मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ, तो फिर 25 मई, 2018 को प्रयागराज विश्विद्यालय, प्रयागराज में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र की स्थापना सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हो चुका है| तो फिर केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र समेत सभी नवोदित 11 केंद्र/विभाग (मेरे सशरीर परमब्रह्म, कृष्ण स्वरुप से 16-29 मई, 2006 को 67 जीवन ज्योति/जीवन का आधार/स्थाई शिक्षक पद प्राप्त किये हुए ) में तो कम से कम मेरे ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ और उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाले का निर्धारण जरूरी था क्या?---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?
The Shrimad Bhagvat Geeta is the Holy Book, that is natural/scientifically truthful and useful for the people of Hindu religion as well as for all other religions. The Shrimad Bhagvat Geeta is the preaches of the Lord Krishna in Mahabharat which compiled by Rishi Vyas/Grand son of Rishi Vashishtha. Vivekanand made Bhagvat Geeta base for his philosophical thinking by which he changed the view of the world about the philosophy of the Hinduism.
Wednesday, August 26, 2020
विवेक(गिरिधर)/महाशिव:सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)==---विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [ विवेक((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)] ====---विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा धारण अवस्था) किसकी रही है इस विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक::: 1998 से - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 तक :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौरान व् अद्यतन भी विश्वमानवता की सर्वोच्च ऊर्जा धारण शक्ति रखे हुए है सक्रिय रूप में रहते हुए भी|======---------गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण)::: गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|
विवेक(गिरिधर)/महाशिव:सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)==---विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [ विवेक((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)] ====---विष्णु की परमब्रह्म अवस्था (सम्पूर्ण विश्वमानवता की ऊर्जा धारण अवस्था) किसकी रही है इस विश्वमानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में 25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) तक::: 1998 से - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018 तक :सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल के दौरान व् अद्यतन भी विश्वमानवता की सर्वोच्च ऊर्जा धारण शक्ति रखे हुए है सक्रिय रूप में रहते हुए भी|======---------गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण)::: गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) अपने में ही अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|
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सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) वे हैं जिनसे स्वयं सांसारिक रूप में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और स्वयं कृष्ण और राम का प्रादुर्भाव हुआ है तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) का ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ किसी युग में न कभी था, न है और न रहेगा ===========================================
सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
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सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर (223225) -बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|
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31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 के बाद शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि इस संसार में मेरा कोई विकल्प न कभी था, न है और न होगा और वैसे भी जिसमें गुणों की धारणशीलता में केवल हाँ या ना में उत्तर देना हो तो उसमें केवल हाँ या ना में से एक का चयन ही किया जा सकता है तो फिर हाँ स्वीकारता यदि नहीं है तो ना उसका विकल्प नहीं बल्कि उत्तर है जिसका आशय है की अमुक का कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है| फिर भी 31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 बाद के परिप्रेक्ष्य में पुनः मै कहता हूँ की इस वैश्विक आपदा को सृष्टि का संहार न समझा जाए बल्कि सांसारिक अभिव्यक्ति न होते हुए भी आतंरिक आत्मीय अभिव्यक्ति अनुसार इसे दैवीय आपदा मतलब देवियों का प्रकोप मात्र ही समझा जाए|
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आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे|
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25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल::====सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) वे हैं जिनसे स्वयं सांसारिक रूप में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और स्वयं कृष्ण और राम का प्रादुर्भाव हुआ है तो फिर सनातन राम(/कृष्ण) का ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ किसी युग में न कभी था, न है और न रहेगा ===========================================
सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
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सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर (223225) -बिशुनपुर (223103) युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|
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1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+ महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+ महागौरी) >>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती +महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 --------सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः
पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा (त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप)
का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं
मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव: महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती +महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है
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सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|<<<<<25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था
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टिप्पणी: 1998 (25 मई, 1998/12 मई, 1997)-2006/2007/2008: 2008-2018 (25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018): सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम और विधि-विधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था| >>>>>>>महाशिव(राम:सदाशिव) /विवेक(गिरिधर) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम:सदाशिव (महाशिव)]]||
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God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world
during whole year and have no any fixed duration of time in a year.
