कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा?<<<<===सनातन राम/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप::एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन आदिदेव के "प्रथम स्वरुप/संतति" अर्थात "इस विश्व के प्रथम नागरिक" अर्थात "त्रिदेवों में आदिदेव" अर्थात शिव (इस सृष्टि के सबसे गौर वर्ण वाले और एक मात्र गौरवर्ण ही जिनका स्वरुप है: कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।) का उत्पत्ति स्थल काशी है जहाँ विशाल जल प्लावन की बीच काशी की जमीन के साथ नीचे से ऊपर आकर कीचड़ से सने हुए स्वरुप में आदि शिव (केदारेश्वर) प्रकट हुए थे और विष्णु के दो के दोनों परमब्रह्म अवस्था को प्राप्त करने वाले अवतार आर्य शिरोमणि राम और कृष्ण यही प्रकट हुए तथा सम्पूर्ण जनमानस के सूत्रधार सप्तर्षि (तथागत अष्टक ऋषि व 24/108 मानक ऋषि) यही प्रकट हुए फिर भी ==>>>कम से कम अब तो स्पष्ट हो गया है कि इस विश्व मानवता का मूल केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही है लेकिन केवल बारह सौ घुड़सवार (जिसमे एक भी महिला घुड़सवार शामिल नहीं रही है) के बाहर से आने की वजह से हमें आज तक यही पढ़ाया गया कि आर्य (प्रगतिशील सच्चाई का अनुयायी) बाहर से आये तो कुछ संख्या मात्र के अपवाद को छोड़कर आप जलवायु विज्ञान और जैव प्रजनन शक्ति के आधार पर स्पष्ट रूप से बयाइये कौन कहाँ से कहाँ जाएगा?---=====जिसने मुझको अंतरमन से चाहा और इसके साथ मुझसे मेरे जैसा चाहा उसको वैसा ही मिला और इसमें कुछ भी अनुचित और प्रत्यक्ष नहीं है तो इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार आप को कैसे मिल गया|
=======================================================================================================
==============================================================================================
आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे|
=======================================================================================================================================
=====================================================================================================================================
सनातन राम/सदाशिव:महाशिव/सशरीर परमब्रह्म (विष्णु के परमब्रह्म स्वरुप::एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/पुराण पुरुष/सनातन आदिदेव के "प्रथम स्वरुप/संतति" अर्थात "इस विश्व के प्रथम नागरिक" अर्थात "त्रिदेवों में आदिदेव" अर्थात शिव (इस सृष्टि के सबसे गौर वर्ण वाले और एक मात्र गौरवर्ण ही जिनका स्वरुप है: कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।) का उत्पत्ति स्थल काशी है जहाँ विशाल जल प्लावन की बीच काशी की जमीन के साथ नीचे से ऊपर आकर कीचड़ से सने हुए स्वरुप में आदि शिव (केदारेश्वर) प्रकट हुए थे|====---टिप्पणी: तो फिर परमब्रह्म स्वरुप वाले विष्णु (या विष्णु अपने परमब्रह्म स्वरुप से या अपने ऐसे एकल निष्ठ त्रिशक्ति संपन्न स्वरुप से) ही स्वयं ही शिव और ब्रह्मा को पहले भेज कर अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद ही स्वयं प्रकट होते हैं|
=======================================================================================================================
हमारी संस्कृति तो एक है पर स्थानीय रूप से सनातन पारिवारिक पृष्ठभूमि और पारिवारिक संस्कार अलग हो सकते हैं किन्तु दक्षिण के दो स्वयंभू विशेस राज्य (तेलुगू/तमिल) वासी यह समझ लें की उनकी नश्ल अफ्रीकी मूल वालों की नहीं वरन हमारी ही है वस् स्थानीय आवश्यकताओं और स्थानीय जलवायु प्रभाव के असर के कारण हमारे बीच जो अन्तर केवल वाह्य रूप से दृष्टिगत है उसके कारन से वे वैश्विक राजनीती के शिकार हो दिग्भ्रमित न हो (/ अफ्रीकी मूल के तथाकथित मुसल्लम ईमान /ईस्लामानुयाई और तथाकथित दीनदयाल/ईसाइयतानुयाई के प्रति आज तक की आशक्ति व् दृष्टिकोण और जिसमें विशेष रूप से 2007 से लेकर 2018 तक के उनके प्रति आशक्ति व् दृष्टिकोण के प्रति आज के सन्दर्भ में आपका क्या स्पस्ट वर्तमान दृष्टिकोण है?)| ===>>>एक लम्बे अंतराल के लिए लेखन पर विराम किन्तु अगर सारांश के रूप में देखा जाए तो वर्तमान ब्लॉग " Vivekanand and Modern Tradition" में कुछ भी ऐसा नया सन्देश नहीं है जिसे प्रयागराज (/काशी) के बाद भारत के दूसरे सबसे मजबूत सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलोर/बेंगलुरु) में उसके शताब्दी वर्ष (2007-2009) के दौरान इसी "Vivekanand and Modern Tradition" नाम के ही ब्लॉग में न लिखा गया हो जो की वहाँ पूरे दो वर्ष सबसे आधुनिकतम तकनीकी और विज्ञान से युक्त लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा है|---==जिसने मुझको अंतरमन से चाहा और इसके साथ मुझसे मेरे जैसा चाहा उसको वैसा ही मिला और इसमें कुछ भी अनुचित और प्रत्यक्ष नहीं है तो इस ईश्वरीय प्रक्रिया में किसी को भी दोषी सिद्ध करने का अधिकार आप को कैसे मिल गया?=====Note: प्रयागराज (काशी) से जाकर प्रयागराज (/काशी) के बाद भारत के दूसरे सबसे मजबूत सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय विज्ञान संस्थान, (बंगलोर/बेंगलुरु) में उसके शताब्दी वर्ष (2007-2009) के दौरान वहाँ पर तत्कालीन रूप से मानवता का असीमित ऊर्जा का स्वयं निहित एकल अंतर्राष्ट्रीय स्रोत मैं स्वयं रहा| अतः जब मै वहाँ मानवतावादी शक्तियों हेतु असीमित ऊर्जा का एकल अंतर्राष्ट्रीय स्रोत स्वयं बना रहा तो फिर ऐसे में ऐसे निरपेक्ष स्वरुप का दायित्व निभाने की परिणति अन्तर्गत किसी स्वयंसेवक से प्रत्यक्ष व् परोक्ष संपर्क संभव ही नहीं था तो किसी स्वयंसेवक से स्वयंसेवा लेने का प्रश्न ही नहीं उठता है|
==========================================================================================================================================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
===========================================
तथाकथित दलित इसाई लाल बन्धु आप के समस्त समूह(/कुल) को सप्रेम सूच्य हो की 29/05/2006 को ही मैंने तो कृष्ण के समानांतर चलने वाले ईसाईयत को पीछे छोड़ उससे परे हो गया और तथाकथित पिछड़ा मुसलमान अहमद व अंसारी बन्धु आप के समस्त समूह(/कुल) को सप्रेम सूच्य हो की 12 वर्ष का और अधिक समय अवश्य लगा पर 25/05/5018 को ही मैंने तो राम के समानांतर चलने वाले इस्लामियत को पीछे छोड़ उससे परे हो गया|
====================================
