आपके बीच में दिखाई देकर महसूस नहीं होने दिया की मैं आपके साथ भौतिक रूप से नहीं हूँ जबकि मै निर्देशानुसार दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ/था कि मुझे इस संसार में किसी पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान की कोई आवस्यकता नहीं है उसके सिवा जिसपर मूल रूप से आसीन हूँ| तो फिर सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) /सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| =======मैं पाण्डेय होने मात्र से ही मूल रूप में पञ्च शक्ति संपन्न नहीं हुआ हूँ बल्कि इस प्रयागराज (/काशी) में केवल और केवल मैं ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन रहा हूँ इन दो दसकों तक और इस प्रकार सदाशिव/महाशिव अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त हुआ हूँ विश्व मानवता की असह्य सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करते हुए तो फिर इस विश्व मानवता के समस्त विभूतियों को समाहित किये हुए विश्व मानवता के पाँच मूल पात्रों के चरित्र का निर्वहन भी किया हूँ| ====================================================================================================================================================== यह ही मूल कारण हैं की मूल सारंगधर अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात सदाशिव/महाशिव से पॉंच के पाँचों सारंगधर आविर्भवित होते हैं अर्थात राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव अर्थात पाँचों का आविर्भाव मूल सारंगधर अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात मूल विष्णु से ही होता हैं|=======राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे|------ ========राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):-------सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और यही है सदाशिव/महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिसे आप परमब्रह्म (एकल आधार रूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म कहते है वही पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहलाते हैं >>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|=========सारंगधर के पाँच के पाँचों आयाम: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग आगे से थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लेंगे| ======सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा (अल्का) को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]]=========-वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः आने वाले एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु मात्र ही प्रयास जारी रखिये यही आशा आप लोगों से है| =================================================================================================== जिसके लिए फरवरी 2017 में कहाँ गया हो की इस संसार में आपके योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है उसके सिवा जिसपर आप हैं तो फिर भाई, मैंने पारितोषिक पाकर अपने सिद्धान्त से समझौता नहीं किया है और उसी का परिणाम है की मैंने ईसाइयत के सामानांतर चलते हुए सर्वोच्च ईसाई होकर (सर्वोच्च ब्राह्मण रहते हुए ही पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार)) पहली सफलता 29 मई, 2006 (संस्थागत अपने संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठाता सम्बंधित लक्ष्य को पूरा किया जिसमे एक प्रमुख लक्ष्य प्राप्ति में 10 और परिवार (संस्थागत लक्ष्य) और इस प्रकार 67 सदस्य प्राप्ति की सफलता के साथ पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति) में और पुनः 12 वर्ष और लेते हुए इस्लामियत के समानांतर चलते हुए (सर्वोच्च ब्राह्मण रहते हुए ही पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार)) 25 मई, 2018 को सफलता पाई(सामाजिक स्तर पर ऐसे संस्थागत अपने संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठाता सम्बंधित लक्ष्य को स्थापित करने हेतु जिसमे एक प्रमुख लक्ष्य प्राप्ति में 10 और परिवार (संस्थागत लक्ष्य) और इस प्रकार 67 सदस्य प्राप्ति की सफलता के साथ पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति)| =========================================== ब्रह्मास्त्र , नारायण अस्त्र और पशुपति अस्त्र से जिन देवों को कोई हानि नहीं होनी होती है तब भी कोई नियम विरूद्ध जाकर दम्भ में या अज्ञानता में कोई चला भी दे तब भी इन देवताओं द्वारा ऐसे अस्त्र से न डरने पर भी व्यवस्था को बनाये रखने की जिम्मेदारी के तहत इनका समुचित सम्मान करना ही पड़ता है तो वह ही किया गया है आजतक| अतः न कोई हिल गया था और न कोई एक झटके में समाप्त हो गया था| ईश्वरीय सत्ता से उच्च कोई सत्ता नहीं है इस संसार में यह अनुभव शायद अब इस संसार को हो गया हो |=========राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि)| Note: पर आजतक ऐसे अस्त्रों के गलत प्रयोग का परिणाम तो भुगतने पड़े ही है समाज को न? ============================================================================= जिसके लिए फरवरी 2017 में कहाँ गया हो की इस संसार में आपके योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है उसके सिवा जिसपर आप हैं तो फिर भाई, मैंने पारितोषिक पाकर अपने सिद्धान्त से समझौता नहीं किया है और उसी का परिणाम है की मैंने ईसाइयत के सामानांतर चलते हुए सर्वोच्च ईसाई होकर (सर्वोच्च ब्राह्मण रहते हुए ही पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार)) पहली सफलता 29 मई, 2006 (संस्थागत अपने संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठाता सम्बंधित लक्ष्य को पूरा किया जिसमे एक प्रमुख लक्ष्य प्राप्ति में 10 और परिवार (संस्थागत लक्ष्य) और इस प्रकार 67 सदस्य प्राप्ति की सफलता के साथ पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति) में और पुनः 12 वर्ष और लेते हुए इस्लामियत के समानांतर चलते हुए (सर्वोच्च ब्राह्मण रहते हुए ही पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार)) 25 मई, 2018 को सफलता पाई(सामाजिक स्तर पर ऐसे संस्थागत अपने संकल्प/समर्पण/ब्रह्मलीनता/समधिष्ठाता सम्बंधित लक्ष्य को स्थापित करने हेतु जिसमे एक प्रमुख लक्ष्य प्राप्ति में 10 और परिवार (संस्थागत लक्ष्य) और इस प्रकार 67 सदस्य प्राप्ति की सफलता के साथ पूर्णातिपूर्ण लक्ष्य प्राप्ति)| ====================================================================================================================================================== आप लोगों को विदित हो कि इन सभी पाँचों पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) के प्रभाव से आज विश्वव्यापक राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव सभी पाँचों प्राणप्रतिष्ठित निकाय के साथ-साथ एक जीते जागते निकाय के रूप में पूर्णतः अस्तित्व में हैं| ================================================================================ ईश्वरीय सत्ता से उच्च कोई सत्ता नहीं है इस संसार में यह अनुभव शायद अब इस संसार को हो गया हो =========फिर भी जिसके लिए फरवरी 2017 में कहाँ गया हो की इस संसार में आपके योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है उसके सिवा जिसपर आप हैं तो फिर ===========पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान के मद में मदमाते लोगों ने मेरा कार्यकाल 31 जुलाई, 2018 को ही समाप्त समझ लिया गया था जबकि वास्तविक सन्दर्भ में मेरा कार्यकाल कम से कम 10 नवम्बर, 2057 (/11 नवम्बर, 1975 से 10 नवम्बर, 2057) तक न्यूनतम है:>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का दौर::=====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है और फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है|), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| =================================================================== 15-29 मई, 2006 (67(सदस्य)/11(परिवार)::राम/कृष्ण(अर्जुन): तमिल और तेलगु बंधु व् उत्तर में उनके सहकर्मी(एजेंट/अभिकर्ता) आपके साथ आपके यहाँ के कलाम थे तो यहाँ इस प्रयागराज (/काशी) में यह आर्यमगढ़/आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र के कलाम (विवेक कुमार पाण्डेय:11-11-1975 अर्थात तात्कालिन अवस्था में सशरीर परमब्रह्म कृष्ण:मनमोहन (/अर्थात स्वयं सशरीर परमब्रह्म कृष्ण)) स्वयं बैठे थे तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरास्ट्रीय साजिस होने पर भी सभी को पस्त होना ही था| तो फिर प्रयागराज (/काशी) को परास्त कर सके ऐसी कोई शक्ति इस संसार में सम्भव ही नहीं है| ========================================= ऐसी ही प्रक्रिया ने मुझे शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव तक बना दिया अर्थात सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष बना दिया तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम इस सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो|========मेरे द्वारा वैश्विक मानवता की असह्य ऊर्जा धारण अंतर्गत मेरे एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) अवस्था प्राप्ति अर्थात त्रिशक्ति धारण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था) के नेपथ्य में जो कोई भी था उसे जानने का आप सबको अधिकार है और उसे स्वयं आप भी जान लीजिये: Note: मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| =============कम से कम अब आगे से स्वयं मेरे समेत हर व्यक्ति(/व् जिम्मेदार व्यक्ति) को स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष में व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य; सत्यम शिवम् सुंदरम अर्थात पूर्ण सत्य ; व् सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य से गुजरना होगा (या सामना करना) होगा| उसी क्रम में अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति या कार्यावधि बीत जाने के बाद यह व्यावहारिक सत्य/जगत सत्; सत्यम शिवम् सुंदरम अर्थात पूर्ण सत्य ; व् सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य उजागर करना अनिवार्य समझता हूँ: ---मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय व् समतुल्य (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु): 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018/29 मई, 2006(31 जुलाई, 2018) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) और======ऐसी ही प्रक्रिया ने मुझे शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव तक बना दिया अर्थात सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष बना दिया तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम इस सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| =========================================== टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| =========================================== इस विश्व मानवता के केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से इन विगत दो दसकों में इस विश्वमनावता को लगभग एक सहस्राब्दी तक सुचारुरूप से संचालित रखने हेतु ऊर्जा दी जा चुकी है और इसके साथ आपको यह भी सुनिश्चित रूप से बताया गया की विश्व मानवता का मेरुदण्ड(/रीढ़ की हड्डी) सनातन धर्म ही है और यह भी की कृष्ण वह हैं जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत (/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि) और राम वह हैं जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम (/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) चलते जरूर हैं पर कोई किसी का अन्त अपने अस्तित्व को बनाये रखने हेतु नहीं चाहता है| तो सारंगधर (/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) अर्थात सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम (/कृष्ण) के पाँचों मूलभूत पात्रों (विश्व मानवता के पाँचों मूलभूत गुणों युक्त) अर्थात राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अस्तित्व इस संसार में सर्वकालिक रूप से रहा है तो सर्वकालिक रहेगा अर्थात स्वयं शिव भी बिना विष्णु का संकेत पाए इस सृष्टि का संहार नहीं कर सकते हैं और यही हुआ है इन दो दशकों में अर्थात शिव की सहनशीलता जबाब दे जाने के बावजूद सारंगधर (/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) की सहनशीलता पर ही सब कुछ टिका रहा है| In other word: राम वह है जो शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे और कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर उसे निर्मल बना दे| ======= For the world's all five fundamental character's (/having 5 fundamental virtue's) i.e. for the राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव i.e. for the 5 fundamental unit's families in all over the world, there exit one and only one unit which is respectfully called सनातन राम (/कृष्ण)/त्रिदेवों में भी परमगुरु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त) विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष कहते हैं| ========== राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):----वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अनन्त से अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित हो चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः कम से कम एक सहस्राब्दी के लिए (जिसके लिए कम से कम इतनी संचित ऊर्जा आपको अभी से दी जा चुकी है) या आने वाले उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु ही प्रयास जारी रखिये मात्र यही आशा आप लोगों से है| ================================================================================= इस विश्व मानवता के केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से इन विगत दो दसकों में इस विश्वमनावता को लगभग एक सहस्राब्दी तक सुचारुरूप से संचालित रखने हेतु ऊर्जा दी जा चुकी है और इसके साथ आपको यह भी सुनिश्चित रूप से बताया गया की विश्व मानवता का मेरुदण्ड(/रीढ़ की हड्डी) सनातन धर्म ही है और यह भी की कृष्ण वह हैं जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत (/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि) और राम वह हैं जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम (/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) चलते जरूर हैं पर कोई किसी का अन्त अपने अस्तित्व को बनाये रखने हेतु नहीं चाहता है| तो सारंगधर (/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) अर्थात सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम (/कृष्ण) के पाँचों मूलभूत पात्रों (विश्व मानवता के पाँचों मूलभूत गुणों युक्त) अर्थात राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अस्तित्व इस संसार में सर्वकालिक रूप से रहा है तो सर्वकालिक रहेगा अर्थात स्वयं शिव भी बिना विष्णु का संकेत पाए इस सृष्टि का संहार नहीं कर सकते हैं और यही हुआ है इन दो दशकों में अर्थात शिव की सहनशीलता जबाब दे जाने के बावजूद सारंगधर (/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) की सहनशीलता पर ही सब कुछ टिका रहा है| In other word: राम वह है जो शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे और कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर उसे निर्मल बना दे| ======= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ========= For the world's all five fundamental character's (/having 5 fundamental virtue's) i.e. for the राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव i.e. for the 5 fundamental unit's families in all over the world, there exit one and only one unit which is respectfully called सनातन राम (/कृष्ण)/त्रिदेवों में भी परमगुरु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त) विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष कहते हैं| ========== आज वैश्वीकरण के युग में हमारा विस्तार राम लक्ष्मण द्वारा राजतिलक किये गए हनुमान (अम्बवादेकर/अम्बेडकर/अम्बा वादेकर) के पुत्र मकरध्वज के राज्य पातालपुरी तक हो चुका है जिसे इस दुनिया का तथाकथित सर्वोच्च शक्तिशाली राज्य (/देश) कहते हाँ और कभी रावण के गुमनाम भाई अहिरावण का देश पातालपुरी भी कहलाता था तो यह परिभाषाएं भी छोटी पड़ गयीं हैं की जम्बूद्वीपे (यूरेशिया=यूरोप+एशिया); आर्यावर्ते (ईरान से लेकर सिंगापूर और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी), भरतखण्डे (अटक से लेकर कटक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी==उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं।वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।)| लेकिन फिर भी राष्ट्र के रूप में भरतखण्ड (भारतदेश) की सांस्कृतिक और सामरिक व् राजनैतिक रक्षा अपनी अद्वितीय पहचान बनाये रखने के लिए जारी रखनी है| ========================================= NOTE: सूर्यदेव जो हनुमान के गुरु थे उनकी गुरुदक्षिणा पूर्ण करने हेतु हनुमान को उनकी पुत्री सुवर्चला से विवाह करना पड़ा था तो हनुमान भी जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी थे जिनकी एक सन्तान मकरध्वज थे जो अपनी माता समेत पातालपुरी में रहते थे और वह पातालपुरी के तत्कालीन राजा अहिरावण (रावण के गुमनाम भाई) के द्वारपाल थे| राम रावण युद्ध में जब राम से लड़ाई अंतिम दौर में थी तो राम के अचूक वाणों के प्रभाव में रावण की सेना में खलबली और उदासी आ जाने पर रावण ने मायावी अहिरावण का सहारा लिया और रात में सोते हुए अवस्था में ही राम और लक्ष्मण का अपहरण कर पातालपुरी लेकर चला गया और अपनी कुलदेवी को बलि चढाने वाला था पर गुप्तचरों से इसकी जानकारी मिलने पर हनुमान उसी रात पातालपुरी जाकर मकरध्वज द्वारा संकेत दे प्रेरित करने पर अपने पांच मुखीस्वरुप में आकर अहिरावण के मायावी पांचो दीपक को बुझाकर (जो किसी बाहरी आदमी द्वारा मुख्य द्वार खुलने की मुख्य शर्त थी उसे पूराकर) उसके अभेद्य दुर्ग में प्रवेश किया और इस प्रकार मकरध्वज अपने पिता के रूप में हनुमान की पहचान करते हैं जैसा उनकी माता सूर्य-पुत्री सुवर्चला ने उनको बताया था| इस प्रकार हनुमान दुर्ग के अंदर जाकर अहिरावण को मारते है और राम और लक्ष्मण को वापस लेकर आने वाले थे तो राम और लक्ष्मण ने मकरध्वज का तिलक करते हुए वहां का राजा घोषित किया | तो फिर पातालपुरी में भी सुर और असुर युद्ध जारी रहता है| ========================================== जीवन में आर्य होने के प्रथम गुण प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी होना अगर है तो उसका पालन करने में आपको क्या दिक्कत है| राम के सन्दर्भ में प्रगतिशील सच्चाई यह थी की इन्होने 14 वर्ष के वनवास को स्वीकार किया पिता की आज्ञा मानकर जबकि सच्चाई यह थी की राम का वनवास होना सच्चाई अंतर्गत आता ही नहीं था (पिता की दुविधा और धर्म संकट को दूर करने के लिए और इस प्रकार उनके बचन को पूर्ण करने हेतु ही उनको ऐसा करना पड़ा)| कृष्ण ने भी यही किया था राधा को सदा सदा के लिए छोड़कर कंश को मारने हेतु जाकर और इस प्रकार गुरुकुल जाकर ज्ञान प्राप्तकर और समाज में धर्म का शासन स्थापित कर| लेकिन प्रगतिशील सच्चाई के परिणाम ने राम को राम (जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे) और कृष्ण को कृष्ण (मानवता का कलुष हरकर उसे निर्मल बना दे) बना दिया तो इन दोनों आर्य शिरोमणि से भी तो कुछ सीखा जाय| भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव, शिव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा? जिस परमसत्य को यह संसार कभी नकार नहीं सका वह यह है की क्षीर सागर निवासी पीताम्बर धारी विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से अवमुक्त हो आदिदेव शिव इस स्थल के प्रथम नागरिक हैं और उनकी उत्पत्ति काशी में ही हुई हैं और इसी आदिदेव शिव का इस संसार में एक मात्र वर्ण गौर वर्ण है अर्थात अतीव गौर स्वरुप ही जिनका सृष्टि के आद्यांतर रहा है और रहेगा| त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या "द्रविणं (धन)" त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ हिंदी भावार्थ आप ही माता हो, आप ही पिता हो, आप ही बन्धु हो, आप ही सखा हो, आप ही विद्या हो, आप ही धन (द्रविण) हो, हे देवदेव (हे परब्रह्म स्वरूप कृष्ण)! मेरे सब कुछ आप ही हो। जीवन में आर्य होने के प्रथम गुण प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी होना अगर है तो उसका पालन करने में आपको क्या दिक्कत है| प्रगतिशील सच्चाई यह भी थी राम के सन्दर्भ में की इन्होने 14 वर्ष के वनवास को स्वीकार किया पिता की आज्ञा मानकर जबकि सच्चाई यह थी की राम का वनवास होना सच्चाई अंतर्गत आता ही नहीं था (पिता की दुविधा और धर्म संकट को दूर करने के लिए और इस प्रकार उनके बचन को पूर्ण करने हेतु ही उनको ऐसा करना पड़ा)| कृष्ण ने भी यही किया था राधा को सदा सदा के लिए छोड़कर कंश को मारने हेतु जाकर और इस प्रकार गुरुकुल जाकर ज्ञान प्राप्तकर और समाज में धर्म का शासन स्थापित कर| लेकिन प्रगतिशील सच्चाई के परिणाम ने राम को राम (जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे) और कृष्ण को कृष्ण (मानवता का कलुष हरकर उसे निर्मल बना दे) बना दिया तो इन दोनों आर्य शिरोमणि से भी तो कुछ सीखा जाय| ======================================================================================================================================== राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):----वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं सनातन आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अनन्त से अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित हो चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः कम से कम एक सहस्राब्दी के लिए (जिसके लिए कम से कम इतनी संचित ऊर्जा आपको अभी से दी जा चुकी है) या आने वाले उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु ही प्रयास जारी रखिये मात्र यही आशा आप लोगों से है| ========================================== कम से कम अब आगे से स्वयं मेरे समेत हर व्यक्ति(/व् जिम्मेदार व्यक्ति) को स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष में व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य; सत्यम शिवम् सुंदरम अर्थात पूर्ण सत्य ; व् सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य से गुजरना होगा (या सामना करना) होगा| उसी क्रम में अभीष्ट लक्ष्य प्राप्ति या कार्यावधि बीत जाने के बाद यह व्यावहारिक सत्य/जगत सत्; सत्यम शिवम् सुंदरम अर्थात पूर्ण सत्य ; व् सत्यमेव जयते/पूर्णातिपूर्ण सत्य उजागर करना अनिवार्य समझता हूँ: ----------मेरे द्वारा वैश्विक मानवता की असह्य ऊर्जा धारण अंतर्गत मेरे एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण रहते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (सर्वोच्च ब्राह्मण: विज्ञत रूप में सर्वोच्च त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (सर्वोच्च क्षत्रिय:विज्ञत रूप में सर्वोच्च बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (सर्वोच्च वैश्य: विज्ञत रूप में सर्वोच्च तप/योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण ईसाई (सर्वोच्च ईसाइयत:विज्ञत रूप में सर्वोच्च दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि), पूर्णातिपूर्ण इस्लाम(सर्वोच्च इस्लाम:विज्ञत रूप में सर्वोच्च मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) अवस्था प्राप्ति अर्थात त्रिशक्ति धारण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था अर्थात त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था) के नेपथ्य में जो कोई भी था उसे जानने का आप सबको अधिकार है और उसे स्वयं आप भी जान लीजिये>>>>>>मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय व् समतुल्य (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु):------11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018/29 मई, 2006(31 जुलाई, 2018) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) और ऐसी ही प्रक्रिया ने मुझे शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव तक बना दिया बना दिया अर्थात सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष बना दिया तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम इस सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| ================= ======================================================================================================================================================== For the world's all five fundamental character's (/having 5 fundamental virtue's) i.e. for the राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव i.e. for the 5 fundamental unit's families in all over the world, there exit one and only one unit which is respectfully called सनातन राम (/कृष्ण)/त्रिदेवों में भी परमगुरु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त) विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष कहते हैं| ================================ 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ================================ जब यह ही एकमात्र सत्य है कि देवियों और देवताओं दोनों को अर्थात समस्त मानवता को जन्म देने वाले सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष ही हैं तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| ======================================================================================================== सांगत देवियों (/शक्तियों) समेत आप पाँचों की दुनिया को जब भी जरूरत आन पड़ेगी मुझे आना ही पडेगा फिर भी मै निरपेक्ष ही रहूँगा किसी भी के साथ दिखाई देता रहूँ इससे कोई संदेह न हो आपको| आप पाँचों की दुनिया अर्थात सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप की दुनिया अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की दुनिया:====विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: त्रिदेवों में भी गुरु बृहस्पति स्वरुप परमगुरु विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर के पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है|========NOTE:-संसार का सार=====>>>>>जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ(ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या लेकिन मिथ्या का भी अपना महत्त्व है कारन इस मिथ्या बिना ब्रह्म भी पूर्ण नहीं हो सकता) हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं >>>>>>तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिवलला के ही बन गया तो फिर राम(/कृष्ण) और शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है| ================================== राम( जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में इस्लाम/ विज्ञत रूप में मुसल्लम ईमान/पूर्णतीपूर्ण ईमानदार) और कृष्ण (जिनके सामानान्तर विज्ञत रूप में ईसाइयत/विज्ञत रूप में दीनदयाल/जगत तारण/करूणानिधि):--------वैश्विक मानवता की स्थिति को नियंत्रित कर पाना रामप्रसाद (/आद्याप्रसाद) तक ही सीमित नहीं रह गया था वरन यह अवस्था ऐसी थी की स्वयं आद्या/सनातन राम(/कृष्ण) तक आ चुकी थी अर्थात स्वयं सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था) /त्रिदेवों में भी परमगुरु विष्णु (त्रिदेवों में भी गुरु वृहस्पति/सम्पूर्ण वैभव युक्त विष्णु) की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण तक आ चुकी थी तो फिर अनन्त की ही छाया में ही खड़ा होकर अपनी लम्बाई नापने से क्या होने वाला है? अगर ऐसा समय गुजर गया और वैश्विक फलक पर मानवता के दृष्टिकोण से आशानुकूल उपयुक्त अद्वितीय ऐतिहासिक परिवर्तन भी हुए भौगोलीकरण के साथ और विश्व एक गाँव भी साबित चुका, तो जब उपयुक्त समय पर राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु व् शिव में से एक एकक इकाई के रूप में उपयुक्त पात्र आप नहीं बन सके क्योंकि आपके पास मूलभूत मौलिक गुण नहीं थे और कम से कम कोई एक तो आप में से किसी एक को तो बनना चाहिए था लेकिन नहीं बन सके तो फिर इस कारण से किसी को सशरीर परमब्रह्म अवस्था तक जाना पड़ा तो फिर वह समय पुनः वापस लाने की अनावश्यक कोशिश करने से पुनः वापस नहीं आने वाला है| अतः आने वाले एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय के लिए विश्वमानवता के सतत चालान-सञ्चालन, पोषण-सम्पोषण, रक्षण-संरक्षण हेतु मात्र ही प्रयास जारी रखिये यही आशा आप लोगों से है| ========================================================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| ====== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:=====-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम​ ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ====================================== क्या आपने समझा की आप अलग अलग इकाई के रूप में संघर्ष करते रहते हैं तो कोई स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय स्तर की एक इकाई के रूप में पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष सबके हित के लिए दो दशक से अधिक एक सचेतक के रूप में अकेला ऊर्जा देने का काम किया तो फिर वह कितना संघर्ष किया होगा| फिर भी सुनिए: ========= सच्चे अर्थों में वाह्य दुनिया से समाज को संरक्षित रखने हेतु तथा संस्कार और संस्कृति को अक्षुण्य रखने हेतु अधिकतम स्तर वाली रहस्यमय जटिल समाज की संरचना अपने में अद्वितीय महत्त्व रखती है तो फिर जाति/धर्म भेद (किन्तु इसका आशय यह नहीं कि जातीय/धार्मिक वैमनस्य समाज में आप द्वारा फैलाया जाय) होता भी है शांतिमय पारिवारिक जीवन हेतु और जाति/धर्म भेद नहीं भी होता है सार्वजनिक उपक्रम/सामूहिक लक्ष्य/राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय महत्व के कार्य हेतु योगदान हेतु| जटिल संरचना द्वारा समाज संरक्षण का इसका सीधा सा उदाहरण है की किसी एक जाति/धर्म को कोई समाप्त नहीं कर सकता या किसी एक जाति/धर्म को समाप्त कर सम्पूर्ण देश पर अधिकार नहीं किया जा सकता|-----------लेकिन आप सामान्य जीवन में भी रहते हुए भी जिस स्थान (राज्य/देश या नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान) में व्यक्तिगत जाति/धर्म से लाभ है वहां आपकी जाति/धर्म में भेद होता है; और जहाँ सर्वजन से आपको व्यक्तिगत लाभ हो वहाँ मौक़ा परस्त हो जाति/धर्म भेद नहीं होता है और अगर उस सार्वजनिक मद में आप द्वारा योगदान हेतु आह्वान हो तो फिर जाति/धर्म भेद जग जाता है| ======= तो फिर आप में से बहुसंख्यक लोग अपने तथा अपने सम्बन्धियों के घर अगर स्वयं गाय पालेंगे और इस हेतु उत्कृष्ट परिवरिश करेंगे तभी आप को गाय पालने की महत्ता, प्रेम, परिश्रम , उनके प्रति ममता तथा दर्द का भान आपको होगा और तब आपको अनैतिक रूप से किसी की गाय भगाकर उसपर अधिकार नहीं करना पडेगा बल्कि आपके सम्बन्धियों के घर से ही सम्मान सहित आपको उत्कृष्ट गाय मिल जाएगी| ======================================= मै दो वर्ष द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र अर्थात किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु (25 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009) में रहा हूँ न? तो यह मेरी प्रकृति है कि इतना समय मेरे लिए बहुत है किसी स्थान विशेष को जानने के लिए (तो फिर तेलगु व तमिल रहस्य व नीति का सार व उत्तर में उसके पोषक कौन है ज्ञात हो चुका था वहीं| सबका हिन्साब समय पर होगा), तो मै किसी को भी आहत नहीं करना चाहता, न प्रतिशोध लेना मेरा स्वभाव है और न तो मै यह भी चाहता हूँ कि सम्पूर्ण विश्वमानवता का भार भौतिक रूप से प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र ही उठाये पर प्रकृति किए का परिणाम/न्याय/दण्ड स्वयम देती है और उसी का नतीजा है कि आज विश्वमानवता का केन्द्र सदा के लिए उत्तर हो चुका है और यह सहज भाव से हुआ है तो इसमें किसी का कोई दोष नहीं है| =============================== 25-05-2018(/29-05-2006::67 सदस्य (/11 परिवार)) ::राम/कृष्ण(अर्जुन):--------दक्षिणतम के दो राज्यों (तेलगु व तमिल) द्वारा कल-बल-छल और साम दाम दण्ड भेद से एक दो देवियों पर केवल भौतिक रूप मात्र से अधिकार कर लेने मात्र से प्रयागराज (/काशी) इतना कमजोर नहीं हो गया था की ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु तथा शिव द्वारा पूरित किये जाने वाला यज्ञ फलीभूत न होता? तो उनकी जानकारी के लिए वह यज्ञ 25-05-2018(/29-05-2006::67 सदस्य (/11 परिवार)) को ही फलीभूत हो गया और उसके साथ ही साथ विश्वमानवता का केंद्र भी जो आभासीय रूप से अब तक दक्षिण दिखाई देता था वह प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से सदा के किये उत्तर ही हो गया (जैसा काम उसी के अनुरुप परिणाम/न्याय/दण्ड)| ================================== इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में सम्पूर्ण विश्व मानवता की ऊर्जा को धारण किये हुए अवस्था में 25 वर्षीय आजीवन अखण्ड ब्रह्मचर्य ब्राह्मण कुमार एक चलती फिरती हुई काया मात्र लिए हुए अपने लिए निर्धारित प्रोफेशनल दायित्व का निर्वहन भी जारी रखा था न? तो फिर ऐसी अवस्था से आज उसके संक्रमण और उत्तर संक्रमण काल गुजर जाने पर आप अपने द्वारा इस मानवता को आगे कम से कम एक सहस्राब्दी तक या उससे आगे तक मजबूत बनाने हेतु त्याग, बलिदान और तप/योग/उद्यम कीजिए; और फिर एक सहस्राब्दी बाद के लिए मेरा प्रतिरूप तैयार करने की सोचियेगा वास्तविक संदर्भ में अभी ऐसे कार्य निमित्त अनावश्यक ऊर्जा व्यय का उपक्रम न करिये क्योंकि 25/05/2018 (/31/07/2018) के बाद ऐसे उपक्रम का अब कोई भी निहितार्थ नहीं रहा| ======================= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| और इस अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ====================================== कम से कम अब भी इस विश्व जनमानस को स्वीकार कर लेना चाहिए कि इस संसार की हर सत्ता से उच्च है ईश्वरीय सत्ता जिसकी मूल निधि हैं उच्चतम जीवन स्तर (दुनिया रोचक और चमत्कारिक भी होनी चाहिए न) से लेकर निम्नतम जीवन स्तर का जीवन को जीने वाले सद्जन/सज्जन नर और नारी जोकि ईश्वर के भी स्वरूप और सत्ता की शक्ति के निर्धारण निमित्त मूल संचित स्रोत हैं| इस प्रकार जब कोई सत्ता काम नही आती तो इन सज्जन नर और नारी की अपेक्षा अनुरूप ईश्वरीय सत्ता अपना प्रभाव दिखाती है माध्यम चाहे कोई भी सत्ता बने| अतः हर किसी का हर वह प्रयास सराहनीय है जिससे सज्जन नर व नारी की संख्या में अधिकतम वॄद्धि हो| ========================= 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था तो फिर मेरे गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु) ने कहा था की पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) और गुरुदेव जोशी(त्रिमूर्ति में ब्रह्मा) के सम्मान की बात है अभीष्ठ लक्ष्य पूर्ण होने तक रूक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये | टिप्पणी: इस कार्य की सिद्धि निमित्त सारंगधर कुल को जाते हुए 2000 से लेकर 2005 के बीच रामानन्द की मूल भूमि जा 4 बार आशीर्वाद लिया था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/चन्द्रप्रेमी/शिव/सोमेश्वर) ने| ========================== विश्व मानवता के मूल केंद्र हैं न प्रयागराज (/काशी) अर्थात विश्वमानवता की नाभि हैं न प्रयागराज (/काशी) तो फिर नाभि के पृष्ठभूमि (बैकग्रॉउण्ड) में ही दोष रहेगा तो फिर विश्व मानवता कैसे सुचारु रूप से चल पाएगी?====मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) केंद्रित मेरे समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीनता के दो दशक तो बहुत होता है दो दशक ऐसे बने रहने के लिए उसमे भी जब सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्व महासमुद्रमंथन जैसा समय भी आया रहा हो:===----- अगर इन दो दशक से आपको जगाया तो इस माध्यम से केवल विश्व मानवता के रीढ़ की हड्डी स्वरुप सनातन धर्म वालों को ही नहीं जगाया वरन सम्पूर्ण मौलिक धर्म के सभी धर्मावलम्बियों को जगाया| जिस अवस्था में आप है ऐसी ही अवस्था में आपके आने हेतु आपको जाग्रत करने के उद्देश्य से सनातन से आपको न जोड़ता तो आप अपनी अपनी जाति/धर्म के संख्याबल की लड़ाई लड़ते रह जाते और इस सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहापरिवर्तन/विश्व महासमुद्रमंथन के दौर में ही टूट चुके होते उसका संक्रमण काल और उत्तर संक्रमण काल ही न देख पाते| मै यह भी नहीं कहूँगा की आपके जाति/धर्म की मौलिक अहमियत नहीं है उसकी जरूर अहमियत है पर अधिकार और कर्तव्य दोनों में साम्य जिसका सबसे जयादा है वह निश्चित रूप से ज्यादा बड़ा उत्तर दायित्व निभा रहा होता है, तो इसके लिए आपको भी अपने जाति/धर्म के अधिकार और कर्तव्य दोनों में साम्य को प्रभावी और समाजपयोगी बनाते हुए आगे आकर मानवता कल्याण का उत्तर दायित्व निभाना होगा न की केवल अधिकार का रोना रोना होगा तभी आपके जाति/धर्म की महत्ता प्रभावी रूप से निखरेगी न की अमर्यादित रूप से किसी दूसरे की टाँग खिंचाई करके अपने से नीचे धकेलकर आह्लादित होकर| आप अपने जाति/धर्म की महत्ता बनाये रखें और साथ में पारिवारिक मामलों से लेकर सामाजिक मामलों तक सामंजस्य भी बैठाये तभी सब कुछ ठीक रहेगा| आपको जो कुछ भी सार्वजनिक मद (अंशदान) से मिल रहा है उसकी तो भरपायी आपको करनी पड़ेगी न मतलब उसके व्यावहारिक/जगत सत्य, पूर्णसत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम और पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य से सामना आपको करना ही पडेगा|========शायद सरल भाषा में समझाने पर भी आप समझ जाएँ की जिनकी भी उच्च तकनीकी, ज्ञान, विज्ञान आप लेते हैं या उस तकनीकी, ज्ञान, विज्ञान के विकाश हेतु धन संपत्ति और सुविधाएँ देते है या अंशदान (आम संपत्ति/सार्वजनिक से मद निर्धारित करते हैं) देते है उस सबकी भरपाई उसी तरह करनी होती है जैसे आप किसी के धन संपत्ति या खाद्यान, तेल व् अन्य ऊर्जा के लेन व् देन की भरपाई आप करते हैं, तो इसमें किसी की जाति और विरादरी या उच्च व् निम्न जीवन स्तर से कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है और हर हालत में उसकी भरपाई आप द्वारा करनी ही है आज नहीं तो कल अवश्य ही इसे करना है| अतः मुझे जो संकेत देने थे दे दिया है और अब निम्न जीवन स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक का जीवन जीने वाले आप सब जब वैश्वीकरण व्यवस्था का लाभ लेते हुए जी रहे हैं कम से कम दूरदर्शन, मोबाईल या इंटरनेट के प्रयोग के माध्यम से ही सही तो फिर आपका जीवन कुछ न कुछ तनावग्रस्त होगा ही होगा इस तकनीकी दुनिया की दौड़ में शामिल होने से, तो ऐसे में मैंने कुछ भी ज्यादा नहीं लिखा है की किसी संस्था या संगठन को आपत्ति हो क्योंकि यह सब सारगर्भित रूप से उतना ही है जितना की भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर में अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के दौरान "Vivekanand and Modern tradition" पर लिखा था| =========================================================================================================== मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==========-========================= आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================यह मैने ही नहीं कहा परशुराम​ ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? =============================================================================== आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|========मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल/करुणानिधि/जगततारण (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ============================================जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|>>>>> जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ है =========== =============विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===इन बीस वर्षों के दौरान::25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|====अरब देश समेत पाँचों सर्वोच्च वैश्विक शक्तियों तथैव अन्य सभी देशों में से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता की इस विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से वे और उनसे यह प्रयागराज (/काशी) विश्व मानवता के इतिहास में आधुनिक तकनीतियुक्त जगत के द्वारा सहस्राब्दी महापरिवर्तन हेतु तैयारी के आलोक में सबसे ज्यादा प्रभावित न रहा हो और इसके पूर्व और आगे चाहे कम ही प्रभावित था या रहेगा या प्रभावित करेंगे| ======================================================================================================================= अगर हम यह कहें की जिन दो (अब तीन) राज्यों की आबादी सम्पूर्ण भारत की आबादी का मात्र एक आठवाँ भाग है उसके यहाँ से किसी क्षेत्र विशेष (ज्ञान-विज्ञान) में केवल एक आठवें भाग वाली भागीदारी ही उनकी होगी तो फिर उनके हाँथ से विज्ञान और तकनीकी पोटली निकल जाएगी (जैसा कि हर क्षेत्र के मद के लिए सम्पूर्ण देश के हिस्से का धन आवंटित किया जाता है)| वैसे भी अष्टक ऋषि (=आठ ऋषि) श्रेणी के आठवें ऋषि कहलाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि क्षेत्र का आबादी समेत जीवन के हर क्षेत्र का अंश एक आठवाँ भाग ही होता है तो उनके क्षेत्र का भी एक आठवाँ भाग ही होना ही चाहिए (अगर सप्तर्षि से अष्टक=आठ ऋषि परम्परा की बात की जाय तो सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भावित अगस्त्य ऋषि विंध्यक्षेत्र पार करते हुए इसी तमिल-तेलगु क्षेत्र को अपना कार्य क्षेत्र बनाये थे पर स्वयं वे भी असुरों के आतंक से आतंकित रहते थे) पर आप इसका समर्थन करेंगे तो क्षेत्रवार विभाजन भी हर भौतिक क्षेत्र का हो जाएगा अतएव हम इसका अंध समर्थन नहीं करते है और क्रमिक रूप से परिवर्तन के समर्थक है| अतः ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र सहित हर क्षेत्र में यह हस्तांतरण शनैः शनैः स्वाभाविक रूप से ही होना चाहिए न की दूसरे की पाली-पोषी गाय को स्थानीय (गाय जब से बिना अभिभावक के घर से निकलना सुरु की), राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय रूप से प्रायोजित कर उसे भगाकर अनैतिक रूप से अधिकार कर उसे प्रेमविवाह (वास्तविकता में यह छद्म प्रेमविवाह/सुडो लव-मैरेज जिसमें की हकीकत जीवन बदल जाने के बाद पता चलता है) का नाम देकर अपने नश्ल सुधार वाली प्रक्रिया जैसी बेतहासा रफ़्तार जैसे गति से (/जैसा की दो दशक से अधिक समय से असुर समाज इस कृत्य को अपने लाभ के लिए प्रायोजित किया और हुआ उसका उलटा की उत्तर सम्पूर्ण विश्वमानवता का प्रत्यक्ष और परोक्ष केंद्र बन गया जो सम्पूर्ण विश्वमानवता का केंद्र आभासीय रूप से ही सही कभी दक्षिण में दिखाई देता था)| NOTE: क्या यह सर्वथा उचित व्यवस्था नहीं है की आप अपने और अपने सम्बन्धी के घर उत्कृष्ट परिवरिश कर उच्च गुणवत्ता की गाय पाले तो फिर आपको आपके सम्बन्ध के लिए आपके सम्बन्धी के घर से ही सुयोग्य और उच्च गुणवत्ता वाली गाय सुलभ हो जाएगी और आपको किसी की गाय को भगाना भी नहीं पड़ेगा और आप ऐसे गोपालक की आह से भी बच जाएंगे| ============================================================================================================================================================ पुरुष और प्रकृति का सामजस्य इस सृष्टि में जारी रहे यह व्यवस्था सनातन राम(/कृष्ण) द्वारा ही प्रदत्त व्यवस्था है तो पुरुष प्रधान समाज व्यवस्था कहीं है तो वहाँ नारी का शोषण है और जहाँ नारी प्रधान समाज व्यवस्था है तो वहां पुरुष का शोषण है तो फिर सम्पूर्ण संसार में सामंजस्य बैठना पडेगा न की केवल भारत में ही:------एकल रूप में सर्वकालिक अर्धनारीश्वर स्वरुप ही है सनातन राम(/कृष्ण)/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) और इसके फल स्वरुप ही यह परिणति है की विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है| अर्थात यह सम्पूर्ण सृष्टि ही अर्धनारीश्वर के स्वरुप से ही है अतएव यह पुरुष और प्रकृति का सामजस्य इस सृष्टि में जारी रहे यह व्यवस्था राम(/कृष्ण)/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) द्वारा ही प्रदत्त व्यवस्था है|====-----===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =================================================================================== 67/11 (कृष्ण(/अर्जुन))::::: (10-09-2000(ब्रह्मा/सूर्य)::11-09-2001(शिव):07-02-2003(विष्णु:पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण)--- से--- 29-05-2006(कृष्ण)::25-05-2018(राम))| तो लक्ष्य तो 29 मई, 2006 को मिल गया लेकिन आगे पता चला की इसमें मानवता का भी अभीष्ठ लक्ष्य भी जुड़ा है जो की 25 मई, 2018 (/29 मई, 2006) को पूरा हो गया तो फिर आप सब ही देरी (09 -11-2019/30-09-2010 ) किये| ===== जिस सीढी पर चढ़कर आपने अपना लक्ष्य हांसिल किया है उस सीढी के एक एक पाँवदान को और जिस समतल जमीन पर आप चल रहे हैं या चले हैं वह कितने शवों के नीचे दबने से समतल हो आपके चलने लायक बना है उसको नहीं भूलना चाहिए और जिसने आपके विकास/विकसित होने का आधारभूत ढांचा बनाया उसको भी नहीं भूलना चाहिए|=======================विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================================================================== सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ============================================================================================================================================================ जब सशरीर परमब्रह्म विष्णु अवस्था को 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान स्वयं मै ही जिया था तो मुझे मेरे निमित्त (संकल्पित/समर्पित/समाधिगत/ब्रह्मलीनगत) अभीष्ट लक्ष्य मिलना ही था जो की 25-05-2018 को जगत सत्य के रूप में स्थापित हो ही गया अर्थात बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति 25-05-2018 को हो ही गयी और मै जगत सत्य के अनुसार भी ऐसी अवस्था को प्राप्त हो ही गया अर्थात शिव ही नहीं महाशिव अर्थात सदाशिव/महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/!सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम (/कृष्ण) अवस्था को प्राप्त हो गया और इसकी भनक मेरे लेखों द्वारा या किसी देवी/देवता (जिस किसी को भी संकेत मेरे द्वारा दिया गया हो) द्वारा लगने पर किसी के भी हाय-तोबा मचाने या पूरी दुनिया सिर पर उठा लेने से क्या हाँसिल होने वाला था| ===================================================================== इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पहले 11 सितम्बर, 2001 को दॉँव पर लगा, फिर 7 फरवरी, 2003 को दॉँव पर लगा और आगे जाकर 15/29 मई, 2006 को अन्तर्ब्रह्म की प्रेरणा और दूरदर्शिता में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को बचाने और हासिल करने हेतु दाँव पर लगा और पूर्ण सफलता को प्राप्त किया जिसको भी नजरंदाज करने पर यह अभीष्ट लक्ष्य 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम व् विधि -विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया और जगत सत्य के रूप में उसे स्थापित किया| इसके साथ मानवता के जो मजबूत मान दण्ड स्थापित हुए थे बावजूद इसके एक--दो वर्ष भी आपलोग उसे निभा न सके और मुझे ही फिर से वह दायित्व उठाना पड़ा तो जाहिर सी बात है की यह बताना आवश्यक हो गया था की मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान; सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लीजिये| नोट: राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| | ====================================================================== सारंगधर के पाँच के पाँचों आयाम: राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग आगे से थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लेंगे| टिप्पणी: राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| =============इस विश्वमानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में आप की आपसी लड़ाई और अति प्रतिशोध की भावना इतनी प्रबल थी की आपने मुझे न शिव के रूप में स्वीकार किया, न विष्णु के रूप में पहचाना और फिर न ब्रह्मा के रूप में पहचाना तो फिर मैं विश्व मानवता हित के अभीष्ट कार्य सिद्धि हेतु शिव ही नहीं महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सदाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) /सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम (/कृष्ण) बन गया| =========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान; सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/!सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लीजिये| नोट: राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| NOTE: सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] =========================================================== इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पहले 11 सितम्बर, 2001 को दॉँव पर लगा, फिर 7 फरवरी, 2003 को दॉँव पर लगा और आगे जाकर 15/29 मई, 2006 को अन्तर्ब्रह्म की प्रेरणा और दूरदर्शिता में संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को बचाने और हासिल करने हेतु दाँव पर लगा और पूर्ण सफलता को प्राप्त किया जिसको भी नजरंदाज करने पर यह अभीष्ट लक्ष्य 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम व् विधि -विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता प्राप्त किया और जगत सत्य के रूप में उसे स्थापित किया| इसके साथ मानवता के जो मजबूत मान दण्ड स्थापित हुए थे बावजूद इसके एक--दो वर्ष भी आपलोग उसे निभा न सके और मुझे ही फिर से वह दायित्व उठाना पड़ा तो जाहिर सी बात है की यह बताना आवश्यक हो गया था की मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान; सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| अगर ऐसा हुआ है तो समझिये की इन पाँच के पाँचों मूल आयाम हेतु समकालीन उपयुक्त पात्र का अभाव रहा है जिसके परिणाम स्वरुप सामानांतर रूप से अनवरत मुझे अपनी लेखनी भी चलाये रखनी पडी| आशा है की आप लोग थोड़ा थोड़ा राम या थोड़ा थोड़ा कृष्ण बन लीजिये| नोट: राम वह हैं जो शिव की तरह पापों को जला दे और विष्णु की तरह पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो मानवता का कलुष हर कर उसे निर्मल बना दे| ======================================================== मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ================================================= विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही सांगत शक्तियों समेत त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का आविर्भाव होता है और इसप्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उनकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी और फलस्वरूप उनकी छाया रूपी सृष्टि तदनुसार विश्वमानव समष्टि का आविर्भाव होता है:------===>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव: महाशिव/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|   =================================================================================================== 108(/109) गोत्रीय श्रृंखला में हम सभी का पहला गोत्र कश्यप (मारीच अर्थात सूर्य गोत्र/रिषि का एकल गोत्र/रिषि, कश्यप जो कि 7/8/24 गोत्र/रिषि श्रेणी में भी पहला गोत्र है) और सभी गोत्रों का ऊर्जा स्रोत गोत्र अर्थात 109 वाँ गोत्र विष्णु गोत्र है तो फिर आप अपने पारिवारिक संस्कार का दर्पण धुंधला न होने दीजिये जिसके राष्ट्रीय औसत से सनातन संस्कृति का राष्ट्रीय स्तर निर्धारित (सृजन) होता है| इस संस्कार की एक कड़ी में नामकरण संस्कार भी आता है| हमारे परिवारजन के नाम कम से कम असुर संस्कृति को बढ़ावा न दें जिसमें विशेषरूप से रावणकुल (/रावण/कुम्भकर्ण/मेघनाद) जैसे नाम को बढ़ावा न मिले|=====क्या सूर्यदेव (मानव जीवन का आधार है) से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सूर्यदेव के केवल एक चरित्र (/गुण) विशेष पर अनुसंधान किया हुआ वैज्ञानिक/अनुसंधानकर्ता?====जिसका उत्तर है कि रंचमात्र भी नहीं बल्कि वह सहनमात्र नहीँ कर सकता सूर्य को======हर प्रश्न का उत्तर देना जरूरी नहीं होता परन्तु अपने ऊपर से आक्षेप को दूर करने हेतु कुछ उत्तर अप्रत्यक्ष देने आवश्यक हो जाते हैं तो फिर वह यह है कि चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सीधे प्रभाव के साथ ही साथ सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे):-----------जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|>>>>> जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ |>>>>जो ज्ञानी विज्ञानी आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने का 23 वर्ष से असम्भव प्रयास करने में अपनी ऊर्जा इस विश्व मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (काशी) ही में व्यय तो कर ही रहे और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे है उनकी भी कम से कम कुछ जबाबदेहि तय हो समाज हित में:==========शायद यह विश्वविदित है कि असुरकुल वाले भी ज्ञानी व विज्ञानी हुए है पर आजतक उनका अस्तित्व स्वयम शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा पात्रता पर ही निर्भर रहा है अर्थात वे विनाश को प्राप्त हुए हैं लेकिन शिव, विष्णु और ब्रह्मा का कभी भी विनाश नहीं होता है और न केदारेश्वर (शिव) कभी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा रहे हैं| पर ऐसे विश्व समाज का क्या होगा जहाँ======= मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में ही ऐसे भी ज्ञानी-विज्ञानी भी भरे पड़े हैं जो 23 वर्ष से आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने के असम्भव प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यय तो कर ही रहे हैं और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे हैं| लेकिन याद रहे कि कभी भी त्रिदेव का विनाश नहीँ होता है पर असुर कुल का विनाश अवश्य ही होता है| ============================================================================================== मई, 2006 में ही राष्ट्रीय स्तर पर सम्बंधित उच्चस्थ पदासीन धार्मिक आस्था व् विश्वास वाले व्यक्तित्व ने जब स्वयं कह दिया था की हर शिक्षक व् ऋषि-महर्षि-मुनि का जीवन जीने वाले वैज्ञानिक का सम्मान है उनका अनादर हमें नहीं करना है पर सनातन संस्कृति को चिढ़ाने वाले(/मजाक उड़ाने वाले/माखौल उड़ाने वाले) रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी केंद्र/संस्था/संस्थान को कोई अनुमोदित पद नहीं दिया जाएगा तो फिर ऐसे थे उस तात्कालिक उच्च मनीषी के विचार| तो इसमें मुझ जैसे व्यक्ति के स्तर पर किसी विद्वान व् ऋषि-महर्षि-मुनि का कोई अपमान का प्रश्न कहाँ और मैं किसी का विरोधी कैसे हुआ? फिर मेरी भी ऐसी विचारधारा है की मै रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार का सदस्य नहीं होना चाहता तो ऐसे में मैंने भी अपना विरोध जता दिया आगे उच्च सक्षम पदस्त सनातन धर्म के प्रति धार्मिक और आस्थावान कहे जाने वाले लोगों की जैसी मन्सा और उनके किसी जिद्दी निर्णय का ऐसी किसी संस्था/संस्थान/केंद्र/परिवार को और सम्पूर्ण विश्व समाज को मिलाने वाला प्रतिफल| ================================================================================================ इस विश्व-मानवता को चमत्कारिक रूप से चलाना है या विश्व-मानवता को सीमित कर विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही केंद्रित रखना है (अर्थात या विश्व-मानवता को सीमित कर विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में बुला के बैठना है)? तो फिर विचार तो करना ही पडेगा न? और अपनों को अपनों से दूर और नजदीक होना पड़ेगा न? तो फिर कैसा गिला-शिकवा और कैसा मलाल? अत: बिना सम्यक विचार किये गणमान्य देवी व् देवताओं पर तरह तरह का कैसा आरोप? लेकिन हाँ सम्यक रूप से इस तथ्य पर विचार किये रहिएगा कि === ==> मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:==========-यह मैने ही नहीं कहा परशुराम​ ने भी यही कहा था कि:=== ====धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार ||===जबकी सभी धनुष युद्ध में बाण संधान में प्रयुक्त होते थे/है लेकिन शिव धनुष, पिनाक और विष्णु धनुष, सारंग जिसमें राम द्वारा सीता स्वयम्वर में शिव धनुष, पिनाक तोड़ने पर राम द्वारा ही परशुराम का क्रोध शान्ति किए जाने पर परशुराम द्वारा विष्णु धनुष, सारंग राम को ही संधान करने हेतु दिया गया था उनके विष्णु के परमब्रह्म अवतार ही होने की पहचान करने हेतु और आगे यही विष्णु धनुष, सारंग और विष्णु चक्र , सुदर्शन चक्र उन्होंने कृष्ण को दिया था तो ये धनुष सबसे अलग हैं| तो स्पष्ट है कि जो शिव धनुष, पिनाक पर प्रत्यन्चा चढा तोड़ सकता है वह बाण से पिनाक का सन्धान भी कर सकता है इससे बड़ी त्रिशक्ति सम्पन्न अवस्था का प्रथम लक्षण और क्या होगा ? ================================== आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे| =================================मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाने का प्रभाव:------मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाकर द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में उसके शताब्दी वर्ष के दौरान (2007-2009) अपने हेतु अद्वितीय कार्य निपटाने के दौरान ननिहाल (बिशुनपुर-223103) क्षेत्र के समस्त जाति/धर्म के प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों और इसी प्रकार पैतृक क्षेत्र (रामापुर-223225) के ही ऐसे प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों तथैव समस्त गुरुकुल के ज्ञात गुरुजन व् मित्रजन को स्मरण मात्र कर उनसे ऊर्जा लिया करता था| ===============÷=÷÷÷÷========================= मानवीय दोषजन्य/दैवीय आपदागत आघात अपनी जगह है पर "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"--------- के काल खण्ड में विश्व मानवता केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में विश्व-मानवता की आधारशिला इतनी कमजोर नहीं रखी गयी है की विश्व-मानवता सहस्राब्दियों तक अक्षुण्य न रह रह सके तो फिर ===== ===== धैर्य न खोइए ईश्वर (राम/कृष्ण) पर विश्वास कीजिये और यह सोचिये कि रामलला(/कृष्णलला) आप के साथ हैं क्योंकि बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिव की उपस्थिति के आपके राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने का रास्ता साफ नहीं हुआ है| तो यह समझिये की हो सकता है की इनकी उपस्थिति के प्रभाव में ही किसी संभावित महाप्रलय के बदले आपको केवल वैश्विक महामारी मात्र ही मिली हो और जिसे दूर होना ही है|=======10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं जो 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से अवमुक्त हुए थे तो फिर सीधी सी बात है की जो अवमुक्त हुए हैं वे किसी विशेष प्रक्रियागत (/परिस्थितिजन्यगत) संयुक्त भी हो सकते हैं| और फिर जब तीनों संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है| ----------तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| =====>>>>> मै ही था/हूँ जिसने धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी परमब्रह्म स्वरूप की ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया|=====>>>>> तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|======÷==÷मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:---------मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाने का प्रभाव:------मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाकर द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में उसके शताब्दी वर्ष के दौरान (2007-2009) अपने हेतु अद्वितीय कार्य निपटाने के दौरान ननिहाल (बिशुनपुर-223103) क्षेत्र के समस्त जाति/धर्म के प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों और इसी प्रकार पैतृक क्षेत्र (रामापुर-223225) के ही ऐसे प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों तथैव समस्त गुरुकुल के ज्ञात गुरुजन व् मित्रजन को स्मरण मात्र कर उनसे ऊर्जा लिया करता था| =========================================== जब यह ही एकमात्र सत्य है कि देवियों और देवताओं दोनों को अर्थात समस्त मानवता को जन्म देने वाले सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष ही हैं तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| =============================== अगर न तो ऐसी उपयुक्त योग्यता रही है आपकी और न तो क्षमता ही थी/है आपकी व् उचित देश, काल, परिश्थिति आने पर आपने तद्नुरूप प्रदर्शन भी नहीं किया है और न ऐसा वास्तविक जीवन जिया हो आपने तो फिर केवल श्रेय लेने के लिए और फसल काटने हेतु आडम्बर नहीं रचाना चाहिए मतलब ऐसा महत्वपूर्ण दायित्व अपने हाँथ न लिया कीजिये जिससे कि आप इस दुनिया को चमत्कारिक रूप से सुसंचालित करने में बाधक सिद्ध हों |>>>>>===== सारंगधर के पांच के पांचो मूल पात्र हेतु उपयुक्त पात्र उपयुक्त देश, काल, परिस्थिति में न मिलने पर मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) केंद्रित होते हुए सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्र राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के चरित्र का निर्वहन मेरे द्वारा ही किया गया| तो फिर ऐसे कालखण्ड में सारंगधर के पांच के पांचो आयाम मतलब राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है| =============================================== यह है स्वाभाविक समरसता न की बल पूर्वक थोपी गयी समरसता| उत्कृष्ट गुणों वाला चन्द्रमा स्वयम कपूर के समान गौरवर्ण युक्त आभा वाले शिव द्वारा अपने मस्तक पर श्रृंगार स्वरुप धारण किया जाने वाला शुक्लपक्ष का दिव्य शुभ्र आभायुक्त चन्द्रमा है जिसके वक्र होने के कारण उसे राहु भी ग्रसित नहीं करता है| और ऐसा चन्द्रमा ही काली माई (महागौरी के