त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त
भगवान् विष्णु :-
मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।
मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः
॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।
आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम्पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2
॥
अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।
त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव):
कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|
अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार
हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
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जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है|
IN BETTER WAY
जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को
किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है|
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व्यक्ति का व्यक्ति से और व्यक्ति का स्थान से सम्बन्ध जब लोग जाने तब न सत्य से साक्षात्कार हो? तो जब ज्यादा उत्साह ठीक नहीं तो ज्यादा उन्माद कैसे ठीक हो सकता हैं? अक्टूबर, 2019 में भाई लोगों ने कहा की आप प्रयागराज छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं? तो मैंने कहा था की मै तो इस प्रयागराज में ही कब का फिक्स्ड (केंद्रित) हो चुका हूँ| तो भाई लोगों ने कहा की आपको इस प्रयागराज में फिक्स्ड (केंद्रित) होने की अब कोई जरूरत ही नहीं रही/है आप प्रयागराज छोड़कर जा सकते हैं| तो अब उनको बताना चाहिए की क्या उनका वह कथन और उसके ऐसे कथन के कथनाकार होने का अधिकार क्रमसः सत्य और उचित था और हैं क्या?====================================
मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय:
मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|
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तो अनुमान हुआ की नही की यह विष्णू के परम ब्रह्म स्वरूप की ही उर्जा से ऐसा हौ सका था 10/11 सितम्बर, 2008 में |
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मुझे प्रयागराज (/काशी) में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित और विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ (प्राक्यज्ञ) स्थल प्रयागराज (/काशी) में आविर्भवित सातों सप्तर्षियों पर गर्व है और साथ ही साथ सभी सप्तर्षि या सात के सातों सप्तर्षियों के समान अंश से काशी में आविर्भवित और विंध्य क्षेत्र पार करते हुए तमिल-तेलगू क्षेत्र को आवास क्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य ऋषि समेत आठ के आठों अष्टक ऋषि पर भी गर्व है; और इसके साथ इनके त्रिगुणन से जनित चौबीस/24 ऋषि (धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/कथित रूप से अशोकचक्र की तीलियों के संख्या के बराबर) और फिर इनसे जनित सम्पूर्ण संसार को चलाने वाले सभी 108 (सुदर्शन चक्र की आरियों के संख्या के बराबर) ऋषि पर गर्व और उनके प्रति समान रूप से सम्मान है| ====================================
प्प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि-------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है.......
1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र),
2.गौतम गोत्र,
3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!,
4.अत्रि गोत्र,
5.भृगुगोत्र,
6.आंगिरस गोत्र,
7.कौशिक गोत्र,
8.शांडिल्य गोत्र,
9.व्यास गोत्र,
10.च्यवन गोत्र,
11.पुलह गोत्र,
12.आष्टिषेण गोत्र,
13.उत्पत्ति शाखा,
14.वात्स्यायन गोत्र,
15.बुधायन गोत्र,
16.माध्यन्दिनी गोत्र,
17.अज गोत्र,
18.वामदेव गोत्र,
19.शांकृत्य गोत्र,
20.आप्लवान गोत्र,
21.सौकालीन गोत्र,
22.सोपायन गोत्र,
23.गर्ग गोत्र,
24.सोपर्णि गोत्र,
25.कण्व गोत्र,
26.मैत्रेय गोत्र,
27.पराशर गोत्र,
28.उतथ्य गोत्र,
29.क्रतु गोत्र,
30.अधमर्षण गोत्र,
31.शाखा,
32.आष्टायन कौशिक गोत्र,
33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र,
34.कौण्डिन्य गोत्र,
35.मित्रवरुण गोत्र,
36.कपिल गोत्र,
37.शक्ति गोत्र,
38.पौलस्त्य गोत्र,
39.दक्ष गोत्र,
40.सांख्यायन कौशिक गोत्र,
41.जमदग्नि गोत्र,
42.कृष्णात्रेय गोत्र,
43.भार्गव गोत्र,
44.हारीत गोत्र, या हारितस्य
45.धनञ्जय गोत्र,
46.जैमिनी गोत्र,
47.आश्वलायन गोत्र
48.पुलस्त्य गोत्र,
49.भारद्वाज गोत्र,
50.कुत्स गोत्र,
51.उद्दालक गोत्र,
52.पातंजलि गोत्र,
52.कौत्स गोत्र,
54.कर्दम गोत्र,
55.पाणिनि गोत्र,
56.वत्स गोत्र,
57.विश्वामित्र गोत्र,
58.अगस्त्य गोत्र,
59.कुश गोत्र,
60.जमदग्नि कौशिक गोत्र,
61.कुशिक गोत्र,
62.देवराज गोत्र,
63.धृत कौशिक गोत्र,
64.किंडव गोत्र,
65.कर्ण गोत्र,
66.जातुकर्ण गोत्र,
67.उपमन्यु गोत्र,
68.गोभिल गोत्र,
69. मुद्गल गोत्र,
70.सुनक गोत्र,
71.शाखाएं गोत्र,
72.कल्पिष गोत्र,
73.मनु गोत्र,
74.माण्डब्य गोत्र,
75.अम्बरीष गोत्र,
76.उपलभ्य गोत्र,
77.व्याघ्रपाद गोत्र,
78.जावाल गोत्र,
79.धौम्य गोत्र,
80.यागवल्क्य गोत्र,
81.और्व गोत्र,
82.दृढ़ गोत्र,
83.उद्वाह गोत्र,
84.रोहित गोत्र,
85.सुपर्ण गोत्र,