हैदराबाद और इलाहबाद/इला-आबाद/इलाहाबाद/अल्लाह-आबाद/अल्लाहबाद कनेक्शन के तीस (30) वर्ष अब अच्छे से बीत चुके हैं:---प्रयागराज (/काशी) समेत संपूर्ण भारत को भारत से संबंधित देवी महाकाली/देवकाली समेत हर देवी-देवता और महापुरुष की मूर्ती को भी तमिल/तेलगु के मूर्तियों के वर्ण की तर्ज पर मतलब अहमद बंधू व् लाल बन्धु के वर्ण की मूर्ति से पाटने से प्रयागराज (/काशी) की संस्कृति पर दक्षिण का आधिपत्य नहीं होने वाला है तो फिर इस धोखे में मत रहिये और इसमें सुधार लाइए क्योंकि अहमद बंधू व् लाल बन्धु के वे हैदराबाद और इलाहबाद/इला-आबाद/इलाहाबाद/अल्लाह-आबाद/अल्लाहबाद कनेक्शन के तीस (30) वर्ष अब अच्छे से बीत चुके हैं|
====================================
हकीकत स्वीकार कर लेने में कोई अपमान नहीं है की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती देना संभव नहीं है चाहे वह किसी व्यक्ति/व्यक्तित्व या किसी सन्गठन के माध्यम से या उसकी आड़/छाया में रहकर क्यों न किया जाय| >> >>> 18 करोड़ आबादी वाले क्षेत्रों का अधिपत्य 138 (120+18) करोड़ की आबादी वाले क्षेत्रों पर तो संभव नहीं है न तो फिर संभव हो न सका? तो फिर स्वाभाविक रूप से स्पष्ट है कि प्रयागराज(/काशी) में स्वाभाविक रूप से आविर्भवित सप्तर्षि (7 मूल ऋषि) पर ही उन्हीं सप्तर्षि (7 मूल ऋषि) के अंश से प्रयागराज (/काशी) में अविर्भावित अगस्त्य (/कुम्भज) ऋषि और उनके वंशजों द्वारा अधिपत्य किसी भी प्रकार से संभव तो नहीं हैं न? अतः हकीकत स्वीकार कर लेने में कोई अपमान नहीं है की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती देना संभव नहीं है चाहे वह किसी व्यक्ति/व्यक्तित्व या किसी सन्गठन के माध्यम से या उसकी आड़/छाया में रहकर क्यों न किया जाय|
=================================
रावण की तरह परायी नारी के हरण की लोकनिन्दा में आप ईश्वर से उबर सकते हैं पर समाज से कभी भी नहीं उबर सकते हैं (भगवान से उबर सकते हैं पर इन्सान से कभी भी नहीं उबर सकते हैं)====----पुन: दोहरा रहा हूँ कि जो नाम स्थानीय संस्कृति और लोक सम्मत न हों वहाँ उन नामों से किसी व्यक्ति, संस्था व संगठन का नाम रखने से परहेज करना ही श्रेष्कर है| तो कम से कम प्रयागराज (/काशी ) जैसे सांस्कृतिक स्थल और उसके प्रभाव क्षेत्र में इसका पूर्ण पालन होना बुद्धिमत्ता का परिचायक है| जिसको रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के नाम से ज्यादा आशक्ति है वे पहले अपने स्वयम के परिवार, कुल और सम्बन्धों में लोगों का वास्तविक नाम रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद क्यों नहींं रखें? और नहीं रखे तो आगे से ऐसे नाम उनको रखने चाहिए| अगर सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरूप में सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के पूर्णातिपूर्ण स्वरूप को प्राप्त केवल मात्र दो विष्णु अवतार राम और कृष्ण में से राम के चरित्र के वृहद वर्णन के महाकाव्य रामायण का वास्तविक हृदयंगम वे न किये हो तो उनको पता हो कि इन तीनो के उद्धार के बाद इनकी आत्मा सीधे राम के हृदय में समाहित हुई थी न कि इनके श्री चरणों में तो फिर इसका कारण था कि असुर योनि में जन्म से पहले वे विष्णु लोक में वे विष्णु भक्त थे और भक्त का स्थान हृदय में ही होता है न की श्री चरणों तो फिर वे राम के हृदय में समाहित हो गये|
===========================================
अनादि काल से आधी आबादी का शिकार ही जिनकी प्रवृत्ति रही है===-----असुर समाज यह समझता है की साइकिल वाले की साईकिल का एक चक्का पन्चर कर दिया जाय या उसका टायर/ट्यूब निकाल ली जाय जिससे की साइकिल वाला शक्ति विहीन हो जाएगा और इस प्रकार साईकिल वाले की लक्ष्य सिद्धि न हो पाएगी, लेकिन वे यह भूल जाते हैं की यदि साईकिल वाला कुशल है और उस चक्के की आत्मा अतिसय मजबूत है मतलब उस चक्के की रिम (चक्के की ढाल/किनारा) मजबूत है तो उस कुशल साईकिल वाले को लक्ष्य प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता है उसे सिद्धि मिलकर रहती है साईकिल का टायर और ट्यूब तो उस रिम (चक्के की ढाल/किनारा) से निकाल लिए जाने के बाद केवल उसकी लाश समान ही रह जाती है ऐसे मे उस लाश को असुर समाज ढ़ोता रहे या बेचता रहे किन्तु सजीव रूप में उसे पाने से रहा तो असुर समाज अपने अनैतिक, अमर्यादित और व्यर्थ में किये गए तप/योग/उद्यम मतलब मूर्खतापूर्ण कार्य/प्रयत्न के परिणाम के साथ अपने अस्तित्व और भविष्य की सोचे| 2008 से विश्व मानवता का केन्द्र उत्तर भारत ही हो चुका है पर कुछ दम्भी और अज्ञानी लोग अभी भी इस संसार में बचे है जो क्षमतायुक्त न होने पर भी अस्वाभाविक और अमर्यादित और असम्भावी होने पर भी इस मानवता के केन्द्र को पुनः दक्षिण भारत करना चाह रहे हैं और अपनी कसरत जारी किए हुए है| हकीकत तो यह है कि पहले भी विश्व मानवता का केन्द्र प्रयागराज(/काशी) ही था पर ठेकेदारी दक्षिण भारत की चलती थी जिसका तरीका था यहाँ के ही शिव-पुत्र कार्तिकेय जैसे लोगों को अपने यहाँ बुलाकर अपने यहाँ आश्रय देकर या उनको अपना माध्यम बना बना कर| तथाकथित दलित इसाई लाल बन्धु आप के समस्त समूह(/कुल) को सप्रेम सूच्य हो की 29/05/2006 को ही मैंने तो कृष्ण के समानांतर चलने वाले ईसाईयत को पीछे छोड़ उससे परे हो गया और तथाकथित पिछड़ा मुसलमान अहमद व अंसारी बन्धु आप के समस्त समूह(/कुल) को सप्रेम सूच्य हो की 12 वर्ष का और अधिक समय अवश्य लगा पर 25/05/5018 को ही मैंने तो राम के समानांतर चलने वाले इस्लामियत को पीछे छोड़ उससे परे हो गया|
==================================
समभाव की परख के तहत जहाँ सान्केतिक ध्वज व प्रार्थना के साथ 5 जनवरी, 2014 दिन रविवार को म्योराबाद चर्च (एक समुदाय विशेष का क्षेत्र), प्रयागराज के सामने के मैदान में मात्र एक दिन सक्षम वरिष्ठ शीर्ष अधिकारी के साथ मात्र 4 लोगों द्वारा शाखा लगाई गई थी वहीं 5 फरवरी, 2017 दिन रविवार को सक्षम पदाधिकारी और कोई अन्य सदस्य न आने पर भी बेली फार्म (दूसरे समुदाय विशेष बाहुल्य अन्तर्गत क्षेत्र), शिक्षक परिसर, प्रयागराज विश्वविद्यालय, बेलीगाॅव, प्रयागराज के रीडर ब्लाक के सामने वाले पार्क में एक दिन मात्र की शाखा सान्केतिक ध्वज व प्रार्थना के साथ उन्ही चार में से ही एकल व्यक्ति द्वारा लगाई गयी थी और तत्कालीन सम्बन्धित पदाधिकारी को सूचित किया गया था|
==============================================================================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
=============================================================================================
इस प्रयागराज (/काशी) में ईसाइयत के सामानान्तर चलते हुए 29 मई, 2006 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को जो प्राप्त हुआ वही ईस्लामियत के सामानांतर चलते हुए तथा 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था को प्राप्त हुआ तो इस प्रकार वह आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण त्याग, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण बलिदान, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण तप/योग/उद्यम और इस प्रकार आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण दीन दयाल और आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान
जैसे सभी पान्चों मूल अवस्थाओं को प्राप्त हुआ|
====================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
==================================
विश्व मानवता को चमत्कारिक बनाने वाले इस जगत को नीरस से चमत्कारिक और चमत्कारिक से अति चमत्कारिक बनाए जाने की सीमा को स्वयं तय करें क्योंकि यह अकाट्य सत्य है कि स्थानीय स्तर से वैश्विक स्तर तक के लिए इस्लामियत राम के समानान्तर और ईसाइयत कृष्ण के समानान्तर चलती है और यह की क्या इस्लामियत और इसाईयात का साम्य हो या न हो या केवल किसी एक को पक्षगत करना है या पक्षगत रहना है| या कि समानांतर चलने वाली किसी एक ही रेखा को छति पहुंचा किसी दूसरी के व्यवहार व प्रभाव को अनियंत्रित करना है| और इसके साथ यह भी अकाट्य सत्य ही है कि कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित सवर्ण है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित पिछड़ा है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित दलित है; तो कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से आविर्भावित तथाकथित अल्पसंख्यक है| तो इस अकाट्य तथ्य को दृष्टिगत करते हुए सामाजिक, संस्कारिक व सांस्कृतिक सुसंचालन व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए और किसी भी इकाई को नजर अंदाज नहीं किए जाना चाहिए और इसके साथ देश के अंदर व बाहर से उनके प्रायोजित रूप से प्रोत्साहन व प्रायोजित रूप से सहयोग व दुराग्रह ग्रसित और दुस्प्रवृत्तीगत किसी एक विशेष को प्रायोजित रूप से पंगु बनाने की नीति को भी ध्यान में रखे जाना चाहिए|
===========================================================================
यह स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक स्तर तक सत्य है की ईस्लाम और ईसाइयत क्रमसः राम और कृष्ण के समान्तर चलते हैं और इस प्रकार स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक स्तर तक दोनो समानान्तर रेखाओं का अस्तित्व में बने रहना एक दूसरे को असंतुलन से बचने के लिए अति आवश्यक है : 16/29 मई, 2006 को ईसाइयत से परे हो गया और 25 मई, 2018 को इस्लामियत से परे हो गया मतलब इनपर विश्व विजय प्राप्त कर लिया तो फिर आप ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित सवर्ण या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित पिछड़ा या फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित दलित या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित अल्पसंख्यक में बारम्बार क्यों उलझाते हैं जब स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक सभी स्तरों पर आप आज भी इन दोनो (ईस्लाम और ईसाइयत) से परे कभी जा न सके हों और वैश्विक स्तर पर आज भी कहीं न कहीं आप का झुकाव बना हुआ है| तो केवल और केवल तो फिर यह समझिये की इस मानवता के आज तक के इतिहास में मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ नहीं रहा है और अगर था, है और होगा तो उसमे मुझमे कोई अंतर नहीं होगा| जिस कारन से स्थानीय, राष्ट्रीय व् वैश्विक सभी स्तरों पर आप का झुकाव आज भी इन दोनों के प्रति बना हुआ है वह केवल और केवल सृष्टि के सुचारु रूप से स्थानीय से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मानवता के रक्षण-संरक्षण, पोषण-सम्पोषण, वर्धन-संवर्धन व् सतत संचालन हेतु ही है तो उसी प्रकार इन दोनों से परे जाकर भी और इस प्रकार इन दोनों के मकड़जाल को 16/29 मई, 2006 को और 25 मई, 2018 को मानवता के इसी मूल केंद्र प्रयागराज (/काशी) में ही तोड़ते हुए विश्व विजय करके भी मै उन दोनों के समेत आपके (ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित सवर्ण या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित पिछड़ा या फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित दलित या ब्राह्मण, क्षत्रिय व् वैश्य के अंश से जनित तथाकथित अल्पसंख्यक) प्रति भी अपना झुकाव व् समर्पण जारी किये हुए हूँ और सहनसीलता की सीमा के अंदर रहते हुए जारी किये रहूँगा|
==============================================================================
राम(ईस्लाम के समानान्तर)/कृष्ण (ईसाइयत के सामानान्तर)[अपनी सांगत शक्तियों समेत ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकल स्वरुप]:-----अगर भारत के उत्तर में किसी एक धर्म का प्रभाव है तो दक्षिण में उसके ही सांगत हर मामले में विश्व के सबसे समृद्ध दूसरे धर्म का प्रभाव है (वर्तमान काल में सबसे अधिक धर्म परिवर्तन इसी ने कराये हैं और उसके बावजूद धर्म परिवर्तन करने वाले ही प्रयागराज(/काशी) की संस्कृति को चुनौती दे रहे हैं और ये बिके हुए एजेंट/अभिकर्ता मात्र अपने को मजबूत समझ रहे हैं) तो बात बराबर की ही तो हैं न? लेकिन इन दोनों धर्मो सहित सम्पूर्ण मानवता के सम्पूर्ण धर्मों के मानव को मानव धर्म के प्रति प्रेरित करने वाले सनातन धर्म/हिन्दू धर्म को इस धर्मों को सामानान्तर आधार देने हेतु अवश्य समृद्ध और अक्षुण्य रखना ही हमारा सबसे बड़ा दायित्व है और उस हेतु हिन्दू धर्म को हमें समृद्ध रखना है तो प्रयागराज (/काशी) की संस्कृति के वैश्विक महत्त्व को बनाये रखना है: 2007-2009 में मै जिस अवस्था में था उस अवस्था में मुझे हर अव्यवस्था दिखाई दे रही थी जो सामान्य व्यक्ति या सतह पर कार्यरत व्यक्ति को नहीं दिखाई दे सकता है कितना भी बड़ा दार्शनिक और विषय विशेषज्ञ कोई क्यों न रहा हो या है/होगा तो फिर मै दो वर्ष ऐसे भारतीय संस्कृति के दूसरे सबसे मजबूत गढ़ कर्णाटक जैसे स्थान और महत्वपूर्ण शीर्ष संस्थान में गुजारा हूँ जहाँ पर तमिल और तेलगु का अच्छा खासा प्रभाव था तो जिस देश में वसुधैव कुटुम्बकम का व्रत लिया जाता है उस देश में अपने ही देश के किसी भाग पर कोई टिप्पणी न करके केवल इतना आज भी कह सकता हूँ की प्रयागराज (/काशी) आज भी केवल संस्कृति और मानवता में ही सबसे समृद्ध नहीं बल्कि हर मामले में समृद्ध है और समृद्ध का कार्य है नमित रहना तो फिर आज भी नव कर हम रहते हैं| तो फिर हमारा अपमान न करो क्योंकि आप का अस्तित्व हमारी सहनशीलता पर ही टिका है|
======================================================================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
=============================================================================================================================================================
सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल है
और
सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डल
एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है|
===========================================
मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिसमें मैंने अपने साथ संख्या बल गिना हो या संख्या बल मेरे साथ रहा हो तो फिर भी इतना कहना चाहता हूँ कि सांगत शक्तियों समेत विश्व मानवता के पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव मुझसे ही हुआ है मतलब राम, कृष्ण, शिव, विष्णु और ब्रह्मा का आविर्भाव सनातन राम(/कृष्ण):::विष्णु की परमब्रह्म अवस्था/सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव / सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही हुआ है तो फिर विश्व मानवता के मूल केंद्र, प्रयागराज (/काशी) में अधोलिखित कार्य न्यूनतम एक सहस्राब्दी के मानवता के स्थायित्व हेतु ऊर्जा प्रदान करने हेतु की सुनिश्चितता (गारण्टी) का प्रतीक है ऐसे में यह काल 10/11, सितम्बर, 2008 से या 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018) से प्रारम्भ माना जाय:
=====================================
मै ही था/हूँ जिसने अशोकचक्र/कालचक्र/समयचक्र/धर्मचक्र 2008 के प्रथम अर्ध्य में विश्व्यापाक रूप से टूट जाने पर जब सम्पूर्ण संसार के देवालय/मंदिर/देवस्थान निर्मूल/निष्प्राण हो चुके थे तो फिर मानवता के अभीष्ट हित को ध्यान में रखकर बेंगलुरु से आकर 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी में घूम घूम कर अपनी ऊर्जा से यहां के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा की थी जो देवालय/मंदिर/देवस्थान इस संसार के समस्त देवालयों/मंदिरों/देवस्थानों को ऊर्जा देते हैं तो 2008 में ही 10 सितम्बर, 2008 को प्रयागराज और 11 सितम्बर, 2008 को काशी का भी स्वामी हुआ | ऐसा भी है कि उसके बाद संपूर्ण संसार का स्वामी भी बन गया जो ब्रह्मलीन/सम्पूर्ण-समाधिष्ठ/सम्पूर्ण-संकल्पित/सम्पूर्ण समर्पित अवस्था मे इस प्रयागराज(काशी) में 2001/2003 से 2007 तक था मतलब जिस परमब्रह्म ऊर्जा/सम्पूर्ण विश्व के मानवता की ऊर्जा को 7 वर्ष धारण कर 29 मई, 2006 को संस्थागत अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर यह सिद्ध किया था की प्रयागराज (/काशी) को चुनौती दे सके ऐसी कोई शक्ति नहीं संसार में और उसके बाद 25 मई, 2018 को इस संसार के हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हर प्रकार के अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त किया| तो फिर 2008 के उत्तरार्ध में तत्कालीन रूप से मेरे अंदर समाहित परमब्रह्म स्वरुप की ही ऊर्जा से 10 सितम्बर, 2008 को विष्णु और ब्रह्मा अपने सांगत देवियों समेत प्रयागराज व् 11 सितम्बर, 2008 को शिव अपने सांगत देवी व् पुत्रों समेत काशी में अपना दायित्व संभाल चुके थे/हैं|
=========================================================================
प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |ऐसे नहीं कहा था की मैं ही भगवा और मैं ही तिरंगा|108 मानक ऋषियों/गोत्रों के नाम है.......
1. मरीच गोत्र (एकल कश्यप गोत्र),
2.गौतम गोत्र,
3.वशिष्ठ [और वशिष्ठ संतान (1) पर वशिष्ठ गोत्र, (2)अपर वशिष्ठ गोत्र, (3) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (4)पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (5) दिवा वशिष्ठ गोत्र] !!!,
4.अत्रि गोत्र,
5.भृगुगोत्र,
6.आंगिरस गोत्र,
7.कौशिक गोत्र,
8.शांडिल्य गोत्र,
9.व्यास गोत्र,
10.च्यवन गोत्र,
11.पुलह गोत्र,
12.आष्टिषेण गोत्र,
13.उत्पत्ति शाखा,
14.वात्स्यायन गोत्र,
15.बुधायन गोत्र,
16.माध्यन्दिनी गोत्र,
17.अज गोत्र,
18.वामदेव गोत्र,
19.शांकृत्य गोत्र,
20.आप्लवान गोत्र,
21.सौकालीन गोत्र,
22.सोपायन गोत्र,
23.गर्ग गोत्र,
24.सोपर्णि गोत्र,
25.कण्व गोत्र,
26.मैत्रेय गोत्र,
27.पराशर गोत्र,
28.उतथ्य गोत्र,
29.क्रतु गोत्र,
30.अधमर्षण गोत्र,
31.शाखा,
32.आष्टायन कौशिक गोत्र,
33.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र,
34.कौण्डिन्य गोत्र,
35.मित्रवरुण गोत्र,
36.कपिल गोत्र,
37.शक्ति गोत्र,
38.पौलस्त्य गोत्र,
39.दक्ष गोत्र,
40.सांख्यायन कौशिक गोत्र,
41.जमदग्नि गोत्र,
42.कृष्णात्रेय गोत्र,
43.भार्गव गोत्र,
44.हारीत गोत्र, या हारितस्य
45.धनञ्जय गोत्र,
46.जैमिनी गोत्र,
47.आश्वलायन गोत्र
48.पुलस्त्य गोत्र,
49.भारद्वाज गोत्र,
50.कुत्स गोत्र,
51.उद्दालक गोत्र,
52.पातंजलि गोत्र,
52.कौत्स गोत्र,
54.कर्दम गोत्र,
55.पाणिनि गोत्र,
56.वत्स गोत्र,
57.विश्वामित्र गोत्र,
58.अगस्त्य गोत्र,
59.कुश गोत्र,
60.जमदग्नि कौशिक गोत्र,
61.कुशिक गोत्र,
62.देवराज गोत्र,
63.धृत कौशिक गोत्र,
64.किंडव गोत्र,
65.कर्ण गोत्र,
66.जातुकर्ण गोत्र,
67.उपमन्यु गोत्र,
68.गोभिल गोत्र,
69. मुद्गल गोत्र,
70.सुनक गोत्र,
71.शाखाएं गोत्र,
72.कल्पिष गोत्र,
73.मनु गोत्र,
74.माण्डब्य गोत्र,
75.अम्बरीष गोत्र,
76.उपलभ्य गोत्र,
77.व्याघ्रपाद गोत्र,
78.जावाल गोत्र,
79.धौम्य गोत्र,
80.यागवल्क्य गोत्र,
81.और्व गोत्र,
82.दृढ़ गोत्र,
83.उद्वाह गोत्र,
84.रोहित गोत्र,
85.सुपर्ण गोत्र,
86.गाल्व गोत्र, गालवी या गालवे गोत्र
87.अनूप गोत्र,
88.मार्कण्डेय गोत्र,
89.अनावृक गोत्र,
90.आपस्तम्ब गोत्र,
91.उत्पत्ति शाखा गोत्र,
92.यास्क गोत्र,
93.वीतहब्य गोत्र,
94.वासुकि गोत्र,
95.दालभ्य गोत्र,
96.आयास्य गोत्र,
97.लौंगाक्षि गोत्र,
88.चित्र गोत्र,
99.आसुरि गोत्र,
100.शौनक गोत्र,
101.पंचशाखा गोत्र,
102.सावर्णि गोत्र,
103.कात्यायन गोत्र,
104.कंचन गोत्र,
105.अलम्पायन गोत्र,
106.अव्यय गोत्र,
107.विल्च गोत्र,
108.शांकल्य गोत्र,
===========================
109. विष्णु गोत्र
==============
सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
============
इस प्रयागराज (/काशी) में ईसाइयत के सामानान्तर चलते हुए 29 मई, 2006 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था को जो प्राप्त हुआ वही ईस्लामियत के सामानांतर चलते हुए तथा 12 वर्ष और लेते हुए 25 मई, 2018 को उससे परे होकर सशरीर परमब्रह्म राम अवस्था को प्राप्त हुआ तो इस प्रकार वह आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण त्याग, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण बलिदान, आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण तप/योग/उद्यम और इस प्रकार आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण दीन दयाल और आतंरिक व् वाह्य रूप से सम्पूर्ण ईमानदार/मुसल्लम ईमान
जैसे सभी पान्चों मूल अवस्थाओं को प्राप्त हुआ|
==========================================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