नौ स्वरूपों में से एक स्वरुप) का प्रिय पुत्र कहा जाता है जो शिव को भी अत्यंत प्रिय है| यह है स्वाभाविक समरसता न की बल पूर्वक थोपी गयी समरसता| ================================================= मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ============================= चन्द्रदेव को उर्जा सूर्यदेव से मिलती है और सूर्यदेव को ऊर्जा विष्णु के ही परमब्रह्म स्वरूप से ही मतलब रामजानकी(रामा) से ही मिलती है =-----प्रामाणिक तौर पर वृहस्पतिवार को ही अवतरित होने वाले श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 ने फरवरी, 2003 में कहा था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द:चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव)/रामापुर-223225 और गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा)/प्रयागराज के सम्मान की बात वहीं रुक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| वैसे तो प्रयागराज मे 11 सितम्बर, 2001 से ही पूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित था पर आगे कतिपय कारणों से प्रयागराज में संस्थागत दायित्व से हटना चाह रहा था पर यह परोक्ष मानवतागत दायित्व ही था उस समय यह समझ नहीं थी और इस प्रकार श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 के आग्रह पर इस प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 से पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हो गया | >>>>> बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष (ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| पहली बार पूर्ण ब्रह्मलीनता 11 सितम्बर, 2001 को विश्वव्यापक प्रेमचंद (चन्द्रप्रेमी)/सोमेश्वर/शिव के निर्देशपर हुआ और दूसरी बार पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता 7 फरवरी, 2003 को विश्वव्यापक श्रीधर(विष्णु) के आग्रह पर हुई और तीसरी बार 29 (/15) मई, 2006 को संस्थागत उद्देश्य को वैश्विक प्रायोजित शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचाने हेतु स्वयंनिहित ब्रह्मलीनता रही किन्तु इसमें वास्तविक सन्दर्भ में ब्रह्मलीन अवस्था से वापसी हो गयी और फिर पूर्ण सफलता प्राप्ति का कारक बना तो जाहिर सी बात है की मेरी यह ब्रह्मलीनता सरस्वती (/ब्रह्मा) द्वारा प्रेरित रहा| इसके आगे से वैश्विक मानवता हेतु सामाजिक लेखन व् संघर्ष के साथ 10/11 सितम्बर, 2008 को विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में धर्म/चक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोक चक्र की पूर्णातिपूर्ण पुनर्स्थापना के साथ 25 मई, 2018 को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =============================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (बिहारी=कृष्ण=मुरलीमनोहर) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) कहे जाते हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस प्रयागराज (काशी) में धारण करना पडेगा;-- व् ----प्रयागराज विश्वविद्यालय) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले संस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|- ============================================================================================================= बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ==================================================================================================================================================== जब यह ही एकमात्र सत्य है कि देवियों और देवताओं दोनों को अर्थात समस्त मानवता को जन्म देने वाले सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष ही हैं तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| ===========================================माधव वह है जिसका वास्तविक सन्दर्भ में कोई जन्म दाता नहीं होता है (सामाजिक तौर पर चाहे उसका कोई जन्म दाता भले ही आपको दिखाई देता हो) तो जो अपनी तीन-तीन पीढ़ी की ऊर्जा लिए हुए था और जिसका तीन-तीन बार (11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और पुनः 15/29 मई, 2006) मानवता के अभीष्ट हित हेतु पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में और उसने बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति भी किया हो 25, मई, 2018 (पूर्ण सफलता, 29 मई, 2006 को) को ही इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्ण केंद्रित रहते हुए तो उसको किसी अन्य स्थानीय, राष्ट्रीय या वैश्विक प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है|===========जब यह ही एकमात्र सत्य है कि देवियों और देवताओं दोनों को अर्थात समस्त मानवता को जन्म देने वाले (आविर्भवित करने वाले) सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष ही हैं तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| =========================================================================================================================== क्या सूर्यदेव (मानव जीवन का आधार है) से भी महत्व पूर्ण है सूर्यदेव के केवल एक चरित्र विशेष का आधुनिक शोधकर्ता?====जिसका उत्तर है कि रंचमात्र भी नहीं==== हर प्रश्न का उत्तर देना जरूरी नहीं होता परन्तु अपने ऊपर से आक्षेप को दूर करने हेतु कुछ उत्तर अप्रत्यक्ष देने आवश्यक हो जाते हैं तो फिर वह यह है कि चन्द्रदेव की ऊर्जा के स्रोत सूर्यदेव और सूर्यदेव की ऊर्जा के स्रोत स्वयं विष्णु की परमब्रह्म अवस्था वाले रामजानकी (रामा) ही हैं (इसका कारन यह है कि तारे, ग्रह और नक्षत्र हमारे बीच में हमारे मध्यम से ही इस समाज में उपस्थित रहते हैं मतलब सीधे प्रभाव के साथ ही साथ सूर्य और चन्द्र व सभी ग्रह हमारे माध्यम से भी अपना प्रभाव समाज पर छोड़ते हैं तो फिर समस्त ऊर्जाओं का जो केंद्र है वही रामजानकी (रामा) सूर्यदेव की भी ऊर्जा के स्रोत होंगे):----------जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|>>>>> जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ |>>>>जो ज्ञानी विज्ञानी आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने का 23 वर्ष से असम्भव प्रयास करने में अपनी ऊर्जा इस विश्व मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (काशी) ही में व्यय तो कर ही रहे और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे है उनकी भी कम से कम कुछ जबाबदेहि तय हो समाज हित में:==========शायद यह विश्वविदित है कि असुरकुल वाले भी ज्ञानी व विज्ञानी हुए है पर आजतक उनका अस्तित्व स्वयम शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा पात्रता पर ही निर्भर रहा है अर्थात वे विनाश को प्राप्त हुए हैं लेकिन शिव, विष्णु और ब्रह्मा का कभी भी विनाश नहीं होता है और न केदारेश्वर (शिव) कभी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा रहे हैं| पर ऐसे विश्व समाज का क्या होगा जहाँ======= मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में ही ऐसे भी ज्ञानी-विज्ञानी भी भरे पड़े हैं जो 23 वर्ष से आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने के असम्भव प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यय तो कर ही रहे हैं और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे हैं| लेकिन याद रहे कि कभी भी त्रिदेव का विनाश नहीँ होता है पर असुर कुल का विनाश अवश्य ही होता है| ================================================================================================================== माधव वह है जिसका वास्तविक सन्दर्भ में कोई जन्म दाता नहीं होता है (सामाजिक तौर पर चाहे उसका कोई जन्म दाता भले ही आपको दिखाई देता हो) तो जो अपनी तीन-तीन पीढ़ी की ऊर्जा लिए हुए था और जिसका तीन-तीन बार (11 सितम्बर, 2001, 7 फरवरी, 2003 और पुनः 15/29 मई, 2006) मानवता के अभीष्ट हित हेतु पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में और उसने बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति भी किया हो 25, मई, 2018 (पूर्ण सफलता, 29 मई, 2006 को) को ही इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में पूर्ण केंद्रित रहते हुए तो उसको किसी अन्य स्थानीय, राष्ट्रीय या वैश्विक प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है|===========जब यह ही एकमात्र सत्य है कि देवियों और देवताओं दोनों को अर्थात समस्त मानवता को जन्म देने वाले (आविर्भवित करने वाले) सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष ही हैं तो फिर कौन ऐसे देवी या देवता हैं जिनका अस्तित्व और सम्बन्ध स्वयम सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष से न हो| ====================================================================================== मानवीय दोषजन्य/दैवीय आपदागत आघात अपनी जगह है पर "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति"--------- के काल खण्ड में विश्व मानवता केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में मानवता की आधारशिला इतनी कमजोर नहीं रखी गयी है की मानवता सहस्राब्दियों तक अक्षुण्य न रह रह सके तो फिर ===== ===== धैर्य न खोइए ईश्वर (राम/कृष्ण) पर विश्वास कीजिये और यह सोचिये कि रामलला(/कृष्णलला) आप के साथ हैं क्योंकि बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिव की उपस्थिति के आपके राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने का रास्ता साफ नहीं हुआ है| तो यह समझिये की हो सकता है की इनकी उपस्थिति के प्रभाव में ही किसी संभावित महाप्रलय के बदले आपको केवल वैश्विक महामारी मात्र ही मिली हो और जिसे दूर होना ही है=======अगर न तो ऐसी उपयुक्त योग्यता रही है आपकी और न तो क्षमता ही थी आपकी है व् उचित देश, काल, परिश्थिति आने पर आपने तद्नुरूप प्रदर्शन भी नहीं किया है और न ऐसा वास्तविक जीवन जिया हो आपने तो फिर केवल श्रेय लेने के लिए और फसल काटने हेतु आडम्बर नहीं रचाना चाहिए मतलब ऐसा महत्वपूर्ण दायित्व अपने हाँथ न लिया कीजिये जिससे कि आप इस दुनिया को चमत्कारिक रूप से सुसंचालित करने में बाधक सिद्ध हों |>>>>>===== सारंगधर के पांच के पांचो मूल पात्र हेतु उपयुक्त पात्र उपयुक्त देश, काल, परिस्थिति में न मिलने पर मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) केंद्रित होते हुए सारंगधर के पाँच के पाँचों मूल पात्र राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के चरित्र का निर्वहन मेरे द्वारा ही किया गया| तो फिर ऐसे कालखण्ड में सारंगधर के पांच के पांचो आयाम मतलब राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| फिलहाल 10/11 सितम्बर, 2008 से प्रयागराज (/काशी) में 10 सितम्बर, 2008 से ब्रह्मा और विष्णु अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज में ही केन्द्रित हो और 11 सितम्बर, 2008 से शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में ही सपरिवार केंद्रित हो अपना दायित्व निभा रहे है| ========================================================================================== 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं जो 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से अवमुक्त हुए थे तो फिर सीधी सी बात है की जो अवमुक्त हुए हैं वे किसी विशेष प्रक्रियागत (/परिस्थितिजन्यगत) संयुक्त भी हो सकते हैं| और फिर जब तीनों संयुक्त हुए तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) अर्थात सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण) के स्वरुप में ही आएंगे और इसी के अवलोकन में सारंगधर पाँच के पाँचो स्वरुप अर्थात इस मानवता के पाँच के पाँचों मूल पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की अवधारणा परिपक़्व होती है| ----------तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| =====>>>>> मै ही था/हूँ जिसने धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी परमब्रह्म स्वरूप की ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया|=====>>>>> तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====================================================================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ========================================================================================= चन्द्रदेव को उर्जा सूर्यदेव से मिलती है और सूर्यदेव को ऊर्जा विष्णु के ही परमब्रह्म स्वरूप से ही मतलब रामजानकी(रामा) से ही मिलती है =-----प्रामाणिक तौर पर वृहस्पतिवार को ही अवतरित होने वाले श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 ने फरवरी, 2003 में कहा था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द:चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव)/रामापुर-223225 और गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा)/प्रयागराज के सम्मान की बात वहीं रुक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| वैसे तो प्रयागराज मे 11 सितम्बर, 2001 से ही पूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित था पर आगे कतिपय कारणों से प्रयागराज में संस्थागत दायित्व से हटना चाह रहा था पर यह परोक्ष मानवतागत दायित्व ही था उस समय यह समझ नहीं थी और इस प्रकार श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 के आग्रह पर इस प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 से पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हो गया| बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| पहली बार पूर्ण ब्रह्मलीनता 11 सितम्बर, 2001 को विश्वव्यापक प्रेमचंद (चन्द्रप्रेमी)/सोमेश्वर/शिव के निर्देशपर हुआ और दूसरी बार पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता 7 फरवरी, 2003 को विश्वव्यापक श्रीधर(विष्णु) के आग्रह पर हुई और तीसरी बार 29 (/15) मई, 2006 को संस्थागत उद्देश्य को वैश्विक प्रायोजित शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचाने हेतु स्वयंनिहित ब्रह्मलीनता रही किन्तु इसमें वास्तविक सन्दर्भ में ब्रह्मलीन अवस्था से वापसी हो गयी और फिर पूर्ण सफलता प्राप्ति का कारक बना तो जाहिर सी बात है की मेरी यह ब्रह्मलीनता सरस्वती (/ब्रह्मा) द्वारा प्रेरित रहा| इसके आगे से वैश्विक मानवता हेतु सामाजिक लेखन व् संघर्ष के साथ 10/11 सितम्बर, 2008 को विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में धर्म/चक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोक चक्र की पूर्णातिपूर्ण पुनर्स्थापना के साथ 25 मई, 2018 को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ====================================================================================================================================== जीवन के तीनों मूलभूत अंग अर्थात देव, रिषि(गुरू) व माता (/पिता) भी देव, रिषि (गुरू) व माता (/पिता) की अति भक्ति में या सामान्य व्यवहार में भी सामाजिक दोष पनपने वाली गलतियाँ करें तो उनको आगाह करना दोष की श्रेणी मे कुछ भी नहीं आता है|>>>>> जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ |>>>>जो ज्ञानी विज्ञानी आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने का 23 वर्ष से असम्भव प्रयास करने में अपनी ऊर्जा इस विश्व मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (काशी) ही में व्यय तो कर ही रहे और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे है उनकी भी कम से कम कुछ जबाबदेहि तय हो समाज हित में:==========शायद यह विश्वविदित है कि असुरकुल वाले भी ज्ञानी व विज्ञानी हुए है पर आजतक उनका अस्तित्व स्वयम शिव, विष्णु और ब्रह्मा की कृपा पात्रता पर ही निर्भर रहा है अर्थात वे विनाश को प्राप्त हुए हैं लेकिन शिव, विष्णु और ब्रह्मा का कभी भी विनाश नहीं होता है और न केदारेश्वर (शिव) कभी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा रहे हैं| पर ऐसे विश्व समाज का क्या होगा जहाँ======= मानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में ही ऐसे भी ज्ञानी-विज्ञानी भी भरे पड़े हैं जो 23 वर्ष से आदिदेव/पुराण पुरूष/सनातन राम(/कृष्ण) से आविर्भावित होने वाले त्रिदेवों मे से आदिदेव के आदि स्वरूप अर्थात शिव के आदि स्वरूप केदारेश्वर को स्वयम केदानेश्वर (शिव) के परजीवी असुरकुल (मेघनाद/कुम्भकर्ण/रावण) का जुड़वा सिद्ध करने के असम्भव प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यय तो कर ही रहे हैं और साथ ही साथ इस प्रकार विश्व मानव समाज को भी अनीति और अधर्म की ओर अग्रसर रहने का पाठ भी पढा रहे हैं| लेकिन याद रहे कि कभी भी त्रिदेव का विनाश नहीँ होता है पर असुर कुल का विनाश अवश्य ही होता है| ========================== जिस बीज को दीमक के साथ ही बोया गया रहा हो और जन्मते ही विष की बेल लपेट दी गई हो और वह पौध विकसित भी हो गया हो तो फिर उसकी दिव्य शक्तियों युक्त होने का और कोई भी प्रमाणपत्र आवश्यक नहीँ | ======================================== धैर्य न खोइए ईश्वर (राम/कृष्ण) पर विश्वास कीजिये और यह सोचिये कि रामलला(/कृष्णलला) आप के साथ हैं क्योंकि बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिव की उपस्थिति के आपके राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने का रास्ता साफ नहीं हुआ है| तो यह समझिये की हो सकता है की इनकी उपस्थिति के प्रभाव में ही किसी संभावित महाप्रलय के बदले आपको केवल वैश्विक महामारी मात्र ही मिली हो और जिसे दूर होना ही है|====इन बीस वर्षों के दौरान::25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|====अरब देश समेत पाँचों सर्वोच्च वैश्विक शक्तियों तथैव अन्य सभी देशों में से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता की इस विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से वे और उनसे यह प्रयागराज (/काशी) विश्व मानवता के इतिहास में आधुनिक तकनीतियुक्त जगत के द्वारा सहस्राब्दी महापरिवर्तन हेतु तैयारी के आलोक में सबसे ज्यादा प्रभावित न रहा हो और इसके पूर्व और आगे चाहे कम ही प्रभावित था या रहेगा या प्रभावित करेंगे|=========आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|- ================================== चन्द्रदेव को उर्जा सूर्यदेव से मिलती है और सूर्यदेव को ऊर्जा विष्णु के ही परमब्रह्म स्वरूप से ही मतलब रामजानकी(रामा) से ही मिलती है =-----प्रामाणिक तौर पर वृहस्पतिवार को ही अवतरित होने वाले श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 ने फरवरी, 2003 में कहा था पाण्डेय जी (प्रेमचन्द:चन्द्रप्रेमी/सोमेश्वर/शिव)/रामापुर-223225 और गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा)/प्रयागराज के सम्मान की बात वहीं रुक जाओ विवेक तुम्हें प्रयागराज (/काशी) छोड़कर कहीं नहीं जाना है| वैसे तो प्रयागराज मे 11 सितम्बर, 2001 से ही पूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित था पर आगे कतिपय कारणों से प्रयागराज में संस्थागत दायित्व से हटना चाह रहा था पर यह परोक्ष मानवतागत दायित्व ही था उस समय यह समझ नहीं थी और इस प्रकार श्रीधर (विष्णु)/बिशुनपुर-223103 के आग्रह पर इस प्रयागराज (/काशी) में 7 फरवरी, 2003 से पूर्णातिपूर्ण संकल्पित/समाधिष्ठ/ब्रह्मलीन/समर्पित हो गया| ==================== मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल/करुणानिधि/जगततारण (/ईसाइयत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| =========================================== स्थानीय रूप से लेकर वैश्विक स्तर तक के हर धर्म के पुरोहितों द्वारा आये दिन मानवता के समाप्त होने की घोषणाएं हो रही थीं: 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| =============================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| पहली बार पूर्ण ब्रह्मलीनता 11 सितम्बर, 2001 को विश्वव्यापक प्रेमचंद (चन्द्रप्रेमी)/सोमेश्वर/शिव के निर्देशपर हुआ और ब्रह्मलीनता 7 फरवरी, 2003 को विश्वव्यापक श्रीधर(विष्णु) के आग्रह पर हुई और तीसरी बार 15 (/29) मई, 2006 को संस्थागत उद्देश्य को वैश्विक प्रायोजित शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचाने हेतु स्वयंनिहित ब्रह्मलीनता रही किन्तु इसमें वास्तविक सन्दर्भ में ब्रह्मलीन अवस्था से वापसी हो गयी और फिर पूर्ण सफलता प्राप्ति का कारक बना तो जाहिर सी बात है की मेरी यह ब्रह्मलीनता सरस्वती (/ब्रह्मा) द्वारा प्रेरित रहा| इसके आगे से वैश्विक मानवता हेतु सामाजिक लेखन व् संघर्ष के साथ 10/11 सितम्बर, 2008 को विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में धर्म/चक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोक चक्र की पूर्णातिपूर्ण पुनर्स्थापना के साथ 25 मई, 2018 को बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =========================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (बिहारी=कृष्ण=मुरलीमनोहर) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) कहे जाते हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस प्रयागराज (काशी) में धारण करना पडेगा;-- व् ----प्रयागराज विश्वविद्यालय) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले संस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|- ================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| =========================================== क्योंकि विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| =========================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ============================================================ और आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए| ================================================= मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ======================================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ======================================================== जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं >>>>>>तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है| आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह कार्य से विरत करवाकर|>>>>>><<<<<<<<< 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ================================= जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| =================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018: हर किसी का कोई दूसरा विकल्प सम्भव नहीं होता है, मैने पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने में 20 वर्ष से एक दिन भी विलम्ब नहीं किया आप लोग ही पीछे रह गये थे पर पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान के मद में स्वयम द्वारा प्रायोजित हो या प्रायोजित षडयंत्र का शिकार हो व्यापक दृष्टिकोण से स्वयम में ही निराधार ही सही पर उपरी सतह पर कमी आप मुझमें ही खोजने लगे; स्वमेव आवेदित शिकायत के निराकरण कर्ता बन बैठे; और दिसम्बर, 2018 आते आते षडयंत्र के तहत मुझे आरोपित कर ही दिये| ===== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ================================================= संसार में विष्णु से पहले प्रादुर्भाव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही) होने के नाते शिव का स्वाभाविक सम्मान है पर यह ही एकमात्र सत्य है कि सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है मतलब उनकी ही परमब्रह्म अवस्था से ही स्वयम शिव, विष्णु व ब्रह्मा तद्नुसार राम(/कृष्ण); व सांगत देवियों का आविर्भाव होता है; और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा व् जगत जननी जानकी/सीता तथा इनकी छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है| ================================================ धैर्य न खोइए ईश्वर (राम/कृष्ण) पर विश्वास कीजिये और यह सोचिये कि रामलला(/कृष्णलला) आप के साथ हैं क्योंकि बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिव की उपस्थिति के आपके राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने का रास्ता साफ नहीं हुआ है| तो यह समझिये की हो सकता है की इनकी उपस्थिति के प्रभाव में ही किसी संभावित महाप्रलय के बदले आपको केवल वैश्विक महामारी मात्र ही मिली हो और जिसे दूर होना ही है|====जब सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव से त्रिदेव (शिव, विष्णु, ब्रह्मा) और त्रिदेवी ( महा सरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी) दोनों पक्ष का आविर्भाव होता है (इस प्रकार पॉंच के पॉंचों मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा तथा महासरस्वती, महालक्ष्मी, महागौरी व् जगदम्बा/दुर्गा व् जानकी/सीता तथा इनकी छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है) तो फिर इस देवियों/प्रकृति का आधा अधिकार है न्याय(/दण्ड) की नैसर्गिक/प्राकृतिक प्रक्रिया में की नहीं?>>>>>>>>>>>तो यह दौर तो गुजर जायेगा और सृष्टि (/मानवता) का सतत संचलन सहस्राब्दियों तक रुकने वाला नहीं किन्तु स्थानीय, रास्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसी व्यवहारिक सत्य/ जगतसत्य को मानवता में स्थापित होने दिजियेगा जिससे पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम सुन्दरम) और पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते) में से किसी का भी न सीधे-सीधे अतिक्रमण किया गया हो या न सीधे-सीधे अतिक्रमण किया जाय|=======कोई होड़ नहीं और न किसी को नीचा दिखाना है पर आज भी मेरा प्रयास है की इस संसार के सभी जाति/धर्म/पंथ/मजहब के लोग कम से कम थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण बन लोजिये|====== राम वह है जो यथोचित रूप से शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे (तो पूर्णातिपूर्ण शिव को समाज सहन कर पायेगा क्या?) और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर दे और निर्मल बना दे| =============================================== तो फिर हम कोविड-19 (यह केवल दैवीय प्रकोप मात्र है प्रलय नहीं तो शिव को मत कोशिए) से बचने हेतु एक दूसरे से संपर्क में कम आने हेतु जहाँ तक संभव हो आवश्यक कार्य हेतु ही बाहर जाते हुए अपने घर में ही क्यों नही रह सकते?> > > > > जो स्वयं प्रलयंकर कहलाते हैं ऐसे शिव को अपने ही द्वारा भस्मासुर को दिए गए वरदान की रक्षा हेतु स्वयं भस्मासुर से ही बचने हेतु गुफा में शरण लेना पड़ता है (बाकी कि पार्वती जी के प्रति आशक्त हो शिव को समाप्त करने का असंभव प्रयत्न करने वाले भष्मासुर का काम तमाम विष्णु ने अपने मोहिनी स्वरुप से स्वयं किये ही), तो फिर हम कोविड-19(यह केवल दैवीय प्रकोप मात्र है प्रलय नहीं तो शिव को मत कोशिए) से बचने हेतु एक दूसरे से संपर्क में कम आने हेतु जहाँ तक संभव हो आवश्यक कार्य हेतु ही बाहर जाते हुए अपने घर में ही क्यों नही रह सकते? <<<<<>>>>>और तो और कछुआ/कच्छप भी सन्कट के दिनों में अपने कवच के अन्दर छुप जाता है अतएव कम से कम उससे भी हमें सीख लेनी चाहिए| ================================================= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018: हर किसी का कोई दूसरा विकल्प सम्भव नहीं होता है, मैने पूर्णातिपूर्ण सफलता पाने में 20 वर्ष से एक दिन भी विलम्ब नहीं किया आप लोग ही पीछे रह गये थे पर पद, प्रतिष्ठा व प्रतिष्ठान के मद में स्वयम द्वारा प्रायोजित हो या प्रायोजित षडयंत्र का शिकार हो व्यापक दृष्टिकोण से स्वयम में ही निराधार ही सही पर उपरी सतह पर कमी आप मुझमें ही खोजने लगे; स्वमेव आवेदित शिकायत के निराकरण कर्ता बन बैठे; और दिसम्बर, 2018 आते आते षडयंत्र के तहत मुझे आरोपित कर ही दिये| ===== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| ================================================================================================================== धैर्य न खोइए ईश्वर (राम/कृष्ण) पर विश्वास कीजिये और यह सोचिये कि रामलला(/कृष्णलला) आप के साथ हैं क्योंकि बिना रामलला(/कृष्णलला) और शिव की उपस्थिति के आपके राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने का रास्ता साफ नहीं हुआ है| तो यह समझिये की हो सकता है की इनकी उपस्थिति के प्रभाव में ही किसी संभावित महाप्रलय के बदले आपको केवल वैश्विक महामारी मात्र ही मिली हो और जिसे दूर होना ही है|====जब सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव से त्रिदेव (शिव, विष्णु, ब्रह्मा) और त्रिदेवी ( महा सरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी) दोनों पक्ष का आविर्भाव होता है (इस प्रकार पॉंच  के पॉंचों मूल पात्र राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा  तथा महासरस्वती, महालक्ष्मी, महागौरी व् जगदम्बा/दुर्गा व् जानकी/सीता तथा इनकी छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है) तो फिर इस देवियों/प्रकृति का आधा अधिकार है न्याय(/दण्ड) की नैसर्गिक/प्राकृतिक प्रक्रिया में की नहीं?>>>>>>>>>>>तो यह दौर तो गुजर जायेगा और सृष्टि (/मानवता) का सतत संचलन सहस्राब्दियों तक रुकने वाला नहीं किन्तु स्थानीय, रास्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसी व्यवहारिक सत्य/ जगतसत्य को मानवता में स्थापित होने दिजियेगा जिससे पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम सुन्दरम) और पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते) में से किसी का भी न सीधे-सीधे अतिक्रमण किया गया हो या न सीधे-सीधे अतिक्रमण किया जाय|=======कोई होड़ नहीं और न किसी को नीचा दिखाना है पर आज भी मेरा प्रयास है की इस संसार के सभी जाति/धर्म/पंथ/मजहब के लोग कम से कम थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण बन लोजिये|====== राम वह है जो यथोचित रूप से शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे (तो पूर्णातिपूर्ण शिव को समाज सहन कर पायेगा क्या?) और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर दे और निर्मल बना दे| ============================================================================================ संसार में विष्णु से पहले प्रादुर्भाव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से ही) होने के नाते शिव का स्वाभाविक सम्मान है पर यह ही एकमात्र सत्य है कि सनातन राम (/कृष्ण)/ सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/ सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष अवस्था केवल विष्णु को ही प्राप्त होती है मतलब उनकी ही परमब्रह्म अवस्था से ही स्वयम शिव, विष्णु व ब्रह्मा व सांगत देवियों का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा व् जगत जननी जानकी/सीता तथा इनकी छाया रुपी सृष्टि का आविर्भाव होता है| ===================================================================================== तो फिर हम कोविड-19 (यह केवल दैवीय प्रकोप मात्र है प्रलय नहीं तो शिव को मत कोशिए) से बचने हेतु एक दूसरे से संपर्क में कम आने हेतु जहाँ तक संभव हो आवश्यक कार्य हेतु ही बाहर जाते हुए अपने घर में ही क्यों नही रह सकते?