86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र
87.अनूप गोत्र,
88.मार्कण्डेय गोत्र,
89.अनावृक गोत्र,
90.आपस्तम्ब गोत्र,
91.उत्पत्ति शाखा गोत्र,
92.यास्क गोत्र,
93.वीतहब्य गोत्र,
94.वासुकि गोत्र,
95.दालभ्य गोत्र,
96.आयास्य गोत्र,
97.लौंगाक्षि गोत्र,
88.चित्र गोत्र,
99.आसुरि गोत्
100.शौनक गोत्र,
101.पंचशाखा गोत्र,
102.सावर्णि गोत्र,
103.कात्यायन गोत्र,
104.कंचन गोत्र,
105.अलम्पायन गोत्र,
106.अव्यय गोत्र,
107.विल्च गोत्र,
108.शांकल्य गोत्र,
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109. विष्णु गोत्र
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सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
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विश्व मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|
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Prayagraj (Kashi: Varanasi) Centric presence from last 20 years have meaning for the benefit of world humanity (25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) and onward:1998-2006/2007/2008: 2008- 2018 and onward): वैश्विक मानवता रूपी दीपक किसी दौर में जो आये दिन अपनी अन्तिम यात्रा के प्रतीक स्वरुप भपक रहा था (बुझने के करीब था) और आये दिन तथाकथित सर्वोच्च महाशक्तियों के यहाँ से लेकर अपने देश भारत के पुरोहितों द्वारा बारम्बार मानवता के समाप्ति को घोषणाएं हो रही थी तो फिर ऐसी भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया मैंने अपने को 20 वर्ष तक बिना डूबे हुए इस मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित किए रहते हुए अपनी उपस्थिति बनाए रखते हुए (जबकि आज तक कोई ऐसा नहीं रहा जो वैश्विक रूप से केंद्रीय भाव में विश्व मानवता के मूल केंद्र प्रयागराज (काशी) में केंद्रित रहकर 20 वर्ष मतलब दो दसक में यहां डूबा नहीं हो) और इतना सब कुछ मेरी उपस्थिति मात्र से ही नहीं हो गया अपितु मेरे द्वारा आहार-विहार-आचार-विचार-जगत व्यव्हार और अपनी दृण इक्षा शक्ति तथा अभीष्ट त्याग, अभीष्ट बलिदान, अभीष्ट तप/योग/उद्यम की वजह से और स्वयं अपने दिल पर बज्रपात करने वाले अकाट्य सत्य को समर्पित अपनी लेखनी को चलाये रखने की कीमत भी चुकाते हुए और साथ ही साथ परिणाम स्वरुप मानवता के दीर्घकालिक हित के लिए मानवमात्र के प्रति करुणा और ममत्व भाव रखते हुए भी ऐसा सब कुछ मेरे द्वारा किया गया जिससे की जगत व्यवहार से निकल कर प्रगतिशील सच्चाई आम जन मानस के सामने आये और परिणाम स्वरुप समस्त मानव समष्टि का यथा सम्भव कल्याण हो| ===========================================
31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 के बाद शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि इस संसार में मेरा कोई विकल्प न कभी था, न है और न होगा और वैसे भी जिसमें गुणों की धारणशीलता में केवल हाँ या ना में उत्तर देना हो तो उसमें केवल हाँ या ना में से एक का चयन ही किया जा सकता है तो फिर हाँ स्वीकारता यदि नहीं है तो ना उसका विकल्प नहीं बल्कि उत्तर है जिसका आशय है की अमुक का कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है| फिर भी 31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 बाद के परिप्रेक्ष्य में पुनः मै कहता हूँ की इस वैश्विक आपदा को सृष्टि का संहार न समझा जाए बल्कि सांसारिक अभिव्यक्ति न होते हुए भी आतंरिक आत्मीय अभिव्यक्ति अनुसार इसे दैवीय आपदा मतलब देवियों का प्रकोप मात्र ही समझा जाए|
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मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|
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हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
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रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))|
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विवेक(गिरिधर)/महाशिव:सदाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)==---विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती:पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [ विवेक((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/सदाशिव:महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)] >>>>> >>》》अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष स्वयं मैं ही था| ===>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)
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NOTE:--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण)::: गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) अपने में ही अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|>>>>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)|
==============================================================================जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे|
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14 मार्च 2019: किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्य...
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