=========================================================
प्रयागराज विश्वविद्यालय में शिव ही नहीं केदारेश्वर/आदि शिव/आदि आदित्रिदेव नामतः केंद्र की स्थापना हेतु स्वयं सोमेश्वर/सोमनाथ/वह देव जिन्हे सोम(/चँद्रमा) प्रिय हो/प्रेमचन्(द/शिव) प्रयागराज विश्वविद्यालय से स्वयं चलकर विशुनपुर (विष्णुपुर)-223103 के रामानन्द कुल (के विष्णुकुल) जाके स्वयं श्रीधर(विष्णु) से 2000 से 2005 के बीच 4 बार आशिर्बाद लिए थे रामापुर-223225 के सारंगधर कुल स्थित अपने घर जाते वक्त तो फिर किसी भी कीमत पर उस केंद्र की स्थापना तो होनी ही थी जो की इस संसार के जगत सत्य के अनुसार सभी विधि-विधान-संविधान व् यम-नियम-अधिनियम से 25 मई, 2018 को हो गयी जो की वास्तविक सन्दर्भ में 29 मई, 2006 को ही स्थापित हो चुका था| शिव की स्थापना के लिए किसी को राम बनना पड़ता है तो फिर केदारेश्वर/आदि शिव/आदि आदित्रिदेव की स्थापना हेतु प्रत्यक्ष न सही अप्रत्यक्ष किसी को सनातन राम/पुराण पुरुष/सशरीर विष्णु के परमब्रह्म प्राप्ति की अवस्था/सदाशिव:महाशिव बनाना ही पड़ता है जिनसे स्वयं पाँचों मूल पात्रों का आविर्भाव होता है मतलब राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आविर्भाव होता है|
=============================================================================================
सरल व सहज लेखन इस आशा के साथ की यह जगत सत्य सुपाच्य होगा ::: जिसको आना था वह 30 सितम्बर, 2010 को आ गया और जो अनुगामी था वह 28 अगस्त, 2013 को आ गया व तत सम्बन्धी जो प्रमाणपत्र मिलना था वह 9 नवम्बर, 2019 को मिल गया और इस विश्व जनमानस को उसका परिणामी 5 अगस्त, 2020 को मिल गया तो फिर अब भी स्वाभाविक ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ की कवायद आप के लिये कोई माने रखती है की आगे पीछे कदम ताल करने व कराकर कुछ विक्षोभ पैदा कर आप अपने लिये कुछ सकारात्मक परिणामी हांसिल कर सकें| और अगर आप ऐसा सोचते हैं कि अब भी स्वाभाविक ज्येष्ठ, श्रेष्ठ व वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ की कवायद आप के लिये कोई माने रखती है की आगे पीछे कदम ताल करने व कराकर कुछ विक्षोभ पैदा कर आप अपने लिये कुछ सकारात्मक परिणामी हांसिल कर सकते तो यह सब कुछ दूरगामी रूप से आपके विपरीत ही जा रहा है तो फिर उसका आंकलन स्वयं कीजिए|
=================================================================================================
हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम| तू ही माता, तू ही पिता है; तू ही तो है ""'राधा का श्याम(/कृष्ण)"""; हे राम, हे राम|| तू अंतर्यामी, सबका स्वामी; तेरे चरणों में चारो धाम; हे राम, हे राम| तू ही बिगाड़े, तू ही सवारे; इस जग के सारे काम; हे राम, हे राम|| तू ही जगदाता, विश्वविधाता; तू ही सुबह तू ही शाम; हे राम, हे राम|हे राम, हे राम; जग में साचो तेरो नाम; हे राम, हे राम||
==================================================================================================
==============================================================================================
आज तक जो भ्रम पाले हैं आप उसे सदा के लिए दूर कर लीजिए:== विष्णु का सुदर्शन चक्र और सारँग धनुष केवल चरित्रवान हाथ में ही संभलता है तो फिर==>>>>>सम्पूर्ण विश्व जन मानस को सूच्य हो की शिव, राम और कृष्ण मन्दिर के लिए शिव (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ शक्ति के अथाह स्रोत), राम (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्नi अवस्था को प्राप्त) और कृष्ण (विवाह पूर्व तक अखण्ड ब्रह्मचर्य और उसके बाद भौतिक रूप से जिसकी एक नारी सदा ब्रह्मचारी होने के साथ जीवन में सशरीर परमब्रम्ह/एकल स्वरुप में ब्रह्मा+विष्णु+महेश की शक्ति से सम्पन्न अवस्था को प्राप्त) का ही परीक्षण होता है न की देवियों का परीक्षण होता है तो फिर राम (/कृष्ण) या शिव मन्दिर बनने/बनाने के लिए जो कुछ भी हुआ उससे ज्यादा उचित कुछ सम्भव हो ही नहीं सकता है|| NOTE:--राम को विष्णु धनुष सारँग धारण करने हेतु धनुष यज्ञ (सीता के साथ विवाह के समय) के समय परशुराम से मिला था और कृष्ण को सुदर्शन चक्र और सारङ्ग धनुष धारण करने हेतु परशुराम से मिला था जब वे कंश को मारकर संदीपनी (/शांडिल्य) गुरु के आश्रम जा शिक्षा ग्रहणकर और गुरुदक्षिणा देकर मतलब उनके पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाकर मथुरा वापस जा रहे थे|
=======================================================================================================================================
=========================================================================
सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था:>>>> रामापुर-बिशुनपुर युग्म तद्नुसार सारन्गधर-रामानन्द युग्मः सारन्गधर का सन्दर्भित अर्थः 1) सारन्ग (विष्णु धनुष सारन्ग) को धारण करने वाला: स्वयम विष्णु और राम तथा कृष्ण; 2) सारन्ग अर्थात चन्द्रमा को धारण करने वाले शिव; 3) सारन्ग अर्थात गंगा को धारण करने वाला: अपने अल्कों पर गंगा(/अल्का) को धारण करने वाले गंगाधर शिव; तथा गंगा को अपने कमण्डल मे धारण करने वाले ब्रह्मा; व गंगा को अपने नाखूनों मे धारण करने वाले विष्णु| तो फिर सारन्गधर का सन्दर्भ आते ही इस संसार के पाँच के पाँचों मुख्य पात्र सन्दर्भ में आ जाते है जिसमें पहले ही सन्दर्भ में लोग राम का ही बोध करते हैं|======>>>>>25 मई, 1998 (12 मई, 1997) से 25 मई, 2018 (31 जुलाई, 2018): 1998 - 2006/ 2007/ 2008: 2008- 2018:सहस्राब्दी महापरिवर्तन/विश्वमहा- परिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहा-समुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: बिना किसी भी प्रकार की हिंसा के पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के दौरान सारन्गधर के पाँच के पाँचों आयाम (मुख्य आयाम राम ही हैं>राम, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु और शिव) में से एक भी आयाम नहीं छूटा था|
===================================
सप्तर्षि के अलवा किशी अन्य ऋषि विशेष या उसके वंसज के बारे में आधारहीन अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन से यह सच्चाई निर्मूल नहीं हो जाती है कि सप्तर्षि (7 ऋषि) में से कोई भी ऋषि अष्टक ऋषि मण्डल के ऋषि, 24 ऋषि मण्डल के ऋषि या 108 ऋषि मण्डल के ऋषि संस्कृति के किशी भी ऋषि से कम प्रभावी या कम महत्व का हो ही नहीं सकता है| क्योंकि सप्तर्षि का प्राथमिक दायित्व मानवता के कवच को बनाये रखने वाला होने की वजह से उनको नियन्त्रित सीमा अन्तर्गत व्यव्हार का भी पालन करना होता है और वे अष्टक ऋषि मण्डल, 24 ऋषि मण्डल या 108 ऋषि मण्डल को जोडने और सुरक्षा का आन्तरिक दायित्व भी निभाते हैं और उनकी प्राथमिक उर्जा स्रोत होते है| ===तो फिर ==--- ऋषि संस्कृति या मानव संस्कृति की बात आती है तो प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ से इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि कश्यप/कण्व, गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) आते हैं जो सप्तर्षि रूपी एक आधारभूत ऋषि मंडल है