> > > > > जो स्वयं प्रलयंकर कहलाते हैं ऐसे शिव को अपने ही द्वारा भस्मासुर को दिए गए वरदान की रक्षा हेतु स्वयं भस्मासुर से ही बचने हेतु गुफा में शरण लेना पड़ता है (बाकी कि पार्वती जी के प्रति आशक्त हो शिव को समाप्त करने का असंभव प्रयत्न करने वाले भष्मासुर का काम तमाम विष्णु ने अपने मोहिनी स्वरुप से स्वयं किये ही), तो फिर हम कोविड-19(यह केवल दैवीय प्रकोप मात्र है प्रलय नहीं तो शिव को मत कोशिए) से बचने हेतु एक दूसरे से संपर्क में कम आने हेतु जहाँ तक संभव हो आवश्यक कार्य हेतु ही बाहर जाते हुए अपने घर में ही क्यों नही रह सकते? <<<<<>>>>>और तो और कछुआ/कच्छप भी सन्कट के दिनों में अपने कवच के अन्दर छुप जाता है अतएव कम से कम उससे भी हमें सीख लेनी चाहिए| =============================================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (बिहारी=कृष्ण=मुरलीमनोहर) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) कहे जाते हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस प्रयागराज (काशी) में धारण करना पडेगा;-- व् ----प्रयागराज विश्वविद्यालय) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले संस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| =========================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|===========================================जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं >>>>>>तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है| आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह कार्य से विरत करवाकर|>>>>>><<<<<<<<< 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=================================जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी|====================================बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| =========================================================================================================================================================== पद, प्रतिष्ठा और प्रतिष्ठान के मद में मदमाते लोगों ने मेरा कार्यकाल 31 जुलाई, 2018 को ही समाप्त समझ लिया गया था जबकि वास्तविक सन्दर्भ में मेरा कार्यकाल कम से कम 10 नवम्बर, 2057 (/11 नवम्बर, 1975 से 10 नवम्बर, 2057) तक न्यूनतम है:>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति का दौर::=====धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ====== >>>>>और आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===========>>>>>>>>>>मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=================मै ही था/हूँ जिसने धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी परमब्रह्म स्वरूप की ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ======================================================================== सदाशिव/महाशिव अवस्था विष्णु को ही प्राप्त होती है और वह अवस्था है विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिनसे ही सांगत शक्तियों समेत स्वयं शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव होता है और यही है सदाशिव/महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था जिसे आप परमब्रह्म (एकल आधार रूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/ब्रह्म कहते है वही पुराण पुरुष/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) कहलाते हैं >>>>>विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ============================================================================================================================ 1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================== God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and it have no any fixed duration of time in a year.त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :-मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।=======आदिदेवी/आद्या/भगवतीदेवी/महादेवी:सरस्वती:-या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें| ======शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।========त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव):कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।========================================== जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| ================================================== सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल हैऔरसातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डलएक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है| =========================================== प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि--------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है....... 1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र), 2.गौतम गोत्र, 3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!, 4.अत्रि गोत्र, 5.भृगुगोत्र, 6.आंगिरस गोत्र, 7.कौशिक गोत्र, 8.शांडिल्य गोत्र, 9.व्यास गोत्र, 10.च्यवन गोत्र, 11.पुलह गोत्र, 12.आष्टिषेण गोत्र, 13.उत्पत्ति शाखा, 14.वात्स्यायन गोत्र, 15.बुधायन गोत्र, 16.माध्यन्दिनी गोत्र, 17.अज गोत्र, 18.वामदेव गोत्र, 19.शांकृत्य गोत्र, 20.आप्लवान गोत्र, 21.सौकालीन गोत्र, 22.सोपायन गोत्र, 23.गर्ग गोत्र, 24.सोपर्णि गोत्र, 25.कण्व गोत्र, 26.मैत्रेय गोत्र, 27.पराशर गोत्र, 28.उतथ्य गोत्र, 29.क्रतु गोत्र, 30.अधमर्षण गोत्र, 31.शाखा, 32.आष्टायन कौशिक गोत्र, 33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, 34.कौण्डिन्य गोत्र, 35.मित्रवरुण गोत्र, 36.कपिल गोत्र, 37.शक्ति गोत्र, 38.पौलस्त्य गोत्र, 39.दक्ष गोत्र, 40.सांख्यायन कौशिक गोत्र, 41.जमदग्नि गोत्र, 42.कृष्णात्रेय गोत्र, 43.भार्गव गोत्र, 44.हारीत गोत्र, या हारितस्य 45.धनञ्जय गोत्र, 46.जैमिनी गोत्र, 47.आश्वलायन गोत्र 48.पुलस्त्य गोत्र, 49.भारद्वाज गोत्र, 50.कुत्स गोत्र, 51.उद्दालक गोत्र, 52.पातंजलि गोत्र, 52.कौत्स गोत्र, 54.कर्दम गोत्र, 55.पाणिनि गोत्र, 56.वत्स गोत्र, 57.विश्वामित्र गोत्र, 58.अगस्त्य गोत्र, 59.कुश गोत्र, 60.जमदग्नि कौशिक गोत्र, 61.कुशिक गोत्र, 62.देवराज गोत्र, 63.धृत कौशिक गोत्र, 64.किंडव गोत्र, 65.कर्ण गोत्र, 66.जातुकर्ण गोत्र, 67.उपमन्यु गोत्र, 68.गोभिल गोत्र, 69. मुद्गल गोत्र, 70.सुनक गोत्र, 71.शाखाएं गोत्र, 72.कल्पिष गोत्र, 73.मनु गोत्र, 74.माण्डब्य गोत्र, 75.अम्बरीष गोत्र, 76.उपलभ्य गोत्र, 77.व्याघ्रपाद गोत्र, 78.जावाल गोत्र, 79.धौम्य गोत्र, 80.यागवल्क्य गोत्र, 81.और्व गोत्र, 82.दृढ़ गोत्र, 83.उद्वाह गोत्र, 84.रोहित गोत्र, 85.सुपर्ण गोत्र, 86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र 87.अनूप गोत्र, 88.मार्कण्डेय गोत्र, 89.अनावृक गोत्र, 90.आपस्तम्ब गोत्र, 91.उत्पत्ति शाखा गोत्र, 92.यास्क गोत्र, 93.वीतहब्य गोत्र, 94.वासुकि गोत्र, 95.दालभ्य गोत्र, 96.आयास्य गोत्र, 97.लौंगाक्षि गोत्र, 88.चित्र गोत्र, 99.आसुरि गोत् 100.शौनक गोत्र, 101.पंचशाखा गोत्र, 102.सावर्णि गोत्र, 103.कात्यायन गोत्र, 104.कंचन गोत्र, 105.अलम्पायन गोत्र, 106.अव्यय गोत्र, 107.विल्च गोत्र, 108.शांकल्य गोत्र, =========================================== 109. विष्णु गोत्र ======================== वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| =====वैश्विक मानवता रूपी दीपक <<<<<>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 कोपूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता<<<<<>>>>> के प्रारंभिक दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ===================================================================================== लोग समझते ही रह गए और विश्व विजय प्रयागराज (काशी) में ही 16-29 मई, 2006 और पुनः 25 मई, 2018/21 सितम्बर, 2017(24/30 नवम्बर, 2016) को विश्व के सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से हो गयी: 67 (पारिवारिक सदस्य)/11 (परिवार)::::राम(/शिव)/कृष्ण(/अर्जुन):::::29 (15-29) मई, 2006/ 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):--- बात व्यक्ति विशेष की ही नहीं है परोक्ष रूप से विश्वमानवता हित हेतु और प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत हित निमित्त अभीष्ट प्रयोजन में स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय मिलीभगत व् षडयंत्र के बीच तत्कालीन किसी सर्वोच्च शक्ति के भी छाया में किये जाने वाले अचूक अस्त्र के सम्मुख प्रयागराज/काशी (हमने यह नहीं कहा की बन्द बॉक्स रूप वाले प्रयागराज/काशी मात्र ही बल्कि वैश्विक रूप में व्याप्त सारभौमिक प्रयागराज/काशी) को पराजित हुआ कैसे स्वीकार किया जा सकता था?=========At Institution Level Only: 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोवर्धन/गिरिधर अस्टमी; धनिष्ठा नक्षत्र):-----------विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम::--जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य से पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम की स्थापना (6-29/5/2006) और फिर पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य/सत्यम शिवम् सुंदरम से पूर्णातिपूर्ण सत्य/परमसत्य/सत्यमेव जयते की स्थापना (25/05/2018) और वह भी जगत सत्य/ व्यावहारिक सत्य/सांसारिक सत्य का निर्वहन करते हुए>>>>>>>>16-29/5/2006 (was only a JRF in KBCAOS, having no any involvement on University level except own duty but now faculty member in one of the 67 permanent faculty positions and even today no any involvement on University level activity except own duty): 67 (11) permanent faculty positions sanctioned on 29/05/2006 1- Kedareshwar (K.) Banerjee Center of Atmospheric and Ocean Studies (KBCAOS:10/09/2000 to 25/05/2018 onward); 2- Centre of Food Technology; 3- Centre of Bio-Technology; 4- Centre of Bioinformatics; 5- Centre of Behavioural and Cognitive Sciences; 6- Centre of Environmental Science; 7- Centre of Material Science; 8- Department of Physical Education(Re-structure); 9- Centre of Globalization and Development Studies; 10- School of Modern Languages; and 11- Department of Sociology;======| There was no need to fight for seniority in any of these 67(/11) positions if I contributed for the same but to achieve my goal perfectly in all respect it was needed and I succeeded in it on 25-05-2018. (क्या इन्ही 67(/11) स्थाई पदों में से ही किसी एक पद पर आसीन होते हुए कभी भी अपनी वरिष्ठता की लड़ाई लड़नी पड़ती? तो फिर मै तो केदारेश्वर की सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से पूर्णातिपूर्ण स्थापना के प्रति दृढ़ संकल्प था तो फिर उस हेतु प्रयासरत रहा और 25-5-2018 को वह पूर्णातिपूर्ण सिद्ध/सफल हो गया यदि 29-5-2006 की सैद्धान्तिक सफलता को 29-10-2009 के बाद से भी किन्ही भी दृश्य व् अदृश्य कारणों से नजर अंदाज किया जा रहा था| लेकिन इन 12 वर्ष का भी कोई मूल्य होता है यह भी उन लोगों से पूछा जाय जो लोग ही धर्मराज के एक मात्र अवतार व समय को सर्वोच्च महत्ता प्रदान करने वाले है| जबकि वे अच्छे से इस हेतु मेरे विश्वव्यापक रूप से संकल्पित/ब्रह्मलीन/समाधिष्ठ/समर्पित होने से परिचित भी थे जिस हेतु मैंने अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, और अभीष्ट तप/योग/उद्यम सब किया था| मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)| ====================================================================================== वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता ( /समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| ===================================================== I feel that there is no any answer remains against any type of indirect question and thus I stop writing for a long time >> >>> गुरुदेव मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ============================ सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| ============================================= क्योंकि विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 कोपूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| ================================================= जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं| ========================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||| =========================================== तो फिर "समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| =========================================================================================================================================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>>गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| ==================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा|===================================बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>>गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| ===================================================================================================== जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ================================================================================= समभाव की परख के तहत जहाँ सान्केतिक ध्वज व प्रार्थना के साथ 5 जनवरी, 2014 दिन रविवार को म्योराबाद चर्च (एक समुदाय विशेष का क्षेत्र), प्रयागराज के सामने के मैदान में मात्र एक दिन सक्षम वरिष्ठ शीर्ष अधिकारी के साथ मात्र 4 लोगों द्वारा शाखा लगाई गई थी वहीं 5 फरवरी, 2017 दिन रविवार को सक्षम पदाधिकारी और कोई अन्य सदस्य न आने पर भी बेली फार्म (दूसरे समुदाय विशेष बाहुल्य अन्तर्गत क्षेत्र), शिक्षक परिसर, प्रयागराज विश्वविद्यालय, बेलीगाॅव, प्रयागराज के रीडर ब्लाक के सामने वाले पार्क में एक दिन मात्र की शाखा सान्केतिक ध्वज व प्रार्थना के साथ उन्ही चार में से ही एकल व्यक्ति द्वारा लगाई गयी थी और तत्कालीन सम्बन्धित पदाधिकारी को सूचित किया गया था| ============================================================================== वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| >>>>>>वैश्विक मानवता रूपी दीपक """""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता"""" के प्रारंभिक दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ====================================>>>>>>>>==================================== दिल्ली में यू जी सी में प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन देने के बाद रविवार, 12 मार्च, 2017 को दिल्ली से प्रयागराज लौटते समय प्रोजेक्ट के लिए बात एक महत्वपूर्ण कड़ी है इस सम्बंधित परिणाम की जो की इस संसार की किसी भी पद, प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठान और धन-वैभव से बढ़कर है=====>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| ==================================================================================== फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| =================================================================================================== अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है=====->>>>>प्रयागराज (/काशी) के लोगों में तात्कालिक रूप से आगामी भविष्य की पूर्ण आहट से वास्तविक रूप से अवगत न होने और दूरदृष्टि न होने के कारन तत सम्बंधित लोगों में आपसी मतभेद; तथा देविओं पर भौतिक रूप मात्र से ही अधिकार प्राप्त करने वाले दोनों राज्य और उनके प्रयागराज (/काशी) स्थित अभिकर्ता/एजेंट के षडयंत्र का ही परिणाम था कि 2004 में गुरुदेव की सत्ता जाने के बाद 2006 के अन्त तक एक ही झटके में बरगद की शान बढ़ाने हेतु किया गया प्रयोग/परियोजना (प्रोजेक्ट) बिना किसी परिणाम/परिणति के पँहुचे अपने अन्त को पहुँचने वाला था किन्तु आजतक मानवता के दो सशरीर परमब्रह्म (राम(/कृष्ण)) में से एक परमब्रह्म कृष्ण (अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश देते वक्त) और एक मात्र पूर्ण नर कहे जाने वाले अर्जुन का प्रभाव था की 29 मई, 2006 को बरगद की शान बढ़ाने हेतु किया गया प्रयोग/परियोजना (प्रोजेक्ट) अपने पूर्ण सिद्धि/सफलता (67/11) को प्राप्त हुआ था और 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया गया था कि प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में| इस प्रकार देविओं पर भौतिक रूप मात्र से ही अधिकार प्राप्त करने वाले दोनों राज्य और उनके प्रयागराज (/काशी) स्थित अभिकर्ता/एजेंट तभी से ही विफल हो चुके थे जो बाकी था वह मैं अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के बीच दक्षिण के किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु, के शताब्दी वर्ष 2007-2009 के दौरान मैं पूर्ण कर दिया था| तो फिर इसी बीच 10/11 सितम्बर, 2008 को कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र की पूर्ण स्थापना करते हुए विश्वमानवता के केंद्र को आंतरिक व् वाह्य दोनों रूप से उत्तर भारत की तरफ स्पष्ट रूप से परिवर्तित कर दिया जो कभी वाह्य/आभासी रूप से दक्षिण में दिखाई देता था (जबकि आतंरिक रूप से प्रयागराज (/काशी) सदैव से विश्वमानवता का केंद्र था और उसका श्रेय दक्षिण वाले दो राज्य बहुत दिनों से ले रहे थे)| और उसी सबका परिणाम था की 29 मई, 2006 के 12 वर्ष बाद ही सही आजतक मानवता के दो सशरीर परमब्रह्म (राम(/कृष्ण)) में से दूसरे परमब्रह्म राम के स्वरुप में 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से संस्थागत व मानवतागत समेत हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया गया| =========================================================================================================================== जिसपर कोई एक दो सामान्य देवी या देवता भरोषा करते हैं उनको कितना अभिमान हो जाता है पर ऐसे में मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान जिसपर तीनों मूल देवता/देवी (-सांगत देवियों/शक्तियों समेत गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा) व् उनके अभिकर्ता; परमगुरु परमपिता परमेश्वर (श्रीधर:विष्णु) व् उनके अभिकर्ता और परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचंद:सोमेश्वर:शिव) व् उनके अभिकर्ता-) और इसप्रकार सम्पूर्ण मानवता ने विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में (जो विश्व में सबसे अधिक मानवीय दबाव का क्षेत्र हैं) में भरोषा किया था और वह उसपर कायम रहा तथा अप्रत्याशित सफलता दिलाया तथा आज भी ऐसे लोग उसपर भरोषा कर रहे हों तथा वह आज भी आम मानवीय जीवन को भी तल्लीन हो जी रहा है तो इसके भी ऐसे अनोखे धैर्य, साहस और शौर्य का भी कुछ मोल तो होगा न| =========================================================================================================================================================== [[काशी से प्रयागराज]] 5Sep2000/12Aug2001[रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]// 3-4Sep2001/11Sept 2001[मंगलवार, प्रयागराज]// 7Feb2003 [शुक्रवार]//29May2006//11(/10) Mar2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]// 11-18Spt2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]/10-11Sep2008[प्रयागराज]/बैंगलोर [[27Oct2007-28Oct2009]] बैंगलोर/ [[प्रयागराज]] 29Oct2009/ 30Sep2010[वृहस्पतिवार]/ 28Aug2013[बुधवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]/24-30Nov2016/ 21Sept2017 [नवरात्रि]/ 25May2018 (31Jul2018)| [[प्रयागराज]]==============================================================================================बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|-- ======================================================================================================== सच्चे सन्दर्भ में न कभी गौरी का त्याग हुआ, न कभी लक्ष्मी का त्याग हुआ और न कभी सरस्वती का त्याग हुआ और इस प्रकार न कभी जगदम्बा का त्याग हुआ और न कभी जानकी का त्याग हुआ और न कभी राधा का त्याग हुआ; इसका कारन यह है कि ये अनन्य और अटूट रिश्ते हैं जो हमेशा साथ में दृष्टिगत न होने पर भी बने रहते हैं और इनका भौतिक त्याग आप को कभी नजर आया भी तो उसका एकमात्र कारण अति व्यापक सामाजिक दोष रहा है तो फिर सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग तथा कलयुग तक में वह कोई भी युग ले लीजिये ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा राम(/कृष्ण) द्वारा उस सामाजिक दोष निवारण में भौतिक रूप में ये देवियाँ आपको परितक्त्या दिखाई देती रही हैं| ============================================================== हर वर्ष रावण (विष्णु लोक में विष्णु का द्वारपाल/सेवक) का पुतला जलाते हो तो तुम्हारे बीच में से राम कौन है? <<===== =>>> तो उसके प्रतिउत्तर में मेरा आज यह कथन है कि वर्तमान विश्व समाज में केवल सनातन राम(/कृष्ण) ही नहीं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत शक्तियों समेत इस वैश्विक समाज में मौजूद हैं| 10/11 सितम्बर, 2008 से आप कह सकते हैं की विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन हेतु प्रयागराज(/काशी) में स्थापित विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज से अपने प्रतिरूप के माध्यम से और शिव काशी से अपने प्रतिरूप के माध्यम से (10/11 सितम्बर, 2008 से उनके और उनके परिवार/सांगत शक्तियों का वास्तविक स्वरुप तो अब सहस्राब्दियों तक प्रयागराज (/काशी) में ही स्थापित रहेगा) वैश्विक जगत के पोषण-सम्पोषण, चलन-सञ्चालन, व वर्धन-संवर्धन व् रक्षण-संरक्षण कर रहे हैं ===तथा===== 25 मई, 2018(31 जुलाई, 2018) से आप कह सकते हैं की प्रयागराज(/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही अवस्थिति हो राम(/कृष्ण) अपने प्रतिरूप के माध्यम से विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन का कार्यभार संभाल लिए हैं| ======================================================================== शिव भक्तों: सत्यम शिवम् सुंदरम:===>>>>>सत्यम शिवम् सुंदरम में से सुंदरम शब्द सबसे दक्षिण के क्रमसः तीन राज्यों से कम से कम गायब ही हो चुका हैं (जौनपुर/जमदग्निपुर वालों केवल पिकनिक के होटल तक ही सीमित न रहिए तो आप को विदित हो कि इनमें से एक जिसे जमदग्नि पुत्र परशुराम (शिव भक्त और शिव शिष्य) ने ही बसाया है, जो कि सनातनी अति ही सुंदरम था लेकिन शेष दो राज्य के प्रभाव में आकर वह सुंदरम नहीं रह गया) और अब ऐसा ही रहा तो आगे उत्तर (जो 2008 से ही विश्वमानवता का केंद्र बन चुका है) से भी से सुंदरम शब्द जल्द ही गायब होगा तो फिर "बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ" में बेटियों को अब पढ़ाना नहीं पडेगा खुद पढ़ लेंगी लेकिन बेटी बचाओ पर उत्तर वाले ज्यादा ध्यान दें अन्यथा यहां भी सत्यम शिवम सुंदरम में से सुंदरम शब्द गायब हो जाएगा|- =================================================================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>मेरी कुण्डली निकलने की कोई जरूरत नहीं मेरा ऑरकुट पेज और ब्लॉग VIVEKANAND AND MODERN TRADITION भारतीय विज्ञान संस्थान में (October, 2007 से October, 2009) अधिसंख्य लोगों द्वारा पढ़ा जाता था वहाँ मैंने लिखा था मेरे ननिहाल और गाँव साथ साथ हर विद्यामंदिर में भी मेरे साथ पढ़ने वाली बहनें मुझसे प्रेम करती थीं लेकिन किसी के साथ मेरा किसी भी प्रकार का अनैतिक व् अवैध सम्बन्ध नहीं था|==>>>>>लेकिन जिस किसी का भी जन्म-जन्मांतर का कर्ज था वह तो उतारना ही था वह 31 जुलाई, 2018 (25 ,मई, 2018) तक उतार दिया|======================हर वर्ष रावण (विष्णु लोक में विष्णु का द्वारपाल/सेवक) का पुतला जलाते हो तो तुम्हारे बीच में से राम कौन है? <<===== =>>> तो उसके प्रतिउत्तर में मेरा आज यह कथन है कि वर्तमान विश्व समाज में केवल सनातन राम(/कृष्ण) ही नहीं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत शक्तियों समेत इस वैश्विक समाज में मौजूद हैं| 10/11 सितम्बर, 2008 से आप कह सकते हैं की विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन हेतु प्रयागराज(/काशी) में स्थापित विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज से अपने प्रतिरूप के माध्यम से और शिव काशी से अपने प्रतिरूप के माध्यम से (10/11 सितम्बर, 2008 से उनके और उनके परिवार/सांगत शक्तियों का वास्तविक स्वरुप तो अब सहस्राब्दियों तक प्रयागराज (/काशी) में ही स्थापित रहेगा) वैश्विक जगत के पोषण-सम्पोषण, व वर्धन-संवर्धन, चालन-सञ्चालन व् रक्षण-संरक्षण कर रहे हैं ===तथा===== 25 मई, 2018(31 जुलाई, 2018) से आप कह सकते हैं की प्रयागराज(/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही अवस्थिति हो राम(/कृष्ण) अपने प्रतिरूप के माध्यम से विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन का कार्यभार संभाल लिए हैं| ====================================मैं भगवत समूह और हिंदी समिति का सक्रीय सदस्य अवश्य था और सार्वजनिक स्थान पर सामूहिक वाद-विवाद में भाग भी लेता था पर शायद इस समय मेरे साथ कोई काफिला/व्यक्ति समूह नहीं था=====>>>>> नवम्बर, 2008 (दक्षिण के किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु, के शताब्दी वर्ष 2007-2009 के दौरान प्रवास के दौर में) में दो दिन समस्त विभाग/केंद्र, समस्त अतिथिगृह, समस्त पुरुष छात्रावास व् स्वतंत्र वैज्ञानिक/अध्ययन केंद्र के अपने तरीके से नए सहस्राब्दी हेतु पुनर्प्राण प्रतिष्ठा के दौरान स्वतंत्र भ्रमण में|=========================================शायद इस समय मेरे साथ कोई काफिला/व्यक्ति समूह नहीं था फरवरी, 2009 (दक्षिण के किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु, के शताब्दी वर्ष 2007-2009 के दौरान प्रवास के दौर में) में दो दिन स्वतंत्र भ्रमण के दौरान: जयप्रकाश नारायण पार्क मातिकरे (टाँक बन्द रोड, बृन्दावन नगर, बंडप्पा गार्डन, मतिकरे, बेंगलुरु) से प्रारम्भकार पञ्चमुखी गायत्री मन्दिर, यशवंतपुर और फिर पञ्चमुखी गायत्री मन्दिर, यशवंतपुर से श्री दक्षिणमुखी नन्दी तीर्थ कल्याणी क्षेत्र (शिव मन्दिर), मल्लेश्वरम और फिर श्री दक्षिणमुखी नन्दी तीर्थ कल्याणी क्षेत्र (शिव मन्दिर), मल्लेश्वरम से पञ्चमुखी गायत्री मन्दिर के यात्रा बीच के गली कूचे के बीच मन्दिर (अधिकतर), कुछ चर्च व् कुछ मस्जिद और मध्यम से उच्च जीवन स्तर को जीने वाले लोगों के बीच से गुजरते हुए मुख्य धारा से अलग बगल में ही रहने वाली मलिन बस्ती के जीवन का आँकलन दो दिनों में किया और इसी मलिन बस्ती में से यशवंतपुर रेलवे स्टेशन के बगल की एक मलिन बस्ती के साफ-सफाई युक्त एक घर जिसमे नेहरू, गाँधी, इंदिरा और अम्बेडकर का चित्र लगा था तथा जिसमे बैठी तीन चार महिलाओं के बीच एक सुन्दर नवजात शिशु को उठाकर अपनी गोंद में लेकर 10 पंद्रह मिनट गोंद में लेकर दुलारा भी था और फिर आगे बढ़ गया था|- ========================================================================================================================================================== कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| 《《《《《 《《《《《《《विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>>गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| =================================================== [[काशी से प्रयागराज]] 5Sep2000/12Aug2001[रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]// 3-4Sep2001/11Sept 2001[मंगलवार, प्रयागराज]// 7Feb2003 [शुक्रवार]//29May2006//11(/10) Mar2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]// 11-18Spt2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]/10-11Sep2008[प्रयागराज]/बैंगलोर [[27Oct2007-28Oct2009]] बैंगलोर/ [[प्रयागराज]] 29Oct2009/ 30Sep2010[वृहस्पतिवार]/ 28Aug2013[बुधवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]/24-30Nov2016/ 21Sept2017 [नवरात्रि]/ 25May2018 (31Jul2018)| [[प्रयागराज]] =================================================== अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है=====->>>>>प्रयागराज (/काशी) के लोगों में तात्कालिक रूप से आगामी भविष्य की पूर्ण आहट से वास्तविक रूप से अवगत न होने और दूरदृष्टि न होने के कारन तत सम्बंधित लोगों में आपसी मतभेद; तथा देविओं पर भौतिक रूप मात्र से ही अधिकार प्राप्त करने वाले दोनों राज्य और उनके प्रयागराज (/काशी) स्थित अभिकर्ता/एजेंट के षडयंत्र का ही परिणाम था कि 2004 में गुरुदेव की सत्ता जाने के बाद 2006 के अन्त तक एक ही झटके में बरगद की शान बढ़ाने हेतु किया गया प्रयोग/परियोजना (प्रोजेक्ट) बिना किसी परिणाम/परिणति के पँहुचे अपने अन्त को पहुँचने वाला था किन्तु आजतक मानवता के दो सशरीर परमब्रह्म (राम(/कृष्ण)) में से एक परमब्रह्म कृष्ण (अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश देते वक्त) और एक मात्र पूर्ण नर कहे जाने वाले अर्जुन का प्रभाव था की 29 मई, 2006 को बरगद की शान बढ़ाने हेतु किया गया प्रयोग/परियोजना (प्रोजेक्ट) अपने पूर्ण सिद्धि/सफलता (67/11) को प्राप्त हुआ था और 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया गया था कि प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में| इस प्रकार देविओं पर भौतिक रूप मात्र से ही अधिकार प्राप्त करने वाले दोनों राज्य और उनके प्रयागराज (/काशी) स्थित अभिकर्ता/एजेंट तभी से ही विफल हो चुके थे जो बाकी था वह मैं अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के बीच दक्षिण के किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु, के शताब्दी वर्ष 2007-2009 के दौरान मैं पूर्ण कर दिया था| तो फिर इसी बीच 10/11 सितम्बर, 2008 को कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र की पूर्ण स्थापना करते हुए विश्वमानवता के केंद्र को आंतरिक व् वाह्य दोनों रूप से उत्तर भारत की तरफ स्पष्ट रूप से परिवर्तित कर दिया जो कभी वाह्य/आभासी रूप से दक्षिण में दिखाई देता था (जबकि आतंरिक रूप से प्रयागराज (/काशी) सदैव से विश्वमानवता का केंद्र था और उसका श्रेय दक्षिण वाले दो राज्य बहुत दिनों से ले रहे थे)| और उसी सबका परिणाम था की 29 मई, 2006 के 12 वर्ष बाद ही सही आजतक मानवता के दो सशरीर परमब्रह्म (राम(/कृष्ण)) में से दूसरे परमब्रह्म राम के स्वरुप में 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से संस्थागत व मानवतागत समेत हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया गया|- ========================================================== जिसपर कोई एक दो सामान्य देवी या देवता भरोषा करते हैं उनको कितना अभिमान हो जाता है पर ऐसे में मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान जिसपर तीनों मूल देवता/देवी (-सांगत देवियों/शक्तियों समेत गुरुदेव (जोशी:ब्रह्मा) व् उनके अभिकर्ता; परमगुरु परमपिता परमेश्वर (श्रीधर:विष्णु) व् उनके अभिकर्ता और परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचंद:सोमेश्वर:शिव) व् उनके अभिकर्ता-) और इसप्रकार सम्पूर्ण मानवता ने विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में (जो विश्व में सबसे अधिक मानवीय दबाव का क्षेत्र हैं) में भरोषा किया था और वह उसपर कायम रहा तथा अप्रत्याशित सफलता दिलाया तथा आज भी ऐसे लोग उसपर भरोषा कर रहे हों तथा वह आज भी आम मानवीय जीवन को भी तल्लीन हो जी रहा है तो इसके भी ऐसे अनोखे धैर्य, साहस और शौर्य का भी कुछ मोल तो होगा न| ============================================================= अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है क्योंकि 2008 के उत्तरार्द्ध में कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर तत्कालीन रूप से मेरे अन्दर समाहित परमब्रह्म की विश्वमानवता-उर्जा से 10/11 सितम्बर, 2008 को कम से कम एक सहस्राब्दि के लिए मेरे द्वारा विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज और शिव काशी में अपने सांगत शक्तियों/परिवार समेत पूर्णप्रतिस्थापित कर दिए गए हैं और अपने प्रतिरूपों के माध्यम से/के द्वारा विश्वमानवता के पोषण-सम्पोषण, चालन-संचालन, व वर्धन-संवर्धन तथा रक्षण-संरक्षण का दायित्व निभा रहें है तो इसका आशय है कि अब गुरूदेव (जोशी:ब्रह्मा), परमगूरू परमपिता परमेश्वर (श्रीधर:विष्णु) और परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचन्द/सोमेश्वर:शिव) की तरह कोई एक व्यक्ति निकाय ही 10/11 सितम्बर, 2008 के बाद से विष्णु, ब्रह्मा और शिव का दायित्व न निभा रहा है और न निभाएगा और ऐसे में ऐसी ईश्वरीय शक्ति अदृश्य रूप से गुण-दोष अनुसार स्वाभाविक रूप-रंग के अपने प्रतिरूपों में स्वतः स्थानांतरित होती रहेगी इसी में विश्वमानवता का हित निहित रहेगा| ============================================================ READ CAREFULLY The Serial No. 5 and 4 specially==>>किसी भी त्रिदेव व् त्रिदेवी अथवा अन्य देवी व् देवता का स्थान सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराणपुरुष/महाशिव/सदाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/सनातन राम (/कृष्ण) के बाद ही आता है या कहें की त्रिदेव व् त्रिदेवी समेत अन्य सभी देवी व् देवताओं और इस प्रकार सृष्टि और समष्टि का प्रादुर्भाव इन्हीं सनातन राम(/कृष्ण) से होता है:-------Serial No. 5---------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|-------- AND the Serial No. 4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|------- ==================================================================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ====================================================================================== किसी भी त्रिदेव व् त्रिदेवी अथवा अन्य देवी व् देवता का स्थान सनातन आदिदेव/सनातन आद्या/पुराणपुरुष/महाशिव/सदाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था: एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा+विष्णु+महेश)/सनातन राम (/कृष्ण) के बाद ही आता है या कहें की त्रिदेव व् त्रिदेवी समेत अन्य सभी देवी व् देवताओं और इस प्रकार सृष्टि और समष्टि का प्रादुर्भाव इन्हीं सनातन राम(/कृष्ण) से होता है:-तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी, यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिस्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ================================================================================================================================================================ अब तक इतना इशारा करने पर भी यह समझ नहीँ आ रहा है कि विश्वमानवता का केन्द्र सितम्बर, 2008 से ही उत्तर भारत ही है क्योंकि 2008 के उत्तरार्द्ध में कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र/तथाकथित अशोकचक्र के विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर तत्कालीन रूप से मेरे अन्दर समाहित परमब्रह्म की विश्वमानवता-उर्जा से 10/11 सितम्बर, 2008 को कम से कम एक सहस्राब्दि के लिए मेरे द्वारा विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज और शिव काशी में अपने सांगत शक्तियों/परिवार समेत पूर्णप्रतिस्थापित कर दिए गए हैं और अपने प्रतिरूपों के माध्यम से/के द्वारा विश्वमानवता के पोषण-सम्पोषण, चालन-संचालन, वर्धन-संवर्धन तथा रक्षण-संरक्षण का दायित्व निभा रहें है तो इसका आशय है कि अब गुरूदेव (जोशी:ब्रह्मा), परमगूरू परमपिता परमेश्वर (श्रीधर:विष्णु) और परमाचार्य परमपिता परमेश्वर (प्रेमचन्द/सोमेश्वर:शिव) की तरह कोई एक व्यक्ति निकाय ही 10/11 सितम्बर, 2008 के बाद से विष्णु, ब्रह्मा और शिव का दायित्व न निभा रहा है और न निभाएगा और ऐसे में ऐसी ईश्वरीय शक्ति अदृश्य रूप से गुण-दोष अनुसार स्वाभाविक रूप-रंग के अपने प्रतिरूपों में स्वतः स्थानांतरित होती रहेगी इसी में विश्वमानवता का हित निहित रहेगा| इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है|============================>>>>>>यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोकचक्र की तीलियों के बराबर)/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===========>>>>>>>>>>मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ======================================================================== 28 अक्टूबर, 2009 को भारतीय विज्ञान संस्थान से सदा के लिए यहां आते समय मै अपने उम्र के बराबर से लेकर 10 वर्ष तक छोटी तथा तथाकथित रूप से दलित, ईसाई/दीनदयाल, मुस्लिम/मुसल्लम ईमान व् ब्राह्मण (त्याग), क्षत्रिय (बलिदान), व् वैश्य (तप/योग/उद्यम) समेत अन्य सभी जाति/ धर्म (सम्मिश्रित गुण धर्म) की बहनों (जिसमें दक्षिण की ही ज्यादा थीं) जिनको हर तरह के रूप में आचरणरत मैंने देखा था ऐसे में भी चरण स्पर्श करते हुए आशीर्वाद लेने के बाद ही प्रयागराज विश्वविद्यालय में सेवारत हुआ था|===तो आप को जाति और धर्म केवल अपने लाभ के लिए चाहिए तो मैं भी कहूंगा की जाति/धर्म होना चाहिए और जब आपको हानि होगी और कर्तव्य से मुँह मोड़ना होता और आप कहेंगे की जाति धर्म नहीं होगा तो मै भी कहूंगा की जाति/धर्म नहीं होगा तो अगर आप इस समाज में साबित रह लेंगे तो मैं भी रह लूंगा लेकिन एक व्यवस्थागत जीवन जीने के लिए जो अपने अधिकार का त्याग कर और साथ ही कर्तव्य कर अधिकार पा रहे है और केवल लाभ वाली संस्कृति जिनकी नहीं है उनको भी अपनी संस्कृति अनुरूप जीने का अधिकार कैसे मिलेगा यक्ष प्रश्न यह है<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<====>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>आप असीमित रूप से दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि (ईसाइयत) तब तक ही हो सकते हैं जब तक आप ईश्वरीय स्वरुप में होंगे लेकिन एक आम मानवीय जीवन जिसे व्यावहारिक जीवन कहते हैं तो उसमे आप के दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि होने की एक सीमा अवश्य होगी और उसी सीमा तक आप दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि बन सकते हैं या अप्रत्यक्ष किसी दूसरे से लूटकर और उसका अधिकार मारकर आप ऐसा बन सकते हैं जो की नकारात्मक जीवन शैली की प्रथम की सीढ़ी है --====>>>>>>उसी तरह से व्यावहारिक जीवन में मुसल्लम ईमान/पूर्ण सत्यवादी/पूर्ण ईमानदार (इस्मालियत/मुसलमान); पूर्ण त्याग (ब्राह्मण), पूर्ण बलिदान (क्षत्रिय) और पूर्ण तप/योग/उद्यम (वैश्य) की सीमा होती है तो किसी को भी अपमानित नहीं करना चाहिए एक साम्य जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए|====>>>>>>.मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| =========================================== राम वह है जो यथोचित रूप से शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे (तो पूर्णातिपूर्ण शिव को समाज सहन कर पायेगा क्या?) और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर दे तो ऐसी ही अवस्था का निर्वहन करते हुए 29 मई, 2006 के बाद से ही अपने सामाजिक/आर्थिक व् मानसिक तथा प्रोफेशनल/पेशागत हानि को सहते हुए और अपने ही रिस्क पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी लेखनी के माध्यम से प्रयासरत रहा हूँ कि >>>>>>थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण इस संसार में सब लोग बन लीजिये (यही मेरा प्रयास था और है) जिससे की किसी एक को ही मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सुचारु रूप से चालन-संचालन में पूर्णातिपूर्ण रूप से सनातन राम(/कृष्ण)/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण ) अवस्था में <<<<>>>"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|" <<<<>>>> के दौर की तरह इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पुनः किसी को भी पूर्णातिपूर्ण सनातन राम(/कृष्ण)/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति )/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव अवस्था में पुनः सहस्राब्दियों तक न आना पड़े| =========================================== हर वर्ष रावण (विष्णु लोक में विष्णु का द्वारपाल/सेवक) का पुतला जलाते हो तो तुम्हारे बीच में से राम कौन है? <<===== =>>> तो उसके प्रतिउत्तर में मेरा आज यह कथन है कि वर्तमान विश्व समाज में केवल सनातन राम(/कृष्ण) ही नहीं राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत शक्तियों समेत इस वैश्विक समाज में मौजूद हैं| 10/11 सितम्बर, 2008 से आप कह सकते हैं की विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन हेतु प्रयागराज(/काशी) में स्थापित विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज से अपने प्रतिरूप के माध्यम से और शिव काशी से अपने प्रतिरूप के माध्यम से (10/11 सितम्बर, 2008 से उनके और उनके परिवार/सांगत शक्तियों का वास्तविक स्वरुप तो अब सहस्राब्दियों तक प्रयागराज (/काशी) में ही स्थापित रहेगा) वैश्विक जगत के पोषण-सम्पोषण, चालन-सञ्चालन, वर्धन-संवर्धन व् रक्षण-संरक्षण कर रहे हैं ===तथा===== 25 मई, 2018(31 जुलाई, 2018) से आप कह सकते हैं की प्रयागराज(/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में ही अवस्थिति हो राम(/कृष्ण) अपने प्रतिरूप के माध्यम से विश्वमानवता के सुचारुरूप से सञ्चालन का कार्यभार संभाल लिए हैं| ==================================== 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====>>>> अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>> मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था: >>>>>>>>>>>>>> तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|>>>>>>>>>>>>>>>> मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|<<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ==================================== राम वह है जो यथोचित रूप से शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे (तो पूर्णातिपूर्ण शिव को समाज सहन कर पायेगा क्या?) और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर दे तो ऐसी ही अवस्था का निर्वहन करते हुए 29 मई, 2006 के बाद से ही अपने सामाजिक/आर्थिक व् मानसिक तथा प्रोफेशनल/पेशागत हानि को सहते हुए और अपने ही रिस्क पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी लेखनी के माध्यम से प्रयासरत रहा हूँ कि >>>>>>थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण इस संसार में सब लोग बन लीजिये (यही मेरा प्रयास था और है) जिससे की किसी एक को ही मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सुचारु रूप से चालन-संचालन में पूर्णातिपूर्ण रूप से सनातन राम(/कृष्ण)/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण ) अवस्था में <<<<>>>"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|" <<<<>>>> के दौर की तरह इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पुनः किसी को भी पूर्णातिपूर्ण सनातन राम(/कृष्ण)/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति )/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव अवस्था में पुनः सहस्राब्दियों तक न आना पड़े| ================================================================ इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है|===>>>>>>यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=========== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| ==================================================================================== विश्व मानवता को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) समेत सम्पूर्ण विश्व में पूर्णातिपूर्ण इस्लाम (पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/ दीनानाथ/करूणानिधि/जगततारन) का साम्य होना अत्यंत ही आवश्यक है न कि सदा किसी एक का पक्षधर रहा जाय>>>>> >>>>>पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/ योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण ईमानदार /मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल /दीनानाथ/ करूणानिधि/जगततारन) तो फिर इससे परे मानवता के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कोई और उपयुक्त गुण शेष नहीं है| >>>>> >>>>> विश्व मानवता को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) समेत सम्पूर्ण विश्व में पूर्णातिपूर्ण इस्लाम (पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/ दीनानाथ/करूणानिधि/जगततारन) का साम्य होना अत्यंत ही आवश्यक है न कि सदा किसी एक का पक्षधर रहा जाय ==================================================================================================================================== अंत में आप सब के लिए एक अनोखा इतिहास मेरे ननिहाल के गाँव (बिशुनपुर -223103) व् पैतृक गाँव (रामापुर-223225) के इतिहास की क्या सांसारिक चमत्कार/रोचकता है (एक अद्वितीय कश्यप-गौतम के चक्र के रूप में) जो की एक मिशाल है सनातन हिन्दू समाज और वैश्विक समाज के लिए :>>>>>एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान) ने ननिहाल, बिशुनपुर-223103/जौनपुर/जमदग्निपुर (तीन सौ बीघा:300 बीघा क्षेत्रफल) को एक गोरखपुर/गोरक्षपुरगत व्याशी-गौतम गोत्रीय मिश्र ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) बाबा (नेवाजी) को दान में दिया था और एक गौतम गोत्रीय इस्लमानुयाई (मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान) ने पैतृक गाँव, रामापुर-223225/आज़मगढ़/सनातन आर्य क्षेत्र/आर्यमगढ़ (पांच सौ बीघा:500 बीघा क्षेत्रफल) समेत अन्य पाँच (5) गांव (ओरील, गुमकोठी, बाग़ बहार, लग्गूपुर, व् औराडार) गाँव एक बस्ती-जनपदगत एक त्रिफला-कश्यप गोत्रीय पाण्डेय ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) बाबा (सारंगधर) को दान में दिया था| ========================================== विश्व मानवता को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) समेत सम्पूर्ण विश्व में पूर्णातिपूर्ण इस्लाम (पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/ दीनानाथ/करूणानिधि/जगततारन) का साम्य होना अत्यंत ही आवश्यक है न कि सदा किसी एक का पक्षधर रहा जाय|>>>>> >>>>>पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग), पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/ योग/उद्यम), पूर्णातिपूर्ण इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण ईमानदार /मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल /दीनानाथ/ करूणानिधि/जगततारन) तो फिर इससे परे मानवता के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कोई और उपयुक्त गुण शेष नहीं है| >>>>> >>>>> विश्व मानवता को सुचारु रूप से संचालित करने हेतु मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) समेत सम्पूर्ण विश्व में पूर्णातिपूर्ण इस्लाम (पूर्णातिपूर्ण सत्य/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान) और पूर्णातिपूर्ण ईसाइयत (पूर्णातिपूर्ण दीनदयाल/ दीनानाथ/करूणानिधि/जगततारन) का साम्य होना अत्यंत ही आवश्यक है न कि सदा किसी एक का पक्षधर रहा जाय|=========================================बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ===========================================बिशुनपुर-रामापुर एकल युग्म तदनुसार रामानन्द-सारंगधर एकल युग्म>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती--- 《《 《 《《《《 विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सनातन राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)|) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM, Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| टिप्पणी: 1998 (25 मई, 1998/12 मई, 1997)-2006/2007/2008: 2008-2018 (25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018): सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|==========================================NOTE:--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| ======================================================================================================= [[काशी से प्रयागराज]] 5Sep2000/12Aug2001[रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]// 3-4Sep2001/11Sept 2001[मंगलवार, प्रयागराज]// 7Feb2003 [शुक्रवार]//29May2006//11(/10) Mar2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]// 11-18Spt2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]/10-11Sep2008[प्रयागराज]/बैंगलोर [[27Oct2007-28Oct2009]] बैंगलोर/ [[प्रयागराज]] 29Oct2009/ 30Sep2010[वृहस्पतिवार]/ 28Aug2013[बुधवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]/24-30Nov2016/ 21Sept2017 [नवरात्रि]/ 25May2018 (31Jul2018)| ============================================================================================== मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: >>>>>>अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ| >>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|10/11 सितम्बर, 2008 के बाद से शिव अपने पुत्रों समेत काशी और विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज में ही स्थापित है और वहीं रहेंगे और प्रयागराज (/काशी) की सीमा से पार उनकी आभा मात्र ही सर्वत्र जाएगी| ======================================================================================================================================== ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम|》》》25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| 《《《《《 《《《《《《《विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सनातन राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| ======================================================================= 25 मई, 1998 (/12 मई, 1997) से लेकर 11 सितम्बर, 2001 के दौरान और आज की स्थिति के बारे में विचार कीजिये की वैश्विक परिवर्तन के साथ ही साथ विश्व एक गाँव व्यवस्था लागू होने पर भी स्थिति मानवता के अनुकूल कुछ हुई है की नहीं और सोचिए की मुझ (गौतम/व्याशी-गौतम से त्रिफला-कश्यप) को यहॉँ इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) में किसने भेजा था और किसने किस लिए रोका था तो फिर गुरुदेव (अंगारिषा/भारद्वाज)/ब्रह्मा के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से संस्थागत और अप्रत्यक्ष रूप से मानवतागत आह्वानित कार्य का प्रयोजन था तो फिर11 सितम्बर, 2001 को इस हेतु तत्कालीन रूप से परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (/विष्णु)(कश्यप से गौतम/व्याशी-गौतम) की सहमति से स्वयं तत्कालीन रूप से परमाचार्य परमपिता परमेश्वर, प्रेमचन्द(सोमेश्वर/शिव)/त्रिफला-कश्यप ने भेजा था मतलब पूर्ण समर्पण/संकल्प/समाधिष्ठ अवस्था मेरी थी प्रयोजन में और 11 सितम्बर, 2001 के गुजर जाने के बाद 7 फरवरी, 2003 के आगे के लिए रोका स्वयं श्रीधर (/विष्णु) ने था मतलब पूर्णातिपूर्ण समर्पण/संकल्प/समाधिष्ठ अवस्था मेरी थी| जिसमें 29 मई, 2006 को संस्थागत प्रयोजन में पूर्णातिपूर्ण सफलता मिली और 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के हर यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से संस्थागत प्रयोजन में पूर्णातिपूर्ण सफलता मिली| श्रीधर (/विष्णु)(कश्यप से गौतम/व्याशी-गौतम) के निर्देश पर ही 7 फरवरी, 2003 के बाद ही वैदकी विभाग के हवाले गया था कारन की वैसी अवस्था में मुझे लोग इस प्रयागराज में सहन नहीं कर सकते थे तो फिर श्रीधर(/विष्णु) का ही प्रभाव था कि सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) की अवस्था मेरी ही रही मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में और 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक पूर्ण वैश्विक परिवर्तन हो जाने के परिप्रेक्ष में भी उचित में ही सही आज भी सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था मेरी ही है| और इस प्रकार मानवता को जितना भी लाभ हुआ है तब की स्थिति से आज सम्पूर्ण विश्व एक गाँव अवस्था में आ जाने पर भी तो वह स्वयं सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) अवस्था का ही प्रभाव है|- =============================================================================================================================== [[काशी से प्रयागराज]] 5Sep2000/12Aug2001[रविवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]// 3-4Sep2001/11Sept 2001[मंगलवार, प्रयागराज]// 7Feb2003 [शुक्रवार]//29May2006//11(/10) Mar2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]// 11-18Spt2007[[मंगलवार, प्रयागराज]]/10-11Sep2008[प्रयागराज]/बैंगलोर [[27Oct2007-28Oct2009]] बैंगलोर/ [[प्रयागराज]] 29Oct2009/ 30Sep2010[वृहस्पतिवार]/ 28Aug2013[बुधवार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]/24-30Nov2016/ 21Sept2017 [नवरात्रि]/ 25May2018 (31Jul2018)| =========================================================================================================================================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| =================================================================================================== 11 सितम्बर, 2001:अपनी तीन तीन पीढ़ी की उर्जा लिये हुए एक 25 वर्षीय आजीवन ब्रह्मचारी एकल संतति ब्राह्मण कुमार (त्रिफला(/त्रिदेव/त्रिदेवी/त्रिपत्र/विल्वपत्र/बेलपत्र)- कश्यप गोत्रीय पान्डेय) व उसके बाद 33 वर्ष पर विवाह उपरान्त जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी व आहार विहार आचार विचार व जगत व्यव्हार से सदाचारी व शाकाहारी व किशी भी आम व खास नसे से आजीवन दूर रहने वाला और जिसका कथन हो की =====अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय| ================================================================================= सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| =========================================== यह संसार एक से मतलब सदाशिव:महाशिव/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से भी चल सकता है पर तब उसका चमत्कार क्या और उसके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? और फिर उनके समेत उनसे आविर्भावित 3 मूल देव/त्रिदेव और उनकी सांगत शक्तियों से मतलब कुल 7 से उनका यह संसार चल सकता है पर तब उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या? या कि फिर इसी क्रम में ऋषि सत्ता तदनुसार मानवीय सत्ता के तहत 7/8/24 (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र की तीलियों के बराबर )/108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के बराबर) ऋषि और उनकी सांगत शक्तियों से यह संसार चल सकता है पर तब भी उनका चमत्कार क्या और उनके इस संसार की चमत्कारिकता क्या?======विश्व-मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|=========== ==मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|========>>>>>28 अक्टूबर, 2009 को भारतीय विज्ञान संस्थान से सदा के लिए यहां आते समय मै अपने उम्र के बराबर से लेकर 10 वर्ष तक छोटी तथा तथाकथित रूप से दलित, ईसाई/दीनदयाल, मुस्लिम/मुसल्लम ईमान व् ब्राह्मण (त्याग), क्षत्रिय (बलिदान), व् वैश्य (तप/योग/उद्यम) समेत अन्य सभी जाति/ धर्म (सम्मिश्रित गुण धर्म) की बहनों (जिसमें दक्षिण की ही ज्यादा थीं) जिनको हर तरह के रूप में आचरणरत मैंने देखा था ऐसे में भी चरण स्पर्श करते हुए आशीर्वाद लेने के बाद ही प्रयागराज विश्वविद्यालय में सेवारत हुआ था|===तो आप को जाति और धर्म केवल अपने लाभ के लिए चाहिए तो मैं भी कहूंगा की जाति/धर्म होना चाहिए और जब आपको हानि होगी और कर्तव्य से मुँह मोड़ना होता और आप कहेंगे की जाति धर्म नहीं होगा तो मै भी कहूंगा की जाति/धर्म नहीं होगा तो अगर आप इस समाज में साबित रह लेंगे तो मैं भी रह लूंगा लेकिन एक व्यवस्थागत जीवन जीने के लिए जो अपने अधिकार का त्याग कर और साथ ही कर्तव्य कर अधिकार पा रहे है और केवल लाभ वाली संस्कृति जिनकी नहीं है उनको भी अपनी संस्कृति अनुरूप जीने का अधिकार कैसे मिलेगा यक्ष प्रश्न यह है?----------मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके| आप असीमित रूप से दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि (ईसाइयत) तब तक ही हो सकते हैं जब तक आप ईश्वरीय स्वरुप में होंगे लेकिन एक आम मानवीय जीवन जिसे व्यावहारिक जीवन कहते हैं तो उसमे आप के दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि होने की एक सीमा अवश्य होगी और उसी सीमा तक आप दीनदयाल/दीनानाथ/जगत तारण/करूणानिधि बन सकते हैं या अप्रत्यक्ष किसी दूसरे से लूटकर और उसका अधिकार मारकर आप ऐसा बन सकते हैं जो की नकारात्मक जीवन शैली की प्रथम की सीढ़ी है -- उसी तरह से व्यावहारिक जीवन में मुसल्लम ईमान/पूर्ण सत्यवादी/पूर्ण ईमानदार (इस्मालियत/मुसलमान); पूर्ण त्याग (ब्राह्मण), पूर्ण बलिदान (क्षत्रिय) और पूर्ण तप/योग/उद्यम (वैश्य) की सीमा होती है तो किसी को भी अपमानित नहीं करना चाहिए एक साम्य जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए| ================================================================================== मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ====================================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:| >>>> रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| During these two decades there is a continuous effort from my side that the wave of world humanity should remain alive at any cost that is why in first stage I accepted the challenge to remain unconnected with the common world and after the successful innings on 29th May, 2006; I expressed my own view and experience in the scenario of local to world level change on the social media like Orkut, Blog: "Vivekanand and Modern Tradition" and Facebook.| ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी">>>>> विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) या इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल सनातन राम की कला से हुआ| ===================================================================================================================== मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया| ========================================================================================== मानवता के आगे के भविष्य सुरक्षित करने हेतु उपसंहार लिखना पड़ता है मतलब आज के दिन सत्यमेव जयते और सत्यम शिवम् सुंदरम को सामने लाया पड़ता है तो दूसरों के व्यवहारिक रूप से सामान्य मलीनता वाले चहरे को भी अति दूषित बताने वाले लोग अब आप अपना चेहरा भी आईने में देख लीजियेगा: ====>>>>आप, आप के अभिकर्ताओं की सहनशीलता इतने मात्र से जबाब दे गई जबकि सब कुछ हो जाने के बाद ही मानवता के दूरगामी हित हेतु मेरे द्वारा केवल उपसंहार लिखा गया मतलब जब आज के दिन सत्यमेव जयते और सत्यम शिवम् सुंदरम को सामने लाया| मुझे 2003/2004/2006 में ही पता हो गया था की देवियों पर भौतिक रूप मात्र से नियंत्रण में लेके संस्थागत और इस सन्दर्भ के माध्यम से विश्वमानवता हित के जिस महायज्ञ में मुझे पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समर्पित/समाधिष्ठ कर दिया गया है अब उसमें से संस्थागत यज्ञ विध्ध्वंश की बारी है और फिर तभी मेरा परमब्रह्म कृष्ण स्वरुप 16-29 मई, 2006 के बीच उजागर हुआ और संस्थागत हित को पूर्णातिपूर्ण सिद्ध किया तथा उसी क्रम में आगे जाकर 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को मेरा परमब्रह्म राम स्वरूप सामने आया और इस संसार के हर यम नियम अधिनियम व् विधि विधान संविधान से उस महायज्ञ को पूर्णातिपूर्ण सिद्ध किया|    ============================================================================================================= मेरा पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते), पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम् सुंदरम) और व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का सन्दर्भ किसी संस्था या सन्गठन या राज व्यवस्थागत किसी उद्घोष के प्रसंग से नहीं अपितु क्रमसः विष्णु, शिव और ब्रह्मा द्वारा जगत के पोषण/सम्पोषण, रक्षण/संरक्षण व् चालन/सञ्चालन हेतु निर्धारित की गयी सत्य पालन व्यवस्था के प्रति प्रथमतः अपने-अपने दायित्व निर्वहन व् इन तीनों के अनुरूप स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर के सांस्कारिक/सांस्कृतिक/सामाजिक/राज व्यवस्थागत/संस्थागत/संगठनगत/कुटुंबगत/स्वपरिवारगत-व्यक्तिगत अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपने उत्तर दायिता से संदर्भित है|Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र/ऋषि:विष्णु गोत्र/ऋषि है):---आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| अतएव पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते अनुसार आभासीय रूप से ही सही उनको वंश विहीन किया जाना ही उनकी सजा है| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी| ============================================================================================================ मेरा पूर्णातिपूर्ण सत्य (सत्यमेव जयते), पूर्णसत्य/वास्तविक सत्य (सत्यम शिवम् सुंदरम) और व्यावहारिक सत्य/जगत सत्य का सन्दर्भ किसी संस्था या सन्गठन या राज व्यवस्थागत किसी उद्घोष के प्रसंग से नहीं अपितु क्रमसः विष्णु, शिव और ब्रह्मा द्वारा जगत के पोषण/सम्पोषण, रक्षण/संरक्षण व् चालन/सञ्चालन हेतु निर्धारित की गयी सत्य पालन व्यवस्था के प्रति प्रथमतः अपने-अपने दायित्व निर्वहन व् इन तीनों के अनुरूप स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर के सांस्कारिक/सांस्कृतिक/सामाजिक/राज व्यवस्थागत/संस्थागत/संगठनगत/कुटुंबगत/स्वपरिवारगत-व्यक्तिगत अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति अपने उत्तर दायिता से संदर्भित है| =============================================================================================================================================== भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा?>>>>>>>>>>>मैं स्पष्ट कह दिया की मैं 2 वर्ष किष्किंधा क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर में उसके शताब्दी वर्ष के दौरान (2007 -2009 ) बिताया है तो फिर देखा है उत्तर की देवियों के प्रति वहाँ अति आशक्ति और इसके उलट उत्तर के देवताओं के प्रति दक्षिण के दो राज्यों के लोगों में आतंरिक द्वेष मौजूद था और यह आज भी कटु सत्य हैं और ये दो राज्य ऐसे हैं जो अपने विदेशी आकाओं के इसारे पर ही चलते हैं और वे राज्य उनके लिए एक प्लेटफार्म मात्र तभी से थे और आज की बात ही अलग है जब उत्तर भारत भी तेजी से प्लेट फार्म बन चुका है| तो मित्र फिर यह मेल जोल की संस्कृति के बहाने यह नश्ल सुधार की चाहत या नश्ल चोरी की प्रवृत्ति वह भी उत्तर के देवताओं से द्वेष रखकर तो यह आभासीय समरसता एक तरफा लाभ वाला फार्मूला हमेशा हमेशा के लिए नहीं चलता है और जिस उत्तर भारतीय को आप अपनी नश्ल का समझते हैं उसको अपना एजेंट बना अपनी राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय ठीकेदारी कायम रखना न न्याय पूर्ण है और न ही मानवता के लिए कल्याणकारी है क्योंकि कहा गया है की "हारा तो चला जाता है पर हरा हुआ नहीं जाता है मतलब उसे आप नियंत्रित नहीं कर सकते हैं " | फिर भी मैंने समूह में खड़े लोगों से वहाँ दो तीन बार सार्वजनिक रूप से कहा था की आप की नश्ल और हमारी नश्ल एक ही है और आप की नश्ल अफ्रीकी मूल की नहीं है और आप में और हमारे में जो वाह्य अन्तर है वह केवल और केवल स्थानीय आहार-विहार और भौगोलिक अंतर के कारन है तो वैश्विक साजिस से बचे रहिये द्वेष मत पालिये क्योंकि आप जैसे लोग हमारे यहां आप दोनों राज्यों की आबादी से ज्यादा मिल जाएंगे| =================================================================================================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:| >>>> रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| During these two decades there is a continuous effort from my side that the wave of world humanity should remain alive at any cost that is why in first stage I accepted the challenge to remain unconnected with the common world and after the successful innings on 29th May, 2006; I expressed my own view and experience in the scenario of local to world level change on the social media like Orkut, Blog: "Vivekanand and Modern Tradition" and Facebook.| ""समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी">>>>> विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) या इस बीस वर्ष के अद्वितीय कालखंड के दौरान इस संसार के पांच के पांचो मुख्य पात्रों की सभी कलाओं का उपयोग हुआ मतलब शिव की कला, विष्णु की कला, ब्रह्मा की कला, कृष्ण की कला और राम की कला और इन सभी की कलाओं का आविर्भाव/उद्भव केवल और केवल सनातन राम की कला से हुआ| ===================================================================================================================== तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====================================================================================================================== प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार (गुरूवार) दिन को ही अवतरित होने वाले तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने उस दौर में कहा था की विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे, मुझे तुम्हारा संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है| तो फिर इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को 25 मई, 2018 को स्थापित कर संतुलित हो गया न और और प्रकार मैंने उनके वाक्य "विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे" को पूर्णातिपूर्ण किया की इस संसार में मेरा ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कोई है, न कोई हुआ है और न कोई होगा और कोई होगा तो वह मेरा ही स्वरुप होगा| इसके पहले ही संकेत के तौर पर पर मुझे इस संसार के सबसे विशालकाय संगठन के लिए जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध संत ने सक्रीय रूप से संगठन से अलग होने के लिए संकेत फरवरी, 2017 से दे दिए थे यह कहते हुए की जो वैश्विक स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुका हो उसको कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए लेकिन मुझे तो इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी|=============================मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था| तो फिर मेरे तत्कालीन परमब्रह्म स्वरुप की ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं | ========================================================================================================================= राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं|<<<>>>>>रामजन्मभूमि आन्दोलन में आप द्वारा सक्रीय भागीदारी और उस मन्दिर हेतु अमूल्य योगदान से क्या लाभ जब आप और आपके अभिकर्ता जो आपका ही नाम आज तक भी भुना रहे हैं उनके द्वारा जाने-अनजाने आज तक जनमानस की अभीष्ठतम आशा व् विश्वास के विपरीत जाकर रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद जारी है|<<<<<>>>>>>>>तो फिर>>>>रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक इस विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) में एकमात्र मै ही विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु के प्रयोजन हेतु अंतरास्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय शक्ति के रूप में दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा|<<<<>>>>>>राम (विष्णुकान्त/बृहस्पतिवार:गुरुवार: 30-09-2010) और कृष्ण(कृष्णकान्त/बुधवार:श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:28-08-2013) मेरे साथ ही हैं तथा कम से कम एक सहस्राब्दी हेतु सांगत शक्तियों समेत विष्णु व ब्रह्मा प्रयागराज में और शिव व् शिव-पुत्र काशी में क्रमसः 10 सितम्बर, 2008 और 11 सितम्बर, 2008 को मेरे द्वारा प्रतिष्ठापित कर दिए गए हैं========<<<<<<मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया|<<<< <<=======भारतवर्ष सदैव से मानवता का निर्यातक देश रहा है और उसपर लोग कहते हैं की आर्य बाहर से आये जबकि विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप से काशी में अवतरित हुए प्रथम देव/आदि त्रिदेव इस संसार के सबसे गौर वर्णीय हैं और अनादिकाल से जिनका स्वरुप एक मात्र गौर वर्ण ही हैं:>>>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा? ======================================================================================================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| ======================================================================================================================== प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार (गुरूवार) दिन को ही अवतरित होने वाले तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने उस दौर में कहा था की विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे, मुझे तुम्हारा संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है| तो फिर इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को 25 मई, 2018 को स्थापित कर संतुलित हो गया न और और प्रकार मैंने उनके वाक्य "विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे" को पूर्णातिपूर्ण किया की इस संसार में मेरा ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कोई है, न कोई हुआ है और न कोई होगा और कोई होगा तो वह मेरा ही स्वरुप होगा| इसके पहले ही संकेत के तौर पर पर मुझे इस संसार के सबसे विशालकाय संगठन के लिए जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध संत ने सक्रीय रूप से संगठन से अलग होने के लिए संकेत फरवरी, 2017 से दे दिए थे यह कहते हुए की जो वैश्विक स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुका हो उसको कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए लेकिन मुझे तो इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ========================================================================================================================= मुझे आशा है की यह संसार कम से कम एक सहस्राब्दी बाद ही लौटकर भारतवर्ष पर ही सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा को धारण करने की जिम्मेदारी पुनः सौपे [प्रयागराज (/काशी) में केंद्रित होते हुए सम्पूर्ण मानवता की ऊर्जा का धारणकर्ता एकल रूप में मै ही था जिसके अनेको नाम आप ले सकते है राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और महेश या अन्य-अन्य कोई मानवता के इतिहास की विभूति] और इसके लिए समस्त गायों का सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत सञ्चालन किसी न किसी के माध्यम से चलता रहे और ये साम-दाम-दण्ड-भेद और कल-बल-छल के बल पर गायों को अपने वशीभूत कर और निकृष्ट कर्म करके बदनाम करने की धमकी के तहत अपनी ही बात को उनके मुख से उगलवाकर उनके परिवार और समाज से प्रमाणपत्र हांसिल कर अपने अपने नियंत्रण में लेने तथा बाद में वास्तविक जीवन से सामना होने पर नियंत्रण से बाहर होने पर अपने निहित स्वार्थ्य हेतु या अपने घृणित स्वारथ्य हेतु उन गायों को प्रोजेक्ट, पट्टे, लीज, गिरवी, लोन पर देने और फिर नीलामी कर देने की क्रियाविधि पर धीरे धीरे रोक लगाए अन्यथा आपकी ऐसी ही अधम हरकतों से ही मानवता के समाप्त होने की स्थिति उत्पन्न होती है| ========================================================================================================================== दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ >>>=====जब आपके द्वारा कोई दायित्व स्वीकार कर ठीक तरह से निभाने पर भी जो लोग अनावश्यक रूप से राजनीति करने का गैप खोजें ऐसी स्थिति में अगर उन्हें आप द्वारा असीमित गैप दे दिया जाय तो फिर मानवता हित में ऐसा कार्य उचित ही रहता है तो ऐसे में उसके मनोबल को कमजोर करने के भागीदार भी आप नहीं माने जाएंगे| >>>>========प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (/दिसम्बर, 2018) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>>>दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ तो कोई अनावश्यक सन्देह अपने अन्दर न पाले फिर भी यह सत्य है की प्रत्यक्ष तौर पर मैं ही भगवा/बिशुनपुर-223103 और मैं ही तिरन्गा/रामापुर-223225 अर्थात मै ही मानक रूप से समस्त 108 ऋषि या मानक रूप से समस्त 24 ऋषि या मानक रूप से समस्त 8 ऋषि या मानक रूप से समस्त 7 ऋषि की केंद्रीय शक्ति रूप में 109वां ऋषि अर्थात विष्णु गोत्र व् उन सबमे स्वयं पहला ऋषि/गोत्र कश्यप (/मारीच:सूर्य/कण्व) दोनों हूँ| तो फिर यह आप समझ लीजियेगा की मै अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य नैसर्गिक/प्राकृतिक रूप से हूँ जैसा की मुझे <<<<>>>>भारतीय विज्ञान सस्थान (अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के बीच) में सुझाव दिया गया था की यहां स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/संगठन के सदस्य बन लीजिये और स्वयंसेवक हो जाइये तो मैंने वहां कहा था की मैं स्वयं ही अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ तो आप का सन्गठन मेरा साथ नहीं दे पायेगा और तभी कहता हूँ की यहाँ से लेकर वहाँ तक और फिर वहां से लेकर यहां तक की यात्रा में किसी स्वयंसेवक से किसी भी प्रकार का कोई सहयोग नहीं लिया हूँ| <<<<>>>>>>प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (दिसम्बर, 2018/जुलाई, 2018 ) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|>>>><<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ========================================================================================================================== पिता जी (वशिष्ठ से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और माता जी (कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) तथा मैं (गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और आगे की पीढ़ी (गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) तो फिर गोत्र स्तर पर ही ऊपर से तीन गोत्रों के रक्त का सीधा असर था/है मुझपर बाकी रिश्तों से सभी सातों गोत्र आ जाते हैं ---------5 सितम्बर, 2000 को काशी से आकर 11 सितम्बर, 2001 को केंद्रीय रूप में एकमात्र मै ही इस प्रयागराज में दॉँव पर लगा जरूर था पर आगे मैं दाँव पर लगकर रहना आवश्यक नहीं समझ रहा था परन्तु मैं मामा जी (श्रीधर/विष्णु)-(गोत्र: कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) जो गोत्र सिस्टम में मेरे (गोत्र:गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) रिवर्स आर्डर में सम गोत्रीय हैं ने ही फरवरी, 2003 में कहा था की जोशी गुरुदेव (मुरलीमनोहर/ब्रह्मा)-(गोत्रःआंगिरास/भारद्वाज) और पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/शिव:सोमेश्वर:तात्कालिक रूप से कार्य सफलता हेतु 2000 से 2005 के बीच 4 बार बिशुनपुर जाना हुआ था आपका)-(गोत्र:कश्यप/त्रिफला कश्यप) के सम्मान की बात है तुमको इस संस्थागत/मानवतागत कार्य को बनाये रखने के लिए यहां से कही नहीं जाना है तो 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति कर लिया पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया किंतु जोशी गुरुदेव को भी पता होना चाहिए की वे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक केंद्रीय शक्ति के रूप में एकमात्र मै ही अंतरास्ट्रीय स्तर पर दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा| ======== === ==== === ==>>>>>>>मई, 2006 में ही राष्ट्रीय स्तर पर सम्बंधित उच्चस्थ पदासीन धार्मिक आस्था व् विश्वास वाले व्यक्तित्व ने जब स्वयं कह दिया था की हर शिक्षक व् ऋषि-महर्षि-मुनि का जीवन जीने वाले वैज्ञानिक का सम्मान है उनका अनादर हमें नहीं करना है पर सनातन संस्कृति को चिढ़ाने वाले(/मजाक उड़ाने वाले/माखौल उड़ाने वाले) रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी केंद्र/संस्था/संस्थान को कोई अनुमोदित पद नहीं दिया जाएगा तो फिर ऐसे थे उस तात्कालिक उच्च मनीषी के विचार| तो इसमें मुझ जैसे व्यक्ति के स्तर पर किसी विद्वान व् ऋषि-महर्षि-मुनि का कोई अपमान का प्रश्न कहाँ और मैं किसी का विरोधी कैसे हुआ? फिर मेरी भी ऐसी विचारधारा है की मै रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार का सदस्य नहीं होना चाहता तो ऐसे में मैंने भी अपना विरोध जता दिया आगे उच्च सक्षम पदस्त सनातन धर्म के प्रति धार्मिक और आस्थावान कहे जाने वाले लोगों की जैसी मन्सा और उनके किसी जिद्दी निर्णय का ऐसी किसी संस्था/संस्थान/केंद्र/परिवार को और सम्पूर्ण विश्व समाज को मिलाने वाला प्रतिफल| ==================================================================================================================================================== 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====>>>> अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>> मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था: >>>>>>>>>>>>>> तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|>>>>>>>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|<<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है ==================================================================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|=================तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है|========================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय: >>>>>>अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्ण 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ| >>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|10/11 सितम्बर, 2008 के बाद से शिव अपने पुत्रों समेत काशी और विष्णु और ब्रह्मा प्रयागराज में ही स्थापित है और वहीं रहेंगे और प्रयागराज (/काशी) की सीमा से पार उनकी आभा मात्र ही सर्वत्र जाएगी| =========================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<>>>हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||| तो फिर "समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)|===========================================रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))|========================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ============================================================================================================================================================ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)>>>>>सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) मात्र को ही स्वीकार करने हेतुु और सत्यम शिवम सुंदरम (पूर्ण सत्य) को स्वीकार न करने हेतु या कुछ न बोलने से समाज व् संस्थागत हित बताने के तहत वैदकी समाज के हवाले किया गया तो इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी बनने की झूंठी क्षमता का प्रदर्शन न करे क्योंकि ऐसा मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर/विष्णु(/श्रीधर) के कहने पर उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु न चाहते हुए भी ऐसा किया था (वैदकी समाज के हवाले हुआ था) =====>>>>>जब रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का उद्धार कर राम ने उनको अपने ह्रदय में समाहित कर लिया मतलब विष्णु कुल में अपने भक्त रहे और आसुरी गोत्र में जन्म लिए अपने भक्तों को अपने ह्रदय में समाहित कर लिया तो अब किसी व्यक्ति द्वारा कम से कम प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में जाने/अनजाने किसी व्यक्ति द्वारा उनका नाम धारण करना या किसी संस्था या संगठन का ऐसे नाम से नामकरण करना न तो उस व्यक्ति के लिए ठीक है और संस्था/संस्थान/संगठन या मानव समाज के लिए ठीक है| तो मैंने स्वयं को ऐसे संस्था/संस्थान/संगठन/परिवार का सदस्य होने पर आपत्ति दर्ज करा दिया है तो बाकी सब लोग इसे स्वीकार न करने का परिणाम भुगतें और समाज को भुगतवायें| ================================================================================================================ जो भी हो जाय या होने वाला है अगर वह जनमानस हेतु अशुभ भी हो तो उसे भी स्वीकार कर लिया जाय ऐसा ठीक नही है अतएव जिस वैश्विक समाज व् संथागत हित हेतु मै 11 सितम्बर, 2001 को प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में दॉँव पर लगाया गया मतलब पूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ किया गया (/और सत्यमेव जयते मात्र को ही स्वीकार करने हेतुु और सत्यम शिवम सुंदरम को स्वीकार न करने हेतु या कुछ न बोलने से समाज व् संस्थागत हित बताने के तहत वैदकी समाज के हवाले किया गया) तो इस संसार में कोई मेरा प्रतिद्वन्द्वी या प्रतिस्पर्धी बनने की झूंठी क्षमता का प्रदर्शन न करे क्योंकि ऐसा मैंने अपने परमगुरु परमपिता परमेश्वर/विष्णु(/श्रीधर) के कहने पर उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु न चाहते हुए भी ऐसा किया था (वैदकी समाज के हवाले हुआ था) जिसके हेतु मुझे मेरे परमाचार्य परमपिता परमेश्वर/शिव:सोमेश्वर ने 3/4 सितम्बर, 2001 को भेजा था मतलब परमज्ञानी परमपिता परमेश्वर/ब्रह्मा के यज्ञ को पूर्णातिपूर्ण रूप से सफलता पूर्वक सम्पन्न कराने हेतु भेजा था ) और फिर स्थानीय/राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक परिवर्तन के को दृष्टिगत करते हुए ऐसा भी है की 7 फरवरी, 2003 उसी हेतु पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ कर दिया गया| लेकिन क्या 2004 के बाद की स्थिति के बाद 2005/2006 में मेरे ऐसे पूर्णातिपूर्ण रूप से समर्पित/संकल्पित/समाधिष्ठ होने के बाद भी मतलब 5/6 वर्ष बाद ऐसे सम्पूर्ण उपक्रम को भारत के दक्षिण के दो राज्य (जो दो राज्य केवल अपने विदेशी नागरिको के इसारे पर चलते थे/हैं और उनका वह एक प्लेट फार्म मात्र उसी दौरान से था) के इशारे पर बन्द कर दिया जाता और मै उसे स्वीकार कर लेता तो उस विरोध का परिणाम था 29 मई, 2006 ((67/11 मतलब पूर्णातिपूर्ण सफलता; जिसके सदस्य हर जाति से हैं उसके जानकारी हेतु जो उपक्रम का लाभ जाति विशेष को मिलेगा बता रहे थे) और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| मेरा किसी राज्य विशेष से जातिगत दुश्मनी नहीं वरन उस समय उनका समर्थन करने वाले आज किसी केंद्र को नियमों को ताक पर रखकर क्यों बनाना चाह रहे है और मै उसका अंग स्वयं क्यों नहीं रहना चाह रहा हूँ तो उसे अब जान लीजिये जिसे शायद पहले बता चुका हूँ: जब रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का उद्धार कर राम ने उनको अपने ह्रदय में समाहित कर लिया मतलब विष्णु कुल में अपने भक्त रहे और आसुरी गोत्र में जन्म लिए अपने भक्तों को अपने ह्रदय में समाहित कर लिया तो अब किसी व्यक्ति द्वारा कम से कम प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में जाने/अनजाने किसी व्यक्ति द्वारा उनका नाम धारण करना या किसी संस्था या संगठन का ऐसे नाम से नामकरण करना न तो उस व्यक्ति के लिए ठीक है और संस्था/संस्थान/संगठन या मानव समाज के लिए ठीक है| तो मैंने स्वयं को ऐसे संस्था/संस्थान/संगठन/परिवार का सदस्य होने पर आपत्ति दर्ज करा दिया है तो बाकी सब लोग इसे स्वीकार न करने का परिणाम भुगतें और समाज को भुगतवायें|| ================================================================================================================================================ गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018 के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है या वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में लगभग एक सहस्राब्दी बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ सकती हैं| =========================================== कोई द्वन्दात्मक स्थिति नहीं उपजनी चाहिए विश्वजनमानस में क्योंकि विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही से ही इस वैश्विक संसार को सारंगधर के पाँच के पाँचों स्वरूपों अर्थात इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्रों राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा व् सांगत देवियों का आविर्भाव हुआ हैं| 《《《《《 《《《《《《《विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सनातन राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| ======================================================================================================================================================== रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम/कृष्ण/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| ============================================= प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार (गुरूवार) दिन को ही अवतरित होने वाले तत्कालीन रूप से मेरे परमगुरु परमपिता परमेश्वर, श्रीधर (विष्णु) ने उस दौर में कहा था की विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे, मुझे तुम्हारा संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है| तो फिर इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम-विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता को 25 मई, 2018 को स्थापित कर संतुलित हो गया न और और प्रकार मैंने उनके वाक्य "विवेक तुम इस दुनिया का कौन सा ज्ञान-विज्ञान मुझे सिखाओगे" को पूर्णातिपूर्ण किया की इस संसार में मेरा ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व् वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कोई है, न कोई हुआ है और न कोई होगा और कोई होगा तो वह मेरा ही स्वरुप होगा| इसके पहले ही संकेत के तौर पर पर मुझे इस संसार के सबसे विशालकाय संगठन के लिए जीवन को समर्पित किये हुए एक सिद्ध संत ने सक्रीय रूप से संगठन से अलग होने के लिए संकेत फरवरी, 2017 से दे दिए थे यह कहते हुए की जो वैश्विक स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुका हो उसको कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए लेकिन मुझे तो इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ====================================================== दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ >>>=====जब आपके द्वारा कोई दायित्व स्वीकार कर ठीक तरह से निभाने पर भी जो लोग अनावश्यक रूप से राजनीति करने का गैप खोजें ऐसी स्थिति में अगर उन्हें आप द्वारा असीमित गैप दे दिया जाय तो फिर मानवता हित में ऐसा कार्य उचित ही रहता है तो ऐसे में उसके मनोबल को कमजोर करने के भागीदार भी आप नहीं माने जाएंगे| >>>>========प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (/दिसम्बर, 2018) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>>>दिसंम्बर, 2018 (/1 अगस्त 2018) से मैं प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष किसी भी सन्गठन का सदस्य नहीं हूँ तो कोई अनावश्यक सन्देह अपने अन्दर न पाले फिर भी यह सत्य है की प्रत्यक्ष तौर पर मैं ही भगवा/बिशुनपुर-223103 और मैं ही तिरन्गा/रामापुर-223225 अर्थात मै ही मानक रूप से समस्त 108 ऋषि या मानक रूप से समस्त 24 ऋषि या मानक रूप से समस्त 8 ऋषि या मानक रूप से समस्त 7 ऋषि की केंद्रीय शक्ति रूप में 109वां ऋषि अर्थात विष्णु गोत्र व् उन सबमे स्वयं पहला ऋषि/गोत्र कश्यप (/मारीच:सूर्य/कण्व) दोनों हूँ| तो फिर यह आप समझ लीजियेगा की मै अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य नैसर्गिक/प्राकृतिक रूप से हूँ जैसा की मुझे <<<<>>>>भारतीय विज्ञान सस्थान (अक्टूबर, 2007 से अक्टूबर, 2009 के बीच) में सुझाव दिया गया था की यहां स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/संगठन के सदस्य बन लीजिये और स्वयंसेवक हो जाइये तो मैंने वहां कहा था की मैं स्वयं ही अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक हूँ तो आप का सन्गठन मेरा साथ नहीं दे पायेगा और तभी कहता हूँ की यहाँ से लेकर वहाँ तक और फिर वहां से लेकर यहां तक की यात्रा में किसी स्वयंसेवक से किसी भी प्रकार का कोई सहयोग नहीं लिया हूँ| <<<<>>>>>>प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए भी अंतरर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक होने के होने के दायित्व के अनुसार बिना किसी सन्गठन का सदस्य हुए जिस समय जिस स्तर पर जैसी जरूरत होगी उसी अवस्था में रहकर विश्व मानवता के निमित्त कार्य में लगे हर प्रकार के संगठन और उनके स्वयसेवकों को अनवरत अपनी सेवाएं देता रहा हूँ और देता रहूँगा तो फिर ऐसे ही प्रयोजन के तहत जोड़े जाने पर किसी संगठन विशेष का जुलाई, 2012 से जुलाई, 2018 (दिसम्बर, 2018/जुलाई, 2018 ) तक प्रत्यक्ष सदस्य रहा| >>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|>>>><<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है =========================================== पिता जी (वशिष्ठ से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और माता जी (कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) तथा मैं (गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) और आगे की पीढ़ी (गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) तो फिर गोत्र स्तर पर ही ऊपर से तीन गोत्रों के रक्त का सीधा असर था/है मुझपर बाकी रिश्तों से सभी सातों गोत्र आ जाते हैं ---------5 सितम्बर, 2000 को काशी से आकर 11 सितम्बर, 2001 को केंद्रीय रूप में एकमात्र मै ही इस प्रयागराज में दॉँव पर लगा जरूर था पर आगे मैं दाँव पर लगकर रहना आवश्यक नहीं समझ रहा था परन्तु मैं मामा जी (श्रीधर/विष्णु)-(गोत्र: कश्यप से गौतम/व्यासी गौतम) जो गोत्र सिस्टम में मेरे (गोत्र:गौतम/व्यासी गौतम से कश्यप/त्रिफला कश्यप) रिवर्स आर्डर में सम गोत्रीय हैं ने ही फरवरी, 2003 में कहा था की जोशी गुरुदेव (मुरलीमनोहर/ब्रह्मा)-(गोत्रःआंगिरास/भारद्वाज) और पाण्डेय जी (प्रेमचन्द/शिव:सोमेश्वर:तात्कालिक रूप से कार्य सफलता हेतु 2000 से 2005 के बीच 4 बार बिशुनपुर जाना हुआ था आपका)-(गोत्र:कश्यप/त्रिफला कश्यप) के सम्मान की बात है तुमको इस संस्थागत/मानवतागत कार्य को बनाये रखने के लिए यहां से कही नहीं जाना है तो 29 मई, 2006 को ही अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति कर लिया पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया किंतु जोशी गुरुदेव को भी पता होना चाहिए की वे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए जिद न करें क्योंकि 11 सितम्बर, 2001 के पूर्व (12 मई, 1997/25 मई, 1998) से लेकर 25 मई, 2018 (/31 जुलाई, 2018) तक केंद्रीय शक्ति के रूप में एकमात्र मै ही अंतरास्ट्रीय स्तर पर दाँव पर रहा हूँ और उसके बाद वैश्विक श्रृंखला टूटने पर भी प्रयागराज (/काशी) मेँ केंद्रीय शक्ति के रूप में केंद्रित हूँ तो फिर दिखावटी जिद रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार के लिए न की जाये तो सम्पूर्ण मानवता और संस्था के लिए हितकर होगा| ======== === ==== === ==>>>>>>>मई, 2006 में ही राष्ट्रीय स्तर पर सम्बंधित उच्चस्थ पदासीन धार्मिक आस्था व् विश्वास वाले व्यक्तित्व ने जब स्वयं कह दिया था की हर शिक्षक व् ऋषि-महर्षि-मुनि का जीवन जीने वाले वैज्ञानिक का सम्मान है उनका अनादर हमें नहीं करना है पर सनातन संस्कृति को चिढ़ाने(/मजाक उड़ाने वाले/माखौल उड़ाने वाले) वाले रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी केंद्र/संस्था/संस्थान को कोई अनुमोदित पद नहीं दिया जाएगा तो फिर ऐसे थे उस तात्कालिक उच्च मनीषी के विचार| तो इसमें मुझ जैसे व्यक्ति के स्तर पर किसी विद्वान व् ऋषि-महर्षि-मुनि का कोई अपमान का प्रश्न कहाँ और मैं किसी का विरोधी कैसे हुआ? फिर मेरी भी ऐसी विचारधारा है की मै रावण, कुम्भकर्म और मेघनाद नामधारी किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन/केंद्र/संस्थान/परिवार का सदस्य नहीं होना चाहता तो ऐसे में मैंने भी अपना विरोध जता दिया आगे उच्च सक्षम पदस्त सनातन धर्म के प्रति धार्मिक और आस्थावान कहे जाने वाले लोगों की जैसी मन्सा और उनके किसी जिद्दी निर्णय का ऐसी किसी संस्था/संस्थान/केंद्र/परिवार को और सम्पूर्ण विश्व समाज को मिलाने वाला प्रतिफल| =========================================== तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ====>>>> अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>> मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था: >>>>>>>>>>>>>> तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय|>>>>>>>>>>>>>>>>मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| =====तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|<<<<>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है =========================================== तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ====>>>>प्रत्यक्ष रूप से गुरुकुल और अप्रत्यक्ष रूप से विश्वमानवता के अभीष्ट कार्य हेतु 11 सितम्बर, 2001 को उस दौर में दाँव पर लगा था और फिर 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से दाँव पर लगा जिसके दौरान 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता मिली और फिर 25 मई, 2018 को पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम नियम अधिनियम और विधि विधान संविधान से सफलता मिली और इसी दौरान धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र के 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्वव्यापक रूप से टूट जाने पर 10 /11 सितम्बर, 2008 को धर्मचक्र/अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा कर पुनर्स्थापना का कार्य भी किया==>>>>>तो फिर ऐसे नहीं कह दिया था कि किसी भी देवी-देवता, ऋषि (गुरु व् गुरुकुल), पितृ (मातृ-पितृ), नर-नारी व् किन्नर किसी का कोई भी ऋण 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के बाद शेष नहीं रह गया है तो फिर क्या रह रह गया है? केवल और केवल कर्तव्यपरायणता के साथ साथ जगत व्यवहार जो की समयानुकूल सकुशल रहते हुए निभाया जा रहा है| ===================================================================================== अगर निम्नलिखित कार्य को क्रियान्वित कर आज भी सामान्य जनजीवन में सामान्य आचरण रत रहते हुए विद्यमान हूँ तो फिर यह समझ लीजिये की वास्तविक सन्दर्भ में मैं आजीवन आहार-विहार-आचार-विचार-संस्कृति और संस्कार से सात्विक/शाकाहारी हूँ तथा आज तक किसी प्रकार के आम व् ख़ास नशे से दूर तथा विवाह पूर्व 33 वर्ष तक भौतिक रूप से पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मचर्य व् उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हूँ और इस प्रकार वास्तविक सन्दर्भ में जीवन में कभी भी किसी भी तरह के स्वयंसेवक से किसी प्रकार की सेवा नहीं लिया है फिर भी आमजन जैसे आचरणरत दिखाई देता हूँ>>>>>मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय| =============================================================================== पूर्ण विवरण की जरूरत नहीं पर गलती तेलगु (हैदराबाद) और तमिल (कन्याकुमारी) के क्रमसः अनुसूचित जनजाति ((/धर्मपरिवर्तित: जैसा की खिचड़ी रहती हैं तेलगु और तमिल में हिन्दू और ईसाइयत की नामकरण तक में जबकि इस्लाम के साथ ऐसा नहीं होता और इस प्रदेश के लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से ) और अनुसूचित जाति (जो लोग स्वयं कहते हैं की हमारे यहॉं 96% लगभग हर तरह के मांसाहारी हमारे यहाँ रहते है सुबह-शाम दोनों प्रहर खाद्य की दृष्टि से) ने किये और उत्तर भारत स्थित उनके अभिकर्ताओं के षडयंत्र का शिकार हो उनके अभिकर्ता बन उनको उत्कृष्टता का प्रमाणपत्र देने के चक्कर में आप ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा इस्लाम व् ईसाइयत सब लोग गलती कर गए पर मेरे द्वारा जगत सत्य/व्यावहारिक सत्य का जीवन जीते हुए भी आप सत्यमेव जयते (पूर्णातिपूर्ण सत्य) और सत्यम शिवम् सुंदरम (पूर्ण सत्य) सामने लाने से नहीं रोक सके जिसका कारन था की मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है और 29 मई, 2006 को ही ईसाइयत से परे जाकर ईसाइयत पर विजय हांसिल कर एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) होते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति करते हुए; पर उसे आप लोग 12 वर्ष स्वीकार नहीं किये तो फिर इस्लामियत से परे जाकर इस्लामियत पर विजय हांसिल करते हुए एकमात्र पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) होते हुए 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-विधि-विधान-संविधान से अपने लक्ष्य को पूर्णातिपूर्ण रूपेण प्राप्त कर लिया| =================================================================================================================== जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे| ========================================================================================================================================================= Reproduced Fact in the Rishi/Human Culture Origination (/but not in the status of TRIDEV (/BRAHMA/VISHNU/ MAHESH) or AADI DEV (SANATAN ADYA/PURANPURUSH/ SADASHIV/MAHASHIV /PARAMBRAHM FORM OF VISHNU/ PARAMBRAHM/SANATAN RAM:KRISHNA) ): इस्लामियत (मुसल्लम ईमान/पूर्ण सत्य) और ईसाइयत (पूर्ण दीनदयाल) के आदम:एदम /प्रथम आदमी और सनातन हिन्दू (जो मूलतः ब्राह्मण (पूर्ण त्याग) , क्षत्रिय (पूर्ण बलिदान) वैश्य (पूर्ण तप/योग/उद्यम) जाती/धर्म व् इन तीनों के ही अनेकोनेक व्युत्पन्न है) धर्म के मनु:प्रथम मानव जब कश्यप ऋषि ही थे मतलब दशरथ/वशुदेव ही थे तो मेरे द्वारा सिद्ध किये हुए 5 प्रमुख तथ्य पूर्णतः सत्य हैं (इस्लाम राम के सामानांतर जरूर चलता पर राम का दुश्मन नहीं और ईसाइयत कृष्ण के सामानांतर जरूर चलता है पर वह कृष्ण का दुश्मन नहीं क्योंकि दोनों नहीं चाहते हैं की राम/कृष्ण का अंत हो बल्कि वे इन्हे अपना आधार मानते हैं (इस्लामानुयाई/मुसल्लम ईमान/पूर्ण सत्य; ईसायतानुयाई/पूर्ण दीनदयाल)) १)हिन्द=जम्बूद्वीप =यूरेसिआ=यूरोप+एशिया= या कम से कम ईरान से सिंगापुर और कश्मीर से कन्याकुमारी और भारत=भारतवर्ष=भरत-खंड=अखंड भारत| २) इस्लाम समानांतर चलता है श्रीराम के और ईसाइयत सामानांतर चलती है श्रीकृष्ण के और जिस प्रकार श्रीराम बड़े हैं श्रीकृष्ण के उसी प्रकार इस्लाम बड़ा भाई है ईसाइयत का।दलित समाज श्रीहनुमान के समानांतर चलता है पर अब तो आम्बेडकर/अम्बवादेकर/श्रीहनुमान का नाम जाप करता है पर यही नही जानता की इन्द्रिय नियंत्रण इन्ही से शीखते है| 3) हिन्द भूमि(जम्बूद्वीप =यूरेसिआ=यूरोप+एशिया= या कम से कम ईरान से सिंगापुर और कश्मीर से कन्याकुमारी) न की केवल भारतवर्ष भूमि(भारतवर्ष=भरत-खंड=अखंड भारत) कई बार आर्यावर्त हो चुका है हस्तिनापुर राजा भरत के भारतवर्ष को आर्यावर्त घोषित करने के पहले तो आइये हम विश्व महासंघ को भी आर्यावर्त बनाये मतलब विश्व का हर नागरिक श्रेष्ठ(आर्य) हो(आर्य प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी ही आर्य है)। 4) श्रीराम के समानांतर इस्लाम और श्रीकृष्ण के समानांतर ईसाइयत संचालन ही सिद्ध करता है की तुम (इस्लाम और ईसाइयत) मेरे हो मतलब आप दोनों की उपज भी सनातन धर्मी ही है। यह अलग की गाय, गंगा, गीता, गायत्री और गौरी (नारी समाज का प्रतीक नाम: नारी समाज के प्रति आचरण) पर मतभेद रह गया है। Origin in the different climatic system may causes these differences. 5) इस संसार को चलाने के लिए सनातन हिन्दू संस्कृति के साथ ही साथ अन्य धर्म की शिक्षा-संस्कृति और परम्पराओं की भी जरूरत है भौगोलिक जलवायु खंड को ध्यान में रखते हुए पर इसका मतलब यह नहीं की ये सनातन संस्कृति की सीमा से परे हैं।*******जय हिन्द(जम्बूद्वीप =यूरेसिआ=यूरोप+एशिया= या कम से कम ईरान से सिंगापुर और कश्मीर से कन्याकुमारी), जय भारत(भारतवर्ष=भरत-खंड=अखंड भारत), जय श्रीराम/कृष्ण।>>>>>>>>>>>>>>>>>>अगर इस्लाम(जो श्रीराम के सामानांतर चलता है और श्रीराम के न रहने अनियंत्रित हो जाता है) को श्रीराम की चाहत है तो श्रीराम बनकर दिखला दो वह आप का हो जाएगा और यदि ईसाइयत(जो श्रीकृष्ण के सामानांतर चलता है और श्रीकृष्ण के न रहने अनियंत्रित हो जाता है) श्रीकृष्ण की चाहत है तो श्रीकृष्ण बनकर दिखला दीजिये वह आप का हो जाएगा और यदि दलित समाज (जो आम्बेडकर/अम्बवादेकर/श्रीहनुमान के समानांतर चलता है और आम्बेडकर/अम्बवादेकर/श्रीहनुमान के न रहने पर अनियंत्रित हो जाता है; अब तो आम्बेडकर/अम्बवादेकर/श्रीहनुमान का नाम जाप करता है पर यही नही जानता की इन्द्रिय नियंत्रण इन्ही से शीखते है) को आंबेडकर/अम्बवादेकर/श्रीहनुमान की चाहत है तो फिर श्रीहनुमान बनकर दिखला दो तो वह आप का हो जाएगा। ===================================================================================== जिस समय पूरी पृथ्वी ही जल मग्न थीं उस समय विश्व व्यापक जलप्रवाह रोक कर केदारेश्वर (आदि आदि-त्रिदेव/आदि शिव: जिनको महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र कहते है मतलब पाँचों मूल तत्वों के देव के नेतृत्वकर्ता इन्द्र ही नही उनके स्वामी महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र) ने मानवीय समय प्रारम्भ होने के पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले काशी में कीचड़ तैयार कर दिया और उसके बीच से ही उनकी उत्पत्ति हुई। तो स्पष्ट सी बात है कि पृथ्वी पर काशी ही एक मात्र वह स्थान है जहाँ पर इस विश्व के प्रथम नागरिक शिव ने अपनी शक्ति(सती:पारवती) के साथ रहने योग्य इसे पृथ्वी का प्रथम स्थल बनाया | प्रयागराज में ऋषिकाल या मानवीय समय की प्रथम नीव कहें तो ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु तथा शिव द्वारा पूरित प्रकृष्टा या प्राकट्य यज्ञ से ब्रह्मा के सातों मानस पुत्र (सप्तर्षि) कश्यप/कण्व (मारीच:आदित्य), गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) प्रकट हुए (और सातों सप्तर्षि के साथ सातों सप्तर्षि के ही अंश से काशी में आविर्भवित/प्रकट होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि के साथ अष्टक (7+1=8) ऋषि प्रकट हुए)|============= और============== केदारेश्वर शिव ने इस ऋषिकाल प्रारम्भ होने से पहले तक शक्ति (सती: पार्वती) के साथ इसी काशी मे रहे और जैसे ही प्रयागराज मे ऋषि संस्कृति ने जन्म लेकर मानव समय का प्रारम्भ किया वे हिमालय पर्वत को निवास स्थल बना लिए और जिसमे कश्यप ऋषि जो शिव के शाढ़ू भाइ भी हुये (पिता, मारीच:आदित्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि:ब्रह्मर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया और कुछ समय वहां बिताने के बाद शिव हिमालय के पूर्वोत्तर सिरे को अपना आशियाना बनाया| ======= कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की| जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है। ========================================================================================================================================================================= I feel that there is no any answer remains against any type of indirect question and thus I stop writing for a long time >> >>> गुरुदेव मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ============================ सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| >>>>>>>विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《 《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| ======= === =============बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>>गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| ==================================== वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| >>>>>>वैश्विक मानवता रूपी दीपक """""25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता"""" के प्रारंभिक दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ============================================================================================================================================================ वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता ( /समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो|===============================================धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के प्रवास दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात तब से ही हो चुकी है), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ====== >>>>>और आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===========>>>>>>>>>>मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=================मै ही था/हूँ जिसने धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी परमब्रह्म स्वरूप की ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ============================================================================================================ सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| >>>>>>>विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《 《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| ======= === =============बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>>गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है| =========================================================================================================================================================== धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा दक्षिण के किष्किन्धा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुवन रूपी गुरुकुल, भारतीय विज्ञान केंद्र बेंगलुरु (प्रयागराज (/काशी) के बाद दक्षिण स्थित द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रवास (27 अक्टूबर, 2007 से 28 अक्टूबर, 2009:शताब्दि वर्ष का दौर) के दौर के बीच मेँ ही प्रयागराज और काशी आकर और यहाँ के मन्दिर-मन्दिर (वे मन्दिर/देवस्थान/देवालय जो सम्पूर्ण संसार के मन्दिर/देवस्थान/देवालय को उर्जा/शक्ती देते हैं परन्तु जो उस समय स्वयं ही निर्मूल हो चुके थे) घूम घूम कर मेरे ही तत्कालीन अवस्था की परमब्रह्म स्वरुप उर्जा से ही 10/11 सितम्बर, 2008 को ही विश्वमानवता के मूल केन्द्र, प्रयागराज (/काशी) मेँ किया गया था (/अर्थात धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की पुनर्स्थापना मेरे द्वारा तब से ही हो चुकी है), तो अगर आप अपने स्थान पर व्यावहारिक स्तर पर ही सही किन्तु तथ्यगत सत्य हैं; और जानबूझकर या प्रतिशोधवश किसी भी व्यक्ति या समाज विशेष के प्रति कोई गुनाह नहीं किया है; तो फिर धैर्य रखियेगा और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की दृष्टि में जमीनी हकीकत स्वीकार कीजियेगा तो फिर ऐसे मे विश्वास कीजिये कि आपके साथ न्याय(/दण्ड) अवश्य होगा फिर चाहे आप तथाकथित दलित हों, तथाकथित ईसाइयत (दीनदयाल/करूणानिधि/जगततारण) हों, तथाकथित इस्लामियत (पूर्णातिपूर्ण सत्य/मुसल्लम ईमान/पूर्णातिपूर्ण ईमानदार) हों, तथाकथित पिछड़े हों या तथाकथित सवर्ण हों और भी कि इसमें कूटरचित चरित्र/दस्तावेज के प्रयोग या अतिआतुरता में किये जाने वाले कार्य या कुचक्र का कोई दीर्घकालिक लाभ आपको नहीं होगा है इतना विश्वास रखिये| ====== >>>>>और आप की जानकारी और समझदारी के लिये यह गूढ़ तथ्य कि यह अकाट्य सत्य ही है कि इस प्रयागराज (/काशी) सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|===========>>>>>>>>>>मैंने अपने को एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण (पूर्णातिपूर्ण त्याग) की सीमा के पूर्ण अन्दर रहते हुए ही एक पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, एक पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय (पूर्णातिपूर्ण बलिदान), एक पूर्णातिपूर्ण वैश्य (पूर्णातिपूर्ण तप/योग/उद्यम) और इस प्रकार एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णदीनदयाल (/ईसायत) और एक पूर्णातिपूर्ण पूर्णसत्य (मुसल्लम ईमान/इस्लामियत) अवस्था को प्राप्त किया है=== मैंने सनातन धर्म से परे जाकर कभी भी सनातन धर्म का किसी भी प्रकार कोई धार्मिक अतिक्रमण नहीं किया है और निम्न लिखित कथन उसी देवी समाज की वीरता हेतु ही उद्धृत किया जाता है तो उत्तर असुर समाज मात्र से चाहिए उसके देवियों के प्रति आचरण के बदलाव के रूप में तो फिर मै देवी समूह की वीरता से अत्यंत ही अविभूत हूँ तो देवी समाज को अपनी तरफ से अप्रत्यक्ष माध्यम से सफाई या तर्क देने की जरुरत नहीं है किन्तु वे असुर समाज का अनावश्यक बचाव न करें जिससे मानवता का अनिष्ट होने से आगे भी रोका जा सके|=================मै ही था/हूँ जिसने धर्मचक्र (सनातन धर्म समेत सभी मौलिक धर्म के लिए)/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी परमब्रह्म स्वरूप की ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं| ============================================================ वह नाव/नाविक जो सम्पूर्ण संसार का रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन, व् सतत सञ्चालन करते हुए सभी को मझधार पार कराके इस संसार की दृष्टि में रेती/बालू/जमीन पर आकर स्थिर (परोक्ष रूपेण:जबकि वास्तविक रूप में स्थिर नहीं हो) हो चुकी हो उसकी महत्ता शायद युगों-युगों से लेकर आज तक मझधार में तैरती हुई समस्त नावों/नाविकों से शायद ज्यादा होती है| =====वैश्विक मानवता रूपी दीपक <<<<<>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौर में पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता<<<<<>>>>> के प्रारंभिक दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित रूप से सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी (Blog:Vivekanand and Modern Tradition/posts on which deleted and rewritten time to time after proper analysis of its positive and negative effect on humanity) को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ========================================================================================================================== विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《 《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| ====================================================================================== वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता ( /समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| ================================== सच्चे सन्दर्भ में न कभी गौरी का त्याग हुआ, न कभी लक्ष्मी का त्याग हुआ और न कभी सरस्वती का त्याग हुआ और इस प्रकार न कभी जगदम्बा का त्याग हुआ और न कभी जानकी का त्याग हुआ और न कभी राधा का त्याग हुआ; इसका कारन यह है कि ये अनन्य और अटूट रिश्ते हैं जो हमेशा साथ में दृष्टिगत न होने पर भी बने रहते हैं और इनका भौतिक त्याग आप को कभी नजर आया भी तो उसका एकमात्र कारण अति व्यापक सामाजिक दोष रहा है तो फिर सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापर युग तथा कलयुग तक में वह कोई भी युग ले लीजिये ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा राम(/कृष्ण) द्वारा उस सामाजिक दोष निवारण में भौतिक रूप में ये देवियाँ आपको परितक्त्या दिखाई देती रही हैं| =========================================== I feel that there is no any answer remains against any type of indirect question and thus I stop writing for a long time >> >>> गुरुदेव मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ============================ सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| ================================== क्योंकि विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| ================================= जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| =================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं| ========================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||| =========================================== तो फिर "समय दर समय अपना प्रभाव दिखाना अपनी जगह है पर ऐसे लम्बे काल खण्ड के दौरान कोई एक अवस्था अपने में पूर्ण नहीं था वरन पूर्ण अवस्था यही थी"": सनातन राम/कृष्ण (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण)| ================================================================================================================================================ विश्वव्यापी विष्णु के प्रभाव और विश्वव्यापी शिव की सहनशक्ति के आधार पर जितने फुटकर सोम (चन्द्र: शुक्लपक्ष के द्वितीया का चन्द्र काली माई का प्रिय पुत्र स्वयं शिव के मस्तक का आभूषण और प्रिय मात्र) और फुटकर शुक्र (शिव के शिष्य मात्र) स्वयं ही फुटकर शिव बने थे उनको अपने वास्तविक स्वरुप को पहचानते हुए (जिसका की वे स्वाभाविक लाभ अतिरिक्त रूप से लेते रहे हैं भ्रामक शिव स्वरुप के साथ) एकल विश्वव्यापी शिव का अधिकार वापस कर अपना अपना स्वाभाविक स्थान ग्रहण करना होगा|<<<<>>>>>>>अगर विश्वमानवता के अभीष्ट हित हेतु एकल विश्वव्यापी विष्णु के प्रभाव से एकल विश्वव्यापी शिव स्वयं एकल विश्वव्यापी शिव से एकल विश्वव्यापी सदाशिव/महाशिव अर्थात सनातन राम(/कृष्ण) हो जाता है अर्थात एकल विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव अवस्था को प्राप्त होता है जो की एकल विश्वव्यापी विष्णु के प्रभाव में स्वाभाविक रूप से संभव है तो फिर एकल विश्वव्यापी विष्णु के प्रभाव में इस संसार में कुछ भी सम्भव है अभी तो केवल अनेकोनेक फुटकर सोम(चन्द्र) और फुटकर शुक्र ही फुटकर शिव बने थे मतलब इस चमत्कार के पीछे एकल विश्वव्यापी ब्रह्मा मुख्य आधार नहीं अपितु विश्वव्यापी विष्णु ही मुख्य आधार और ऊर्जा स्रोत रहे है| अतः विश्वव्यापी विष्णु के प्रभाव और विश्वव्यापी शिव की सहनशक्ति के आधार पर जितने फुटकर सोम(चन्द्र:शुक्लपक्ष के द्वितीया का चन्द्र काली माई का प्रिय पुत्र स्वयं शिव के मस्तक का आभूषण और प्रिय मात्र) और फुटकर शुक्र (शिव के शिष्य मात्र) स्वयं ही फुटकल शिव बने थे उनको अपने वास्तविक स्वरुप को पहचानते हुए (जिसका की वे स्वाभाविक लाभ अतिरिक्त रूप से लेते रहे हैं भ्रामक शिव स्वरुप के साथ) एकल विश्वव्यापी शिव का अधिकार वापस कर अपना अपना स्वाभाविक स्थान ग्रहण करना होगा ========================= 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा|=============विवेक(राशिनाम: गिरिधर)::=====बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018/31 जुलाई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| 《《《《 《 《《《 《《《 विवेक(राशिनाम: गिरिधर):<<>>>विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| ====रामापुर-बिशुनपुर एकल युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द एकल युग्मः-- सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| <<<>>> गिरिधर /गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गोवर्धन गिरिधारी/गिरिधर (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|====== ======= विवेक (राशिनाम: गिरिधर)::=====>>>>>2000/2001 में भी मेरा यही कहना था और आज भी यही कहना है जोकि अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| =========================================== जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है?>>>> मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है|<<< जिसने मुझको अन्तर्मन से चाहा और मुझसे मेरे जैसा चाहा उसे वैसा ही मिला तो इस प्रकार किसी देव/दानव, नर/किन्नर व् गन्धर्व/नाग का षडयंत्र असफल हुआ हो तो फिर उसको इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार कहाँ से मिल जाता है? ================================== हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम|| ====================================================================================================================================================== जमदग्निपुर/जौनपुर (वाराणसी/काशी मण्डल)- बलिया (आजमगढ़/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़ मण्डल)>>>>>>>>>तो इस प्रकार जिसके कुल में ही असुर समर्थक जन्म ले लेते है वे प्रत्यक्ष और परोक्ष अपने ही वंश के लोगों की शांतिपूर्ण जीवन के बाधक हो जाते हैं>>>>>>>>>>>>भृगु ऋषि (ब्राह्मणत्व गुण त्याग में सर्वश्रेष्ठ सप्तर्षि और विष्णु के अनन्य भक्त) के कुल भृगुवंश में उनके भौतिक पुत्र जमदग्नि को ही भृगु क्षेत्र बलिया में स्वयं भृगुवंशी असुर राज बलि (वामन अवतार के बाद विष्णु भक्त) के वंसज और शुक्राचार्य (शिव शिष्य व् असुरों का गुरु) के आतप से रहने को नहीं मिला और वे भृगु क्षेत्र बलिया का त्यागकर जौनपुर/जमदग्निपुर को अपना क्षेत्र बनाये और यहाँ भी असुरों के षड़यंत्र के तहत सहस्रबाहु जैसे राजा से कामधेनु पुत्री नंदिनी हेतु दुश्मनी करा दी जाती है और यहाँ भी उनको आराम नहीं मिला और उसकी परिणति में उनका वध हो गया| और आगे पिता की मृत्यु के प्रतिशोध के कारन जमदग्नि पुत्र परशुराम (अस्त्र-शस्त्र की दृष्टि से शिव शिष्य) पर भृगु ऋषि ने जमदग्निपुर में प्रवेश पर आजीवन रोक लगा दी और वे केरल को अपना मुख्य कार्यक्षेत्र बनाये और दक्षिण के क्षेत्र होते हुए महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और आगे हिमालयी क्षेत्र उत्तरांचल होते हुए आसाम तक अपने गुरुकुल चलाये और प्रतिशोध की ज्वाला में जलते रहे और अंत में अपने शास्त्रीय गुरु कश्यप के कहने पर ओडिसा-तेलगु क्षेत्र स्थित महेंद्र पर्वत/गिरी पर शान्ति हेतु सदैव चले गए | तो इस प्रकार जिसके कुल में ही असुर समर्थक जन्म ले लेते है वे प्रत्यक्ष और परोक्ष अपने ही वंश के लोगों की शांतिपूर्ण जीवन के बाधक हो जाते हैं| ====================================================================================================================================================== कश्यप/कण्व (सप्तर्षि में सर्वश्रेष्ठ प्रशासक), गौतम/वत्स (सप्तर्षि में सर्वश्रेष्ठ मानवतावादी/न्यायवादी), वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु (सप्तर्षि में सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी/गुरु मतलब ऋषियों में गुरु बृहस्पति), आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग (सप्तर्षि में सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक/वैज्ञानिक), भृगु/जमदग्नि (सप्तर्षि में ब्राह्मणत्व गुण त्याग में सर्वश्रेष्ठ), अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय (सप्तर्षि में सर्वश्रेष्ठ तेजोमयी), कौशिक/विश्वामित्र/विश्वरथ(सप्तर्षि में क्षत्रिय गुण में सर्वश्रेष्ठ/युद्धकौशल में निपुण) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज (सभी सातों ऋषि अर्थात सप्तर्षि के सभी गुणों के साम्यगुण युक्त)| =========================================================================================================================================================== जगत जननी जानकी /सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी) की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है <<<<< > >>>> सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| =========================================================================================================================================================== जो स्वयं प्रलयंकर कहलाते हैं ऐसे शिव को अपने ही द्वारा भस्मासुर को दिए गए वरदान की रक्षा हेतु स्वयं भस्मासुर से ही बचने हेतु गुफा में शरण लेना पड़ता है (बाकी कि पार्वती जी के प्रति आशक्त हो शिव को समाप्त करने का असंभव प्रयत्न करने वाले भष्मासुर का काम तमाम विष्णु ने अपने मोहिनी स्वरुप से स्वयं किये ही)| <<<<>>>>>और तो और कछुआ/कच्छप भी सन्कट के दिनों में अपने कवच के अन्दर छुप जाता है अतएव कम से कम उससे भी हमें सीख लेनी चाहिए| ================================================================================================================================================= थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण इस संसार में सब लोग बन लीजिये (यही मेरा प्रयास था और है) जिससे की किसी एक को ही मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, व वर्धन-संवर्धन और सुचारु रूप से चालन-संचालन में पूर्णातिपूर्ण रूप से सनातन राम(/कृष्ण) होने का दायित्व न निभाना पड़े| =====>>>>>भारद्वाज (आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था उनमें दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर) के पिता कश्थप) तथा भृगु के पौत्र (भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि/पर्वत पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे) और आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की|=============जिस समय पूरी पृथ्वी ही जल मग्न थीं उस समय विश्व व्यापक जलप्रवाह रोक कर केदारेश्वर (आदि आदि-त्रिदेव/आदि शिव: जिनको महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र कहते है मतलब पाँचों मूल तत्वों के देव के नेतृत्वकर्ता इन्द्र ही नही उनके स्वामी महा-इन्द्र अर्थात महेन्द्र) ने मानवीय समय प्रारम्भ होने के पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले काशी में कीचड़ तैयार कर दिया और उसके बीच से ही उनकी उत्पत्ति हुई। तो स्पष्ट सी बात है कि पृथ्वी पर काशी ही एक मात्र वह स्थान है जहाँ पर इस विश्व के प्रथम नागरिक शिव ने अपनी शक्ति(सती:पारवती) के साथ रहने योग्य इसे पृथ्वी का प्रथम स्थल बनाया | प्रयागराज में ऋषिकाल या मानवीय समय की प्रथम नीव कहें तो ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु तथा शिव द्वारा पूरित प्रकृष्टा या प्राकट्य यज्ञ से ब्रह्मा के सातों मानस पुत्र (सप्तर्षि) कश्यप/कण्व (मारीच:आदित्य), गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) प्रकट हुए (और सातों सप्तर्षि के साथ सातों सप्तर्षि के ही अंश से काशी में आविर्भवित/प्रकट होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज ऋषि के साथ अष्टक (7+1=8) ऋषि प्रकट हुए)|============= और============== केदारेश्वर शिव ने इस ऋषिकाल प्रारम्भ होने से पहले तक शक्ति (सती: पार्वती) के साथ इसी काशी मे रहे और जैसे ही प्रयागराज मे ऋषि संस्कृति ने जन्म लेकर मानव समय का प्रारम्भ किया वे हिमालय पर्वत को निवास स्थल बना लिए और जिसमे कश्यप ऋषि जो शिव के शाढ़ू भाइ भी हुये (पिता, मारीच:आदित्य (सबसे जेष्ठ सप्तर्षि:ब्रह्मर्षि) द्वारा ब्रह्मा को दिये वादे को निभाने हेतु सती कि सभी अन्य 13 बहनों का विवाह कश्यप से हीं हुआ था), जिन्होंने हिमालय का पश्चिमोत्तर शिरे की सत्ता अपने हाँथ लिया और कुछ समय वहां बिताने के बाद शिव हिमालय के पूर्वोत्तर सिरे को अपना आशियाना बनाया| =======भारद्वाज (आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग) के गुरु बाल्मीकि के परदादा कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (वाल्मीकि के पिता वरुण (जिन्होंने यौवनावस्था में ही बाल्मीकि का त्याग किया था उनमें दुष्प्रवृत्ति आ जाने पर) के पिता कश्थप) तथा भृगु के पौत्र (भृगु के पुत्र जमदग्नि के पुत्र परशुराम) परशुराम के शास्त्र गुरु कहे जाने वाले कश्यप (/कण्व/मारीच) ऋषि (अस्त्र-शस्त्र