और
सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज आते हैं और इस प्रकार अष्टक ऋषि मण्डल
एक दूसरे आधारभूत ऋषि मण्डल हैं| और इन अष्टक ऋषि मण्डल के त्रिगुणन से धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र/तथाकथित अशोक चक्र/ में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या 24 मानक ऋषि मण्डल तैयार होता है और फिर इन्ही 24 मानक ऋषि मण्डल से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि मण्डल या 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है|
=====================================================
प्रयागराज में ब्रह्मा द्वारा आह्वानित तथा विष्णु और शिव द्वारा पूरित मानवता के प्राचीनतम यज्ञ में इस प्रयागराज में आविर्भवित क्रमसः सात ऋषि जिसमे कश्यप/कण्व के अलावा गौतम/वत्स, वशिष्ठ/शांडिल्य/व्यास/उपमन्यु, आंगिरस/भारद्वाज/गर्ग, भृगु/जमदग्नि, अत्रि/कृष्णात्रेय(दुर्वाशा)/दत्तात्रेय/सोमात्रेय, कौशिक/विश्वामित्र(विश्वरथ) और सातों सप्तर्षि के अंश से काशी में आविर्भवित होने वाले तथा विंध्य पर्वत पार करते हुए तमिल-तेलगु को अपना कार्यक्षेत्र बनाने वाले अगस्त्य/कुम्भज जैसे अष्टक ऋषि मण्डल के अन्य सप्त ऋषि---------जिन अष्टक:8 के त्रिगुणन से अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र में 24 तीलियों द्वारा निरूपित होने वाले चौबीस मानक ऋषि संस्कृति या ---------इन चौबीस मानक ऋषि से जनित सुदर्शन चक्र के 108 आरियों द्वारा निरूपित 108 मानक ऋषि संतति का प्रदुभाव होता है और जिससे समस्त मानव जगत का प्रादुर्भाव होता है ऐसी श्रृंखला का प्रथम ऋषि, कश्यप स्वयं हूँ और साथ ही साथ अशोक चक्र/धर्मचक्र/कालचक्र/समयचक्र के सभी 24 ऋषियों का केंद्र बिंदु मतलब सभी ऋषियों का ऊर्जा स्रोत मतलब 25वां ऋषि (तदनुसार 109 वां ऋषि) स्वयं ही हूँ |
====================================================
सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
=====================================================
1----जगत जननी जगदम्बा:दुर्गा(जिसमे नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप देवकाली हैं) (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी/सीता (महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी)>>>>जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति के एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया)>>>>परिणामतः मानव समष्टि का आविर्भाव>>>>सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) तथा त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है-----------2------त्रिदेवो, "त्रिदेवो में आदिदेव/त्रिदेवों में आद्या महादेव शिव/परमाचार्य, सम्पूर्ण वैभवयुक्त परमगुरु विष्णु और परमज्ञानी ब्रह्मा" और उनकी अर्धांगिनियों, "महासरस्वती, महालक्ष्मी और महागौरी" का आविर्भाव जिससे होता है और जिसमे ये सब मिल जाते हैं मतलब समस्त सृष्टि भी जिस एक परमशक्ति/ऊर्जा में ही समा जाती है वह हैं सनातन आदिदेव/सनातन आद्या मतलब सनातन राम(/कृष्ण)/सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म(सनातन आद्या:सनातन आदि देव)|------------3 -------- सनातन राम(/कृष्ण) मतलब सदाशिव: महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/सशरीर परमब्रह्म/सशरीर ब्रह्म (सनातन आद्या:सनातन आदि देव)! "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।" अर्थ- आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे ही संपूर्ण संसार व्याप्त है|------------4 -----------सदाशिव:महाशिव (विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म (एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) के सामाजिक रूप में आविर्भवित होने से त्रिदेव (शिव (आदि त्रिदेव/त्रिदेवो में आद्या/परमाचार्य); विष्णु (त्रिदेवों में गुरु बृहस्पति/त्रिदेवो में परमगुरू व परम वैभवयुक्त) और ब्रह्मा(त्रिदेवों में परमज्ञानी)) और त्रिदेवी (आदि देवी सरस्वती(आदि त्रिदेवी/त्रिदेवियों में आदि देवी/ आद्या/महादेवी); लक्ष्मी(परम वैभवी); और सती:गौरी (शक्ति स्वरूपा)) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है -->>>फिर भी सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) स्वयं में ही आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी के मानस पुत्र हैं मतलब आदि देवी सरस्वती/आदितृदेवी/देवी आद्या/महादेवी अपने मानस/आदर्श पुत्र के रूप में इस सृष्टि में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) का ही वरन करती हैं|---------------5 -------और इस प्रकार जगत में सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म(एकल स्वरुप में सांगत शक्तियों समेत शिव, विष्णु और ब्रह्मा की सम्मिलित शक्ति)/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है तभी तक सृष्टि है और सृष्टि नहीं भी है तब भी सदाशिव:महाशिव/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) है मतलब सदाशिव:महाशिव(विष्णु की परमब्रह्म अवस्था)/ सशरीर परमब्रह्म/ सशरीर परमब्रह्म/सनातन आद्या/सनातन आदिदेव/पुराण पुरुष/आदिदेव/सनातन राम(/कृष्ण) से ही त्रिदेव (शिव, विष्णु और ब्रह्मा) और त्रिदेवी (सरस्वती, लक्ष्मी और सती:पार्वती) का आविर्भाव होता है और इस प्रकार जगत जननी जगदम्बा/दुर्गा (महागौरी की शक्ति सीमा का विस्तार करते हुए त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी +महागौरी//देवकाली:स्वयं में नौ:9 दुर्गा की एक स्वरुप) का आविर्भाव होता तथा इसी क्रम में उसकी सामाजिक प्रतिरूप जगत जननी जानकी/सीता(महालक्ष्मी की शक्ति सीमा का विस्तार कर त्रिशक्ति के एकल स्वरुप में महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी) का आविर्भाव होता है और फिर आगे इसी क्रम में ही इस जगत जननी जानकी की छाया रुपी सृष्टि (त्रिशक्ति की एकल स्वरुप महासरस्वती+महालक्ष्मी+महागौरी की छाया) का आविर्भाव होता है जिससे समस्त मानव समष्टि का आविर्भाव होता है|
=============================================================
God and goddess most often being prayed by Hindu individual in the world during whole year and have no any fixed duration of time in a year.
त्रिदेवों में परमगुरु (त्रिदेवों में गुरु वृहस्पति) व् सम्पूर्ण वैभव युक्त भगवान् विष्णु :-
मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः ।मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥अर्थ: भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड़ वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें।
आदिदेवी(आद्या) देवी भगवती सरस्वती:-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥
अर्थ : जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।
त्रिदेवों में आदिदेव (त्रिदेवों में आद्या/परमाचार्य/शिव):
कर्पूर गौरम करुणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम| सदा वसंतम हृदया रविन्दे, भवं भवानी सहितं नमामी|अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और सर्प/भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
==============================================================
जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको आप को नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान को" किसी को बचाना पड़ा हो तो स्वयं उसको भी आप दोनों को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है| IN BETTER WAY जिसने आपको और आपकी पहचान को मिटने से बचाया हो उसको (हे जगदम्बा जिस जानकी द्वारा आप और आपकी पहचान को बचाया गया हो उस जानकी को) आपको (हे जगदम्बा आप द्वारा को उस जानकी को) नहीं भूलना चाहिए; उससे ज्यादा महत्त्व इस बात का होना चाहिए की "जिसकी पहचान" (स्वयं जगदम्बा/देवकाली की पहचान) को बनाये रखने के लिए "आपको और आपकी पहचान" (जगदम्बा और जगदम्बा की पहचान को) को किसी द्वारा (जानकी द्वारा) बचाना पड़ा हो/किसी ने (जानकी ने) बचाया हो तो स्वयं उसको (जानकी को) (उस जानकी को जगदम्बा/देवकाली द्वारा) भी किसी भी प्रकार दोनों (स्वयं जगदम्बा/देवकाली को अपनी पहचान और जानकी दोनों को) को कभी भूलना नहीं चाहिए| यही विधि का विधान और सृष्टि के संचलन का मूल मंत्र है|
============================================================
रामापुर-223225 के सनातन कश्यप गोत्रीय त्रिफला (त्रिफल:त्रिपत्र:त्रिदेव:त्रिदेवी: त्रिफला: बेलपत्र: बिल्वपत्र:शिव और शिवा का आभूषण/आहार/अरपणेय/अर्पण्य/अस्तित्व रहा तो कम से कम स्वयं शिव बना) पाण्डेय ब्राह्मण बाबा सारंगधर (सारंगधर भावार्थित : विष्णु (हाथ में सारंग धनुष), राम(हाथ में सारंग धनुष), कृष्ण(हाथ में सारंग धनुष), ब्रह्मा (कमण्डल में गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को धारण करने वाले,और महेश (अगर चंद्र /सारँग भावार्थित चंद्र हो तो चंद्रशेखर:चंद्रधर: शशांकधर: राकेशधर: शशिधर: महादेव: शिव) [[गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने अल्को में रखने वाले गंगाधर:गंगानाथ:शिव व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने कमंडल में धारण करने वाले ब्रह्मा, व् गंगा/सारँग भावार्थित गंगा को अपने नाखून में धारण करने वाले विष्णु तथा सारँग धनुष/सारँग भावार्थित सारँग धनुष तो फिर सारंग धनुष धारण करने वाले विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण)]] कुल के देवव्रत(गंगापुत्र)/.../रामप्रसाद/बचनराम (बेचनराम) /प्रदीप(सूर्य की आतंरिक ऊर्जा का स्वयं निहित स्रोत): आदित्यनाथ:सत्यनारायण: रामजानकी:रामा का पुत्र और बिशुनपुर-223103 के सनातन गौतम गोत्रीय व्याशी (वशिष्ठ पौत्र) मिश्रा ब्राह्मण रामानंद/----/रामप्रसाद/ रमानाथ:विष्णु)/श्रीकांत (+श्रीधर: विष्णु+श्रीप्रकाश) कुल का नाती-----------विवेक(सरस्वती का ज्येष्ठ मानस पुत्र)/त्रयम्बक/त्रिलोचन/त्रिनेत्र /सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम/महाशिव (शिव व् शिवा:सती:पार्वती की भी आतंरिक सुरक्षा शक्ति)/सदाशिव [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/राम(महाशिव/सदाशिव)) Born (Actual) on 11-11-1975, 9.15 AM,Tuesday (मंगलवार, कार्तिक शुक्ल पक्ष अस्टमी=गोपा/गोपी/गोवर्धन/गिरिधर/गिरिधारी अस्टमी), नक्षत्र: धनिष्ठा, राशि: मकर राशि और राशिनाम: गिरिधर((गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण))|
टिप्पणी: 1998 (25 मई, 1998/12 मई, 1997)-2006/2007/2008: 2008-2018 (25 मई, 2018/31 जुलाई , 2018): सहस्राब्दीमहापरिवर्तन/ विश्वमहापरिवर्तन/ विश्वमहाविभीषिका/विश्वमहासमुद्रमंथन काल व् उसका संक्रमणकाल व् उत्तर संक्रमणकाल: पूर्णातिपूर्ण रूप से सभी यम-नियम और विधि-विधान से अभीष्ठ लक्ष्य प्राप्ति|========रामत्व अवस्था से नीकण्ठ महादेव शिव अवस्था + समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन (कूर्मावतारी विष्णु तथा उससे आगे ब्रह्मा होते ही सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था) + सशरीर परमब्रह्म कृष्ण अवस्था होते हुए पुनः पूर्णातिपूर्ण सिद्ध रूप में रामत्व अवस्था|>>>>>>>विवेक(गिरिधर)/महाशिव (राम: सदाशिव) >>> विवेक/त्रयम्बक/त्रिनेत्र/त्रिलोचन (शिव और शिवा:सती: पारवती की आतंरिक सुरक्षा शक्ति) [[ विवेक ((विवेक/सरस्वती का जेष्ठ मानस पुत्र/शिवरामकृष्ण/सदाशिव (महाशिव: सशरीर विष्णु का परमब्रह्म स्वरूप)/श्रीरामकृष्ण/रामकृष्ण/श्रीराम/)/राम(/कृष्ण)]]|
=======================================================================
NOTE:--गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण) में अपने में ही गिरिधर/गिरिधारी (कृष्ण), धौलागिरि (हिमालय) धारी हनुमान, धरणी(धरा/पृथ्वी)धर/धारी शेषनाग (लक्ष्मण/बलराम) और मेरूधर (मरुधर)/ मदिराचलधारी (कूर्मावतारी) विष्णु की शक्ति निहित होती है|
========================================================================
अतः क्या अब भी इस विश्वमानवता की समझ से परे है की मैं ही त्रिशक्ति धारण किया था और इस प्रकार पक्ष, विपक्ष और निरपेक्ष समेत सम्पूर्ण विश्र्व मानवता की ऊर्जा को ऐसे काल में धारण किया था तो फिर सनातन आद्या/आदिदेव/सदाशिव/महाशिव/सनातन राम(/कृष्ण)/पुराण पुरुष स्वयं मैं ही था| ===>>>मैं किसी पक्ष/दल/जाति विशेष का अभी भी हूं क्या? तो फिर स्थानीय, राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर आप अपने को पूर्णतः स्थापित करते हुए मूल प्रकृति को प्रभावित न करते हुए प्रयत्नशील रहिएगा और इस प्रकार श्रृष्टि संचालन में सहयोग कीजिएगा तो उसी के प्रति मेरा समर्पण होगा|)
=========================================================
31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 के बाद शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि इस संसार में मेरा कोई विकल्प न कभी था, न है और न होगा और वैसे भी जिसमें गुणों की धारणशीलता में केवल हाँ या ना में उत्तर देना हो तो उसमें केवल हाँ या ना में से एक का चयन ही किया जा सकता है तो फिर हाँ स्वीकारता यदि नहीं है तो ना उसका विकल्प नहीं बल्कि उत्तर है जिसका आशय है की अमुक का कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है| फिर भी 31 जुलाई, 2018 तदनुसार दिसम्बर, 2018 बाद के परिप्रेक्ष्य में पुनः मै कहता हूँ की इस वैश्विक आपदा को सृष्टि का संहार न समझा जाए बल्कि सांसारिक अभिव्यक्ति न होते हुए भी आतंरिक आत्मीय अभिव्यक्ति अनुसार इसे दैवीय आपदा मतलब देवियों का प्रकोप मात्र ही समझा जाए|----------------------|==========================================जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे सनातन हिंदू धर्म पर ही दोष न माढो:===वैश्विक समाज में दोष आ जाने पर वैश्विक समाज सनातन धर्म पर ही दोष क्यों मढ़ता है जबकि विकल्प लाभकारी है और आपको अधिकार देता है तो आप स्वीकार कर लेते हैं और जब कर्तव्य और त्याग का भी सुझाव देता है तो आप पीछे हट जाते है तो फिर नियम-कानून -धर्म की बात करने के साथ क्या अंतर्जातीय व् अंतर्धार्मिक विवाह के शास्त्रीय नियम के पालन आपने या आपके समाज ने किया है:=======अपने कर्तव्य का पालन करो और धर्म के सब अधिकार पाओ========--------दलित समाज से शास्त्रीय हिन्दू विवाह और अंतर्धार्मिक विवाह तब तक वैध नहीं जब तक विवाह पूर्व वर अपने को सामजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार न कर लिया हो मतलब उसे उस समय (विवाह के पूर्व) तक सनातन धर्म के पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत समस्त अधिकतम देवी, देवता और नियम-क़ानून मान्य हो गए हों और उनके प्रति उनमे आस्था व् विश्वास हो गया हो; क्योंकि शास्त्रीय हिन्दू विवाह एक ऐसा कर्म-कांड है जिसमे पञ्चदेव (अग्नि, वरुण, पवन, आकाश, पृथ्वी) समेत लगभग समस्त अधिकतम देवी, देवता का आह्वान होता है अग्निदेव(ऊर्जा/प्रकाश) को शाक्षी माना जाता है सम्पूर्ण विवाह पध्धति के परिपालन में। और अगर वह विवाह पूर्व वर अपने को सामाजिक, संवैधानिक और धार्मिक रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या इन तीनों के व्युत्पन्न जाती/धर्म का स्वीकार कर लिया है तो फिर वह दलित या अन्य दूसरे धर्म का कहलाने का अधिकारी नहीं रह जाएगा मतलब दलित या अन्य धर्म के तहत लाभ से वंचित हो जाएगा और जब वह धर्मान्तरण करेगा तभी दूसरे धर्म में जा सकता है। इसके इतर वह किसी भी अन्य विधि से विवाह कर सकता है और केवल पति/पत्नी कहलाएगा पर धर्म-पति/पत्नी नहीं कहे जा सकेंगे|
=================================|
===============================================================
मै शिव ही नहीं महाशिव/सदाशिव(सनातन राम/कृष्ण)/सशरीर परमब्रह्म /पुराण:पुरातन पुरुष /आदिदेव/सनातन आद्या (जो स्वयं में एकल स्वरुप ब्रह्मा: परमज्ञानी + सम्पूर्ण समृद्धियों युक्त विष्णु:त्रिदेवों के लिए भी गुरु बृहस्पति+ आदि त्रिदेव/त्रिदेवों में आद्या महेश:परमाचार्य है)/ स्वयं में ही सम्पूर्ण ज्ञान, समृद्धि व् शक्तियों युक्त जगत-विश्व गुरु हूँ, तो फिर 25 मई, 2018 को प्रयागराज विश्विद्यालय, प्रयागराज में केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र की स्थापना सभी यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से हो चुका है| तो फिर केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय व् महासागर अध्ययन केंद्र समेत सभी नवोदित 11 केंद्र/विभाग (मेरे सशरीर परमब्रह्म, कृष्ण स्वरुप से 16-29 मई, 2006 को 67 जीवन ज्योति/जीवन का आधार/स्थाई शिक्षक पद प्राप्त किये हुए ) में तो कम से कम मेरे ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और वरिष्ठ और उच्च मेधा, प्रतिभा और पुरुषार्थ वाले का निर्धारण जरूरी था क्या?---------किन्तु नहीं यह तो सनातन कृष्ण की सत्ता से आगे बढ़ते हुए सनातन राम की सत्ता का प्रतिपादन करना था, अन्यथा इस प्रयागराज विश्विद्यालय में 7 फरवरी, 2003 को समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होते ही मेरा कोई एकल ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, वरिष्ठ तथा उच्च मेधा, प्रतिभा व् पुरुषार्थ वाला नहीं रह गया था और फिर भी मैं समाधिष्ठ/संकल्पित/ब्रह्मलीन होकर भी पूर्णातिपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में अस्तित्व हूँ तो फिर प्रश्नचिन्ह क्या लगेगा?
मुझे पूरा विश्वास था की मेरे अपने निमित्त संस्थागत जो कार्य था उसे सैद्धांतिक रूप में मैंने 16-29 मई, 2006 को पूर्ण कर लिया था वह एक न एक दिन हर यम-नियम-अधिनियम और विधि-विधान-संविधान से पूर्णातिपूर्ण होगा ही जो की आगे चलकर 25 मई, 2018 को हुआ जिसकी उल्टी गिनती 24-11-2016 से हो चुकी थी जब विश्वविद्यालय द्वारा केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र को ही नामतः हूबहू पूर्णतः स्वीकारते हुए और उसी केंद्र को माध्यम मानते हुए अपने अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया जिस केदारेश्वर बनर्जी वायुमंडलीय एवं महासागर अध्ययन केंद्र नाम से न्यायालय में वाद अगस्त, 2014 के प्रथम सप्ताह और पुनः सितम्बर, 2014 के प्रथम सप्ताह में दाखिल कर विश्विद्यालय और यूनियन ऑफ़ इण्डिया समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया गया था (24/30 नवम्बर, 2016 ( विश्वविद्यालय द्वारा शपथ पत्र प्रस्तुतीकरण दिवस /विश्वविद्यालय द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र का प्रस्तुतीकरण दिवस))|
No comments:
Post a Comment