गुरु भगवान शिव ही थे पर कश्यप रिषि को ही जीती हुई समस्त जमीन दान कर उनके कहने पर ही अन्तिम में महेन्द्रगिरि/पर्वत पर सदा के लिए शान्ति हेतु गए थे) और आज तक के दो मात्र विष्णु के परमब्रह्म अवतार राम (रघुवंश/ईक्षाकुवंश/सूर्यवंश/कश्यप गोत्र) और कृष्ण (वृष्णि वंश/यदुवंश/कश्यप गोत्र) के पिता होने के साथ अधिकतम विष्णु अवतार के पिता होने के गौरव के साथ चंद्रदेव (चन्द्रवंश), सूर्यदेव (सूर्यवंश) तथा सावर्ण ऋषि ( दोनो के भ्राता पर सदैव ब्राह्मणोचित रहने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ) और पांचो मूल तत्व के देवताओं पवनदेव, वरूणदेव, अंतरिक्षदेव, भूदेव, व अग्निदेव समेत विश्वकर्मा तथा सूर्य सारथी अरुण, विष्णु वाहन गरुण समेत समस्त देवताओं के पिता और इसके साथ साथ नर, नाग, गन्धर्व व् किन्नर वंश समेत समस्त देव के जन्म दाता को राजर्षि कहने की जरूरत नहीं होती है वरन वह ब्रह्मर्षि होते हुए भी जीवन के हर आयाम जीते हुए सदैव् कुशल प्रशासक रहे हैं तथा ब्रह्मा के वरदान स्वरूपी सृष्टि के सञ्चालन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं तो ऐसी क्षमता है कश्यप रिषि की|=========जहां तक जल प्रलय की बात है स्वयं समुद्रदेव (सातों समुद्रों के स्वामी/वरूणदेव) लक्ष्मी जी के पिता मतलब विष्णु के ससुर ही थे और सती/पारवती जी ब्रह्मा की जी की पौत्री (दक्ष प्रजापति जो ब्रह्मा और सरस्वती के एक मात्र भौतिक पुत्र थे की पुत्री) और इस प्रकार त्रिदेवों/त्रिदेवियों का सीधा सम्बन्ध होने की वजह से यह सर्वोपरि है और तीर्थराज/प्रयागराज (/काशी) या त्रिवेणी कहलाता है। ================राम वह है जो यथोचित रूप से शिव की तरह सांसारिक पापों को जला दे (तो पूर्णातिपूर्ण शिव को समाज सहन कर पायेगा क्या?) और विष्णु की तरह सांसारिक पापों का नाश कर दे तथा कृष्ण वह है जो सांसारिक कलुष का नाश कर दे तो ऐसी ही अवस्था का निर्वहन करते हुए 29 मई, 2006 के बाद से ही अपने सामाजिक/आर्थिक व् मानसिक तथा प्रोफेशनल/पेशागत हानि को सहते हुए और अपने ही रिस्क पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी लेखनी के माध्यम से प्रयासरत रहा हूँ कि============>>>>>>थोड़ा-थोड़ा राम या थोड़ा-थोड़ा कृष्ण इस संसार में सब लोग बन लीजिये (यही मेरा प्रयास था और है) जिससे की किसी एक को ही मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण और सुचारु रूप से चालन-संचालन में पूर्णातिपूर्ण रूप से सनातन राम(/कृष्ण)/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण ) अवस्था में <<<<>>>"25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|" <<<<>>>> के दौर की तरह इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में पुनः किसी को भी पूर्णातिपूर्ण सनातन राम(/कृष्ण)/विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सदाशिव/महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति )/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव अवस्था में पुनः सहस्राब्दियों तक न आना पड़े| ============================================================================================================================================================ रावण के गुमनाम रहने वाले भाई अर्थात अहिरावन (पातालपुरी/ वर्तमान में तथाकथित रूप से विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के तत्कालीन राजा) और हनुमान/अम्बवादेकर/ अम्बवाडेकर/ शंंकर सुमन/ पवनपुत्र/ आंजनेय/ केशरी नन्दन के पुत्र मकरध्वज (अहिरावण के बाद राम और लक्ष्मण द्वारा पातालपुरी राज्य/देश का अधिपत बनाये जाने वाले) का प्रसंग जो कि कहता है की भारतवर्ष की तरह पातालपुरी (वर्तमान में तथाकथित रूप से विश्व के सबसे शक्तिशाली देश) में भी सुर और असुर के बीच संघर्ष जारी रहता है:>>>>>>>>>> राम और रावण युद्ध में राम के द्वारा किये जाने लक्ष्य के प्रति अचूक बाणोँ के बौछार से रावण की सेना में बौखलाहट को देखकर रावण के गुमनाम रहने वाले भाई अर्थात अहिरावन (पातालपुरी/वर्तमान में तथाकथित रूप से विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के तत्कालीन राजा) द्वारा रातों रात सोते हुए राम और लक्ष्मण का अपहरण कर पातालपुरी ले जाने पर उसी रातों रात पातालपुरी जाकर वहाँ के राजा अहिरावन को मारकर जब राम और लक्ष्मण को लेेेकर हनुमान/अम्बवादेकर/अम्बवाडेकर/आंजनेय/केशरी नन्दन/शंंकर सुमन/पवनपुत्र आ रहे थे तो राम और लक्ष्मण ने हनुमान पुत्र मकरध्वज (तात्कालिक अहिरावन का द्वारपाल) का वहाँ तात्कालिक रूप से राज्याभिषेक (धार्मिक नियमानुसार शासन करने के प्रति समर्पित रहकर शासन करने का निर्देश देते हुए) किया था जिसने पातालपुरी के राजा अहिरावन के पास तक पहुँचने और उसे मारने की प्रथम शर्त में हनुमान द्वारा अपने पंचमुखी स्वरूप से एक साथ पाँच के पांचों दीपक बुझा देने पर अपने पिता के रूप में हनुमान की पहचान की थी जैसा कि उसकी माँ सूर्य पुत्री सुवर्चला ने भविष्यवाणी की थी ( और सुवर्चला से हनुमान का विवाह हनुमान के गुरू रहे सूर्यदेव ने गुरुदक्षिणा के स्वरूप स्वीकारने के फलस्वरूप था तो फिर हनुमान भी जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी हुए और सुवर्चला ने ही अप्रत्यक्ष हनुमान पुत्र मकरध्वज को जन्म देकर पातालपुरी में छोड़ा था और उसको अपने पिता के ऐसे स्वरुप को समझाते हुए उनसे ऐसे ही रूप में मिलने की भविष्यवाणी की थी| ============================================================================================== जगत जननी जानकी /सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी) की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है <<<<< > >>>> सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ======================================= जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं >>>>>>तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है| आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह कार्य से विरत करवाकर|>>>>>><<<<<<<<< 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ================================= जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी| ==================================== 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैं>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=====सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) ही हैैं>>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>>रामापुर (223225)-बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| ==================================== मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:<<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)>>>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|>>>>>>>>>>>>>> > विवेक (सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति/सदाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण//सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/आदिदेव/पुराण पुरुष/सनातन राम(/कृष्ण)/सनातन राम| विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है =================================================================================================================== क्योंकि विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 कोपूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा| ==================================== सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| ==================================== जगत जननी जानकी /सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी) की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है <<<<< > >>>> सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है| ==================================== सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं मतलब राम ही पूर्णतः विवेक हैं| <<< < << <<<<>>>>>>>>वह जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वैश्विक मानवता (/समाज) के चालक-संचालक के रूप में भी रहा हो, वैश्विक मानवता (/समाज) के अस्तित्व में बने रहने हेतु आवश्यक मूलभूत कार्य में भी सामिल रहा हो और साथ ही साथ वैश्विक मानवता (/समाज) के रक्षण-संरक्षण, पोषण-संपोषण व वर्धन-संवर्धन में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदार रहा हो| =========================================== सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण) ======================================= मौलिक व् नैसर्गिक अधिकार मात्र के तहत सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान समान हो सकते हैं पर सभी व्यक्ति, स्थान व् संस्थान अपने अपने महत्त्व के तौर पर बराबर नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका महत्त्व उनकी गरिमा (गूढ़ जड़त्व मतलब स्थितिज ऊर्जा) समाहित किये हुए रहता है और फिर उनको बराबर करना एक विकल्प की तलाश मात्र होती है जिसमे की आप अपने संशाधन/गतिज ऊर्जा से उसकी स्थितिज ऊर्जा मतलब जड़त्व में वृद्धि कर किसी दूसरे के बराबर लाने का प्रयास मात्र कर सकते हैं उनको सही अर्थों में बराबर नहीं कर सकते है:---------मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाने का प्रभाव:------मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) से दूर जाकर द्वितीय भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र, किष्किंधा सांस्कृतिक क्षेत्र स्थित मधुबन रुपी गुरुकुल भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में उसके शताब्दी वर्ष के दौरान (2007-2009) अपने हेतु अद्वितीय कार्य निपटाने के दौरान ननिहाल (बिशुनपुर-223103) क्षेत्र के समस्त जाति/धर्म के प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों और इसी प्रकार पैतृक क्षेत्र (रामापुर-223225) के ही ऐसे प्रत्यक्ष व् परोक्ष दोनों रूप से ज्ञात लोगों तथैव समस्त गुरुकुल के ज्ञात गुरुजन व् मित्रजन को स्मरण मात्र कर उनसे ऊर्जा लिया करता था| =========================================== Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र/ऋषि:विष्णु गोत्र/ऋषि है):----अब कई महीनों बाद धार्मिक/सामाजिक/आध्यात्मिक/दार्शनिक पोस्ट विशेष होगी|===========मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालयव् ----प्रयागराज  विश्वविद्यालय)   की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (बिहारी=कृष्ण=मुरलीमनोहर) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) कहे जाते हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज  विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा)  वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225  (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में  रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव)  के निर्देश पर और  बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले पहले 11 सितम्बर, 2001 के ऐसे काल खंड से फरवरी, 2003 तक इस प्रयागराज (/काशी) में दांव पर लगकर समाधिष्ठित/समर्पित/संकल्पित/ब्रह्मलीन रह अपने निमित्त उचित स्तर का कार्य सम्पादित करने के बाद जब मै आगे और नहीं रुकना चाह रहा था और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 कोपूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|======================आज तक  जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे|=====================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का  अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे  कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार  नहीं कर सकता है|  आगे तो अन्य नाविकों की बारी थी जिनको अभी ये परीक्षा उत्तीर्ण करनी थी और जिनको ही यह जिम्मेदारी सौपी गयी थी मुझे 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) के पूर्व की तरह  कार्य से विरत करवाकर|========= 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:---------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी|====================================बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया|  अतएव पूर्णातिपूर्ण सत्य/सत्यमेव जयते अनुसार आभासीय रूप से ही सही उनको वंश विहीन किया जाना ही उनकी सजा है|  और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108  मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|  ===== मूल सारंगधर की मूल अवस्था अर्थात विष्णु की परमब्रह्म अवस्था से सीधे परमब्रह्म राम न होकर पहले परमब्रह्म कृष्ण ऐसे नहीं होना पड़ता (सामाजिक कलुष दूर करने हेतु अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए समयानुसार जिसका मानवता हेतु समर्पित कार्य प्रत्यक्ष तौर पर समय विशेष के लिए नियम से कुछ अलग ही दिखाई दे:::11 सितम्बर, 2001 से 29(/15-29) मई, 2006:::::अभीष्ट लक्ष्य की पूर्णातिपूर्ण प्राप्ति::::67(पारिवारिक सदस्य)/11(परिवार)::जिसमें 7 सदस्यीय एक परिवार स्वयं केदारेश्वर/आदिशिव का है) बल्कि असुर कुल का जबाब देने हेतु ही होना पड़ता है::--->>हमारे लिए संस्कृति व् संस्कार सदा से सर्वोपरि रहे हैं व उसके संरक्षण का अधिकार भी हमारे पास सन्निहित है :==दूसरों पर सामाजिक और संवैधानिक नियम के पालन हेतु उंगली उठाने वालों और जिन पर उंगली उठाई जाती है उनके लिए भी की हिन्दू शास्त्रीय विवाह (धर्म पति-पत्नी) अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से विवाह की अपनी भी शर्त होती है अन्यथा समाज को धता बताकर न्यायालय व अन्य विवाह पद्धति से आप पति-पत्नी हो लीजिये जिसमें आप धर्म पति-पत्नी कहलाने के अधिकारी हो नहीं सकते: >>सनातन हिन्दू धर्म में विवाह पद्धति के समय हिन्दू धर्म के अधिकतम देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और उनको साक्षी माना जाता है तो जो व्यक्ति या उसका समाज विवाह के पूर्व से लेकर विवाह के समय और विवाह के बाद भी ऐसे देवी-देवताओं में आस्था, विश्वास और श्रद्धा नहीं रखता है उसके साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य ही नहीं किसी भी सनातन हिन्दू की लड़की की शादी यदि किसी लालच, दबाव वस या अन्य किसी प्रकार से भयातुर होते हुए या स्वेक्षा से भी लड़की के पक्ष के लोग केवल वाह्य आडम्बर हेतु दिखावा स्वरुप हिन्दू शास्त्रीय विवाह अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से अगर करते हैं तो वह हिन्दू शास्त्रीय विवाह अर्थात वर के पाँव पूजन विधि से किया गया ऐसा विवाह हर प्रकार से अमान्य है|==25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान प्रयागराज (/काशी) केंद्रित रहते हुए मूल सारंगधर की मूल अवस्था के पाँच के पाँचों आयाम में से एक भी आयाम नहीं छूटा था| ======================================================================================================================================================= इस दुनिया में कोई सनातन धर्मी अगर इस सनातन धर्म में पुनः वापस आता है तो उसे कश्यप गोत्र अपनी शरण देता है; और कोई सनातन धर्म के आपसी संघर्ष की मुख्य धारा से अलग होकर भी सनातन धर्म की छत्रछाया में ही रहना चाहता है तो उसे गौतम गोत्र ही शरण देता है तो फिर मानवीय आधार पर आप इन दोनों की शरण में आते हैं तो फिर अनुशासित होकर मानवता को नियन्त्रिय रखने वाली इनकी समस्या भी हल करने में अपना सहयोग कीजिये: रामापुर-223225, आजमगढ़ (सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़) और बिशुनपुर-223103, जौनपुर (/जमदग्निपुर)==>>> मुझ सारंगधर कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे के गोत्र (गौतम (व्याशी-गौतम) से कश्यप (त्रिफला कश्यप)) के विपरीत गोत्र क्रम में समगोत्रीय व् समतुल्य (कश्यप से गौतम (व्याशी-गौतम)) रामानन्द कुलीन मूल भूमि के वाशिंदे मामा जी (पालक और गुरु जी) व प्रामाणिक रूप से वृहस्पतिवार को ही अवतरित श्री श्रीधर(विष्णु): एक कश्यप गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा गोरखपुर(/गोरक्षपुर) के एक गौतम (व्याशी-गौतम) मिश्र ब्राह्मण को दान में दिया गया 300 बीघे का गाँव बिशुनपुर-223103, जौनपुर(/जमदग्निपुर) और दूसरा एक इस्लाम अनुयायी गौतम गोत्रीय क्षत्रिय द्वारा बस्ती (/अवध) के एक कश्यप (त्रिफला-कश्यप) गोत्रीय पाण्ड़ेय ब्राह्मण को दिया गया 500 बीघे का गाँव, रामापुर-223225 (साथ में 5 गाँव और दान में मिले), आजमगढ़(/सनातन आर्यक्षेत्र/आर्यमगढ़)| ======================================================================================================================================================== हमारे हर कर्मों का प्रतिफल यही होना चाहिए की आम नागरिक को अनुभूति हो की यह संसार स्वाभाविक रूप से और पूर्णातिपूर्ण रूप से यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से सुचारू रूप से चल रहा है| तो ऐसा तभी हो सकता है जब संसार को चलाने वाले कार्यकर्ता सीमित, समर्पित तथा सुयोग्य और आम नागरिक बहुत ज्यादा होंगे अन्यथा कार्यकर्ता बहुतायत में तो यह अनुभूति आम नागरिक को आनी ही नहीं है| ==========================================================================================================================================================|====================================================||
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मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ,---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?

मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत  किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|























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Vivekanand and Modern Tradition ब्लॉग पर 109वीं पोस्ट (109वां और सम्पूर्ण ऋषियों/गोत्रों की ऊर्जा का स्रोत गोत्र (ऋषि):विष्णु गोत्र (/ऋषि) है):----मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण) ===11 सितम्बर, 2001 को जब तक याद करोगे कम से कम तब तक मुझे याद करना पडेगा (मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्वमानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र, प्रयागराज (काशी) में संकल्प/समधिष्ठता/ब्रह्मलीनता/समर्पण मेरा ही किया गया था और इस सबके बावजूद आज भी मैं पूर्णातिपूर्ण सफलता के साथ साकार/सशरीर आप सबके सन्मुख सक्रीय अवस्था में मौजूद हूँ); और इसीलिए कहता हूँ की आज तक का सबसे भव्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिव (2018/2008(/2009)), राम(2019/2010), और कृष्ण (2014(/2013)//2006) मन्दिर आपका बन गया (/बन रहा हैं) न, तो फिर क्या यह बिना शिवलला, रामलला और कृष्णलला की उपस्थिति के अर्थात क्या बिना देवियों के योगदान के? ये मन्दिर कम से कम एक सहस्राब्दी तक विश्व के सभी देवालयों/मंदिरो/देवस्थानों को विश्व-मानवता के सुचारू रूप से रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन और सतत रूप से चालन-सञ्चालन हेतु अनवरत अपनी ऊर्जा देते रहेंगे, तो फिर याद हो की तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं का कोई किसी प्रकार सम्बंधित रहा हो पर मानवता के आर या पार की अवस्था में स्थानीय, राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर पर सहस्राब्दी परिवर्तन के परिदृश्य/आलोक में पूर्णातिपूर्ण रूप से इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र अर्थात जड़त्व केंद्र प्रयागराज (/काशी) में इस हेतु सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा को ऐसे दो दसक के दौर में किसी नेता, अभिनेता, वैज्ञानिक, विद्वतजन व् उद्यमी नहीं अपितु मैंने ही धारण किया था और आज भी विश्व एक गाँव व्यवस्था स्थापित हो जाने और अपने हेतु अभीष्ट लक्ष्य पूर्णातिपूर्ण स्थापित हो जाने के बाद भी मैं ही धारण किये हुए हूँ|=========29 (/15-29) मई, 2006// 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018):मैं अपनी संस्था में अकेले नहीं आया वरन 67(11) सदस्यों/परिवारों के साथ ऐतिहासिक रूप से आया जिसके अंतिम परिणामी में मेरी ही अहम भूमिका रही है फिर भी तथाकथित रूप से धर्मराज के पुत्र यह मानने को तैयार नहीं थे की मैंने अपने संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य को 29 (/15-29) मई, 2006 ही पा लिया था जब तक की इस संसार के सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को यह लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया| ===========इस विश्व-मानवता के इतिहास में विष्णु के समस्त अवतार में राम और कृष्ण ही दो मात्र ऐसे विष्णु अवतार हुए हैं जो अपने जीवन में शरीर परमब्रह्म स्वरुप को अर्थात परमब्रह्म परमेश्वर स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात त्रिशक्ति (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और शिव अवस्था से युक्त स्वरुप को प्राप्त हुए हैं) सम्पन्न स्वरुप को प्राप्त हुए हैं अर्थात पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण, पूर्णातिपूर्ण क्षत्रिय व् पूर्णातिपूर्ण वैश्य होते हुए पूर्णातिपूर्ण ब्राह्मण अवस्था को प्राप्त हुए है| ============मूल सारंगधर (केंद्रीय विष्णु) की मूल अवस्था/ विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/परमब्रह्म विष्णु / सदाशिव /महाशिव/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/ सनातन राम(/कृष्ण)"" के आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव; विष्णु और ब्रह्मा)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा (जिसमे 9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की एकल स्वरुप) तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए एकल त्रिशक्ति, महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल स्वरुप) और फिर जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप अर्थात एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी की एकल छाया स्वरुप) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार मूल सारन्गधर के मूल अवस्था के पाँच के पान्चों आयाम (राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा) का सांगत शक्तियों समेत आविर्भाव होता है जिससे मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|================मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में तो इस के सम्बन्ध में ज्ञात हो कि सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल (1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008) के दौर के प्रारंभिक दिनों में बात गुरुकुलों (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय----व----प्रयागराज विश्वविद्यालय) की सीमा तक ही सीमित नहीं रह गई थी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जहाँ के रामकृष्ण छात्रावास में होने वाली चर्चाओं में मै तत्कालीन तीन के तीनों वैश्विक कृष्ण (मुरलीमनोहर=बिहारी=लालकृष्ण) जो तत्कालीन त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु व् महेश) रहे हैं उनके नाम की माला जपा करता था पर नहीं पता था की त्रिशक्ति की सम्पूर्ण ऊर्जा मतलब इस विश्वमानवता की सम्पूर्ण ऊर्जा को धारण करने वाले समुचित पात्र न मिलने पर मुझे ही कभी लम्बे कालखण्ड हेतु यह उर्जा इस विश्व-मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) सम्प्रति प्रयागराज विश्वविद्यालयमें ही केन्द्रित रहते हुए धारण करना पडेगा) वरन यह बात रामानन्द कुल बिशुनपुर-223225 और सारंगधर कुल रामापुर-223225 (+ पाँच संकुलीन गाँव) तक पँहुच चुकी थी मतलब विश्व-मानवता के अस्तित्व तक बात आ चुकी थी जिस सम्बन्ध में मेरी प्रत्यक्ष उपस्थिति गोवा में नव संस्थापनाधीन(/ निर्माणाधीन) वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले सस्थान में न होकर विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में जरूरी हो गयी थी तो फिर तत्कालीन वैश्विक परिवर्तन के परिप्रेक्ष में रामापुर-223225 (प्रेमचन्द/सोमेश्वर/शिव) के निर्देश पर और बिशुनपुर-223225 (श्रीधर/विष्णु) के विशेष आग्रह पर गुरुदेव (जोशी/तत्कालीन तीन वैश्विक कृष्ण में से एक और त्रिमूर्ति में ब्रह्मा की भूमिका निभाने वाले) के प्रत्यक्ष रूप से संस्था और परोक्ष रूप से मानवता के विशेष प्रयोजन के कार्य हेतु विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में "25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान पहले 11 सितम्बर, 2001 को पूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो और उसके बाद पुनः अपना निर्णय और जो जोखिम था उसे सुना देने के बाद 7 फरवरी, 2003 को पूर्णातिपूर्ण रूप से संकल्पित/समाधिष्ट/समर्पित/ब्रह्मलीन हो 29 मई, 2006 को पूर्ण सफलता पाने के 12 वर्ष बाद 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) को इस संसार के सम्पूर्ण यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण सफलता के बाद इस तथ्य के लिए कोई प्रमाणपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी कि इस विश्वमानवता के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ व् उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला न कभी था, न है और न होगा और जब भी कभी ऐसा कोई था या होगा वह मेरा ही प्रतिरूप होगा| और 2000/2001 में भी मेरा यही कहना था जो की अब तक पूर्णातिपूर्ण रूप से प्रमाणित हो चुका है और अब आगे इसमें कोई टीका और टिप्पणी करना उद्दंडता ही समझा जाएगा|================== ===============मेरी ही पूर्णातिपूर्ण ब्रह्मलीनता/संकल्प/समाधिष्टता/समर्पण हुआ था इस मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:-------------25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998/1997 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम सनातन राम/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति) सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम ही हैं)----------------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|--------------------बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्म:>>>>>रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))| NOTE:----विवेक (राशिनाम गिरिधर)--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|विवाह पूर्व 33 वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी तथा आचार-विचार-आहार-विहार-संस्कृति-संस्कार से आजीवन शाकाहारी और बचपन से लेकर आज तक किसी भी आम और ख़ास नशे से दूर रहने वाला|===============जनमानस के अन्दर हो या प्राणप्रतिष्ठा युक्त मन्दिर/देवालय/देवस्थान दोनों सन्दर्भ मतलब जगतसत्य और ब्रह्मसत्य दोनों सन्दर्भ हेतु यह प्रश्न है की क्या यह संसार ईश्वर अर्थात राम(/कृष्ण) या त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव के बिना चलता है? ===== इसका एक ही उत्तर है की नहीं ---------------तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है==========मैं 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 के दौरान सारंगधर (मुख्य आयाम राम) के पाँच के पाँचों आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा को इस विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज(/काशी) में रहकर उत्तीर्ण कर चुका हूँ जिसमें सहस्राब्दियों तक का अद्वितीय मिशाल प्रस्तुत किया गया जिससे कोई धर्म/पंथ/जाति/मजहब इन्कार नहीं कर सकता है|=====----------राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|=============फरवरी, 2017: इस दुनिया में आप के योग्य कोई पद शेष नहीं बचा है सिवा उसके जिस पर आप आसीन है और जो अपने जीवन में विश्वव्यापक रूप से अपनी प्रमाणिकता सिद्ध कर चुका हो उसे कार्यपालिका में स्थान नहीं लेना चाहिए अपितु उसे सार्वजानिक जीवन से व्यक्तिगत जीवन मे एक स्थापित व्यक्तित्व के रूप का ही आचरणरत जीवन एक उचित व शेष मात्र जीवन होता है अप्रत्यक्ष रूप से यह विचार मेरे संदर्भों में फरवरी, 2017 में अपने जीवन को पूर्णतया समर्पित करने वाले एक विशालकाय संगठन के एक सिद्ध संत के थे फिर भी मुुझे इस संसार के सभी यम- नियम -अधिनियम और विधि- विधान- संविधान से युक्त 25/05/2018 की संस्थागत व मानवतागत पूर्णातिपूर्ण सफलता का इन्तजार था जो पूर्ण हुआ जिसकी उलटी गिनती 24-30/11/2016 और आगे चलकर फिर 21/09/2017 से ही प्रारंभ हो चुकी थी| (जबकि इस दुनिया की चमत्कारिकता को बनाये रखने और एक उत्प्रेरक और ऊर्जा स्रोत के रूप में मै भी भीड़ का एक हिस्सा बना हुआ था न की किसी पद की चाहत में फिर भी ऐसे निर्देश का पालन मेरा कर्तव्य और उद्देश्य भी था फिर भी कुछ समय और आगे तक भीड़ का हिस्सा हो साथ चलता रहा और इस प्रकार 2012 से 2018 आते आते आप लोगों को उचित गति दे अलग हुआ फिर भी भीड़ का हिस्सा न होते हुए भी आप के सकारात्मक कार्य हेतु अब भी ऊर्जा स्रोत हूँ| NOTE:-----25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) के दौरान:======25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति| =======इसी संदर्भ में कहा था की इस बीस वर्षों/दो दसक में अद्वितीय कार्य हुए हैं तो कम से कम एक सहस्राब्दी या उससे अधिक समय हेतु विश्वमानवता के सञ्चालन हेतु आपके लिए ऊर्जा स्रोत है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है और यह भी कि क्या बिना शिवलला और रामलला (/कृष्णलला) की उपस्थिति के आपका शिव, राम(/कृष्ण) मन्दिर बन गया और इतना ही नहीं ब्रह्मा और विष्णु की भी उपस्थिति न रही हो यह भी संभव नहीं अर्थात उनकी भी उपस्थिति अवश्य रही चाहे उनका मन्दिर दृश्यगत रूप में भले ही न बना हो| अर्थात मूल सारंगधर (परमब्रह्म अवस्था वाले विष्णु) के पाँचों मूल आयाम राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उपस्थिति रही है अर्थात इन पाँचों के माध्यम से इस विश्व मानवता के सम्पूर्ण इतिहास के सभी विभूतियों की उपस्थिति इस दौरान रही है| ==================================== बिशुनपुर (223103)-रामापुर (223225)-एकल युग्म तद्नुसार रामानन्द-सारन्गधर-एकल युग्मः-------गुरुपक्ष(ऋषिपक्ष)/देवपक्ष/मातृपक्ष व् इसके साथ पितृपक्ष को विदित हो कि यह मानवता का मूल केंद्र, प्रयागराज(/काशी) इस प्रकार से सम्पूर्ण विश्वमानवता गवाह है कि पूर्णातिपूर्ण रूप में सच्चे अर्थों में मेरा प्रतिद्वन्दी या प्रतिरूप कम से कम 11 सितम्बर, 2001 (या 7 फरवरी, 2003 या 29 मई, 2006 या 10/11 सितम्बर, 2008 या 25 मई, 2018) के बाद जन्म लेने वाला ही हो सकता है; वैसे तो उसको वास्तविक सन्दर्भ में सहस्राब्दियों बाद ही जन्म लेने की जरूरत पड़ेगी|===============आसुरि गोत्र जब जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा और उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी को स्वाभाविक जीवनगत रूप में नियंत्रित नहीं कर सकता तो फिर उनपर अपना आधिपत्य क्यों जताया| और भी आगे से संसार के हर बड़े से बड़े वैश्विक सन्गठन व संस्था/संस्थान यह ध्यान दें कि उनकी आतंरिक कमी का लाभ आसुरी गोत्र के लोग न लेने पायें और इस मानवता के सम्पूर्ण 108 मानक गोत्र की संतान एक समान रूप से वस्तु स्थिति से अवगत हों|

किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवर...